हिंदी - हमारी मातृ-भाषा, हमारी पहचान
हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने के लिए अपना योगदान दें ! ये हमारे अस्तित्व की प्रतीक और हमारी अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम है !
मंगलवार, 14 सितंबर 2010
पर्यावरण संरक्षण का मजाक
एक छोटा सा प्रोजेक्ट, उसके क्रियान्वयन के लिए ढेरों मीटिंग, और उन सब मीटिंगों में अनगिनत प्रिंटआउट लेकर आते हुए लोग। मीटिंग के अन्त में मिनट तो भेजे ही जायेंगे किसी के द्वारा अतः मीटिंग से बाहर आते ही सारे कागज़ जो प्रिंट किये गये थे, फ़ेंक दिए जाते हैं। फिर एक दस्तावेज (document)जब तक ड्राफ्ट से अपने पहले स्वरुप में पहुंचता है तब तक उसके रिव्यू में ही हजारों प्रिंट की हुई कॉपी खर्च हो जाती है चाहे उस दस्तावेज का फिर कभी उपयोग न हो। एक हलके से प्रोजेक्ट में इस तरह अनगिनत पता नहीं कितने कागज़ और उनको प्रिंट करने में असीम उर्जा खर्च कर दी जाती है।
यह हाल है प्राईवेट कंपनियों का और बड़े बड़े बैंको का जो सरकारी कार्यालयों को अक्षम बोलते है और फिर खुद गो ग्रीन अभियान के राजदूत भी बनते हैं ! बेसुमार उर्जा और पैसा खर्च कर देते हैं हम आईटी के लोग मीटिंग के इन अभियानों में - हाथ में लैपटॉप, डेस्कटॉप,आई फोन, ब्लैकबरी होते हुए भी कितने पेपर बेरहमी से खर्च कर डालते हैं, शायद आईटी और बैंकिंग कंपनियों को फालतू का पर्यावरण संरक्षण का ढकोसला बंद कर देना चाहिए।
एक किसान मिटटी खोदते खोदते तो कभी वर्षा का इंतजार करते करते पसीना बहाता है और फिर भी इतनी मेहनत के बाद कुछ हजार भी कमा ले तो स्वर्ग सा पा लेता है तो एक तरफ हम लोग यहाँ हजारों रुपये एक मील (रात या दिन का एक वक्त का खाना ) में खर्च कर देते हैं फिर भी ये कम्पनियाँ मिलियन और बिलियन में लाभ दिखा देती हैं।
मनुष्य का दिमाग है जो जितना उपयोग कर लिए जाए बस उतना ही लक्ष्मी आसानी से उपलब्ध होने लगती है, पहले ट्रेडिंग (शेयर मार्केट में) फोन से होती थी और फिर इलेक्ट्रोनिक ट्रेडिंग से लाभ का दायरा और गति और तेज हो गयी ! उससे भी आगे इन सबको मात देते हुए अब ट्रेडर सिर्फ बैठकर प्रोग्राम लिखता है और कंप्यूटर हाई फ्रीक्वेंसी ट्रेडिंग के जरिये सेकंड के सौवें भाग में ही करोडो ट्रेड करते हुए - पैसे के सौवे भाग के अंतर में भी करोडों बनाने में सक्षम हो जाता है । चाहे मार्केट गिर रहा हो या फिर बढ़ रहा हो ये हाई फ्रीक्वेंसी ट्रेडिंग हर परिस्थिति में छोटे से अंतर के आधार पर पैसा बनाने में सक्षम होती है और ये सक्षमता मनुष्य के दिमाग से ही मशीनों में संभव हो पाई है। पर किस कीमत पर ?
अल गोर ने पर्यावरण के ऊपर एक फिल्म बनाकर नोबल पुरुष्कार जीत लिया और उस फ़िल्म के प्रोमोसन के कार्यक्रमों में अंधाधुंध बिजली खर्च की गयी उसका क्या ? खैर अमेरिकन लोगों का नोबल पुरुष्कार पर तो पहल हक लगता है, पिछली साल ओबामा भी तो बिना कुछ किये नोबल उड़ा ले गये !
खैर, मेरे तो पिछले दो दिन-रात एक जैसे हो गये हैं, कल सुबह ३:३० बजे उठना पड़ा, सुबह ६ बजे की फ्लाईट जो पकडनी थी, और ७०० मील की दूरी तय करके सुबह ९:३० बजे ऑफिस में था (इस बीच २ टैक्सी और एक हवाई यात्रा की जद्दोजहद शामिल है), रात के ९ बजे तक ऑफिस में ही काम निबटाया और १२ बजे रात को बिस्तर नसीब हुआ। आज भी कुछ ऐसा ही व्यस्त दिन था, पर जिम कुछ वर्जिस करने जा पाया ऑफिस से थोडा जल्दी आकर ! फिर देखा कि लोगों के बहुत सारे शुभकामना सन्देश आये हुए हैं ! शाम को एक इटालियन रेस्तरां में जाकर कुछ तन्हाई मिटाई, दोस्तों के फोन भी आये और बच्चों ने भी मन बहलाया कि डैड जब घर आओगे तब वीक एंड में आपसे केक कटवा लेंगे :) कुल मिलाकर अन्य दिनों जैसा ही व्यस्त सामान्य दिन था - ये १४ सितम्बर भी !
आप सभी का तहेदिल से शुक्रिया - आपके आशीर्वाद और शुभकामनाओं के लिए !!
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
8 टिप्पणियां:
उपयोगी ज्ञानवर्धक आलेख।
राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
काव्य प्रयोजन (भाग-८) कला जीवन के लिए, राजभाषा हिन्दी पर मनोज कुमार की प्रस्तुति, पधारें
फ़िर से जन्म दिन की बधाई जी, बाकी आप के लेख से सहमत है
जन्मदिन की बहुत बहुत बधाईयाँ।
पेपर की बर्बादी, मन खट्टा कर जाती है।
पेपर्स के मिस यूज को लेके मुझे भी बहुत दुःख होता है.आक्रोश है मन मे.
कम्प्यूटर के जमाने मे तो हम अधिक से अधिक पेपर बचा सकते हैं. पर्यावरण के लिए हो हल्ला मचाने वाले सचमुच मे फील्ड मे इतना कुछ नही करते. उन्हें अखबारों मे फ़ोटो वाहवाही,पब्लिसिटी और टेक्स बचाने के सिवा कुछ सारोकार नही इन् सबसे. भई वेरी सिम्पल ..........आप सब,सब,सबने इतने पेड़ लगाए तो वे गए कहाँ? जितना शोर करते हैं उसकी तुलना मे कुछ प्रतिशत 'पेड़' तो कहीं लगे ही होंगे.
आपका जन्मदिन था इन् दिनों ? ओह मैं कैसे चूक गई? माफ कर दो और आओ गले लगा कर तुम्हारा माथा चूम कर कहूँ -'ईश्वर दुनिया की सारी खुशियाँ तुम्हें दे,
राम! भूल जाती हूं कभी कभी,उम्र का असर ही कह लो इसे.पर...तुम उन चंद लोगों मे से हो जिन्हें मन की गहराई से 'लाइक' करती हूं.
लिमिटेड लोग ...हा हा हा क्या करूँ सचमुच ऐसिच हूं मैं.
माफ कर दिया न?जन्मदिन से बहुत पहले सोचा फोन नम्बर लेके (तुम से नही,अपने जासूसों से लेती)तुम्हें 'विश; करूंगी.चौंका दूंगी,पर.......सॉरी
चिंताजनक विषय है,
मेरे ऑफिस में भी पेपर बहुत ख़राब किया जाता है.
यहाँ भी पधारें :-
अकेला कलम...
सुन्दर आलेख है!
--
जन्बमदिन की बहुत-बहुत धाई!
--
दो दिनों तक नेट खराब रहा! आज कुछ ठीक है।
शाम तक सबके यहाँ हाजिरी लगाने का
बहुत प्रभावशाली लेख.
बधाई.
आजकल पेपरलेस ऑफिस के प्रोजेक्ट पर ही काम कर रहा हूँ...चिन्तन बिल्कुल सही किया. आज शाम को बात करते हैं.
एक टिप्पणी भेजें