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मंगलवार, 25 मई 2010

मेरे तट पर आते रहते है ज्वार भाटे ....

जीवन की राह भी कैसी कैसी पगडंडियों से गुजरती है  - कभी धुप तो कभी छाँव. कभी इतने काम कि फुरसत न मिले ब्लॉग लिखने की भी.  आज सुबह से शाम तक बहुत व्यस्त रहा और ब्लॉग लिखने या पड़ने का कतई समय नहीं मिला.  अभी लग रहा है कि बहुत कुछ है अधूरा !!

कुछ दिन पहले एक लेख भारत के पासपोर्ट के बारे में लिखा था.  आज कनाडा का वीजा  मिल गया है...ऐसा समाचार मिला, शायद उन लोगों ने मेरी पोस्ट पढ़ ली होगी इसलिए इतनी जल्दी वीजा दे दिया.  लेकिन इस न्यूज़ ने तो और भी व्यस्त कर दिया,  कनाडा से अमेरिका लौटने के लिए मेरे पासपोर्ट पर अमेरिका के वीजा की स्टंप होना जरूरी है , इसलिए कनाडा के किसी शहर के अमेरिकेन कांसुलेट में जाना पड़ेगा.  हमें तो यात्रा हर सप्ताह करनी थी, इधर पता चला कि सबसे पहली तारीख वीजा स्टंप के लिए जून २९ मिल रही है यानी लौटना संभव होगा एक माह के बाद. 

फिर क्या टेंशन शुरू...कौन जाएगा इस तरह से और कौन रुकेगा एक महीने दूर परिवार से.  पर फिर ऑफिस वालों ने सारे कनाडा के अमेरिकेन कांसुलेट पर retry  मार मार कर Montreal में अगले सप्ताह की तारीख ढूंढ ही डाली.  अब देखिये ऑफिस का काम है टोरोंटो में, गुरुवार को जाना पड़ेगा Montreal ...कितना गरीब की जान लेंगे ये लोग, वो तो शुक्र है हवाई जहाज बनाने वालों और चलाने वालों का !

समीर जी से मिलने का भी मन है, देखो पहले इस चक्रव्यूह से तो निकलूँ.  तारीख पक्की हो गयी है तो अब कागज़ भरने में व्यस्त.  सारी जिंदगी डर डर के जीने वालों और हर मोड़ पर समझौते करके पुलिस केस से दूर रहने वालों का ये हाल है !! दायूद अब्रहीम तो बेचारा और भी परेशान होता होगा :)  बहुत झंझट है भाई ये वीजा सिजा के ...क्यों न सब छोड़ मस्ती से गाँव में वापस रहने लगूं ....पर जीवन इसी का नाम है ..परेशानी कहाँ नहीं होगीं ..ऐसी दार्शनिक और समझौते वाली सोच हमें जिंदगी की पटरी पर ऐसे ही दौडाती रहेगी.

इतनी व्यस्तता और प्रोडक्टिविटी जीरो.

खैर कुछ अच्छी बातें भी हुई.  निकुंज के स्कूल का फील्ड डे था तो थोडा हम भी सेवा करने चले गए ..वोलंटियर गिरी करने !!  पर बहुत मजा आया, ९० डिग्री F में बच्चे मासूम और कर्मठ लग रहे थे.  कुल मिलकर बाहर स्कूल के पीछे वाले मैदान पर २१-२२ बूथ बनाये गए थे, हर बूथ पर एक विशेष खेल हर समूह को खिलाना था.  (चित्र में थके हुए बाल गोपाल )

मेरी ड्यूटी थी बूथ नंबर ६ पर , जहां पर दो विशाल गेंदे थी और उनके साथ बच्चो को ज़रा कुछ रोमांच कराना था.   इस तरह के हर बूथ पर हर समूह को खेलना था, मतलब हर बच्चे को २०-२२ गेम खेलने थे.  हर कुछ मिनट में एक घंटी बजती और बच्चे अपनी पानी की बोतल उठा दूसरे बूथ की तरफ दौड़ पड़ते. थके हारे मासूम जवानों का जोश फिर भी देखने लायक था.
(चित्र में बूथ # ६ और गेंद को फेंकते बच्चे )
PTA (Parents Teachers Association ) की तरफ से ये आयोजन था और आयोजको ने बहुत ही क्रमबद्ध तरीके से सब कुछ आयोजित किया हुआ था. मेरे लिए  यह एक बहुत ही सुखद अनुभव था पर अंत तक में भी धूप सहन नहीं कर पा रहा था, अरे भाई ये क्या हुआ ...फिर इंडिया में क्या होगा ...उधर तो इतनी गर्मी है इस साल.  एक ठंडा ठंडा पेप्सी पीया थोडा टेंटुआ शांत करने को. 



सूरज की गर्मी से तपते हुए तन को मिल जाए तरुवर ....अरे नहीं ...ऐसी (AC ) की छाया

इसका आभास हुआ जब पता चला कल कि कार का AC काम नहीं कर रहा,  वैसे भी बेचारा ९ महीने के उपवास के बाद कल खोला गया था.  कैसी जिंदगी है ये, ठण्ड में गर्मी और गर्मी में ठंडा चाहिए अब.   लपट नहीं चलती इधर ...नहीं तो AC भी फ़ैल हो जाएगा.




गर्मी आई है तो ये मजे भी हो जायें

गर्मी से ऐसे हुए हम सभी बेहाल 
पसीने को पौंछ पौंछ गीला हुआ रुमाल
कूलर की भौं भौं से सर हुआ हलाल
नौता खाने जा नहीं पाते अब तो चुन्नीलाल
पानी की किल्लत से हर कोई हुआ हलाल
नहाने से बच्चों को अब कुछ नहीं मलाल
ठंडक को तरसें अब तो हर पक्षी डाल डाल

और अंत में हमारे ब्लॉग समूह के मानसिक हलचल वाले ज्ञान दत्त जी के स्वास्थ्य लाभ के लिए ईश्वर से शुभकामनायें.

6 टिप्‍पणियां:

दिलीप ने कहा…

sahi keh rahe hain...sir waise india me mujhe 2 saal lage passport banne me...:d...aur yahan ki garmi...uff...khair is garmi me bhi khoon nahi ubalta...

Ra ने कहा…

भाई सही है ये ...मैं सहमत हूँ

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

काश हम लोग भी बच्चों की तरह फील्ड डे मना पाते । मन ललचा गया ।

Smart Indian ने कहा…

फ्रेंच के कुछ शब्द/वाक्य याद कर लेना. मौन्त्रिअल में अमरीकी कांसुलेट के पास ही होटल दौफिन (Hotel Dauphin - 1025 de Bleury Street) ठीक है. आसपास घूमने/चित्र लेने को बहुत कुछ है.
वोलंटियर गिरी का मज़ा ही कुछ और है. चित्र बढ़िया हैं.

भवदीप सिंह ने कहा…

सबसे पहले तो बधाइयाँ. विलायत जा रहे हो. हमारे Napeville ग्राम का नाम रोशन होगा.

आब ये बताओ के लड्डू असल खिलाओगे के यहीं ब्लॉग पर आभासी खिला दोगे?

Montreal बहुत सुन्दर है. ४ साल पहले चक्कर लगा था. ४ दिन की ट्रिप लगाई थी. बहुत अच्चा लगा. फिर जाने का मन है.

टोरंटो हम भी सोच रहे हैं के जून में जायेंगे. तुम बस का मासिक पास लोगे या दिहाड़ी? या फिर शताब्दी से जाओगे? जून के आखरी हफ्ते में तुम्हारे साथ ही निकल लेंगे.

राम त्यागी ने कहा…

@Anurag jee, thx for the hotel information, आपकी सलाह पर बस अब तो यहीं रुकना होगा :)

@Bhavdeep, चलो जल्दी से मिलो टोरोंटो में फिर :) वैसे सप्ताहांत में तो में नापर विल्ले गाँव में ही मिलूँगा :)