हिंदी - हमारी मातृ-भाषा, हमारी पहचान

हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने के लिए अपना योगदान दें ! ये हमारे अस्तित्व की प्रतीक और हमारी अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम है !

बुधवार, 29 सितंबर 2010

सहिष्णु – सहनशील - बहुआयामी भारत !!

मन में उद्वेलन है , हर कोई सजग है , उत्सुक है ! बहुराष्ट्रीय कम्पनियों ने अपने कार्यालय कई जगह कल बंद रखने की घोषणा की है, इसके एवज में शनिवार को लोगों को काम पर बुलाया गया है - अयोध्या मसले पर फैसले का दिन है कल ३० सितम्बर को !

मेरे हिसाब से ये फैसला कतई न्यायोचित नहीं होगा, अब तक चले इस कानूनी दांवपेंच में १८ के लगभग जज बदले जा चुके हैं। अगर सबूतों पर जाएँ तो रामचरित मानस जो घर-घर में पढ़ा जाता है  - पर गौर करें तो और किसी सबूत की जरूरत ही नहीं रह जाती , फिर  मन में आता है कि एक समुदाय विशेष को इन ऐतिहासिक सबूतों से क्यों नाराज किया जाए जब पहले से ही आहत है ढाँचे के ढहाये जाने से, सहनशीलता और हर किसी को अपने में समाहित करने की सहिष्णु संस्कृति में पले हम लोग कैसे कोई इमारत गिरा सकते है भले ही हमारे ग्रन्थ और हमारी कथाएँ हमारे तर्कों को अतुल्य बल प्रदान करती हैं और शायद ऐसे ही विचार और सहिष्णुता जज महोदय (यों ) के मन में भी रही होंगी और उनके ऊपर विभिन्न सरकारों और समुदायों का विशेष दखलंदाजी भरा दबाब भी रहा होगा, उनके मन की भावनाएं , ग्लानी और निर्णय से उपजे गंभीर मुद्दे जरूर उनके निर्णय को प्रभावित करेंगे और ऐसे में मैं नहीं मानता कि जो निर्णय होगा वो न्यायोचित होगा ! 

खैर, जो भी हो - समय भी निर्णय का ठीक नहीं,  जब विश्व भारत को राष्ट्र मंडल के खेलों के विशाल आयोजन के लिए परीक्षक बनके देख रहा हो,  जब कई हजारों करोंड़ों रुपये खर्च करके १०-१५ दिन का एक विशाल आयोजन सरकार का ध्यान चाहता हो, वहाँ इस निर्णय से उपजे अवसाद जरूर ही हमारी प्रतिष्ठा को दाग लगा सकते हैं, पर उम्मीद है कि २१ वीं सदी का भारत आगे कि सोचेगा - पीछे की नहीं !

Hindu_Muslim_Bhai_Bhai-Holi-244_big
हम सब एक हैं !!

कल दराल साहब के ब्लॉग पर दिल्ली के राष्ट्र मंडल की तैयारी वाले फोटो देखे , दिल्ली को आधुनिक, और विश्व स्तर की देख मन खिल उठा और यही मन में सोचा कि बस ये सिलसिला चलता ही जाए, और ये चमक १ महीने बाद फीकी न पड़ जाए, जो बना है वो दुरुस्त और दूरगाम रहे !  और फिर आज सुबह यहाँ ‘वाल स्ट्रीट’ जैसे प्रतिष्ठित अखबार के पहले पन्ने पर भारत के आधार अभियान के बारे में बहुत ही विश्लेष्णात्मक लेख पढ़ा तो मन और भी प्रफुल्लित हो गया !  रुपये के चिन्ह से लेकर नागरिकों की पहचान के चिन्ह तो हम बना रहे हैं पर राजनीती के दांव पेंचों में कहीं किसी दिन सहिष्णुता का चिन्ह कभी खो न बैठे, यही डर सा लगा रहता है !

ऑफिस के पास ही एक इटालियन रेस्तरां हैं जहाँ मैं कुछ दिन पहले एक दिन सुबह नाश्ता करने चला गया था,  नाश्ता परोशने वाली महिला कुछ ४०-५० साल की रही होंगी, उन्होंने बढ़िया प्यार से खाना खिलाया , चेहरे पर एक मुस्कान थी ! जब मैं जाने लगा तो मैंने उनकी सेवाओं की तारीफ की तो बोलने लगी कि आप मेरे मेनेजर को मेरी प्रशंशा में कुछ शब्द बोल दीजिए - जिससे मेरी नौकरी और पक्की हो जायेगी ! मैंने मेनेजर के पास जाकर कहा कि इनका व्यवहार और कार्य कुशलता आपके खाने के स्वाद में चार चाँद लगा देती है और इस वजह से में यहाँ नाश्ता करने आता रहूँगा - उसके बाद वो महिला बहुत प्रसन्न हुई ! उस खिले हुए चेहरे के पीछे जो कुछ चिंता की लकीरें उभरी थी वो अब आशा और गर्व बनकर मेरा अभिवादन कर रही थी , पर चूंकि उम्र में वो मेरी माँ जैसी रही होंगी तो मैं भी प्रत्युत्तर में उनको सम्मान और फिर से अक्सर आते रहने की आश दे ऑफिस आ गया !

फिर २-३ सप्ताह हो गये, पर कभी जाना नहीं हुआ उस रेस्तरां में दुबारा ! आज सुबह थोडा काम का बोझ कम था और सुबह नाश्ता नहीं किया देर से जागने की वजह से तो सोचा कि चलो उस रेस्तरां में जाकर ब्रंच ( - नाश्ता और लंच दोनों ) कर लिया जाए !  जब गया तो वहाँ कोई नहीं था , सिर्फ में ही था एक ग्राहक , या मेहमान कुछ भी कहिये । वो महिला मुझे देख बड़ी खुश हुई - बात करती रहीं,  बात करते करते पता चला कि वो पाकिस्तान से हैं ।  और कुछ दो साल पहले ही पाकिस्तान से अमेरिका आयीं थी,  उनकी दो लडकियां है जो १८-१९ साल के लगभग है - खुद रोज ३.३० बजे उठकर न्यू जर्सी से उठाकर ५:३० बजे रेस्तरां में होती है,  कोई और नहीं है घर में , चूंकि होटल में काम करने से कमाई ज्यादा होती नहीं है इसलिए यहाँ रह रही बहन के साथ - जो अब अमेरिकन नागरिक है - जिसने उनको यहाँ स्पोंसर करके बुलाया है - उनके घर में ही दोनों लड़कियों के साथ रहती हैं। रोज यही सुबह से शाम का रूटीन है जिससे लड़कियां का भविष्य संबर सके !  उनके भाई भी यहीं कहीं अमेरिका में रहते है तो वो भी कुछ सहायता करते रहते हैं ।  उस मुस्कान के पीछे कितना संघर्ष और अवसाद छुपा था , घुटन के भी कुछ बिंदु थे पर सफर जारी था । अब मेरी समझ में आया कि ये क्यूँ उस दिन अपनी नौकरी के लिए इतनी चिंतित थीं।  शायद मेरे गृह नगर ग्वालियर से भी उनका कुछ सालो पहले का संबद्ध था - दुनिया कितनी छोटी - गोल और सम्वेदनाओं से भरी हुई है ! हर कोई किसी न किसी उधेड़बुन में लगा ही हुआ है। उनकी अंगरेजी पर पकड़ देखकर लग रहा था कि किसी पढ़े लिखे परिवार से रही होंगी पर किस्मत ने शायद आज इस मोड पर ला खडा किया कि सुबह से शाम तक कुछ चंद डालरों के लिए संघर्ष जारी था - क्यूंकि उसे अपने बच्चों का भविष्य जो श्वाभिमान से रचना है !!

भारत के प्रति श्रद्धा के भाव झलक रहे थे और मेरे प्रति भी - क्यूंकि मैं भारतीय हूँ ! मैं ब्रंच करके निकल ही रहा था कि एक और सज्जन आ गये जो दुबई से थे, ऐसे ही थोड़ी बात हुई - वो भी भारतियों के लिए बड़ा सम्मान दिखा रहे थे ! जब मैंने कहा कि आप अरब लोग तो रईस होते हैं तो वो थोडा खिन्न नजर आया और बोला कि अरब में आयल के खजानों पर कुछ ही लोगों का नियंत्रण है, अगर आपके घर के नीचे आयल का कुआ निकला है तो आपको पता भी नहीं चलेगा कब अंदर ही अंदर पाईप से आयल निकाल लिया, और ज्यादा अगर आप मुँह खोलोगे तो आपके नाक-कान काट डालेंगे ये रईस लोग - यानी धमका देंगे ! कह रहा था वहाँ पर सब चोर है, और कुछ ही लोग है जो फल फूल रहे हैं !  बता रहा था कि मैं बिजली विभाग में काम करता हूँ और रात को अपनी कार को टैक्सी के रूप में चलाता हूँ , और अब अमेरिका घूमने आया हूँ - एक और चिंतिंत मन !  खैर कह रहा था कि भारत के लोग बहुत आ रहे हैं काम करने दुबई में - पर बंगला देशियों ने थोडा माहौल खराब किया हुआ है !

मैंने सोचा कि चलो आज तो वाल स्ट्रीट से लेकर हर जगह देश का ही झंडा दिख दिख रहा है - एक भारतीय को जो देश से दूर है और क्या चाहिए ? सब कुछ मिल गया मुझे तो - बस कल की थोड़ी चिन्ता थी क्यूंकि कल ३० सितम्बर है !!

शनिवार, 25 सितंबर 2010

शीशे के घर !

 

ऑस्ट्रेलिया ओर अमेरिका अपने नागरिकों को दूसरे देशों में जाने के बारे में अलर्ट करते हुए ट्रेवल वार्निंग जारी करते रहते हैं। भारत में जाए तो अमुक अमुक चीजों से सावधान रहे इत्यादी इत्यादी …पर कभी अपने गिरेबान में भी तो झाँक के देखिये भाई लोगो !

अमेरिका में हम अक्सर लुटते रहते हैं उसका क्या ? यहाँ के डॉक्टर जिस हिसाब से फीस वसूल करते हैं उसको कोई हिसाब नहीं, कोई गणित नहीं ! अगर आपने बिल देख लिया, तो आप असमंसज में पड़ जायेंगे कि क्या ये मेरा ही बिल है और अगर आपको वो बिल अपनी जेब से भरना भी पड़े तो बस फिर तो आप गये काम से !

पिछले दिनों जब परिवार के साथ न्यू यार्क से शिकागो वापस जा रहे थे तो बगल की सीट पर एक महिला थी, बच्चों के शोरगुल से बात शुरू होकर भारत पर जा पहुंची। ये महिला की भी ये शिकायत थी कि अमेरिका में चिकित्सा सेवा बड़ी महंगी है, इतनी महँगी कि ये मैडम भारत जाकर डॉक्टर से इलाज कराने जा रही है है, आने जाने का टिकट और भारत में डॉक्टर का खर्चा मिला दिया जाए तो भी अमेरिका से सस्ते में काम हो जाएगा, ओर वो भी भारत के नामी गिरामी अस्पताल या डॉक्टर के पास !  दरअसल इन महिला के दांतों मैं कुछ समस्या थी, पेशे से वैसे एयर होस्टेस थी, पर फिर भी दन्त चिकित्सक का बिल इतना महंगा था कि भारत का रास्ता ही देखना पड़ा !

ये कहानी केवल इस महिला की नहीं हैं, दांतों के इलाज के लिए कई लोग अमेरिका ओर लन्दन से भारत जाते हैं ओर सस्ते में टिकाऊ इलाज करा पैसा बचा कर आते हैं।  ये हालत तब है जब आप यहाँ महंगा से महंगा इन्स्योरेन्स लेकर रखते हैं!

औसतन यहाँ पर लोग महीने का ४००-५०० डॉलर परिवार का एक महीने का इन्स्योरेन्स का प्रीमियम भरते है, आपका एम्प्लोयर भी इतना ही कुछ देता होगा आपके लिए इन इन्स्योरेन्स वालों को ! जब बिल आएगा तो खून की जांच जैसे सरल चिकित्सा के लिए भी सैकड़ों डॉलर कर बिल आयेगा, फिर ये बिल इन्स्योरेन्स कंपनी को जाएगा वो अपना डिस्काउंट लगाकर इसको छोटा करते हैं , उसके बाद वो अपना भाग भरते है ओर शेष आपको भरना होता है, निर्भर करता ही कि आप किस तरह का प्लान लेकर बैठे हो,  अगर आप बेरोजगार है तो बस इन बिलों से लुट ही जायेंगे !

इस बात में कोई दो राय नहीं कि चिकित्सा सेवा का स्तर बहुत ऊँचा है पर इतना बुरा हाल है कि पिछले राष्ट्रपति के चुनाव में चिकित्सा सुधार एक अहम मुद्दा था, और ओबामा पिछले एक साल से अधिक से एक चिकित्सा सेवा सुधार बिल के क्रियान्वयन में एड़ी चोटी का जोर लगाए हुए हैं ! 

वैसे तो यहाँ साल के शुरुआत में इतने सारे इन्स्योरेन्स ले लिए जाते है कि आपकी तनख्वाह का एक बड़ा हिस्सा इन्हीं में खर्च हो जाता है, इस वजह से यहाँ बड़ी बड़ी इन्स्योरेन्स कंपनियों के मुनाफे भी बड़े बड़े होते हैं, वारेन बफ्फेट भी इस काम में घुसे पड़े हैं , इतने फायदे का जो काम है और जब विपदा आती है तो ये कंपनियां इधर उधर कन्नी काटती हुई मिलेंगी , जैसे हरीकेन (चक्रवात) कटरीना में जब पूरा ओरलियन शहर (लुइसियाना राज्य ) बर्बाद हो गया था तब वहाँ कवर कर रही सारी  इन्स्योरेन्स  कंपनियां भाग खड़ी हुई या दिवालिया हो गयीं, गरीब या मध्यम वर्ग को ही हर जगह पिसना पडता है ।

बीमा कि लिस्ट इतनी बड़ी है कि मुझे खुद भी सारे याद नहीं -

  1. स्वास्थ्य
  2. कार 
  3. घर 
  4. दाँत
  5. आँख
  6. घर के सामान का बीमा
  7. जीवन बीमा
  8. कुछ लोग नौकरी जाने का भी बीमा लेते हैं
  9. आकस्मिक अवस्था में सड़क पर या कहीं रिमोट में सहायता का बीमा

इतने सारे

बात दाँतों कि समस्या से शुरू हुई थी, तो ये अंग्रेज महिला भारत में जा रही हैं अपने इलाज के लिए इन्स्योरेन्स   होने के बाबजूद भी । इनको भारत पसंद है अभी तक तो - जब तक पैसा बच रह है इनका !!

मेरी पत्नी को भी २ साल पहले दाँतों में बहुत समस्या हुई थी, काफी रक्त का रसाव होता था, गर्भावस्था में ये समस्या और भी मुश्किल और असहनीय हो जाती है।  डॉक्टर के सारे प्रयास बेकार थे , शायद एक दाँत को अंदर की तरफ से निकालना आवश्यक हो गया था।  इसके लिए डॉक्टर कई तरह के परीक्षण करेगा और विभिन्न प्रकार की दवाइयां भी इस दौरान लेनी पड़ सकती थी जो गर्भावस्था में खाना मन था, इन सारी परेशानियों के बीच किसी ने हमें सलाह दी कि क्यूँ न रामदेव बाबा का दन्त मंजन उपयोग करके देख लो  ! इस दन्त मन्जन से एक-दो दिन में ही जादू दिखाया , सारा रक्त रिसाव बंद और दर्द भी बंद।  उसके बाद कई दिनों तक यही मन्जन उपयोग किया - ये तो जैसे हमारे लिए रामबाण निकला !  बाद में १ साल के बाद जब हम दाँत निकलवाने की अवस्था में थे तो उसका आराम से सफाया करवाया गया ! हमने तो ये सब यहीं कराया था क्योंकि चार लोगों का किराया जोडेंगे तो किसी भी कोण से सस्ता नहीं पड़ेगा !

वैसे भारत से दाँत सही कराकर आये कुछ देसी लोगों का कहना है कि दांतों की फिलिंग कुछ दिनों बाद ही निकलने लगती है ,  जैसे राष्ट्र मंडल खेलों के स्टेडियम की छत झड रही है।  भारत में विश्वसनीय डॉक्टर मिलना बहुत मुश्किल है , खैर यहाँ अमेरिका में भी वही हाल है पर यहाँ पर ऑन लाइन  रेटिंग वगैरह देखकर निर्णय लेने में आसानी रहती है ।

राष्ट्र मंडल खेलों का में कभी भी हिमायती नहीं रहा क्योंकि ये गुलामी के दिनों को याद दिलाते हैं, पर फिर भी जब अब वादा कर दिया है खेल कराने के और जब अब छत या पुल गिर रहे हैं या जर्जर हो रहे हैं तो भारत की रही-सही नाक विश्व विरादरी के सामने कटने का डर सा लग रहा है, यही ईश्वर से प्रार्थना है कि ये खेल शान्ति से संपन्न हो जायें,  कल एक विडियो देख रहा था किरण बेदी जी का - वो बता रही थी कि जुर्म की सजा हो सकता कि जुर्म करने के समय ना मिले पर कभी ना कभी तो जरूर मिलती है, कोई है जो देख रहा है ! शायद यही इन खेलो की तैयारी में गडबड किये हजारों करोड रुपयों की सजा के रूप में कलमाडी और उनकी सेना का हाल है, दिल्ली में बारिश ने जैसे इनकी पोल खोलने और इनको सजा देना के लिए अपना तेजस्वी रूप ले रखा है! और रही सही कसार मीडिया पूरी कर देगी मसाले मिलाकर - शायद मीडिया ने भी अपना हिस्सा खा रखा होगा - इसलिए चुप थी २ सालों से !!

ईश्वर रक्षा करे !! 

गुरुवार, 23 सितंबर 2010

हर पल जगमग !

 

रात की गहराईयाँ जहाँ पर चहल पहल पैदा करती हैं,  रोशनी से जगमग इमारतें, लोगों से भरी हुई सड़क और हर कोण पर फोटो उतारते लोग - न्यूयार्क का टाईम्स स्क्वायर एक स्वप्नलोक जैसा कहूँ या फिल्मों के चमचमाहट वाली दुनिया का जीता जागता स्वरुप !

भारत की भीड़ की याद दिला देता है यहाँ पर लोगों का रेला - हर दिन - हर रात ये स्थान बस लोगों से भरा जागता ही रहता है - यहाँ कभी अँधेरा नहीं होता - जबकि मेरे गाँव में लाईट  साल में गिने चुने दिन ही रहती है - वो भी डिम सी - जिस दिन डी पी या ट्रांसफोर्मर रखा जाता है तब - दिवाली भी दीयों से रोशन होती है आज २१ वी सदी के भारत के उस गाँव में! पर्वावरण की सुरक्षा के लिए रोने वाले अमेरिका ने यहाँ देखिये कितनी उर्जा खर्च कर रखी है !

कुछ फोटो के साथ छोड़ देता हूँ आज आपको - ये ३-४ सप्ताह पहले जब हम न्यू यार्क में टाईम्स स्क्वायर घूमने गये थे - शायद गुरुवार का दिन था – ४२ वीं स्ट्रीट पर स्थित ये चौराहा नुमा रोशानीमय जगह विदेशी सैलानियों से भरी पड़ी रहती है !

family police at times sq we three times sq1 times sq nikunj with police man

मंगलवार, 21 सितंबर 2010

पप्पू फ़ैल हो रहे हो आप …

पिछले सप्ताह मैंने कश्मीर के बारे में अपनी व्यथा की थी,  उसी तारतम्य में ही ये लेख है !

ब्लॉग जगत में कई लेख लिखे गये विभिन्न पप्पुओं के असफल होने पर, शायद हम आपस में कीचड़ उछालते-उछालते असल के पप्पू को नजरंदाज कर गये जो वास्तव में असफल हुआ है इस देश के संभालने में।  कश्मीर जल रहा है आज, कल तो नहीं जल रहा था, कल से आज तक कि स्थिति में देश को धकेलने का श्रेय निश्चित रूप से कोंग्रेस की सरकार के प्रत्यक्ष मुखिया श्रीमान मनमोहन सिंह जी को जाता है, बौद्धिक रूप से समृद्ध हमारे प्रधानमन्त्री के प्रति मेरी बहुत श्रद्धा थी, पर आवश्यकता से ज्यादा इनका चुप रहना कई चीजों पर भारी पडता दिखाई दे रहा है:

  • कश्मीर में भडकने वाला ज्वालामुखी इतना प्रखर हो गया २-३ महीनों में और प्रधानमंत्री चुप ही रहे !
  • चीन कई ओर से और कई स्तरों पर हमारी विदेश नीति की धज्जियाँ उडाता रहा और माननीय मनमोहन जी चुप रहे ।
  • अमेरिका के बडबोले राष्ट्रपति कुछ भी बोलते रहे पर सिंह साब चुप ही रहे
  • माओवादी शेर से सवाशेर हो गये पर प्रधानमंत्री जी कम ही बोले
  • आतंकवाद चरम पर होने के बाबजूद भी हमारे प्रधानमन्त्री चुप ही रहे
  • गरीब और गरीब होता गया पर इनका अर्थशास्त्र में निपुण होना मेरे गाँव के मूला किसान के कुछ काम नहीं आया, वो आज भी वही कर रहा है , वैसे ही कर रहा है जैसे २० साल पहले कर रहा था ।
  • जैसा कि प्रवीण पांडे जी बोल रहे थे कि “खबर पक्की है बुंदेलखंड से गरीब का पलायन बड़े शहरों की ओर जारी है - इससे रेल विभाग का मुनाफा तो बढा है पर…”  उभर रही सामाजिक विषमताओं के उपर प्रधानमंत्री कभी नहीं बोले ।
  • कॉमन वैल्थ खेल तो एक ताजा उदहारण है रिश्वतखोरी का, हर स्तर पर देश में भ्रष्टाचार बढ़ ही रह है पर ईमानदार प्रधानमंत्री अपने ऑफिस के बाहर कुछ चमत्कार नहीं कर पाये ।

imageभारत को अमेरिका और चीन के बाद तीसरी महाशक्ति के रूप में देखा जा रहा है और तब हमारे प्रधानमंत्री का आवश्यकता से अधिक चुप रहना कभी कभी विचलित कर देता है और तब और भी उद्वेलन होता है मन में जब इनकी चुप्पी और निर्णय ना लेने से हालत खराब हो रहे हों ।

माओवादी से लेकर पत्थर फैकने वालों के हौसले इतने बुलंद है कि इनको सरकार की शक्तियों का कोई अहसास ही नहीं हैं।  भारत को एक ऐसे नेतृत्वा की जरूरत है जो समाजवाद और पूंजीवाद के बीच के रास्ते से देश को आगे बढा सके जिससे और अधिक माओवादी या अल्फा पैदा न हों !  

मुद्दे की बात यह है कि प्रधानमंत्री जी आप फैल हो रहे हो - अभी भी समय है कि आप जाग जायें और कुछ ठोस निर्णय लेकर देश को फैल होने से बचाने का कष्ट करें !  आपने अपनी चुप्पी से कई होनहार पप्पुओं को फैल किया है जो अब गलियों और जंगलो में पत्थर और गोली फ़ेंक रहे हैं , समय है इनको नौकरी देने का , निर्णय लेने का ! जिससे इन पप्पुओं की उर्जा सकारात्मक दिशा में लग सके और देश इन गृहयुद्ध के कलहों से बाहर निकल कर अमन - चैन का एक बसेरा बन उभरे - हर और आशा के दीप जल रहे हों - ना कि आग से बसें और गरीबो के घर !

सारे जहाँ से अच्छा हिंदोस्ता हमारा ….गाना गाने के लिए हर युवा उत्सुक हो, ऐसी ऊर्जा इस देश में पैदा करने की उम्मीद मुझे महामहिम से है !! …हाँ भारत की जनता आपको बिना काम किये भी फिर से सरकार में ला देगी पर क्या आप कभी अपने आप को संतुष्टि दे पाओगे ?

शुक्रवार, 17 सितंबर 2010

अखंड भारत !!

जल रहा है कश्मीर, देखने में तो पत्थर फेंके जा रहे हैं पर मंच के पीछे घिनौने राजनीतिक दांव पेंच फेंके जा रहे हैं ।  गरीब लोग जो हर जगह गुमराह और गुमनाम रहते हैं, यहाँ पर भी प्रतिघात के शिकार हैं और दिखावे के लिए  पत्थर फ़ेंक रहे है पर अन्दर ही अन्दर रोटी  की कसक खाई की तरह गहरी  होती जा रही है पर सत्ता और प्रभुसत्ता के गलियारों में बैठे, प्रजातंत्र के आकाओं पर जो २१ वीं सदी के महानायक भारत के कर्णधार बने बैठे हैं और भूमंडलीकरण के युग में भी छद्म साम्प्रदायिकता को परिभाषित करने में ही उलझे हुए हैं , किसी को याद नहीं की यहाँ अमन था कुछ सालों से, किसी को परवाह नहीं उस अमन के बेला को क्षणिक से स्थाई बनाने का  । 

खैर प्रयास कुछ भी, कर लिया जाए अमन यहाँ क्षणिक ही होगा, उसके लिए जिम्मेदार है हमारे देश में साम्प्रदायिकता शब्द का गलत प्रयोग  ।  जब कुछ कठोर निर्णय लेने की बात आती है तो ये शब्द जरूर आड़े आता है और जब चुनाव हों तब तो इस शब्द की छत्रछाया में ही जैसे चुनाव की तपन से शीतलता मिलती है  ।  जब भारत का संविधान बना तब परिस्थितियां बहुत ही अलग थी , हम अधीन थे , और स्वतंत्रता के लिए एक तड़प थी की किसी भी कीमत पर बस मिल जाए और तब जो उस समय समझौते हो सकते थे , हमने किये  ।  पर उस बात को ६० से ज्यादा साल बीत गए हैं और आज हम विश्व के मानचित्र पर एक अलग स्थिति में हैं , आज समय ६० साल आगे आ चुका है , क्या फिर संविधान जो इधर उधर से नक़ल मारा गया था , कुछ संशोधित नहीं हो सकता क्या  ? 
कब तक हम संविधान के उन पहलुओं पर नजर नहीं डालेंगे जिनसे अखंड भारत के अंगों में एक असहजता है , बात भूमंडलीकरण की करने वाले हम लोग अपने ही घर में अलग अलग नियम बना बैठे  ।   

इधर अमेरिका में जब बच्चे शैतानी करते हैं तो उनके टाइम आउट दिया जाता है , बच्चों पर जोर जबरदस्ती या मारपीट के बजाय उनको एकांत में छोड़ दिया जाता है  या फिर एक कमरे में बंद कर कुछ समय तक घर का कोई सदस्य उससे बात नहीं करता , isolation  कर दिया जाता है कुछ देर तक !  पर ये कुछ देर के लिए होता है जिससे उसको समझ आ जाए की बिना बात सुने वो परिवार का सदस्य नहीं रह पायेगा और एकाकीपन कितना बुरा होता है ये दिखाने के लिए  ।   हमने कश्मीर को इतना एकाकीपन दे दिया की अब वो परिवार का सदस्य बनने तैयार ही नहीं, ये एक रोग हो गया उसके लिए अब ।   ऐसा एकाकीपन जहाँ न कोई उद्योग है और ना ही कोई बड़ा औधोगिक घराना वहाँ अपने आप को स्थापित करना चाहता है , हाँ एक उद्योग जरूर है - चरमपंथ का ! जब आप बेरोजगार हों और बच्चे भूख में एक रोटी का टुकड़ा मांग रहे हों तो आप किसी भी नौकरी के एक ब्रेक के लिए पागल हो जाते हैं और तब ये नहीं देखते की क्या अच्छा या बुरा है , तब बस आपको पैसा और बच्चों के मासूम चहरे नजर आते हैं !  

भारत सरकार ने कश्मीर के लिए अनगिनत आर्थिक पैकेज दिए पर सब नेताओं और मुल्लाओं की जेब में गए, हिन्दू पंडित पलायन करते रहे और मुस्लिम बच्चे अपना भविष्य खोते गए , नुकसान हर कश्मीरी को हुआ , हर भारतीय को हुआ और हमारी अखंडता को हुआ , फले फूले तो सिर्फ जो दिल्ली, श्रीनगर के वातानुकूलित कक्षों में बात - श्रीनगर से जम्मू राजधानी बदलते रहे !  डलझील और बर्फ से ढंके खूबसूरत धरा के मनमोहक स्थल सूने पड़े रहे पर श्रीनगर से जम्मू राजधानी मौसम के क्रंदन से शिफ्ट करने वाले कर्णधारों को एक पल भी ये अहसास नहीं हुआ के जनता  उनके व्यवहार से , जम्मू और कश्मीर उनके गैरजिम्मेदाराना इरादों से कितनी क्रंदित और पीड़ित है  ।  जम्मू के पंडित पलायन करते रहे, नरसंहार से पीड़ित होते रहे और सैनिक अपनी बहादुरी के बदले लोगों की गली खाते रहे पर ये नेता हमेशा चुन चुन कर विधान सभा और ससंद तक आते रहे , ये कभी एक ठोस निर्णय नहीं ले पाये, एक ठोस  दृढ दिशा तय नहीं कर पाये , एक पाले में सब बैठकर सर्वहित में कभी सोच ना पाये !  राजा हरीसिंह से लेकर , ऐयाशी फारूक साहब तक , राहुल लाला से लेकर युवा रुबिया सईद तक सब के सब भ्रमित ही रहे , फारूक अब्दुल्ला को केंद्र में मंत्री बनने से ही फुरसत नहीं और अब तो क्रिकेट , मंत्रालय और पार्टी सब कुछ संभाल रहे हैं पर अपनी मात्रभूमि को नहीं संबाल पाये ...क्यूं  ??

ऊपर लिखी पीड़ा का एक ही रोग है , एकाकीपन कश्मीर का और वो आता है धारा ३७० की वजह से ! बाकी भारत के लोग कश्मीर में उद्योग कर नहीं सकते,  फिर वहाँ कैसे विकास हो , क्या बिना रोजगार पैदा किये कभी शांति और अमन की उम्मीद की जा सकती है  ? क्या बिना रोजगार के संसाधन उपलब्ध कराये बिना कभी दिए गए आर्थिक सहायता कारगर हो सकती है ?  नहीं ...कभी नहीं ! 
फिर क्यूं एक ठोस निर्णय नहीं लेते हम इस धारा को समाप्त करने का  ?  ६० साल बाद भी सडांध मार रही इस धारा को क्यों नहीं काट देते जो पूरे शरीर की विषैला कर रही है और हमारी अखंडता के लिए एक चुनौती पैदा कर रही है ?  बहुत हो गया टाइम आउट कश्मीर का , चलो अब बुला लो उनको इधर और हम भी चलें उस जमीन पर इस एक्ट को धाराशायी कर !  फिर देखो - जब उद्योग होंगे , रोजगार होंगे - तब सिर्फ विकास होगा और ये फेंके जा रहे पत्थर लोगों के घरों के कंगूरे बनेंगे ना की गलियों के रोड़े !  फिर युवा फसबूक पर पत्थर फेंकने की गैंग ना बनाकर अपने भविष्य और भारत के भविष्य की बात कर रहे होंगे और तब फारूक भी क्रिकेट और दिल्ली छोड़ शायद श्रीनगर में रहने का मन बना रहे होंगे !   

आशा है की आज नहीं तो कल ये article ३७० ख़त्म होकर  कश्मीर को भारत से जोड़ पायेगा !!  क्यूंकि - सत्यमेव जयते - और आज का सत्य यही है की भारत की अखंडता ही सबसे बड़ी शक्ति है !! 

मंगलवार, 14 सितंबर 2010

पर्यावरण संरक्षण का मजाक

climate_change
एक छोटा सा प्रोजेक्ट,  उसके क्रियान्वयन के लिए ढेरों मीटिंग, और उन सब मीटिंगों में अनगिनत प्रिंटआउट लेकर आते हुए लोग।  मीटिंग के अन्त में मिनट तो भेजे ही जायेंगे किसी के द्वारा अतः मीटिंग से  बाहर आते ही सारे कागज़ जो प्रिंट किये गये थे, फ़ेंक दिए जाते हैं।  फिर एक दस्तावेज (document)जब तक ड्राफ्ट से अपने पहले स्वरुप में पहुंचता है तब तक उसके रिव्यू में ही हजारों प्रिंट की हुई कॉपी खर्च हो जाती है चाहे उस दस्तावेज का फिर कभी उपयोग न हो। एक हलके से प्रोजेक्ट में इस तरह अनगिनत पता नहीं कितने कागज़ और उनको प्रिंट करने में असीम उर्जा खर्च कर दी जाती है। 
यह हाल है प्राईवेट कंपनियों का और बड़े बड़े बैंको का जो सरकारी कार्यालयों को अक्षम बोलते है और फिर खुद गो ग्रीन अभियान के राजदूत भी बनते हैं ! बेसुमार उर्जा और पैसा खर्च कर देते हैं हम आईटी के लोग मीटिंग के इन अभियानों में - हाथ में लैपटॉप, डेस्कटॉप,आई फोन, ब्लैकबरी होते हुए भी कितने पेपर बेरहमी से खर्च कर डालते हैं, शायद आईटी और बैंकिंग कंपनियों को फालतू का पर्यावरण संरक्षण का ढकोसला बंद कर देना चाहिए।
एक किसान मिटटी खोदते खोदते तो कभी वर्षा का इंतजार करते करते पसीना बहाता है और फिर भी इतनी मेहनत के बाद कुछ हजार भी कमा ले तो स्वर्ग सा पा लेता है तो एक तरफ हम लोग यहाँ हजारों रुपये एक मील (रात या दिन का एक वक्त का खाना ) में खर्च कर देते हैं फिर भी ये कम्पनियाँ मिलियन और बिलियन में लाभ दिखा देती हैं।
मनुष्य का दिमाग है जो जितना उपयोग कर लिए जाए बस उतना ही लक्ष्मी आसानी से उपलब्ध होने लगती है, पहले ट्रेडिंग (शेयर मार्केट में)  फोन से होती थी और फिर इलेक्ट्रोनिक ट्रेडिंग से लाभ का दायरा और गति और तेज हो गयी ! उससे भी आगे इन सबको मात देते हुए अब ट्रेडर सिर्फ बैठकर प्रोग्राम लिखता है और कंप्यूटर हाई फ्रीक्वेंसी ट्रेडिंग के जरिये सेकंड के सौवें भाग में ही करोडो ट्रेड करते हुए - पैसे के सौवे भाग के अंतर में भी करोडों बनाने में सक्षम हो जाता है ।  चाहे मार्केट गिर रहा हो या फिर बढ़ रहा हो ये हाई फ्रीक्वेंसी ट्रेडिंग हर परिस्थिति में छोटे से अंतर के आधार पर पैसा बनाने में सक्षम होती है और ये सक्षमता मनुष्य के दिमाग से ही मशीनों में संभव हो पाई है।  पर किस कीमत पर  ?
अल गोर ने पर्यावरण के ऊपर एक फिल्म बनाकर नोबल पुरुष्कार जीत लिया और उस फ़िल्म के प्रोमोसन के कार्यक्रमों में अंधाधुंध बिजली खर्च की गयी उसका क्या  ?  खैर अमेरिकन लोगों का नोबल पुरुष्कार पर तो पहल हक लगता है, पिछली साल ओबामा भी तो बिना कुछ किये नोबल उड़ा ले गये !
खैर, मेरे तो पिछले दो दिन-रात एक जैसे हो गये हैं, कल सुबह ३:३० बजे उठना पड़ा, सुबह ६ बजे की फ्लाईट जो पकडनी थी, और ७०० मील की दूरी तय करके सुबह  ९:३० बजे ऑफिस में था (इस बीच २ टैक्सी और एक हवाई यात्रा की जद्दोजहद शामिल है),  रात के ९ बजे तक ऑफिस में ही काम निबटाया और १२ बजे रात को बिस्तर नसीब हुआ।  आज भी कुछ ऐसा ही व्यस्त दिन था, पर जिम कुछ वर्जिस करने जा पाया ऑफिस से थोडा जल्दी आकर ! फिर देखा कि लोगों के बहुत सारे शुभकामना सन्देश आये हुए हैं !  शाम को एक इटालियन रेस्तरां में जाकर कुछ तन्हाई मिटाई, दोस्तों के फोन भी आये और बच्चों ने भी मन बहलाया कि डैड जब घर आओगे तब वीक एंड में आपसे केक कटवा लेंगे :)  कुल मिलाकर अन्य दिनों जैसा ही व्यस्त सामान्य दिन था - ये १४ सितम्बर भी !
आप सभी का तहेदिल से शुक्रिया - आपके आशीर्वाद और शुभकामनाओं के लिए !!

शुक्रवार, 10 सितंबर 2010

लागी मोहे लेगो लगन

070x070_logo निकुंज को देखा था इनमें संलग्न होते हुए, खोते हुए, उनको एक दूसरे में घण्टों तक समीकरणबद्ध करते करते हर बार एक नया ढांचा बनाते हुए !  और फिर जब उसका एक भाग भी कहीं खो जाता तो झुंझलाते हुए भी देखा है, कभी कभी मैं भी हाथ साफ कर लिया करता।  इस बार का सप्ताहांत बड़ा व्यस्त था पर फिर भी मन मैं आया कुछ बिखरे मोतियों को अनुपात में बिठाने और एक उन्हें एक अर्थ देने का – और इसी प्रयास में शुरू हुआ लेगो प्रेम !

करीब एक घंटा तो हम दोनों को विभिन्न भागों को अलग अलग करने में ही लगा और फिर हम अनवरत अनुशासनबद्ध हो कमरे के दरवाजे को लगा, पुस्तिका में दर्शाये मार्गदर्शन के अनुसार जोडते रहे सैकड़ों प्लास्टिकनुमा मोतियों को उनको एक आकार देने के लिए, जो कुछ देर पहले बिखरे एक कचरा सा लग रहे थे, वही अब क्रमबद्ध जुडकर एक भावार्थ बन गये थे।  मेरे चेहरे पर और मन में एक उल्लास था और उस मेहनत से बनायी सरंचना को सुरक्षित रखने का भूत भी !

बाकायदा इस लेगो सरंचना को सजा कर रखा गया, पता नहीं कितने दिन टिकेगी ये पर ऐसा लगा कि बचपन लौट आया हो और मैंने एक अद्वितीय अधोरचना कर डाली हो,  ये मन इतना पुल्लकित सोफ्टवेयर का आर्किटेक्ट डिजाईन करते नहीं होता !!

lego2

बचपन में मेले से २ रुपये का एक पहिया लाते थे जिसके ऊपर एक कंगुरा सा लगा होता था और वो पहिये के साथ घूमता था, फिर मिटटी से कुछ ट्रेक्टर और अन्य चीजें बनाते थे,  लोजिकल सोच को तरोताजा करते ये छोटे - छोटे मन्त्रायमान मनमोहक प्रयास शायद मानसपटल पर हमेशा के लिए अंकित हो जाते हैं और साथ में पालकों द्वारा दी गयी अद्वितीय सोच, हर चीज को बनाने के कई तरीके पर एक तरीका जो आपने अपने बड़ों के साथ इंगित किया कहीं पर….

मंगलवार, 7 सितंबर 2010

वो होंगे कामयाब …

जब मैंने टाइम पत्रिका में कुछ दिन पहले एक लेख पढ़ा तो मैं भय के मारे, घुटन के मारे काँप रहा था, एक सिहरन सी थी शरीर में !

देश – चिली,

स्थान - एक कॉपर और सोने की एक ध्वस्त खदान

_48847299_san_jose_mine_464इस खदान में कुछ दिन पहले एक हादसा हुआ और अनुमान लगाया गया कि ३० लोग जो खदान में काम करते थे, खदान धसने की वजह से मारे गये हैं, पर कुछ दिन बाद पता चला कि ये लोग २३०० फुट नीचे बने एक चैम्बर में सुरक्षित हैं, १० मीटर  images 5 मीटर के इस तलघर में जहाँ रोशनी और हवा से दूर केवल ८५ डिग्री फार्नेहाईट का घुटन भरा माहौल है बस !

अब बताया Chile Mine Collapseजा रहा है कि ये लोग बाहर निकाले जा सकते हैं,  पर इसमें ३ से ४ महीने लग सकते हैं क्योंकि जमीन के अंदर इतना लम्बा सुरक्षित मार्ग उस तलघर तक बनाना एक आसान काम नहीं है। चिली की सरकार और फँसे हुए लोगों के घरवालो के साथ-साथ पूरे विश्व की दुआएं उनके साथ है, ये एक दुर्गम रास्ता है और कठिन समय जिसके सोचने से ही शरीर में कम्पन सा होने लगता है पर फिर भी हौसला कहिये कि अंदर से ६ इंच के एक पाईप से इनके लिए भेजे गये कैमरा में इन लोगों ने जो आत्मविश्वास और जीने की ललक दिखाई है वो मुझे उस महान गाने की याद दिलाती है जो बचपन में हम गाते थे -

‘हम होंगे कामयाब एक दिन -

हाँ मन में हैं विश्वास

पूरा है विश्वास

हम होंगे कामयाब एक दिन’

 

रात और दिन, कोई प्रकाश नहीं, कोई मलमूत्र की विशेष व्यवस्था नहीं, और ऑक्सीजन की कमी जो अनेक रोग पैदा कर दे, कुछ लोग डायबिटिक भी हैं तो कुछ लोग दिल के भी कमजोर होंगे, कुछ को परिवार की याद कमजोर करेगी तो कुछ को एक हल्का सा शारीरिक गतिरोध जीने के लिए अवरुद्ध करेगा पर इनकी आशा , हमारी प्रार्थना और ईश्वर की छत्रछाया जरूर इनको बाहर लाएगी।

चलो हम सब इन सबके स्वास्थ्य, मनोबल और जीवन के लिए प्रार्थना करें !!

picture-95

वैसे तो अमेरिका की गली गली में योग के केंद्र खुले हुए हैं और यहाँ के एकाकी लोग अपने आप को इन केन्द्रों में उर्जा और शांति कि खोज में ले जाते हैं,  शायद इनको शांति योग से ज्यादा यहाँ मिलता एक सामाजिक वातावरण देता है, इसी तरह का एक योग केद्र न्यू यार्क में है जहाँ हँस योग कराया जाता है , बोर्ड पर कुछ १-२ मन्त्र लिख दिए और बस् लोग पागल, जैसे हम भारतीय पागल है पश्चिमी सभ्यता के अनुकरण में, वैसे ही यहाँ के लोग इस दिखावी योग से भारतीयता में ढलकर शांति पा रहे हैं!

एक लेख था,  दवाईयों की लत के बारे में ! एक माँ जिसके बच्चे को कैंसर थी, एक दवा दी गयी जिसको खाने से उसको आराम मिलाने लगा, शायद कुछ सालों में कैंसर का खतरा कुछ कम हुआ पर उस बालक को दवाई की लत पड़ गयी, और वो फिर उस दवाई या अन्य ड्रगों के लिए परेशान रहने लगा, माँ कहती है कि इससे तो अच्छा कैंसर था कि कम से कम लोग सहानुभूति तो रखते थे, पता नहीं दवाईयों के कुम्भ में ऐसे कितने बालक खो रहे होंगे !  दुनिया में ओवरडोज की वजह से  हो रही मौतों कि संख्या दिनोंदिन बढ़ रही है, ईश्वर रक्षा करे सबकी !

पाकिस्तान के अस्तित्वा को खतरा सा दिखता है हाल में आई पानी और आतंकवाद की बाढ़ से, इस पडोसी को भी ऊपर लिखा गीत गाने की आवश्यकता है और हमें जितनी हो सके इनकी सहायता और प्रार्थना करनी चाहिए, खुद के अच्छे स्वास्थ्य के लिए आसपास का वातावरण अच्छा होना अनिवार्य है !

शुक्रवार, 3 सितंबर 2010

अमेरिकन टाइम-पास - न्यूयार्क से !!

 

एक खेल जो भारत के क्रिकेट का अमेरिकन रूपांतरण है, आप देखो फिर थोडा टहल के आ जाओ, बीयर, जूस या चिप्स सामने से लाकर इधर उधर टहलो और फिर देखने लगो, गर्ल फ्रेंड को डेट के लिए बुलाना हो या फिर बच्चो को बाहर ले जाना हो, कोई भी उम्र हो, हर स्थिति में जंचता है ये।  अमेरिकन लोगों का बहुत पसंदीदा खेल है ये, समय गुजारना हो या फिर सोसल गैदरिंग करनी है तो बहुत ही बढ़िया टाइम पास कराता है, और जी हाँ कुछ ऐसा ही बोलते है यहाँ के लोग इस खेल को - American's Favorite Pass Time !!  पिछले सौ सालों से ये अमेरिका का सबसे ज्यादा मनोरंजक और पसंदीदा खेल रहा है – मैं ‘बेसबाल’ खेल की बात कर रहा हूँ !

अमेरिका में रहते इतने साल हो गये पर कभी इस खेल के नियमों और तरीकों को समझ नहीं पाया, वैसे भी क्रिकेट इतना कूट कूट कर अंदर भरा है कि बाकी खेलो के लिए समय और समझ ही कहाँ ! फिर निकुंज ने कुछ नियम समझाए और उसको खेलते देखा तो थोड़ी उत्सुकता और बढी।  ये भी यहाँ की गली-गली का खेल है जिसे बच्चों से लेकर हर उम्र के लोग अनौपचारिक रूप से यहाँ वहाँ खेलते मिल जायेंगे। 

216px-Chicago_Cubs_Logo_svg हर शहर की अपनी टीम होती है, हमारे शिकागो की दो महत्वपूर्ण टीम है -  शिकागो कब्स और व्हाईट सोक्स।   सबके अपने अपने स्टेडियम होते है और उनके स्टेडियम में उनके बारे में पूरा इतिहास मिलेगा, लोग भी अपनी अपनी टीम के दीवाने होते हैं, जिस दिन मैच हो उस दिन अपनी अपनी टीम की थीम टीशर्ट और कैप पहन पहन कर लोगों का हुजूम निकलता है। पहले से ही ऑफिस में मेल आ जाती है कि  आज मैच है इसलिए भीड़ 181px-Chicago_White_Sox_svg की वजह से शाम के समय घर जाने का अपना सेड्यूल थोडा एडजस्ट कर लें, अलग से कुछ ट्रेन की व्यवस्था भी रहती है जिससे लोगों को समय पर घर पहुंचाया जा सके।   मुझे ध्यान है कि २००५ में जब  व्हाईट सोक्स की टीम ने वर्ल्ड सीरीज जीती थी तब शिकागो कि सडकें कैसे जाम हो गयीं थी,  और ऐसा ही पिछली बार न्यूयार्क में सैलाब था जब यहाँ की लोकल टीम याँकीज वर्ल्ड चैम्पियन बनी थी।  तब मैं उस दिन न्यूयार्क में था, उस दिन ब्रोडवे स्ट्रीट पूरी तरह जाम हो गयी थी, गगनचुम्बी इमारतों से फूल और कटे हुए कागजो की बारिश हो रही थी लोग पता नहीं कितने दूर दूर से घंटो पहले से सड़क के आसपास जमा हो गये थे,  ऑफिस तो जैसे १ घंटे के लिए पूरी खाली ही हो गयी थी,  खैर !!  कुल मिलाकर जहाँ की टीम जीते वहाँ एक अलग ही उत्सव का माहोल होता है।

वर्ल्ड सीरीज, जिसका जिक्र मैंने ऊपर किया है ये कोई विभिन्न देशो के बीच खेले जाने वाली श्रंखला नहीं है, बल्कि अमेरिका की विभिन्न बेसबाल टीम इस सीरीज में एक दूसरे के खिलाफ खेलती हैं और बाद में फाईनल में एक टीम जो जीतती है उसको वर्ल्ड चैम्पियन बोला जाता है।  

301px-NewYorkYankees_caplogo_svg पिछले बुधवार को मुझे जब एक मित्र ने याँकीज के एक शाम को होने वाले मैच के बारे में बताया तो फटाक से दो टिकट ओंन लाइन खरीदे - तकरीबन २ मिनट में टिकट मेरे ईमेल बॉक्स में था, वहाँ जाकर पता चला कि न्यूयार्क की टीम  याँकीज २७ बार वर्ल्ड चैम्पियन  रह चुकी है।   मैं और निकुंज पहली बार बेसबाल स्टेडियम में मैच देखने गये, ऑफिस से थोडा जल्दी निकला, फिर भी हम ३०-४० मिनट देर से याँकीज के मैदान में पहुचे !

स्टेडियम पूरी तरह भरा हुआ था,  बड़ी बड़ी स्क्रीन और तरह तरह के रेस्तरां लोगों के मनोरंजन में उत्प्रेरक का कम कर रहे थे।  रंगबिरंगा मैदान, रोशनी से जगमग मैदान , ५ मंजिला मैदान, लोग रिलेक्स में बैठे थे और जैसे के पूरी तरह रंगे थे याँकीज के रंग में!  दूसरी टीम को तो कोई भाव हीँ नहीं दे रहा था और न ही कोई दिखा जो बाहरी टीम को समर्थन कर रहा हो पर फिर भी दोनों ने बढ़िया खेल खेला - निकुंज भी पूरे मन से याँकीज के पक्ष में था और अंत में जीत भी उन्ही की हुई!

DSC04764 DSC04768

photo nik

इस खेल में निमय थोड़े अटपटे है,  खिलाडी या तो कैच आउट होता है, या फिर तीन स्ट्राईक गेंद खाली  छोडने के बाद .  स्ट्राईक गेंद शायद वो होती है जो सीधे स्टंप को हिट करे अगर पीछे स्टंप हो तो।   इस खेल में कोई स्टंप नहीं होता।  हर टीम ९ इनिंग खेलती है, और हर इनिंग में तीन खिलाडियों को आउट करना होता है, जैसे ही ३ लोग आउट हुए तो दूसरी टीम बैटिंग करने आती है, अगर बोल्लर चार गेंद बिना स्ट्राईक के फ़ेंक दे तो बैट्समन को पास मिल जाता है , इसका मतलब अगर वो आउट होने वाला हो और चार बाल नॉन स्ट्राईक हो जायें तो उसकी जगह दूसरा खिलाडी खेलने आ सकता है, इस तरह से बैटिंग टीम को थोडा फायदा हो जाता है…छक्के को होम रन बोला जाता है !!

कुल मिलाकर अनुभव मजेदार रहा…और खेल एक तरह से बोर ही लगा - जय क्रिकेट !!  क्रिकेट के जितना जोश इस खेल में कहाँ !!