क्या आपको पता है कि मेरे स्कूल बस में मेरे साथ जाने वाले कुछ बच्चे हैं जो जिनके या तो कई पिता हैं या फिर कई माँ ! निकुंज ने जब ऐसा बोला तो मुझे लगा कि कौन इतने गर्व से ये बात बताएगा, कोई बच्चा मजाक कर रहा होगा, पर एक दिन जब एक बच्चे की नानी मेरी पत्नी से बात कर रही थी तो वो भी बड़े गर्व से बता रही थी कि ये लडका बड़ा भाग्यवान है जिसको दो दो पिताओं का प्यार नसीब होता है !
ये हुई न बात ! पर इस बात को एक पश्चिम की संस्कृति की झलक समझ कर छोड़ना उचित नहीं, कुछ ठहर कर सोचते हैं इस बारे में !
नाम – डोमिनिक
खुश है बहुत - माँ तो एक ही है पर पिता दो हैं, दोनों पिताओं का असीम प्यार मिलता है, और दोनों से ही हर मौके पर तोहफे इत्यादि ! पहला पिता उसकी माँ का बॉय फ्रेंड था, दोनों साथ रहे - कुछ दिन बाद डोमिनिक का जन्म हुआ पर विचारों में भिन्नता आने लगी कुछ दिनों में और दोनों अविवाहित अलग अलग हो गये, डोमिनिक की माँ कुछ दिन बाद डोमिनिक के वर्तमान पिता से मिली और कुछ ही दिन पहले दोनों से शादी कर ली, डोमिनिक शायद अभी ७-८ साल का होगा। बकौल डोमिनिक की नानी उसका बायोलोजीकल पिता भी बहुत अच्छे स्वभाव का है और हर मौके पर अपनी जिम्मेदारी को निभाना नहीं भूलता और वर्तमान पिता भी डोमिनिक को अपना मान उसे पूरा प्यार और दुलार देता है - दोनों ही डोमिनिक को बारी बारी से समय देते हैं और वो स्वतंत्र है जहाँ चाहे, जब चाहे कहीं भी जाने के! उसकी नानी के हिसाब से विचारों का मिलन नहीं है तो फिर साथ क्या रहा जाये, इससे तो अच्छा है दोनों की सहमती से वही करो जी व्यक्तिगत रूप से बढ़िया लगे और रिश्ते भी खराब न हों !
क्या रिश्ते इस तरह से कायम बने रह सकते हैं, पर हो सकता है कि डोमिनिक आपसी झगडों की कलह से बच गया हो जो उसके माता पिता के विचारों में भिन्नता की वजह से होते रहते, निश्चित ही ये कोई भैरन्ट समाधान तो नहीं पर कामचलाऊ तो है ही !
नाम – कैली
खुश है बहुत - शायद ये अपने पिता के साथ रहती है और इसके भी कई पिता और माँ हैं, खिलौने और पार्टियों की धूमधाम रहती है हर मौके पर क्यूंकि हर कोई उसको बहुत चाहता है ! उसके घरवालों को रिश्तों की इस कोम्प्लेक्सिटी पर कोई परेशानी नहीं !
शायद बाकी ८० प्रतिशत के एक माँ और एक पिता ही हो !
अब मैं रुख करता हूँ कुछ त्रासदियों पर जो मैं देखी हैं भारत में ! एक लडकी की शादी होती है १७ साल की उम्र में ! २-३ साल शादी के गुजरते हैं, सब कुछ बहुत बढ़िया चल रहा है. दोनों परिवार, पति, पत्नी सब लोग खुश हैं , पर जैसे दिन के बाद रात आती ही है, खुशियाँ भी ज्यादा दिन तक स्थायी नहीं रहती ! लडकी गर्भवती हो जाती है, और भी खुशियाँ ! एक दिन अचानक किसी दुर्घटना में पति की म्रत्यु हो जाती है, माँ ने होनहार लड़का खो दिया और पिता ने जैसे अपने सपने खो दिए हों ! पत्नी ने तो जैसे अपना भविष्य ही खो दिया, सब कुछ खो दिया , गम में गर्भ भी साथ नहीं दे पाया और गर्भपात का असहनीय दर्द जैसे उससे बचाखुचा जीवन भी छीन ले गया ! कुछ दिन हुए, परिवार वाले अपनी अपनी राह पर हैं, भाई बहिन सब उन्नति कर रहे हैं और फिर से खुशियाँ परिवार में वापिस !! पर कोई तैयार नहीं उस लडकी की दूसरी शादी के लिए जिसके सामने जिंदगी का अभी तीन चौथाई से ज्यादा हिस्सा बाकी पड़ा है, वो बस बेबसी, लाचारी में अपना पूरा जीवन (हिंदू धर्म के अनुसार) जीयेगी ! भले ही राजा राममोहन राय ने विधवा विवाह आजादी से पहले शुरू करवाने की मुहिम शुरू कर दी थी पर क्या वो जागरूकता हमारे गांवों तक या पुरुषीय मन तक पहुँची हैं ? बाद में न पिता पक्ष उसकी तरफ देखता है और ना ही ससुराल पक्ष ! वो बेसहारा बस जिंदगी को कैसे भी काटने पर मजबूर है , काश वो एक दुर्घटना ना हुई होती , काश वो दिन समय के पहियों के नीचे न आया होता ! कुछ दिन बाद जमीन जायदाद और सब कुछ उससे ले लिया जाता है क्यूंकि न तो पति है इस दुनिया में और न कोई बच्चा है ! जीवन जैसे एक अभिशाप बन गया हो, श्राप में जीने के लिए हमारे पाखंडों ने उसे मजबूर कर दिया ! उसकी मानवीय भावनाओं, सम्वेदनाओं की किसी ने कोई क़द्र नहीं करी, सबने एक बार आँसू बहाकर उसे जिंदगी भर आँसू पीने के लिए मजबूर कर दिया !
ऐसे कई दर्दनाक और अभिशप्त उदहारण मैंने देखे हैं और आपने भी अनुभव किये होंगे! एक बार के लिए अपने मनुष्य होने पर भी पीड़ा होने लगती है !
इन दो विस्तृत पहलुओं पर ध्यान देने के बाद यही निष्कर्ष निकलता है कि तर्क से हर चीज सही या गलत नहीं सिद्ध की जा सकती, गलत है अति - ‘अति सर्वत्र वर्जते' - अति वर्जित है जब आप संस्कृति छोड़ पूरी तरह पश्चिम के रंग में रंगकर रसिया हो जाते हैं और अति वर्जित है जब आप संस्कृति के कुएं पर पड़े पड़े बाकी दुनिया को नजरअंदाज कर देते हैं !
23 टिप्पणियां:
निश्चित ही सहमत हूँ...एक ओर संस्कृति की दुहाई देते जीवन बर्बाद होता दिखता है और दूसरी तरफ स्वच्छंदता को गले लगा कर...
एक सामन्जस्य जरुरी है...
बिल्कुल सही कहा:
‘अति सर्वत्र वर्जते'
Bahut khoobsurat lekh!
aapki baat se sarvatha sahmat hun, sirf sanskriti ya sirf swachhandta ka koi avchity nahi, ek samanjasy zaroori hai..
bahut accha aalekh..
aabhaar..
रुढ़ियाँ समाज के विनाश का कारण बनती हैं।
रुढियों को तोड़ना जरुरी है। इस काम को युवा ही कर सकते हैं।
कुछ बदलाव आ रहा है समाज में, अब पुरातन स्थिति नहीं है। लेकिन इतना बदलाव नहीं आया है जिस पर खुश हुआ जाए।
विचारपूर्ण पोस्ट -मध्यमार्ग इसलिए ही तो है द गोल्डेन मिडिल
..‘अति सर्वत्र वर्जते' - अति वर्जित है जब आप संस्कृति छोड़ पूरी तरह पश्चिम के रंग में रंगकर रसिया हो जाते हैं और अति वर्जित है जब आप संस्कृति के कुएं पर पड़े पड़े बाकी दुनिया को नजरअंदाज कर देते हैं ...
सहमत हूँ आपसे। थोडा बैलेंस्ड नजरिया अपनाया जाये तो बेहतर हो सकता है।
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समझदारी से काम लेना ही ऐसी किसी भी समस्या का उचित समाधान होगा और अति तो हर चीज़ की हमेशा ही बुरी होती है।
अब समय आ गया है कि हम धार्मिक किताबो ताकियानुसी बातो से उपर उठ कर इंसान के बारे में सोचे
जैसे हिन्दू या मुस्लिम धार्मिक किताबो में महिलायों के बारे में कुछ भी लिखा हो
पर उससे उपर उठ कर हमें उनके हक़ के बारे में सोचना चाहिए
भावनाओ और इंसान कि कदर हो न कि किताबो क़ी
कबीर दास जी कहते है
"नर नारायण रूप है मत समझये देह ||"
हमारा भी ब्लॉग पड़े और मार्गदर्शन करे
http://blondmedia.blogspot.com/2010/10/blog-post_16.
अजी आज भारत मै यह सब होने लगा हे, विधवा विवाह तो आम हे, जो एक तरह से सही भी हे, लेकिन बिना शादी के बच्चा ? तो अलगाव के बाद कोन समभालेगां उस बच्चे को? युरोप के कुछ ही देशो मे सरकार समभांळ लेती हे, क्या भारत मे सरकार समभालेंगी? क्या होगा उस बच्चे के जीवन से, इस लिये हमे सिर्फ़ अच्छी बाते ही इन युरोपियन से लेनी चाहिये, सारी बाते नही, मेरे दोस्त के आठ पिता हे मां एक ही हे.... ऎसी ओरत से कोन भारतिया अपने बच्चे की शादी करेगा??
बिलकुल सहमत हूँ आपकी बात से...
बहुत बड़ा सामाजिक प्रश्न उठाया है। सौभाग्य तब तक है जब तक सारे माता और पिता उतना ही प्यार दें जितना असली देते हैं।
samasya ka nidan jar se karna jaruri hai jisme aisi paristhiti hi nahi aaye.
बहुत अच्छा लगा पढ़कर.
पर नया इंडिया जो है वो इन्हीं दोनों के बीच सामंजस्य बिठाने की कोशिश में है....उनको देखता हूं और खुश होता हूं...लगता है कहीं तो कुछ हो रहा है
pahli baar aaya aapke blog par, aap shayad wardha me hue aayojan ki reporting ki talash me the, maine koshish ki hai sirf aur sirf report likhne ki, aap use is link par dekh sakte hain...
http://sanjeettripathi.blogspot.com/2010/10/blog-post.html
aasha hai report k sandarbh me aapko shankao ka samadhaan ho jayega.....
sadar
@समीर जी, सामंजस्य में ही संतुष्टि है !
@अंजना जी, शायद आप पहली बात पधारी हैं, बहुत बहुत शुक्रिया आपका !!
@अदा जी, ऐसे ही स्नेह बनाए रखें ! काश ! मेरा ये लेख मेरे गाँव के लोग पढ़ें !
@ललित जी, बदलाव आ तो रहा है पर ये निरक्षरता और पिछड़ेपन की वजह से गाँवों तक नहीं पहुच रहा , अभी भी बस मेट्रो ही विकसित है , बाकी सब तो बहुत पीछे हैं सिवाय मोबाइल फोन के - वो जरूर घर घर है !
@अरविन्द जी, मेरे हिसाब से मध्यमार्ग नहीं , उचित मार्ग ही उचित है , कभी कभी हमें रुढियों से हटकर वर्तमान हालत के हिसाब से निर्णय लेने चाहिए !
@डॉ साहिबा , विसिट के लिए शुक्रिया !
@वंदना जी, आपने कुछ ही पंक्तियों में बहुत कुछ कह दिया !
@अलोक जी, जरूर आपके ब्लॉग पर आऊंगा !
@भाटिया जी, विधवा विवाह आम है ? अभी नहीं है जी, अभी भी लोग पिछड़े हुए हैं , शायद आप मेट्रो के बात कर रहे हैं , जमीनी हकीकत इतनी खूबसूरत कहाँ हैं ! काश आपकी बात सही हो और लोग एक विधवा को पूरे जीवन जीवन का भार ढोने पर मजबूर ना कर उसे एक नया जीवन देकर जीवन जीने का सुख लेने दें !!
@प्रवीण जी, दोनों पहलुओं पर गौर करें तो मेरा आशय यह था कि हम कट्टर ना बनें तो अच्छा है , कभी कभी प्रक्टिकल निर्णय लेना चाहिए !
@मृदुला जी , कभी कभी अभाग्य से कुछ परिस्थितियां आ जाती हैं जिन पर निर्णय प्रक्टिकल होकर लेना चाहिए
@भुवनेश - नया भारत कहीं पशोपेश में तो नहीं ? क्या दिशा निर्धारित है किधर जाना हैं ? किस भारत की बात कर रहे हों , हमारे यहाँ अभी भी लोग अशिक्षित हैं और विधवा विवाह तो जैसे अभी भी पाप है !
@संजीत त्रिपाठी जी, बहुत शुक्रिया आप आये मेरे ब्लॉग पर , और शुक्रिया वर्धा के बारे में रिपोर्ट के लिए !
आशा है कि आपने मेरा ब्लॉग पढ़ा भी होगा, इन्तजार रहेगा फीडबैक का :)
बात घूमफिरकर दृष्टिकोण पर ही आती है। अगर हम दूसरे के दुख-दर्द को समझ सकते हैं और साथ ही स्थापित मान्यताओं में से कुरीतियों को हटाने का साहस रखते हैं तभी देश-काल की सीमाओं से उठ सकेंगे। वर्ना - अयातुल्ला खोमेनी के लिये क्या तेहरान क्या पेरिस?
@Anurag जी, कुछ बातें दूरदर्शी नजरिये से देखनी चाहिए जिससे दुष्परिणामों से बचा जा सके !
विजयादशमी की अनन्त शुभकामनाएं.
धन्यवाद वंदना जी, आपको भी शुभकामनायें !
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