बंद की घोषणा क्या हो जाए, पार्टी के छुटभैये नेताओं को गुंडागर्दी का जैसे लाइसेंस मिल जाता हो, जबरदस्ती सडकें जाम कराना, दुकानों को बंद कराना जैसे काम नेताओं के बायोडाटा में स्टार जोडने का काम जो करते हैं | भारत में होने वाले बंद जहाँ देश के लिए अव्यवस्था का सबब बनते हैं वहीं नेताओं के लिए ये एक मटरगस्ती का जरिया. इसलिए बंद (भारत में)असहमति की हिंसात्मक अभिव्यक्ति मात्र बन कर रह गए हैं और नेताओं को यही एक कारगर जरिया लगता है असहमति व्यक्त करने का !
पिछली बार भारत यात्रा के दौरान भी एक ऐसे ही बंद का आयोजन था, स्थानीय स्तर के कार्यकर्त्ता सब जुगाड जमा रहे थे न्यूज़ में आने के लिए | हम उस दिन ग्वालियर के पास के एक छोटे से कस्बे में अपने घर पर थे, उसी दिन सुबह कार से ग्वालियर के लिए निकलना था | छोटे कस्बों में एक दूसरे को सब अच्छी तरह से जानते हैं तो कुछ अड़ोसी पड़ोसियों ने जो कि रिश्तेदार भी थे, समझाया कि आज मत जाओ, चलो हमारे साथ बंद के मजे लेने चलो, आप तो बस साइड में बैठ जाना कार में और देखते रहना मजे | कल सबके साथ आपका भी नाम पेपर में आ जाएगा | कुछ को तो पता भी नहीं था कि बंद हो क्यूं रहा है, ये तो शायद किसी को भी नहीं पता था कि बंद करवाने से हल क्या होगा | कुछ बुद्धिजीवी भी थे जो अपनी पार्टी के साथ वफा के चलते हर अपने तर्क से बंद को तर्कसंगत बता रहे थे |
खैर, मैंने उनके साथ जाने की हामी नहीं भरी, हमें कुछ आवश्यक काम भी था ग्वालियर में , नहीं तो हम भी कुछ मजे ले लिए होते बेचारे किसी ‘आम' आदमी को परेशान होते देखके ! मैंने कहा कि हमें तो जाना है , कार कैसे निकलेगी ? तो भाई लोग जो कि बंद को सफल बनाने के लिए कुछ भी करने तैयार थे, पहले तो बोले कि कायिको परेशान होते हो, इहाँ से हम निकलवा देंगे तो कोई मुरैना में रोक लेगा, जगह जगह कोई न कोई रोक ही लेगा …बात तो सही थी, बाद में भाई लोगों ने एक रास्ता बता दिया जहाँ से हम जा सकते थे और कोई रोकने वाले भी कम मिलेंगे और साथ में एक लड़का बिठा दिया जो हर जगह उनका रेफेरेंस देकर हमें ग्वालियर तक पहुंचवा देगा, ग्वालियर हम पहुँच भी गए, कुछ लोग तो बंद होने के नाम से ही डर जाते हैं और वास्तव में उतना विरोध रोड पर नहीं रहता | पर इससे इन नेताओं की दोगली और हमारी अवसरवादी प्रवृत्ति तो सामने आ ही गयी, छोटे स्तर के नेता बंद को सफल सिर्फ और सिर्फ दिखावे के लिए और अपने आकाओं की खुशी के लिए करते हैं और हम जैसे लोग अपनी सुविधा के हिसाब से इनके बुने जाल में ढल जाते हैं, किसी न किसी तरह अपना काम बन जाए बस इस फिराक में पडकर इसके दूरगामी परिणामों के बारे में सोचने की जहमत ही नहीं उठाते | ये नहीं सोचते कि कल के लिए अगर ऐसी जगह फँस गया जहाँ में अजनबी हूँ तो मेरा उस ‘बंद' के दौरान क्या होगा !!
मानसिक रूप से ‘बंद' आपके क्रियाकलापों पर एक विराम तो लगा ही देता है | कुछ लोगों के लिए यह एक बहाना भी हो जाता है, घर पर सोफे में धंसे रहने के लिए :) जो आईटी की कंपनियाँ हैं वो ‘बंद' के दिन तो ऑफिस बंद रखती हैं, पर उसके एवज में शनिवार या इतवार को लोगों को काम करने बुला लेते हैं | तो इससे उनके धंधे पर तो कोई फर्क नहीं पडता पर देश की रेटिंग इससे कहीं न कहीं कम जरूर होती है, और अक्सर मैंने अंग्रेजों को यहाँ हमारे तथाकतित ‘बंद' का मजाक उड़ाते देखा है, क्या जबाब दें ? हम भी कुछ तर्क देते हैं, पर खुद का मन भी ग्लानी से भरा होता है क्यूंकि ‘बंद' का मतलब सिर्फ और सिर्फ विपक्ष की तरफ से सत्ता पक्ष को नीचा दिखाना होता है और इससे खुद को जनता के सामने प्रचारित करने का मौका भी उन्हें मिल जाता है | जब कांग्रेस सत्ता में होगी तो बीजेपी बंद रखेगी किसी नीति के सम्पादन पर (बहस करने के बजाय) और जब बीजेपी सत्ता में आएगी तो बीजेपी भी वही करेगी जो कांग्रेस सत्ता में होने पर कर रही होती, पर इस समय चूंकि कांग्रेस विपक्ष में हैं; वो तोडफोड और अव्यवस्था फैलाएगी, इस तरह ये सिक्वेल चलता रहता है और देश बदनाम होता रहता है |
जब हम विकसित होना चाहते हों, विदेशों की नक़ल पर आधुनिक बनना चाहते हों और अपने ढाँचे को विश्व स्तर का बनाना चाहने का सपना रखते हों तो क्या असहमति की ये हिंसक अभिव्यक्ति ‘बंद' ये सब क्रियान्वयन होने में हमें मदद कर पायेगी ?? मैंने भारत में होने वाले ज्यादातर बन्दों को हिंसक होते ही देखा है और उसमें पिसते हैं हम सब लोग !
बहुत पहले एक कहानी “श्रद्धांजलि“ लिखी थी (नीचे पढ़ें ) बंद के वीभत्स रूप पर, भगवान करे ऐसा किसी के साथ ना हो, पर अगर बंद होते रहे तो ऐसा होने का शक हमेशा दिमाग में बना रहेगा !!-
श्रद्धांजलिगली में आज अजीब तरह का सन्नाटा छाया हुआ था, हर कोई स्तब्ध था. घटना ही ऐसी रोंगटे खड़े करने वाली थी. सोने से पहले मूला के छोटे लडके मुरारी ने सुनहरे कल के सपने देखे थे, वो जब अपना ठेला लगाकर शाम को घर लौटा तो उसकी बहन कमला ने भाई को पानी देते हुआ कहा की कल तो मेरा दिन है !! रखाबंधन है, मेरा भाई मेरे लिए क्या ला रहा है ? मुरारी बहुत खुश हुआ और तपाक से बोला की इस बार कुछ नही दूँगा तेरे को... और मन ही मन हँस रहा था, क्यूंकि उसने मन में कुछ सोच रखा था. उसका धंधा आजकल कुछ कम हो रहा था, लोग नए नए बने मल्टीप्लेक्स बाजारों में ज्यादा जा रहे थे. सोचा कल सुबह जल्दी जागकर कुछ स्पेशल ऑफर अपने ठेले पर लगाऊंगा; जिससे कुछ ज्यादा भीड़ जुट सके, कई तरह के आईडिया उसने सोचे. सुबह जल्दी जागा, उसको परवाह नही कि क्या हो रहा है बाहरी दुनिया में, जल्दी से नहा धोकर अपने ठेले को लेकर उसमें सारा चाट का सामान रखने लगा, उसने सोचा कि कोई आवाज नहीं हो...नहीँ तो कमला उठ जायेगी, वो तो आज इसलिए ही इतना आनंदित है की रात को जब घर आएगा अपनी बहन के चहरे पर प्यारी सी मुस्कान देखेगा. सब कुछ सामान्य सा ही था, आवारा कुत्ते घर के सामने पहरेदारी कर रहे थे, शर्मा जी ढूध लेने जा रहे थे, अभी कुछ लोगो के लिए बिस्तर पर और नीद लेने का टाइम था, पर मूला के घर में लोग इतना नही सो सकते थे, एक दिन भी अगर समय से अपने काम पर अगर वो नही जाते तो दूसरे दिन का खर्च कैसे चलेगा और ऊपर से कमर तोड़ती हुई महंगाई , उन लोगो के लिए सुकून नही था जीवन में, चाहे कोई भी मौसम हो, काम तो करना ही था. मुरारी 10th में तो सक्सेना सर के लडके के बराबर अंक लाया था, अगर उसको प्रैक्टिकल में थोड़े और नम्बर मिले होते तो स्कूल में वही टॉप करता, लेकिन आगे वो नही पढ़ सका, उसने ठेले पर अपने पिता का हाथ बटाना शुरू कर दिया, उसको ठेला तो जैसे विरासत में मिला था. कुछ दिनों बाद मुरारी का ठेला पूरे कस्बे में मशहूर हो गया था और कई कई बार तो सुबह का निकला हुआ वह देर रात तक अपनी दूकान बंद कर पाता. लोग उसके नाम से उसको जानने लगे थे. लोगो को लगता की उसने चाट इसलिए महँगी की क्यूंकि वह मशहूर हो गया है, पर उसके दाम बढाने के पीछे तो कमर तोडती महंगाई थी. कड़ी मेहनत के बाद कुछ कर्ज चुकाने में सफल हो पाया था. मूला बहुत खुश था कि उसके लडके ने उसका काम बढिया तरीके से संभाल रखा है. एक बाप को इसके सिवाय और क्या चाहिए कि उसका बेटा उसके परों पर खड़ा हो गया है. सब कुछ ठीक चल रहा था. पर जैसे कहते है की दिन के बाद रात और छाँव के बाद धूप जरूर आती है, इस गरीब घर की खुशियों के लिए भी ऐसा कोई तूफान जैसे इंतजार कर रहा हो. मुरारी के पास इतना समय नही था की वह रात को टीवी पर समाचार देख सके या फिर रियलिटी शो का लुत्फ उठा सके, उसके लिए तो उसके रोज के ग्राहक और चाट खाने वाले ही सब कुछ थे. उसकी बाहरी दुनिया उस कस्बे तक ही सीमित थी. गीत गुनगुनाते हुए अपने ठेले को लेकर वह चौराहे की और बढ़ रहा था. आज उसे बाजार की सड़को पर रोज वाल्क के लिए आने वाले गुप्ता जी और शर्मा जी की जोड़ी नही दिखाई दी, सोचा की कही बाहर गए होंगे या फिर सोते रह गए होंगे, ऐसा सोचते सोचते उसने अपना स्टोव बाहर निकाला और उसमें हवा भरने लगा. कुछ आवारा कुत्ते ठेले के पास उसका सामान खाने की कोशिश करते उसके पहले ही उसने डेला उठाकर उनको भगाया. आज उसको अपनी सारी उपलब्धियाँ याद आ रहीं थी, वो सोच रहा था की क्यों मेरे मन में ये सारी बातें आज आ रही है. बचपन, उसकी माँ की असहनीय अवस्था और फिर असमय मौत सब कुछ जैसे उसकी आँखों के सामने से गुजर रहा हो, और फिर अचानक से सोचता की मैं क्यों ये सब याद कर रहा हूँ ?? आज उसने कुछ स्पेशल मिठाई बनाई थी जो वह हर ५ रुपये के चाट पर फ्री देने वाला था, सोच रहा था की आज की सारी कमाई मेरी बहन के लिए होगी. वो उसके लिए आज सायकिल लाने की सोच रहा था, मूला ने एक दिन सायकिल की वजह से कमला को बहुत डांटा था और फिर वो सहम कर छत पर चली गई थी. उसके सपनों में वो सायकिल पर जा रही थी और अपने आप को परी समझ रही थी, बडबडा रही थी की देखो आज मेरे भाई ने सायकिल दिलवा दी , उसके सपने और बुदबुदाहट से मुरारी की नीद खुली और उसने उसको बोला सोने दे, सुबह उठना है मुझे. वह उस दिन की बात को उसी रात भूल गया था पर आज उसे वो सब याद आया और सोचा की रात को ठेले की कमाई को लेकर और कुछ और मिलाकर सायकिल लूँगा. यही सब सोचते सोचते एक - डेढ़ घंठा कब निकल गया, पता ही ना चला. आज बाजार में उतनी चहल पहल नही थी. जैसे ही सूरज की किरणों ने उजाला बिखेरा, मुरारी भी आशान्वित होकर खड़ा हो गया की ग्राहकों के आने का टाइम हो चला. कुछ देर में ग्राहक तो नही पर कुछ कुरते पजामे वाले लोग आए और बोले, तेरे को पता नही आज बंद है और तुने दूकान खोल ली, कुछ ज्यादा ही अपने आप को हीरो समझ रहा है ये, इस तरह से उन लोगो ने उल्टा सीधा बोला और उसको धमका कर आगे बढ़ गए. उसने सोचा की कोई गुंडे लोग लग रहे है, मुझे इनको नजरअंदाज कर देना चाहिए. और वह फिर से अपने काम में लग गया. इस बार फिर से कुछ और कुरते पजामे वाले लोग आए पर कुछ दूसरी पार्टी के लग रहे थे, उन्होंने उसका उत्साह बढाया और बोले की तुम हो सही नागरिक जो ऐसे में अपनी दूकान खोलकर बैठे हो . उन लोगो के कुछ पोहा खाया और आगे बढ़ लिए. मोरारी थोड़ा आशंकित हुआ और सोचा की बात क्या है, लग रहा है गुंडों के दो गुट उन आवारा कुत्तो की तरह घूम रहे है, सोचा की घर वापस चला जाए और फिर उसे अपनी बहन याद आई और उसने सोचा की नही आज तो मैं कहीं नही जाने वाला. एक आशा के साथ वह वहीं ग्राहकों के इंतजार मैं खड़ा रहा. इस तरह से पसोपेश मैं कुछ सुबह के १०:३० बज गए थे. इतने मैं एक लड़का चाट खाने आया. मुरारी उसको चाट बना ही रहा था की कुछ लोग नारे लगाते हुए निकले की 'गरीबो की पार्टी कैसी हो, ... जैसी हो". फिर बोले की शान्ति से आप दुकाने बंद कर ले नही तो हमारे कार्यकर्ता आयेंगे और बंद करा देंगे. मुरारी तो जैसे अब हर चेतावनी नजरअंदाज ही करता जा रहा था, क्यों न करे, उसके मन मैं कुछ सुनहरे सपने जो पल रहे थे. मुरारी का उद्देश्य था अपने पेट का पालन और घरवालो को खुशियाँ देना, जबकि उन नारे चिल्लाने वालों का तथाकथित लक्ष्य गरीबो की पार्टी को बंद के जरिये सफल बनाना था. इतने मैं ही कुछ लोगो में जो दूसरी पार्टी के थे, धक्का मुक्की होने लगी और एक चिल्लाया , मारो सालो को, छोडना मत, इससे अच्छा मौका नही मिलेगा .... लाठिया बाहर आ गई और शान्ति का वो मोर्चा हिंसक रूप लेने लगा, किसी ने बन्दूक निकाली और हवा मैं फायर किया, मुरारी ने ठेला वही छोड़ा और भागने लगा, पुलिस भी कहीं इक्का दुक्का दर्शक बनी घूम रही थी, पुलिस पर भी पत्थर बरसने लगे और तभी पुलिस को आँसू गैस छोड़नी पड़ी , इतने में ही किसी ने एक और गोली चलाई और वो लगी भागते हुए मोरारी को… ...और ऐसे कई मुरारी इस तरह बंद का शिकार बने. |