हम भारतीय उत्सव मनाने के बड़े शौक़ीन होते हैं, शादी का जश्न हो या फिर पुरुस्कार वितरण का मंच, हर जगह दो चीजें जरूर प्रभावी रहती हैं - एक तो जगमग रौशनी और हिन्दी फिल्मों के गाने और दूसरा अंग्रेजी में वार्तालाप करते लोग !
अमेरिका में सामान्यतः लोग मंदिरों में मिलते हैं या फिर घरों में पौटलक के दौरान एक दूसरे से मिलते हैं, जब मिलेंगे तो अभिवादन से लेकर हर चर्चा में अंग्रेजी हावी रहती है, चलो एक बहाना हो सकता है विभिन्न क्षेत्रों से आये लोग एक कॉमन भाषा समझते हैं इसलिए चलो अंग्रेजी को ही तरजीह दी जाए ! मंदिरों में सांस्कृतिक कार्यक्रम के दौरान हर चीज अंग्रेजी में ही बोली जायेगी पर सब थिरकते या कला का प्रदर्शन हिंदी में ही या हिंदी गानों पर ही करते दिखेंगे. अभी हाल ही में जब निकुंज का मंच से पहला कार्यक्रम था तो तकरीबन ३०-३५ विभिन्न तरह के कार्यक्रम प्रस्तुत किये गए और ९८ प्रतिशत हिंदी में ही थे, बाकी २ प्रतिशत में वाध्य यन्त्र इत्यादि के कार्यक्रम थे जिसको किसी भाषा के मोहताज होने की आवश्यकता नहीं है, हालांकि इस मंदिर में ५० प्रतिशत से भी अधिक लोग दक्षिण भारत से आते हैं पर हिंदी गानों की लोकप्रियता सबको एक सूत्र में बांध देती है, पर एक गौर करने वाली बात रहती है कि जब स्टेज पर किसी को बुलाया जाने वाला हो या किसी नृत्य या कला की व्याख्या मंच संचालक कर रहा हो तब हिंदी के शब्द उनके मुंह पर क्यूं नहीं आते ? इतना असमंजस क्यों उस समय हिंदी बोलने में ? तब विभिन्न क्षेत्र से आये लोगों का हवाला दे अंग्रेजी ही क्यूं होटों पर आती है ?
हमारे यहाँ पास में ही हिंदू स्वयंसेवक संघ की एक शाखा हर रविवार को लगती है, एक दिन परिवार सहित इस आशा के साथ मैं भी गया के अब नियमित हर रविवार को आया करूँगा जिससे बच्चे भी कुछ अलग सीख सकेंगे और संस्कृति के पास रहने के एक और मौका हाथ से नहीं जाएगा. ये शाखा यहाँ बहुत सारे कार्यक्रमों का संचालन छोटे छोटे स्तर पर कर स्वयंसेवकों को सार्थक कार्य में हाथ बंटाने के एक अवसर देती है और बच्चों के लिए भी पठन और अध्ययन की व्यवस्था है पर यहाँ भी अंग्रेजी बीच में आ गयी, हर कोई अंग्रेजी में ही परिचय से लेकर योग और धर्म की शिक्षा और कक्षा लेता दिखा, जैसे हम हिंदी को भी तोड़ मरोड़ कर हिंदी में घुसाने की कोशिश कर रहे हों , वही हिंदी में संचालन का असमंजस यहाँ भी दिखा !!
ये तो रही अमेरिका में रह रहे लोगों की बात !
अब अगर मैं हिंदुस्तान की बात करूँ तो वहाँ भी कार्यक्रमों के संचालन में हिंदी बोलने में बड़ा संकोच दिखाई देता है, जैसे बॉलीवुड के हर पुरुस्कार वितरण समारोह में संचालन अंग्रेजी में ही होगा, हिंदी फिल्मो के पुरुस्कार वितरण में क्या हिंदी किसी की समझ में नहीं आती ? या हिंदी बोलने से कार्यक्रम की महत्ता घट जायेगी या फिर क्या अंग्रेजी में बोलना समाज में आपके स्तर को ऊँचा दिखाता है ? जो भाषा मुंबई को इतना व्यवसाय दे रही है क्या उसको लोग समझते नहीं, जब हम ही इतनी असमंजस में है तो आगे आने वाली पीढ़ी तो हिंदी के बारे में और भी ज्यादा संशय में रहेगी !!
शायद इसलिए ही हिंदी केवल (symbolic) राजभाषा बन कर रह गयी है, राष्ट्रभाषा का सपना अगर असंभव नहीं तो असमंजस भरा जरूर लगता है !! हम शायद भूल गए कि …
15 टिप्पणियां:
मैने भी हर तरफ यही हाल देखा है। हमारे लोग ध्यान नहीं मेडीटेट करने में यक़ीन रखते हैं। जिनकी मातृभाषा मनिपुरी, या गारो हो उनकी बात अलग है मगर हिन्दीभाषी भी अंग्रेज़ी ही बोलते दिखते हैं भले ही टूटी फ़ूटी और हास्यास्पद हो।
अनुराग जी एक बात और, ये हाल सिर्फ हिन्दी भाषियों का ही है , गुरुद्वारे में लोग पंजाबी में बात करते दिखेंगे , मराठी मानुस भी मराठी में बात करते दिखते हैं! हम हिन्दी भाषी कुछ ज्यादा ही flexible होते हैं, या फिर अंग्रेजी का प्रकोप है जो लीले जा रहा है भाषा की विराशत को ?
आप एकदम सही कह रहे हैं। आश्चर्य तो फिल्म उद्योग पर होता है जब उनके सारे ही कार्यक्रम अंग्रेजी में होते हैं। खाते हिन्दी की हैं और गाते अंग्रेजी की हैं। पता नहीं क्या मानसिकता है?
जाट पहेली- 24 का सही जवाब
http://chorikablog.blogspot.com/2010/11/24.html
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ताऊ पहेली - 100 का सही जवाब
http://chorikablog.blogspot.com/2010/11/100.html
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भारत प्रशन मंच - १९ का सही जवाब
http://chorikablog.blogspot.com/2010/11/blog-post_13.html
... sundar post ... behatreen !
एक बार तो झोंक में एक व्यक्ति से यह सोच कर अंग्रेजी में बात करने लगा कि उन्हें हिन्दी नहीं आती होगी। बाद में पता लगा कि वह हिन्दी भाषी है। पहले ही प्रयास कर लिया होता यह जानने का तो अंग्रेजी बोलने और समझने में पसीना न बहाना होता।
हिन्दी बोलने में हमें कई बार इसलिए भी शर्म आती है की हमें ठीक से भाषा नहीं आती ,जबकि हम अंगरेजी में क्या गलतियाँ कर रहे होते हैं हमें पता नहीं रहती ....
बाबू मोशाय बोलें बंगला ,मराठी मानुष मराठी ..........मगर हम इसलिए नहीं बोलते हिन्दी की यह हमें हीनता का बोध करती है हम इसे 'गोबर पट्टी की भासा' मानते हैं -हमें अपना मनोबल और हिन्दी का स्टार ऊंचा करना होगा .....अब कोई अटल क्यों हिन्दी बोलने में हिचकेगा !
जब आत्मीयता बढ़ती है तो अंग्रेज़ी जाती रहती है
खेद है कि अमरीका में बसे दक्षिण भारतीय भी ऐसा ही व्यवहार करते हैं. वैसे भारत में कोई गंभीर समस्या नहीं दिखती. उत्तर भारत में मंच सञ्चालन हिंदी में ही पाया है. मुंबई में सडकों पर बोली जाने वाली भाषा भी मुम्बैय्या हिंदी ही तो है. हमें तो आभास हो रहा है कि केवल हिंदी ही एक भाषा है जिसके प्रचार/प्रसार के लिए इतने अधिक लोग प्रयासरत हैं. अब दूसरे क्षेत्रीय लोग भी चौकन्ने होने लगे हैं. आखिर अस्तित्व का प्रश्न जो ठैरा. हिंदी में दम है, वह अपनी जगह बनाएगा ही. टेंसन न लें.
आपकी पोस्ट और उसमें विश्लेषण बहुत जोरदार है
@अरविन्द जी, ठीक से भाषा नहीं आती है तो बोलने से अभ्यास करने से ही तो परिपक्व होगी नहीं तो और भी भूल जायेंगे
काजल कुमार जी, सही बात कही है, असली अभिव्यक्ति , आत्मीय अभिव्यक्ति तो मात्रभाषा में ही संभव है !
PN Subramanian जी, आपकी बात से चलो कुछ तो राहत है, वैसे टीवी पर तो मुझे हिन्दी का पतन ही होता दिखता है , हम तो भारत से बाहर भारत का दर्शन टीवी और इन्टरनेट पर ही करते हैं ...
@प्रवीण जी, आपके व्यंग्य में दम है :)
अंग्रेगी को जो सम्मान प्राप्त है वो हिंदी हो नहीं. आज हिंदी अपनों के बीच में ही बेगानी हो गयी, क्योकि बिना अंग्रेगी पड़े आज इस देश मे कोई जॉब नहीं है. लोग सोंच रहे है की आज अगर अपने बच्चो को अंग्रेगी माध्यम से शिक्षा नहीं दी तो उसे नौकरी मिलना मुश्किल है. इससे अंग्रेजी का महत्व बढ रहा है....... आपका प्रस्तुति बेहतरीन है. हमे शर्म छोड़कर हिंदी मे बात करनी चाहिए.
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