कभी कभी कुछ लोगों से मिलता हूँ तो लगता है कि मैंने क्या मेहनत करी और क्या तिकडम ! लोग कितनी काम्प्लेक्स जीवन जी रहे होते हैं, शायद चिली की खदान में ६९ दिन फँसे लोगों से भी ज्यादा !
कुछ हफ्ते पहले एक टैक्सी ड्राईवर से भेंट हुई ! हम २-३ लोग थे तो मुझे उसके बगल की सीट पर बैठने का सौभाग्य प्राप्त हुआ, पहला सवाल उनका - क्या आप लोग बांग्लादेश, पाकिस्तान या भारत से हैं ? हाँ, सम्मान के साथ तनकर हमने भी बोला कि भारत से हैं ! उधर से ड्राईवर का जबाब आया और मैं भी बंगलौर से !
मैंने प्रश्नचित्र मुद्रा में उसकी तरफ देखा क्यूंकि महाशय की शक्ल किसी भी भारतीय कोने से मिल नहीं रही थी, फिर बोले के मैं तिब्बत से हूँ पर जन्मा और पला भारत में ही हूँ ! फिर महाशय अपने आप ही तिब्बत और भारत के रिश्तों और लोगों की हालत के बारे में मेरा ज्ञानवर्धन करते रहे !
खुद ही बताने लगा कि बड़ी बुरी हालत है, तिब्बत के लोगों को भारत में पासपोर्ट मिल नहीं पाता और तिब्बत में तो सरकार के बुरे हाल हैं ही, अगर तिब्बत जाना पड़े तो कहीं पहाड़ों के रास्ते अवैध रूप से पैदल चलकर आना और जाना होता है ! कई बार इस प्रोसेस में जेल की हवा भी खानी पड़ती है, वो खुद भी ऐसा करके तिब्बत में जिल जा चुका था !
अमेरिका कैसे पहुंचे ?
बोले कि बड़ी संघर्ष गाथा है, पहले नेपाल के पासपोर्ट का इंतजाम किया कुछ ले देकर - १-२ लाख रुपये में नेपाल का पासपोर्ट बन जाता है ! इस तरह से डर - छिपकर आना पड़ा ! अब भाईसाहब पेपर पर नेपाल के नागरिक हैं, और जल्दी ही अमेरिका के नागरिक भी बन जायेंगे, क्यूंकि इस तरह से १० के लगभग साल यहाँ बिता दिए हैं ! क्या बीबी और माँ पिता को ऐसी अवस्था में बुलाना और कैसे बुलाना ! बड़ा ही चकरघन्नी और आफत वाला काम था - पर क्या करें लोग मंजिल तय करते करते कब बड़ी बड़ी खाईयां पार कर जाते हैं - पता ही नहीं चलता - सब इस पेट के लिए !
कुछ भाव एक कविता के रूप में उकेरने के कोशिश :
ये जीवन भी धूप छाँव का रेला रे
कभी कठिन तो कभी सरल सा लागे ये
अग्नि क्रोध की कभी उठे
तो कभी समुन्दर उत्सव के
कभी मोह की पाँश का झंझट
कभी अर्थ संचय का चिंतन
कभी बिछडने का गम घेरे
कभी मिलन की आश सँवारे
दम्भ घोर अन्धकार घुमाये
गर्व अनुभूति आनन्दोत्सव ले आये
कभी अतृप्ति अकेलेपन की
कभी विक्षोह परम मित्रों का
इन्द्रधनुष तो बस सतरंगी
जीवन के मेले बहुरंगी
7 टिप्पणियां:
मुझे तो सात जन्म लग जायं ऐसी फितरते करते
इन्द्रधनुष तो बस सतरंगी
जीवन के मेले बहुरंगी
सही कहा ....बहुत से रंग भरे हैं ...अच्छी प्रस्तुति
बडी हिम्मत हे इन सज्जन की,जब कि रोजाना टी वी पर दिखाते हे कि गलत तरीके से आने वाले लोग केसे समुंदर मे मरते हे, मारे जाते हे, समुंदर मे फ़ेंक दिये जाते हे, इन की हिम्मत को सलाम
अग्नि क्रोध की कभी उठे
तो कभी समुन्दर उत्सव के
sundar vimb!
पेट जो न करवा ले।
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सुनामी: प्रलय का दूसरा नाम।
चमत्कार दिखाऍं, एक लाख का इनाम पाऍं।
जिंदगी अजीब है...क्या कर सकते हैं, और कुछ लोग तो और भी...हर किस्म के लोग हैं, ऐसे कुछ मित्र(नाम के) हैं मेरे जो समझते हैं की सब कुछ उन्होंने देख सुन लिया है जिंदगी में...
मैं तो उन्हें कहता हूँ,
दुनिया में कितना गम है, मेरा गम कितना कम है... :)
बहुत लोग यह जीवन जीने के लिये विवश हैं, कितना अर्थ और कितना अनर्थ है इसमें।
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