शून्य !! विचारों की आँधी अगर शून्य हो जाए तो ? मन की उद्वेलना शून्य हो जाए तो ? या फिर भारत में नेताओं कि संख्या शून्य हो जाए …
शून्यमय संसार में क्या होगा …शांति ? या फिर शांति भी शून्य हो जायेगी ??
यहाँ रह रहे ज्यादातर लोगों से बात करो तो सबका भारत वापस जाने का मन है. कुछ लोग ९०'स् में आये और तभी से सोच रहे हैं कि इतना कमा लो कि कई शुन्य हो किसी अशून्य अंक के साथ जिससे भारत में शांति से रिटायर होकर रह सकें; पर कभी वो शून्य पर्याप्त ही नहीं हो पाता | एक महोदय मिले जो उम्र में काफी बड़े हैं, बच्चे कॉलेज जा रहे हैं, कल बता रहे थे कि बस ये जिम्मेदारी पूरी हो जाए और साथ में इतना कमा लिया जाए कि बस फिर जल्दी से भारत चला जाए …ऐसे वो पिछले १० साल से अधिक समय से सोच रहे हैं | न ये सोच शून्य होती है और न पर्याप्त शून्य उनके बैंक खाते में जमा हो पा रहे हैं | उल्टा भारत में महंगाई शून्य को जमीन पर छोड़ आसमान में बादलों के भी पार पहुँच गई है जिसमें पश्चिम से की गई कमाई नगण्य ही लगती है और जब वापस जाने का मन बनाते हैं तो सिर्फ शून्य ही हाथ में होता है - बिना अशून्य नंबर के !! वैसे भी जिम्मेदारियां कब खत्म होती है …हर समय एक के बाद एक सीढ़ी चढने को मन उत्सुक ही रहता है |
कभी कभी छोटी छोटी चीजें , नगण्य प्रतीक कितने काम के होते हैं, ऐसा ही ये शून्य है - बचपन में सुनी शेर और चूहे की कहानी सिखाती थी कि कभी किसी को कम न आंको !! शायद कलमाडी और पवार जैसे नेताओं ने बचपन की इस कहानी को बड़े ध्यान से पढ़ा था इसलिए ही तो शून्य पर शून्य लगाए जा रहे हैं - क्रिकेट और CGW, शक्कर मीलों और अपने राजनीतिक दाव पेंचों से !!
शायद शून्य ईश्वर है और ईश्वर शून्य है, शून्य के आसपास ही हम सब घूमते रहते हैं , शून्य की बनायी माया में सब उलझे हुए हैं , ईश्वर भी तो शून्य की तरह मायावी है - हम सब अशून्य हैं जिनका शून्य के बिना कोई अस्तित्व नजर नहीं आता| ९ के नंबर के बाद आगे बढ़ना है तो शून्य का सहारा लेना ही होगा ! ब्रह्मगुप्त ने ब्रह्मस्फुट सिद्धांत ग्रन्थ रचते समय जरूर विष्णुलोक कि यात्रा की होगी और तब ईश्वर ने बोला होगा कि मैं शून्य के रूप में अवतार लेकर प्रथ्वी पर विचरण करने आ रहा हूँ !!
शून्य कहने में भले ही असम्पूर्ण है पर शून्य के बिना सम्पूर्णता संभव ही नहीं लगती !!
आपका शून्य कैसा है और क्या व्याख्या है आपके शून्य की ???
16 टिप्पणियां:
फिलहाल तो ..शून्य ..सही जगह पर ही है...
अर्थात ..दाहिनी तरफ (१०००)...जब तक वहां है ..कोई समस्या नहीं है....बस स्थान परिवर्तन न करे (०००१)...
वर्ना...आप कल्पना कीजिये न ...मेरा क्या होगा...!!
हाँ नहीं तो...!!
अब क्या बतायें...यहाँ तो भारत लौटने का ख्वाब पाले शरीर की हालत यह हुई कि खुद ही शून्य की तरह दिखने लगे है बिल्कुल गोल. :)
सबसे पहले तो आपने हमारे मन को शून्य से भाग दे दिया और हमारे विचार अनन्त हो गये।
अब लोगों को निश्चय करना है कि अपनी आय में शून्य बढ़ाते जाना है कि अपने चिन्तन में शून्य से भाग दे अनन्तता को प्राप्त करें।
यहाँ भी वही हाल है, लोग लघु-कुबेर बनने के लिये दौड़ लगा रहे हैं।
शून्य कि अपना एक महत्त्व है जो एक सही स्थान पर ही अच्छा लगता है जैसे गेहूं १० रुपये किलो अच्छा है अब गेहूं १००किलो बुरा है अच्छी रचना बधाई
बहुत बढ़िया आलेख
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
हमने हमारे शून्य तय कर रखे हैं, और आगे क्या करना है यह भी, पर क्या आपने तय कर रखे हैं ?
अपने शून्य केवल इतने ही होने चाहिये कि २ रोटी सुबह शाम मिल जाये और ३ समय की दवाई का इंतजाम !!
ज्यादा शून्य लग जाने से हमारी रोटी खाने की तादाद तो शून्य में नहीं बड़ेगी, कि हम २० रोटी सुबह शाम खायेंगे पर हाँ ये तादाद दवाई में जरुर बढ़ सकती है।
धन्यवाद बहुत कुछ वापिस से सोचने पर मजबूर किया और मैं फ़िर अपने चिन्तन में हूँ।
इस शून्य से तो पार पाना इतना आसान नहीं लगता ! एक के बाद दुसरे की तमन्ना तो बढती ही जाती है !
शून्य में अस्तित्व की तलाश?......ना ख़त्म होने वाला सिलसिला!
'भावना की शून्यता'... मैंने कभी यूं आंकी थी: http://adabnawaz.blogspot.com/2008/06/blog-post.html#links
भावना-शून्यता !
इससे पहले कि भुजा पर मेरी ,
अध-खुली उसकी कमर सट जाती,
तेज़ झटको से उछलती बस में,
आँच मर्यादा पे उसके आती!
ऐसा होने न दिया,
खुद को संभाल लिया,
बस उछलती ही रही - वोह संभलती ही रही।
मैं था संभला ही हुआ…
अपनी मर्यादा में सिमटे-सिमटे ?
उसकी मर्यादा बचाने के लिये ??
चीख़ हल्की सी कई बार उठी…
शौर में दब भी गई,
बस कि चलती ही रही।
और 'शालीनता' धारण कर मैं ,
उच्च मूल्यो का प्रहरी बनकर ,
'उस' निकटता से भी अविचलित सा,
व्यस्त अख़बार के पन्नो में रहा!
शोर को चीर के एक चीख़ यकायक उभरी,
एक झटका सा लगा, बस भी वही ठहर गयी।
गिर चुकी फ़र्श पे जब तक मैं संभालू उसको।
रक्त-रन्जित था परिधान, फटी आँखे थी!
दर्द का एक समन्दर था ---वोह क्या आँखे थी!
एक सन्देश पढ़ा जिसमे शिकायाते थी…
"बैठने को न सही, 'टिकने' जो मिल जाता था,
मेरा सपना यूँ ही मिटटी में न मिल पाता था।"
-मन्सूर अली हाशमी
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http://aatm-manthan.com
अदा जी, आपने तो अपने शून्य सही जगह फिट कर रखे हैं !!
समीर जी, इतना भी क्या सोचना ..आ अब लौट चलें :)
प्रवीण जी, सही कहा कि शून्य अनंत का भी वाहक हो सकता है
@सुनील जी , आपने सही बात कहीं , शून्य का अर्थ हर किसी के लिए अलग अलग !!
मंसूर अली जी, बहुत नियन्त्रित भाव है जनाब के
विवेक जी, आपने बढ़िया किता है कि इनको परिभाषित कर रखा है
शिवम, चलो हम भी विवेक जी की तरह शून्य परिभाषित करें ...पर क्या फिर भी हम संयम रख पायेंगे ?
फिलहाल तो हम भी शून्य और अशून्य के आंकड़े भिड़ाने में लगे हैं...इस चक्कर में जिंदगी ही शून्य ना हो जाए
शून्य से ही से श्रृष्टि का निर्माण होता है | इसलिए जितने भी बटोर सको हमेशा कम ही लगेंगा | भारतीयों की वह उक्ति आपने सूनी ही होगी " संतोषम परम सुखं "
jhamaajham.
तुम्हारे लेख से मिलता जुलता इक परम मित्र है (कॉलेज में इक साल कनिष्ट)... वो शुन्य के पीछे भाग रहा है... भागता जा रहा है...
वैसे तो हर कोई भागता है. पर वो दीवाना हो कर भाग रहा है. रफ़्तार बदती जा रही है. अपनों से दूर होता जा रहा है. इस उम्मीद में के जब पर्याप्त शुन्य इकत्र कर लेगा तो अपनों को अपने साथ रखेगा और अपने शून्यों से खुश रखेगा.
@भवदीप - क्या वो गिनती कभी खत्म होगी ?? - कहीं बहुत देर ना हो जाए ....
@JanMit
संतोष से सुख होता तो शून्य का जन्म ही क्यों होता ??
@भुवनेश - देख लो - गणित आपको सिखा दिया है :)
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