अभी तक दोस्त ही परेशान थे, मेरे लिए डेस्क चुनने को लेकर और अब ब्लॉग परिवार को भी शामिल कर लेता हूँ. मेरी पुरानी डेस्क को निकुंज के रूम में शिफ्ट कर दिया है, इसलिए में पिछले कुछ महीनो से किसी कुर्सी के सहारे या फिर पलंग पर बैठकर ही लैपटॉप महाराज की सेवा कर रहा हूँ. बड़ी परेशानी हो रही है उचित कुर्सी और टेबल के बिना !
जैसी की मनोदशा इधर रहती है, सारे ऑनलाइन offers पर निगाह है, दोस्त लोग भी लगे हुए है, कई जगह दुकानों में जाकर भी देखी पर कभी साइज़ तो कभी दाम दोनों की वजह से ही डेस्क रानी का चुनाव नहीं हो पा रहा है .
शिप्पिंग फ्री है या नहीं, इस बात पर भी ध्यान दिया जा रहा है, वैन नहीं है मेरे पास लाने के लिए दूकान से, डेस्क की packing बहुत बड़ी रहती है तो बड़ी कार की जरूरत पड़ेगी लाने के लिए, वैसे मित्रो का सहारा इसलिए भी लिया जा रहा है और जैसे ही चुनाव होगा एक परम मित्र की बड़ी से गाडी को उपयोग में लाया जाएगा पर हमारी प्राथमिकता शिप्पिंग फ्री वाले ऑफर पर है.
डेस्क की ऊपर hutch भी होना जरूरी है, बच्चे इन्टरनेट और फ़ोन का कनेक्शन नीचे रखे उपयंत्रों को हिलाकर बार बार तोड़ने की कोशिश करते है इसलिए hutch (टेबल के ऊपर एक और अलमारी ) होगा तो उसके ऊपर काफी कुछ रख सकते है.
ऑनलाइन ऑफर के साथ फिर उस वेबसाइट पर लगने वाले कूपन भी देखे जा रहे है, दोस्तों की सलाह है की कूपन आते रहते है और उनको उपयोग जरूर करें .
डेस्क के साथ एक बढ़िया सी कुर्सी जी की भी जरूरत है. कुर्सी पसंद करना टेडी खीर है , समझ नहीं आता की कौन सी वाली बॉडी के लिए ज्यादा अच्छी और आरामदायक रहेगी. बहुत आप्शन होना भी confusion को बढावा देता है.
यहाँ अमेरिका में रहते हुए ओफ्फेर्स के लिए बहुत संवेदना बढ जाती है , भावनात्मक रूप से लोग इनसे जुड़ जाते है और कभी कभी इनकी कांट छांट , देख भाल की भूल भुल्लैयाँ में इतने शुमार हो जाते है की बस पूछो ही मत - जैसे की बस लत ही पड़ गई हो किसी चीज की.
अनेक मित्रो के अनन्य सहयोग से ये चित्र चाप रहा हूँ - देखें , निहारें और भावना को बतावें -
इसी बात पर एक कविता के भाव ताजे हो रहे हैं -
ऑफर की दुनिया बड़ी अजीब, मांगे ये हुनर असीम
खो गए इसमें जो, बस हो गए इसके वो
एक ऑफर को देख कर दूजे की याद, और फिर आपस में तुलना की खाज
लगा दी कई वेबसाइट को छलांग, पर ऑफर का कम नहीं होता स्वांग
सब्जी से लेकर कागज कलम तक, और बेडरूम से लेकर drawing रूम तक
कभी कट करते हैं तो कभी कूपन कोड लगाते है, और कभी दुकानों के दर दर भटकते है
ये हमें खूब काम में लगाए रखते है और कभी कभी मेल इन rebate के इंतजार में खिजाए रखते है
ये ऑफर बड़े बेलगाम और बेरहम होते हैं, फिर भी जाने अनजाने हम सब इनके दीवाने होते है
जय हो ऑफर महाराज की, ये न होते तो हम पता नहीं आज कहाँ होते
हो सकता है उस टाइम ब्लॉग लिख रहे होते, या फिर रसोई में बीबी का हाथ बटा रहे होते
पर इनके होते हम कही नहीं होते, सिर्फ गूगल और जंक मेल में ही खपे और गपे रहते