हिंदी - हमारी मातृ-भाषा, हमारी पहचान

हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने के लिए अपना योगदान दें ! ये हमारे अस्तित्व की प्रतीक और हमारी अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम है !

अद्भुत लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
अद्भुत लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

शनिवार, 8 मई 2010

एक अद्भुत संस्मरण जो चकित और पुल्लकित कर दे ...

कुछ दिन पहले की बात है,  एक हमारे परम मित्र की कंपनी में काफी बड़ी मात्रा में लोगों को नौकरी से निकाले  जाने का प्लान था.  हम लोग अक्सर इस बारे में बातें करते रहते थे और मैं अक्सर उनको पूछता रहता था कि भाई आपका क्या हुआ, कब फैसला हो रहा है.  वो पलट कर यही जाबाब दिया करते  कि फलाने तारीख में कुछ होने वाला है.  लगभग ८० प्रतिशत लोगो को निकाले जाने का प्लान था.  हालांकि दोस्त हमारा ठहरा तो काबिलियत पर कोई शक नहीं, पर जब इतने बड़े तरीके पर कंपनी में कांट छांट हो रही हो तो कुछ भी हो सकता है.

ऐसे ही एक दिन फ़ोन पर बात करते करते मैंने उनको बताया कि मेरे पास ऐसा कुछ संकेत या आधार है, जिससे मुझे पूरा भरोसा है कि आप अभी कंपनी से बाहर नहीं आ सकते.  उसने मेरी बात को मजाक में टाल दिया एक पल के लिए पर कुछ देर बाद मन में सुगबुगाहट हुई और कारण पूछने लगा, जैसा कि होता कि अगर कोई मन की बात कह दे तो भले ही झूटी हो पर कारण जानने का मन करने लगता है.  मैंने कहा कि जब मिलेंगे तब डिटेल में बताता हूँ.

बहुत पहले जब में स्कूल/कॉलेज में था तब की बात है, अकसर गलती से या जो कारण बताने वाला हूँ, उसकी वजह से में एक्साम के बाद टॉप १० (अतिशयोक्ति अलंकार (का प्रयोग नहीं है)) में तो आता ही था. होता ये था कि  कभी कभी पेपर के पूर्व रात्रि में मेरी हालत बहुत खराब हो जाती थी, उसका कारण था मेरा एक पैटर्न वाला सपना.  एक ही तरह का ये सपना बड़ा विचलित कर देता था.  होता ये था कि सपने में मैं अपना पेपर हल कर रहा हूँ और केवल कुछ ही प्रश्न हल कर पाता हूँ और बाकी कक्ष की पटियां गिनते गिनते टाइम ख़त्म, फिर क्या में सेन्स लेस पड़ा पडा पसीने और डर से बुरी तरह एक दम जाग पड़ता और फिर सेन्स में आकर सत्य का मीठा अनुभव करता कि अरे कुछ नहीं, ये तो सिर्फ एक बुरा सा सपना था.  और उस दिन का पेपर तो बस पूछो मत,  एक भी प्रश्न किया बिना नहीं रहेगा .  कभी कभी तो १०० % मार्क आ रहे होते और मास्टर साहब भी देख रहे होते रिजल्ट को.

 ...ऐसा नहीं कि पेपर सपने से अच्छा  गया , पढाई भी करते थे क्यूंकि पापा कि कड़ी मेहनत और उनके द्वारा बनाये गए आदर्श हमेशा सामने रहते थे.  पर लगता है कि पूरे दिन कि सोच को रात में दिमाग एक अलग ही दुनिया में खोकर पूरी तरह व्यक्त करके कुछ सन्देश देना चाहता था.   बाद में तो ऐसे सपनों की पुनरावृत्ति बहुत होने लगी और फिर सपने में भी मुझे फील होने लगता कि ये असल नहीं..सपने वाला पेपर है और इस तरह से उस सपने से डर और कंप कम हुआ और सुख कि अनुभूति ज्यादा.  

पर सपनों का ये एक जैसा क्रम ही क्यों ? क्या इसका कुछ वैज्ञानिक आधार है ?  मस्तिस्क का रात में सपनों के द्वारा अनूभूति कराने का ये बड़ा ही अद्भुत तरीका है.  कभी कभी लगता है की हर सपने में कुछ न कुछ सन्देश छुपा रहता है.  मुझे ध्यान है की इंडिया में पॉकेट बुक भी आती है जिसमें सपनों और उनके अर्थ के बारे में लिखा रहता है.  कुछ दिन पहले में एक लेख पढ़ रहा था, इधर अमेरिका के किसी विश्वविधालय में शोध किया गया था और उन लोगो ने इस बारे में काफी कुछ विस्तार से लिखा था.

मेने अपने दोस्त को बताया कि भाई आज रात में सपना आया था कि आप तो निश्चय ही बाहर आ रहे है, और वो भी मेरी पत्नी ये समाचार दे रही है , जिसको इस मामले में कुछ पता ही नहीं था.  सुबह उठा तो मेने निष्कर्ष निकाला कि मेरा दोस्त तो बच गया इस बार.  वैसे निकलने में भी फायदा था उसका; क्यूंकि कंपनी निकलते समय कुछ महीनो का वेतन अडवांस में देकर विदा करती है, पर ऐसी मार्केट में कौन फिर से जॉब देखे !  तो इस आधार पर हमने उनको बताया कि आप शायद सुरक्षित रहोगे चाहे कितना ही बड़ा ले ऑफ क्यों न हो.

और एक दिन वो तारीख भी आ गयी जब 8० प्रतिशत लोगो को बहार का राश्ता दिखाया गया क्यूंकि कंपनी का IT डिपार्टमेंट इंडिया से चलेगा और देश(इंडियन)  की एक  कम्पनी अपने लोगो से काम कराएगी और इस तरह इस कंपनी को काफी आर्थिक लाभ होगा. 

हम लोग संयोग से ट्रेन में उस दिन साथ ही चिकागो से घर आ रहे थे.   बहुत जानने वाले लोग बाहर कर दिए गए थे. सैकड़ो में सख्या थी तो कुछ हमारे जानने वाले तो होंगे ही.   ये दोस्त एक और अपने परम मित्र के साथ बैठे थे.  बात करते करते उन्होंने खुश खबरी सुनाई  और बोल पड़े के भाई तेरे सपने वाली बात तो सच हुई, क्यूंकि मेरा नाम तो पता नहीं किसी वजह से लिस्ट में आया ही नहीं और में बिलकुल सुरक्षित हूँ.  मुझे तो पूरा विश्वास था और इसलिए दोस्त की खुसखबरी के मारे और मेरे अनुभव को सच होते देख मैं अति उत्साह में अपनी ख़ुशी जाहिर करने लगा और साथ वाले दोस्त की जिज्ञासा को शांत करने के लिए उसको सब कुछ बताने लगा ....साथ वाला दोस्त हंसकर बोला कि यार बंद करो ये ...कुछ और ढंग की बात सुनाओ ...मेने अपने आप को कचोटा और नियंत्रित किया.  इतने में हमारा स्टेशन आ गया और सब अपने अपने घर के रास्ते हो लिए !

बहुत दिन बाद सपने की पुनरावृत्ति और सच होना बड़ा ही मजेदार और रोचक लगा और सोचा कि चलो ब्लॉग बंधू लोंगों के साथ भी बाँटते है.....