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शनिवार, 19 जून 2010

दर्द Derangement वाला

मंगलवार से गले में खरास और उससे उपजे विकारों ने घेर रखा था,  तेज बुखार और एक पर एक पार्टियाँ टोरोंटो में...सब कुछ बढ ही रहा था, जब तक शिकागो घर कैब वाले ने पटका. उसके बाद गरारे और पानी की पिलाई करी जमकर.  उससे कुछ बेहतर परिणाम आये,  डॉक्टर साहब के यंत्रो ने पाया की किसी वैक्टीरिया का आक्रमण है तो उन्होंने भी कुछ असद उपलब्ध कराये हैं युद्ध के मैदान के लिए. लड़ाई जारी है !   इस सबने शरीर को  विचलित, अस्थिर  या फिर अंग्रेजी के  एक शब्द उपयोग करूँगा - Derange  कर दिया मेरे  क्रियाकलाप, काम और शरीर सब कुछ.  वैसे है तो ये एक गणित का कंसेप्ट वाला शब्द जिसके हिसाब से ...आप इस लिंक पर पढें,  में भी आपको क्या सिखाने बैठ गया.  खैर इसका अर्थ कुछ ऐसा भी है :

"de·range (dē rānj′, di-)"

transitive verb deranged -·ranged′, deranging -·rang′·ing
1.to upset the arrangement, order, or operation of; unsettle; disorder
2.to make insane

ये तो रहा मेरा दर्द - जो कुछ मायने नहीं रखता, चला भी जाएगा जल्दी ही डॉक्टर महोदय के सौजन्य से, एक दर्द और इस सप्ताह बांटा मुझसे मेरे कुछ मित्रों ने,  मेरे भारत के महान होने के टोपिक पर !!

कुछ दिन पहले प्रोजेक्ट के सहकर्मियों के साथ लंच टाइम पर कुछ ऐसे टोपिक पर चर्चा हुई, जिससे मन कुछ हद तक विचलित हुआ और लगा की शब्द Derangement  ही सही होगा भारत के सरकारी महकमों में चल रही व्यवस्था के लिए.  विकसित होने के लिए या विकसित कहलाने के लिए  अव्यवस्था की जगह व्यवस्था को लाना ही होगा - आज नहीं तो कल...अन्यथा सब प्रयास और हमारी जीनियसनैस बेकार कचरा ही साबित होगी.

एक मित्र जो लंच मंडली में थे इंडिया से आये हुए थे और अपनी आपबीती सुनाते हैं.   रात के आठ बजे गाजियाबाद दिल्ली के आसपास ATM से कुछ पैसे निकालकर ये महोदय सोचते हैं की ऑटो क्या करूंगा, थोड़ी देर पैदल ही चल लेता हूँ.  कुछ देर उस रोड पर पैदल चलने के बाद अपने आप को एक गिरोह का शिकार पाते हैं,  कुछ लोग पीछे से आकर इनको किनारे धकेल देते हैं, और उधर इनके स्वागत के लिए पहले से ही तैयारियां हो रखीं थीं. फिर क्या था तमंचे की नोंक पर सब कुछ ले लिया गया.  जीरो वैल्यू की चीजें भी हड़बड़ी में ये गैंग नहीं छोड़ती हमारे मित्र के पास.  बेचारा सहर्ष सब कुछ दे देता है. ऐसे तैसे घर पहुंचता है और जल्दी जल्दी सूचना नकनीक का प्रयोग कर अपने सारे पैसे/रुपये जितने बचे हैं, अपने खाते से दोस्तों के खाते में डाल देता है.  यहाँ तक तो सब कुछ सामान्य ही लगा की चलो आसामाजिक तत्व हैं, हर जगह हैं.

मेरे मित्र दूसरे दिन सुबह सुबह अपने एक वरिष्ट, लोकल, इस तरह के मामलों के भुक्तभोगी या विशेषज्ञ , जो भी हों ..से मिले और बोले की भाई ऐसा ऐसा हो गया, मैं तो लुट गया, जो गया सो गया, पर DL भी गया. कुछ तो पहचान पत्र टाइप का होना चाहिए हाथ में.  पोलिस में रिपोर्ट करानी पड़ेगी.  दोस्त की सलाह थी की रिपोर्ट तो करा देते हैं पर लुटने वाली बात पुलिस को मत बताना; नहीं तो और भी चपड़े में पड़ना पड़ेगा ..इसलिए बस ये बोल देंगे कि मेरा पहचान पत्र  खो गया कैसे भी, या बटुआ कहीं मेरी ही गलती से गिर गया.   उसके लिए भी पुलिस को पैसे खिलाने पड़े एक पेपर पर मोहर के लिए...और कई चक्कर भी बोनस में लगाने पड़े.  कभी न भूलने वाली यात्रा बन जाती हैं पुलिस कि ये दास्तानें.....

बेचारा रात को आतंकित हुआ और सुबह उससे भी ज्यादा. क्या यही सुरक्षा है ? वो भी राजधानी और देश के सबसे विकसित इलाके में जहाँ पर कुकुरमुत्ते की तरह उग आये चैनल सारे दिन आग उगल रहे हैं अपने बेस्ट होने की. 

दूसरे सहकर्मी ने भी ऐसा ही कुछ वाकया सुनाया, एक उनके दोस्त को नॉएडा के पास एक SUV वाले ने दिल्ली ले जाने के बहाने बिठाया और लूट लिया, केवल जान बची थी.  उनके खुद का एक बार फ़ोन का सिम खो गया और फिर पोलिस के चक्कर में बेचारी लड़की ने पता नहीं कितने पैसे गंवाए.  सब कुछ फिर से दिल्ली के आसपास.

शेष भारत का हाल - पता नहीं गणित के कौन से शूत्र से समझाऊं.

चिंता मेरी वाजिब है,  ऐसे कब तक देश का मजाक उड़ता रहेगा ?   दवा तो कई है, जैसे मेरे डॉक्टर ने दवा लिखी और मैं ले आया , जल्दी ही शान्त हो जाएंगे सारे विकार, पर भारत कब उन दवाइयों को खायेगा जो डॉक्टर ने प्रिस्क्रायिब करीं हैं  ?  नहीं खाओगे तो ये बैक्टेरिया फैलता ही जाएगा ! कुछ नहीं तो भारत गरारे ही कर ले हर १-२ घंठे में  .....

और अंत में गूगल से लिया ये तीर -  (काजल पर छोड़ देते है एक और बढ़िया सा कार्टून बनाने का काम ..तब तक इसी से काम चलाते है ...)

12 टिप्‍पणियां:

Smart Indian ने कहा…

लगता है कि Derangement is the word of the day.

राज भाटिय़ा ने कहा…

राम त्यागी जी, बहुत सच्चा चित्र खींचा आप ने... एक सच बोल दिया... ओर जनाब अगर गला खराब है तो नींबू की चाय पीये

विवेक रस्तोगी ने कहा…

पर ये सब नार्थ में ही ज्यादा क्यों होता है, कभी सोचा है क्या ?

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

चोरी की पता नहीं कितनी घटनायें, सामान खोने में बदल दी जाती हैं । हालात खराब रहें, आँकड़े न हों ।

Udan Tashtari ने कहा…

Derangement की ऐसी व्याख्या स्कूली पाठ्यक्रम का हिस्सा बनना चाहिये. हालात बहुत जटिल हैं.

राम त्यागी ने कहा…

विवेक जी, मेरे हिसाब से ये नोर्थ या साउथ की समस्या नहीं बल्कि देश की समस्या है, जो शासकीय अव्यवस्था से उप्तन्न हुई है. मुंबई को ही देख लीजिये !! साउथ में जाएँ तो आंध्र से भी ऐसी ही खबरें दोस्त सुनाते रहते हैं, तमिलनाडु में रोड पर मरते एक शासकीय कर्मचारी को देखते मंत्री की न्यूज़ भी अभी हम लोग भूले नहीं है, ऐसी कई घटनाएं है जो देश की क़ानून व्यवस्था पर प्रश्नचिन्ह लगाती हैं.

राम त्यागी ने कहा…

प्रवीण जी, आपने सही और ध्यान खींचा है ! तो ये आंकड़े का गणित है जो पुलिस में भय भर रहा है कुछ हद तक :(

विवेक रस्तोगी ने कहा…

राम जी - बिल्कुल सही कहा है कि ये शासकीय अव्यवस्था से उत्पन्न समस्या है, परंतु इसकी आवृत्ति पर भी ध्यान रखें, और असुरक्षितता पर भी, मैं खुद भी नॉर्थ इंडिया से हूँ परंतु पूरा भारत घूम चुका हूँ तो यह महसूस हुआ कि साऊथ में लोग अपनी जिम्मेदारी समझते हैं, पर नॉर्थ में नहीं और इतना भय का वातावरण, लुटने का साऊथ में क्यों नहीं हूँ, बहुत सोचा है इस बारे में मैंने पर निष्कर्ष निकालने में असमर्थ हूँ।

एक चुटकुला है जो याद आ गया -
एक बार एक आदमी पुलिस को देखकर जोर से बोल देता है - "पुलिस चोर है"
तो वह पुलिस वाला पकड़ कर उसे थाने ले जाता है इंस्पेक्टर बोलता है "क्यों रे खुलेआम इल्जाम लगाता है कि पुलिस चोर है "
वह आदमी बोलता है "जनाब मैंने ये थोड़े ही कहा है कि कहाँ कि पुलिस चोर है, भारत की थोड़े ही मैं तो पाकिस्तान की बात कर रहा था"
इंस्पेक्टर - "अच्छा हमें ही बेबकूफ़ बना रहा है "
आदमी - "नहीं जनाब सच कह रहा हूँ "
इंस्पेक्टर - "अच्छा जैसे हम जानते ही नहीं हैं कि कहाँ कि पुलिस चोर है ।"

:)

तो ये हालात भी हैं।

राम त्यागी ने कहा…

इंस्पेक्टर knows everything :)

Dr. Zakir Ali Rajnish ने कहा…

जिंदगी के सच को बहुत खूबसूरती से बयाँ कर दिया आपने।
---------
इंसानों से बेहतर चिम्पांजी?
क्या आप इन्हें पहचानते हैं?

निर्मला कपिला ने कहा…

ये तो बहुत छोटी छोटी बाते हैं देश के हर महकमे मे भ्रष्टाचार रक्तबीज की तरह फैल गया है निकट भविश्य मे भी इसका कोई हल नही है। तभी तो हमारे बच्चे जो विदेश जा रहे हैं यहाँ आने का नाम नही लेते।ाब इन्तजार है किसी चमत्कार का -- बस इन्तजार होगा शायद कुछ नही। चिन्ता वाजिब है।

राम त्यागी ने कहा…

निर्मला जी,

दो चीजें :
१) विदेश से देश न लौटने वालों के लिए तो यह बहाना मात्र है , और भी कारण हो सकते है लौटने के - जैसे माँ बाप का भारत में होना, बचपन की यादें, मिटटी की यादें.

२) ये छोटी छोटी बातें अगर हल कर ली जाएँ तो हो सकता है बड़े भ्रष्टाचार के मामलों पर भी कुछ अंकुश लगे !