मंगलवार से गले में खरास और उससे उपजे विकारों ने घेर रखा था, तेज बुखार और एक पर एक पार्टियाँ टोरोंटो में...सब कुछ बढ ही रहा था, जब तक शिकागो घर कैब वाले ने पटका. उसके बाद गरारे और पानी की पिलाई करी जमकर. उससे कुछ बेहतर परिणाम आये, डॉक्टर साहब के यंत्रो ने पाया की किसी वैक्टीरिया का आक्रमण है तो उन्होंने भी कुछ असद उपलब्ध कराये हैं युद्ध के मैदान के लिए. लड़ाई जारी है ! इस सबने शरीर को विचलित, अस्थिर या फिर अंग्रेजी के एक शब्द उपयोग करूँगा - Derange कर दिया मेरे क्रियाकलाप, काम और शरीर सब कुछ. वैसे है तो ये एक गणित का कंसेप्ट वाला शब्द जिसके हिसाब से ...आप इस लिंक पर पढें, में भी आपको क्या सिखाने बैठ गया. खैर इसका अर्थ कुछ ऐसा भी है :
"de·range (dē rānj′, di-)"
transitive verb deranged -·ranged′, deranging -·rang′·ing
1.to upset the arrangement, order, or operation of; unsettle; disorder
2.to make insane
ये तो रहा मेरा दर्द - जो कुछ मायने नहीं रखता, चला भी जाएगा जल्दी ही डॉक्टर महोदय के सौजन्य से, एक दर्द और इस सप्ताह बांटा मुझसे मेरे कुछ मित्रों ने, मेरे भारत के महान होने के टोपिक पर !!
कुछ दिन पहले प्रोजेक्ट के सहकर्मियों के साथ लंच टाइम पर कुछ ऐसे टोपिक पर चर्चा हुई, जिससे मन कुछ हद तक विचलित हुआ और लगा की शब्द Derangement ही सही होगा भारत के सरकारी महकमों में चल रही व्यवस्था के लिए. विकसित होने के लिए या विकसित कहलाने के लिए अव्यवस्था की जगह व्यवस्था को लाना ही होगा - आज नहीं तो कल...अन्यथा सब प्रयास और हमारी जीनियसनैस बेकार कचरा ही साबित होगी.
एक मित्र जो लंच मंडली में थे इंडिया से आये हुए थे और अपनी आपबीती सुनाते हैं. रात के आठ बजे गाजियाबाद दिल्ली के आसपास ATM से कुछ पैसे निकालकर ये महोदय सोचते हैं की ऑटो क्या करूंगा, थोड़ी देर पैदल ही चल लेता हूँ. कुछ देर उस रोड पर पैदल चलने के बाद अपने आप को एक गिरोह का शिकार पाते हैं, कुछ लोग पीछे से आकर इनको किनारे धकेल देते हैं, और उधर इनके स्वागत के लिए पहले से ही तैयारियां हो रखीं थीं. फिर क्या था तमंचे की नोंक पर सब कुछ ले लिया गया. जीरो वैल्यू की चीजें भी हड़बड़ी में ये गैंग नहीं छोड़ती हमारे मित्र के पास. बेचारा सहर्ष सब कुछ दे देता है. ऐसे तैसे घर पहुंचता है और जल्दी जल्दी सूचना नकनीक का प्रयोग कर अपने सारे पैसे/रुपये जितने बचे हैं, अपने खाते से दोस्तों के खाते में डाल देता है. यहाँ तक तो सब कुछ सामान्य ही लगा की चलो आसामाजिक तत्व हैं, हर जगह हैं.
मेरे मित्र दूसरे दिन सुबह सुबह अपने एक वरिष्ट, लोकल, इस तरह के मामलों के भुक्तभोगी या विशेषज्ञ , जो भी हों ..से मिले और बोले की भाई ऐसा ऐसा हो गया, मैं तो लुट गया, जो गया सो गया, पर DL भी गया. कुछ तो पहचान पत्र टाइप का होना चाहिए हाथ में. पोलिस में रिपोर्ट करानी पड़ेगी. दोस्त की सलाह थी की रिपोर्ट तो करा देते हैं पर लुटने वाली बात पुलिस को मत बताना; नहीं तो और भी चपड़े में पड़ना पड़ेगा ..इसलिए बस ये बोल देंगे कि मेरा पहचान पत्र खो गया कैसे भी, या बटुआ कहीं मेरी ही गलती से गिर गया. उसके लिए भी पुलिस को पैसे खिलाने पड़े एक पेपर पर मोहर के लिए...और कई चक्कर भी बोनस में लगाने पड़े. कभी न भूलने वाली यात्रा बन जाती हैं पुलिस कि ये दास्तानें.....
बेचारा रात को आतंकित हुआ और सुबह उससे भी ज्यादा. क्या यही सुरक्षा है ? वो भी राजधानी और देश के सबसे विकसित इलाके में जहाँ पर कुकुरमुत्ते की तरह उग आये चैनल सारे दिन आग उगल रहे हैं अपने बेस्ट होने की.
दूसरे सहकर्मी ने भी ऐसा ही कुछ वाकया सुनाया, एक उनके दोस्त को नॉएडा के पास एक SUV वाले ने दिल्ली ले जाने के बहाने बिठाया और लूट लिया, केवल जान बची थी. उनके खुद का एक बार फ़ोन का सिम खो गया और फिर पोलिस के चक्कर में बेचारी लड़की ने पता नहीं कितने पैसे गंवाए. सब कुछ फिर से दिल्ली के आसपास.
शेष भारत का हाल - पता नहीं गणित के कौन से शूत्र से समझाऊं.
चिंता मेरी वाजिब है, ऐसे कब तक देश का मजाक उड़ता रहेगा ? दवा तो कई है, जैसे मेरे डॉक्टर ने दवा लिखी और मैं ले आया , जल्दी ही शान्त हो जाएंगे सारे विकार, पर भारत कब उन दवाइयों को खायेगा जो डॉक्टर ने प्रिस्क्रायिब करीं हैं ? नहीं खाओगे तो ये बैक्टेरिया फैलता ही जाएगा ! कुछ नहीं तो भारत गरारे ही कर ले हर १-२ घंठे में .....
और अंत में गूगल से लिया ये तीर - (काजल पर छोड़ देते है एक और बढ़िया सा कार्टून बनाने का काम ..तब तक इसी से काम चलाते है ...)
हिंदी - हमारी मातृ-भाषा, हमारी पहचान
हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने के लिए अपना योगदान दें ! ये हमारे अस्तित्व की प्रतीक और हमारी अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम है !
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शनिवार, 19 जून 2010
सोमवार, 14 जून 2010
दो मासूम आतंकी और मेरा सूप बनाने का प्रयोग ....
कुछ चीजों में मन को सही और गलत का पता करने में बड़ी मुश्किल होती है, कुछ चीजें गलत होने पर भी मन को सुख देती हैं, इधर मेरे यहाँ भी एक अजीब सी उलझन है, दो ऐसे लोग है जो हद से ज्यादा नुकसान कर रहे हैं, पर फिर भी कोई कुछ नहीं कह रहा है उनसे ! जैसे हम इंडिया में नेता को नुकसान का इनाम वोट के रूप में देते है, ऐसे ही ये दोनों भी नुकसान करते हुए भी सजा पाने की बजाय स्नेह पा रहे हैं !!
यहाँ हमारे घर के बैकयार्ड में केवल कुर्सी ही बारिश की बूंदों का आनंद ले रही लगती है ...
पहले देखिये ये घर के पिछवाड़े का छोटा सा गार्डन -
बड़ी आशाओं के साथ पौधे रोपित किये गए, बाजार से सड़े हुए गोबर वाली मिटटी खूब सारे डॉलर खर्च करके लायी गयी! पर एक हमारा ही पाला हुआ हमारी ही बगिया को उजाड़ रहा है. एक आतंकवादी के आतंक की वजह से पौधे फल फूल ही नहीं पा रहे.
मिर्ची के पौधे से सारे पत्ते गायब तो कभी सूर्यमुखी के छोटे से पौधे के सारे पत्ते गायब.
कभी कभी तो मिर्ची को भी खा जाता है जो एकाध आ पाती है . और वो आंतकवादी जिसे हमने उसी तरह बढावा दिया जैसे की तालिबान को अमेरिका ने रसियन के खिलाफ, अब हमें दिखा दिखा कर अब हमारी ही हालत खराब कर रहा है और चाह कर भी हम कुछ नहीं कर पा रहे. अब तो आप जैसे सहयोगियों की सहायता और सलाह की जरूरत है.
चलो आप को उस आंतकवादी से मिला ही देते हैं जो पिछवाड़े के आतंक के लिए जिम्मेदार है -
एक नन्हा सा बनी
पहले बच्चों को खुश करने के लिए बुलाते थे और बड़ा खुश होते थे जब ये आता !! खैर गुस्सा तो अब भी नहीं आता !! ये देखो हमारा न्याय !
दूसरा नटखट है जो घर के सामान को एक जगह नहीं रहने देता, इसने भी नाक में दम कर रखी है. जब देखो तब हर चीज को गड़बड़ करने में रहता है. TV देखने बैठते हैं तो उसको पॉवर ऑफ कर देगा, कभी डिनर की टेबल पर आतंक तो कभी मेरी डेस्क पर मेस. बाहर निकलो तो पकड में ही नहीं आएगा हाथ में, दिन में कम से कम दस लोलीपोप खाने की कसम खा रखी है ...
ये है दूसरा आतंकी ...
और एक मैं सीधा सादा जीव जो इनको झेलता हूँ जब घर पर होता हूँ, और याद करता हूँ जब बाहर होता हूँ! अब देखिये में कितना प्रोडक्टिव हूँ!! इस शनिवार को देखिये बहुत ही मस्त मस्त सूप बनाया है...
टमाटर का स्वास्थ्यवर्धक, स्वादिष्ट, सलीकेदार सूप
एक दिन पडोसी ने कुछ इस तरह का सूप डिनर में खाया और फेसबुक पर सबको बताया, ये दो महीने पहले की बात है. इससे प्रेरणा आने में २ महीने लगे और जब उन महाशय के रेसेपी देखने फेसबुक पर गया तो कहीं मिली नहीं तो फिर खुद के तरीके से पेटेंट सूप बना दिया. किचन में जाना कम होता है, या यूं कहूं की प्रवेश वर्जित सा ही है. मैडम हमारी एक से एक जबरदस्त रेसेपी बनाती है तो मैं तो इस मामले में अपने आप को निरक्षर सा अनुभव करता हूँ, और ये उपलब्धि ऐसी लगी जैसे की नासा में कोई प्रयोग किया हो. मैं महान हो गया इस सूप का निर्माण करके !!
पूरा सूप पैन में ...
बारिश का मौसम था, इसलिए घर के पिछवाड़े कल कल बूंदों को देख खूब मजे आये गरमागरम सूप पीने में. बचपन में आँगन में पड़े जाल से आते पानी को देखा होगा, कभी जाकर उसमें नहाते थे तो कभी जल्दी जल्दी बहुत तेज बारिश होने के समय ऊपर से एक प्लाष्टिक की पन्नी (जाजम) डालने ऊपर छत पर जाना पड़ता था, जिससे घर ज्यादा खराब ना हो. जल्दी जल्दी ऊपर छत पर बिखरा सारा सामान अंदर रखने की जद्दोजहद अब बड़ा आनंद देती है, जो चीजें वहां रहने पर भार या बोर लगती थी, वही आज अतीत के सायें में चली गयीं या फिर पास नहीं है तो सुबह की ठंडी बयार सी लगतीं हैं. ये कैसी उलझन है की जब कोई पास नहीं है, तो बड़ी याद आती है और जब पास हो तो उसकी महत्ता का पता नहीं लगता !!
यहाँ हमारे घर के बैकयार्ड में केवल कुर्सी ही बारिश की बूंदों का आनंद ले रही लगती है ...
मक्के के भुट्टे आजकल खूब मिल रहे है बाजार में. जैसे ही एक दिन बार्बैक्यू करने बैठे, कोयला में आग बैठ ही रही थी की इन्द्र देवता टपक पड़े, गराज में ही सब कुछ करना पड़ा. ये मेघ ग्वालियर में जाकर क्यूं नहीं बरसते जहाँ गर्मी से लोग बहुत परेशान हैं?? शिकागो वालों को थोडा सूरज ही मिल जाने दो.
और कुछ हलचल ...
लौह कूटती बंजारिन
घर घर जाती बंजारिन
गाली देती बंजारिन
जीवन जीती बंजारिन
मंडल अध्यक्षा मिसरायिन
राजनीति में मिसरायिन
भाषण देती मिसरायिन
रोती रहती मिसरायिन
रविवार, 13 जून 2010
ज्वलंत मुद्दा : प्रकृति से खिलवाड़
२०१० अमेरिका में याद रहेगा गल्फ ऑफ़ मेक्सिको में हो रहे तेल रिसाव के लिए ! भारत में भोपाल के गैस रिसाव काण्ड के अन्याय की चिंगारी पीडितो में तो पहले से ही सुलग रही थी, अब वो राजनीतिक और बौद्धिक बहस के गलियारों में भी रोशन हो रही है.

बहुत पहले ऐसा ही हादसा अरब जगत में तब हुआ था जब इराक कुवैत से बाहर जाते जाते काफी सारे तेल के कुँओं में आग लगा गया था. तब इसी तरह समुन्दर में आयल का हजारों बैरल रिसाव हुआ था, समुन्दर किनारे तेल की मोटी परत जम गयी थी और समुंदरी जीव जन्तुओं पर इसका बहुत बुरा असर हुआ था.


मेरी ये कविता मेरे भाव शायद बयाँ कर सके ...
BP के बिलियन हुए खाली
पर समुन्दर में तेल अभी भी रिसना है जारी
प्रकृति से छेड़खानी इसको पड़ी भारी
इधर उधर मुंह अब ये ताके अनाड़ी
नए तरीके उर्जा के अपना लो मेरे भाई
नहीं तो ये प्रलय की हुंकार होगी कसाई
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शुक्रवार, 11 जून 2010
ब्लॉग्गिंग : सर्वश्रेष्ट ब्लॉगर और सर्वाधिक पाठकों की कस्स्मकस का गणित वारेन बफेट के पन्नों से
कल जब फ्लाईट में बैठा हजारों फीट की ऊंचाई पर उड़ रहा था, तभी एक पुस्तक मैं मान्यनीय वारेन बफेट के बारे में पड़ रहा था. कुछ ही पन्ने पढ़े थे, पर जो निष्कर्ष निकल रहे थे उन पन्नों से वो बहुत हद तक जिंदगी और ब्लॉग्गिंग की दुनिया में चल रहे उहापोह से काफी हद तक मेल खा रहे थे ...
जैसे कौन है सर्वश्रेष्ट ब्लॉगर :
वारेन बफेट अमेरिका के जाने माने अरबपति है जिन्होंने अपना पैसा स्टोक्स में इन्वेस्टमेंट के जरये कमाया. बहुत ही सरल और साफ जीवन जीने वाले इंसान हैं और अंको के महारथी हैं. महारथी बनने से पहले उन्होंने कुछ अपने पिता से सीखा और बहुत कुछ अपने गुरु बेंजामिन ग्राहम से सीखा. दोनों ने मिलकर साथ साथ एक कंपनी भी चलाई, पर अंत में वारेन साहब लम्बी रेस के घोड़े निकले और अभी तक दौड़ में हर किसी से आगे है. तो ब्लॉग्गिंग में आप बहुत दिनों से हैं, या पहले ब्लॉगर हैं, उससे आपकी सर्वश्रेष्ठता साबित नहीं होती, हो सकता है की आपसे ही कुछ सीखकर मैं और भी अच्छा लिखने लगूं. ब्लॉग्गिंग में अच्छा होने के लिए आपको जमकर पढ़ना पड़ेगा और थोडा रचनात्मक भी होना पड़ेगा. अच्छा और आकर्षक कंटेंट ही आपको आगे ले जाएगा. तो इधर सीनियर / जूनियर और पहले मैं और आप का झगडा बंद करके अपनी मौलिकता पर ध्यान दिया जाए तो सही रहेगा. वैसे भी ब्लॉग तो आपकी डायरी है, आपके स्वभाव या जानकारी का दर्पण है इसलिए इसमें तुलना कैसी ...हर किसी का अपना तरीका और हर किसी का अपना अद्वितीय भाव होता है जो आपको इधर दिखेगा. तो लिखो जो मन कहे...!! पर भावों पर अनुशाशन रख कर !!
कैसे अधिक से अधिक पाठक आयें....
जब वारेन बफेट साहब कंपनी खरीद और बेच रहे थे उस समय कई बार ऐसा टाइम आया जब उनको इन्स्योरेन्स बिज़नस के लिए काफी चुनौती मिल रही थी और सस्ते प्रीमियम वाली कंपनियों से. पर उन्होंने ध्यान गढ़ाये रखा अपने अच्छे कस्टमर बेस पर और कुछ सालों बाद वो सस्ती कंपनी बंद हो गयीं और वारेन साहब अब तक हैं .
मेरा मानना है की आप अपने चुनिन्दा पाठको से यात्रा जारी रखें, ऐसा होने से आपको सुधरने का टाइम भी मिलता रहेगा. कम लोग पाठक होंगे तो ज्यादा रूबरू होकर दिल से लोग कमेन्ट करेंगे और ऐसे लोगों के हिसाब से आप जो सोचते है वो मौलिक लिख भी पायेंगे. और धीरे धीरे आपके कंटेंट के सहारे आप इस बौद्धिक समूह का दायरा धीरे धीरे बढ़ाते जायेंगे. कुल मिलकर ब्लॉग को अपना दर्पण मानें तो संतुष्टि और सफलता दोनों आपके पास होंगे. बहुत तर्क वितर्क इस विषय पर किये जा सकते हैं इसलिए इस गणित को यहीं बंद करता हूँ.
फ्लाईट तो भौतिक उड़ान भर रही थी, इधर मन तो हर वक़्त ही उड़ता रहता है और हमें बुरे भले , स्वर्ग नरक, धूप छाँव की सैर एक पल में करा देता है. कुछ भाव कविता संग्रह पर उड़ेले हैं -
जैसे कौन है सर्वश्रेष्ट ब्लॉगर :
वारेन बफेट अमेरिका के जाने माने अरबपति है जिन्होंने अपना पैसा स्टोक्स में इन्वेस्टमेंट के जरये कमाया. बहुत ही सरल और साफ जीवन जीने वाले इंसान हैं और अंको के महारथी हैं. महारथी बनने से पहले उन्होंने कुछ अपने पिता से सीखा और बहुत कुछ अपने गुरु बेंजामिन ग्राहम से सीखा. दोनों ने मिलकर साथ साथ एक कंपनी भी चलाई, पर अंत में वारेन साहब लम्बी रेस के घोड़े निकले और अभी तक दौड़ में हर किसी से आगे है. तो ब्लॉग्गिंग में आप बहुत दिनों से हैं, या पहले ब्लॉगर हैं, उससे आपकी सर्वश्रेष्ठता साबित नहीं होती, हो सकता है की आपसे ही कुछ सीखकर मैं और भी अच्छा लिखने लगूं. ब्लॉग्गिंग में अच्छा होने के लिए आपको जमकर पढ़ना पड़ेगा और थोडा रचनात्मक भी होना पड़ेगा. अच्छा और आकर्षक कंटेंट ही आपको आगे ले जाएगा. तो इधर सीनियर / जूनियर और पहले मैं और आप का झगडा बंद करके अपनी मौलिकता पर ध्यान दिया जाए तो सही रहेगा. वैसे भी ब्लॉग तो आपकी डायरी है, आपके स्वभाव या जानकारी का दर्पण है इसलिए इसमें तुलना कैसी ...हर किसी का अपना तरीका और हर किसी का अपना अद्वितीय भाव होता है जो आपको इधर दिखेगा. तो लिखो जो मन कहे...!! पर भावों पर अनुशाशन रख कर !!
कैसे अधिक से अधिक पाठक आयें....
जब वारेन बफेट साहब कंपनी खरीद और बेच रहे थे उस समय कई बार ऐसा टाइम आया जब उनको इन्स्योरेन्स बिज़नस के लिए काफी चुनौती मिल रही थी और सस्ते प्रीमियम वाली कंपनियों से. पर उन्होंने ध्यान गढ़ाये रखा अपने अच्छे कस्टमर बेस पर और कुछ सालों बाद वो सस्ती कंपनी बंद हो गयीं और वारेन साहब अब तक हैं .
मेरा मानना है की आप अपने चुनिन्दा पाठको से यात्रा जारी रखें, ऐसा होने से आपको सुधरने का टाइम भी मिलता रहेगा. कम लोग पाठक होंगे तो ज्यादा रूबरू होकर दिल से लोग कमेन्ट करेंगे और ऐसे लोगों के हिसाब से आप जो सोचते है वो मौलिक लिख भी पायेंगे. और धीरे धीरे आपके कंटेंट के सहारे आप इस बौद्धिक समूह का दायरा धीरे धीरे बढ़ाते जायेंगे. कुल मिलकर ब्लॉग को अपना दर्पण मानें तो संतुष्टि और सफलता दोनों आपके पास होंगे. बहुत तर्क वितर्क इस विषय पर किये जा सकते हैं इसलिए इस गणित को यहीं बंद करता हूँ.
फ्लाईट तो भौतिक उड़ान भर रही थी, इधर मन तो हर वक़्त ही उड़ता रहता है और हमें बुरे भले , स्वर्ग नरक, धूप छाँव की सैर एक पल में करा देता है. कुछ भाव कविता संग्रह पर उड़ेले हैं -
मन रे,
ओ भँवरे
तू घूमे फिरे
सोचे विचारे
क्या क्या करे ...
ओ भँवरे
मस्ताने
क्या तेरे कहने
कैसे कहूं तुझे रुकने
कैसे रोकूँ तुझे बहने
ओ भँवरे
तेरी कभी ऊँची और कभी ओछी उड़ान
बिना किसी थकान
नापे ये सारा जहाँन
मन रे
ओ भँवरे ....
एक महिला हमारे बगल की सीट पर बैठी बैठी बार बार अपनी तनिक सी स्कर्ट को नीचे ऊपर खींचे जा रहीं थी, खुद भी कितना असहज महसूस कर रहीं होंगी ऐसे कपड़ों में, फिर भी पहनना है बस. एक हाथ में किताब, और दूसरे में बीयर का ग्लास, और फिर ऊपर से कपड़ों की असहजता ....कितना परिश्रम बिना बात के !! महिलाओं का अपमान या फिर छोटे कपड़ों पर सेंसर करने की मेरी कोई मंसा नहीं है पर शायद मुझे लगता है की हम वो पहनते हैं जिसमें हम आकर्षक लगें और पहनने में सहज हो, ढीलाढाला न हो इत्यादि इत्यादि ....शायद वो सुश्री भी उस कपडे को फिर न पहनें ...! छोटे कपडे किसको अच्छे नहीं लगते पर एक अनुशाशन में!! यही ब्लॉग्गिंग का हाल है ..आकर्षक और अच्छे के चक्कर में ऐसा न छापें जिससे खुद भी असहज महसूस करें. थोड़ी देर पाठक भले ही आ जायें पर फिर आप पानी की बुलबुले ही रह जाओगे. इसलिए ज्यादा पाठको के बारे में ना सोचें तो बेहतर होगा!
अपने भावो के साथ साथ हिंदी को भी आगे बढ़ाना है हमें और अपनी रचनात्मक प्रव्रत्ति को भी...तो चलो इस अभियान में सही गणित और खुद की सहजता का प्रयोग करें .....
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गुरुवार, 10 जून 2010
एक आत्मीय ब्लॉगर मिलन...कनाडा में समीर लाल के साथ एजेक्स शहर में ...
कनाडा की हर यात्रा अपने आप में एक अद्वितीय यादों की महक छोड़ रही है. पिछली कई पोस्ट मोंट्रियल की यात्रा पर केन्द्रित थी और फिर वापस शिकागो चला गया था...पिछले सप्ताह व्यस्त कार्यक्रम की वजह से लाल परिवार से मुलाक़ात नहीं हो पायी थी. आज टोरंटो एअरपोर्ट पर बैठा में मंगलवार की यादों के मोतियों को ब्लॉग के धागे में पिरोने बैठा हूँ.
६:१८ शाम की ट्रेन ऑफिस से १० मिनट पैदल चलने पर मिल गयी थी और एजेक्स ट्रेन स्टेशन पर प्रभु स्वयं कार लेकर पार्किंग लौट में खड़े थे. गले मिले तो बड़ा ही आत्मीय सुख मिला. जैसे की बिछड़े भाई मिल रहे हों. जैसे ही घर पहुंचा साधना जी ने भी गर्मजोशी और आत्मीयता से स्वागत किया. हलकी फुल्की बातें, ब्लॉग की शुर्खियाँ और आसपास के बारे में बात करते रहे. लाल परिवार के बारे में जाना, और अपने को भी परिवार में ही शामिल पाया. गपशप चलती रही, बीच बीच में साधना जी के बनाए समौसे और भारतीय नमकीन के चटखारे चलते रहे. मौका मिलते ही रास्ते में लिखी एक कविता सुनायी मैंने ...
बड़ा था उत्साह हमें आपसे मिलने का
जानने का, बतियाने का
मंद मंद मुस्काने का
धुंध धुंआधार से निकली
उडती तश्तरी में उड़ने का
रूबरू होने का एजेक्स घूमने का
और क्या लिखूं
हिंदी के लिक्खाड़ के सामने
चला आया गुर भी सीखने ब्लॉग का
नीचे बेसमेंट में बैठे रहे, हिंदी ब्लॉग के विकास के बारे में चर्चा चलती रही. समीर जी का पुस्तकालय देखा, हिंदी के लिक्खाड़ ऐसे ही नहीं बन गए, बहुत पढ़ते है. में तो खैर जब तक रुका ...कुछ न कुछ सीखता ही रहा. समीर जी की कुछ खूबशूरत रचनाएँ सुनी, जिनमें जमीनी हकीक़त और देश की सौंधी सौंधी खुशबू महक रही थी. हम दोनों में ही देश की मिटटी की याद हर वक़्त, हर बात में झलक रही थी. दोनों में क्या तीनों देश की याद और पुराने दिनों के सुनहरे दिनों को याद करते रहे.
इसी बीच समीर जी अपने हस्ताक्षर सहित , मुझे अपनी कृति 'बिखरे मोती' भेंट की. समीर जी के काव्य संग्रह 'बिखरे मोती' से एक कविता की कुछ पंक्तियाँ इधर लिख रहा हूँ ...जिनमें देश जाते समय का और फिर जब लौटे है ..तब का दर्द झलक रहा है ....
समय कैसे पंख लगा कर उड़ गया
कल ही तो मैं घर आया
कल लौट के वापस जाऊंगा
कुछ यार मिले, कुछ बातों की
यादों की बरसातों की
उन गलियों को फिर से घूमा
जिसने मेरा बचपन चूमा ......
...................................
('बिखरे मोती' से ....)
कुछ देर फिर हमने बात की अन्य हिंदी ब्लोग्गेर्स और उनके योगदान के बारे में. समीर जी अपने से पहले वाले ब्लोग्गेर्स का जिक्र और उनकी महत्ता को जरूर बताते हैं. फिर उत्तरी अमेरिका में और कैसे हिंदी का प्रचार प्रसार किया जाए, के बारे में चर्चा चलती रही. मैंने शिकागो में कवि सम्मलेन का प्रस्ताव रखा तो समीर जी ने पूरे सहयोग और अपने पुराने अनुभव के हिसाब से मार्गदर्शित किया. कुछ फोटो भी खींचे गए इस बीच ...
डिनर का समय हो चला था, सबने काव्य पाठ भी किया...विडियो या ऑडियो समीर जी पोस्ट करेंगे. साधना जी ने एक बहुत ही बढ़िया रचना पड़ी. उनके स्वर ने समीर जी की उस रचना में चार चाँद लगा दिए.
चलो अब बारी थी छप्पन भोग से भी जो अच्छा खाना होता है उसकी. साधना जी ने बहुत सारे पकवान तैयार किये थे. फोटो में देखोगे तो खुद को रोक नहीं पाओगे .....बहुत खाना खाया, जी भर के खाया !!
यहाँ इंगित करना चाहूँगा की समीर जी भी बहुत पहुंचे हुए रसोईये हैं. सीक्रेट का भंडाफोड़ कर ही देता हूँ ... चिक्केन के अलावा जलोपीनो मिर्ची का एक व्यंजन ऐसा बनाया था की जीभ रो रही थी फिर भी खाए बिना मन मान ही नहीं रहा था. जबरदस्त, मस्त मस्त, स्वादिष्ट !! रात से ज्यादा असर सुबह दिखा -:)
ये रहे रसोई के रसूखदार प्याज काटते हुए :)....
आइसक्रीम, और मीठे मीठे आम खाने के बाद और थोड़ी देर बैठे ...फिर ट्रेन का टाइम हो चला था और इधर मेरी फ्लाईट उड़ने वाली है, इसलिए लिखना बंद करना पडेगा .....समीर जी की चिड़ियों से मिलने के बाद, ढेर सारी यादें समेट कर, ज्ञान लेकर, आत्मीय प्यार पाकर और एक बड़ा भाई पाकर हम लगभग अर्धरात्रि के समय स्टेशन की ओर चल दिए .....
और भी बहुत कुछ है लिखने को ....कुछ बाद में लिखूंगा समय की कमी है अभी ओर कुछ समीर जी की पोस्ट में आएगा ....इन्तजार करते रहिये ....
- राम फ्रॉम बिली बिशप एअरपोर्ट टोरंटो
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शनिवार, 8 मई 2010
एक अद्भुत संस्मरण जो चकित और पुल्लकित कर दे ...
कुछ दिन पहले की बात है, एक हमारे परम मित्र की कंपनी में काफी बड़ी मात्रा में लोगों को नौकरी से निकाले जाने का प्लान था. हम लोग अक्सर इस बारे में बातें करते रहते थे और मैं अक्सर उनको पूछता रहता था कि भाई आपका क्या हुआ, कब फैसला हो रहा है. वो पलट कर यही जाबाब दिया करते कि फलाने तारीख में कुछ होने वाला है. लगभग ८० प्रतिशत लोगो को निकाले जाने का प्लान था. हालांकि दोस्त हमारा ठहरा तो काबिलियत पर कोई शक नहीं, पर जब इतने बड़े तरीके पर कंपनी में कांट छांट हो रही हो तो कुछ भी हो सकता है.
ऐसे ही एक दिन फ़ोन पर बात करते करते मैंने उनको बताया कि मेरे पास ऐसा कुछ संकेत या आधार है, जिससे मुझे पूरा भरोसा है कि आप अभी कंपनी से बाहर नहीं आ सकते. उसने मेरी बात को मजाक में टाल दिया एक पल के लिए पर कुछ देर बाद मन में सुगबुगाहट हुई और कारण पूछने लगा, जैसा कि होता कि अगर कोई मन की बात कह दे तो भले ही झूटी हो पर कारण जानने का मन करने लगता है. मैंने कहा कि जब मिलेंगे तब डिटेल में बताता हूँ.
बहुत पहले जब में स्कूल/कॉलेज में था तब की बात है, अकसर गलती से या जो कारण बताने वाला हूँ, उसकी वजह से में एक्साम के बाद टॉप १० (अतिशयोक्ति अलंकार (का प्रयोग नहीं है)) में तो आता ही था. होता ये था कि कभी कभी पेपर के पूर्व रात्रि में मेरी हालत बहुत खराब हो जाती थी, उसका कारण था मेरा एक पैटर्न वाला सपना. एक ही तरह का ये सपना बड़ा विचलित कर देता था. होता ये था कि सपने में मैं अपना पेपर हल कर रहा हूँ और केवल कुछ ही प्रश्न हल कर पाता हूँ और बाकी कक्ष की पटियां गिनते गिनते टाइम ख़त्म, फिर क्या में सेन्स लेस पड़ा पडा पसीने और डर से बुरी तरह एक दम जाग पड़ता और फिर सेन्स में आकर सत्य का मीठा अनुभव करता कि अरे कुछ नहीं, ये तो सिर्फ एक बुरा सा सपना था. और उस दिन का पेपर तो बस पूछो मत, एक भी प्रश्न किया बिना नहीं रहेगा . कभी कभी तो १०० % मार्क आ रहे होते और मास्टर साहब भी देख रहे होते रिजल्ट को.
...ऐसा नहीं कि पेपर सपने से अच्छा गया , पढाई भी करते थे क्यूंकि पापा कि कड़ी मेहनत और उनके द्वारा बनाये गए आदर्श हमेशा सामने रहते थे. पर लगता है कि पूरे दिन कि सोच को रात में दिमाग एक अलग ही दुनिया में खोकर पूरी तरह व्यक्त करके कुछ सन्देश देना चाहता था. बाद में तो ऐसे सपनों की पुनरावृत्ति बहुत होने लगी और फिर सपने में भी मुझे फील होने लगता कि ये असल नहीं..सपने वाला पेपर है और इस तरह से उस सपने से डर और कंप कम हुआ और सुख कि अनुभूति ज्यादा.
पर सपनों का ये एक जैसा क्रम ही क्यों ? क्या इसका कुछ वैज्ञानिक आधार है ? मस्तिस्क का रात में सपनों के द्वारा अनूभूति कराने का ये बड़ा ही अद्भुत तरीका है. कभी कभी लगता है की हर सपने में कुछ न कुछ सन्देश छुपा रहता है. मुझे ध्यान है की इंडिया में पॉकेट बुक भी आती है जिसमें सपनों और उनके अर्थ के बारे में लिखा रहता है. कुछ दिन पहले में एक लेख पढ़ रहा था, इधर अमेरिका के किसी विश्वविधालय में शोध किया गया था और उन लोगो ने इस बारे में काफी कुछ विस्तार से लिखा था.
बहुत दिन बाद सपने की पुनरावृत्ति और सच होना बड़ा ही मजेदार और रोचक लगा और सोचा कि चलो ब्लॉग बंधू लोंगों के साथ भी बाँटते है.....
ऐसे ही एक दिन फ़ोन पर बात करते करते मैंने उनको बताया कि मेरे पास ऐसा कुछ संकेत या आधार है, जिससे मुझे पूरा भरोसा है कि आप अभी कंपनी से बाहर नहीं आ सकते. उसने मेरी बात को मजाक में टाल दिया एक पल के लिए पर कुछ देर बाद मन में सुगबुगाहट हुई और कारण पूछने लगा, जैसा कि होता कि अगर कोई मन की बात कह दे तो भले ही झूटी हो पर कारण जानने का मन करने लगता है. मैंने कहा कि जब मिलेंगे तब डिटेल में बताता हूँ.
बहुत पहले जब में स्कूल/कॉलेज में था तब की बात है, अकसर गलती से या जो कारण बताने वाला हूँ, उसकी वजह से में एक्साम के बाद टॉप १० (अतिशयोक्ति अलंकार (का प्रयोग नहीं है)) में तो आता ही था. होता ये था कि कभी कभी पेपर के पूर्व रात्रि में मेरी हालत बहुत खराब हो जाती थी, उसका कारण था मेरा एक पैटर्न वाला सपना. एक ही तरह का ये सपना बड़ा विचलित कर देता था. होता ये था कि सपने में मैं अपना पेपर हल कर रहा हूँ और केवल कुछ ही प्रश्न हल कर पाता हूँ और बाकी कक्ष की पटियां गिनते गिनते टाइम ख़त्म, फिर क्या में सेन्स लेस पड़ा पडा पसीने और डर से बुरी तरह एक दम जाग पड़ता और फिर सेन्स में आकर सत्य का मीठा अनुभव करता कि अरे कुछ नहीं, ये तो सिर्फ एक बुरा सा सपना था. और उस दिन का पेपर तो बस पूछो मत, एक भी प्रश्न किया बिना नहीं रहेगा . कभी कभी तो १०० % मार्क आ रहे होते और मास्टर साहब भी देख रहे होते रिजल्ट को.
...ऐसा नहीं कि पेपर सपने से अच्छा गया , पढाई भी करते थे क्यूंकि पापा कि कड़ी मेहनत और उनके द्वारा बनाये गए आदर्श हमेशा सामने रहते थे. पर लगता है कि पूरे दिन कि सोच को रात में दिमाग एक अलग ही दुनिया में खोकर पूरी तरह व्यक्त करके कुछ सन्देश देना चाहता था. बाद में तो ऐसे सपनों की पुनरावृत्ति बहुत होने लगी और फिर सपने में भी मुझे फील होने लगता कि ये असल नहीं..सपने वाला पेपर है और इस तरह से उस सपने से डर और कंप कम हुआ और सुख कि अनुभूति ज्यादा.
पर सपनों का ये एक जैसा क्रम ही क्यों ? क्या इसका कुछ वैज्ञानिक आधार है ? मस्तिस्क का रात में सपनों के द्वारा अनूभूति कराने का ये बड़ा ही अद्भुत तरीका है. कभी कभी लगता है की हर सपने में कुछ न कुछ सन्देश छुपा रहता है. मुझे ध्यान है की इंडिया में पॉकेट बुक भी आती है जिसमें सपनों और उनके अर्थ के बारे में लिखा रहता है. कुछ दिन पहले में एक लेख पढ़ रहा था, इधर अमेरिका के किसी विश्वविधालय में शोध किया गया था और उन लोगो ने इस बारे में काफी कुछ विस्तार से लिखा था.
मेने अपने दोस्त को बताया कि भाई आज रात में सपना आया था कि आप तो निश्चय ही बाहर आ रहे है, और वो भी मेरी पत्नी ये समाचार दे रही है , जिसको इस मामले में कुछ पता ही नहीं था. सुबह उठा तो मेने निष्कर्ष निकाला कि मेरा दोस्त तो बच गया इस बार. वैसे निकलने में भी फायदा था उसका; क्यूंकि कंपनी निकलते समय कुछ महीनो का वेतन अडवांस में देकर विदा करती है, पर ऐसी मार्केट में कौन फिर से जॉब देखे ! तो इस आधार पर हमने उनको बताया कि आप शायद सुरक्षित रहोगे चाहे कितना ही बड़ा ले ऑफ क्यों न हो.
और एक दिन वो तारीख भी आ गयी जब 8० प्रतिशत लोगो को बहार का राश्ता दिखाया गया क्यूंकि कंपनी का IT डिपार्टमेंट इंडिया से चलेगा और देश(इंडियन) की एक कम्पनी अपने लोगो से काम कराएगी और इस तरह इस कंपनी को काफी आर्थिक लाभ होगा.
हम लोग संयोग से ट्रेन में उस दिन साथ ही चिकागो से घर आ रहे थे. बहुत जानने वाले लोग बाहर कर दिए गए थे. सैकड़ो में सख्या थी तो कुछ हमारे जानने वाले तो होंगे ही. ये दोस्त एक और अपने परम मित्र के साथ बैठे थे. बात करते करते उन्होंने खुश खबरी सुनाई और बोल पड़े के भाई तेरे सपने वाली बात तो सच हुई, क्यूंकि मेरा नाम तो पता नहीं किसी वजह से लिस्ट में आया ही नहीं और में बिलकुल सुरक्षित हूँ. मुझे तो पूरा विश्वास था और इसलिए दोस्त की खुसखबरी के मारे और मेरे अनुभव को सच होते देख मैं अति उत्साह में अपनी ख़ुशी जाहिर करने लगा और साथ वाले दोस्त की जिज्ञासा को शांत करने के लिए उसको सब कुछ बताने लगा ....साथ वाला दोस्त हंसकर बोला कि यार बंद करो ये ...कुछ और ढंग की बात सुनाओ ...मेने अपने आप को कचोटा और नियंत्रित किया. इतने में हमारा स्टेशन आ गया और सब अपने अपने घर के रास्ते हो लिए !
शुक्रवार, 21 मार्च 2008
--क्या यही प्यार है --
प्रेम के सागर में डूबे
भूल जाते है बुरा भला
सोच नहीं पाते कुछ भी और
दिल को रहती है एक ही याद
मीत ही सब कुछ लगता है
प्रेम के सागर में डूबे ..
मन रहे विचलित विचलित
मीठी सी आहट रहती है
इन्त्जारों की गहरी खाई
उनसे मिलने की फिर भी चाहत
प्रेम के सागर में डूबे ..
जिस्म दो एक जान रहती
भूल ना पाते साथी को
लगे वो सबसे न्यारा दोस्त
कहे मन रहे वो हर पल पास
जाये ना छोर के मेरा साथ
प्रेम के सागर में डूबे ..
सोचे मन बन जाये राधा क्रिश्ना
चाहे उनको भूल सारी मर्यादा
सोचे उसको छोड सारे रिश्ते
दूर ना जाये मीत इक बार पास आके
प्रेम के सागर में डूबे ..
- राम कुमार त्यागी
शिकागो - ०९ फरबरी २००७
भूल जाते है बुरा भला
सोच नहीं पाते कुछ भी और
दिल को रहती है एक ही याद
मीत ही सब कुछ लगता है
प्रेम के सागर में डूबे ..
मन रहे विचलित विचलित
मीठी सी आहट रहती है
इन्त्जारों की गहरी खाई
उनसे मिलने की फिर भी चाहत
प्रेम के सागर में डूबे ..
जिस्म दो एक जान रहती
भूल ना पाते साथी को
लगे वो सबसे न्यारा दोस्त
कहे मन रहे वो हर पल पास
जाये ना छोर के मेरा साथ
प्रेम के सागर में डूबे ..
सोचे मन बन जाये राधा क्रिश्ना
चाहे उनको भूल सारी मर्यादा
सोचे उसको छोड सारे रिश्ते
दूर ना जाये मीत इक बार पास आके
प्रेम के सागर में डूबे ..
- राम कुमार त्यागी
शिकागो - ०९ फरबरी २००७
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