पिछले सप्ताह मैंने कश्मीर के बारे में अपनी व्यथा की थी, उसी तारतम्य में ही ये लेख है !
ब्लॉग जगत में कई लेख लिखे गये विभिन्न पप्पुओं के असफल होने पर, शायद हम आपस में कीचड़ उछालते-उछालते असल के पप्पू को नजरंदाज कर गये जो वास्तव में असफल हुआ है इस देश के संभालने में। कश्मीर जल रहा है आज, कल तो नहीं जल रहा था, कल से आज तक कि स्थिति में देश को धकेलने का श्रेय निश्चित रूप से कोंग्रेस की सरकार के प्रत्यक्ष मुखिया श्रीमान मनमोहन सिंह जी को जाता है, बौद्धिक रूप से समृद्ध हमारे प्रधानमन्त्री के प्रति मेरी बहुत श्रद्धा थी, पर आवश्यकता से ज्यादा इनका चुप रहना कई चीजों पर भारी पडता दिखाई दे रहा है:
- कश्मीर में भडकने वाला ज्वालामुखी इतना प्रखर हो गया २-३ महीनों में और प्रधानमंत्री चुप ही रहे !
- चीन कई ओर से और कई स्तरों पर हमारी विदेश नीति की धज्जियाँ उडाता रहा और माननीय मनमोहन जी चुप रहे ।
- अमेरिका के बडबोले राष्ट्रपति कुछ भी बोलते रहे पर सिंह साब चुप ही रहे
- माओवादी शेर से सवाशेर हो गये पर प्रधानमंत्री जी कम ही बोले
- आतंकवाद चरम पर होने के बाबजूद भी हमारे प्रधानमन्त्री चुप ही रहे
- गरीब और गरीब होता गया पर इनका अर्थशास्त्र में निपुण होना मेरे गाँव के मूला किसान के कुछ काम नहीं आया, वो आज भी वही कर रहा है , वैसे ही कर रहा है जैसे २० साल पहले कर रहा था ।
- जैसा कि प्रवीण पांडे जी बोल रहे थे कि “खबर पक्की है बुंदेलखंड से गरीब का पलायन बड़े शहरों की ओर जारी है - इससे रेल विभाग का मुनाफा तो बढा है पर…” उभर रही सामाजिक विषमताओं के उपर प्रधानमंत्री कभी नहीं बोले ।
- कॉमन वैल्थ खेल तो एक ताजा उदहारण है रिश्वतखोरी का, हर स्तर पर देश में भ्रष्टाचार बढ़ ही रह है पर ईमानदार प्रधानमंत्री अपने ऑफिस के बाहर कुछ चमत्कार नहीं कर पाये ।
भारत को अमेरिका और चीन के बाद तीसरी महाशक्ति के रूप में देखा जा रहा है और तब हमारे प्रधानमंत्री का आवश्यकता से अधिक चुप रहना कभी कभी विचलित कर देता है और तब और भी उद्वेलन होता है मन में जब इनकी चुप्पी और निर्णय ना लेने से हालत खराब हो रहे हों ।
माओवादी से लेकर पत्थर फैकने वालों के हौसले इतने बुलंद है कि इनको सरकार की शक्तियों का कोई अहसास ही नहीं हैं। भारत को एक ऐसे नेतृत्वा की जरूरत है जो समाजवाद और पूंजीवाद के बीच के रास्ते से देश को आगे बढा सके जिससे और अधिक माओवादी या अल्फा पैदा न हों !
मुद्दे की बात यह है कि प्रधानमंत्री जी आप फैल हो रहे हो - अभी भी समय है कि आप जाग जायें और कुछ ठोस निर्णय लेकर देश को फैल होने से बचाने का कष्ट करें ! आपने अपनी चुप्पी से कई होनहार पप्पुओं को फैल किया है जो अब गलियों और जंगलो में पत्थर और गोली फ़ेंक रहे हैं , समय है इनको नौकरी देने का , निर्णय लेने का ! जिससे इन पप्पुओं की उर्जा सकारात्मक दिशा में लग सके और देश इन गृहयुद्ध के कलहों से बाहर निकल कर अमन - चैन का एक बसेरा बन उभरे - हर और आशा के दीप जल रहे हों - ना कि आग से बसें और गरीबो के घर !
सारे जहाँ से अच्छा हिंदोस्ता हमारा ….गाना गाने के लिए हर युवा उत्सुक हो, ऐसी ऊर्जा इस देश में पैदा करने की उम्मीद मुझे महामहिम से है !! …हाँ भारत की जनता आपको बिना काम किये भी फिर से सरकार में ला देगी पर क्या आप कभी अपने आप को संतुष्टि दे पाओगे ?
7 टिप्पणियां:
यदि हम तीसरे ताकतवर राष्ट्र हैं तो निर्णय लेने असमंजस क्यों?
मेरा भारत महान......
कहीं कुछ भीषण रूप से गड़बड़ है !
Hmara bharat mahan
pappu hamesha paas nahi hota
aabhar
बहुत ही बढ़िया लगा लेख पढ़कर ........
पूरा भारत ही भगवन भरोसे चल रहा है ....
यहाँ भी आये एवं कुछ कहे :-
समझे गायत्री मन्त्र का सही अर्थ
ये केवल हिंदुस्तान में ही हो सकता है कि 10 जनपथ के मुंशियों को लोग 'महामहिम' कहकर पुकार रहे हैं :)
ईमानदार शब्द से मुझे याद आ रही है राजनीति फिल्म के उस ड्रायवर की जो अपने साहब मतलब नेताजी के प्रति पूरी तरह ईमानदार था, मालिक के प्रति सेवा और समर्पण के अलावा इनका दिमाग कुछ करने में लगे तब तो ये कुछ करें...ऐसे कारिंदे हिंदुस्तान में बहुत मिल जाते हैं...
मेरे पड़ौसी की गाड़ी पोंछने-धोने वाला भी बहुत ईमानदार है...
पर वो अपने मालिक के प्रति ईमानदार हो या बेईमान देश, समाज के काम तो उसे नहीं ही आना ना ही वो इस बारे में सोचता है....वो तो गाड़ी ही पोंछेगा और मालिक के पैरों की मालिश करेगा और मालिक के कहने पर उसका टायलेट भी साफ करेगा...दुनिया में चाहे कुछ भी होता रहे उसे मतलब नहीं
बहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
अलाउद्दीन के शासनकाल में सस्ता भारत-2, राजभाषा हिन्दी पर मनोज कुमार की प्रस्तुति, पधारें
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