कुछ लोग कहते हैं कि शिकागो की राजनीती इतनी काम्प्लेक्स है जिसमें साधारण आदमी का डेमोक्रटिक या रिपब्लिक पार्टी में आगे बढ़ना बहुत ही दुष्कर है, इसलिए भी इसको विंडी शहर कहा जाता है ! ओबामा भी इस राजनीतिक पुश्त से ही निकले हैं! विंडी शहर के ओबामा अगले सप्ताह भारत दौरे पर हैं, देखते हैं भारत के धुआंधार नेताओं के सामने ये कैसे टिक पाते हैं !! ओबामा पिछले ३२ साल में ऐसे पहले राष्ट्रपति हैं जो अपने पहले ही कार्यकाल में भारत यात्रा पर आ रहे हैं, इससे भारत की विश्व स्तर पर आर्थिक और कूटनीतिक तौर पर बढ़ रही शक्ति का अहसास तो लग ही रहा हैं !
ओबामा मार्टिन लूथर किंग जूनियर और महात्मा गाँधी को अपना प्रेरणा श्रोत मानते हैं और ऐसे में उनके लिए ये यात्रा व्यक्तिगत रूप से उनके जीवन के लिए बहुत अहम है. वो गाँधी की समाधि पर जाकर खुद को अपने प्रेरणाश्रोत के पास अनुभव करने के पल का बेसब्री से इन्तजार कर रहे होंगे, जबकि अमेरिका में उनकी लोकप्रियता का ग्राफ दिनोंदिन नीचे जा रहा है और कल हुए चुनाव में विपक्षी पार्टी ने house of representative पर फिर से कब्ज़ा कर लिया है, ऐसे में गाँधी से सत्य और सतत प्रयास की सीख ओबामा के लिए इस समय अति महत्वपूर्ण है!
नीचे दिया गया ग्राफ अमेरिका और भारत की GDP growth में तुलना दर्शाता है जो मैंने विश्व बैंक की वेबसाइट से डाटा लेकर बनाया है, इससे स्पष्ट है कि भारत प्रगति की दर में अमेरिका से बहुत आगे है, बस डर है ग्राफ के नीचे ऊपर होने की दर से, ग्राफ में देखे तो भारत की सकल घरेलु उत्पाद की दर में उतार चढाव एक स्थिर दिशा में न होकर ऊपर नीचे तेज गति से हो रहा है, जो कि अस्थिरता का सूचक है.
कुछ डाटा मुझे संयुक्त राष्ट्र की वेबसाइट पर भी मिला उससे नीचे वाला ग्राफ बनाया गया है , ये ग्राफ हाल के ही वर्षों में भारत और अमेरिका के सकल घरेलू उत्पाद की तुलना करता है -
मैंने विश्व बैंक के आकंडो को थोडा और खंगाला और कुछ ग्राफ यहाँ विश्लेषण के लिए प्रस्तुत कर रहा हूँ -
आश्चर्यजनक ढंग से खेती में सक्रिय रूप से रोजगार में लगे लोगों कि संख्या में पिछले सालों की तुलना में इजाफा हुआ है और अब ये संख्या २६ करोड हैं जो कि १९८० में सिर्फ १८ करोड के लगभग थी, ये संख्या कृषि, मछलीपालन, मुर्गीपालन, मधुमक्खी पालन इत्यादी में लगे लोगों की संख्या दर्शाती है -
अब एक नजर भारत में उर्जा की खपत और पैदावार के ऊपर डाली जाए :
इस ग्राफ में सबसे नीचे वाली ग्राफ लाइन गौर करने लायक है जो कि कुल बिजली उत्पादन में से न्यूक्लीयर श्रोतों से बिजली के उत्पादन के प्रतिशत को दर्शाती है, ये प्रतिशत १९७१ में १.८ प्रतिशत था, जो कि २००७ में २.०८ प्रतिशत हो पाया है, ये बहुत ही धीमी प्रगति है और मुझे लग रहा है ओबामा - मनमोहन इस ग्राफ लाइन के प्रतिशत को बढाने की दिशा में कुछ कदम बढायेंगे. नीचे वाला ग्राफ विभिन्न श्रोतों से बिजली उत्पादन के प्रतिशत को और अधिक स्पष्ट रूप से दर्शाता है -
भारत को अभी आने वाले २० वर्षों तक तो कम से कम उच्च तकनीक के लिए अमेरिका, रसिया और यूरोप पर निर्भर रहना पड़ेगा क्यूंकि हम अपने सकल घरेलू उत्पाद का बहुत कम अनुसंधानों पर खर्च करते हैं, जबकि चीन इस मामले में बहुत आगे है! देखिये ये ग्राफ -
ओबामा की इस यात्रा को लेकर कुछ प्रश्न आ रहे हैं दिमाग में -
१. क्या ओबामा कश्मीर का राग अलाप कर भारत की नाराजगी का कारण बनेंगे ? चीन में जाकर भारत को एक बार नाराज कर चुके ओबामा शायद ही कश्मीर के प्रथकतावादियों से मिलेंगे !
२. क्या परमाणु संधि पर और और बातें होंगीं ?
३. क्या ओबामा भारत को परमाणु अप्रसार के लिए बने समूह में शामिल होने और ऐसी संधियों पर हस्ताक्षर करने के लिए मजबूर करेंगे ?
४. क्या ओबामा खुलकर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के विस्तार में भारत का समर्थन करेंगे ?
५. देखते हैं कि आतंकवाद पर भारत को अमेरिका क्या भासण देता है ?
६. पाकिस्तान पर ओबामा की राय क्या सिर्फ भारत को खुश करने वाली होगी ? क्यूंकि अभी तक असल में तो ये २ साल में पाकिस्तान के खिलाफ कुछ कर नहीं पाये हैं, हाँ हर साल कई बिलियन डॉलर पाकिस्तान को ओबामा भी अन्य अमेरिकन राष्ट्रपतियों की तरह भेज रहे हैं.
आशा करते हैं कि भारत और अमेरिका के रिश्तों में ओबामा एक स्फूर्ति भरा परिवर्तन लायेंगे, आपकी क्या राय है ?
ग्राफ श्रोत : डाटा विश्व बैंक और संयुक्त राष्ट्र की वेबसाइट से लेकर लेखक ने खुद ही विभिन्न तरीकों से विश्लेष्णात्मक ग्राफ तैयार किये हैं
5 टिप्पणियां:
अच्छे आकडे प्रस्तुत किये हैं आपने लेकिन एक बात तो तय है की लोकतंत्र ना तो अमेरिका में अब जिन्दा है और भारत में तो लोकतंत्र एक भयानक त्राशदी जैसा हो गया है | ओबामा की भारत यात्रा कोमनवेल्थ और आदर्श घोटालों से इस देश की जनता का ध्यान और उनके रोष को भटकाने और खयाली तथा कागजी विकाश के लोलीपोप चूसने को इस देश के लोगों को प्रेरित करने के सिवा कुछ भी नहीं करेगा ...जहाँ तक मानवता के विकाश और सही मायने में सामाजिक परिवेश में सुधार का प्रश्न है इस दिशा में ओबामा की यात्रा से सामाजिक असमानता की भयावहता के और भयावह और खतरनाक होने की पूरी संभावना है ......इस देश के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह इतने काबिल हैं की इस देश में पनबिजली की अपार और असीमित संभावनाओं पे उनका ध्यान नहीं जाता है लेकिन अपेक्षा कृत महंगे और मानवता के लिए खतरनाक परमाणु उर्जा से बिजली पैदा करने में रुचि ले रहें हैं ...दरअसल ये रूचि देश और समाज हित में नहीं बल्कि बड़े घोटाले के जरिये मनमोहन सिंह,सोनिया गाँधी एंड पार्टी के समुचित विकाश की रूचि है .......इस देश में कोई भी विकाश जनहित में हो ही नहीं सकता इसका उदाहरण आप इससे ले सकतें हैं की हर जिले और हर मंत्रालय का वेबसाइट को बनाने और उसके सञ्चालन पर अड्बों रूपये का खर्चा आता है लेकिन उसपे कोई भी जानकारी उपडेट नहीं होती...जरा सोचिये इसकी जिम्मेवारी जनता की है या इस निकम्मे प्रधानमंत्री की जिम्मेवारी है...? उसी तरह परमाणु बिजली घर भी बनेंगे लेकिन उसका उपयोग जनता को लूटने और उसके पैसों को अपनी बैंक खतों और गोदामों में सिफ्ट करने के लिए किया जायेगा और जनता बेचारी भूखे मरने को मजबूर की मजबूर ही रहेगी क्योकि इतने काबिल प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति जो है उनके देश के ........मिडिया तो अगले तीनदिन उस देश के राष्ट्रपति के तलवे चाटने में गुजारेगी जिसदेश ने उसके इमानदार राष्ट्रपति श्री कलाम साहब के सुरक्षा जाँच के लिए उनके कपडे तक उतरवा लिए थे........ इस चौथे खम्भे ने तो लोकतंत्र के तीनों खम्भों में घुन लगाने का काम किया है.....
इस बंदर बांट मे कुछ नही होने वाला, ओर अमेरिका ईस्ट ईडिया की तरह से एक कपनई ही बना कर जायेगा भारत मे, यह अपने बम पटाखे बेच कर जायेगा, ओबामा गाधी का पुजारी हे तो इस मै बडी बात क्या हे,सारे काग्रेसी भी तो इसी बापू के पुजारी हे, बाकी बात मै honesty project democracy जी से सहमत हुं, यह मामा हमारा कुछ भला नही करने वाला,
अरबी घोड़े को सम्हालने के लिये सवार भी योग्य चाहिये, नहीं तो खच्चर की चाल चलने लगता गै अरबी घोड़ा।
"ओबामा मार्टिन लूथर किंग जूनियर और महात्मा गाँधी को अपना प्रेरणा श्रोत मानते हैं और ऐसे में उनके लिए ये यात्रा व्यक्तिगत रूप से उनके जीवन के लिए बहुत अहम है. वो गाँधी की समाधि पर जाकर खुद को अपने प्रेरणाश्रोत के पास अनुभव करने के पल का बेसब्री से इन्तजार कर रहे होंगे, जबकि अमेरिका में उनकी लोकप्रियता का ग्राफ दिनोंदिन नीचे जा रहा है और कल हुए चुनाव में विपक्षी पार्टी ने house of representative पर फिर से कब्ज़ा कर लिया है, ऐसे में गाँधी से सत्य और सतत प्रयास की सीख ओबामा के लिए इस समय अति महत्वपूर्ण है!"
यह सही तथ्य है कि ओबामा ने महसूस किया है मार्टिन लूथर और गांधी को, किन्तु एक सच यह भी है कि ओबामा और हमारे देश के सफ़ेद पोश में यह एक समानता है दोनों महसूसते हैं गांधी को मगर करते वाही जो उनकी फितरत में शामिल होता है ! ओबामा की अग्नि परीक्षा वहीँ असफल हो जाती है जब वह पाकिस्तान और भारत को एक ही तराजू पर तौलने का प्रयास करते हैं अन्य अमेरिकी राष्ट्रपतियों की तरह...... वैसे आपका विश्लेषण अत्यंत सार्थक और सकारात्मक है , साथ ही इत्मीनान से पढ़ने लायक विश्वसनीय सामग्री भी ! बहुत अच्छा लगा आपका यह सारगर्भित विश्लेषण !
बहुत जबरदस्त विश्लेषण कर डाला भाई..उत्तम!! अब बारी विचार की:
१. क्या ओबामा कश्मीर का राग अलाप कर भारत की नाराजगी का कारण बनेंगे ? चीन में जाकर भारत को एक बार नाराज कर चुके ओबामा शायद ही कश्मीर के प्रथकतावादियों से मिलेंगे !
न मिलेंगे, न ज्यादा कुछ बोलेंगे.
२. क्या परमाणु संधि पर और और बातें होंगीं ?
नहीं..काफी हो चुकी.
३. क्या ओबामा भारत को परमाणु अप्रसार के लिए बने समूह में शामिल होने और ऐसी संधियों पर हस्ताक्षर करने के लिए मजबूर करेंगे ?
इन्डायरेक्टली जरुर करेंगे.
४. क्या ओबामा खुलकर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के विस्तार में भारत का समर्थन करेंगे ?
नहीं, सिर्फ आश्वासन देंगे.
५. देखते हैं कि आतंकवाद पर भारत को अमेरिका क्या भासण देता है ?
इस दिशा में ठोस कदम उठाने का और साथ देने का वादा करेंगे, बिना यह बताये कि ठोस कदम क्या होंगे.
६. पाकिस्तान पर ओबामा की राय क्या सिर्फ भारत को खुश करने वाली होगी ? क्यूंकि अभी तक असल में तो ये २ साल में पाकिस्तान के खिलाफ कुछ कर नहीं पाये हैं, हाँ हर साल कई बिलियन डॉलर पाकिस्तान को ओबामा भी अन्य अमेरिकन राष्ट्रपतियों की तरह भेज रहे हैं
इस ओर भी हाथी के दांत खाने के कुछ और और दिखाने के कुछ और ही आखिर में साबित होना है.
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