पिछले सप्ताह कुछ मित्रों के साथ हमारे यहाँ से ११० मील की दूरी पर स्थित वारेन ड्यून ‘बीच’ पर जाना हुआ। पहले सब कुछ सामान्य सा था – शहर, सडकें और दुकानें - जैसे ही स्टेट पार्क में प्रवेश किया - एक विशाल नीली खत्म ना होने वाली प्रतिछाया दिखी और कुछ आधा मील दूरी पार्क में तय की होगी कि दूर दूर तक फैला रेत ही रेत दिखने लगा, मिशीगन झील की विशालता और रेत की तपन प्रकृति के सामंजस्य का नजारा पेश कर रही थी। और हम मंत्रमुग्ध थे इस अनूठी छठा को निहारते हुए !
निकुंज ने जैसे ही दोस्तों और रेगिस्तान को देखा, खुसी के मारे उछल उठा, कार को पार्क किया और उतरे तो एक बार के लिए तो ऐसा लगा कि राजस्थान की जमीन पर पैर रख दिया हो …दूर दूर तक फैल रेत और विशाल रेत के टीले - रेत के टीलों पर उग आये वृक्ष जैसे कह रहे हों कि कुछ भी असंभव नहीं, देखो ! हम भी तो रेत की तपन झेल कर भी इतने हरे भरे हैं।
कुछ ही देर में हम समुन्दरनुमा मिशीगन झील की गोद में थे, बच्चे रेत के महल बनाने, बीच के किनारे रेतमय हो पानी में अठखेलियाँ खेलने में मशगूल होकर बेफिक्र होकर खेल रहे थे, बच्चे तो बेफिक्र ही रहते हैं वैसे हर समय पर रेत और पानी मिल जाए फिर तो आनंद चरम पर होता है और इनका आनंदमय होना हमें भी सातवीं आसमान पर पहुंचा देता हैं।
हम भी पानी में काफी अंदर तक गए, बहुत ही स्वच्छ पानी था। जल प्रकृति के संरक्षण में खड़ा कितना मनोहारी लगता है आलिंगन करते हुए, वही अगर शिव की तीसरी आँख की तरह विराट रूप में आ जाए तो एक सिरहन भी शरीर को कंपा दे !
आप वर्चुअल टूर नीचे वाली लिंक पर लें -
http://www.harborcountry.org/warren_beach.html
यहाँ के रेत के ड्यून या टीले बड़े ऊँचे थे, एक तो लगभग २६० फीट थे झील के स्तर से , उस पर चढना बड़ा दुष्कर लग रहा था, हमारे मित्र जिनके हाथ में कैमरा था २-४ कदम चढ़कर ही भाग खड़े हुए, पर हम २-३ मित्रों ने एक सैनिक की तरह ये दुर्गम रास्ता तय किया पर टीले की चोटी तक पहुंचते पहुंचते शरीर बेहाल था, लेटने का मन कर रहा था, टीले की चोटी काफी समतल थी इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि टीले का व्यास काफी बड़ा था। हमारे सैनिक जो थार में या कश्मीर में तैनात हैं , वो तो इससे भी कहीं दुर्गम और असम्भव से रास्ते रोज तय करते होंगे !!
गर्मी का मौसम हो और बारबेक्यू न किया जाए - ऐसा संभव ही नहीं – मक्का, कुछ सब्जीयाँ सेक सेक कर खाने का आनंद अलग ही था क्यूंकि पसीना जो निकल रहा था, साथ में बैडमिंटन ने भी भागमभाग करा दी, कुल मिलाकर खूब पसीना बहाया।
निकुंज और उसके साथियों ने भी एक्सप्लोरैसन किया इधर उधर पहाडियों पर जाकर, कुल मिलाकर बच्चों का उत्साह देखते ही बनता था !! खुद तो सो लिए कार में - और मुझे तो वापस २ घंटे ड्राईव करना था, खैर ९ बजे घर आ गए और उसके पास फिर जा धमाके एक और दोस्त के घर !!
मुझे तो बस अपनी कविता के भाव ही सहज याद आते रहे प्रकृति की गोद में बैठे बैठे … (ये कविता मिशीगन झील के किनारे शिकागो में बैठे बैठे लिखी थी)
सामने विशाल झील
पीछे है एक वृहत शहर
कितने भिन्न हैं दोनों किनारे
एक मस्ती का आभास कराये तो दूजा दे मन का आनंद
आसमान से झील को मिलते देखा
जैसे विचारो को गति पकड़ते देखा
रेत कितना आनंद देता
शीशा बन फिर दर्द भी देता
आकृति मिटाते , बनाते, खिलखिलाते
गीले होकर मन ही मन सयाते
हम भी एक दो छींटे सहलाते
और विचारों की सौंधी हवा में खो जाते
जैसे सुबह की ओंस की बूंदे मुंझे जगा रही हो
जैसे जन्नत या सपनों की मनोहारी तरंगे हो
गद्य और पद्य लिखते, मिटाते और सोचते
अपनी प्राणप्रिये को गले लगाते
जिनको घर पर देख स्वभावबस गुसियाते
रेत की गर्मी और टहलते दौड़ते लोग
नावों पर सवार उन्मुक्त मस्त परवाने लोग
हर तरफ आनंद और अंतहीन मस्ती में डूबे लोग
तरो ताजा मेरे मन को करते मेरे मन के संतुष्ट भाव