मंगलवार से गले में खरास और उससे उपजे विकारों ने घेर रखा था, तेज बुखार और एक पर एक पार्टियाँ टोरोंटो में...सब कुछ बढ ही रहा था, जब तक शिकागो घर कैब वाले ने पटका. उसके बाद गरारे और पानी की पिलाई करी जमकर. उससे कुछ बेहतर परिणाम आये, डॉक्टर साहब के यंत्रो ने पाया की किसी वैक्टीरिया का आक्रमण है तो उन्होंने भी कुछ असद उपलब्ध कराये हैं युद्ध के मैदान के लिए. लड़ाई जारी है ! इस सबने शरीर को विचलित, अस्थिर या फिर अंग्रेजी के एक शब्द उपयोग करूँगा - Derange कर दिया मेरे क्रियाकलाप, काम और शरीर सब कुछ. वैसे है तो ये एक गणित का कंसेप्ट वाला शब्द जिसके हिसाब से ...आप इस लिंक पर पढें, में भी आपको क्या सिखाने बैठ गया. खैर इसका अर्थ कुछ ऐसा भी है :
"de·range (dē rānj′, di-)"
transitive verb deranged -·ranged′, deranging -·rang′·ing
1.to upset the arrangement, order, or operation of; unsettle; disorder
2.to make insane
ये तो रहा मेरा दर्द - जो कुछ मायने नहीं रखता, चला भी जाएगा जल्दी ही डॉक्टर महोदय के सौजन्य से, एक दर्द और इस सप्ताह बांटा मुझसे मेरे कुछ मित्रों ने, मेरे भारत के महान होने के टोपिक पर !!
कुछ दिन पहले प्रोजेक्ट के सहकर्मियों के साथ लंच टाइम पर कुछ ऐसे टोपिक पर चर्चा हुई, जिससे मन कुछ हद तक विचलित हुआ और लगा की शब्द Derangement ही सही होगा भारत के सरकारी महकमों में चल रही व्यवस्था के लिए. विकसित होने के लिए या विकसित कहलाने के लिए अव्यवस्था की जगह व्यवस्था को लाना ही होगा - आज नहीं तो कल...अन्यथा सब प्रयास और हमारी जीनियसनैस बेकार कचरा ही साबित होगी.
एक मित्र जो लंच मंडली में थे इंडिया से आये हुए थे और अपनी आपबीती सुनाते हैं. रात के आठ बजे गाजियाबाद दिल्ली के आसपास ATM से कुछ पैसे निकालकर ये महोदय सोचते हैं की ऑटो क्या करूंगा, थोड़ी देर पैदल ही चल लेता हूँ. कुछ देर उस रोड पर पैदल चलने के बाद अपने आप को एक गिरोह का शिकार पाते हैं, कुछ लोग पीछे से आकर इनको किनारे धकेल देते हैं, और उधर इनके स्वागत के लिए पहले से ही तैयारियां हो रखीं थीं. फिर क्या था तमंचे की नोंक पर सब कुछ ले लिया गया. जीरो वैल्यू की चीजें भी हड़बड़ी में ये गैंग नहीं छोड़ती हमारे मित्र के पास. बेचारा सहर्ष सब कुछ दे देता है. ऐसे तैसे घर पहुंचता है और जल्दी जल्दी सूचना नकनीक का प्रयोग कर अपने सारे पैसे/रुपये जितने बचे हैं, अपने खाते से दोस्तों के खाते में डाल देता है. यहाँ तक तो सब कुछ सामान्य ही लगा की चलो आसामाजिक तत्व हैं, हर जगह हैं.
मेरे मित्र दूसरे दिन सुबह सुबह अपने एक वरिष्ट, लोकल, इस तरह के मामलों के भुक्तभोगी या विशेषज्ञ , जो भी हों ..से मिले और बोले की भाई ऐसा ऐसा हो गया, मैं तो लुट गया, जो गया सो गया, पर DL भी गया. कुछ तो पहचान पत्र टाइप का होना चाहिए हाथ में. पोलिस में रिपोर्ट करानी पड़ेगी. दोस्त की सलाह थी की रिपोर्ट तो करा देते हैं पर लुटने वाली बात पुलिस को मत बताना; नहीं तो और भी चपड़े में पड़ना पड़ेगा ..इसलिए बस ये बोल देंगे कि मेरा पहचान पत्र खो गया कैसे भी, या बटुआ कहीं मेरी ही गलती से गिर गया. उसके लिए भी पुलिस को पैसे खिलाने पड़े एक पेपर पर मोहर के लिए...और कई चक्कर भी बोनस में लगाने पड़े. कभी न भूलने वाली यात्रा बन जाती हैं पुलिस कि ये दास्तानें.....
बेचारा रात को आतंकित हुआ और सुबह उससे भी ज्यादा. क्या यही सुरक्षा है ? वो भी राजधानी और देश के सबसे विकसित इलाके में जहाँ पर कुकुरमुत्ते की तरह उग आये चैनल सारे दिन आग उगल रहे हैं अपने बेस्ट होने की.
दूसरे सहकर्मी ने भी ऐसा ही कुछ वाकया सुनाया, एक उनके दोस्त को नॉएडा के पास एक SUV वाले ने दिल्ली ले जाने के बहाने बिठाया और लूट लिया, केवल जान बची थी. उनके खुद का एक बार फ़ोन का सिम खो गया और फिर पोलिस के चक्कर में बेचारी लड़की ने पता नहीं कितने पैसे गंवाए. सब कुछ फिर से दिल्ली के आसपास.
शेष भारत का हाल - पता नहीं गणित के कौन से शूत्र से समझाऊं.
चिंता मेरी वाजिब है, ऐसे कब तक देश का मजाक उड़ता रहेगा ? दवा तो कई है, जैसे मेरे डॉक्टर ने दवा लिखी और मैं ले आया , जल्दी ही शान्त हो जाएंगे सारे विकार, पर भारत कब उन दवाइयों को खायेगा जो डॉक्टर ने प्रिस्क्रायिब करीं हैं ? नहीं खाओगे तो ये बैक्टेरिया फैलता ही जाएगा ! कुछ नहीं तो भारत गरारे ही कर ले हर १-२ घंठे में .....
और अंत में गूगल से लिया ये तीर - (काजल पर छोड़ देते है एक और बढ़िया सा कार्टून बनाने का काम ..तब तक इसी से काम चलाते है ...)