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मंगलवार, 18 मई 2010

अंतर्द्वंद - कुछ चीजें पसंद नहीं आ रहीं ?

अंतर्द्वंद
कुछ चीजें पसंद नहीं आ रहीं आजकल, या फिर मेरे  सोचने के मुताबिक नहीं हो रही हैं. 

नक्सली समस्या
नक्सल से निबटने के सरकार का तरीका समझ नहीं आ रहा. चिदंबरम एक जाने माने सुलझे हुए लीडर लगते हैं, पर क्यों फिर बार बार CRPF और आम आदमी नक्सल हिंसा की आग में बुरी तरह जल रहा है  ?

ब्लॉग्गिंग के गुट
वैसे ये स्वाभाविक प्रवृत्ति का नतीजा है,  जिनको आलस में कुछ लिखना नहीं या सोचना नहीं, वो इस तरह की मानसिक प्रवृत्ति की तरफ झुकते है.  और वैसे भी चाहे कोई ऑफिस हो या दल, देश हो या विदेश - भले और बुरे का साथ तो रहता ही है.  धुप के बिना छाँव का मजा ही क्या.
अनुराग शर्मा  जी का उल्लेख उल्लेख विशेष श्रेणी में इसलिए की वो  कुछ अलग और ज्ञानवर्धक लिख रहे हैं. 

राहुल गाँधी
राहुल का कभी मिलबैंड और कभी बिल गेट्स को अमेठी की सैर कराके गरीब लोंगों को सर्कस की भांति दिखाना अजीब लगता है. विकास पर ध्यान दें तो अपने आप लोग आयेंगे जैसे बंगलोरे और हैदराबाद जाते हैं.  भीख के लिए किसी अमीर को बुलाना कौन सा स्वाभिमान है . पहले भी राहुल के बारे में लिखा है,  नीचे लिखी दो लिंक देखी जा सकती है -

राहुल गाँधी का सर्कस
कलावती को भूले राहुल लाला

कोई दुश्मनी नहीं है इनसे पर जिस हिसाब से लिबर्टी इनको मिली है, उम्मीदें ज्यादा हैं और ये लीपापोती करते दिखते है.

मेरे ब्लॉग का Template
 ठीक नहीं लगता पर समय का अभाव या आलस...इनकी वजह से जस का तस पडा है.

यूरोप की अर्थव्यवस्था
अब ये तो हद ही हो गयी मेरे सोचने की. पर मेरे जैसे कई लोंगों का पोर्टफोलियो ख़राब कर रखा है मार्केट में इस संकट ने.


अंतर्द्वंद के क्षणों के कुछ भाव इधर बिखेर रहा हूँ ....
ज्वार भाटे आते रहते हैं मेरे तट पर
विचार उद्वेलित होते रहते है मेरे मन पर
लोग आते रहते है मेरे ब्लॉग पर
जैसे चिड़ियों की चहचहाहट हो खेत पर
रहंट की कलकल ध्वनि हो कुएं पर
घंठो की करतल हो जैसे बाग़ के मंदिर पर
भजनों की धुन जैसे माता के द्वार पर



9 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

अरी इतना परेशान क्यों होते हो? जल्दी ही संकट के बादल हटेंगे, खुशियों की बौछारे आयेंगी.

वो सुबह कभी तो आएगी ! वो सुबह कभी तो आएगी !

--भवदीप सिंह

Smart Indian ने कहा…

चिदंबरम एक जाने माने सुलझे हुए लीडर लगते हैं
आप व्यंग्य भी अच्छा कर लेते हैं .... ग्रोमोर याद है? बचत खाते के चेक पर प्रोसेसिंग फी याद है? कलयुग में यही लाभ है कि शफ्फाक धोती बाँधने भर से मि. क्लीन बना जा सकता है

वो कुछ अलग और ज्ञानवर्धक लिख रहे हैं...
ज़र्रानवाज़ी का शुक्रिया - हीरे की कद्र जौहरी जानता है.

बिल गेट्स...
प्रभु की कृपा भयऊ सब काजू...

मेरे ब्लॉग का Template...

सहज पके सो मीठा होय. no cluttering, fast loading

यूरोप की अर्थव्यवस्था...महालक्ष्मी नमोस्तुते!

जैसे चिड़ियों की चहचहाहट हो खेत पर
मधुर!

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर ने कहा…

jandar,shandar,damdar. aapne mere blog par likh "kuchh or likho" to suggest karo kya likhu. narayan narayan

मनोज कुमार ने कहा…

बहुत अच्छी प्रस्तुति।

बेनामी ने कहा…

ज्यादा कंप्यूटर पर बैठता नहीं हूँ. आज कई महीने बाद रात को बैठा हूँ तो सोचा के यहाँ भी कुछ लिख दू.

नक्सली समस्या
ज्यादा पता नहीं. पर कुछ हफ्ते पहले एक बिहारी मित्र से वार्तालाप हो रही थी. उसका नजरिया थोडा हट कर था इस मुद्दे पर. और मुझे थोडा ठीक भी लगा. नक्सलियों को मिटाने से मूल समस्या नहीं हाल हो जाएगी. हाँ थोड़े वक़्त के लिए खून खराबा जरुर रुक जायेगा. पर असल समस्या क्या है? क्यों उन्होंने हथियार उठाये? इस बारे में हम तुम कितना जानते हैं? और कितना जानना चाहते हैं?

ब्लॉग्गिंग के गुट
येही इक ब्लॉग है जो पड़ता हु. ब्लॉग्गिंग या इन्टरनेट से दूर ही रहता हु. बहुत छोटा मुह है और बहुत बड़ी बात बोलनी होगी. इसलिए चुप ही रहूँगा इस मामले में.

राहुल गाँधी
पता नहीं यार. दूध का धुला तो कोई नहीं. पर जहाँ तक राहुल का लगता है. थोडा तो अच्चा लगता है बाकी के चोरो से.

मेरे ब्लॉग का Template
सस्ता, सुन्दर टिकायु.. क्या बुरे है भाई? जगमग रंग बिरंगे विज्ञापन नहीं हैं. अच्चा है ना.

यूरोप की अर्थव्यवस्था
अब ये तो इस बात पर निर्भर करता है कि आप किस पोर्टफोलियो को महत्व देते हैं. देखा जाये तो दो इतने प्यारे बचे हैं, समझदार बीवी है. घर है, कार है. दो वक़्त कि दाल, रोटी, सब्जी, सलाद सब कुछ है. क्या चहिये भाई.. खुश रहो.. ख़ुशी बाटो.

--भवदीप सिंह

राम त्यागी ने कहा…

भावदीप भाई, बहुत अच्छा विश्लेषण किया आपने.
नक्सल के बारे में बहुत अच्छी बात कही है की हमें जड़ से मिटाने के कुछ प्रयास करने होंगे, पर किसी न किसी को तो उस प्लान के साथ आना होगा. छत्तीसगढ़ में BJP की सरकार और केंद्र में कांग्रेस की , कोई कुछ करता नहीं दिखता , इसलिए मन में थोडा द्वन्द था.

पोर्टफोलियो वाली बात तो आपने बिलकुल सही की. फॅमिली में मस्त रहने का ..चलो छोड़ो ..जो होगा अच्छा होगा :)

राहुल गाँधी शक्ल से तो सीधा लगता है पर अक्ल और कर्मों से अभी तक ऐसा मुझे कुछ दिखा नहीं ...इसलिए मेरे मन के द्वंदों का विषय बना !

ऐसे ही अपनी सलाह और हौसला देते रहिये...

@नारद मुनि जी आपके ब्लॉग पर थोडा डिटेल में मेसेज छोड़ा है अभी ...आशा है पसंद आएगा आपको :)

Udan Tashtari ने कहा…

अनुराग भाई तो कह गये..अब कहने को कुछ न रहा.....उन्हीं का हाथ पकड़े सेम टू सेम!! :)

Pankaj Upadhyay (पंकज उपाध्याय) ने कहा…

अरे वाह.. अंतर्द्वंद को तो बाहर आना ही चाहिये... सुन्दर ब्लोग है आपका.. फ़ीड रीडर से जोड रहा हू..

राम त्यागी ने कहा…

शुक्रिया पंकज जी, सुनकर अच्छा लगा की आपको मेरा ब्लॉग पसंद आया.
पढ़ने वाले है तो लिखने का उत्साह मिलाता है :)