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शनिवार, 25 अक्टूबर 2008

प्रज्ञा सिंह - चम्बल का गौरव - क्यों कलंकित किया जा रहा है ?

मेरे को लगता है की प्रज्ञा सिंह का मालेगाँव विस्फोट से कोई लेना देना नही है। मेने इधर उधर उनके बारे में पढ़ा है और पता चलता है की शुरू से ही वह निर्भीक और उर्जावान नेता रही है । हो सकता की उनकी मोटर सायकिल को जान बूझकर इस्तेमाल किया गया हो।
भाजपा क्यों उनके बचाव में नही आ रही है ? क्या कोई मेरा ब्लॉग पड़ने वाला प्रज्ञा सिंह को नजदीक से जानता है ? अगर वो बेक़सूर है तो में उनकी हर सम्भव सहायता करने के लिए आगे आऊंगा , इसके लिए नही की वो हिंदू है , बल्कि इसलिए की चम्बल जैसे इलाके में इस तरह के उर्जावान लड़की कोई साधारण लड़की नही बल्कि एक क्रन्तिकारी युवा होगी जिसने समाज के तमाम संघर्षो के बाबजूद अपनी एक पहचान बनाई। राजनीती की चक्की में ऐसे युवा को पिसने नही देना चाहिए (अगर वो बेकसूर है)। मेरे को पूरा विस्वास है की दाल में कही न कही कुछ काला है ।

- राम

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में सभी लोगो का धन्यवाद देना चाहूँगा आपके समय के लिए और इस भावनात्मक मुद्दे पर अपनी टिप्पणी देने के लिए.
मेने बहुत ही संक्षिप्त में अपना लेख लिखा था तो बहुत सी चीजे अनकही रह गई थी. में अपनी तरफ से कुछ सफाई और अपना पक्ष रखना चाहूँगा -


एक महाशय ने लिखा है की - "चम्बल में डकैत बहुत पैदा किए हैं।"

मेरा स्पष्ठीकरण - पता नही किसकी टिप्पणी है, पर महाशय ये भूल गए है की राम प्रशाद विस्मिल भी चम्बल से ही थे. चम्बल के सैकडो वीर भारतीय सेना में और अन्य विभिन्न स्तरों पर देश सेवा में अपना योगदान दे रहे है. डाकू होने का कारण कुछ परिस्थितियां होती है, चाहे वो आर्थिक हो या फिर सामजिक . मेने भी अपने छोटे से लेख में यही लिखा था की प्रज्ञा सिंह ने चम्बल की सामाजिक विसमताओ से ऊपर उठाकर अपने आप को स्थापित किया , वह अपने आप में एक बड़ी बात है.


Ratan Singh जी लिखते है की प्रज्ञा सिंह जी को न्याय पालिका के सहारे छोड़ देना चाहिए -

मेरा स्पष्ठीकरण - में एक हद तक सहमत हूँ क्यूंकि मेरे को भारत के कानूनी आधारभूत ढाँचे पर पूरा विस्वाश है. राजनीतिक और तथाकतित धर्म निरपेक्ष पक्षों ने एक हद तक एस विस्वास को तोडा है पर जो सच होगा वो सामने आएगा ही- चाहे देर भले ही लग जाए. और में वादा करता हूँ की अगर प्रज्ञा सिंह दोषी है तो में अपने ब्लॉग में उनके घिनोने कृत्य की भर्त्सना करने से भी नही चुकूँगा. देश द्रोह तो हर मायने में निंदा का ही पर्याय बनेगा. ब्रंदा कारत मैडम ने तो इसे हिंदू आतंकवाद का नाम दे दिया बिना आगे पीछे देखे ... वोट बैंक के लिए ये नेता लोग अपने माँ बाप और धर्म किसी को भी बेच सकते है. सब कुछ राजनीती के पांसे लगते है इसलिए कभी कभी लगता है की कोई निर्दोष बेबजह इतना अपमानित न हो की वो जीने से ही डरने लगे, क्यूंकि कुछ लोगो के जीने का मतलब इज्जत और सम्मान , सिधान्तो पर चलना होता है.

आलोक सिंह "साहिल" जी जानना चाहते है की अगर प्रज्ञा सिंह दोसी है तो क्या में उनकी भर्त्सना करूँगा ?
मेरा स्पष्ठीकरण - जरूर करूँगा, फिर समर्थन करने की क्या बात है ? आतंकवाद को समर्थन देने की तो हम सोच ही नही सकते, हम भारतीयों ने आतंकवाद की जो मार झेली है , निर्दोष लोगो को ट्रेन में, बाजारों में, कश्मीर में मरते देखा है. किसी के जवान बेटे को तो किसी बेटी के बाप को बलि चढ़ते हुए हर रोज ही तो हम देखा रहे है देश के किसी न किसी हिस्से में, ऐसे में आतंकवाद को में कभी सही नही कहूँगा. बस जब तथाकथित धर्मनिरपेक्ष लोग इन भावनात्मक मुद्धो पर राजनीतिक रोटियां सेकते है तो बहुत दुःख होता है. मेने प्रज्ञा सिंह के बारे में लिखा है की अगर वो किसी षडयंत्र का शिकार है तो में हर सम्भव कोशिश करूँगा की में उनको इस सदमें से निकालने के लिए कुछ करू. इसलिए नही की वो हिंदू है बल्कि इसलिए की वो मुझको एक ईमानदार और निर्भीक युवा लगती है.

श्रीकांत पाराशर जी लिखते है की हमें न्याय व्यवस्था में विश्वाश होना चाहिए और हिंदू को हिंदू का और मुसलमान को मुसलमान का समर्थन करना छोड़ देना चाहिए क्यूंकि देशहित सर्वोपरी है.
मेरा स्पष्ठीकरण - में बिल्कुल सहमत हूँ. आतंकवाद का कोई धर्म नही होता और न ही इसका धर्म के आधार पर पक्ष लिया जा सकता है. आतंकवाद या फिर अलगाववाद के समर्थन के लिए मेरे पास कोई तर्क नही है.

Suresh Chiplunkar जी ने लिखा है की बीजेपी की आदत हो गई है उपयोग करके फेंकने की.

मेरा स्पष्ठीकरण - भारत के किसी भी राजनीतिक दल के पास कोई सिद्धांत नही है. ये सभी स्वार्थ की राजनीती करते है.

बुधवार, 1 अक्टूबर 2008

भारत की परमाणु यात्रा


भारत परमाणु परिवार का फिर से सदस्य बन गया है । मेने सोचा की चलो इसके इतिहास में जाकर कुछ निकाल कर लाया जाए।

- १९४७ जब भारत को स्वतंत्रता मिली , भारत ने शुरू से ही अहिषा के सिद्धांत को बढावा दिया इसलिए भारत ने कभी भी एक परमाणु हथियारों को महाशक्ति बनने की नही सोची। इसी सोच के साथ भारत ने १९४८ में Atomic Energy Act लाया गया।





3 January 1954 - Bhabha Atomic Research center की स्थापना की गई।




६ अप्रैल १९५४- अब तक लगभग ५० परिक्षण अनेक देसों ने किए और इसी पर तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने लोक सभा में कहा - "nuclear, chemical and biological energy and power should not be used to forge weapons of mass destruction" । पर सुनने वाला कौन था, दुनिया के ज्यादातर देश cold war में संलंग्न थे ।

१९६३ - अब जब सब ताकतवर देशो ने अपने अपने परिक्षण कर लिए और अपने आपको इस क्षेत्र में माहिर बना लिए, उन लोगो ने इसे परीक्षणों पर रोक लगाने की मुहिम शुरू की।

१९६८ - Nuclear Non-Proliferation Treaty (NPT) को लाया गया। पर ये भी बहरत की सुरक्षा जरूरतों के मुताबिक नही थी। इस पर भारत की लोकसभा में बहस भी हुई, और एक मत से सभी ने इसके विपक्ष में मत दिया.






१९७४ - भारत ने भी अपने परमाणु कौशल को संसार को दिखाया। हम कभी नही भूल सकते वो शब्द - "The Buddha is smiling" ।



कुछ तथ्य -


टेस्ट: Smiling Buddha


Time: 8:05 18 May 1974 (IST)


Location: Pokhran, Thar Desert, Rajasthan, India27।095 deg N, 71।752 E


Test Height and Type: Underground, -107 m Yield: 8 kt (12-13 kt claimed)




१९९६ - अब तक १००० से ज्यादा परिक्षण हो चुके थे, और तब CTBT (Comprehensive Test Ban Treaty ) को सारे देशो के समक्ष लाया गया। पर ये भी भारत की सुरक्षा चिन्ताओ के अनुरूप नही थी।



- ११-13 May १९९८ भारत ने पोखरण में तीन परमाणु परीक्षण किए और विश्व को अपनी काबिलियत से परिचय कराया।
भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल जी के शब्द -



"India is now a nuclear weapons state।""We have the capacity for a big bomb now। Ours will never be weapons of aggression।" Prime Minister Atal Behari Vajpayee, Thursday 14 May 1998



इसको operation शक्ति नाम दिया गया - http://nuclearweaponarchive.org/India/IndiaShakti.html



२१ वि शताब्दी में भारत एक नई शक्ति के रूप में आगे आता हुआ - एक लिंक http://nuclearweaponarchive.org/India/IndiaNPower.html




- २००५ जैसे की भारत एक महाशक्ति के रूप में उभर रहा था, परमाणु शक्तियो जैसे अमेरिका, फ्रांस आदि को भारत का विशाल मार्केट उनकी आर्थिक महत्वाकांछाओ को पूरा करता दिखा और तब तत्कालीन अमेरिकन रास्त्रपति बुश ने अपनी भारत यात्रा के दौरान भारत के साथ परमाणु समझौते पर हस्ताक्षर किए।




- २००८ भारत और अमेरिका की लोकसभा और सीनेट ने एस बिल को पारित कर दिया. और फ्रांस भी कहा कम रहने वाला था, उसने भी भारत के साथ सिविल nuclear समझोते पर हस्ताक्षर किए.



साभार -



http://nuclearweaponarchive.org/India/index.html


PAPER LAID ON THE TABLE OF THE LOK सभा ON 27TH MAY, १९९८



http://www.fas.org/news/india/1998/05/980527-goi1.htm


नया नया मौसम

वृक्षों के पत्ते अपना रंग क्यूं बदल रहे है
शायद कोई परिवर्तन की बेला हो
या फिर ये कोई नई कला है इनकी
भगवा रंग की चादर जैसे ओड़ रहे हों
उड़ते सुनहरे रंग के ये पत्ते
ठंडी हवा की कोमल झपकी सी दे जाते है
पत्झढ़ बोलूँ या फाल
नये मौसम का है ये आगाज।

रविवार, 28 सितंबर 2008

नमस्ते जी .....

पिछले कुछ दिनों से जिंदगी बहुत व्यस्त थी, हमारे घर में एक नए सदस्य का आगमन हुआ है, मेरे दूसरे पुत्र का जन्म ११ सितम्बर को अमेरिकन टाइम के हिसाब से सुबह १०:०१ बजे हुआ, हमने इस नन्हे पौधे का नाम अमेय दिया। एस हेतु मेरे माता पिता भी इधर ही आए हुए है सो उनके साथ भी थोड़ा व्यस्त हो गया था। ये सब बहाने थे मेरे अपने पन्ने पर न आने के, वैसे मेरे ज्यादा पड़ने वाले भी इधर नही है तो कोई फर्क नही पड़ता पर जैसा की मेने एक बार लिखा था की कोशिस regular होती रहनी चाहिए लिखने की बिना आलस्य और बहाने के।

इन दिनों में देश एक तरफ आतंकवाद में झुलसा तो दूसरी तरफ साम्प्रदायिकता की आड़ में, नेता लोग एस दौरान बिल्कुल उम्मीदों पर खरे उतरे और उन्होंने वही व्यवहार दर्शाया जिसकी सबको उम्मीद थी। किसी ने बजरंग दल को सिमी जैसा बताया तो किसी ने बोला की हम आतंकवादियों के सामने नही झुकने वाले। हमारे योग्य पर अक्षम्य प्रधानमंत्री जी ने हमेशा की तरह फिर से कड़े क़ानून को न लाने की वकालत कर सोनिया जी को खुश किया। उधर शिवराज पाटिल जी ने भी मैडम सोनिया जी के दरबार में पेशी कर अपनी कुर्सी बचने की कोशिश करते रहे और सफल भी रहे पर कभी भी देश को बचाने के लिए मेरे को कर्त्व्यनिस्ठ नजर नही आए। किसी ने मोदी के उन शब्दों पर ध्यान नही दिया जब उन्होंने बोला था की ये एक तरह का युद्ध है जिसके लिए हमें व्यापक स्तर पर प्रेपरेशन करनी होगी और इस युद्ध को जीतना होगा। मोदी की बात को क्यों सुना जायेगा, जहा पार्टी देश से बड़ी और निजी महत्व के लिए राजनीति हो रही हो वहां पर सही बात के लिए जगह न होना स्वाभाविक है

उधर लोग बजरंग दल को सिमी की तरह भी बता कर अपनी रोटिया सेंक रहे है। अपनी इटली वाली मैडम को खुश कराने के लिए हमारे राधोगढ़ के भुत पूर्व राजा दिग्गी राजा किसी से कम नही रहे, क्यों न हो , राज तो तभी करने मिलेगा। उन्होंने बोला की सिमी और बजरंग दल एक ही सिक्के के दो पहलू है । एस पर रोक लगा दो , इसको आतंकवादी संघठन घोषित कर दो। जब ख़ुद के घर में प्रोग्राम हो तब हिंदू धर्म ही याद आएगा और जब वोट बैंक की बात हो तो हिंदू धर्म की वकालत कराने वाले साम्प्रदायिक हो गए। में किसी धर्म या ग्रुप का पक्ष नही ले रहा बल्कि ये कहने कोशिश कर रहा हूँ की हम समस्या की जड़ को क्यों नही देखते। ये बात सही है की हिंदू लोग कुरीतियों के लिए जिम्मेदार है जिनकी वजह से अपने ही लोग इस महान धर्म और संस्कारों की परम्परा को छोड़कर कुछ लोगो के बहकावे में आ जाते है और जब कुछ लोग esi गलती का पश्चाताप कर कुछ सही कराने की कोशिश करते है तो हमारे राजनीतिक लोग कथित धर्म निरपेक्षता की आड़ में ग़लत बात को भी सही bataane पर utar आते है। कुछ हद तक इसाई मिशनरी भी जो उडीसा और कर्नाटका में हो रहा है उसके लिए जिम्मेदार है। वो पश्चिम में जाकर अपने अधिकारों के लिए रोते hai, और bhool जाते है की wo bharat mein rah rahe hai, bujurgo ne kahaa hai ki apane ghar ki baat bahar naa ye to theek rahataa hai. पॉप को अपना मेसेज तब देना याद नही आता जब कश्मीर में निहत्थे लोग मारे जाते हैभारत सरकार को आर्थिक रूप से हो रहे धर्मांतरण पर रोक लगानी होगी और हिंदू धर्म को पिचारे लोगो को सम्मान देना होगा, और इन नेताओ को कुछ अपने अन्दर की आवाज भी सुननी होगी। मेरे को नही लगता की बजरंग दल के लोग आतंकवादी है। वो गुंडागर्दी करते है जिसके लिए sakht क़ानून होना चाहिए। पर अपने वोट बैंक के लिए गुंडागर्दी और आतंकवाद की परिभासा एक कर देना सही नही है। पाबन्दी लगा दो गुंडागर्दी और कानून तोड़ने के नाम पर , पर देश तोड़ने के नाम पर नही। क्या लालू के प्यारे शहाबुद्दीन और कोंग्रेस के प्यारे सिबू सोरेन गुंडे नही है ? ये तो सत्ता का सुख भोगे क्यूकी वो aapaki सरकार बचाते है और जो विपक्ष में है वो आतंकवादी हो गया। देश को आगे बढाना है तो राजनीती को वैचारिक और सैधांतिक रूप से मजबूत होना होगा।

जागो प्यारे मनमोहन और बचा लो इस देश को इससे पहले की हर गली में गुजरने से पहले लगे की कही कोई विस्फोट ना हो जाए/
आज इतना ही ....

मंगलवार, 15 जुलाई 2008

Nuclear deal - good info

There is lots of chaos going on due to nuclear deal india is about to sign with IAEA. I am putting two important links here which will further help you to understand the criticality and significance of this deal -

Draft (full text) of deal -> http://im.rediff.com/news/2008/jul/iaea.pdf
Q&A session with top policy makers : http://specials.rediff.com/news/2008/jul/15sd1.htm

गुरुवार, 10 जुलाई 2008

सरपंच की इज्जत !!

सरपंच साहब ने बुलाई है बैठक
सरकायलो खटिया और कुरसियाँ
पहले खेलो तांस और फिर सुलगायलो बीडी बोहरे
इतर लगाने वालो भी आयो है
क्या है मंजर पार्टी जैसो
सरपंच साहब ने बुलाई है बैठक
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बोले मूला, सरपंच साहब आप महान हो
मिटटी के तेल से ही लाखों निचोड़ने में माहिर हो
घर का नाम रोशन कर रहे हो
जब से जीते हो, लाखों बना रहे हो
~~~~~~~~~~~~~~~~~
बोले मुरारी सरपंच साहब आप तो खिलाड़ी हो
हमें उधार देने वाले भगवान् हो
अफसरों से सांठ गाँठ करना कोई आपसे सीखे
सरकार से पैसा एंठने में आपका कोई जबाब नहीं
हम तो भूखे है इसका हमें मलाल नहीं
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जलाओ और बीडी , पानी की बाल्टी भी ले आओ
सब बोले एक मत में आप ही गाँव के सच्चे सपूत हो
नेता बनने के सारे गुण रखते हो
पढ़े लिखे लोग क्या कर पायेंगे
आप से क्या मुकाबला कर पायेंगे
आपने गाँव का नाम रोशन किया है
सरकार के पैसे से अपने घर को मालामाल भी किया है
इस बार डाल दो पर्चा MLA के लिए
बहू को कर दो खड़ा सरपंची के लिए
सरपंच साहब बहुत खुश हुए
दो चार अकडन लेते हुए
मीटिंग को सफल बताते हुए
सरकार को चूना लगाने फिर चल दिए !!

- राम

बुधवार, 9 जुलाई 2008

बढ़िया तो है सब

तपती हुई गर्मी में
झोला लेकर निकले
सायकिल में मारे पैडल जोर से
चिट्ठी घर घर देता डाकिया
सुई लगाता घर घर बीमार सा डाकधर
सरपंच अपनी अथाई पर बैठा मरोड़े मूछ
पर कोई नेता नही इनको रहा पूछ
पटवारी ने खाट के ऊपर बनाया अपना ऑफिस
मास्टर साहब ने टुइशन के बहाने घर को ही बनाया स्कूल
इंजिनियर ने दे दिया सारा काम ठेकेदार को
जनता की लगा दी बाट खा गए सारे पैसे को
रोड को कर दिया सकरा
तभी तो अब इनके घर में कटेगा बकरा
थानेदार साहब से परेशान है सुनार
रिश्वत लेते है ये बेसुमार

- Ram

अब बिकेंगे प्रजातंत्र के सिपाही


दिल्ली में बाजार गर्म है, उन लोगो का भाग्य बदलने वाला है जो अब तक सत्ता के विरोध और अल्पमत के अंधकार में ४ साल से जी रहे थे। अब उनके एक - एक वोट की कीमत करोडो में आंकी जायेगी। पी वी नरसिम्हा राव वाली कांग्रेस और शिबू सोरेन ने भी यही खेल खेला था और अब ये खेल अम्बानी बंधुओ के ख़ास अमर सिंह जी मनमोहन के आँगन में खेलने वाले है। धिक्कार है ऐसे प्रजातंत्र को जिसमें अवसरवादिता सिधान्तो से ऊपर है। जैसे अटल बिहारी जी ने बोला था की में ऐसी सत्ता को चिमटी से भी नही छु सकता , क्या मनमोहन जी नही कह सकते पर उससे भी क्या होगा , डील के नाम पर कांग्रेस का शहीद होना और जनता को चुनाव की एक और आग में झोंकना। भगवान् भरोसे मेरा देश है और पैसे के भरोसे है हमारे छोटे छोटे दल। देखिये अब देवेगौडा साहब के तीन सांसद है , अजीत सिंह के साथ भी कुछ इतने ही लोग है और ये सब माहिर राजनीती के खिलाडी है, इनके घर इसी तरह तो चलते है, इनका राजनीती को व्यवसाय बनाने में बहुत बड़ा योगदान है। देवेगौडा साहब इस देश के प्रधानमन्त्री रह चुके है और अब देश के लिए कुछ करने के बजाय अपने बेटे के सर्वहित में लगे हुए है। पश्चिमी देशो में इतने बड़े पद से सेवामुक्त होने के बाद ये लोग समाज हित में कार्य करना शुरू कर देते है और हमारे यहाँ ये लोग उस पद की महिमा का उपयोग अपने स्वार्थ के लिए करते है।

क्या हुआ अगर UP के किसी दूर जिले में कोई भूखा मर रहा है, सांसद महोदय को इससे क्या, अब तो अगर वो निर्दलीय है तो उनके बंगले पर मिठाई बाँटीं जा रही होगी क्योंकि उनको कांग्रेस से फ़ोन आ रहे होंगे, असहाय लोगो को बचाने की कवायद नही होगी, दिल्ली में तो अब सरकार बचाने की कवायद होगी। में इस डील का समर्थक हूँ, पर अगर डील इस तरह दलाली से आती है तो फिर क्या सार्थक पहलू है इसका ? कुछ लोग अपने ऊपर चल रहे केस वापस करने की डील करेंगे तो कुछ लोग अपना बैंक बैलेंस बढायेंगे। दिल्ली में अगले कुछ घंटो में सिधान्तो और सविधान को जलील किया जायेगा हमारे संविधान के रक्षको द्वारा। कांग्रेस ने भारत बंद के दौरान मरे लोगो के घर जाकर बीजेपी को बुरा बताकर अपना फर्ज पूरा किया , केन्द्र से और मुआवजा लाश की कीमत पर मिल जायेगा और उसके बाद सब बड़े नेता दिल्ली खरीद दारी करने के लिए सोनिया जी के सामने हाजिर होंगे।

कांग्रेस और सपा अगर क्रिमिनल है तो बीजेपी को में हिजडा कहूँगा जो महंगाई और इस दलाली के बीच सिर्फ तालिया बजा कर जनता को पागल बना रही है, क्या यही विपक्ष का दायित्व है ?? कोई एक तो हो जो विचारों पर कायम रहे, कोई एक तो हो जो अपने निर्वाचन क्षेत्र के बारे में सोचे, कोई एक तो हो जो अपने मतदाता के आंसू पौंछे या फिर स्वार्थ से ऊपर उठकर काम करे, ये लोग हमारे प्रतिनिधि है और इसलिए इतनी सारी अपेक्षाएं होना स्वाभाविक है। ऐसे लोग जो टेबल मेजो से संसद में लडाई करते है और प्रश्न पूछने के लिए भी पैसे लेते है...क्या उम्मीद रखे??

सपा ने कलाम जी को अपने तर्कों का सारथी बनाया तो मायावती ने मुस्लिमो को अपना भाई बनाया, अमर सिंह जी ने मोदी को देश के लिए बुश से भी बड़ा खतरा बताया है और सोनिया को कभी विदेशी बताने वाले अब उन्हें देश की बहु कह रहे है, ये हराम का पैसा कुछ भी करा सकता है। कैसी विडम्बना है - पसीने बहाने वाले का टैक्स ये पैसे के दलाल अपनी सुविधा और बकवास में फूँक देते हिया और फिर भी हम जैसे इस तरह लिखने वाले लोग फिर इनकी कठपुतली बन इनके इशारों पर नाचने हर वक्त तैयार रहते है।

- राम

सोमवार, 7 जुलाई 2008

श्रद्धांजलि


गली में आज अजीब तरह का सन्नाटा छाया हुआ था, हर कोई स्तब्ध था. घटना ही ऐसी रोंगटे खड़े करने वाली थी. सोने से पहले मूला के छोटे लडके मुरारी ने सुनहरे कल के सपने देखे थे, वो जब अपना ठेला लगाकर शाम को घर लौटा तो उसकी बहन कमला ने भाई को पानी देते हुआ कहा की कल तो मेरा दिन है !! रखाबंधन है, मेरा भाई मेरे लिए क्या ला रहा है ? मुरारी बहुत खुस हुआ और तपाक से बोला की इस बार कुछ नही दूँगा तेरे को... और मन ही मन हंस रहा था, क्यूंकि उसने मन में कुछ सोच रखा था. उसका धंधा आजकल कुछ कम हो रहा था, लोग नए नए बने मल्टीप्लेक्स बाजारों में ज्यादा जा रहे थे. सोचा कल सुबह जल्दी जागकर कुछ स्पेशल ऑफर अपने ठेले पर लगाऊंगा; जिससे कुछ ज्यादा भीड़ जुट सके, कई तरह के आईडिया उसने सोचे. सुबह जल्दी जागा, उसको परवाह नही की क्या हो रहा है बाहरी दुनिया में, जल्दी से नहा धोकर अपने ठेले को लेकर उसमें सारा चाट का सामान रखने लगा, उसने सोचा की कोई आवाज नही हो...नही तो कमला उठ जायेगी, वो तो आज इसलिए ही इतना आनंदित है की रात को जब घर आएगा अपनी बहन के चहरे पर प्यारी सी मुस्कान देखेगा. सब कुछ सामान्य सा ही था, आवारा कुत्ते घर के सामने पहरेदारी कर रहे थे, शर्मा जी ढूध लेने जा रहे थे, अभी कुछ लोगो के लिए बिस्तर पर और नीद लेने का टाइम था, पर मूला के घर में लोग इतना नही सो सकते थे, एक दिन भी अगर समय से अपने काम पर अगर वोह नही जाते तो दूसरे दिन का खर्च कैसे चलेगा और ऊपर से कमर तोड़ती हुई महंगाई , उन लोगो के लिए सुकून नही था जीवन में, चाहे कोई भी मौसम हो, काम तो करना ही था. मुरारी 10th में तो सक्सेना सर के लडके के बराबर अंक लाया था, अगर उसको प्रैक्टिकल में थोड़े और नम्बर मिले होते तो स्कूल में वही टॉप करता, लेकिन आगे फिर वो नही पड़ सका, उसने ठेले पर अपने पिता का हाथ बताना शुरू कर दिया, उसको ठेला तो विरासत में मिला था , कुछ दिनों बाद मुरारी का ठेला पूरे कस्बे में मसहूर हो गया था और कई कई बार तो सुबह का निकला हुआ वह देर रात तक अपनी दूकान बंद कर पाता. लोग उसके नाम से उसको जानने लगे थे. लोगो को लगता की उसने चाट इसलिए महँगी की क्यूंकि वह मसहूर हो गया है, पर उसके पीछे तो कमर तोरती महंगाई थी. कड़ी मेहनत के बाद कुछ कर्ज चुकाने में सफल हो पाया था. मूला बहुत खुश था की उसके लडके ने उसका काम बढिया तरीके से संभाल रखा है. एक बाप को इसके सिवाय और क्या चाहिए की उसका बेटा उसके पैरो पर खड़ा हो गया है. सब कुछ ठीक चल रहा था. पर जैसे कहते है की दिन के बाद रात और छांव के बाद धुप जरूर आती है, इस गरीब घर की खुशियों के लिए भी ऐसा कोई तूफान जैसे इंतजार कर रहा हो. मुरारी के पास इतना समय नही था की वह रात को टीवी पर समाचार देख सके या फिर रियलिटी shows का लुत्फ उठा सके, उसके लिए तो उसके रोज के ग्राहक और चाट खाने वाले ही सब कुछ थे. उसकी बाहरी दुनिया उस कस्बे तक ही सीमित थी. गीत गुनगुनाते हुए अपने ठेले को लेकर वह चोराहे की और बाद रहा था. आज उसे बाजार की सड़को पर रोज वाल्क के लिए आने वाले गुप्ता जी और शर्मा जी की जोड़ी नही दिखाई दी, सोचा की कही बाहर गए होंगे या फिर सोते रह गए होंगे, ऐसा सोचते सोचते उसने अपना स्टोव बाहर निकाला और उसमें हवा भरने लगा. कुछ आवारा कुत्ते ठेले के पास उसका सामान खाने की कोसिस करते उसके पहले ही उसने डेला उठाकर उनको भगाया. आज उसको अपनी सारी उपलब्धिया याद आ रही थी, वोह सोच रहा था की क्यों मेरे मन में ये सारी बातें आज आ रही है. बचपन , उसकी माँ की असहनीय अवस्था और फिर असमय मौत सब कुछ जैसे उसकी आँखों के सामने से गुजर रहा हो, और फिर अचानक से सोचता की में क्यों ये सब याद कर रहा हूँ ?? आज उसने कुछ स्पेशल मिठाई बनाई थी जो वह हर ५ रुपये के चाट पर फ्री देने वाला था, सोच रहा था की आज की सारी कमाई मेरी बहन के लिए होगी. वो उसके लिए आज सायकिल लाने की सोच रहा था, मूला ने एक दिन सायकिल की वजह से कमला को बहुत डांटा था और फिर वो सहम कर छत पर चली गई थी. उसके सपनों में वो सायकिल पर जा रही थी और अपने आप को परी समझ रही थी, बडबडा रही थी की देखो आज मेरे भाई ने सायकिल दिलवा दी , उसके सपने और बुदबुदाहट से मुरारी की नीद खुली और उसने उसको बोला सोने दे, सुबह उठना है मुझे. वह उस दिन की बात को उसी रात भूल गया था पर आज उसे वोह सब याद आया और सोचा की रात को ठेले की कमाई को लेकर और कुछ और मिलाकर सायकिल लूँगा. यही सब सोचते सोचते एक - डेढ़ घंठा कब निकल गया, पता ही ना चला. आज बाजार में उतनी चहल पहल नही थी. जैसे ही सूरज की किरणों ने उजाला बिखेरा, मुरारी भी आशान्वित होकर खड़ा हो गया की ग्राहकों के आने का टाइम हो चला. कुछ देर में ग्राहक तो नही पर कुछ कुरते पजामे वाले लोग आए और बोले, तेरे को पता नही आज बंद है और तुने दूकान खोल ली, कुछ ज्यादा ही अपने आप को हीरो समझ रहा है ये, इस तरह से उन लोगो ने उल्टा सीधा बोला और उसको धमाका कर आगे बढ़ गए. उसने सोचा की कोई गुंडे लोग लग रहे है, मुझे इनको नजरअंदाज कर देना चाहिए. और वह फिर से अपने काम में लग गया. इस बार फिर से कुछ और कुरते पजामे वाले लोग आए पर कुछ दूसरी पार्टी के लग रहे थे, उन्होंने उसका उत्साह बढाया और बोले की तुम हो सही नागरिक जो ऐसे में अपनी दूकान खोलकर बैठे हो . उन लोगो के कुछ पोहा खाया और आगे बाद लिए. मोरारी थोड़ा आशंकित हुआ और सोचा की बात क्या है, लग रहा है गुंडों के दो गुट उन आवारा कुत्तो की तरह घूम रहे है, सोचा की घर वापस चला जाए और फिर उसे अपनी बहन याद आई और उसने सोचा की नही आज तो मैं कही नही जाने वाला. एक आशा के साथ वह वही ग्राहकों के इंतजार मैं खड़ा रहा. इस तरह की गहमागहमी मैं कुछ सुबह के १०:३० बज गए थे. इतने मैं एक लड़का चाट खाने आया. मुरारी उसको चाट बना ही रहा था की कुछ लोग नारे लगाते हुए निकले की 'गरीबो की पार्टी कैसी हो, ... जैसी हो". फिर बोले की शान्ति से आप दुकाने बंद कर ले नही तो हमारे कार्यकर्ता आयेंगे और बंद करा देंगे. मुरारी तो जैसे अब हर चेतावनी नजरअंदाज ही करता जा रहा था, क्यों न करे, उसके मन मैं कुछ सुनहरे सपने जो पल रहे थे. मुरारी का ऑब्जेक्टिव था अपने पेट का पालन और घरवालो को खुसिया देना, जबकि उन नारे देने वालो का तथाकथित लक्ष्य गरीबो की पार्टी बनाना और बंद को सफल बनाना था. इतने मैं ही कुछ लोगो मैं जो दूसरी पार्टी के थे, धक्का मुक्की होने लगी और एक चिल्लाया , मारो सालो को, छोडना मत, इससे अच्छा मौका नही मिलेगा .... लाठिया बहार आ गई और शान्ति का वो मोर्चा हिंसक रूप लेने लगा, किसी ने बन्दूक निकाली और हवा मैं फायर किया, मुरारी ने ठेला वही छोड़ा और भागने लगा, दूसरी तरफ पुलिस पर भी पत्थर बरसने लगे और तभी पुलिस को आन्स्सू गैस छोड़नी पड़ी , इतने में ही किसी ने एक गोली चलाई और वो लगी भागते हुए मोरारी को ...और ऐसे कई मुरारी इस तरह बंद का शिकार बने.


लोग कहते है की बिना बंद के सरकार नही सुनती, सब ठीक है, तर्कों का कोई अंत नही, पर अब मुरारी के परिवार का क्या होगा?? उसकी गली के सन्नाटे के पास भी इसका जबाब नही. क्या सरकार की राहत वो खुसी देगी जो उसकी बहन को उसकी सायकिल से मिलाती ...??

जेहन मैं ऐसे सवाल हर पल आते रहते है
फिर भी हम इन्सान क्यों न रह पाते है
हर गली मैं ऐसे कई मूला और मुरारी मरते है
फिर भी ये बंद कैसे सफल होते है
हर तरफ सन्नाटा छाया रहता है
फिर भी राजनीती के दलाल व्यापार करते है
हर कोई सुनकर स्तब्ध रह जाता है
फिर भी ये बंद हर रोज होते है
जान और माल का नुकसान ये करते है
फिर भी ये बंद क्यों बंद नही होते है


- राम

शनिवार, 5 जुलाई 2008

बंद को बंद करो ....

गरीब लोग परेशान है, यात्री लोग असुविधा का सामना कर रहे है, ये कैसा बंद है , विद्यालय में हमें सिखाया जाता है की आपका हथियार कलम है न की हिंसा, ऐसा ही कुछ गांधीजी जैसे महान लोगो ने कहा है , पर हमारे राजनैतिक लोग जो अपने आप को आम आदमी का प्रतिनिधि बताते है वो क्यों आम जनता को इस तरह की मुसीबतों में डालते है ? क्या ये अपना विरोध किसी और तरीके से नही दिखा सकते ?

गरीब और मध्यम वर्ग राजनीति के स्वार्थी तत्वों के चक्रव्यूह में ऐसा फस गया है की देश में रोज कही न कही वो पिस रहा है। क्या बड़ी पार्टियाँ अपने कार्यकर्ताओ से नही बोल सकती की आप किसी की दूकान जबरदस्ती बंद नही कराओगे बस अपने विचार लोगो को पहुँचाओ और देखो कितने लोग हमारे साथ है ? ऐसे कई सवाल मन में हर वक्त आते रहते है, और जबाब है जाओ और कुछ करो ऐसा जिससे कुछ सुधर आ जाये, ब्लॉग पर भी लिखो पर कुछ करो भी। मन तो करता है की आज ही सब कुछ छोड़कर अपने लोगो के सुधार में लगा जाये। अंतर्द्वंद सा चलता रहता है , अच्छा है ये चलता रहे और आशा करता हूँ की ये वैचारिक संघर्ष एक दिन मुझे अपने लोगो के बीच ले जाये। में आडवानी जी से जिनकी में और मेरे जैसे बहुत युवा बुत इज्जत करते है, की वो बीजेपी को सैधांतिक रूप से मजबूत बनायेगे और बंद को वैचारिक लडाई से लडेंगे न की लाठी के जोर से। बीजेपी को जनता की आम मुसीबतों को आगे लाना चाहिए, गरीब जनता छोटे से छोटे काम के लिए रिश्वत देने के लिए मजबूर है, सदके गद्दों से भरी पड़ी है, क्यों नही आप जनता की परेशानी को आगे लाते हो ?
बंद को बंद करना ही पड़ेगा, ये आम जनता के हित की बात है, क्या कर्ज से दबा हुआ किसान बंद कर सकता है ? नही....वह तो सूखे खेतो में अपने पसीने को और बाहाता है जिससे कुछ पैदा हो सके, वो बस के सीसे नही तोड़ता बल्कि प्रयास करता है की मेरी फसल कैसे भी करके मेरे लिए खुशिया लाये। आम आदमी बंद नही, बल्कि प्रयास चाहता है, आम आदमी शान्ति और खुसी चाहता है, कितने दर्द की बात है की एक व्यापारी बंद के विरोध में आत्मदाह कर लेता है।

- राम

गुरुवार, 3 जुलाई 2008

मैं वापस आ गया हूँ -

मैंने सोचा है की अब में प्रतिदिन एक घंटे का समय अपने ब्लॉग को दूँगा। ये जरूरी है अपने हाथ में लिए काम को एक अंजाम तक पहुंचाने के लिए. हम लोग नए नये ख्वाब देखते है और फिर कुछ दिन के प्रयास के बाद उस दिशा में काम करना बंद कर देते है और इसीलिए कभी भी हर देखे गए ख्वाब को पूरा नही कर पाते और वही से फिर शुरू होता है की सपने कभी पूरे नही होते, सपने जरूर पूरे होते है अगर उस दिशा में आप कार्य करें. मन में अगर सोचा है कि अगर किसी के घर जाना है तो रास्ता तो तय करना पड़ेगा घर तक पहुचने के लिए.
शिकागो मैं इस समय गर्मी का मौसम है, 4th जुलाई आने वाला है जो कि इनका स्वतंत्रता दिवस होता है, बस लोग लंबे सप्ताहांत की तैयारी मैं जुटे हुए है। कोई कही लम्बी ड्राइव पर जाने वाला है तो कोई अपने परिवार के साथ कुछ पल एकसाथ बिताने का सोच कर बैठा है तो कोई कही दूर समुद्र किनारे की सैर का मन बना कर बैठा है, हर कोई कुछ न कुछ सोच कर बैठा है जिससे कि गर्मियों को पूरा लुत्फ उठाया जा सके, वैसे भी इस क्षेत्र मैं गर्मी का मौसम कुछ महीनो कि बात होती है और पता नही कब फिर ठंडी हवा बहने लगे, इसलिए हर कोई मौसम की खुशमिजाजी का भरपूर फायदा लेने के लिए उत्सुक नजर आता है, मेने यहाँ देखा है कि हर मौसम का लोग खूब दिल से मजा लेते है, यही शायद व्यस्त और अकेली जिंदगी मैं कुछ खुशियों और अपनेपन के पल दे जाए. जीवन के हर पल और हर अवस्था का जिस तरह महत्त्व होता है उसी तरह प्रकृति के हर मौसम का अपना अंदाज है. कुछ दिन पहले हम भी अपने कुछ दोस्तों के साथ एक जगह घूमने गए थे. इस साल हम लोग अनु (मेरी पत्नी) के स्वास्थ्य कि वजह से कुछ कम बाहर निकल रहे है, हम लोगों के यहाँ सितंबर मैं एक और छोटा सा मेहमान आने वाला है और इसलिए हमने अपने parents को यहाँ बुलाया है, वो लोग कुछ दिनों मैं ही आने वाले है तो बहुत कुछ तैयार करना है, इस वजह से हम लोग इस 4th जुलाई वाले छुट्टी मैं कही नही जा रहे हैं. बस अब तो उन लोगो के आने का ही इंतजार है कि कब आए और कुछ समय उन लोगो को दे जिनको हमारे समय की सबसे ज्यादा जरूरत है. लेकिन जब आ भी रहे है तो हमारी सेवा करने आ रहे है. कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है और मेरे को लगता है कि आपने पाने से ज्यादा खो दिया अगर आप अपने वतन से दूर आ गए हो. बिना समाज के मानवता को जीना कैसे सीखोगे और वही समाज आपके पास नही है. कितना भी परिवर्तन आप अपने आप मैं कर लीजिये, पर आप अपने मूल रूप से कभी मुंह नही मोड़ सकते और इसलिए आप हर वक्त मन के कोने मैं यहाँ सोचते रहते हो कि कुछ खो सा गया है. कुछ नही बहुत कुछ खो सा गया है.
अभी शिकागो मैं गर्मी शुरू हुई है और कुछ दिन पहले ही यहाँ के चुनाव मैं हिलेरी और ओबामा के बीच जो राजनीतिक गर्मी थी वो अन्तत: अपने निष्कर्ष पर पहुँची। जैसे हवा के साथ रेत और मिटटी उड़ती है उसी तरह ओबामा के ओजस्वी speaches और young लुक ने बहुत लोगो को आकर्षित किया. ऐसा नही कि हिलेरी हार गई हो, उसने सारी बड़े राज्यों मैं जीत हासिल कि, ओरतो के लिए एक प्रेरणा का श्रोत बनाकर वह उभरी, बहस मैं अपने आप को हिलेरी ने सर्वोच्च साबित किया, उनके पक्ष से कुछ tactics मैं गलतिया हुई और ओबामा के हूनर को नजरअंदाज किया गया इसलिए वह डेमोक्रेटिक पार्टी की उम्मीदवार नही बन पायी पर भीर भी एक वैचारिक छाप हम जासे हजारो लोगो के दिल मैं छोड़ गई. यही आश रखनी चाहिए कि आने वाले चुनाव मैं ओबामा विजय हासिल कर लोगो की मुसीबत दूर करे. पूरे दुनिया मैं इस वक्त तेल की कीमतों की वजह से बुरी हालत है, खाने की कीमतें बढ़ रही है, महंगाई आसमान छू रही है और लोग बेरोजगार हो रहे है. कही न कही वर्तमान मैं यहाँ के रास्त्रपति Mr बुश को इसमें योगदान जरूर है , इराक युद्ध से लेकर इरान विवाद तक हर समय ग़लत निर्णय लिए गए इसलिए मैं नये US President से कुछ उम्मीद लेकर बैठा हूँ.
हमारे देश मैं तो बंद बंद ही नही हो रहे है, पहले गुर्जर भाई थे जिम्मेदार , फिर गोरखालैंड और अब अमरनाथ जमीन। कुछ भी हो देश की सम्पति को उग्र भीड़ द्बारा नुकसान पहुंचाना आम बात है। पता नही ऐसा कब तक चलेगा और कब तक हमारे राजनीतिक दल गरीबो को और गरीब बनाते रहेंगे और टैक्स देने वालो का पैसा पानी मैं बहाते रहेंगे. कभी न कभी तो राजनीति को सभ्य होना ही पड़ेगा. आशा करते हैं कि हम जैसा सोचने वाले लोग कभी कुछ करके भी दिखायेंगे और उस दिन जरूर हम लोग राजनीती कि निंदा करना बंद कर देंगे.
आज इतना ही पर अब मैं लिखता रहूँगा. हां मैं http://www.google.com/transliterate/indic को जरूर धन्यवाद देना चाहूँगा जिससे मैं अपनी मात्रभासा इतनी आसानी से लिख सका.

शुक्रवार, 21 मार्च 2008

--क्या यही प्यार है --

प्रेम के सागर में डूबे
भूल जाते है बुरा भला
सोच नहीं पाते कुछ भी और
दिल को रहती है एक ही याद
मीत ही सब कुछ लगता है

प्रेम के सागर में डूबे ..

मन रहे विचलित विचलित
मीठी सी आहट रहती है
इन्त्जारों की गहरी खाई
उनसे मिलने की फिर भी चाहत

प्रेम के सागर में डूबे ..

जिस्म दो एक जान रहती
भूल ना पाते साथी को
लगे वो सबसे न्यारा दोस्त
कहे मन रहे वो हर पल पास
जाये ना छोर के मेरा साथ

प्रेम के सागर में डूबे ..

सोचे मन बन जाये राधा क्रिश्ना
चाहे उनको भूल सारी मर्यादा
सोचे उसको छोड सारे रिश्ते
दूर ना जाये मीत इक बार पास आके
प्रेम के सागर में डूबे ..
- राम कुमार त्यागी
शिकागो - ०९ फरबरी २००७

होली हुई नीरस विदेश में

हम चिकागो में बैठे हुए है इस बार फिर से होली को ईमेल के जरिये मनाया, मस्ती के इस त्योहार को इतना नीरस तरीके से मनाया, इंटरनेट पर कुछ समाचार देखे जिसमें सीधा प्रसारण मथुरा और अन्य शहरों से हो रहा था, यह एक और उदाहरण है हमारे वैश्वीकरण का, हम लोग जो बाहर आ गए है , भले ही यहाँ पर बहुत भारतीय है , मन्दिर भी बहुतायत संख्या में है पर वह सब मजे नही कर पाते जो अपने देश की माटी में रहने पर होते थे। विदेश में रहते हुए हम लोग देश की मिट्टी की सुगंध के लिए तरस से जाते है। सब कुछ है पर कुछ भी नही, उपलब्धिया हजारो है , पर पास में छोटा भाई नही है, माँ का साया नही है, लंगोटिया दोस्त नही है, इसलिए ही मेने लिखा की सब कुछ है पर कुछ भी नही है। हम लोग माया के चक्कर में भूल चुके है सब कुछ, पर क्या हमारा दिल वह सब यादें भूल पायेगा , नही.... वह तो हर इसे उत्सव पर उतावला हो उठता है। वैसे यहाँ पर देसी भाइयों के प्रयास से मंदिरों, गुरुद्वारों में लोग सप्ताहांत में मिलते है, बच्चों को हिन्दी कक्षाये दिलवाते है, दीवाली तथा होली जैसे उत्सवों पर कुछ प्रोग्राम भी होते है जैसे रावन दहन , रामलीला इत्यादी, अच्छा लगता है पर कुछ कुछ खालीपन जैसा तो लगता ही है । ये सब तो दिल बहलाने वाली बातें है , जैसे ओरिजनल गाने का रीमेक होता है वैसे ही ये सब बनावटी जैसा लगता है। कुछ परिवार आपस में मिलकर एक जगह इकठ्ठा हो लेते है और एक दूसरे को शुभकामनाये देकर साथ खाना खा लेते है , ये सब प्रयास हम लोग अपने बच्चो को अपनी संस्कृति के करीब रखने के लिए करते रहते है। कोशिश करते है की उन यादो पर कुछ मरहम लगे और एक उत्सव जैसा माहोल इधर भी बन सके पर आख़िर में एक ही चीज याद आती है, जगजीत सिंह जी की गाई हुई वो गजल - 'वो कागज़ की कश्ती और बारिस का पानी '।

गुरुवार, 20 मार्च 2008

रंगो की टोली, निकली खेलने होली

होली की हार्दिक शुभकामनाएं , रंगो का ये त्योहार आपका जीवन मंगलमय करे।

पिछले साल ये कविता लिखी थी होली पर , आपके सामने फिर प्रस्तुत कर रहा हूँ।

होली के इन भिन्न भिन्न रंगो का इन्द्रधनुष

मस्ती बन छाया हर तन पर

मन के उन्मुक्त तारो को जोड्ती होली की उमंग

भांग और गुलाल के मौसम ने फैलाया उल्लास

रंगो की टोलियां निकली गली गली

हर कोई भूला भेद, बहम, बैर की बातें

डूबा मस्ती, मिलन, मतवाले मस्त महोल में

फाल्गुन का ये महीना, होलिका का जलाता अहंकार

प्रक्रति और हमारी सन्स्क्रति का, अनूठा है सूत्रधार

चलो करें सैर रंगो के इस मेले की

चलो सुने कथा प्रहलाद, होलिका की

जला दो होली में अपने सारे गम और बुराई

दूसरे दिन करो रंग और भांग रूपी आनन्द की शुरुआत

यही तो हमें देती सीख इतिहास की ये मधुर स्म्रति

- राम कुमार त्यागी होली ३ मार्च २००७

मंगलवार, 18 मार्च 2008

The Subprime Primer

http://docs.google.com/TeamPresent?docid=ddp4zq7n_0cdjsr4fn&skipauth=true&p

शुक्रवार, 14 मार्च 2008

misuse of relief fund and poor farmers are dying

http://www.ibnlive.com/videos/61217/maharashtra-cm-fund-relief-for-clubs-kabaddi.html

I like this news coverage which we rarely find in today's commercial news era. Farmers are dying becasue of starvation and CM relief fund is being distributed to organizations owned by big names. sometimes I feel why should we youths who think alike on indian politics go in fields and clean it. again same word comes in my mind SHAME on these politicians most of them i never found sincere.

गुरुवार, 6 मार्च 2008

MNS - mein nahi sabhya (I am not civilized)

i was reading a news about a Bihari whose hands were cut by MNS activist in Pune. He was living there since last 10 years. He used to sleep on footpath in the night as he was not able to arrange a place to stay in night. i know its not a rare case in India but i am stunned by the act done, Why these political parties always make poor people their target ? I am not going to debate on who can go where to work, But definitely we should ask the question when any political party comes and ask you for a vote ..will you cut my hand if i dont vote for you ? i will not be surprised if their activist will answer Yes by looking on the indian political history. Raj is a young man and he should have some moderate ideas to expand his party, distruction is not the way to grow, it ultimately make victim humanity.

why these Politicians rasie the issue of poverty, deaths due to starvation - see the report where poeple are dying -http://www.globalpolicy.org/socecon/develop/2002/1112starvation.htm

We have seen seperation based on Religion, caste and color and now this is new kind of fobia where peoples are targeted based on the state they belong, this all comes from poltics, comman man of india dont want to do these act, but these leaders provoke and inspire them to do that ..for their popularity and vote bank. When it will come to Vote they will generate fear against muslims, if they think seperating people based on state can increase their vote, they dont hesitate killing, insulting victims. This is BAD politics, dirty fold of someone's selfishness. shame on them.

बुधवार, 30 जनवरी 2008

Fundamentals of a stock -

  • Profitability
    a. Gross Margin
    b. Net Profit Margin
  • Valuation
    a. P/E normalized
    b. P/Sales
    c. P/Tangible Book
    d. P/E excluding extraordinary items
    e. P/Cash Flow
  • Management effectiveness
    a. Return of Assets
    b. Return of Equity
    c. Return of Investments
  • Income Statement
    a. Revenue
    b. EBITDA
    c. Earning before taxes
    d. Net Income
    e. Normalized earning before taxes
    f. Normalized Net Income
    g. Operating Margin
    h. Pretax Margin
  • Financial strength
    a. Current Ratio
    b. Quick Ratio
    c. LT Debt/Equity
    d. Total Debt/Equity
    e. Payout Ratio
  • Per Share Data
    a. EPS excluding extraordinary items
    b. EPS normalized
    c. Rev per Share
    d. BV per Share
    e. Tangible BV per Share
    f. Cash per Share
    g. Cash flow per Share
    h. Indicated Annual Dividend
  • Growth
    a. Sales
    b. Earning per Share
    c. Dividend Growth

सोमवार, 28 जनवरी 2008

jeevan---जीवन--

jeevan---जीवन--

रुके सन्घर्ष कभी ना, हो यही कहानी मेरे जीवन की
बहते जाऊं नदिया की तरह, यही अभिलाशा मेरे मन की
पर्वत की तरह हो द्रढ निश्चय, मिटा दे खाई कथनी करनी की
रुकूं ना में आगे बढना, देख पल भर के गम या खुसी
बढता ही जाऊं में हर पल, खोजता मन्जिल नयी नयी
जब तक ना छुयेगा पानी को, क्या तू तैरना सीखेगा
फिर कैसे केवल बातो से , जीवन की नाव चलायेगा
मुस्किल रोकेंगी सफर, मिलेंगे उपहारों के फूल
कदम राही के रुके नहीं, प्रक्रति की सीख यही मत भूल
बटोही सोने से पहले, सोच ले मन्जिल कितनी दूर
समय को खोने से पहले, याद रख नही आये ये लौट
रुके सन्घर्ष कभी ना ....-

राम कुमार त्यागी

Naad (नाद)

Naad (नाद) by Ram K tyagi - a kavita on 26th Jan

देख सभी को इस मन में है अति उत्साह समाया
कविता को अभिव्यक्ति का मेने माध्यम है बनाया
नेसडाक में जब हमने तिरंगा था लहराया
उन्नति का अस्वमेघ घोङा भारत ने विश्व घुमाया
हमने दे दी ललकार विश्व को , अर्थशक्ति बनने की
पर क्या हमने इस उत्सव पर सोचा झोपङ पट्टी का
क्या हमने सोचा कब हर घर में बिजली होगी
कब हुम रोकेंगे रिश्वत को जो बीमारी से बढकर है
क्या हमने देखा जाति धर्म के बटवारे को
मैं तो यही कहूंगा सबसे इस गणतंत्रा दिवस पर
देते है कुछ समय देश को छूते हैं अनछूये सवाल
हम उनको भी आगे लायें जिन पर टिकी इमारत है
कन्गूरों की असली सोभा होती अछी नींव से है
नींव बनेगी सुद्रढ, जरूरत है कुछ करने की
चलो आज लें प्रन कुछ अपने अन्तर्मेन की बातों का
करें नाद उन्नति के सही मायनों का

- राम कुमार त्यागी
शिकागो - २६ जनवरी

Time to rethink - 26 Jan

Time to rethink - 26 Jan

there is no doubt we are progressing and making world wonder the way we are excelling in economic and industrial growth. we are now one of the world's fastest growing economy and in abroad we indians are now proud to be indian. the way Srisanth react in cricket, it is the confidence of a new India, emrging india, glorious India. there are hundreds of theories are daily written on our progress across the world. our richest heros from Ratan tata to Mittal, Ambanis to Birals are making enormous deals. But there is also India still living majoirity of them in poverty line, struggling for justice against rich and dirty politics. all politicians are now a days behaving lije goons, same time when we say we are largest democracy in the world we also humiliate ourself than most of the parties are growing based on the fear, cast, division and injustice. In our country still Manmohan Singh cant win the election even from south Delhi and mafia living in Jail like shahabuddin and others can win from anywhere. I have seen in rural areas that these politicians from village level worker to country level leaders all comes in politics to earn money based on illegal work . money which comes for construction and developemnt we even dont spend 10 % of that. people eat money from carosin distribution to road construction..all from contractor to MPs. This is very bad kind of culture growing in majority of india and our politicial need to make themself clean otherwise we are growing on one front and on other front we are making a huge gap and bad example for our future generation. for years , our culture show us the path where we should set examples to our future generations by setting moral and progressing growths. our politicial especially should rethink on their act and behaviour. youths we are indians and lets make our dirty politics clean so that our parents can porudly say that yah my son can join the politics .. it is all clean. politics gives the leadership and the way the country behaves so we really have to have them clean. when i was recently in India for my annual vacation, i went to my village in MP, my one of the uncle is Sarpanch of that village and he is now BJP's president for that small place. i remember 9 years before when he first time fount the election for that village i suppported him as he was young and he talked about change, i worked for him not becasue of he was my relative but as he was BJP member the party i support from all and he talked for change, he indeed brought the change after winning but still he was able to alot money and now he is in active politics to make money from illegal works, he has car and other stuff from that 2 number money, so in my recent visit he offered me to use his car where he displayed in front that he is president of BJP For that area, no one even was collecting Toll from him on highways, Toll guys just used to ignore that car upon looking BJP signboard, people used to salute him just because he was making them fool and they know he is making hell lot of money which is peoples money....this is what kind of culture ? this was the example of a root level worker and all of them are like that even more worse. Where Mayawat and Mulayam singh makes carores of money. they charge 50 lacs for a 1 km Road construction and put most of the money in their pocket. Govt employess and these leaders are really setting bad examples for our future generation. You have to earn black money -- thats kind of culutre we have in our country currently and we really need to rethink on the way we are behaving. we are emerging but same time we are detroying and deteriorating they way we should emerge.

Jai Hind

- Ram

someone is struggling to die

someone is struggling to die


What a diversity India have in terms of rich and poor, casts and religions. I have seen the poor India in my village and I have lived a rich Indian life in metros of Bharat, I have seen the humiliation of lower cast and I have felt the so called proud of belonging to upper cast. 'Moola' I refer to a guy who born in a village of MP and lived his whole life there, he struggled for earning so that he can earn the sort of money to arrange some breads for his kids. It was struggle when it was cold as he don’t have enough money to buy a new 'rajai' comforter, it was struggle for him when it was raining as he is having a small piece of land where his small house of mud is built, it is difficult to live during downpour days there, it was struggle for him when it was hot as he don’t have enough to pay for doctor bill when he or someone in family falls sick due to malaria etc, it was struggle when its voting time for him as everyone was pushing for a vote or bunch of votes of his family, his landlord who belongs to Congress or BJP asking and putting pressure on him to vote for them otherwise they will stop lending money to him, his BSP fellows (rich SC, ST folks) are threatening him to vote for them or otherwise to loose his social status, he has pressure from everywhere, from social workers to goons everyone is making their point based on him. He was struggling when it was a function in his house to arrange the money to entertain guests; he was struggling to make his wife and family happy when they see no hope for living next year due to drought. He was struggling when his small land crops well as his landlord calls him to payback ASAP. He was struggling when it was function at someone else place as he don’t have enough money to buy new /good cloths for his kids or grandkids, he was struggling when his wife was giving birth to his 4th daughter thinking about how he will grow her and thinking about dowry. He was struggling when his elder son wanted to pursue education but he doesn’t have money to pay the fee. He struggled all his life and now he is struggling to walk as he is too old and don’t have money to cure his old and paralyzed body.....he is struggling to end his life. He never saw the happiness even in emerging and shining India, whether it was BJP or Congress or BSP or even Red communist, he never could live his life and no one turn even TV journalist and even NGO workers to make his life in tune with progressive India.

- Ram

भारत की बीमारी

भारत की बीमारी

बहुत दुख देती है मेरे भारत की बीमारी मुझे
नाटक सा लगता है आज का ये विकास जहाँ सब कुछ है पर कुछ भी नहीं
कोई नही सुनता आज भी गरीब की, कोई नही देखता भूखे किसान को
न्याय के गलियारे हो या फिर सत्ता की बिसातें, हर जगह बिकती है ईमानदारी
आज भी पिसता है लड़की का बाप दहेज की चिंता में, बेरोजगार चुप है मगर म्रत है भत्ते की आड़ में सच्चाई को दबा रखा है सरकार के सम्मानो ने जो नही लांघ पाते मेट्रो की दीवारें
विधायिका पर दोगलो का राज है, तो अर्थव्यवस्था पर चुनिंदा लोगो का ही हक़ है
कैसे में कह सकता हू आज मेरा भारत महान है जहा पर सिर्फ राजनीतिक गुंडो का राज है
कहने को तो हमने खोल रखे है निशुल्क अस्पताल देनी पड़ती है शुल्क खून बेचकर वहाँ जिंदगी के उन रखवालो को जो पता नही कब बेच दे आपकी किडनी या शरीर को
क्यूँकि मेरे भारत में सजा अब गुडो को कहा कम पैसे वाले को मिलती है
अधिवक्ता पैसे लेकर कैसा भी केस जिता सकता है, समाचार वालो को ये सब रातो रात अमीर बना सकता है
हर कोई पैसे के लिए मरने मारने और संस्क्रती बेचने तैयार है
क्यूँ की ये पैसा ही आज के भारत की ताकत बन गया है
ये मेरे हिंनदुस्तां को कैसा रोग हो गया है जहा हर कोई सिद्धांतो को कचरे में फेक रहा है
गांधीजी की तो सिर्फ मूर्ति लगाते है, राम के अस्तित्वा के लिए टीके लिखे जाते है
सब कुछ मिटाने के लिए तैयार हो जाते है , अगर डॉलर वाली कंपनी वहाँ जमीन लेती है
मायावती के लिए सुरक्षा एसरायल से आती है पर यू पी के गरीब की लड़की विद्यालय 45 कि. मी. चलकर जाती है
सोनिया वायु मार्ग से गावों का भ्रमण करती है, उन्ही गांवो में एक 100 रुपये के लिए किसान आत्महत्या कार लेता है
ये कैसी राजनीति है जहाँ रोजगार पाते ही आप करोरो में बात करने लगते हो
बी जे पी अपने सम्मेलन के लिए लाखो रुपये साजो सजा में बहा देती है और पास वाले गावन् में सूखे की मार है
ये बीमारी नही तो क्या है जहाँ दिखता तो सब सुंदर है पर अंदर से सब खोखला है
स्वस्थ शरीर पर ही सुंदर कपड़े सोभा देते है, नही तो ये मजाक सा लगते है
गांवो के विकास से ही भारत सजता है नही तो ये बीमार सा और नंगा सा लगता है

- राम