बहुत बार ये जद्दोजहद और बहस की जाती है, साउथ के दोस्त लोग हिंदी को देश की भाषा के रूप में मानने को तैयार नहीं है, कानून में शब्दों के जाल ने हिंदी भाषा की व्याख्या को और भी विवादास्पद सा बना दिया है। इधर हमारे अंग्रेज दोस्त कभी पूछते है की भाई आप लोगो के इधर में राष्ट्रभाषा क्या है या फिर मुख्य भाषा क्या है तो हर कोई अपने क्षेत्र के हिसाब से उत्तर देता है और उस समय सामने वाले को पूरी तरह कन्विंस करना बड़ा मुस्किल होता है।
वैसे ये हमारे देश की विविधता का भी प्रतीक है पर माला में भी विभिन्न मोती के साथ एक मुख्य मोती भी होता है, घर में भी बड़ो और छोटो के बीच एक मुखिया होता है, यहाँ तक की सरकार में भी विभिन्न विभागों के होते हुए एक प्रधानमंत्री या फिर मुख्यमंत्री होता है तो फिर एक भाषा क्यों नहीं ? symbloic रूप से ही सही पर इसकी एक सही व्याख्या तो होनी ही चाहिए। आखिर राजभाषा तो वही होगी ना जो की राष्ट्र की भाषा है , तभी तो राज्य की भाषा को सब लोग समझ पायेंगे , तो इस हिसाब से तो हिंदी ही राष्ट्रभाषा हुई ? पर क़ानून ऐसा नहीं मानता - There's no national language in India: Gujarat High Court और ठाकरे जैसे , करूणानिधि जैसे लोग भी ऐसा नहीं मानते !
हिंदी ब्लोग्गेर्स को कुछ हस्ताक्षर अभियान चलाना चाहिए और उसको हमें तब तक जारी रखना होगा जब तक की एक मजबूत आवाज हमारे क़ानून बनाने वालो तक नहीं पहुंचती , अगर कोई पहले से ही ऐसा अभियान चल रहा है तो कृपया करके मुझे भी बताएं , अन्यथा हम एक न रुकने वाला अभियान शुरू कर सकते है। किसी भी केस में, मैं अपना हर तरह से सहयोग देने तैयार हूँ।