हिंदी - हमारी मातृ-भाषा, हमारी पहचान

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मंगलवार, 29 जून 2010

कुछ तस्वीरें : टोरंटो (कनाडा) G20 सम्मलेन हिंसा और पुलिस के अत्याचार

 

पिछले हफ्ते टोरंटो में G20 और G8 सम्मलेन था, मैं शिकागो में था, पर जब सोमवार को टोरंटो में होटल में दाखिल हुआ, हर जगह पुलिस ही पुलिस को पाया. पूरा टोरंटो खाली पड़ा था, ऑफिस बंद थे, हर जगह काली ड्रेस पहने वर्दी में पुलिस के लोग दिख रहे थे, शाम तक धीरे धीरे शहर खुलना शुरू हुआ, पर धरने और प्रदर्शन जारी थे , और जारी था पुलिस का अत्याचार, कई लोग जेल में रात बाहर प्रताड़ित किये गए, टोरंटो को पुलिस छावनी बना दिया गया था , किलेबंदी कर दी गयी थी , फिर भी लोगों ने प्रदर्शन किया, कहीं कहीं पर ये प्रदर्शन हिंसात्मक रहे, लोगों  ने तोडफोड की कई जगह पर !

सोमवार को शाम को सारे रेस्तराओं ने बीयर सस्ती कर रखी थी, जिससे लोग बाहर आयें ! खैर कोई शहर रुकता नहीं , मंगलवार से सब कुछ सामान्य था. हाँ कुछ प्रदर्शन टीवी पर देख रहा था, लोग कह रहे थे कि टोरंटो के पुलिस प्रमुख को स्तीफा दे देना चाहिए. सारे पेपर भी पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच झड़प की तस्वीरों से भरे पड़े थे.

खैर, जरूर कहीं न कहीं कुछ कमियां हैं G20 के उद्देश्यों में, इसलिए ही टोरंटो जैसे शांत और सुरक्षित शहर को भी युद्ध भूमि बनना पड़ा और शहर एक तरह से ८ दिन के लिए बंद सा ही हो गया था ….कुछ तस्वीरें आप देखें (दोस्तों और गूगल से ली गयीं हैं ज्यादातर)

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रविवार, 27 जून 2010

जन-गणना (2011) में जाति का विरोध

देखो संयोग ही है कि भारत और अमेरिका दोनों देश इस साल जनगणना करा रहे हैं.  हमने भी यहाँ अमेरिका में फॉर्म भरकर भेजा, पर पता नहीं पहुंचा नहीं क्या, एक मैडम रोज स्लिप चिपका जाती थी घर के दरवाजे पर कि आप या तो कभी भी फोन कर लो (एक नंबर लिख गयीं थी)  या फलाने टाइम पर घर मिल जाना, आपकी सूचना लेनी है, एक दिन उसने हमें घर पर पकड़ ही लिया, मुश्किल से ५-६ मिनट में हम चारों लोगो का संक्षिप्त सा डाटा लेकर वो चलती बनी.  फॉर्म भी सरल था और प्रश्न भी सरल.

देश में भी यहाँ तक तो सब एक समान ही हैं,  पर उसके बाद as usual नेताओं ने अपनी रोटी सेंकनी शुरू कर दी हैं, जाती को पीछे से जोड़कर इसमें विवाद खड़ा कर दिया है, एक तो इससे समाज में विघटन भी होगा और दूसरा हमारे जनगणना करने वालों पर भी अनायास दबाब बढ़ेगा, खैर मेरी बात कौन सुनेगा यहाँ से !!

आज एक मेल किसी समूह से मुझे आई थी, वो कुछ प्रयास कर रहे हैं इसी सम्बन्ध में, मैंने सोचा कि उसको यहाँ चस्पा कर दूं,शायद कुछ जागरूकता फैले …जनता के द्वारा चुने गए जनता के सेवको से तो जनता को चूसने की ही  आशा की जा सकती है बस ….

 

    जन-गणना (2011) में जाति का विरोध 

भारत सरकार और देश के लगभग सभी राजनीतिक दल जन-गणना (2011) में जाति को जुड़वाने के लिए तैयार हो गए हैं| इस अनुचित निर्णय का हम डटकर विरोध करते हैं| 


जन-गणना में जाति और मज़हब को जोड़ने का काम अंग्रेज सरकार ने 1871 में शुरू किया था ताकि 1857 में पैदा हुई अपूर्व राष्ट्रीय एकता को भंग किया जा सके| इस भारत-विरोधी षडयंत्र् में अंग्रेज काफी हद तक सफल हुए| 1947 में मज़हबी राजनीति के कारण भारत का विभाजन हुआ और उसके बाद भारतीय समाज में जाति के तत्व का राजनीतिकरण हो गया|


       हमारे संविधान-निर्माताओं ने इस खतरे को पहचाना और इसीलिए उन्होंने भारत को जातिविहीन और वर्गविहीन राष्ट्र बनाने की घाषणा की| उन्होंने जातियों, मज़हबों और समूहों के आधार पर पृथक निर्वाचन-क्षेत्रें की प्रथा को समाप्त कर दिया| उन्होंने जाति, मज़हब, वंश, लिंग, जन्म आदि पर आधरित भेद-भाव को सर्वथा असंवैधानिक घोषित किया| डॉ. भीमराव आम्बेडकर ने संविधान प्रस्तुत करते हुए कहा था कि उन्हें डर है कि कहीं मज़हब और जाति जैसे शत्रु दुबारा जिंदा न हो जाएं| इसीलिए अंग्रेज द्वारा शुरू की गई जातीय जन-गणना को आज़ाद भारत की किसी भी सरकार ने दुबारा शुरू नहीं किया|

आज जातीय जन-गणना को भारत की एकता के लिए खतरा है|
जन-गणना में जाति और मज़हब को जोड़ने का काम अंग्रेज सरकार ने 1871 में शुरू किया था ताकि 1857 में पैदा हुई अपूर्व राष्ट्रीय एकता को भंग किया जा सके| इस भारत-विरोधी षडयंत्र् में अंग्रेज काफी हद तक सफल हुए| 1947 में मज़हबी राजनीति के कारण भारत का विभाजन हुआ और उसके बाद भारतीय समाज में जाति के तत्व का राजनीतिकरण हो गया|
हमारे संविधान-निर्माताओं ने इ

स खतरे को पहचाना और इसीलिए उन्होंने भारत को जातिविहीन और वर्गविहीन राष्ट्र बनाने की घाषणा की| उन्होंने जातियों, मज़हबों और समूहों के आधार पर पृथक निर्वाचन-क्षेत्रें की प्रथा को समाप्त कर दिया| उन्होंने जाति, मज़हब, वंश, लिंग, जन्म आदि पर आधरित भेद-भाव को सर्वथा असंवैधानिक घोषित किया| डॉ. भीमराव आम्बेडकर ने संविधान प्रस्तुत करते हुए कहा था कि उन्हें डर है कि कहीं मज़हब और जाति जैसे शत्रु दुबारा जिंदा न हो जाएं| इसीलिए अंग्रेज द्वारा शुरू की गई जातीय जन-गणना को आज़ाद भारत की किसी भी सरकार ने दुबारा शुरू नहीं किया|


हम आज भी जातीय जन-गणना को भारत की एकता के लिए खतरा मानते हैं|


हम भारत के सभी नागरिकों से अपील करते हैं कि वे जातीय जन-गणना का डटकर विरोध करें ताकि हमारे राजनीतिक नेताओं के अनुचित दबाव का निवारण किया जा सके|

 
"आपसे अनुरोध है कि ४ जुलाई 2010 (सोमवार)के दिन जंतर
मंतर  पर हो रहे स्वतंत्र विरोध में हिस्सा ले कर आन्दोलन को सफल बनाएं "

  • इसके लिए हम एक ज्ञापन भी प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति जी को देना चाहते हैं, जिसमे यह साफ़ साफ़ विदित होगा की
    किसी भी दवाब में आकर जाति को जनगणना में शामिल नहीं करे
  • 'आज़ाद भारत' में जाति को हमारी पहचान के लिए उपयोग में हरगिज़ नहीं लेना चाहिए. यह हमारी स्वतंत्रता, सार्वभौमिकता और समानता की राह में सबसे बड़ी बाधा है.
  • इसके जगह एक और कालम 'आर्थिक स्तिथि' डाला जाए जिससे राष्ट्रीय स्तर पर हमे वंचितों और गरीबी रेखा के नीचे रहने वालों का सही आकलन हो ताकि इन 'पिछडो' के लिए कोई समुचित योजना बन सके.
  • यह कदम खुद ही नंदन निलेकानी के महत्वाकांशी प्रोजेक्ट के खिलाफ है, जिसके द्वारा वोह समस्त भारतीयों को एक सर्वमान्य पहचान देना चाह रहे हैं. 

हम भी सिर्फ आर्थिक आधार पर होने वाले आरक्षण के ही समर्थक हैं जो देश की जरुरत के साथ साथ, इस देश की जनता और आरक्षण प्रणाली के साथ न्यायसंगत भी है.
निवेदक


राष्ठ्रावादी स्वंयसेवक
प्रणीत - +91 999 009 4245
सुरेन्द्र - +91 9250 415 623
अनुज - +91 9555 240 200

शुक्रवार, 25 जून 2010

चींटियों से परेशान

YE5V1CAEW251YCA7OBXC3CAGAC54MCA434YRVCA3PE2TRCAAYD51ICAU2XBC1CALNP0DRCA22V247CAZAW7FNCAM071AICADXORH3CA7ZCJDUCARC140FCAUUFGA1CAPMG5XWCA7YPPNVCAF269R4CAT09Z9S चींटी देखने में बहुत छोटी लगती है, पर अपनी पर ये आ जाए तो अच्छे अच्छे मात खा जाएँ.  चींटी समाज की एकता के सामने खाप पंचायत भी फीकी पड़ जाएँ और टीम वर्क को देखा जाए तो अच्छे अच्छे PMP (Project Management Professionals) भी फ़ैल हो जाएँ|   इस छोटे से जीव को मारने में भी बड़ा संकोच सा होता है पर ये है कि अगर पीछे पड़ जाए तो फिर नानी याद दिला दे| एक मीठा टुकड़ा आप कहीं छोड़ दें फिर देखें कि सारी चींटी सेना कैसा एकत्र होकर काम निबटाती है और आपके लिए काम फैलाती है|

“देखन में छोटे लगें, घाव करें गंभीर |”
जबसे गर्मी आयीं है, हम भी चींटियों से बहुत परेशान हैं! ससुरी कारपेट पर मिठाई तो दूर की बात नमकीन देखकर भी न जाने कहाँ से आ भटकती हैं| दो बच्चों का घर है तो कुछ न कुछ तो फैलेगा ही ना, पर इनकी समझ में ये नहीं आता|  बस बिना बुलाए मेहमान की तरह आ भटकती हैं और फिर जाने का नाम नहीं लेती जब तक कि इनकी जान न चली जाए|  हम भी क्रूर से क्रूरतम हुए जा रहे हैं, कभी स्प्रे से मार रहे हैं तो कभी गुस्से में आकर पैर से कुचलकर….तो कभी वैक्यूम क्लीनर से खींच डालते हैं, पर ये सब राक्षसी उपाय चींटी सेना के प्रयासों और इरादों की तीव्रता में कोई फर्क नहीं ला पा रहे हैं| हम और उधर चींटी सेना दोनों पक्ष यही गाये जा रहे हैं ..

“हम होंगे कामयाब एक दिन …..”
सुना है छत्तीसगढ़ में कुछ लोग इनको स्नैक्स के रूप में भूनकर या तलकर खाते हैं  !  पकोडे की तरह तलकर क्या ?  मुझे तो सुनने में ही घिन आ रही है, पर क्या कर सकते हैं लोगों का अपना अपना स्वाद है, देखो ये मशहूर एक्ट्रेस सलमा हायक भी क्या कह रही हैं -
"These little ants fried are amazing with a little guacamole."

क्या करें, यही सोच लेते हैं -

“तुलसी इस संसार में भांति भांति के लोग….”
मैं इन्टरनेट पर इनके बारे में पढ रहा था, गर्मियों में अक्सर चींटियाँ घरों और किचन के आसपास आती हैं, ये संयक्त परिवार में जीने वाला प्राणी है जो बड़ी बड़ी कोलोनी या समूह बनाकर रहता है| इनकी लगभग १२ हजार प्रजातियां अब तक पायी गयीं हैं| एक जगह लिखा था कि जैसे संयुक्त परिवार में सब मिलजुल कर काम करते है और फिर बाद में बांटकर खाते है, वैसे ही स्वभाव चींटी का होता है|  जब तक कोई चींटी काम करने लायक नहीं हो जाती (बचपन में) तब तक घर के या समूह के बड़े लोग इनका ध्यान रखते है और सिखाते है कि कैसे समूह में चला जाता है| काम करने के समूह भी बंटे होते हैं! इसके बारे में पढने के बाद ये बड़े एवं भले घर और सभ्य समाज से संबंद्ध रखने वाला प्राणी लगता/लगती है, पर शायद हमने अपनी सुविधाओं के चक्कर में इसे अपना दुश्मन मान लिया है! शायद यही हम प्रकृति की हर चीज के साथ कर रहे हैं !  मनुष्य कि चेष्टाएं अंतहीन हैं, फिर भी संतुष्टि का ग्राफ सबसे नीचे!!

शायद बाहर की तपन से अंदर घर में वातानुकूलित हवा के मजे लेने आती होंगी,   एक बार अंडे देना शुरू कर दें तो फिर इनके किले को तहस नहस करना डान की तरह मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है| कुछ लोग चिड़िया पालते है जो इनको खा जाती हैं. कुछ एसिड डालते है तो कुछ स्प्रे, कोई नहीं चाहता इनका अपने घर में विचरण!!  

खैर! इसने संयुक्त परिवार, टीम वर्क, एकता, श्रम, छोटे होकर भी सफल होने जैसे पाठ तो पढ़ा ही दिए मेरे जैसे कई लोगों को हराकर !!

देखो ये चींटी कितनी समझदार है ….
ant

चलो चींटी तो नहीं भाग रहीं घर से, आप जैसे ब्लॉग पर आने वालों को एक कविता ही झिला कर भगा देते हैं ….

चींटी तू इतनी सी छोटी पर बड़ी है खोटी
तुझसे छुटकारे की दिखती नहीं कोई गोटी
दिखने में तो तू है नहीं बिलकुल भी मोटी
फिर इतना खाना किधर तू करती है कल्टी
क्रमबद्ध चींटी सेना एकजुट होकर डटी
गिरकर बार बार चढती दीवाल ये नौटी
हार कैसे सकती है ये छोटी सी चींटी

मंगलवार, 22 जून 2010

एक पग और बढ़ा…

 

imagesबहुत दिन से जद्दोजहद चल रही थी की कैसे हिंदी लेखन के लिए एक ओफलाइन टूल को लैपटॉप पर डाला जाए. अभी तक करीब कुल मिलाकर लगभग १०० से ऊपर पोस्ट हो गयी होंगी मेरे तीनों ब्लोग्स पर, सारी ब्लोग्गेर्स के टाइपिंग एडिटर को उपयोग में लाकर ही लिखी गयीं थी.  बहुत टाइम कोन्सुमिंग टास्क था.  कई बार लिखते लिखते बाद में एडिट करना पड़े तो बहुत मुश्किल होती थी, ओनलाइन होकर ही लिख पाता थे, ऐसी कई परेशानियाँ आती थी.   पर हिंदी में लिखने की चाह थी तो बस लिखता गया, पर हाँ उतना नहीं भावों को बिखेर पाया जितना चाहता था. 

आज सुकून सा अनुभव कर रहा हूँ जब गूगल का हिंदी और अंग्रेजी में स्विच करने वाला टूल भी इंस्टाल हो गया और ब्लॉग से डिरेक्ट कनेक्शन के लिए विंडो लाइव भी इंस्टाल कर लिया है. अब जब चाहे लिख कर रख सकता हूँ . थोड़ी सुविधा और सुगमता रहेगी. 

IME (गूगल का हिंदी और अंग्रेजी में स्विच करने वाला टूल )

  • पहले बार बार एक जगह हिंदी में टाइप करके कॉपी पेस्ट करना पडता था, कमेन्ट देने इत्यादी के लिए
  • किसी भी विंडो पर अब अल्त+शिफ्ट दबा कर कीबोर्ड अपने आप हिंदी में लिखने के लिए परिवर्तित हो जाता है.
  • सोफ्ट कीबोर्ड भी ओंन कर सकते हैं अगर टाइप करने में समस्या है

विंडो लाइव

  • सीधे सीधे एडिटर से ही ब्लॉग पर पोस्ट करने की सुविधा देता है
  • एडिट करके एक से अधिक बार भी पोस्ट करेंगे तो ये पोस्ट को डुप्लीकेट नहीं करेगा
  • लिखकर छोड़ दो और पब्लिश का टाइम सेट कर दो, अपने आप उस टाइम पर पब्लिश हो जाएगा आपका चिटठा
  • एडिटर भी बहुत सरल है और कई फीचर देता है,  फ्लेक्सिबल है
  • एक से अधिक ब्लॉग जोड़ सकते है, और जब लिख रहे हों, या पब्लिश कर रहे हों तो सम्बंधित ब्लॉग को सेलेक्ट कर लो
  • आपके ब्लॉग के फॉर्मेट, फॉण्ट इत्यादी को इम्पोर्ट कर लेता है ये, तो ऐसा लगेगा कि आप ब्लॉग पर ही लिख रहे हों

चलो इतने दिन के आलस के बाद कल की सक्रियता ने कुछ कमाल दिखाया.  खैर और भी उपयोगी टूल होंगे मार्केट में, पर अभी तो यही काफी सुविधाजनक लग रहा है.  धीरे धीरे एवोल्व होगा, शायद जीवन का यहीं नियम है की सीढियाँ चढते जाओ, कोई जल्दी चढता है तो कोई मेरी तरह धीरे धीरे. 

एक प्रश्न -  हिंदी के पूर्ण विराम के लिए यूनिकोड क्या होगा अभी तो डॉट से काम चलाना पड़ रहा है  ?

176025780_755491 खैर टोरोंटो में G20 Summit की वजह से इस हफ्ते घर से ही काम करने का मौका भी एक सुकून ही दे रहा है.  टोरंटो को कनाडा की सरकार ने कुछ हफ्तों पहले से ही छावनी में तब्दील कर दिया है,  बैरिकेट्स लगा दिए गए थे सडकों पर,  कुछ सडकें यातायात के लिए बंद कर दी गयीं थी, पुलिस वाले भी बहुत दिखते थे चारों G20_fence_716343gm-aतरफ.  सुना है इस हफ्ते तो ऑफिस में किसी को आने ही नहीं दे रहे सुरक्षा कारणों से.  मेरे ऑफिस के लोग जो लोकल हैं, उनको घर से ही काम करने के लिए बोला गया है. कदाचित ये हालत न होतीं अगर G20 अपने उद्देश्यों पर खरा उतरा होता.  सबकी आपनी अपनी समस्याएं हैं, अपने अपने राग हैं, बस सरकारों के विशाल दल इन समारोहों में औपचारिकता पूरी करने चले आते है.  सुना है कि कनाडा की सरकार ने १ बिलियन डॉलर इस समारोह के आयोजन पर  खर्च कर दिया है.  ये उसी तरह है जैसे मुकेश अम्बानी IPL में खर्च करते हैं, अर्थात मार्केटिंग के लिए. कनाडा  जैसे अमेरिका का छोटा भाई टाइप देश के लिए ये एक अच्छा मौका है अपने आप को मार्केट करने का.  खैर हमें तो फायदा ही मिला इस सबसे, एक वीक का ट्रेवल बच गया.

images हमारा भारत भी तो एक आयोजन में व्यस्त है, चलो उधर तो मार्केटिंग के सहारे नेताओं की जेबें हरी हो रही होंगी और मजदूर बेचारा डैड लाइन के भय में अपना डबल पसीना बहा रहा होगा.  फिर भी कुछ तो कदम आगे बढ़ ही रहे हैं. यानी हम एवोल्व हो रहे हैं, यही जरूरी है. आप भी अपना योगदान दे सकते हैं. देखिये ये विडियो…

आजकल मौसम ने भी हम पर मेहरबानी कर रखी है, रोज बारिश हो जाती है तो गर्मी उतना कष्ट नहीं दे रही. पहले गर्मी के लिए तड़प, और जब गर्मी आ गयीं तो हलकी हलकी बूंदों के लिए मन तरसता है, मन की संतुष्टि अंतहीन है !!

ages कुछ कहना था ब्लोग्वानी और चिट्ठाजगत के बारे में चल रही सार्थक या असार्थक बहस के बारे में. मेरे हिसाब से पक्ष, निरपेक्ष या गुटनिरपेक्षपन की ये लड़ाई जो कभी कभी गैंगवार का रूप ले लेती है , शीर्ष पर आने या त्वरित पापुलर होने के चक्कर में हो रही है.   तो अगर इतनी लड़ाई है इस छोटे से हिंदी ब्लॉग्गिंग में शीर्ष के लिए १४ हजार वें लेखक से लेकर पहले तक, तो फिर सक्रियता का गणित भी सही होना चाहिए.  मैंने अपने एक अन्य ब्लॉग में अपने इस वाले ब्लॉग का लिंक दिया १-२ बार (रेफेरेंस के लिए) तो मेरी सक्रियता में गजब का उछाल आ गया, अरे ये तो फर्जी काम हुआ मेरी ओर से, इसी लोजिक या लालसा ने कुकुरमुत्ते के पेड़ की तरह अनगिनत चिट्ठे चर्चे खोल दिए , जिनका उद्देश्य इस गणित के इर्द गिर्द ही था. सब सक्रियता के पीछे पड़े हैं, कंटेंट पीछे छूट रहा है :) 

बात अगर ब्लोगवाणी या चिट्ठाजगत के महत्व की है तो ये अपने हिसाब से बहुत कुछ योगदान कर रहे हैं, हिंदी के सारे ब्लॉग को एक जगह लाने में और लोगों को ब्लोगों पर लाने में.  जो लोग इन दोनों के बिना काम नहीं कर सकते, वो बस नदी में कूद कहीं भी गोता लगाना चाहते हैं.  उनके लिए कंटेंट महत्वपूर्ण ना होकर हर चिट्ठे पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराना ज्यादा मायने रखता है.  एक - दो लोग ऐसा करें तो उनके कुछ कारण हो सकते है जैसे - उत्साहवर्धन करना इत्यादी. पर सब करें सब ब्लोगों को नापने का काम तो ये भेडचाल है. और लग रहा है कि आप टाइम को खराब कर रहे हैं, कुछ तो खुद की चोइस होनी चाहिए,  अगर है तो गूगल रीडर में या अनुसरणकर्ता बन कर उनकी लिस्ट बना लें, फिर क्या फर्क पडता है किसी के होने या ना होने का :)

मेरे हिसाब से अगर ये Aggregators अपना फोर्मुला , लोजिक सही कर लें तो बहुत हद तक तलवारें नियंत्रण में लायी जा सकती है ओर फिर ऊर्जा बढ़िया लिखने में लगायी जा सकती है.  मैं भी क्या लेकर बैठ गया ….जिनके पास बिषय नहीं उनके लिए तो ये सब विवाद रामवाण हैं .    एक मामूली सा लोजिक सक्रियता आंकड़ा सही करने का …हिट्स के आधार पर …

image

रही बात नापसंदी की तो कबीर दास पता नहीं क्यों बोल गए थे की “निंदक नियरे राखिये आँगन कुटी छबाय…..” क्या कोई पालन करता है इसका ? आजकल तो NGO भी अपनी निंदा नहीं सुनना चाहते !!

 

बहुत पहले ‘भारत की बीमारी’ नाम से एक कविता लिखी थी …भोपाल और अन्य बहुत सारी समस्याओं को देखकर फिर से कविता के शब्द दिमाग में चमक रहे थे…पूरी कविता लिंक पर क्लिक करके पढ़ी जा सकती है ..कुछ पंक्तियाँ इधर …

बेरोजगार चुप है मगर ‌‍‍‍मृत है भत्ते की आड़ में

कैसे मैं कह सकता हूँ आज मेरा भारत महान है

जहाँ पर सिर्फ राजनीतिक गुंडो का राज है

मायावती के लिए सुरक्षा एसरायल से आती है

पर यू पी के गरीब की लड़की विद्यालय कई कि. मी. चलकर जाती है t1larg

सोनिया वायु मार्ग से गाँवों का भ्रमण करती हैं

उन्ही गाँवों में एक किसान 100 रुपये के लिए आत्महत्या कर लेता है

गाँवों के विकास से ही भारत सजता है

नही तो ये बीमार सा और नंगा सा लगता है

सोमवार, 21 जून 2010

देव बाबा की शादी है आज

 

मेरे बहुत ही पसन्दीदा हिन्दी ब्लोग्गर देव झा की शादी है आज !  बडा ही दिलदार लडका है, गजब का लिखता भी है !  और तो और शादी कि लायिव रेपोर्टिग भी उसके ब्लोग पर देखी जा सकती है. 

बहुत बहुत मुबारक हो दोस्त शादी तुमको और मनिषा को , ढेरो सारी शुभकामनाये पूरे हिन्दी ब्लौग जगत की ओर से.

 

देव - मनीषा.
विवाह दिन सोमवार, जून २१-२०१०

ब्लागिंग से कुछ पलों का विराम

देव बाबा ५ जुलाई तक ब्लागिंग जगत से दूर रहेंगे। कभी कभार कुछ पोस्ट लिखता रहूंगा। आपके ब्लाग पढनें और और आपके प्रश्नों के उत्तर ५ जुलाई के बाद ही दे सकूंगा।

आपका आशीष और अनुराग बनाए रखें और किसी भी समय आप मेरे मोबाईल 9833059587 पर सम्पर्क कर सकते हैं।

इसको यहा पर देखा गया है -

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सब लोग भर दो इस दूल्हे के ब्लोग को कमेन्ट्स से :) …..

उसी के अन्दाज मे एक वीडियो :

शनिवार, 19 जून 2010

दर्द Derangement वाला

मंगलवार से गले में खरास और उससे उपजे विकारों ने घेर रखा था,  तेज बुखार और एक पर एक पार्टियाँ टोरोंटो में...सब कुछ बढ ही रहा था, जब तक शिकागो घर कैब वाले ने पटका. उसके बाद गरारे और पानी की पिलाई करी जमकर.  उससे कुछ बेहतर परिणाम आये,  डॉक्टर साहब के यंत्रो ने पाया की किसी वैक्टीरिया का आक्रमण है तो उन्होंने भी कुछ असद उपलब्ध कराये हैं युद्ध के मैदान के लिए. लड़ाई जारी है !   इस सबने शरीर को  विचलित, अस्थिर  या फिर अंग्रेजी के  एक शब्द उपयोग करूँगा - Derange  कर दिया मेरे  क्रियाकलाप, काम और शरीर सब कुछ.  वैसे है तो ये एक गणित का कंसेप्ट वाला शब्द जिसके हिसाब से ...आप इस लिंक पर पढें,  में भी आपको क्या सिखाने बैठ गया.  खैर इसका अर्थ कुछ ऐसा भी है :

"de·range (dē rānj′, di-)"

transitive verb deranged -·ranged′, deranging -·rang′·ing
1.to upset the arrangement, order, or operation of; unsettle; disorder
2.to make insane

ये तो रहा मेरा दर्द - जो कुछ मायने नहीं रखता, चला भी जाएगा जल्दी ही डॉक्टर महोदय के सौजन्य से, एक दर्द और इस सप्ताह बांटा मुझसे मेरे कुछ मित्रों ने,  मेरे भारत के महान होने के टोपिक पर !!

कुछ दिन पहले प्रोजेक्ट के सहकर्मियों के साथ लंच टाइम पर कुछ ऐसे टोपिक पर चर्चा हुई, जिससे मन कुछ हद तक विचलित हुआ और लगा की शब्द Derangement  ही सही होगा भारत के सरकारी महकमों में चल रही व्यवस्था के लिए.  विकसित होने के लिए या विकसित कहलाने के लिए  अव्यवस्था की जगह व्यवस्था को लाना ही होगा - आज नहीं तो कल...अन्यथा सब प्रयास और हमारी जीनियसनैस बेकार कचरा ही साबित होगी.

एक मित्र जो लंच मंडली में थे इंडिया से आये हुए थे और अपनी आपबीती सुनाते हैं.   रात के आठ बजे गाजियाबाद दिल्ली के आसपास ATM से कुछ पैसे निकालकर ये महोदय सोचते हैं की ऑटो क्या करूंगा, थोड़ी देर पैदल ही चल लेता हूँ.  कुछ देर उस रोड पर पैदल चलने के बाद अपने आप को एक गिरोह का शिकार पाते हैं,  कुछ लोग पीछे से आकर इनको किनारे धकेल देते हैं, और उधर इनके स्वागत के लिए पहले से ही तैयारियां हो रखीं थीं. फिर क्या था तमंचे की नोंक पर सब कुछ ले लिया गया.  जीरो वैल्यू की चीजें भी हड़बड़ी में ये गैंग नहीं छोड़ती हमारे मित्र के पास.  बेचारा सहर्ष सब कुछ दे देता है. ऐसे तैसे घर पहुंचता है और जल्दी जल्दी सूचना नकनीक का प्रयोग कर अपने सारे पैसे/रुपये जितने बचे हैं, अपने खाते से दोस्तों के खाते में डाल देता है.  यहाँ तक तो सब कुछ सामान्य ही लगा की चलो आसामाजिक तत्व हैं, हर जगह हैं.

मेरे मित्र दूसरे दिन सुबह सुबह अपने एक वरिष्ट, लोकल, इस तरह के मामलों के भुक्तभोगी या विशेषज्ञ , जो भी हों ..से मिले और बोले की भाई ऐसा ऐसा हो गया, मैं तो लुट गया, जो गया सो गया, पर DL भी गया. कुछ तो पहचान पत्र टाइप का होना चाहिए हाथ में.  पोलिस में रिपोर्ट करानी पड़ेगी.  दोस्त की सलाह थी की रिपोर्ट तो करा देते हैं पर लुटने वाली बात पुलिस को मत बताना; नहीं तो और भी चपड़े में पड़ना पड़ेगा ..इसलिए बस ये बोल देंगे कि मेरा पहचान पत्र  खो गया कैसे भी, या बटुआ कहीं मेरी ही गलती से गिर गया.   उसके लिए भी पुलिस को पैसे खिलाने पड़े एक पेपर पर मोहर के लिए...और कई चक्कर भी बोनस में लगाने पड़े.  कभी न भूलने वाली यात्रा बन जाती हैं पुलिस कि ये दास्तानें.....

बेचारा रात को आतंकित हुआ और सुबह उससे भी ज्यादा. क्या यही सुरक्षा है ? वो भी राजधानी और देश के सबसे विकसित इलाके में जहाँ पर कुकुरमुत्ते की तरह उग आये चैनल सारे दिन आग उगल रहे हैं अपने बेस्ट होने की. 

दूसरे सहकर्मी ने भी ऐसा ही कुछ वाकया सुनाया, एक उनके दोस्त को नॉएडा के पास एक SUV वाले ने दिल्ली ले जाने के बहाने बिठाया और लूट लिया, केवल जान बची थी.  उनके खुद का एक बार फ़ोन का सिम खो गया और फिर पोलिस के चक्कर में बेचारी लड़की ने पता नहीं कितने पैसे गंवाए.  सब कुछ फिर से दिल्ली के आसपास.

शेष भारत का हाल - पता नहीं गणित के कौन से शूत्र से समझाऊं.

चिंता मेरी वाजिब है,  ऐसे कब तक देश का मजाक उड़ता रहेगा ?   दवा तो कई है, जैसे मेरे डॉक्टर ने दवा लिखी और मैं ले आया , जल्दी ही शान्त हो जाएंगे सारे विकार, पर भारत कब उन दवाइयों को खायेगा जो डॉक्टर ने प्रिस्क्रायिब करीं हैं  ?  नहीं खाओगे तो ये बैक्टेरिया फैलता ही जाएगा ! कुछ नहीं तो भारत गरारे ही कर ले हर १-२ घंठे में  .....

और अंत में गूगल से लिया ये तीर -  (काजल पर छोड़ देते है एक और बढ़िया सा कार्टून बनाने का काम ..तब तक इसी से काम चलाते है ...)

सोमवार, 14 जून 2010

दो मासूम आतंकी और मेरा सूप बनाने का प्रयोग ....

कुछ चीजों में मन को सही और गलत का पता करने में बड़ी मुश्किल होती है, कुछ चीजें गलत होने पर भी मन को सुख देती हैं, इधर  मेरे यहाँ भी एक अजीब सी उलझन है, दो ऐसे लोग है जो हद से ज्यादा नुकसान कर रहे हैं, पर फिर भी कोई कुछ नहीं कह रहा है उनसे !  जैसे हम इंडिया में नेता को नुकसान का इनाम वोट के रूप में देते है, ऐसे ही ये दोनों भी नुकसान करते हुए भी सजा पाने की बजाय स्नेह पा रहे हैं !!

पहले देखिये ये घर के पिछवाड़े का छोटा सा गार्डन -
बड़ी आशाओं के साथ पौधे रोपित किये गए, बाजार से सड़े हुए गोबर वाली मिटटी खूब सारे डॉलर खर्च करके लायी गयी!  पर एक हमारा ही पाला हुआ हमारी ही बगिया को उजाड़ रहा है.  एक आतंकवादी के आतंक की वजह से पौधे फल फूल ही नहीं पा रहे.
मिर्ची के पौधे से सारे पत्ते गायब तो कभी सूर्यमुखी के छोटे से पौधे के सारे पत्ते गायब.
कभी कभी तो मिर्ची को भी खा जाता है जो एकाध आ पाती है . और वो आंतकवादी जिसे हमने उसी तरह बढावा दिया जैसे की तालिबान को अमेरिका ने रसियन के खिलाफ, अब हमें दिखा दिखा कर अब हमारी ही हालत खराब कर रहा है और चाह  कर भी हम कुछ नहीं कर पा रहे. अब तो आप जैसे सहयोगियों की सहायता और सलाह की जरूरत है.

चलो आप को उस आंतकवादी से मिला ही देते हैं जो पिछवाड़े के आतंक के लिए जिम्मेदार है -
एक नन्हा सा बनी


पहले बच्चों को खुश करने के लिए बुलाते थे और बड़ा खुश होते थे जब ये आता !! खैर गुस्सा तो अब भी नहीं आता !! ये देखो हमारा न्याय !

दूसरा नटखट है जो घर के सामान को एक जगह नहीं रहने देता,  इसने भी नाक में दम कर रखी है.  जब देखो तब हर चीज को गड़बड़ करने में रहता है.   TV देखने बैठते हैं  तो उसको पॉवर ऑफ कर देगा,  कभी डिनर की टेबल पर आतंक तो कभी मेरी डेस्क पर मेस.  बाहर निकलो तो पकड में ही नहीं आएगा हाथ में, दिन में कम से कम दस लोलीपोप खाने की कसम खा रखी है   ...
ये है दूसरा आतंकी ...


और एक मैं सीधा सादा जीव जो इनको झेलता हूँ जब घर पर होता हूँ, और याद करता हूँ जब बाहर होता हूँ! अब देखिये में कितना प्रोडक्टिव हूँ!!  इस शनिवार को देखिये बहुत ही मस्त मस्त सूप बनाया है...
टमाटर का स्वास्थ्यवर्धक, स्वादिष्ट, सलीकेदार सूप

एक दिन पडोसी ने कुछ इस तरह का सूप डिनर में खाया और फेसबुक पर सबको बताया, ये दो महीने पहले की बात है.  इससे प्रेरणा आने में २ महीने लगे और जब उन महाशय के रेसेपी देखने फेसबुक पर गया तो कहीं मिली नहीं तो फिर खुद के तरीके से पेटेंट सूप बना दिया.  किचन में जाना कम होता है, या यूं कहूं की प्रवेश वर्जित सा ही है.  मैडम हमारी एक से एक जबरदस्त रेसेपी बनाती है तो मैं  तो इस मामले में अपने आप को निरक्षर सा अनुभव करता हूँ, और ये उपलब्धि ऐसी लगी जैसे की नासा में कोई प्रयोग किया हो.  मैं महान हो गया इस सूप का निर्माण करके !! 
पूरा  सूप पैन में ...


बारिश का मौसम था, इसलिए घर के पिछवाड़े कल कल बूंदों को देख खूब मजे आये गरमागरम सूप पीने में.  बचपन में आँगन में पड़े जाल से आते पानी को देखा होगा, कभी जाकर उसमें नहाते थे तो कभी जल्दी जल्दी बहुत तेज बारिश होने के समय ऊपर से एक प्लाष्टिक की पन्नी (जाजम) डालने ऊपर छत पर जाना पड़ता था, जिससे घर ज्यादा खराब ना हो.  जल्दी जल्दी ऊपर छत पर बिखरा सारा सामान अंदर रखने की जद्दोजहद अब बड़ा आनंद देती है, जो चीजें वहां रहने पर भार या बोर लगती थी, वही आज अतीत के सायें में चली गयीं या फिर पास नहीं है तो सुबह की ठंडी बयार सी लगतीं हैं.  ये कैसी उलझन है की जब कोई पास नहीं है, तो बड़ी याद आती है और जब पास हो तो उसकी महत्ता का पता नहीं लगता !!

यहाँ हमारे घर के बैकयार्ड में केवल कुर्सी ही बारिश की बूंदों का आनंद ले रही लगती है ...

मक्के के भुट्टे आजकल खूब मिल रहे है बाजार में.  जैसे ही एक दिन बार्बैक्यू करने बैठे, कोयला में आग बैठ ही रही थी की इन्द्र देवता टपक पड़े, गराज में ही सब कुछ करना पड़ा. ये मेघ ग्वालियर में जाकर क्यूं नहीं बरसते जहाँ गर्मी से लोग बहुत परेशान हैं?? शिकागो वालों को थोडा सूरज ही मिल जाने दो.

और कुछ हलचल ...

लौह कूटती बंजारिन
घर घर जाती बंजारिन
गाली देती बंजारिन
जीवन जीती बंजारिन

मंडल अध्यक्षा मिसरायिन
राजनीति में मिसरायिन
भाषण देती मिसरायिन
रोती रहती मिसरायिन

रविवार, 13 जून 2010

ज्वलंत मुद्दा : प्रकृति से खिलवाड़


२०१० अमेरिका में याद रहेगा गल्फ ऑफ़ मेक्सिको में हो रहे तेल रिसाव के लिए !  भारत में भोपाल के गैस रिसाव काण्ड के अन्याय की चिंगारी पीडितो में तो पहले से ही सुलग रही थी, अब वो राजनीतिक और बौद्धिक बहस के गलियारों में भी रोशन हो रही है. 

बी पी कम्पनी हर कोशिस के बाबजूद तेल रिसाव रोकने में सफल नहीं हो पा रही है पर सुकून की बात है की ओबामा खुद कमांड हाथ में लेकर बी पी के पीछे पड़े हैं.  जबकि हमारे यहाँ की कोंग्रेस सरकार तब और अब मामले पर पानी फेरने के सिवा कुछ और नहीं कर पायी थी.   बी.पी. के शेयर अमेरिकेन मार्केट में लगभग ३० प्रतिशत नीचे आ चुके है,  (बेचारे) टोनी हैवर्ड , BP के सीईओ (फोटो में ) की हालत पतली हो रही है, होनी भी चाहिए!! 

बहुत पहले ऐसा ही हादसा अरब जगत में तब हुआ था जब इराक कुवैत से बाहर जाते जाते काफी सारे तेल के कुँओं में आग लगा गया था. तब इसी तरह समुन्दर में आयल का हजारों बैरल रिसाव हुआ था,  समुन्दर किनारे तेल की मोटी परत जम गयी थी और समुंदरी जीव जन्तुओं पर इसका बहुत बुरा असर हुआ था.

जहाँ तक मेरा ज्ञान है तेल भारी होने की वजह से समुन्द्र की लहरों को आने जाने से रोक या दबा  देता है और समुंदरी पक्षी तेल की इस भरी परत की वजह से सांस लेने और तैरने में परेशानी अनुभव करते हैं. लग रहा है ये तेल कम्पनियां जो हर साल बिलियन डॉलर फायदे के बक्से में डालती है, पुरानी घटनाओं और प्रकृति के संरक्षण के प्रति जान बूझकर अनजान रहती हैं, और हर जगह राजनीतिक लोग इनसे चंदे या टेबल के नीचे पैसा लेकर इनको ऐसा करने देते है. पर प्रकृति के साथ खिलवाड़ कब तक इन कंपनियों को फायदा करता रहेगा ?  BP का ये केस इस दिशा में एक अंगड़ाई भर है...आगे पता नहीं क्या होगा !

मेरी ये कविता मेरे भाव शायद बयाँ कर सके ...

BP के बिलियन हुए खाली
पर समुन्दर में तेल अभी भी रिसना है जारी
प्रकृति से छेड़खानी इसको पड़ी भारी
इधर उधर मुंह अब ये ताके अनाड़ी
नए तरीके उर्जा के अपना लो मेरे भाई
नहीं तो ये प्रलय की हुंकार होगी कसाई
 
प्रकृति से खिलवाड़ हो और मानव प्रयास कुछ असर करें,  आशा गौण ही लगती है, इसलिए ईश्वर से प्रार्थना है की भोपाल के पीड़ितों को जल्दी ही न्याय मिले और BP की ये आग भी जल्दी बुझे !!

शुक्रवार, 11 जून 2010

ब्लॉग्गिंग : सर्वश्रेष्ट ब्लॉगर और सर्वाधिक पाठकों की कस्स्मकस का गणित वारेन बफेट के पन्नों से

कल जब फ्लाईट में बैठा हजारों फीट की ऊंचाई पर उड़ रहा था, तभी एक पुस्तक  मैं मान्यनीय वारेन बफेट के बारे में पड़ रहा था. कुछ ही पन्ने पढ़े थे, पर जो निष्कर्ष निकल रहे थे उन पन्नों से वो बहुत हद तक जिंदगी और ब्लॉग्गिंग की दुनिया में चल रहे उहापोह से काफी हद तक मेल खा रहे थे ...

जैसे कौन है सर्वश्रेष्ट ब्लॉगर :
वारेन बफेट अमेरिका के जाने माने अरबपति है जिन्होंने अपना पैसा स्टोक्स में इन्वेस्टमेंट के जरये कमाया. बहुत ही सरल और साफ जीवन जीने वाले इंसान हैं और अंको के महारथी हैं.  महारथी बनने से पहले उन्होंने कुछ अपने पिता से सीखा और बहुत कुछ अपने गुरु बेंजामिन ग्राहम से सीखा. दोनों ने मिलकर साथ साथ एक कंपनी भी चलाई, पर अंत में वारेन साहब लम्बी रेस के घोड़े निकले और अभी तक दौड़ में हर किसी से आगे है.  तो ब्लॉग्गिंग में आप बहुत दिनों से हैं,  या पहले ब्लॉगर हैं, उससे आपकी सर्वश्रेष्ठता साबित नहीं होती,  हो सकता है की आपसे ही कुछ सीखकर मैं और भी अच्छा लिखने लगूं.  ब्लॉग्गिंग में अच्छा होने के लिए आपको जमकर पढ़ना पड़ेगा और थोडा रचनात्मक भी होना पड़ेगा.  अच्छा और आकर्षक कंटेंट ही आपको आगे ले जाएगा.   तो इधर सीनियर / जूनियर  और पहले मैं और आप का झगडा बंद करके अपनी मौलिकता पर ध्यान दिया जाए तो सही रहेगा.  वैसे भी ब्लॉग तो आपकी डायरी है, आपके स्वभाव या जानकारी का दर्पण है इसलिए इसमें तुलना कैसी ...हर किसी का अपना तरीका और हर किसी का अपना अद्वितीय भाव होता है जो आपको इधर दिखेगा.  तो लिखो जो मन कहे...!!  पर भावों पर अनुशाशन रख कर !!

कैसे अधिक से अधिक पाठक आयें....
जब वारेन बफेट साहब  कंपनी खरीद और बेच रहे थे उस समय कई बार ऐसा टाइम आया जब उनको इन्स्योरेन्स बिज़नस के लिए काफी चुनौती मिल रही थी और सस्ते प्रीमियम वाली कंपनियों से.  पर उन्होंने ध्यान गढ़ाये रखा अपने अच्छे कस्टमर बेस पर और कुछ सालों बाद वो सस्ती कंपनी बंद हो गयीं और वारेन साहब अब तक हैं . 
मेरा मानना है की आप अपने चुनिन्दा पाठको से यात्रा जारी रखें, ऐसा होने से आपको सुधरने का टाइम भी मिलता रहेगा. कम लोग पाठक होंगे तो ज्यादा रूबरू होकर दिल से लोग कमेन्ट करेंगे और ऐसे लोगों के हिसाब से आप जो सोचते है वो मौलिक लिख भी पायेंगे. और धीरे धीरे आपके कंटेंट के सहारे आप इस बौद्धिक समूह का दायरा धीरे धीरे बढ़ाते जायेंगे.  कुल मिलकर ब्लॉग को अपना दर्पण मानें तो संतुष्टि और सफलता दोनों आपके पास होंगे.  बहुत तर्क वितर्क इस विषय पर किये जा सकते हैं इसलिए इस गणित को यहीं बंद करता हूँ.

फ्लाईट तो भौतिक उड़ान भर रही थी, इधर मन तो हर वक़्त ही उड़ता रहता है और हमें बुरे भले , स्वर्ग नरक, धूप छाँव की सैर एक पल में करा देता है.  कुछ भाव कविता संग्रह पर उड़ेले हैं -

मन रे,
ओ भँवरे
तू घूमे फिरे
सोचे विचारे
क्या क्या करे ...


ओ भँवरे
मस्ताने
क्या तेरे कहने
कैसे कहूं तुझे रुकने
कैसे रोकूँ तुझे बहने


ओ भँवरे
तेरी कभी ऊँची और कभी ओछी उड़ान
बिना किसी थकान
नापे ये सारा जहाँन


मन रे
ओ भँवरे ....


एक महिला हमारे बगल की सीट पर बैठी बैठी बार बार अपनी तनिक सी स्कर्ट को नीचे ऊपर खींचे जा रहीं थी,  खुद भी कितना असहज महसूस कर रहीं होंगी ऐसे कपड़ों में, फिर भी पहनना है बस.  एक हाथ में किताब, और दूसरे में बीयर का ग्लास,  और फिर ऊपर से कपड़ों की असहजता ....कितना परिश्रम बिना बात के !!  महिलाओं का अपमान या फिर छोटे कपड़ों पर सेंसर करने की मेरी कोई मंसा नहीं है पर शायद मुझे लगता है की हम वो पहनते  हैं जिसमें हम आकर्षक लगें और पहनने में सहज हो, ढीलाढाला न हो इत्यादि इत्यादि ....शायद वो सुश्री भी उस कपडे को फिर न पहनें ...! छोटे कपडे किसको अच्छे नहीं लगते पर एक अनुशाशन में!!  यही ब्लॉग्गिंग का हाल है ..आकर्षक और अच्छे के चक्कर में ऐसा न छापें जिससे खुद भी असहज महसूस करें. थोड़ी देर पाठक भले ही आ जायें पर फिर आप पानी की बुलबुले ही रह जाओगे.  इसलिए ज्यादा पाठको के बारे में ना सोचें तो बेहतर होगा! 

अपने भावो के साथ साथ हिंदी को भी आगे बढ़ाना है हमें और अपनी रचनात्मक प्रव्रत्ति को भी...तो चलो इस अभियान में सही गणित और खुद की सहजता का प्रयोग करें .....

गुरुवार, 10 जून 2010

एक आत्मीय ब्लॉगर मिलन...कनाडा में समीर लाल के साथ एजेक्स शहर में ...

कनाडा की हर यात्रा अपने आप में एक अद्वितीय यादों की महक छोड़ रही है.  पिछली कई पोस्ट मोंट्रियल की यात्रा पर केन्द्रित थी और फिर वापस शिकागो चला गया था...पिछले सप्ताह व्यस्त कार्यक्रम की वजह से लाल परिवार से मुलाक़ात नहीं हो पायी थी.  आज टोरंटो एअरपोर्ट पर बैठा में मंगलवार की यादों के मोतियों को ब्लॉग के धागे में पिरोने बैठा हूँ.

सोमवार को एक हमने एक अंतर्राष्ट्रीय ब्लॉगर मीट का प्लान बनाया. मैं मंगलवार को भारत का नागरिक अमेरिका से  कनाडा के एजेक्स शहर में रह रहे समीर लाल और उनकी फॅमिली को मिलने पहुंचा.   वैसे काम के सिलसिले में इधर आना हर सफ्ताह हो रहा है,  सोमवार को आकर गुरुवार को घर.  मेरी बहुत दिनों से उत्कंठा थी की समीर जी से मिला जाए.  मंगलवार को सुबह समीर जी ने पूरा स्टेप बाई स्टेप ईमेल भेज दिया, कैसे टोरंटो से उनके घर का रास्ता तय करना है, बस जैसे वो हाले दिल कविता में कहते जाते है, मैं वो स्टेप पढ़ते पढ़ते पूरा राश्ता बिना किसी परेशानी के तय कर गया.

६:१८ शाम की ट्रेन ऑफिस से १० मिनट पैदल चलने पर मिल गयी थी और एजेक्स ट्रेन स्टेशन पर प्रभु स्वयं कार लेकर पार्किंग लौट में खड़े थे.  गले मिले तो बड़ा ही आत्मीय सुख मिला.  जैसे की बिछड़े भाई मिल रहे हों.  जैसे ही घर पहुंचा साधना जी ने भी गर्मजोशी और आत्मीयता से स्वागत किया.   हलकी फुल्की बातें,  ब्लॉग की शुर्खियाँ और आसपास के बारे में बात करते रहे.  लाल परिवार के बारे में जाना,  और अपने को भी परिवार में ही शामिल पाया.  गपशप चलती रही, बीच बीच में साधना जी के बनाए समौसे और भारतीय नमकीन के चटखारे चलते रहे.  मौका मिलते ही रास्ते में लिखी एक कविता सुनायी मैंने ...

बड़ा था उत्साह हमें आपसे मिलने का
जानने का, बतियाने का
मंद मंद मुस्काने का

धुंध धुंआधार से निकली
उडती तश्तरी में उड़ने का
रूबरू होने का एजेक्स घूमने का

और क्या लिखूं
हिंदी के लिक्खाड़ के सामने
चला आया गुर भी सीखने ब्लॉग का

नीचे बेसमेंट  में बैठे रहे,  हिंदी ब्लॉग के विकास के बारे में चर्चा चलती रही. समीर जी का पुस्तकालय देखा,  हिंदी के लिक्खाड़ ऐसे ही नहीं बन गए,  बहुत पढ़ते है.  में तो खैर जब तक रुका ...कुछ न कुछ सीखता ही रहा.  समीर जी की कुछ खूबशूरत रचनाएँ सुनी, जिनमें जमीनी हकीक़त और देश की सौंधी सौंधी खुशबू महक रही थी.  हम दोनों में ही देश की मिटटी की याद हर वक़्त, हर बात में झलक रही थी.  दोनों में क्या तीनों देश की याद और पुराने दिनों के सुनहरे दिनों को याद करते रहे. 

इसी बीच समीर जी अपने हस्ताक्षर सहित , मुझे अपनी कृति 'बिखरे मोती' भेंट की. समीर जी के काव्य संग्रह 'बिखरे मोती' से एक कविता की कुछ पंक्तियाँ इधर लिख रहा हूँ ...जिनमें देश जाते समय का और फिर जब लौटे है ..तब का दर्द झलक रहा है ....

समय कैसे पंख लगा कर उड़ गया
कल ही तो मैं घर आया
कल लौट के वापस जाऊंगा
कुछ यार मिले, कुछ बातों की
यादों की बरसातों की
उन गलियों को फिर से घूमा
जिसने मेरा बचपन चूमा ......
...................................
('बिखरे मोती'  से ....)

कुछ देर फिर हमने बात की अन्य हिंदी  ब्लोग्गेर्स और उनके योगदान के बारे में.  समीर जी अपने से पहले वाले ब्लोग्गेर्स का जिक्र और उनकी महत्ता को जरूर बताते हैं.  फिर उत्तरी अमेरिका में और कैसे हिंदी का प्रचार प्रसार किया जाए, के बारे में चर्चा चलती रही.  मैंने शिकागो में कवि सम्मलेन का प्रस्ताव रखा तो समीर जी ने पूरे सहयोग और अपने पुराने अनुभव के हिसाब से मार्गदर्शित किया.  कुछ फोटो भी खींचे गए इस बीच ...


डिनर का समय हो चला था,  सबने काव्य पाठ भी किया...विडियो या ऑडियो समीर जी पोस्ट करेंगे.  साधना जी ने एक बहुत ही बढ़िया रचना पड़ी.  उनके स्वर ने समीर जी की उस रचना में चार चाँद लगा दिए.  


चलो अब बारी थी छप्पन भोग से भी जो अच्छा खाना होता है उसकी.  साधना जी ने बहुत सारे पकवान तैयार किये थे.   फोटो में देखोगे तो खुद को रोक नहीं पाओगे  .....बहुत खाना खाया, जी भर के खाया !!


यहाँ इंगित करना चाहूँगा की समीर जी भी बहुत पहुंचे हुए रसोईये हैं.  सीक्रेट का भंडाफोड़ कर ही देता हूँ ... चिक्केन के अलावा जलोपीनो मिर्ची का एक व्यंजन ऐसा बनाया था की जीभ रो रही थी फिर भी खाए बिना मन मान ही नहीं रहा था.  जबरदस्त, मस्त मस्त, स्वादिष्ट !!  रात से ज्यादा असर सुबह दिखा -:)

ये रहे रसोई के रसूखदार प्याज काटते हुए :)....

आइसक्रीम, और मीठे मीठे आम खाने के बाद और थोड़ी देर बैठे ...फिर ट्रेन का टाइम हो चला था और इधर मेरी फ्लाईट उड़ने वाली है, इसलिए लिखना बंद करना पडेगा .....समीर जी की चिड़ियों से मिलने के बाद, ढेर सारी यादें समेट कर, ज्ञान लेकर, आत्मीय प्यार पाकर और एक बड़ा भाई पाकर हम लगभग अर्धरात्रि के समय स्टेशन की ओर चल दिए .....



और भी बहुत कुछ है लिखने को ....कुछ बाद में लिखूंगा समय की कमी है अभी ओर कुछ समीर जी की पोस्ट में आएगा ....इन्तजार करते रहिये ....

- राम फ्रॉम बिली बिशप एअरपोर्ट टोरंटो