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मंगलवार, 19 अक्टूबर 2010

गांधी और मेरे पिता

आज जब प्रवीण पाण्डेय जी के ब्लॉग पर वर्धा में गाँधी आश्रम के बारे में पढ़ रहा था तो सहसा ही कुछ भाव मन में जागे अपने गाँधी के बारे में !  मैंने जो कमेन्ट पाण्डेय जी के ब्लॉग पर छोड़ी है , सोचा उसको एक ब्लॉग पोस्ट के रूप में सहेज कर रख लूं -  शायद पिताजी पढेंगे तो एक अहसास हो कि बाहर वालो के साथ घर में भी उनके महान कार्य को हम हर पल अपना अमूल्य धन मानकर गौरब अनुभव करते हैं -

बचपन में गांधी जी की कई पुस्तकें पापाजी  ने मुझे  पढवाई और अभी भी यदा कदा कुछ पढ़ लेता हूँ , हर बार आदर्श , सत्य , सदाचार, संयम,  निष्ठा और त्याग के भाव जैसे चारों और से गदगद सा कर देते हैं , फिर घर में भी एक स्वरुप गाँधी का देखता हूँ,  मेरे पिता,  जो हर बार अपनी पोस्टिंग ऐसे गाँव में कराते हैं जहाँ कोई और जाना नहीं चाहता और फिर खुद रोज कर्तव्यनिष्ठ होकर अपनी ड्यूटी पर जाते हैं , चिकित्सा विभाग में उनके साथ के लोग गरीबों के लिए आ रहीं दवाईयों को बेच और अपनी खुद की क्लिनिक खोल हजारो कमा कर शहरों में  जब मदमस्त पर ग्लानिरत होकर जी रहे हों तब ये अपनी तनख्वाह भी आदिवासियों में बाँट आते हैं , लड़कियों की शादी कराने से लेकर उनके साथ हर परिस्थिति में जैसे साथ रहने का उन्होंने उन गाँव वालों को वचन दे दिया हो,  सुब्बाराव , विनोवा भावे , स्वेट मार्डेन,  श्रीराम शर्मा आचार्य से प्रभावित वो अपनी दैनिक गतिविधियों से हमारे क्षेत्र में एक निर्विवाद छवि के रूप में जाने जाते हैं और मुझे हर वक्त यही अहसास होता है कि मैं अपनी क्षमता से नहीं बल्कि उन सैकड़ों गरीबों के आशीर्वाद की वजह से ही कुछ कर पाने में समर्थ हूँ,  कभी कभी हम भी पिता का पूरा समय और प्यार ना पाने से खीज पड़ते थे पर आज उनके त्याग का अहसास हर पल मुझे एक स्फूर्ति और सत्य पर चलने की प्रेरणा देता है !  बचपन में सिखाये गए डायरी लेखन से लेकर , सादगी के पाठ, मेहनत की कमाई तक हर चीज मुझे मेरे असल गांधी से मिलती रही है !   पर कभी कभी दुःख होता है कि ऐसे लोग जिन्दा रहते कभी मानव द्वारा बनायीं गयी सुविधाओं का उपयोग अपनी कर्तव्यनिष्ठता के सामने कर ही नहीं पाते, पर फिर सुकून मिलता है कि जब वो बुलाएं - कई लोग आ खड़े होते हैं !    जब वो मेहतर, चमार या कोरी   के घर  उनके साथ बैठकर खाना खाते हैं तो लोग पागल तक की संज्ञा दे देते हैं पर उस गरीब को जो संबल , स्वाभिमान और ऊर्जा उस साथ से मिलती है  वो अपने आप में एक प्रेरणा  और यादगार बन जाती है !  उनके लिए सब इंसान जाती भेद से दूर होकर एक समान हैं !   और इसलिए घर में गीता, रामायण के साथ कुरआन को भी जगह मिलती है !
 
कितने ऐसे गाँधी है आज भी,  उसके लिए वर्धा या साबरमती भी शायद न जाना पड़े पर ऐसे धार्मिक स्थलों से प्रतीकात्मक प्रेरणा की स्फूर्ति तो शरीर में आती ही है ! 
 
आभार आपका !

19 टिप्‍पणियां:

Smart Indian ने कहा…

इन प्रातः स्मरणीय वयस्थों को प्रणाम!

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून ने कहा…

जानकर अच्छा लगा कि ऐसे लोग बस किताबों में ही नहीं होते. आप निश्चय ही बहुत भाग्यशाली हैं.

abhi ने कहा…

बहुत अच्छा लगा पढ़ के राम भाई...
बहुत बहुत शुक्रिया ये शेयर करने के लिए...

प्रवीण जी का भी ब्लॉग एक अलग टैब में खुला हुआ है...जाता हूँ वो भी पढ़ने..

उस्ताद जी ने कहा…

5/10

अनुकरणीय / सुन्दर विचार
प्रस्तुति साधारण

Arvind Mishra ने कहा…

बाढें पूत पिता के धर्मे -एक पुरानी ग्राम्य कहावत !

कडुवासच ने कहा…

... प्रभावशाली व्यक्तित्व ... सानिध्य में हर पल कुछ न कुछ सीखा जा सकता है !!!

डॉ टी एस दराल ने कहा…

बहुत बढ़िया संस्कार मिले हैं आपको अपने पिताश्री से । बधाई । अच्छी पोस्ट ।

अजित गुप्ता का कोना ने कहा…

आपके पिताजी के बारे में जानकर बड़ा अच्‍छा लगा। एक जमाना था जब ऐसे ही आदर्श घर-घर में थे लेकिन आज बस भोगवाद का चरम आ गया है।

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

आपकी टिप्पणी पढ़ आँखें नम हो गयीं, बस देश को आपके पिताजी जैसे ही गांधी आवश्यक थे, शेष सब ढकोसले हैं। अपनी मानवता से किसी एक का भी जीवन का उपकृत करना कितना कठिन है पर कितना संतुष्टि देने वाला।
आपके पिता का जीवन स्तुत्य है, मेरा प्रणाम।

रचना दीक्षित ने कहा…

प्रेरणादायी पोस्ट, अपने संजोये हुए इन भावों को हमसे बाँटने के लिए आभार

महेन्‍द्र वर्मा ने कहा…

आप बहुत भाग्यशाली हैं...आपके पिताजी को मेरा नमन।

राज भाटिय़ा ने कहा…

बहुत अच्छा लगा आप के पिता जी के बारे जान कर, आप के लेखो से आप के बारे भी बहुत अच्छा महसुस करता हुं, पता न्ही लोग कैसे दुसरो का हक मार कर खुद ऎश करते हे,कल परसो एक पोस्त पढी किसी बच्ची कि, जिसे पढ कर मन बहुत खराब हुआ, उस की नजर मे गरीबो की कोई ओकात नही, वो सरकारी स्कुलो मे ही पढते हे, जिन्हे कोई अकल नही उस ने इन शब्दो को तो नही लिखा, लेकिन लेख ओर उस की टिपण्णी पढ कर यही महसुस हुआ....
काश आप का लेख पढ कर सब आप के पिता जॊ के पद कदमो पर चले. धन्यवाद

भवदीप सिंह ने कहा…

बहुत अच्चा लिखा.

अपने पिताजी को नमस्ते बोलना.

Udan Tashtari ने कहा…

कितने ऐसे गाँधी है आज भी, उसके लिए वर्धा या साबरमती भी शायद न जाना पड़े पर ऐसे धार्मिक स्थलों से प्रतीकात्मक प्रेरणा की स्फूर्ति तो शरीर में आती ही है !


-पिता जी को चरण स्पर्श..य्ही तो आशा की किरण दिखाता है कि ऐसे व्यक्तित्व भी हैं.

ASHOK BAJAJ ने कहा…

आपके ब्लॉग में आकर अच्छा लगा , बहुत सुन्दर लेख है . ग्राम चौपाल में पधारने के लिए आभार !

Akshitaa (Pakhi) ने कहा…

मैं भी वर्धा घूमने जाउंगी अब...


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'पाखी की दुनिया' में पाखी की इक और ड्राइंग...

Sanjeet Tripathi ने कहा…

ऐसे ही व्यक्तित्वों के कारण अभी तक देश, देश है।
नमन उन्हें।

लाल कलम ने कहा…

बहुत अच्छा लिखा है आप ने, अच्छी प्रस्तुति

राम त्यागी ने कहा…

सभी लोगों ने जो स्नेह और आदर मेरे पिताजी के लिए दिखाया है उससे में अभिभूत हूँ और आप सभी का शुक्रिया अदा करता हूँ !

आप इसी तरह उत्साहवर्धन करते रहें और मेरी कमियों को इंगित कर मेरी लेखनी में सुधार करवाते रहें !

बहुत बहुत धन्यवाद !!