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बुधवार, 10 जून 2009

अधिकतर ब्लॉगों का मात्र “एक पाठक” होता है! ...

ये लाइन चुराई है तरकश से - http://www.tarakash.com/200906094180/Knowledge-Base/is-blogging-is-dying.html

उड़न तस्तरी जी का लेख पड़ते पड़ते तरकश पर पहुँचा और उधर ये लेख पड़ा, शायद ये हम जैसे कई लोगो की अपेक्षाओ को दर्शाता हुआ लेख है, शुरुआत में मेने जब ब्लॉग लिखना शुरू किया तो यही लगता था की यार कोई पड़ेगा ही नही तो कैसे पता चलेगा की में क्या लिख रहा हूँ, पर फिर सोचा की मन की भडास कही तो निकालो, परदेश में रहकर देश की यादो और अपने जज्बातों को कही तो जगह दूँ।

हमारे कई हिन्दी ब्लॉगर बहुत प्रसिद्ध हो रहे है, अभी हाल ही में द्विवेदी जी की डांट और समझाईस के किस्से बहुत छाए रहे, एक महासय ख़ुद को पंगेबाज कहते है पर बकिलो के डर से अपनी बेबाक बात को बेबाक न रख सके और, ये किस तरह की अभिव्यक्ति है ? कही पर भी एक गाँव की समस्या को इंगित करते नही दिखाते ये हमारे मसहूर ब्लोग्गेर्स, सभी लोग बस कांग्रेस और बीजेपी तक अपने को सीमित रखकर कथित साम्प्रदायिक और अन्य भावनात्मक मुद्दों पर बहस करते रहते है और कभी कभी व्यक्तिगत आवेश में आपस में ही लड़ जाते है और अंग्रेजो के फूट डालो ....वाले कहावत को अभी भी याद दिला जाते है । भारत की ७० प्रतिशत जनसँख्या गांवों में बसती है, और हमें अपने ब्लोग्स पर इनकी उन्नति और शाक्षरता के लिए सार्थक बहस करनी चाहिए।
हमें भुवनेश शर्मा के हाल में लिखे गए ब्लॉग से कुछ सीखना चाहिए जिसमें उन्होंने किसी को गाली देने के बजाय पर्यावरण के बारे में बहुत ही उम्दा लेख लिखा, ऐसे अच्छे प्रयासों की धरा को बहुत जरूरत है।
हमारे ब्लोग्स में कही भी ऊर्जा की बचत कैसे करे, गावो को सौर ऊर्जा और गोबर गैस जैसी उर्जा पद्धतियों से कैसे आए ले जाए, ये सब नही दिखा।

हम सभी अपने अपने लेवल पर बेहतर लिखने की कोसिस करते है, चलो इसमें भारत के ७० प्रतिशत क्षेत्र के उन्नयन के बारे में लिखे सोचे और कुछ करें ....

13 टिप्‍पणियां:

संजय बेंगाणी ने कहा…

हिन्दी ब्लॉगों में सर फूटोवल के अलावा भी बहुत कुछ लिखा गया है, इसके लिए पिछले चार सालों के लेख खंगालने पड़ेंगे. अपने आस पास नजर रखें, बहुत सुन्दर पोस्टें आ रही है.

अजय कुमार झा ने कहा…

bilkul sahee kaha sanjay jee ne, are hujoor aaj hindi blogging kaa star bahut hee unchaa hai..apne jo baat kee hai wo upar tairne jaisee hai...jara andar gote maariye...dekhiye kitnee gehraai aur thandak hai....

RAJ ने कहा…

EKDAM SARTHAK POST HAI.....NICE READ..

निर्मला कपिला ने कहा…

मै संजय और अजय जी की बात से सहमत हूँ फिर सब को अभिव्यक्ति का अधिकार है 1हम दूसरों को कोसने की बजाये अपनी -2 कोशिश करेम तो सही रहेगा वेसे आपने जो सुझाव दिया है उस वो सही है और लोग कर भी रहे हैं आभार्

Nitish Raj ने कहा…

आपने सही कहा पर अधूरा सच। ऐसा नहीं है, ये गुजरे जमाने की बात होगई। अब बहुत बदल चुका है। संजय जी से सहमत।

लोकेश Lokesh ने कहा…

ऐसा एक दायरे में ही हुया है। आसपास नज़र दौड़ायें। बहुतेरे उदाहरण मिल जायेंगे, भुवनेश जी जैसे सार्थक लेखन वाले

भुवनेश जी को धन्यवाद दे ही दिया जाये

मुनीश ( munish ) ने कहा…

come on Ram shed this prejudice yaar. come to maykhaana.blogspot.com and see real blogging yar!

राम त्यागी ने कहा…

में संजय जी एवं अन्य आप सभी महानुभावो से पूरी तरह सहमत हूँ की हिंदी ब्लोग्स अभी बहुत mature हो गए है, पर मेरे विचार मेरे विश्लेषण और तांक झांक पर आधारित थे, पर में कोसिस करूँगा की और भी मनचाहे टोपिक्स को खोज सकू.
कल मेने कृषि पर कर के बारे में लोगो के विचार जानने चाहे और एक भी उत्तर नहीं आया, इन सब बातो से लगता है की हमें गंभीर मुद्दों पर शार्थक बहस करने के लिए और भी परिपक्य होना जरूरी है, (ये मेरा मानना है)
स्वभावबस हर कोई चटकीले टोपिक चाहता है, मेरा आशय यह था की चलो एक ऐसे वर्ग को तैयार करें जो केन्द्रित हो भारत नवनिर्माण के मुद्दों पर भी.

आप सभी का तहेदिल से सभी comments के लिए धन्यवाद !!

अनिल कान्त ने कहा…

bahut achchhi baat kahi aapne

Gyan Darpan ने कहा…

आपको ऐसे बहुत सारे ब्लॉग मिल जायेंगे जहाँ गंभीर चिंतन,ज्ञान आदि के लेख मिलेंगे और ऐसे ब्लोग्स टिप्पणियों तक की कभी कामना नहीं करते |

गिरिजेश राव, Girijesh Rao ने कहा…

ब्लॉगर्स में देहाती तो बहुत हैं लेकिन सब नागर बने बैठे हैं। वैसे स्थिति इतनी बुरी भी नहीं है। विविध विषयों पर बहुत अच्छा और परिपक्व लिखा जा रहा है। मुझे तो यहाँ गुणवत्ता और जीवंतता प्रिण्ट मीडिया से भी बेहतर दिखती है।

राम त्यागी ने कहा…

Ratan singh jee -


बात अपेक्षा की नहीं, टिप्पडी ही तो बहस और उत्साहवर्धन का एक तरीका है ! हम मूल मुद्दे से एक दूसरे को दोसी बनाने में हट जाते है, मेरा सिर्फ ये कहना है कि मेने गावों कि स्थिति को बयान करता हुआ और कैसे हम विभिन्न विकल्पों से छोटे छोटे स्तर पर विकास कर सकते है, वो कम देखने को मिला.

Girijesh jee,
प्रिंट मीडिया से बेहतर तो पता नहीं, पर टीवी वालो से बहुत बेहतर है क्वालिटी. कुल मिलकर ब्लोग्स में एक बनावटीपन नहीं दिखता.

Udan Tashtari ने कहा…

चिन्ता न करें..समानान्तर सार्थक लेखन भी हो ही रहा है.