अरुंधती रॉय ने जो कश्मीर में या देश के अन्य हिस्सों में जाकर बयान दिए हैं, अवश्य ही वे देश के स्वाभिमान के लिए, देश की एकता के लिए और संप्रुभता के लिए उचित नहीं हैं, कभी कभी उनके विचारों से अपरिपक्वता और प्रचार पाने की मंशा झलकती है ! ये मीडिया में आकर अपने बयानों से देशद्रोह कर रही हैं, और इनको गिरफ्तार करने का बीड़ा विपक्ष भाजपा ने सशक्त रूप से उठाया है जिस पर एक और स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार तो दूसरी तरफ इस मौलिक अधिकार की मर्यादा के पहलुओं के बैनर तले एक बहस चल रही है !
अब अगर दूसरे पहलुओं पर नजर दौडाएं तो मुझे नेट खंगालने की जरूरत नहीं हैं देखिये इस देश में कैसे देश के स्वाभिमान, देश की एकता और संप्रुभता का मजाक नेता और लाल फीताशाही उडाती है पर बस सुगबुगाहट होकर रह जाती है - कभी कुछ नहीं होता -
१. राजीव गाँधी बोफोर्स और स्विस बैंक खातों में काला धन जमा करने के बाद भी पोस्टर बॉय बने घूमते हैं - यहाँ तक कि उन्हें देश के लिए बलिदान होने वाला एक शहीद बोला जाता है
२. कलमाडी देश के स्वाभिमान और गर्व को तार तार कर हजारों करोड रुपये डकार जाते हैं
३. दिग्विजय सिंह १० साल के शासन में मध्यप्रदेश को कर्ज के कुएं में धकेल जाते हैं और आज कांग्रेस में वरिष्ट का दर्जा पाये हुए हैं
४. भाजपा, कांग्रेस, भ्रष्ट मधु कोड़ा और शिबू सोरेन को आगे बढाती है क्या ये देश के खजाने को बर्बाद कर देशद्रोह नहीं कर रहे ?
५. कर्नाटक में बेल्लारी खदान के मालिकों को भाजपा शरण दिए हुए हैं और प्रखर वक्ता सुषमा स्वराज भी उनके पक्षधर हैं
६. मायावती, मुलायम और लालू दलितों के नाम पर देश को बर्बाद करने पर तुले हैं
७. शिवराज सिंह ग्रहमंत्री रहते हुए हर मोर्चे पर असफल रहे - क्या उनका पोस्ट मोरटेम हुआ ?
८. मध्यप्रदेश, बिहार , राजस्थान , उत्तरप्रदेश के राजनीतिक लीडर इन उत्तर भारतीय राज्यों को तमाम संसाधनों के होते हुए भी दक्षिण की तरह, चंद्रबाबू नायडू की तरह विकसित नहीं बना सके - क्या ये जेल नहीं जाने चाहिए ?
९. करूणानिधि और उनका परिवार, मुलायम से लेकर पासवान तक कैसे मध्यमवर्ग परिवार से अरबपति बने
१०. १९८४ के दंगो में सिख समुदाय को आर्थिक, भावनात्मक, और शारीरिक चोट, नुकसान के जिम्मेदार क्या देशद्रोही नहीं हैं ?
ऐसे हजारों बिंदु गिनाए जा सकते हैं जिन पर गौर करने पर अरुंधती रॉय के साथ साथ और भी बहुत लोग भी सजा के हकदार हैं !!
अरुंधती रॉय को जरूर ही गैरजिम्मेदाराना बयानों की सजा मिलनी चाहिए जिससे स्वतन्त्रता की अभिव्यक्ति का दुरूपयोग ना हो और देश की अखंडता पर कोई प्रश्नचिन्ह ना लग पाये !! गिलानी महाशय के साथ कुर्सी पर बैठने से पहले काश रॉय मैडम ने ये लेख पड़ा होता - अखंड भारत!
आपकी क्या राय है इस बारे में ?? इस विषय पर सार्थक बहस और एक निर्णय की जरूरत अनिवार्य सी लगती है !
21 टिप्पणियां:
स्वतन्त्रता की अभिव्यक्ति का दुरूपयोग ना हो और देश की अखंडता पर कोई प्रश्नचिन्ह ना लग पाये !
-बस, यही जरुरी है..बाकी तो मुद्दे अलग अलग हैं...गिनाने लगोगे तो किताब कम पड़ेगी.
देशद्रोह/गद्दारी/भ्रष्टाचार/कानून का उलंघन/अधिकारों का दुरुपयोग/ ...जाने कितनी श्रेणियाँ अलग अलग केसों से भरी हुई हैं.
हरि कथा की तरह ये कथा भी अनंत है। अरुंधति राय का कश्मीर पर दिया गया बयान प्रलाप के अलावा कुछ और नहीं है। अच्छा लिख लेने भर से, कोई सम्मानित पुरस्कार मिल जाने भर से किसी को ऐसा हक नहीं मिल जाता कि वो अपने देश के साथ द्रोह कर ले। आपने जो मुद्दे गिनवाये हैं, सभी वाजिब हैं और इस मामले में सभी राज्नैतिक दलों के ऐजेंडे एक जैसे ही हैं, कार्यान्वयन का तरीका अलग हो सकता है।
बड़े गहरे प्रश्नचिन्ह उठाये हैं आपने।
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की कोई लक्ष्मण रेखा तो होनी ही चाहिए ..वैसे अरुंधती ने एक करारी चोट की है !
आपके बाकी के बिन्दुओं से सहमत
आपका बहुत शुक्रिया जो आप मेरे ब्लॉग पर आकर चर्चा में शामिल हुए ! मैंने आपके तर्कों के कुछ जवाब देने कि कोशिश कि है !
मुझे भी लगता है अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की कोई लक्ष्मण रेखा तो होनी ही चाहिए
आपका अखंड भारत !! लेख बहुत विचारणीय लगा ...
इन सब बिमारियो की एक ही इलाज हेकोई हिटलर जेसा आये ओर इन सब बिमारियो को जड से ही खत्म कर दे, दुसरा कोई इलाज नही
स्वतन्त्रता की अभिव्यक्ति का दुरूपयोग ना हो और देश की अखंडता पर कोई प्रश्नचिन्ह ना लग पाये !
काश इतना ही समझ लिया जाता ..
आपकी बात वाजिब है. आभिव्यक्ति कि स्वतंत्रता से ज्यादा जरुरी है देश की अखंडता.. बाकी देश का प्रबुद्ध वर्ग राजनीति से जितना दूर भागेगा देश के नेता इसका कबाड़ा करते रहेंगे.
जहाँ पूरे कुँए में ही भाँग पडी हो तो वहाँ किसी एक को दोषों को गिनना भी कहाँ तक जायज है.....
आप इसलिए उनको देशद्रोही बोल रहे हैं क्योंकि उन्होंने देश के खिलाफ ब्यान दिए हैं? ये तो भाई गलत बात है.
उन्होंने अपनी वाक्-स्वतंत्रता (Freedom of Speech) का उपयोग किया है. बुरा न मानिए पर मुझे इसमें कुछ गलत नहीं दिखा.
उन्होंने जो बोला. वो आप या मैं (या फिर हमारे देश की अधिकतर जनता) नहीं सुनना पसंद करेंगे. उन्होंने हमारे विचारो से हट कर बोला है. ये बात में मानूंगा. लेकिन, मुझे कोई क़ानून भंग होता नहीं दिखा.
Freedom of Speech तो है न हमारे देश में.. या फिर वो "खट्टा मीठा" के गाने वाली बात हो गए.. "यहाँ पर बोलने की आजादी तो है. पर बोलने के बाद आजादी नहीं है" ?
में उनके विचारो से सहमत होयुं या न होयुं. पर में इस बात से सहमत जरूर हूँ के उन्होंने क़ानून में रहा कर बोला है जो बोला है. अगर हमें उनकी बात पसंद नहीं आती तो क़ानून हमें पूरी आजादी देता है के हम उसके खिलाफ बोले. जैसा की इधर बोल रहे हैं.
यहाँ तो डाल ही पूरी काली है, किस किस को रोयें. देखते हैं सरकार क्या करती है? वही होगा जो दूसरे देश को बेचने वालों के साथ हुआ करता है.. टाय टाये
ये देश कैसे चल रह है इसका भगवान ही मालिक है
आप ने पूरी पोल पट्टी खोल दी है
जिस हमाम में सब नंगे हों वहां हर नंगा दूसरे का ही उदाहरण सामने रखेगा| लेकिन इस देश पर हक सिर्फ इन नंगों का नहीं है| देश के सीधे सच्चे नागरिक कल चुप थे, आज चुप हैं इसका मतलब यह नहीं है की वे हमेशा चुप रहेंगे| कहीं न कहीं से तो आरम्भ करना ही पडेगा.
पहले तो सभी का बहुत बहुत धन्यवाद इस ज्वलंत मुद्दे पर बहस के लिए !
जहाँ एक और भवदीप ने स्वतंत्रता की अभिव्यक्ति के सहारे रॉय मैडम को सही ठहराने की कोशिश की है वही अन्य सभी लोगों ने एक मत से अरुंधती के गैर जिम्मेदाराना रवैये के साथ साथ नेताओं, मीडिया और अन्य खुले आम घूम रहे लोगों पर भी अंकुश लगाने पर भी जोर दिया !
मंसूर अली हाशमी जी ने मेल से कहा -
उसका 'गीला', 'नी' लगे, 'गंदा' उन्हें !
'अंधी' 'रुत' है, दोस्तों अब क्या करे?
कैसी आज़ादी उन्हें दरकार है,
अपने ही जो देश को रुसवा करे !!
-मंसूर अली हाश्मी
http://aatm-manthan.com
@समीर जी - सही कहा कि किताबें भी कम पड़ जाएँ अगर गिनाने पड़ जाए गुनाह ! पर जरूरी है कि हम अरुंधती के साथ अन्य गुनाहगारों को खुला ना छोडें !
@मौसम कौन - धन्यवाद बहस में भाग लेकर अपने विचार देने के लिए !
@अरविन्द जी - अरुंधती ने करारी चोट की है या फिर एक प्रचार पाया है - क्या कश्मीर भारत से अलग होकर टिक पायेगा ? क्या आजादी ही कश्मीर का समाधान है ? मेरे हिसाब से अरुंधती जी को और परिपक्व होने की जरूरत है - अधजल गगरी छलकत जाय - वाला उदहारण पेश किया है उन्होंने !!
@कोरल जी, आपने पर्यावरण का बहुत ही ज्वलंत मुद्दा उठाया था !
@राज भाटिया जी, हिटलर तानाशाही और निराशा का प्रतीक है, हिटलर जैसे लोग शोर्ट टर्म के लिए तो फोर्मुला लगते हैं पर जनता को उन्होंने स्वार्थ के लिए इतिहास में कभी खुश नहीं रखा !
@शिखा जी, धन्यवाद बहस में भाग लेने के लिए आपका !
@मुकेश, आपने बहुत महत्वपूर्ण बात कही है कि जब तक प्रबुद्ध वर्ग राजनीती से दूर भागेगा डर के तब तब नेता लोग जनता को पीसते ही रहेंगे !
@पंडित वत्स जी और अनुराग जी, आपने बिलकुल सही कहा कि यहाँ तो भाँग पूरे कुएं में पड़ी है या हमाम में सारे नंगे हैं - ऐसे में किसी एक पर उंगली उठाकर बाकियों को छोड़ देना ठीक नहीं !
@भवदीप, आपने बात आंशिक रूप से सही कही है , क्या अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता के साथ एक मर्यादित आचरण की जरूरत नहीं ? क्या कुछ भी कहकर हिंसा भडकाना भी अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता है ? फिर नियमों और कानूनों की क्या जरूरत जब अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता से देशद्रोह की बातें भी की जा सकती हैं ?
पहली बात.. मैंने रॉय मैडम को सही नहीं बोला. मैंने बोला के तुम और हम उनके विचारो से सहमत नहीं हैं. पर उनको अपने विचार रखने की पूरी स्वंत्रता है.
दूसरी बात. अगर उनको बोलने का मकसद हिंसा भड़काना होता तो Sedition के अंतर्गत उनको गिरफ्तार करना बनता था. उन्होंने जो बोला उस से न तो हिंसा भड़की न ही ऐसा कुछ करना उनका मकसद था.
तो संछेप में फिर से बोलूँगा के. मैडम ने जो बोला उस से हम सहमत हो या न हों... पर उन्होंने क़ानून में रहा कर बोला .तुमको और हमको उनकी बात जमी नहीं तो हमें भी पूरा हक है उनके विपरीत बोलना का.
आज सब अपने अपने अधिकारों का दुरूपयोग कर रहे हैं .. और आम जनता एक नेता , एक पार्टी का पक्ष लेकर दूसरे से लड रही है .. सबको गलत काम करनेवालों के विरूद्ध एकजुट हो जाना चाहिए !!
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