भारत में भी सिमी से लेकर माओवादियों तक ने अपने वैचारिक अन्धपन में पूरे देश को हिला रखा है , हमारे यहाँ इन तत्वों को ढीली ढाली लचर प्रशाशनिक व्यवस्था से और भी संबल मिल जाता है ! अभी हाल ही में स्वामी अग्निवेश ने माओवादियों और सरकार के बीच मध्यस्थता के कुछ कदम उठाये थे और फिर एक माओवादी नेता मारे गए तो स्वामी अग्निवेश ने चिदम्बरम जी के खिलाफ कई बयान दिए, स्वामी अग्निवेश भेष तो भगवा पहनते हैं पर राजनीतिक गलियारों में उनकी खूब तू तू बोलती है , सामजिक कार्यकर्ता भी है और विदेशी संस्थ्याओं के प्रिय चहरे भी ! मैंने उन्हें एन डी TV पर बरखा दत्त के प्रोग्राम में कभी कभी बहस में हिस्सा लेते देखा है , पर कभी कभी उनकी दिल्ली के गलियारों में सक्रियता समझ नहीं आती तो सोचा कि यहाँ ये प्रश्न डाल दूँ, शायद मेरे ब्लॉग पाठक इस बारे में मेरा कुछ मार्गदर्शन कर पायें ! कभी कभी कुछ लोग ज्यादा गहराई से देखने पर उस कहावत को चरितार्थ कर जाते हैं - कि "हाथी के दांत खाने के और दिखाने के और" !
यहाँ एक सार्थक प्रश्न उठाया था, जिसको सही दिशा में सोचा जाता तो कुछ निष्कर्ष ही निकलता पर चाटुकारों की सभा में जैसे पुराने जमाने में कई विद्वानों ने जब सामने वाले की नहीं सुनी तो परिणाम अंत में बुरा ही हुआ ! वैसे ही यहाँ भी लोग 'हाँ जी हाँ जी' से आगे ही नहीं निकल रहे, तुलसीदास ने सच ही कहा - पूरी सभा राजा की हाँ में हाँ मिलाने लगे और प्रलोभन से कुछ फीडबैक ना दे तो राजा का सफल होना संभव नहीं है, रावण भी कितना ग्यानी था पर बस आलोचना से या सवालों से उसकी प्रतिष्ठा पर जैसे अंकुश लगता हो, अंगद और हनुमान को वानर समझा तो राम और लक्ष्मण को एक मामूली बनवासी !
भारत ने राष्ट्र मंडल खेलो पर खूब पैसा बहाया, बढ़िया उद्घाटन और समापन किया और गर्व की बात कि हमने १०० से अधिक पदक भी जीते, कितनी उपलब्धियां रहीं, सबको बढ़िया खेल गाँव में घर और सुविधाएं उपलब्ध कराई गयीं , खिलाड़ियों और देश का बहुत फायदा हुआ और शायद इससे देश में हो सकता है कि खेल के क्षेत्र में एक क्रांति आ जाए , लोग क्रिकेट की तरह अन्य खेलों में भी बच्चों को आगे देखने की ललक रखेंगे , ऐसी प्रेरणा ये खेल दे गए पर क्या कलमाड़ी जी इन उपलब्धियों के साथ जो अन्य कमियां हुई हैं उन पर विचार नहीं करेंगे ? जी हाँ नहीं करेंगे क्यूंकि वो नेता हैं और भारत में नेता सिर्फ मलाई ही खाते हैं , विषपान तो टैक्सदाता ही करेगा ! फिर भी सार्वजनिक कार्यक्रम है तो हर कोई कलमाड़ी को इतनी बड़ी सफलता के बाद भी कई प्रश्न पूछ रहा हैं और शायद वो इस वजह से बहुत खिजिआये और बौखलाए हुए हैं !
वर्धा पर फिर से बात, कार्यक्रम के तुरंत बाद मेरी बात रविन्द्र जी से और भुवनेश से हुई थी और मैंने यही कहा था कि आयोजक हर किसी को नहीं बुला सकता और इतने अच्छे आयोजन पर आयोजक बधाई के पात्र हैं, पर फिर भी कुछ प्रश्न हैं मन में, जैसे कि लोगों को इसके बारें में नेट पर पता ही नहीं चला, तो मैंने ये प्रश्न आगे उठाया और साथ ही कार्यक्रम के विषय पर भी प्रश्न उठाया! बाद में एक ब्लॉग पर मैंने देखा कि बताय गया कि २ जगह लिंक दी गयी थी तो बात ख़त्म करने की सोची, मान लिया कि हमारी या औरों कि द्रष्टि वहाँ नहीं जा पायी ! पर फिर कुछ बौखलाहट वाले कमेन्ट देखे , तो बात आगे बढ़ना स्वाभाविक थी - उसके बाद मैंने इस कार्यक्रम के अंत में एक विस्तृत रिपोर्ट की अपेक्षा रखी, स्वेत पत्र में क्या बुराई हैं ? श्रीमती अजित गुप्ता, प्रवीण पांडे और अन्य सभी विद्वानों के आपस में मेल मिलाप से निश्चय ही ये आयोजन हिंदी ब्लॉग्गिंग को स्फूर्ति देगा फिर स्वेत पत्र और पारदर्शिता के नाम पर इतना बबाल और आवेश क्यों ?
मेरे से कहा गया "बस, ज्यों ही प्रेशर महसूस हो हाजत से निबट लो। आराम से घर में बैठकर वेस्टर्न स्टाइल कमोड पर।" --- अब का करें इधर खेत हैं नहीं और वेस्टर्न स्टाइल कमोड पर ही करने की मजबूरी है, शुक्र है पानी और कागज़ का जिक्र नहीं था ! शायद गाँधी के वर्धा में वातानुकूलित कमरे में रहने वाले भी अब खेत में नहीं जाते होंगे पर मैं हिंदुस्तान में अभी भी खेत में सुबह घूमने का अभ्यस्त हूँ ! सोचा नहीं था कि ब्लॉग पर लिखने के लिए भी मुहूर्त निकलवाना पडेगा :) वैसे लोगों के अन्तःपुर में झांकना प्राईवेसी का उल्लंघन है और ये कैसे आचार संहिता का पाठ कि पहले दिन ही आचार संहिता तार तार !! |
अकेला हूँ तो क्या हुआ
तलवार नहीं तो क्या हुआ
जश्ने बहारों का रेला मेरी तरफ नहीं तो क्या हुआ
आवाज तो गूंजेगी
मेरे सतत चिन्तन से
अनवरत सत्य से
दीपक जलाता रहूँगा
आँधी के रेले हैं तो क्या हुआ
मरुस्थल में प्यासा हूँ तो क्या हुआ
रेत पर चलता रहूँगा
लिखता रहूँगा !!
एक खुशखबरी है - मेरे एक परम मित्र और हमारी ब्लॉगर साथी प्रज्ञा एवं अमित सक्सेना को १३ अक्टूबर को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई ! प्रज्ञा पिछाले एक साल से ब्लॉग पर सक्रिय नहीं है पर आशा है कि जल्दी ही गृहस्थ धरम के निर्वहन के बाद वो फिर से अपनी लेखनी को सक्रिय करेंगी , ये समय है बधाई का और खुशियों का ! साथ ही आप सबको दशहरे की हार्दिक शुभकामनाएं ! बुराई पर अच्छाई की विजय पर कल एक फिल्म देखी - निशांत !! अब ये ना कहना कि फ़िल्म फ्लैट स्क्रीन पर देखी होगी :) |
16 टिप्पणियां:
प्रज्ञा और अमित के पुत्र रत्न की प्राप्ति पर बधायी ,विजय पर्व पर बधाई!
पारदर्शिता हनी ही नहीं दिखनी भी चाहिये -एक सुचिंतित बात है !
इतनी जल्दी मत भागिए मिश्रा जी, स्वामी अग्निवेश जी के बारे में तो बता जाते :)
स्वामी अग्निवेश जी से रायपुर के एक कार्यक्रम में मुलाकात हुई थी। चिदम्बरम से बहुत नाराज दिखे। लगा कि मध्यस्थता वाले मामले में फ़ंस गए हैं।
पढे लिखे लोगों के जवाब भी गढे लिखे होते हैं। एक गंवई का आदमी अपनी बात सच्चे दिल से रख देता है। उसकी भाषा में कोई बनावट नहीं होती। जैसा होता है वैसा ही सामने रख देता है।
प्रज्ञा और अमित के पुत्र रत्न की प्राप्ति पर बधाई
प्रज्ञा और अमित के पुत्र रत्न की प्राप्ति पर बधाई!
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स्वामी अग्निवेश आर्यसमाज के बहुत बड़े सन्यासी हैं!
स्वामी अग्निवेश जी पूर्व में बहुत बड़े समाजसेवी व् आर्य समाजी रहे है परन्तु वर्तमान में वे नक्सलियों के बहुत बड़े समर्थक है खुले आम नक्सलियों की और से खुले मंचो में नक्सलियों की पैरवी कर चुके है! देश के गृह मंत्री से नक्सलवाद को लेकर घोर मतभेद भी है ! परन्तु जब निर्दोष नागरिक मरते है या नक्सलियों के हाथो हमारे जवान मारे जाते है तब स्वामी अग्निवेश चुप्पी साध लेते है !इसलिए स्वामी अग्निवेश का दोहरा चेहरा समाज के सम्मुख है !
आपके दो लेख पढ़े। अग्निवेश जी के बारे में राय बनाने लायक ज्ञान नहीं है। कुछ गलत हो रहा है इतना भर समझ पाती हूँ। नक्सलवाद को पनपने के लिए जो भूमि चाहिए वह हम उन्हें उपलब्ध करा रहे हैं। कोई भी पुलिस में भरती होने को तैयार न हो उससे पहले कुछ तो करना ही होगा।
घुघूती बासूती
जो समस्या को सुलझाने की जगह उसको उलझाये, ऐसे लोगों की आवश्यकता बहुतों को रहती है, देश के सिवाय।
प्रज्ञा एवं अमित सक्सेना जी को बधाई,भाई हम ठहरे मस्त मोला, इस लिये इन स्वामी बनामियो को नही जानते, ओर ना ही रुचि रखते हे, वेसे जेसे आज के स्वामी वेसे ही नेता हे
... कविता की एक एक पंक्ति बेहद प्रभावशाली व प्रसंशनीय है, बधाई !!!
बीच बचाव कराने वाला दोनों की झेलता है , स्वामी जी के साथ भी यही हो रहा होगा ऐसा लगता है .
प्रज्ञा एवं अमित सक्सेना जी को बधाई.
सब्से पहले तो प्रज्ञा और अमित को बधाई!
आपके सवालों में कम से कम मुझे कोई बुराई नज़र नहीं आती है - प्रैशर वाली बात जिस किसी ने भी कही हो काफी बेहूदा और गैरज़िम्मेदाराना है। अर्ध-सरकारी विभागों/संस्थाओं के काम में अपारदर्शिता की प्रवृत्ति ने पहले ही देश को काफी पीछे धकेला है, इसको रुकना तो होगा ही।
@अनुराग जी , आपका बहुत शुक्रिया कि आपने बात को एक निष्पक्ष तरीके से तौल कर अपनी बात कही , नहीं तो किसी को कहाँ समय सार्थक बहस का !!
@प्रवीण जी , ये सही बात है विभीषण की जरूरत विपक्ष को ही हुआ करती है
आप सभी का सन्देश प्रज्ञा और अमित तक पंहुचा दिया गया है - बहुत बहुत धन्यवाद सभी का !!
इस पोस्ट पर देर से नज़र पडी इसलिए अपनी टिपण्णी नहीं दे सका !
सर्वप्रथम प्रज्ञा और अमित के पुत्र रत्न की प्राप्ति पर बधाई !
जब वर्धा कार्यक्रम के समापन के पश्चात आपसे मेरी बात मोबाईल पर हो रही थी तब मैं नागपुर एअरपोर्ट पर था, इसलिए काफी कम समय मिला, किन्तु जो भी बातें हुयी सार्थक और सकारात्मक हुयी, हर कार्यक्रम के कुछ नकारात्मक और सकारात्मक पहलू होते हैं ....मगर यदि सकारात्मकता का पलड़ा भारी हो तो नकारात्मक पहलू दब जाते है ! आपने सही कहा कि हर आयोजन में सबको तो बुलाया नहीं जा सकता ....! रही स्वामी जी की बात तो मैं यही कहूंगा कि दोहरा चरित्र निंदनीय है चाहे स्वामी अग्निवेश ही क्यों न हो !
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