इस पूरे सफ्ताह समीर जी और उनके buzz followers मिर्ची के बारे में बतियाते रहे तो में भी कुछ समय पहले बिस्तर से उठने के बाद इस विषय पर दार्शनिक विचारो में खो गया और flashback में चला गया. इस मिर्ची के वाकये ने मुझे हम लोगो की आदत के बारे में सोचने के लिए विवश कर दिया।
पहले जब हम गाँव में थे या इंडिया में थे तो बिना मिर्ची के बनी हुई सब्जी बीमार लोगो का खाना लगती थी, लाल मिर्ची और फिर हरी मिर्ची ऊपर से , काली मिर्ची मसाले में ...हर जगह मिर्ची ही मिर्ची अपने विभिन्न रूपों में। बिना मिर्ची का खाना पसंद ही नहीं आता था और हजम भी नहीं होता था, विचित्र आदत ने स्वाद की महिमा को चार चाँद लगा दिए थे। और अब इधर जबसे देश से बाहर आये है मिर्ची खाने की आदत ही गयी, लाल मिर्ची खाते समय सिर में खुजली होने लगती है, बच्चे भी इधर बिना मिर्ची का खाना खाते है तो उनके साथ खाना share करना है तो मिर्ची को छोडना पड़ता है। वैसे कभी कभी पत्नी जी एक ही सब्जी के दो फ्लेवर बनाती हैं - एक मिर्ची वाला (हरी वाली - लाल तो ईद का चाँद हो गयी है ) और एक सीठा वाला ...जिसे कभी हम बीमारों का खाना कहते थे ...पर ज्यादातर अब मिर्ची वाली सब्जी घर में नहीं बनती ...आदत ही नहीं रही अब ! ये आदत भी कैसी चीज है ..देश और परिस्थितियों के हिसाब से बदलती रहती है , ये कोई गिरगिट है क्या जो अपना रूप बदलती रहती है ?
पहले लोगो को समाज सेवा अच्छी लगती है और फिर नेता बनने पर पैसा खाना अच्छा लगने लगता है , चमचागिरी की आदत पड़ जाती है । चमचागिरी करवाने की आदत पड़ जाती है , और समाज सेवा या देश सेवा मजाक लगने लगती है ।
पहले टोपाज ब्लेड से दाड़ी बना ले ते थे और अब दाड़ी की आदत भी ख़राब हो गयी है ...शरीर के हर पुर्जे की अपनी आदत है और अपनी डिमांड है। मुझे तो लगता है की मशीनों की भी आदतें होती है, साइकिल को एक रोड से कई बार निकालो तो फिर उसको उस रोड की ऐसी आदत पड़ती है की अपने आप बिना बताये उस रोड से आपको ले जायेगी और आप बस सीट पर बैठे बैठे अपना चिंतन करते रहें। मेरे लैपटॉप को भी कुछ ऐसी ही अजीब से आदत हो गयी है - हाथ रख लू तो keyboard अपने आप टाइप कर देता है, और भी कई आदतें है कंप्यूटर को जो फिर कभी बताऊंगा। वो कहावत है न - करत करत अभ्यास के , जड़ मति होत सुजान ! मुझे तो लगता है - करत करत अभ्यास के, आदत पड़त है पक्की !
पहले नहर के पानी में तैरने और नहाने का मजा ही अलग था और अब स्विम्मिंग पूल की आदत हो चली है , उसके साथ स्विमिंग के कपडे अलग और एक अलग से स्पेशल तोलिया भी ...आदतों के साथ साथ चीजें भी बढ रही है। जैसे पहले सीदे सादे फ़ोन रहते थे और बड़े सुविधाजनक होते थे , और अब IPhone भी कम लगने लगा है और उसके साथ इतनी अटरम शटरम चीजें (accessories) की लिस्ट बनाने लगूं तो ... देखिये अब एक कमरा तो chargers के लिए ही समर्पित करना पड़ता है। फ़ोन , कैमरा , विडियो कैमरा, लैपटॉप (कई) , डेस्कटॉप, विडियो गेम console , कई तरह के म्यूजिक प्लयेर और हर एक का कान में लगाने का यन्त्र - जैसे बिजली के खम्भे पर अवैध रूप से पड़े हुए तार और चिड़िया के घोंसले की तरह अनचाहे से लगते हैं ... बचपन में वो देखा था बिजली के खम्भे पर ...तब घर का कमरा साफ रहता था और अब ये सब घर में देखकर लगता है की दूर से तो घर साफ है पर कितना मेस हो रखा है, ये तो मेरे और आपके दिल को ही पता है .....
इन सब आदतों को देखकर एक चीज याद आती है - काम क्रोध मद लोभ सब , नाथ नरक के पंथ ! वास्तव में तुलसीदास सही कह गए थे , इन चार आदतों ने जिंदगी में इलेक्ट्रोनिक्स और बाहर के दिखावे को इतना भर रखा है की आनंद लेने का सही अर्थ ही गायब है ।
बाकी फिर कभी ...इस पर बहुत कुछ लिखने का मन है पर अभी टाइम की कमी है ज़रा ....बहुत कुछ चार्ज पर लगाना है और लडके का नया Nintendo DSI भी configure और चार्ज करना है, ओह ३ और चार्जर - एक कंप्यूटर वाला, डोकिंग चार्जर और कार चार्जर ...और भी कई होंगे ...फुरशत ही नहीं इन नयी आदतों से मुझे कुछ शार्थक सोचने की ....
3 टिप्पणियां:
वाकई, खुद के हाथों ही जिन्दगी को सरल बनाने के लिए जिन्दगी कितनी जटिल हो गई है.
कभी लगता है कि साल में दो बार एक एक हफ्ते के लिए क्यूबा चले जाना चाहिये. न तो फोन, न कम्प्यूटर, न न्यूज पेपर....पूरा खाली दिमाग. बस फुल टाईम फन ही फन!!
वैसे हमने मिर्ची खाना नहीं छोड़ा यहाँ आकर भी. :)
पर मिर्ची की मात्रा और उसकी frequency तो कम हो ही गयी होगी ...अपनी निगाह इधर बनाए रखिये ....धन्यवाद !!
मेरी यात्रा अब सरलता की ओर मुड़ चुकी है । जटिलता अब मूड ऑफ कर देती है ।
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