मन में उद्वेलन है , हर कोई सजग है , उत्सुक है ! बहुराष्ट्रीय कम्पनियों ने अपने कार्यालय कई जगह कल बंद रखने की घोषणा की है, इसके एवज में शनिवार को लोगों को काम पर बुलाया गया है - अयोध्या मसले पर फैसले का दिन है कल ३० सितम्बर को !
मेरे हिसाब से ये फैसला कतई न्यायोचित नहीं होगा, अब तक चले इस कानूनी दांवपेंच में १८ के लगभग जज बदले जा चुके हैं। अगर सबूतों पर जाएँ तो रामचरित मानस जो घर-घर में पढ़ा जाता है - पर गौर करें तो और किसी सबूत की जरूरत ही नहीं रह जाती , फिर मन में आता है कि एक समुदाय विशेष को इन ऐतिहासिक सबूतों से क्यों नाराज किया जाए जब पहले से ही आहत है ढाँचे के ढहाये जाने से, सहनशीलता और हर किसी को अपने में समाहित करने की सहिष्णु संस्कृति में पले हम लोग कैसे कोई इमारत गिरा सकते है भले ही हमारे ग्रन्थ और हमारी कथाएँ हमारे तर्कों को अतुल्य बल प्रदान करती हैं और शायद ऐसे ही विचार और सहिष्णुता जज महोदय (यों ) के मन में भी रही होंगी और उनके ऊपर विभिन्न सरकारों और समुदायों का विशेष दखलंदाजी भरा दबाब भी रहा होगा, उनके मन की भावनाएं , ग्लानी और निर्णय से उपजे गंभीर मुद्दे जरूर उनके निर्णय को प्रभावित करेंगे और ऐसे में मैं नहीं मानता कि जो निर्णय होगा वो न्यायोचित होगा !
खैर, जो भी हो - समय भी निर्णय का ठीक नहीं, जब विश्व भारत को राष्ट्र मंडल के खेलों के विशाल आयोजन के लिए परीक्षक बनके देख रहा हो, जब कई हजारों करोंड़ों रुपये खर्च करके १०-१५ दिन का एक विशाल आयोजन सरकार का ध्यान चाहता हो, वहाँ इस निर्णय से उपजे अवसाद जरूर ही हमारी प्रतिष्ठा को दाग लगा सकते हैं, पर उम्मीद है कि २१ वीं सदी का भारत आगे कि सोचेगा - पीछे की नहीं !
हम सब एक हैं !! |
कल दराल साहब के ब्लॉग पर दिल्ली के राष्ट्र मंडल की तैयारी वाले फोटो देखे , दिल्ली को आधुनिक, और विश्व स्तर की देख मन खिल उठा और यही मन में सोचा कि बस ये सिलसिला चलता ही जाए, और ये चमक १ महीने बाद फीकी न पड़ जाए, जो बना है वो दुरुस्त और दूरगाम रहे ! और फिर आज सुबह यहाँ ‘वाल स्ट्रीट’ जैसे प्रतिष्ठित अखबार के पहले पन्ने पर भारत के आधार अभियान के बारे में बहुत ही विश्लेष्णात्मक लेख पढ़ा तो मन और भी प्रफुल्लित हो गया ! रुपये के चिन्ह से लेकर नागरिकों की पहचान के चिन्ह तो हम बना रहे हैं पर राजनीती के दांव पेंचों में कहीं किसी दिन सहिष्णुता का चिन्ह कभी खो न बैठे, यही डर सा लगा रहता है !
ऑफिस के पास ही एक इटालियन रेस्तरां हैं जहाँ मैं कुछ दिन पहले एक दिन सुबह नाश्ता करने चला गया था, नाश्ता परोशने वाली महिला कुछ ४०-५० साल की रही होंगी, उन्होंने बढ़िया प्यार से खाना खिलाया , चेहरे पर एक मुस्कान थी ! जब मैं जाने लगा तो मैंने उनकी सेवाओं की तारीफ की तो बोलने लगी कि आप मेरे मेनेजर को मेरी प्रशंशा में कुछ शब्द बोल दीजिए - जिससे मेरी नौकरी और पक्की हो जायेगी ! मैंने मेनेजर के पास जाकर कहा कि इनका व्यवहार और कार्य कुशलता आपके खाने के स्वाद में चार चाँद लगा देती है और इस वजह से में यहाँ नाश्ता करने आता रहूँगा - उसके बाद वो महिला बहुत प्रसन्न हुई ! उस खिले हुए चेहरे के पीछे जो कुछ चिंता की लकीरें उभरी थी वो अब आशा और गर्व बनकर मेरा अभिवादन कर रही थी , पर चूंकि उम्र में वो मेरी माँ जैसी रही होंगी तो मैं भी प्रत्युत्तर में उनको सम्मान और फिर से अक्सर आते रहने की आश दे ऑफिस आ गया !
फिर २-३ सप्ताह हो गये, पर कभी जाना नहीं हुआ उस रेस्तरां में दुबारा ! आज सुबह थोडा काम का बोझ कम था और सुबह नाश्ता नहीं किया देर से जागने की वजह से तो सोचा कि चलो उस रेस्तरां में जाकर ब्रंच ( - नाश्ता और लंच दोनों ) कर लिया जाए ! जब गया तो वहाँ कोई नहीं था , सिर्फ में ही था एक ग्राहक , या मेहमान कुछ भी कहिये । वो महिला मुझे देख बड़ी खुश हुई - बात करती रहीं, बात करते करते पता चला कि वो पाकिस्तान से हैं । और कुछ दो साल पहले ही पाकिस्तान से अमेरिका आयीं थी, उनकी दो लडकियां है जो १८-१९ साल के लगभग है - खुद रोज ३.३० बजे उठकर न्यू जर्सी से उठाकर ५:३० बजे रेस्तरां में होती है, कोई और नहीं है घर में , चूंकि होटल में काम करने से कमाई ज्यादा होती नहीं है इसलिए यहाँ रह रही बहन के साथ - जो अब अमेरिकन नागरिक है - जिसने उनको यहाँ स्पोंसर करके बुलाया है - उनके घर में ही दोनों लड़कियों के साथ रहती हैं। रोज यही सुबह से शाम का रूटीन है जिससे लड़कियां का भविष्य संबर सके ! उनके भाई भी यहीं कहीं अमेरिका में रहते है तो वो भी कुछ सहायता करते रहते हैं । उस मुस्कान के पीछे कितना संघर्ष और अवसाद छुपा था , घुटन के भी कुछ बिंदु थे पर सफर जारी था । अब मेरी समझ में आया कि ये क्यूँ उस दिन अपनी नौकरी के लिए इतनी चिंतित थीं। शायद मेरे गृह नगर ग्वालियर से भी उनका कुछ सालो पहले का संबद्ध था - दुनिया कितनी छोटी - गोल और सम्वेदनाओं से भरी हुई है ! हर कोई किसी न किसी उधेड़बुन में लगा ही हुआ है। उनकी अंगरेजी पर पकड़ देखकर लग रहा था कि किसी पढ़े लिखे परिवार से रही होंगी पर किस्मत ने शायद आज इस मोड पर ला खडा किया कि सुबह से शाम तक कुछ चंद डालरों के लिए संघर्ष जारी था - क्यूंकि उसे अपने बच्चों का भविष्य जो श्वाभिमान से रचना है !!
भारत के प्रति श्रद्धा के भाव झलक रहे थे और मेरे प्रति भी - क्यूंकि मैं भारतीय हूँ ! मैं ब्रंच करके निकल ही रहा था कि एक और सज्जन आ गये जो दुबई से थे, ऐसे ही थोड़ी बात हुई - वो भी भारतियों के लिए बड़ा सम्मान दिखा रहे थे ! जब मैंने कहा कि आप अरब लोग तो रईस होते हैं तो वो थोडा खिन्न नजर आया और बोला कि अरब में आयल के खजानों पर कुछ ही लोगों का नियंत्रण है, अगर आपके घर के नीचे आयल का कुआ निकला है तो आपको पता भी नहीं चलेगा कब अंदर ही अंदर पाईप से आयल निकाल लिया, और ज्यादा अगर आप मुँह खोलोगे तो आपके नाक-कान काट डालेंगे ये रईस लोग - यानी धमका देंगे ! कह रहा था वहाँ पर सब चोर है, और कुछ ही लोग है जो फल फूल रहे हैं ! बता रहा था कि मैं बिजली विभाग में काम करता हूँ और रात को अपनी कार को टैक्सी के रूप में चलाता हूँ , और अब अमेरिका घूमने आया हूँ - एक और चिंतिंत मन ! खैर कह रहा था कि भारत के लोग बहुत आ रहे हैं काम करने दुबई में - पर बंगला देशियों ने थोडा माहौल खराब किया हुआ है !
मैंने सोचा कि चलो आज तो वाल स्ट्रीट से लेकर हर जगह देश का ही झंडा दिख दिख रहा है - एक भारतीय को जो देश से दूर है और क्या चाहिए ? सब कुछ मिल गया मुझे तो - बस कल की थोड़ी चिन्ता थी क्यूंकि कल ३० सितम्बर है !!