जब आदमी चाँद से जाकर वापस आया, या फिर पहली अन्तरिक्ष यात्रा के बाद जमीन पर वापस आया या फिर जैसी संतुष्टि और गर्व जन गन मन गा कर मिलती है , वैसी ही कुछ अनुभूति इस सभ्य मानवीय प्रयास पर मेरे मन को हुई !
मैं निकुंज से अक्सर कहा करता हूँ कि 'never cry, always try' और ये शायद में अब और भी संबल के साथ कह सकता हूँ, इस दुनिया में प्रयास करने से क्या संभव नहीं हैं, बस अनवरत लगातार नदी की तरह बहने की जरूरत है, मंजिल मिलती ही जाती है ! चिली के राष्ट्रपति के चेहरे पर प्रसन्नता और स्वाभिमान के भाव हजारो चिलिवासियों के दृढ निश्चय को व्यक्त कर रहे थे !
सारी दुनिया आज चिली के इस प्रयास को एक सम्मान और एक अमिट यादों के रूप में देख रही है. गुस्सा, मेहनत, संघर्ष और घुटन के बादल इन ३३ लोगों के प्रकाश में आगमन के साथ ही हर्ष और उन्माद में बदल कर आशा, प्रयास और कर्म के योग को जैसे व्याख्यित कर रहे हों !
मैं जब कभी शावर लेते समय आँखे बंद कर लेता हूँ तो अन्धकार और पानी के वेग से घुटन सी होने लगती है और ये पल की घुटन बड़ी असहनीय होती है, और कभी चद्दर में मुंह बंद हो जाए और सांस न ले पाने के कारण जो पीड़ा होती है उससे हम कुछ ही पल में कितने विचलित हो जाते हैं ! कभी दोस्तों से कुछ ही दिन ना मिलने, तो कभी घरवालों से कुछ दिन ना रूबरू हो पाते हैं तो मन कितना विचलित हो जाता है, कभी विडियो कांफ्रेंस करते हैं तो कभी फ़ोन पर बात और ज्यादा दिन हो जाएँ तो तुरंत मिलने चले जाते हैं, एक कमरे में घुटन होती है तो बाहर घूमने चले जाते हैं , रात के बाद दिन और दिन के बाद रात के आगमन से अपने आपको तरोताजा अनुभव करते हैं ! इन सब बातों को चिंतन में लाते हुए इन ३३ लोगों ने जो हिम्मत दिखाई है और जो जीवन का संघर्ष पल पल ६९ दिन तक झेला है वो अविश्वसनीय है, रोमांचकारी है !
अमेरिका के राष्ट्रपति ओबामा ने कहा कि - Miners, rescuers "inspired the world"
लुईस उर्जुआ अगस्त में एक दिन जब अपनी शिफ्ट सुपरवायिजर कि ड्यूटी के लिए खदान में घुसे तो यही सोच रहे थे कि १२ घंठे बाद बाहर आकर रोजमर्रा के काम निबटाउंगा, पर कुछ ही घंटों में वो अपने अन्य साथियों के साथ मौत के मुंह में थे ! ईश्वर की दया से २३०० फीट कि गहराई पर एक टनल थी और ये सब के सब इस घुप्प अँधेरी सुरंग में जा गिरे ! लुईस उर्जुआ ने अपने अनुभव के सहारे ७० दिन तक हर किसी का साहस और मनोवैज्ञानिक हौसला बनाए रखा, उन्होंने चार - पांच लोगों के समूह बनाकर एक सामजिक वातावरण बनाने की कोशिश की ! आज ६९ दिन के बाद लुईस उर्जुआ सबसे बाद में खदान से बाहर निकले, एक एक करके सब लोग बाहर आते गए और अंत में एक सच्चे लीडर कि भाँती सबसे बाद में खुद बाहर निकले ! इन सबके बीच उन ६ लोगों की भी प्रशंशा करनी होगी जो इन लोगों को बाहर निकालने २३०० फीट नीचे तक गए और अभी उर्जुआ को बाहर निकालने के बाद भी वहीं है, अभी उन्ही के बाहर आने का कार्य चल रहा है ! ५४ वर्ष के उर्जुआ ने कभी हिम्मत नहीं हारी और ना ही अन्य साथियों के हौसले पस्त होने दिए ! बाहर आने के बाद उर्जुआ के शब्द थे - 'मुझे चिली का नागरिक होने पर गर्व है'
उर्जुआ |
उर्जुआ की पूरी टीम को हिंदी ब्लोग्गिंग की तरफ से सलाम और शुभकामनायें !
जब नहीं पता था किसी को कि कोई जिन्दा भी है
जब इनको भी नहीं पता था कि कोई बचाने आएगा
उस समय बस जिन्दा रखा
सकारात्मक सोच ने
आशा ने, विश्वास ने
कर्म का पाठ
आस्था के संस्कार
इसी दिन के लिए तो
हमें पढाये जाते हैं
और आभाष देते हैं
मुझे मानव होने पर गर्व है आज !!!
और आज जब ये जिन्दा आ गए हैं तो मीडिया के लोग इन पर एक एक साक्षात्कार के लिए किसी भी राशि कि धनवर्षा के लिए तैयार हैं , इनको कुछ दिनों के लिए इनके परिवार के साथ अकेला छोड़ दो - यही निवेदन है !! मैं अश्रुमय आँखों ने इन सबके संघर्ष और प्रयास के सामने नतमस्तक हूँ, एक जीवंत पाठ पढ़ने वाली ये घटना जीवन को स्फूर्ति से जीने और सदा कर्मशील रहने की प्रेरणा देती है !
अज्ञातवास पूरा हुआ !! 'mission accomplished' |
14 टिप्पणियां:
बेशक यह माइनर्स की हिम्मत , आत्म विश्वास , धैर्य और साहस का ही परिणाम है । साथ ही प्रशासन की समझ बूझ और कार्य कुशलता ।
आज हमें इंसानियत पर गर्व है ।
गर्व की ही बात है.
गर्व की ही बात है.
सार्थक और सराहनीय प्रस्तुती...शानदार प्रेरक ब्लोगिंग के लिए आभार ...
मानवीय संवेदना का आधार इस प्रकार के उजले अध्याय ही बने।
indu puri goswami - तेरा बहुत बहुत शुक्रिया भगवान! तू समय समय पर अहसास दिलाता रहता है कि .....कोई तो है जो इस दुनिया को चला रहा है.६९ दिन! और सब सुरक्षित.क्या कहूँ?सचमुच भीतर से बहुत सुकून महसूस कर रही हूँ.नींद में अपने आपको ऐसी ही खदान में इन सबके बीच खुद को पाती थी.दम घुटता,पर आवाज नही निकलती थी गले से.बहुत घबराहट...आँखे खुलने पर एक ही ख़याल आता जो स्थिति मुझे सपने में सहन नही हो रही उससे ये सब कैसे गुजरे होंगे.पर वाह मनुष्य और वाह उसके जीने का माद्दा! दोनों को प्रणाम.ब्रहमांड की सबसे खूबसूरत और सर्वश्रेष्ठ रचना यूँ ही नही कहे जाते तुम!11:18 pm
इंसानियत के हित में ऐसे अध्यायों को जितना उत्प्रेरित किया जा सके उतना अच्छा !!
ग्लोबलाइजेशन की इस दौड़ में ऐसी दौड़ों का भी भरपूर स्वागत है !!
7/10
इंसानी जद्दोजहद की विजयगाथा
सुन्दर - अनुकरणीय - सशक्त पोस्ट
उर्जुआ और उनकी पूरी टीम की हिम्मत व साहस को शत - शत बार नमन । वाकई हमें इंसान होने व उसकी इंसानियत पर पूरा गर्व है । इंसान की तरक्की व धैर्य तथा भगवान की नियामत जब मिल जाए तो चमत्कार होना स्वाभाविक है । 2300 फीट गहरे गड्ढे में लगभग 69 दिन बिताकर 33 चिलीवासियों का सकुशल बाहर आना किसी चमत्कारिक घटना से कम नहीं है । राम त्यागी जी आपके द्वारा कहे गए इन शब्दों never cry, always try' से मैं पूरी तरह सहमत हूं ।
मानवता के इतिहास की यह एक अद्भुत घटना है।
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वर्धा सम्मेलन: कुछ खट्टा, कुछ मीठा।
….अब आप अल्पना जी से विज्ञान समाचार सुनिए।
वाकई गर्व की बात है..
हमे भी बहुत खुशी हुयी, मै भी अकसर बच्चो को कहता हुं कि हमे आखरी पल तक हिम्मत नही हारनी चाहिये,ओर मेरे साथ कई बार ऎसा हुआ कि कामयावी जिस की उम्मीद ना हो आखरी पल मे मिली, हम सब की शुभकामनाऎ इन लोगो को, आप का धन्यवाद
आज के इस मशीनी युग में अब भी मानवीय संवेदनाएं जीवित हैं..गर्व की बात है...मुझे आप पर भी गर्व है कि इस विषय का चयन आपने अपने ब्लाग के लिए किया...धन्यवाद।
@ महेंद्र जी, बिलकुल सही कहा , हर चीज के दो पहलू होते हैं , पर सिक्के के दोनों ही सिरे उपयोग में लाये जाते हैं , इस दुनिया में केवल अच्छाई कि उम्मीद करना तेनालीराम के सपने देखना जैसे होगा ....पर सकारात्मक पहलू जब सामने आता है तो मानव होना सार्थक हो जाता है
@राज भाटिया जी , आपका अनुभव बोल रहा है ये , अपना आशीष हम पर भी बनाये रखें !
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