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मंगलवार, 9 नवंबर 2010

अमेरिकन बाबू बेचे जात है ….

 

पिछले लेख में ओबामा की भारत यात्रा के कुछ पहलुओं के बारे में मैंने विश्लेषण किया था,  ये महत्वपूर्ण आलेख यहाँ पढ़ा जा सकता है -

एक विश्लेषण - ओबामा की भारत यात्रा के परिपेक्ष्य में

अब जबकि अंकल सेम बहुत कुछ बेच कर और हम भावुक भारतियों को लुभा कर चले गये हैं, एक बात पर गौर करना जरूर है जो मैंने उपरोक्त लेख में भी संदर्भित किया था कि भारत को अगर वाकई में विकसित देशों के श्रेणी में खड़ा होना है तो हमें अपनी सकल घरेलु उत्पाद का एक बहुत सारा भाग शोध पर खर्च करना होगा!

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जी ई और बोईंग जैसी कम्पनियाँ ओबामा के साथ बिलियन डॉलर का सामान एकतरफा बेच कर चले गये, जैसे ओबामा भारत से अमेरिका में रोजगार पैदा करने की बात करते हैं उसी तरह हमें भी अमेरिका से डील डन करते समय इस तरह की शर्तें रखना चाहिए के हमें सामान भारत में ही बना कर दीजिए ! इससे ये बड़ी बड़ी कम्पनियाँ कम से कम कुछ पैसा शोध पर भी भारत में खर्च करेंगी और उससे अप्रत्यक्ष रूप से आगे आने वाले वर्षों में भारत को ही फायदा होगा !  आई टी के क्षेत्र में ऐसा हो रहा है, अब ये सब अन्य क्षेत्रों में भी होना चाहिए. अगर एक आई टी  क्षेत्र में हमारी सक्रियता के जरिये इतने रोजगार, प्रतिष्पर्धा और सम्पन्नता आयी है तो सोचिये के अगर अन्य क्षेत्रों में भी ऐसा हो तो भारत कहाँ से कहाँ होगा !

अभी हम विशिष्ट तकनीक के लिए पूरी तरह से विदेशों पर निर्भर हैं , रक्षा बजट से लेकर उर्जा बजट तक देश का ५० प्रतिशत से ज्यादा पैसा विदेशों की झोली में चला जाता है ….क्या बिना आत्मनिर्भर हुए हम विकसित हो सकते हैं ?

पिछले आलेख में राज भाटिया जी ने बहुत अच्छा प्रश्न उठाया था -

राज भाटिय़ा जी ने कहा था … “इस बंदर बांट मे कुछ नही होने वाला, ओर अमेरिका ईस्ट ईडिया की तरह से एक कपनई ही बना कर जायेगा भारत मे, यह अपने बम पटाखे बेच कर जायेगा, ओबामा गाधी का पुजारी हे तो इस मै बडी बात क्या हे,सारे काग्रेसी भी तो इसी बापू के पुजारी हे, बाकी बात मै honesty project democracy जी से सहमत हुं, यह मामा हमारा कुछ भला नही करने वाला, “

रवीन्द्र प्रभात जी भी कुछ ऐसी ही व्यथा रखते हैं - “यह सही तथ्य है कि ओबामा ने महसूस किया है मार्टिन लूथर और गांधी को, किन्तु एक सच यह भी है कि ओबामा और हमारे देश के सफ़ेद पोश में यह एक समानता है दोनों महसूसते हैं गांधी को मगर करते वाही जो उनकी फितरत में शामिल होता है ! ओबामा की अग्नि परीक्षा वहीँ असफल हो जाती है जब वह पाकिस्तान और भारत को एक ही तराजू पर तौलने का प्रयास करते हैं अन्य अमेरिकी राष्ट्रपतियों की तरह. …”

वहीं जय कुमार झा भी बहुत झल्लाए दिखे…”अच्छे आकडे प्रस्तुत किये हैं आपने लेकिन एक बात तो तय है की लोकतंत्र ना तो अमेरिका में अब जिन्दा है और भारत में तो लोकतंत्र एक भयानक त्राशदी जैसा हो गया है | ओबामा की भारत यात्रा कोमनवेल्थ और आदर्श घोटालों से इस देश की जनता का ध्यान और उनके रोष को भटकाने और खयाली तथा कागजी विकाश के लोलीपोप चूसने को इस देश के लोगों को प्रेरित करने के सिवा कुछ भी नहीं करेगा ...”

समीर लाल और प्रवीण पाण्डेय भी कुछ ज्यादा आशावान नहीं दिखे ओबामा से !

 

ओबामा की इस यात्रा के अन्त में पीपली लाइव फ़िल्म का गाना सही फिट बैठता है:

 

भैया भारत लगता तो बड़ा संपन्न है

पर विदेशी लोग खाए जात हैं

और अमेरिकन बाबू अपनी चीजें बेचे जात है

जनता बेचारी कान पकडे ही जात है

और कांग्रेस पार्टी राज करे ही जात है

देश को घोटालों से लूटे ही जात है

अमेरिकन बाबू अपनी चीजें बेचे जात है

देश की प्रतिभा पलायन करे ही जात है

और एक प्रतिभा राष्ट्रपति बने ही जात है

पर कुछ करे नहीं पात है

देश गरीब होये जात है

अमेरिकन बाबू अपनी चीजें बेचे जात है

विपक्ष खूब सीटें जीते जात है

पर संसद में ये भी सोये रहत है

बात बात पर धक्का मुक्की होती रहत है

वोट करते में खुद ही बिक जात है

अमेरिकन बाबू अपनी चीजें बेचे जात है ….

 

इस दिवाली पर निकुंज ने यहाँ के एक मंदिर में अपना पहला स्टेज कार्यक्रम किया, चिन्ता की बात थी कि समय की कमी और प्रोग्राम में कुछ परिवर्तन की वजह से उसने तैयारी ज्यादा नहीं कर पायी पर खचाखच भरे सभागार की तालियों ने ये सब संशय दूर कर दिया , सोचा आपके साथ भी बाँट लिया जाए ये गर्वोनुभूति का पल -


शुक्रवार, 5 नवंबर 2010

एक विश्लेषण - ओबामा की भारत यात्रा के परिपेक्ष्य में

 

कुछ लोग कहते हैं कि शिकागो की राजनीती इतनी काम्प्लेक्स है जिसमें साधारण आदमी का डेमोक्रटिक या रिपब्लिक पार्टी में आगे बढ़ना बहुत ही दुष्कर है, इसलिए भी इसको विंडी शहर कहा जाता है !  ओबामा भी इस राजनीतिक पुश्त से ही निकले हैं!  विंडी शहर के ओबामा अगले सप्ताह भारत दौरे पर हैं, देखते हैं भारत के धुआंधार नेताओं के सामने ये कैसे टिक पाते हैं !!  ओबामा पिछले ३२ साल में  ऐसे पहले राष्ट्रपति हैं जो अपने पहले ही कार्यकाल में भारत यात्रा पर आ रहे हैं, इससे भारत की विश्व स्तर पर आर्थिक और कूटनीतिक तौर पर बढ़ रही शक्ति का अहसास तो लग ही रहा हैं !

ओबामा मार्टिन लूथर किंग जूनियर और महात्मा गाँधी को अपना प्रेरणा श्रोत मानते हैं और ऐसे में उनके लिए ये यात्रा व्यक्तिगत रूप से उनके जीवन के लिए बहुत अहम है. वो गाँधी की समाधि पर जाकर खुद को अपने प्रेरणाश्रोत के पास अनुभव करने के पल का बेसब्री से इन्तजार कर रहे होंगे,  जबकि अमेरिका में उनकी लोकप्रियता का ग्राफ दिनोंदिन नीचे जा रहा है और कल हुए चुनाव में विपक्षी पार्टी ने house of representative पर फिर से कब्ज़ा कर लिया है, ऐसे में गाँधी से सत्य और सतत प्रयास की सीख ओबामा के लिए इस समय अति महत्वपूर्ण है!

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नीचे दिया गया ग्राफ अमेरिका और भारत की GDP growth में तुलना दर्शाता है जो मैंने विश्व बैंक की वेबसाइट से डाटा लेकर  बनाया है, इससे स्पष्ट है कि भारत प्रगति की दर में अमेरिका से बहुत आगे है, बस डर है ग्राफ के नीचे ऊपर होने की दर से, ग्राफ में देखे तो भारत की सकल घरेलु उत्पाद की दर में उतार चढाव एक स्थिर दिशा में न होकर ऊपर नीचे तेज गति से हो रहा है, जो कि अस्थिरता का सूचक है.

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कुछ  डाटा मुझे संयुक्त राष्ट्र की वेबसाइट पर भी मिला उससे नीचे वाला ग्राफ बनाया गया है , ये ग्राफ हाल के ही वर्षों में भारत और अमेरिका के सकल घरेलू उत्पाद की तुलना करता है -

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मैंने विश्व बैंक के आकंडो को थोडा और खंगाला और कुछ ग्राफ यहाँ विश्लेषण के लिए प्रस्तुत कर रहा हूँ -

आश्चर्यजनक ढंग से खेती में सक्रिय रूप से रोजगार में लगे लोगों कि संख्या में पिछले सालों की तुलना में इजाफा हुआ है और अब ये संख्या २६ करोड हैं जो कि १९८० में सिर्फ १८ करोड के लगभग थी, ये संख्या कृषि, मछलीपालन, मुर्गीपालन, मधुमक्खी पालन इत्यादी में लगे लोगों की संख्या दर्शाती है -

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अब एक नजर भारत में उर्जा की खपत और पैदावार के ऊपर डाली जाए :

 

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इस ग्राफ में सबसे नीचे वाली ग्राफ लाइन गौर करने लायक है जो कि कुल बिजली उत्पादन में से न्यूक्लीयर श्रोतों से बिजली के उत्पादन के प्रतिशत को दर्शाती है, ये प्रतिशत १९७१ में  १.८ प्रतिशत था, जो कि २००७ में २.०८ प्रतिशत हो पाया है, ये बहुत ही धीमी प्रगति है और मुझे लग रहा है ओबामा - मनमोहन इस ग्राफ लाइन के प्रतिशत को बढाने की दिशा में कुछ कदम बढायेंगे.  नीचे वाला ग्राफ विभिन्न श्रोतों से  बिजली उत्पादन  के प्रतिशत को  और अधिक स्पष्ट रूप से दर्शाता है -

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भारत को अभी आने वाले २० वर्षों तक तो कम से कम उच्च तकनीक के लिए अमेरिका, रसिया और यूरोप पर निर्भर रहना पड़ेगा क्यूंकि हम अपने सकल घरेलू उत्पाद का बहुत कम अनुसंधानों पर खर्च करते हैं, जबकि चीन इस मामले में बहुत आगे है!  देखिये ये ग्राफ -

 

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ओबामा की इस यात्रा को लेकर कुछ प्रश्न आ रहे हैं दिमाग में -

१. क्या ओबामा कश्मीर का राग अलाप कर भारत की नाराजगी का कारण बनेंगे ? चीन में जाकर भारत को एक बार नाराज कर चुके ओबामा शायद ही कश्मीर के प्रथकतावादियों से मिलेंगे !

२. क्या परमाणु संधि पर और और बातें होंगीं ?

३. क्या ओबामा भारत को परमाणु अप्रसार के लिए बने समूह में शामिल होने और ऐसी संधियों पर हस्ताक्षर करने के लिए मजबूर करेंगे ?

४. क्या ओबामा खुलकर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के विस्तार में भारत का समर्थन करेंगे ?

५. देखते हैं कि आतंकवाद पर भारत को अमेरिका क्या भासण देता है ?

६. पाकिस्तान पर ओबामा की राय क्या सिर्फ भारत को खुश करने वाली होगी ? क्यूंकि अभी तक असल में तो ये २ साल में पाकिस्तान के खिलाफ कुछ कर नहीं पाये हैं, हाँ हर साल कई बिलियन डॉलर पाकिस्तान को ओबामा भी अन्य अमेरिकन राष्ट्रपतियों की तरह भेज रहे हैं.

आशा  करते हैं कि भारत और अमेरिका के रिश्तों में ओबामा एक स्फूर्ति भरा परिवर्तन लायेंगे, आपकी क्या राय है ?

 

ग्राफ श्रोत : डाटा विश्व बैंक और संयुक्त राष्ट्र की वेबसाइट से लेकर लेखक ने खुद ही विभिन्न तरीकों से विश्लेष्णात्मक ग्राफ तैयार किये हैं