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शुक्रवार, 11 जून 2010

ब्लॉग्गिंग : सर्वश्रेष्ट ब्लॉगर और सर्वाधिक पाठकों की कस्स्मकस का गणित वारेन बफेट के पन्नों से

कल जब फ्लाईट में बैठा हजारों फीट की ऊंचाई पर उड़ रहा था, तभी एक पुस्तक  मैं मान्यनीय वारेन बफेट के बारे में पड़ रहा था. कुछ ही पन्ने पढ़े थे, पर जो निष्कर्ष निकल रहे थे उन पन्नों से वो बहुत हद तक जिंदगी और ब्लॉग्गिंग की दुनिया में चल रहे उहापोह से काफी हद तक मेल खा रहे थे ...

जैसे कौन है सर्वश्रेष्ट ब्लॉगर :
वारेन बफेट अमेरिका के जाने माने अरबपति है जिन्होंने अपना पैसा स्टोक्स में इन्वेस्टमेंट के जरये कमाया. बहुत ही सरल और साफ जीवन जीने वाले इंसान हैं और अंको के महारथी हैं.  महारथी बनने से पहले उन्होंने कुछ अपने पिता से सीखा और बहुत कुछ अपने गुरु बेंजामिन ग्राहम से सीखा. दोनों ने मिलकर साथ साथ एक कंपनी भी चलाई, पर अंत में वारेन साहब लम्बी रेस के घोड़े निकले और अभी तक दौड़ में हर किसी से आगे है.  तो ब्लॉग्गिंग में आप बहुत दिनों से हैं,  या पहले ब्लॉगर हैं, उससे आपकी सर्वश्रेष्ठता साबित नहीं होती,  हो सकता है की आपसे ही कुछ सीखकर मैं और भी अच्छा लिखने लगूं.  ब्लॉग्गिंग में अच्छा होने के लिए आपको जमकर पढ़ना पड़ेगा और थोडा रचनात्मक भी होना पड़ेगा.  अच्छा और आकर्षक कंटेंट ही आपको आगे ले जाएगा.   तो इधर सीनियर / जूनियर  और पहले मैं और आप का झगडा बंद करके अपनी मौलिकता पर ध्यान दिया जाए तो सही रहेगा.  वैसे भी ब्लॉग तो आपकी डायरी है, आपके स्वभाव या जानकारी का दर्पण है इसलिए इसमें तुलना कैसी ...हर किसी का अपना तरीका और हर किसी का अपना अद्वितीय भाव होता है जो आपको इधर दिखेगा.  तो लिखो जो मन कहे...!!  पर भावों पर अनुशाशन रख कर !!

कैसे अधिक से अधिक पाठक आयें....
जब वारेन बफेट साहब  कंपनी खरीद और बेच रहे थे उस समय कई बार ऐसा टाइम आया जब उनको इन्स्योरेन्स बिज़नस के लिए काफी चुनौती मिल रही थी और सस्ते प्रीमियम वाली कंपनियों से.  पर उन्होंने ध्यान गढ़ाये रखा अपने अच्छे कस्टमर बेस पर और कुछ सालों बाद वो सस्ती कंपनी बंद हो गयीं और वारेन साहब अब तक हैं . 
मेरा मानना है की आप अपने चुनिन्दा पाठको से यात्रा जारी रखें, ऐसा होने से आपको सुधरने का टाइम भी मिलता रहेगा. कम लोग पाठक होंगे तो ज्यादा रूबरू होकर दिल से लोग कमेन्ट करेंगे और ऐसे लोगों के हिसाब से आप जो सोचते है वो मौलिक लिख भी पायेंगे. और धीरे धीरे आपके कंटेंट के सहारे आप इस बौद्धिक समूह का दायरा धीरे धीरे बढ़ाते जायेंगे.  कुल मिलकर ब्लॉग को अपना दर्पण मानें तो संतुष्टि और सफलता दोनों आपके पास होंगे.  बहुत तर्क वितर्क इस विषय पर किये जा सकते हैं इसलिए इस गणित को यहीं बंद करता हूँ.

फ्लाईट तो भौतिक उड़ान भर रही थी, इधर मन तो हर वक़्त ही उड़ता रहता है और हमें बुरे भले , स्वर्ग नरक, धूप छाँव की सैर एक पल में करा देता है.  कुछ भाव कविता संग्रह पर उड़ेले हैं -

मन रे,
ओ भँवरे
तू घूमे फिरे
सोचे विचारे
क्या क्या करे ...


ओ भँवरे
मस्ताने
क्या तेरे कहने
कैसे कहूं तुझे रुकने
कैसे रोकूँ तुझे बहने


ओ भँवरे
तेरी कभी ऊँची और कभी ओछी उड़ान
बिना किसी थकान
नापे ये सारा जहाँन


मन रे
ओ भँवरे ....


एक महिला हमारे बगल की सीट पर बैठी बैठी बार बार अपनी तनिक सी स्कर्ट को नीचे ऊपर खींचे जा रहीं थी,  खुद भी कितना असहज महसूस कर रहीं होंगी ऐसे कपड़ों में, फिर भी पहनना है बस.  एक हाथ में किताब, और दूसरे में बीयर का ग्लास,  और फिर ऊपर से कपड़ों की असहजता ....कितना परिश्रम बिना बात के !!  महिलाओं का अपमान या फिर छोटे कपड़ों पर सेंसर करने की मेरी कोई मंसा नहीं है पर शायद मुझे लगता है की हम वो पहनते  हैं जिसमें हम आकर्षक लगें और पहनने में सहज हो, ढीलाढाला न हो इत्यादि इत्यादि ....शायद वो सुश्री भी उस कपडे को फिर न पहनें ...! छोटे कपडे किसको अच्छे नहीं लगते पर एक अनुशाशन में!!  यही ब्लॉग्गिंग का हाल है ..आकर्षक और अच्छे के चक्कर में ऐसा न छापें जिससे खुद भी असहज महसूस करें. थोड़ी देर पाठक भले ही आ जायें पर फिर आप पानी की बुलबुले ही रह जाओगे.  इसलिए ज्यादा पाठको के बारे में ना सोचें तो बेहतर होगा! 

अपने भावो के साथ साथ हिंदी को भी आगे बढ़ाना है हमें और अपनी रचनात्मक प्रव्रत्ति को भी...तो चलो इस अभियान में सही गणित और खुद की सहजता का प्रयोग करें .....