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बुधवार, 29 सितंबर 2010

सहिष्णु – सहनशील - बहुआयामी भारत !!

मन में उद्वेलन है , हर कोई सजग है , उत्सुक है ! बहुराष्ट्रीय कम्पनियों ने अपने कार्यालय कई जगह कल बंद रखने की घोषणा की है, इसके एवज में शनिवार को लोगों को काम पर बुलाया गया है - अयोध्या मसले पर फैसले का दिन है कल ३० सितम्बर को !

मेरे हिसाब से ये फैसला कतई न्यायोचित नहीं होगा, अब तक चले इस कानूनी दांवपेंच में १८ के लगभग जज बदले जा चुके हैं। अगर सबूतों पर जाएँ तो रामचरित मानस जो घर-घर में पढ़ा जाता है  - पर गौर करें तो और किसी सबूत की जरूरत ही नहीं रह जाती , फिर  मन में आता है कि एक समुदाय विशेष को इन ऐतिहासिक सबूतों से क्यों नाराज किया जाए जब पहले से ही आहत है ढाँचे के ढहाये जाने से, सहनशीलता और हर किसी को अपने में समाहित करने की सहिष्णु संस्कृति में पले हम लोग कैसे कोई इमारत गिरा सकते है भले ही हमारे ग्रन्थ और हमारी कथाएँ हमारे तर्कों को अतुल्य बल प्रदान करती हैं और शायद ऐसे ही विचार और सहिष्णुता जज महोदय (यों ) के मन में भी रही होंगी और उनके ऊपर विभिन्न सरकारों और समुदायों का विशेष दखलंदाजी भरा दबाब भी रहा होगा, उनके मन की भावनाएं , ग्लानी और निर्णय से उपजे गंभीर मुद्दे जरूर उनके निर्णय को प्रभावित करेंगे और ऐसे में मैं नहीं मानता कि जो निर्णय होगा वो न्यायोचित होगा ! 

खैर, जो भी हो - समय भी निर्णय का ठीक नहीं,  जब विश्व भारत को राष्ट्र मंडल के खेलों के विशाल आयोजन के लिए परीक्षक बनके देख रहा हो,  जब कई हजारों करोंड़ों रुपये खर्च करके १०-१५ दिन का एक विशाल आयोजन सरकार का ध्यान चाहता हो, वहाँ इस निर्णय से उपजे अवसाद जरूर ही हमारी प्रतिष्ठा को दाग लगा सकते हैं, पर उम्मीद है कि २१ वीं सदी का भारत आगे कि सोचेगा - पीछे की नहीं !

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हम सब एक हैं !!

कल दराल साहब के ब्लॉग पर दिल्ली के राष्ट्र मंडल की तैयारी वाले फोटो देखे , दिल्ली को आधुनिक, और विश्व स्तर की देख मन खिल उठा और यही मन में सोचा कि बस ये सिलसिला चलता ही जाए, और ये चमक १ महीने बाद फीकी न पड़ जाए, जो बना है वो दुरुस्त और दूरगाम रहे !  और फिर आज सुबह यहाँ ‘वाल स्ट्रीट’ जैसे प्रतिष्ठित अखबार के पहले पन्ने पर भारत के आधार अभियान के बारे में बहुत ही विश्लेष्णात्मक लेख पढ़ा तो मन और भी प्रफुल्लित हो गया !  रुपये के चिन्ह से लेकर नागरिकों की पहचान के चिन्ह तो हम बना रहे हैं पर राजनीती के दांव पेंचों में कहीं किसी दिन सहिष्णुता का चिन्ह कभी खो न बैठे, यही डर सा लगा रहता है !

ऑफिस के पास ही एक इटालियन रेस्तरां हैं जहाँ मैं कुछ दिन पहले एक दिन सुबह नाश्ता करने चला गया था,  नाश्ता परोशने वाली महिला कुछ ४०-५० साल की रही होंगी, उन्होंने बढ़िया प्यार से खाना खिलाया , चेहरे पर एक मुस्कान थी ! जब मैं जाने लगा तो मैंने उनकी सेवाओं की तारीफ की तो बोलने लगी कि आप मेरे मेनेजर को मेरी प्रशंशा में कुछ शब्द बोल दीजिए - जिससे मेरी नौकरी और पक्की हो जायेगी ! मैंने मेनेजर के पास जाकर कहा कि इनका व्यवहार और कार्य कुशलता आपके खाने के स्वाद में चार चाँद लगा देती है और इस वजह से में यहाँ नाश्ता करने आता रहूँगा - उसके बाद वो महिला बहुत प्रसन्न हुई ! उस खिले हुए चेहरे के पीछे जो कुछ चिंता की लकीरें उभरी थी वो अब आशा और गर्व बनकर मेरा अभिवादन कर रही थी , पर चूंकि उम्र में वो मेरी माँ जैसी रही होंगी तो मैं भी प्रत्युत्तर में उनको सम्मान और फिर से अक्सर आते रहने की आश दे ऑफिस आ गया !

फिर २-३ सप्ताह हो गये, पर कभी जाना नहीं हुआ उस रेस्तरां में दुबारा ! आज सुबह थोडा काम का बोझ कम था और सुबह नाश्ता नहीं किया देर से जागने की वजह से तो सोचा कि चलो उस रेस्तरां में जाकर ब्रंच ( - नाश्ता और लंच दोनों ) कर लिया जाए !  जब गया तो वहाँ कोई नहीं था , सिर्फ में ही था एक ग्राहक , या मेहमान कुछ भी कहिये । वो महिला मुझे देख बड़ी खुश हुई - बात करती रहीं,  बात करते करते पता चला कि वो पाकिस्तान से हैं ।  और कुछ दो साल पहले ही पाकिस्तान से अमेरिका आयीं थी,  उनकी दो लडकियां है जो १८-१९ साल के लगभग है - खुद रोज ३.३० बजे उठकर न्यू जर्सी से उठाकर ५:३० बजे रेस्तरां में होती है,  कोई और नहीं है घर में , चूंकि होटल में काम करने से कमाई ज्यादा होती नहीं है इसलिए यहाँ रह रही बहन के साथ - जो अब अमेरिकन नागरिक है - जिसने उनको यहाँ स्पोंसर करके बुलाया है - उनके घर में ही दोनों लड़कियों के साथ रहती हैं। रोज यही सुबह से शाम का रूटीन है जिससे लड़कियां का भविष्य संबर सके !  उनके भाई भी यहीं कहीं अमेरिका में रहते है तो वो भी कुछ सहायता करते रहते हैं ।  उस मुस्कान के पीछे कितना संघर्ष और अवसाद छुपा था , घुटन के भी कुछ बिंदु थे पर सफर जारी था । अब मेरी समझ में आया कि ये क्यूँ उस दिन अपनी नौकरी के लिए इतनी चिंतित थीं।  शायद मेरे गृह नगर ग्वालियर से भी उनका कुछ सालो पहले का संबद्ध था - दुनिया कितनी छोटी - गोल और सम्वेदनाओं से भरी हुई है ! हर कोई किसी न किसी उधेड़बुन में लगा ही हुआ है। उनकी अंगरेजी पर पकड़ देखकर लग रहा था कि किसी पढ़े लिखे परिवार से रही होंगी पर किस्मत ने शायद आज इस मोड पर ला खडा किया कि सुबह से शाम तक कुछ चंद डालरों के लिए संघर्ष जारी था - क्यूंकि उसे अपने बच्चों का भविष्य जो श्वाभिमान से रचना है !!

भारत के प्रति श्रद्धा के भाव झलक रहे थे और मेरे प्रति भी - क्यूंकि मैं भारतीय हूँ ! मैं ब्रंच करके निकल ही रहा था कि एक और सज्जन आ गये जो दुबई से थे, ऐसे ही थोड़ी बात हुई - वो भी भारतियों के लिए बड़ा सम्मान दिखा रहे थे ! जब मैंने कहा कि आप अरब लोग तो रईस होते हैं तो वो थोडा खिन्न नजर आया और बोला कि अरब में आयल के खजानों पर कुछ ही लोगों का नियंत्रण है, अगर आपके घर के नीचे आयल का कुआ निकला है तो आपको पता भी नहीं चलेगा कब अंदर ही अंदर पाईप से आयल निकाल लिया, और ज्यादा अगर आप मुँह खोलोगे तो आपके नाक-कान काट डालेंगे ये रईस लोग - यानी धमका देंगे ! कह रहा था वहाँ पर सब चोर है, और कुछ ही लोग है जो फल फूल रहे हैं !  बता रहा था कि मैं बिजली विभाग में काम करता हूँ और रात को अपनी कार को टैक्सी के रूप में चलाता हूँ , और अब अमेरिका घूमने आया हूँ - एक और चिंतिंत मन !  खैर कह रहा था कि भारत के लोग बहुत आ रहे हैं काम करने दुबई में - पर बंगला देशियों ने थोडा माहौल खराब किया हुआ है !

मैंने सोचा कि चलो आज तो वाल स्ट्रीट से लेकर हर जगह देश का ही झंडा दिख दिख रहा है - एक भारतीय को जो देश से दूर है और क्या चाहिए ? सब कुछ मिल गया मुझे तो - बस कल की थोड़ी चिन्ता थी क्यूंकि कल ३० सितम्बर है !!

मंगलवार, 22 जून 2010

एक पग और बढ़ा…

 

imagesबहुत दिन से जद्दोजहद चल रही थी की कैसे हिंदी लेखन के लिए एक ओफलाइन टूल को लैपटॉप पर डाला जाए. अभी तक करीब कुल मिलाकर लगभग १०० से ऊपर पोस्ट हो गयी होंगी मेरे तीनों ब्लोग्स पर, सारी ब्लोग्गेर्स के टाइपिंग एडिटर को उपयोग में लाकर ही लिखी गयीं थी.  बहुत टाइम कोन्सुमिंग टास्क था.  कई बार लिखते लिखते बाद में एडिट करना पड़े तो बहुत मुश्किल होती थी, ओनलाइन होकर ही लिख पाता थे, ऐसी कई परेशानियाँ आती थी.   पर हिंदी में लिखने की चाह थी तो बस लिखता गया, पर हाँ उतना नहीं भावों को बिखेर पाया जितना चाहता था. 

आज सुकून सा अनुभव कर रहा हूँ जब गूगल का हिंदी और अंग्रेजी में स्विच करने वाला टूल भी इंस्टाल हो गया और ब्लॉग से डिरेक्ट कनेक्शन के लिए विंडो लाइव भी इंस्टाल कर लिया है. अब जब चाहे लिख कर रख सकता हूँ . थोड़ी सुविधा और सुगमता रहेगी. 

IME (गूगल का हिंदी और अंग्रेजी में स्विच करने वाला टूल )

  • पहले बार बार एक जगह हिंदी में टाइप करके कॉपी पेस्ट करना पडता था, कमेन्ट देने इत्यादी के लिए
  • किसी भी विंडो पर अब अल्त+शिफ्ट दबा कर कीबोर्ड अपने आप हिंदी में लिखने के लिए परिवर्तित हो जाता है.
  • सोफ्ट कीबोर्ड भी ओंन कर सकते हैं अगर टाइप करने में समस्या है

विंडो लाइव

  • सीधे सीधे एडिटर से ही ब्लॉग पर पोस्ट करने की सुविधा देता है
  • एडिट करके एक से अधिक बार भी पोस्ट करेंगे तो ये पोस्ट को डुप्लीकेट नहीं करेगा
  • लिखकर छोड़ दो और पब्लिश का टाइम सेट कर दो, अपने आप उस टाइम पर पब्लिश हो जाएगा आपका चिटठा
  • एडिटर भी बहुत सरल है और कई फीचर देता है,  फ्लेक्सिबल है
  • एक से अधिक ब्लॉग जोड़ सकते है, और जब लिख रहे हों, या पब्लिश कर रहे हों तो सम्बंधित ब्लॉग को सेलेक्ट कर लो
  • आपके ब्लॉग के फॉर्मेट, फॉण्ट इत्यादी को इम्पोर्ट कर लेता है ये, तो ऐसा लगेगा कि आप ब्लॉग पर ही लिख रहे हों

चलो इतने दिन के आलस के बाद कल की सक्रियता ने कुछ कमाल दिखाया.  खैर और भी उपयोगी टूल होंगे मार्केट में, पर अभी तो यही काफी सुविधाजनक लग रहा है.  धीरे धीरे एवोल्व होगा, शायद जीवन का यहीं नियम है की सीढियाँ चढते जाओ, कोई जल्दी चढता है तो कोई मेरी तरह धीरे धीरे. 

एक प्रश्न -  हिंदी के पूर्ण विराम के लिए यूनिकोड क्या होगा अभी तो डॉट से काम चलाना पड़ रहा है  ?

176025780_755491 खैर टोरोंटो में G20 Summit की वजह से इस हफ्ते घर से ही काम करने का मौका भी एक सुकून ही दे रहा है.  टोरंटो को कनाडा की सरकार ने कुछ हफ्तों पहले से ही छावनी में तब्दील कर दिया है,  बैरिकेट्स लगा दिए गए थे सडकों पर,  कुछ सडकें यातायात के लिए बंद कर दी गयीं थी, पुलिस वाले भी बहुत दिखते थे चारों G20_fence_716343gm-aतरफ.  सुना है इस हफ्ते तो ऑफिस में किसी को आने ही नहीं दे रहे सुरक्षा कारणों से.  मेरे ऑफिस के लोग जो लोकल हैं, उनको घर से ही काम करने के लिए बोला गया है. कदाचित ये हालत न होतीं अगर G20 अपने उद्देश्यों पर खरा उतरा होता.  सबकी आपनी अपनी समस्याएं हैं, अपने अपने राग हैं, बस सरकारों के विशाल दल इन समारोहों में औपचारिकता पूरी करने चले आते है.  सुना है कि कनाडा की सरकार ने १ बिलियन डॉलर इस समारोह के आयोजन पर  खर्च कर दिया है.  ये उसी तरह है जैसे मुकेश अम्बानी IPL में खर्च करते हैं, अर्थात मार्केटिंग के लिए. कनाडा  जैसे अमेरिका का छोटा भाई टाइप देश के लिए ये एक अच्छा मौका है अपने आप को मार्केट करने का.  खैर हमें तो फायदा ही मिला इस सबसे, एक वीक का ट्रेवल बच गया.

images हमारा भारत भी तो एक आयोजन में व्यस्त है, चलो उधर तो मार्केटिंग के सहारे नेताओं की जेबें हरी हो रही होंगी और मजदूर बेचारा डैड लाइन के भय में अपना डबल पसीना बहा रहा होगा.  फिर भी कुछ तो कदम आगे बढ़ ही रहे हैं. यानी हम एवोल्व हो रहे हैं, यही जरूरी है. आप भी अपना योगदान दे सकते हैं. देखिये ये विडियो…

आजकल मौसम ने भी हम पर मेहरबानी कर रखी है, रोज बारिश हो जाती है तो गर्मी उतना कष्ट नहीं दे रही. पहले गर्मी के लिए तड़प, और जब गर्मी आ गयीं तो हलकी हलकी बूंदों के लिए मन तरसता है, मन की संतुष्टि अंतहीन है !!

ages कुछ कहना था ब्लोग्वानी और चिट्ठाजगत के बारे में चल रही सार्थक या असार्थक बहस के बारे में. मेरे हिसाब से पक्ष, निरपेक्ष या गुटनिरपेक्षपन की ये लड़ाई जो कभी कभी गैंगवार का रूप ले लेती है , शीर्ष पर आने या त्वरित पापुलर होने के चक्कर में हो रही है.   तो अगर इतनी लड़ाई है इस छोटे से हिंदी ब्लॉग्गिंग में शीर्ष के लिए १४ हजार वें लेखक से लेकर पहले तक, तो फिर सक्रियता का गणित भी सही होना चाहिए.  मैंने अपने एक अन्य ब्लॉग में अपने इस वाले ब्लॉग का लिंक दिया १-२ बार (रेफेरेंस के लिए) तो मेरी सक्रियता में गजब का उछाल आ गया, अरे ये तो फर्जी काम हुआ मेरी ओर से, इसी लोजिक या लालसा ने कुकुरमुत्ते के पेड़ की तरह अनगिनत चिट्ठे चर्चे खोल दिए , जिनका उद्देश्य इस गणित के इर्द गिर्द ही था. सब सक्रियता के पीछे पड़े हैं, कंटेंट पीछे छूट रहा है :) 

बात अगर ब्लोगवाणी या चिट्ठाजगत के महत्व की है तो ये अपने हिसाब से बहुत कुछ योगदान कर रहे हैं, हिंदी के सारे ब्लॉग को एक जगह लाने में और लोगों को ब्लोगों पर लाने में.  जो लोग इन दोनों के बिना काम नहीं कर सकते, वो बस नदी में कूद कहीं भी गोता लगाना चाहते हैं.  उनके लिए कंटेंट महत्वपूर्ण ना होकर हर चिट्ठे पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराना ज्यादा मायने रखता है.  एक - दो लोग ऐसा करें तो उनके कुछ कारण हो सकते है जैसे - उत्साहवर्धन करना इत्यादी. पर सब करें सब ब्लोगों को नापने का काम तो ये भेडचाल है. और लग रहा है कि आप टाइम को खराब कर रहे हैं, कुछ तो खुद की चोइस होनी चाहिए,  अगर है तो गूगल रीडर में या अनुसरणकर्ता बन कर उनकी लिस्ट बना लें, फिर क्या फर्क पडता है किसी के होने या ना होने का :)

मेरे हिसाब से अगर ये Aggregators अपना फोर्मुला , लोजिक सही कर लें तो बहुत हद तक तलवारें नियंत्रण में लायी जा सकती है ओर फिर ऊर्जा बढ़िया लिखने में लगायी जा सकती है.  मैं भी क्या लेकर बैठ गया ….जिनके पास बिषय नहीं उनके लिए तो ये सब विवाद रामवाण हैं .    एक मामूली सा लोजिक सक्रियता आंकड़ा सही करने का …हिट्स के आधार पर …

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रही बात नापसंदी की तो कबीर दास पता नहीं क्यों बोल गए थे की “निंदक नियरे राखिये आँगन कुटी छबाय…..” क्या कोई पालन करता है इसका ? आजकल तो NGO भी अपनी निंदा नहीं सुनना चाहते !!

 

बहुत पहले ‘भारत की बीमारी’ नाम से एक कविता लिखी थी …भोपाल और अन्य बहुत सारी समस्याओं को देखकर फिर से कविता के शब्द दिमाग में चमक रहे थे…पूरी कविता लिंक पर क्लिक करके पढ़ी जा सकती है ..कुछ पंक्तियाँ इधर …

बेरोजगार चुप है मगर ‌‍‍‍मृत है भत्ते की आड़ में

कैसे मैं कह सकता हूँ आज मेरा भारत महान है

जहाँ पर सिर्फ राजनीतिक गुंडो का राज है

मायावती के लिए सुरक्षा एसरायल से आती है

पर यू पी के गरीब की लड़की विद्यालय कई कि. मी. चलकर जाती है t1larg

सोनिया वायु मार्ग से गाँवों का भ्रमण करती हैं

उन्ही गाँवों में एक किसान 100 रुपये के लिए आत्महत्या कर लेता है

गाँवों के विकास से ही भारत सजता है

नही तो ये बीमार सा और नंगा सा लगता है

मंगलवार, 27 अप्रैल 2010

IPL vs BPL - अंतर्द्वंद

IPL ...सही रहा !! मोदी जी ने थरूर और कोच्ची की टीम के ट्वीट बाणो से इसे और रोचक बना दिया.  पवार को जितनी रूचि भूखे किसानो के मरने से नहीं हुई होगी उतनी की BCCI और IPL में.  हमारे सारे चैनल भी लगातार एक एक पल और एक एक रन की खबर देते रहे,  क्यूं न देंगे - लोगो की मनोदशा और रूचि भी तो इसी में थी.  हम खुद इधर ऑफिस का काम छोड़ IPL में मस्त थे.  क्यों न होंगे ..खेल जो ठहरा और वो भी सारी दुनिया के बेस्ट क्रिकेट खिलाडियों के बीच !   पर जो रोमांच मोदी के ट्वीट से शुरू हुआ , उसने तो जैसे भारत के बिलियन लोगो को बस टीवी से ही चिपका दिया .  थरूर का क्या होगा , फिर मोदी का क्या होगा, प्रफुल्ल पटेल और पवार का क्या होगा ....इन सब जिज्ञासाओं ने लोगो में एक अजीब तरह का कौतुहल सा पैदा  कर दिया.

जब ये भानुमती का पिटारा खुला तो पता चला की मोदी जी और कई नेता लोग बेनामी बनकर करोडो बना रहे है.  चलो ये तो कोई नयी बात नहीं है, लेकिन इन सबके बीच कुछ  बातें  दिमाग में आती हैं
  • अगर मोदी थरूर का नाम न लेते तो क्या इसी तरह ये खेल चलता रहता ? 
  • क्या IT डिपार्टमेंट या एन्फोर्समेंट agencies के पास कोई तरीका नहीं - इस तरह के दलालों और transactions पर नियंत्रण रखने का ?
  • क्या BCCI सो रही थी या फिर सबको मिल रहा था इसलिए सोचा की बस खाते रहो ?
  • जिस हिसाब के transactions हुए  - जैसे की ज्यादातर पैसा बाहर के देशों को गया , उससे तो पता चलता है की आप इंडिया में कुछ भी कैसे भी कर सकते है - पता है कि ये नया नहीं है पर जिस हिसाब से हम प्रगति  कर रहे है  - क्या ये अच्छा सन्देश है  ?
  • BCCI में इतने राजनीतिज्ञ लोग क्यों रूचि ले रहे है - पैसे  ( डोल्लर कहना चाहिए) और प्रभाव या फिर खेल के विकास के लिए  ?
  • क्यूं हर IPL पार्टी में मॉडल और लड़किया परोसी गयी ? क्या  बिना models  को रैम्प पर चलाये बिना पार्टी नहीं होती  ? 
हो सकता है IPL ४ बिलिओन से भी बड़ा ब्रांड होता अगर ......

चलो ठीक है जो भी हुआ ...पर एक बात सब कह रहे है की किसी का कुछ नहीं होने वाला ...थरूर और मोदी शहीद कहलायेंगे और पवार जैसे नेता लोग देश का काम छोड़ ये ही करते रहेंगे.  भगवान् इस देश का भला करे ...हमारी तो यही प्रार्थना है !!

अभी सुनाने में आया है की भारत में BPL (बेलो पोवेर्टी लाइन)  की संख्या दिनों दिन बढ़ती जा रही है.  सरकार का और नेताओ का और हमारा ये दायित्वा है की अगर देश प्रगति के सोपानो पर है तो उसका फायदा केवल कुछ लोगो को ही नहीं पर योग्य लोगो को भी मिले और गरीबो के लिए योजनाओ में भी खर्च किया जाए. पर  ऐसा होता दिख नहीं रहा.

IPL में बड़े पदों पर सारे नेताओं और उद्योगपतियों के बच्चे ही नजर आये.  कही प्रफुल्ल पटेल की लड़की तो कही मोदी के बच्चे , कही पवार का दामाद तो कही माल्या के बच्चे ...हर जगह यही लोग थे ...हाँ  नए क्रिकेट के खिलाडियों को जरूर एक प्लेटफोर्म मिला .  इस तरह से कहाँ बाकी लोगो को रोजगार मिला ?  मैच भी सिर्फ बड़े शहरों में कराये जाते है ... और TV के अधिकार भी घोटालो और रिश्तेदारों और विदेशो की जेब में जाते है.  बहुत कुछ गड़बड़ ...पर किसी ने कुछ नहीं पकड़ा ...सब चलता रहा ...पक्ष हो या विपक्ष -- सब मजे लेते रहे .  किसी ने कोई प्रश्न नहीं उठाया और जब  हंगामा हुआ तो क्या हुआ ...संसद  नहीं चलने दी बस !  क्या किसी समिति ने मोदी, शशांक मनोहर या फिर पवार को ग्रिल किया अपने प्रश्नों से ....नहीं ...बस IT वाले बेचारे कुछ कर रहे है पर उन पर भी नहीं है मेरा विश्वास :(

अब ऐसे देश में BPL बढेगा ही ...कम कैसे होगा ?  राहुल गाँधी से लोगो को उम्मीद है बहुत पर वो भी पता नहीं किधर व्यस्त रहता है ..वैसे मुझे वो केवल मुखोटा ही लगता है ...पता नहीं क्यों लोग उसको युवाओ का लीडर मानते है.   हाँ युवराज जो ठहरा नेहरू परिवार का !!

हम सब लोग भूल रहे है की इन सबके बीच न तो किसानो का विकास हो रहा है और न ही गाँवों का और न ही छोटे शहरों को .  न ही हाँकी का विकास हो रहा है और न ही योग्य का. 

ये ग्राफ उन लोगो का प्रतिशत दिखाता है जो $१.२५ प्रति दिन से कम में अपना गुजारा करते है  - भारत की तश्वीर इसमें IPL की तरह उजली नहीं दिखती.

निगाह इधर भी दौडाएं  -
  • ३७.२ परसेंट लोग BPL की सीमा में आते है, ये संख्या २००४ में २७.५ परसेंट थी .  ये नंबर आश्चर्यजनक रूप से घटने की जगह बढ रहा है.
  • भारत में ४१० million  लोग $१.२५ प्रति दिन से कम में गुजारा करते हैं
  • शर्म की बात है कि हमारी सरकार पूरी GDP का एक प्रतिशत स्वास्थ्य सेवाओ पर खर्च करती है , १०० करोड़ के देश में , जहाँ  बीमारी आम बात है ..१ प्रतिशत से क्या होगा ?
  • Inflation  १७ %  और GDP growth  ८ प्रतिशत के आसपास
  • ऐसा कम ही देखने को मिलता है कि आपकी GDP growth  ८ प्रतिशत के आसपास हो और फिर भी BPL लोगो कि संख्या बढ रही हो.  फिर ये विकास किधर हो रहा है  ? मुझे विकास मेरे गाँव तक पहुंचता आज तक नजर नहीं आया ..हाँ सरकारी अधिकारी जो काला धन (कला से)  कमाते है, उनको फलते फूलते जरूर देखा है
हमें आरक्षण की जरूरत नहीं बल्कि नेताओ से मुक्ति की जरूरत है ,  हम जैसे आलाचको की  राजनीत में भाग लेने की जरूरत है और वोट देते समय इन सब बातो को ध्यान रखने की जरूरत है. 

कौन कहता है कि परिवर्तन नहीं होगा
इतिहास  के पन्नों  में लिखना ही होगा  
बातों से नहीं, कर्म से नाद होगा
मैदान में अब संग्राम असली आजादी का होगा