हिंदी - हमारी मातृ-भाषा, हमारी पहचान

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गुरुवार, 29 अप्रैल 2010

चम्बल का शेर ...देखने में सीधा पर हम लोगो के लिए टेढ़ी खीर !!

वैसे चम्बल में डाकू ज्यादा हुआ करते थे और आजकल गढ़ियाल ज्यादा है.  एक शेर भी है जो मोरेना या ग्वालियर में तो नहीं पर चिकागो में पैदा हुआ पर आदतें सब मिटटी की ही है. ये है जनाब ...

बात अमेय की हो रही है , देखने में सीधा पर हम लोगो के लिए टेढ़ी खीर.  आज चिकागो में मौसम तो ठीक था पर हवा बहुत तेज थी.  निकुंज का Soccer  का क्लास था तो अमेय को १ घंटे टाइम पास करना था . उसी टाइम के कुछ विडियो बनाए ...गोद में या स्ट्रोलर में रखना तो मुमकिन ही नहीं. 

जब से समझदार हुआ, पापा कहना छोड़ दिया...सीधे नाम लेते है अब ...




बेबी कि तलाश में ...


ये पडा इस बच्चे के पीछे...



दादा कि तलाश में उसका छोटा भाई...


ये घर पर आखिर में ...


चिंतन की मुद्रा में ...


भाई के साथ

आखिर में आई फ़ोन के मजे लेते हुए  ...

मंगलवार, 27 अप्रैल 2010

वैशाखनंदन सम्मान प्रतियोगिता मे मेरी प्रविष्टि

वैशाखनंदन सम्मान प्रतियोगिता मे मेरी प्रविष्टि यहाँ (क्लिक करके) पढें..  धन्यवाद !!

IPL vs BPL - अंतर्द्वंद

IPL ...सही रहा !! मोदी जी ने थरूर और कोच्ची की टीम के ट्वीट बाणो से इसे और रोचक बना दिया.  पवार को जितनी रूचि भूखे किसानो के मरने से नहीं हुई होगी उतनी की BCCI और IPL में.  हमारे सारे चैनल भी लगातार एक एक पल और एक एक रन की खबर देते रहे,  क्यूं न देंगे - लोगो की मनोदशा और रूचि भी तो इसी में थी.  हम खुद इधर ऑफिस का काम छोड़ IPL में मस्त थे.  क्यों न होंगे ..खेल जो ठहरा और वो भी सारी दुनिया के बेस्ट क्रिकेट खिलाडियों के बीच !   पर जो रोमांच मोदी के ट्वीट से शुरू हुआ , उसने तो जैसे भारत के बिलियन लोगो को बस टीवी से ही चिपका दिया .  थरूर का क्या होगा , फिर मोदी का क्या होगा, प्रफुल्ल पटेल और पवार का क्या होगा ....इन सब जिज्ञासाओं ने लोगो में एक अजीब तरह का कौतुहल सा पैदा  कर दिया.

जब ये भानुमती का पिटारा खुला तो पता चला की मोदी जी और कई नेता लोग बेनामी बनकर करोडो बना रहे है.  चलो ये तो कोई नयी बात नहीं है, लेकिन इन सबके बीच कुछ  बातें  दिमाग में आती हैं
  • अगर मोदी थरूर का नाम न लेते तो क्या इसी तरह ये खेल चलता रहता ? 
  • क्या IT डिपार्टमेंट या एन्फोर्समेंट agencies के पास कोई तरीका नहीं - इस तरह के दलालों और transactions पर नियंत्रण रखने का ?
  • क्या BCCI सो रही थी या फिर सबको मिल रहा था इसलिए सोचा की बस खाते रहो ?
  • जिस हिसाब के transactions हुए  - जैसे की ज्यादातर पैसा बाहर के देशों को गया , उससे तो पता चलता है की आप इंडिया में कुछ भी कैसे भी कर सकते है - पता है कि ये नया नहीं है पर जिस हिसाब से हम प्रगति  कर रहे है  - क्या ये अच्छा सन्देश है  ?
  • BCCI में इतने राजनीतिज्ञ लोग क्यों रूचि ले रहे है - पैसे  ( डोल्लर कहना चाहिए) और प्रभाव या फिर खेल के विकास के लिए  ?
  • क्यूं हर IPL पार्टी में मॉडल और लड़किया परोसी गयी ? क्या  बिना models  को रैम्प पर चलाये बिना पार्टी नहीं होती  ? 
हो सकता है IPL ४ बिलिओन से भी बड़ा ब्रांड होता अगर ......

चलो ठीक है जो भी हुआ ...पर एक बात सब कह रहे है की किसी का कुछ नहीं होने वाला ...थरूर और मोदी शहीद कहलायेंगे और पवार जैसे नेता लोग देश का काम छोड़ ये ही करते रहेंगे.  भगवान् इस देश का भला करे ...हमारी तो यही प्रार्थना है !!

अभी सुनाने में आया है की भारत में BPL (बेलो पोवेर्टी लाइन)  की संख्या दिनों दिन बढ़ती जा रही है.  सरकार का और नेताओ का और हमारा ये दायित्वा है की अगर देश प्रगति के सोपानो पर है तो उसका फायदा केवल कुछ लोगो को ही नहीं पर योग्य लोगो को भी मिले और गरीबो के लिए योजनाओ में भी खर्च किया जाए. पर  ऐसा होता दिख नहीं रहा.

IPL में बड़े पदों पर सारे नेताओं और उद्योगपतियों के बच्चे ही नजर आये.  कही प्रफुल्ल पटेल की लड़की तो कही मोदी के बच्चे , कही पवार का दामाद तो कही माल्या के बच्चे ...हर जगह यही लोग थे ...हाँ  नए क्रिकेट के खिलाडियों को जरूर एक प्लेटफोर्म मिला .  इस तरह से कहाँ बाकी लोगो को रोजगार मिला ?  मैच भी सिर्फ बड़े शहरों में कराये जाते है ... और TV के अधिकार भी घोटालो और रिश्तेदारों और विदेशो की जेब में जाते है.  बहुत कुछ गड़बड़ ...पर किसी ने कुछ नहीं पकड़ा ...सब चलता रहा ...पक्ष हो या विपक्ष -- सब मजे लेते रहे .  किसी ने कोई प्रश्न नहीं उठाया और जब  हंगामा हुआ तो क्या हुआ ...संसद  नहीं चलने दी बस !  क्या किसी समिति ने मोदी, शशांक मनोहर या फिर पवार को ग्रिल किया अपने प्रश्नों से ....नहीं ...बस IT वाले बेचारे कुछ कर रहे है पर उन पर भी नहीं है मेरा विश्वास :(

अब ऐसे देश में BPL बढेगा ही ...कम कैसे होगा ?  राहुल गाँधी से लोगो को उम्मीद है बहुत पर वो भी पता नहीं किधर व्यस्त रहता है ..वैसे मुझे वो केवल मुखोटा ही लगता है ...पता नहीं क्यों लोग उसको युवाओ का लीडर मानते है.   हाँ युवराज जो ठहरा नेहरू परिवार का !!

हम सब लोग भूल रहे है की इन सबके बीच न तो किसानो का विकास हो रहा है और न ही गाँवों का और न ही छोटे शहरों को .  न ही हाँकी का विकास हो रहा है और न ही योग्य का. 

ये ग्राफ उन लोगो का प्रतिशत दिखाता है जो $१.२५ प्रति दिन से कम में अपना गुजारा करते है  - भारत की तश्वीर इसमें IPL की तरह उजली नहीं दिखती.

निगाह इधर भी दौडाएं  -
  • ३७.२ परसेंट लोग BPL की सीमा में आते है, ये संख्या २००४ में २७.५ परसेंट थी .  ये नंबर आश्चर्यजनक रूप से घटने की जगह बढ रहा है.
  • भारत में ४१० million  लोग $१.२५ प्रति दिन से कम में गुजारा करते हैं
  • शर्म की बात है कि हमारी सरकार पूरी GDP का एक प्रतिशत स्वास्थ्य सेवाओ पर खर्च करती है , १०० करोड़ के देश में , जहाँ  बीमारी आम बात है ..१ प्रतिशत से क्या होगा ?
  • Inflation  १७ %  और GDP growth  ८ प्रतिशत के आसपास
  • ऐसा कम ही देखने को मिलता है कि आपकी GDP growth  ८ प्रतिशत के आसपास हो और फिर भी BPL लोगो कि संख्या बढ रही हो.  फिर ये विकास किधर हो रहा है  ? मुझे विकास मेरे गाँव तक पहुंचता आज तक नजर नहीं आया ..हाँ सरकारी अधिकारी जो काला धन (कला से)  कमाते है, उनको फलते फूलते जरूर देखा है
हमें आरक्षण की जरूरत नहीं बल्कि नेताओ से मुक्ति की जरूरत है ,  हम जैसे आलाचको की  राजनीत में भाग लेने की जरूरत है और वोट देते समय इन सब बातो को ध्यान रखने की जरूरत है. 

कौन कहता है कि परिवर्तन नहीं होगा
इतिहास  के पन्नों  में लिखना ही होगा  
बातों से नहीं, कर्म से नाद होगा
मैदान में अब संग्राम असली आजादी का होगा

रविवार, 25 अप्रैल 2010

डेस्क की तलाश !!

अभी तक दोस्त ही परेशान थे, मेरे लिए डेस्क चुनने को लेकर और अब ब्लॉग परिवार को भी शामिल कर लेता हूँ.   मेरी पुरानी डेस्क को निकुंज के रूम में शिफ्ट कर दिया है, इसलिए में पिछले  कुछ महीनो से किसी कुर्सी के सहारे या फिर पलंग पर बैठकर ही लैपटॉप महाराज की सेवा कर रहा हूँ.  बड़ी परेशानी हो रही है उचित कुर्सी और टेबल के बिना !

जैसी की मनोदशा इधर रहती है, सारे ऑनलाइन offers पर निगाह है, दोस्त लोग भी लगे हुए है,  कई जगह दुकानों में जाकर भी देखी पर कभी साइज़ तो कभी दाम दोनों की वजह से ही डेस्क रानी का चुनाव नहीं हो पा रहा है .

शिप्पिंग फ्री है या नहीं, इस बात पर भी ध्यान दिया जा रहा है,    वैन नहीं है मेरे पास लाने के लिए दूकान से, डेस्क की packing  बहुत बड़ी रहती है तो बड़ी कार की जरूरत पड़ेगी लाने के लिए, वैसे मित्रो का सहारा इसलिए भी लिया जा रहा है और जैसे ही चुनाव होगा एक परम मित्र की बड़ी से गाडी को उपयोग में लाया जाएगा पर हमारी प्राथमिकता शिप्पिंग फ्री वाले ऑफर पर है.

डेस्क की ऊपर hutch भी होना जरूरी है, बच्चे इन्टरनेट और फ़ोन का कनेक्शन नीचे रखे उपयंत्रों को हिलाकर बार बार तोड़ने की कोशिश करते है इसलिए hutch  (टेबल के ऊपर एक और अलमारी ) होगा तो उसके ऊपर काफी कुछ रख सकते है.

ऑनलाइन ऑफर के साथ फिर उस वेबसाइट पर लगने वाले कूपन भी देखे जा रहे है, दोस्तों की सलाह है की कूपन आते रहते है और उनको उपयोग जरूर करें .

डेस्क के साथ एक बढ़िया सी कुर्सी जी की भी जरूरत है.  कुर्सी पसंद करना टेडी खीर है , समझ नहीं आता की कौन सी वाली बॉडी के लिए ज्यादा अच्छी और आरामदायक रहेगी.  बहुत आप्शन होना भी confusion  को बढावा देता है.

यहाँ अमेरिका में रहते हुए ओफ्फेर्स के लिए बहुत संवेदना बढ जाती है , भावनात्मक रूप से लोग इनसे जुड़ जाते है और कभी कभी इनकी कांट छांट , देख भाल की भूल भुल्लैयाँ में इतने शुमार हो जाते है की बस पूछो ही मत - जैसे की बस लत ही पड़ गई हो किसी चीज की. 

अनेक मित्रो के अनन्य सहयोग से ये चित्र चाप रहा हूँ - देखें , निहारें और भावना को बतावें -


इसी बात पर एक कविता के भाव ताजे हो रहे हैं -

ऑफर की दुनिया बड़ी अजीब, मांगे ये हुनर असीम
खो गए इसमें जो,  बस हो गए इसके वो
एक ऑफर को देख कर दूजे की याद, और फिर आपस में तुलना की खाज
लगा दी कई वेबसाइट को छलांग, पर ऑफर का कम नहीं होता स्वांग
सब्जी से लेकर कागज कलम तक, और बेडरूम से लेकर drawing रूम तक
कभी कट करते हैं तो कभी कूपन कोड लगाते है,  और कभी दुकानों के दर दर भटकते है
ये हमें खूब काम में लगाए रखते है और कभी कभी मेल इन rebate के इंतजार में खिजाए रखते है
ये ऑफर बड़े बेलगाम और बेरहम होते हैं,  फिर भी जाने अनजाने हम सब इनके दीवाने होते है
जय हो ऑफर महाराज की, ये न होते तो हम पता नहीं आज कहाँ  होते
हो सकता है उस टाइम ब्लॉग लिख रहे होते, या फिर रसोई में बीबी का हाथ बटा रहे होते 
पर इनके होते हम कही नहीं होते,  सिर्फ गूगल और जंक मेल में ही खपे और गपे  रहते


गुरुवार, 15 अप्रैल 2010

माँ से बढ़कर कोई नहीं ....

में एक ब्लॉग http://maatashri.blogspot.com/ पढ़ रहा था जो की हम सब की माँ को समर्पित है, और सहसा कई सस्मरण ताजा हो गए। माँ के बारे में कुछ पंक्तियाँ लिखी है जो इधर आप सब के साथ बांटना चाहता हूँ।

Thursday, April 15, 2010
जननी जन्मभूमिस्च स्वर्गादपि गरीयसी

माँ की याद में कुछ पंक्तियाँ

निश्छल निर्विकार न्यारी
हर पल मेरी हितकारी
सपनों में भी दुलारी
ममता में सनी बाबरी
ऐसी होती है माँ प्यारी !

तेरा स्पर्श जैसे सम्बल और सुकून
तेरा ममता का आँचल बन गया सामर्थ्य
तुझसे बढ़कर प्रेरणा और क्या होगी
तुझको देखा तो जाना ईश्वर का रूप

हर पल मुझे सोचती माँ
कोसों दूर से भी मेरे हर पल को जानती माँ
हर मंदिर में मेरे लिए दिए सजाती माँ
मेरी हर गलती को मांफ करती माँ
मुझे आंचल के साए में सुलाती माँ
मेरे हर पथ पर साथ निभाती माँ
मेरी छोटी बड़ी खुशियों में उन्मादी माँ
हर वक़्त, अपने लाडले पर सयाती माँ

में रोऊँ या चिल्लाऊं
या फिर गीत ख़ुशी के गाऊं
चाहे कहीं भी में चला जाऊं
और कुछ भी में कर डालूं
बस एक बात में जानूं
तू में हूँ और मैं तू हूँ

~राम त्यागी
अप्रैल १५ 2010

बुधवार, 14 अप्रैल 2010

युद्ध से ज्यादा घातक है खुद क़ी परेशानियां अमेरिकन सिपाहियों के लिए

सुनाने में अजीब लग रहा है पर अगर नीचे उल्लेखित वेबसाइट पर विश्वास किया जाए तो यह सत्य है की अमेरिका के जितने सिपाही युद्ध में नहीं मारे गए, जितने कि आत्महत्या कि वजह से ! इसमें सिर्फ वही आंकड़े शामिल है जब ये सैनिक नौकरी पर थे, अगर रिटायरमेंट के बाद के नंबर भी मिला दिए जाए तो ये आंकड़ा और भी अधिक होगा। इस वेबसाइट के अनुसार पिछले साल ही ३२० सैनिको ने नौकरी के दौरान आत्महत्या करके अपनी जान गंवाई।

http://www.globalresearch.ca/index.php?context=va&aid=16916

and

http://www.congress.org/news/2009/11/25/rising_military_suicides


लग रहा है आंतरिक तनाव युद्ध के उद्देश्यों पर भारी पड़ रहा है। सरकार के लिए इराक और अफगानिस्तान में सैनिको को भेजना एक चुनौती है क्यूंकि सरकार सही तरीके से लोगो को समझा नहीं पा रही है इस लड़ाई के कारण और दूसरी चीज ये देश इनके कोई परम्परागत प्रतिद्वंदी या विरोधी नहीं है ..जैसे भारत के लिए पाकिस्तान ...तो लड़ने का जज्बा सैनिको में कम दिखाई देता है। कोई मन से लड़ने के लिए तैयार नहीं है और ये भी एक कारण इन आंकड़ो का हो सकता है।

मंगलवार, 13 अप्रैल 2010

सानिया की शादी की गूँज अमेरिकेन मीडिया में भी ....

हद हो गयी ...इंडियन न्यूज़ चैनल और वेबसाइट क्या कम पड़ गए थे, मैं CNN पर न्यूज़ पढ़ रहा था और देखा की उधर भी सानिया और सोऐब की शादी के चर्चे चल रहे है। आप इस लिंक पर क्लिक कर सकते है ये विडियो देखने के लिए -

http://www.cnn.com/video/#/video/world/2010/04/13/sidner.india.pakistan.wedding.cnn?hpt=C2

आपकी माफी चाहूँगा ...इस पर टाइम जाया करने के लिए ...पर मेने सोचा की चलो बहती गंगा में हम भी हाथ धो लेते है ! दोनों लोग गेम में शिखर पर तो नहीं पहुंचे पर मीडिया में जरूर शिखर पर दिख रहे है।

अंत में इन लोगो को शादी की शुभकामनायें भी दे देते है। आशा करते है की सोऐब की ये लास्ट शादी होगी और दोनों की ये शादी सफल और खुशियों से भरी रहे !! ये भी चेंप देते है इधर -

भारत ने जीता कबड्डी का पहला विश्व कप


wow ...wow ...ये खेल याद दिलाता है ग्वालियर के मेले में होने वाले दंगल की , छोटे छोटे गाँवों में लगने वाली माता की जातों पर होने वाले दंगल की। लोग कोतुहल वश अपने अपने गाँव के दल का समर्थन करने पहुंचतेहैं। ये एक तरह का आई पी एल हुआ करता था उन गाँव वालो के लिए । ये खेल भारत की पहचान से जुड़ा है, ये भारत के ७५ प्रतिशत गावो में रहने वाले लोगो का खेल है। बहुत ख़ुशी की बात है की भारत ने इसमें विजय प्राप्त की है, बहुत गर्व और उल्लास की खबर है ये ।

लुधियाना में हुए इस मुकाबले में भारत के दल ने पाकिस्तान को ५८-२४ से पराजित किया , भारतीय दल को एक करोड़ रुपये का पुरुष्कार और विजयी ट्राफी से नवाजा गया । हुर्रे ...हुर्रे .....!!

और जानकारी के लिए इस लिंक पर क्लिक करें - http://www.kabaddiikf.com/2cswckc.htm

चिकागो में कबड्डी का मैच रख लेते है अगर आसपास के लोग तैयार हो, भाई अमेरिका की कबड्डी की टीम है तो चिकागो की क्यों नहीं हो सकती ?
***पिक्चर उल्लेखित गेम की नहीं है ***

सोमवार, 12 अप्रैल 2010

हिंदी राष्ट्रभाषा और राजभाषा - राष्ट्रभाषा ही तो राजभाषा होगी

बहुत बार ये जद्दोजहद और बहस की जाती है, साउथ के दोस्त लोग हिंदी को देश की भाषा के रूप में मानने को तैयार नहीं है, कानून में शब्दों के जाल ने हिंदी भाषा की व्याख्या को और भी विवादास्पद सा बना दिया है। इधर हमारे अंग्रेज दोस्त कभी पूछते है की भाई आप लोगो के इधर में राष्ट्रभाषा क्या है या फिर मुख्य भाषा क्या है तो हर कोई अपने क्षेत्र के हिसाब से उत्तर देता है और उस समय सामने वाले को पूरी तरह कन्विंस करना बड़ा मुस्किल होता है।

वैसे ये हमारे देश की विविधता का भी प्रतीक है पर माला में भी विभिन्न मोती के साथ एक मुख्य मोती भी होता है, घर में भी बड़ो और छोटो के बीच एक मुखिया होता है, यहाँ तक की सरकार में भी विभिन्न विभागों के होते हुए एक प्रधानमंत्री या फिर मुख्यमंत्री होता है तो फिर एक भाषा क्यों नहीं ? symbloic रूप से ही सही पर इसकी एक सही व्याख्या तो होनी ही चाहिए। आखिर राजभाषा तो वही होगी ना जो की राष्ट्र की भाषा है , तभी तो राज्य की भाषा को सब लोग समझ पायेंगे , तो इस हिसाब से तो हिंदी ही राष्ट्रभाषा हुई ? पर क़ानून ऐसा नहीं मानता - There's no national language in India: Gujarat High Court और ठाकरे जैसे , करूणानिधि जैसे लोग भी ऐसा नहीं मानते !

हिंदी ब्लोग्गेर्स को कुछ हस्ताक्षर अभियान चलाना चाहिए और उसको हमें तब तक जारी रखना होगा जब तक की एक मजबूत आवाज हमारे क़ानून बनाने वालो तक नहीं पहुंचती , अगर कोई पहले से ही ऐसा अभियान चल रहा है तो कृपया करके मुझे भी बताएं , अन्यथा हम एक न रुकने वाला अभियान शुरू कर सकते है। किसी भी केस में, मैं अपना हर तरह से सहयोग देने तैयार हूँ।

आदत - पार्ट २

आदत पार्ट १ यहाँ पढिये...

अब ब्लॉग्गिंग की आदत ही देख लीजिये , एक ब्लॉग से दूसरे पर और दूसरे से तीसरे पर कूदते कूदते लिखने का टाइम ही नहीं बच पाता। कभी कभी लगता है की हमें आदत उस चीज की लगती है जो स्वभाववश सरल होती है, जैसे लिखने और पढ़ने से ज्यादा देखने की आदत जल्दी लगती है।

टीवी बच्चे इसलिए ज्यादा देखते है क्यूंकि देखना सबसे सरल काम है , लिखना और पढ़ना उससे थोडा कठिन । टीवी देखने की आदत मुझे तो टीवी वाले रोग जैसी लगती है , एक बार लग जाए तो टीवी की बीमारी जैसे शरीर को सुखा देती है, टीवी देखने की आदत आपके दिमाग को बिलकुल बंद कर देती है। मुझे याद है टीवी घर में लाने से पहले में काफी पत्रिकाएँ पड़ता था और जबसे टीवी की आदत लगी, पड़ने की आदत ही चली गयी, एक बार सोफे पर बैठो तो फिर चैनलों की कोई कमी ही महसूस नहीं होती । मेने अपना पहला टीवी ख़रीदा २००० में , १ साल दिल्ल्ली में जॉब करने के बाद, हम लोग - में और मेरा भाई उन दिनों आश्रम (दिल्ली में एक जगह का नाम है - किसी गुरु जी का आश्रम नहीं :) ) में रहते थे जब ये पहला टीवी लिया और उन दिनों स्टार प्लस 'कौन बनेगा करोड़पति' की वजह से बहुत मशहूर हो रहा था। तब से पढ़ना बंद है और लिखना तो बिलकुल ही ख़त्म :(

कुछ लोगो को सिर्फ अपनी ही बात सुनाने की आदत पड़ जाती है और या फिर खुद के समर्थन में ही सुनने ऐसी आदत पड़ती है की फिर वो अपनी दुनिया को ही, अपने बनाए या कहे हुए को ही सच मानते है, जैसे कुएं में रहने वाला मेंडक कुए को ही संसार मानने लगता है। और इस आदत से फिर जन्म होता है अहंकार या ईगो का - हमारे हिंदी ब्लोग्गेर्स भी कभी कभी कुछ ऐसे आदत के लोगो से आपस में तू तू में में करने लगते है और उद्देश्य से भटककर फालतू बहसों में उलझ जाते है । परिवार में लड़ाई झगड़े और प्यार दोनों चलते रहते है। हमें ब्लॉग्गिंग में हर तरह की कमेंट्स सुनने के लिए तैयार रहना चाहिए , कुछ लोग तंग आकर ब्लॉग्गिंग से विदा होने का मन बना लेते है और मेरे हिसाब से वो फैसला ठीक नहीं। सोसल नेट्वोर्किंग पर विचारो का आदान प्रदान खुले में होता है और हमें उसके लिए खुद को परिपक्व बनाना ही होगा।

इन्टरनेट पर बैठने की आदत हो जाए और किसी दिन ये न मिले तो एसा लगता है की जीवन में कोई रस ही नहीं, चाय पीने वालो को चाय न मिले तो सर में दर्द होने लगता है और पीने वालो को एक बार पीने मिले जाए तो फिर .....!

अति सर्वत्र वर्जते - इसलिए किसी भी आदत को अति की दहलीज़ से नीचे ही रखें तो हो सकता है की वो आदत हमारे लिए रोग या परेशानी का शबब न बनेगी अन्यथा पीछा छुड़ाना मुस्किल हो सकता है ! इसी के साथ और ढेर सारी शुभकामनाओ के साथ आदत पार्ट २ की समाप्ति करते है :)

शुक्रवार, 9 अप्रैल 2010

आदत - पार्ट १

इस पूरे सफ्ताह समीर जी और उनके buzz followers मिर्ची के बारे में बतियाते रहे तो में भी कुछ समय पहले बिस्तर से उठने के बाद इस विषय पर दार्शनिक विचारो में खो गया और flashback में चला गया. इस मिर्ची के वाकये ने मुझे हम लोगो की आदत के बारे में सोचने के लिए विवश कर दिया।

पहले जब हम गाँव में थे या इंडिया में थे तो बिना मिर्ची के बनी हुई सब्जी बीमार लोगो का खाना लगती थी, लाल मिर्ची और फिर हरी मिर्ची ऊपर से , काली मिर्ची मसाले में ...हर जगह मिर्ची ही मिर्ची अपने विभिन्न रूपों में। बिना मिर्ची का खाना पसंद ही नहीं आता था और हजम भी नहीं होता था, विचित्र आदत ने स्वाद की महिमा को चार चाँद लगा दिए थे। और अब इधर जबसे देश से बाहर आये है मिर्ची खाने की आदत ही गयी, लाल मिर्ची खाते समय सिर में खुजली होने लगती है, बच्चे भी इधर बिना मिर्ची का खाना खाते है तो उनके साथ खाना share करना है तो मिर्ची को छोडना पड़ता है। वैसे कभी कभी पत्नी जी एक ही सब्जी के दो फ्लेवर बनाती हैं - एक मिर्ची वाला (हरी वाली - लाल तो ईद का चाँद हो गयी है ) और एक सीठा वाला ...जिसे कभी हम बीमारों का खाना कहते थे ...पर ज्यादातर अब मिर्ची वाली सब्जी घर में नहीं बनती ...आदत ही नहीं रही अब ! ये आदत भी कैसी चीज है ..देश और परिस्थितियों के हिसाब से बदलती रहती है , ये कोई गिरगिट है क्या जो अपना रूप बदलती रहती है ?

पहले लोगो को समाज सेवा अच्छी लगती है और फिर नेता बनने पर पैसा खाना अच्छा लगने लगता है , चमचागिरी की आदत पड़ जाती है । चमचागिरी करवाने की आदत पड़ जाती है , और समाज सेवा या देश सेवा मजाक लगने लगती है ।

पहले टोपाज ब्लेड से दाड़ी बना ले ते थे और अब दाड़ी की आदत भी ख़राब हो गयी है ...शरीर के हर पुर्जे की अपनी आदत है और अपनी डिमांड है। मुझे तो लगता है की मशीनों की भी आदतें होती है, साइकिल को एक रोड से कई बार निकालो तो फिर उसको उस रोड की ऐसी आदत पड़ती है की अपने आप बिना बताये उस रोड से आपको ले जायेगी और आप बस सीट पर बैठे बैठे अपना चिंतन करते रहें। मेरे लैपटॉप को भी कुछ ऐसी ही अजीब से आदत हो गयी है - हाथ रख लू तो keyboard अपने आप टाइप कर देता है, और भी कई आदतें है कंप्यूटर को जो फिर कभी बताऊंगा। वो कहावत है न - करत करत अभ्यास के , जड़ मति होत सुजान ! मुझे तो लगता है - करत करत अभ्यास के, आदत पड़त है पक्की !

पहले नहर के पानी में तैरने और नहाने का मजा ही अलग था और अब स्विम्मिंग पूल की आदत हो चली है , उसके साथ स्विमिंग के कपडे अलग और एक अलग से स्पेशल तोलिया भी ...आदतों के साथ साथ चीजें भी बढ रही है। जैसे पहले सीदे सादे फ़ोन रहते थे और बड़े सुविधाजनक होते थे , और अब IPhone भी कम लगने लगा है और उसके साथ इतनी अटरम शटरम चीजें (accessories) की लिस्ट बनाने लगूं तो ... देखिये अब एक कमरा तो chargers के लिए ही समर्पित करना पड़ता है। फ़ोन , कैमरा , विडियो कैमरा, लैपटॉप (कई) , डेस्कटॉप, विडियो गेम console , कई तरह के म्यूजिक प्लयेर और हर एक का कान में लगाने का यन्त्र - जैसे बिजली के खम्भे पर अवैध रूप से पड़े हुए तार और चिड़िया के घोंसले की तरह अनचाहे से लगते हैं ... बचपन में वो देखा था बिजली के खम्भे पर ...तब घर का कमरा साफ रहता था और अब ये सब घर में देखकर लगता है की दूर से तो घर साफ है पर कितना मेस हो रखा है, ये तो मेरे और आपके दिल को ही पता है .....

इन सब आदतों को देखकर एक चीज याद आती है - काम क्रोध मद लोभ सब , नाथ नरक के पंथ ! वास्तव में तुलसीदास सही कह गए थे , इन चार आदतों ने जिंदगी में इलेक्ट्रोनिक्स और बाहर के दिखावे को इतना भर रखा है की आनंद लेने का सही अर्थ ही गायब है ।

बाकी फिर कभी ...इस पर बहुत कुछ लिखने का मन है पर अभी टाइम की कमी है ज़रा ....बहुत कुछ चार्ज पर लगाना है और लडके का नया Nintendo DSI भी configure और चार्ज करना है, ओह ३ और चार्जर - एक कंप्यूटर वाला, डोकिंग चार्जर और कार चार्जर ...और भी कई होंगे ...फुरशत ही नहीं इन नयी आदतों से मुझे कुछ शार्थक सोचने की ....

मंगलवार, 6 अप्रैल 2010

अमेय के कारनामे

ये जनाब लैपटॉप को पूरा खोज मारेंगे आज ...भाई मेरा घर का लैपटॉप है, ऑफिस का नहीं ...छोड़ दे , बख्श दे इसको ...

जो शहीद हुए है उनकी ज़रा याद करो कुर्बानी ....

छत्तीसगढ़ में हुए नक्सली हमले ने तो आज सुबह ही सुबह दिल दहला दिया, इस कृत्य की सभी भारतीयों को भर्त्सना करनी चाहिए। नक्सल आन्दोलन का ये कैसा वीभत्स रूप है ? ये तो किसी देश द्रोह से कम नहीं लगता ...आखिर ऐसी क्या परिस्थितियां है जो हमारी सरकारें सुनियोजित और सुव्यवस्थित कार्यवाही करने से कतरा रही है। ससश्त्र आन्दोलन को फैलाने देना सबसे बड़ी गलती है और फिर आँख बंद करके अपने जवानो का ऐसे होसला टूटते देखना और भी बड़ी गलती और अस्मिता के लिए खतरा है ।

नक्सल आन्दोलन और उससे जुडी घटनाएं बहुत ही काम्प्लेक्स है पर क्या हम इसी तरह ये सब होते हुए देखते रहेंगे ? नक्सल आन्दोलन को निश्चय ही बाहरी देशो और हमारे भ्रष्ट नेताओ का समर्थन प्राप्त है पर ये तो हद ही हो गयी और जैसे की कहा जाता है की 'अति सर्वत्र वर्जते' तो अब तो जागो देश के मुखिया लोगो और हम जैसे आम आदमी लोगो ...भारत के वनों को इन बर्बर नक्सलियों से बचाना ही होगा, गरीब जनता को इनके चंगुल से निकालना ही होगा। भारत इन नक्सलियों के होते हुए आंतरिक रूप से सुरक्षित और सम्रद्ध नहीं हो सकता। मैं इस घटना की कड़े शब्दों में भर्त्सना करता हूँ और शहीद हुए जवानों और उनके परिवारों के लिए इश्वर से शांति की प्रार्थना करता हूँ ।

हमें इन जवानो की इस तरह मौत को भूलना न होगा और इनके परिवार को अकेला न छोड़ना होगा, अगर आप कोई भी किसी ऐसे परिवार की सहायता कर रहा है और में किसी तरह मदद कर सकता हूँ तो जरूर संपर्क करें , मैं अपने आपको सौभाग्यशाली मानूंगा।

असमय मौत से न समझना हम शांत हो जायेंगे
हम और भी मजबूत होकर कायरो को जबाब देंगे