बहुत दिन से जद्दोजहद चल रही थी की कैसे हिंदी लेखन के लिए एक ओफलाइन टूल को लैपटॉप पर डाला जाए. अभी तक करीब कुल मिलाकर लगभग १०० से ऊपर पोस्ट हो गयी होंगी मेरे तीनों ब्लोग्स पर, सारी ब्लोग्गेर्स के टाइपिंग एडिटर को उपयोग में लाकर ही लिखी गयीं थी. बहुत टाइम कोन्सुमिंग टास्क था. कई बार लिखते लिखते बाद में एडिट करना पड़े तो बहुत मुश्किल होती थी, ओनलाइन होकर ही लिख पाता थे, ऐसी कई परेशानियाँ आती थी. पर हिंदी में लिखने की चाह थी तो बस लिखता गया, पर हाँ उतना नहीं भावों को बिखेर पाया जितना चाहता था.
आज सुकून सा अनुभव कर रहा हूँ जब गूगल का हिंदी और अंग्रेजी में स्विच करने वाला टूल भी इंस्टाल हो गया और ब्लॉग से डिरेक्ट कनेक्शन के लिए विंडो लाइव भी इंस्टाल कर लिया है. अब जब चाहे लिख कर रख सकता हूँ . थोड़ी सुविधा और सुगमता रहेगी.
IME (गूगल का हिंदी और अंग्रेजी में स्विच करने वाला टूल )
- पहले बार बार एक जगह हिंदी में टाइप करके कॉपी पेस्ट करना पडता था, कमेन्ट देने इत्यादी के लिए
- किसी भी विंडो पर अब अल्त+शिफ्ट दबा कर कीबोर्ड अपने आप हिंदी में लिखने के लिए परिवर्तित हो जाता है.
- सोफ्ट कीबोर्ड भी ओंन कर सकते हैं अगर टाइप करने में समस्या है
विंडो लाइव
- सीधे सीधे एडिटर से ही ब्लॉग पर पोस्ट करने की सुविधा देता है
- एडिट करके एक से अधिक बार भी पोस्ट करेंगे तो ये पोस्ट को डुप्लीकेट नहीं करेगा
- लिखकर छोड़ दो और पब्लिश का टाइम सेट कर दो, अपने आप उस टाइम पर पब्लिश हो जाएगा आपका चिटठा
- एडिटर भी बहुत सरल है और कई फीचर देता है, फ्लेक्सिबल है
- एक से अधिक ब्लॉग जोड़ सकते है, और जब लिख रहे हों, या पब्लिश कर रहे हों तो सम्बंधित ब्लॉग को सेलेक्ट कर लो
- आपके ब्लॉग के फॉर्मेट, फॉण्ट इत्यादी को इम्पोर्ट कर लेता है ये, तो ऐसा लगेगा कि आप ब्लॉग पर ही लिख रहे हों
चलो इतने दिन के आलस के बाद कल की सक्रियता ने कुछ कमाल दिखाया. खैर और भी उपयोगी टूल होंगे मार्केट में, पर अभी तो यही काफी सुविधाजनक लग रहा है. धीरे धीरे एवोल्व होगा, शायद जीवन का यहीं नियम है की सीढियाँ चढते जाओ, कोई जल्दी चढता है तो कोई मेरी तरह धीरे धीरे.
एक प्रश्न - हिंदी के पूर्ण विराम के लिए यूनिकोड क्या होगा अभी तो डॉट से काम चलाना पड़ रहा है ? |
खैर टोरोंटो में G20 Summit की वजह से इस हफ्ते घर से ही काम करने का मौका भी एक सुकून ही दे रहा है. टोरंटो को कनाडा की सरकार ने कुछ हफ्तों पहले से ही छावनी में तब्दील कर दिया है, बैरिकेट्स लगा दिए गए थे सडकों पर, कुछ सडकें यातायात के लिए बंद कर दी गयीं थी, पुलिस वाले भी बहुत दिखते थे चारों तरफ. सुना है इस हफ्ते तो ऑफिस में किसी को आने ही नहीं दे रहे सुरक्षा कारणों से. मेरे ऑफिस के लोग जो लोकल हैं, उनको घर से ही काम करने के लिए बोला गया है. कदाचित ये हालत न होतीं अगर G20 अपने उद्देश्यों पर खरा उतरा होता. सबकी आपनी अपनी समस्याएं हैं, अपने अपने राग हैं, बस सरकारों के विशाल दल इन समारोहों में औपचारिकता पूरी करने चले आते है. सुना है कि कनाडा की सरकार ने १ बिलियन डॉलर इस समारोह के आयोजन पर खर्च कर दिया है. ये उसी तरह है जैसे मुकेश अम्बानी IPL में खर्च करते हैं, अर्थात मार्केटिंग के लिए. कनाडा जैसे अमेरिका का छोटा भाई टाइप देश के लिए ये एक अच्छा मौका है अपने आप को मार्केट करने का. खैर हमें तो फायदा ही मिला इस सबसे, एक वीक का ट्रेवल बच गया.
हमारा भारत भी तो एक आयोजन में व्यस्त है, चलो उधर तो मार्केटिंग के सहारे नेताओं की जेबें हरी हो रही होंगी और मजदूर बेचारा डैड लाइन के भय में अपना डबल पसीना बहा रहा होगा. फिर भी कुछ तो कदम आगे बढ़ ही रहे हैं. यानी हम एवोल्व हो रहे हैं, यही जरूरी है. आप भी अपना योगदान दे सकते हैं. देखिये ये विडियो…
आजकल मौसम ने भी हम पर मेहरबानी कर रखी है, रोज बारिश हो जाती है तो गर्मी उतना कष्ट नहीं दे रही. पहले गर्मी के लिए तड़प, और जब गर्मी आ गयीं तो हलकी हलकी बूंदों के लिए मन तरसता है, मन की संतुष्टि अंतहीन है !!
कुछ कहना था ब्लोग्वानी और चिट्ठाजगत के बारे में चल रही सार्थक या असार्थक बहस के बारे में. मेरे हिसाब से पक्ष, निरपेक्ष या गुटनिरपेक्षपन की ये लड़ाई जो कभी कभी गैंगवार का रूप ले लेती है , शीर्ष पर आने या त्वरित पापुलर होने के चक्कर में हो रही है. तो अगर इतनी लड़ाई है इस छोटे से हिंदी ब्लॉग्गिंग में शीर्ष के लिए १४ हजार वें लेखक से लेकर पहले तक, तो फिर सक्रियता का गणित भी सही होना चाहिए. मैंने अपने एक अन्य ब्लॉग में अपने इस वाले ब्लॉग का लिंक दिया १-२ बार (रेफेरेंस के लिए) तो मेरी सक्रियता में गजब का उछाल आ गया, अरे ये तो फर्जी काम हुआ मेरी ओर से, इसी लोजिक या लालसा ने कुकुरमुत्ते के पेड़ की तरह अनगिनत चिट्ठे चर्चे खोल दिए , जिनका उद्देश्य इस गणित के इर्द गिर्द ही था. सब सक्रियता के पीछे पड़े हैं, कंटेंट पीछे छूट रहा है :)
बात अगर ब्लोगवाणी या चिट्ठाजगत के महत्व की है तो ये अपने हिसाब से बहुत कुछ योगदान कर रहे हैं, हिंदी के सारे ब्लॉग को एक जगह लाने में और लोगों को ब्लोगों पर लाने में. जो लोग इन दोनों के बिना काम नहीं कर सकते, वो बस नदी में कूद कहीं भी गोता लगाना चाहते हैं. उनके लिए कंटेंट महत्वपूर्ण ना होकर हर चिट्ठे पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराना ज्यादा मायने रखता है. एक - दो लोग ऐसा करें तो उनके कुछ कारण हो सकते है जैसे - उत्साहवर्धन करना इत्यादी. पर सब करें सब ब्लोगों को नापने का काम तो ये भेडचाल है. और लग रहा है कि आप टाइम को खराब कर रहे हैं, कुछ तो खुद की चोइस होनी चाहिए, अगर है तो गूगल रीडर में या अनुसरणकर्ता बन कर उनकी लिस्ट बना लें, फिर क्या फर्क पडता है किसी के होने या ना होने का :)
मेरे हिसाब से अगर ये Aggregators अपना फोर्मुला , लोजिक सही कर लें तो बहुत हद तक तलवारें नियंत्रण में लायी जा सकती है ओर फिर ऊर्जा बढ़िया लिखने में लगायी जा सकती है. मैं भी क्या लेकर बैठ गया ….जिनके पास बिषय नहीं उनके लिए तो ये सब विवाद रामवाण हैं . एक मामूली सा लोजिक सक्रियता आंकड़ा सही करने का …हिट्स के आधार पर …
रही बात नापसंदी की तो कबीर दास पता नहीं क्यों बोल गए थे की “निंदक नियरे राखिये आँगन कुटी छबाय…..” क्या कोई पालन करता है इसका ? आजकल तो NGO भी अपनी निंदा नहीं सुनना चाहते !!
बहुत पहले ‘भारत की बीमारी’ नाम से एक कविता लिखी थी …भोपाल और अन्य बहुत सारी समस्याओं को देखकर फिर से कविता के शब्द दिमाग में चमक रहे थे…पूरी कविता लिंक पर क्लिक करके पढ़ी जा सकती है ..कुछ पंक्तियाँ इधर … बेरोजगार चुप है मगर मृत है भत्ते की आड़ में कैसे मैं कह सकता हूँ आज मेरा भारत महान है जहाँ पर सिर्फ राजनीतिक गुंडो का राज है मायावती के लिए सुरक्षा एसरायल से आती है पर यू पी के गरीब की लड़की विद्यालय कई कि. मी. चलकर जाती है सोनिया वायु मार्ग से गाँवों का भ्रमण करती हैं उन्ही गाँवों में एक किसान 100 रुपये के लिए आत्महत्या कर लेता है गाँवों के विकास से ही भारत सजता है नही तो ये बीमार सा और नंगा सा लगता है |