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शनिवार, 25 अक्टूबर 2008
प्रज्ञा सिंह - चम्बल का गौरव - क्यों कलंकित किया जा रहा है ?
भाजपा क्यों उनके बचाव में नही आ रही है ? क्या कोई मेरा ब्लॉग पड़ने वाला प्रज्ञा सिंह को नजदीक से जानता है ? अगर वो बेक़सूर है तो में उनकी हर सम्भव सहायता करने के लिए आगे आऊंगा , इसके लिए नही की वो हिंदू है , बल्कि इसलिए की चम्बल जैसे इलाके में इस तरह के उर्जावान लड़की कोई साधारण लड़की नही बल्कि एक क्रन्तिकारी युवा होगी जिसने समाज के तमाम संघर्षो के बाबजूद अपनी एक पहचान बनाई। राजनीती की चक्की में ऐसे युवा को पिसने नही देना चाहिए (अगर वो बेकसूर है)। मेरे को पूरा विस्वास है की दाल में कही न कही कुछ काला है ।
- राम
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में सभी लोगो का धन्यवाद देना चाहूँगा आपके समय के लिए और इस भावनात्मक मुद्दे पर अपनी टिप्पणी देने के लिए.
मेने बहुत ही संक्षिप्त में अपना लेख लिखा था तो बहुत सी चीजे अनकही रह गई थी. में अपनी तरफ से कुछ सफाई और अपना पक्ष रखना चाहूँगा -
एक महाशय ने लिखा है की - "चम्बल में डकैत बहुत पैदा किए हैं।"
मेरा स्पष्ठीकरण - पता नही किसकी टिप्पणी है, पर महाशय ये भूल गए है की राम प्रशाद विस्मिल भी चम्बल से ही थे. चम्बल के सैकडो वीर भारतीय सेना में और अन्य विभिन्न स्तरों पर देश सेवा में अपना योगदान दे रहे है. डाकू होने का कारण कुछ परिस्थितियां होती है, चाहे वो आर्थिक हो या फिर सामजिक . मेने भी अपने छोटे से लेख में यही लिखा था की प्रज्ञा सिंह ने चम्बल की सामाजिक विसमताओ से ऊपर उठाकर अपने आप को स्थापित किया , वह अपने आप में एक बड़ी बात है.
Ratan Singh जी लिखते है की प्रज्ञा सिंह जी को न्याय पालिका के सहारे छोड़ देना चाहिए -
मेरा स्पष्ठीकरण - में एक हद तक सहमत हूँ क्यूंकि मेरे को भारत के कानूनी आधारभूत ढाँचे पर पूरा विस्वाश है. राजनीतिक और तथाकतित धर्म निरपेक्ष पक्षों ने एक हद तक एस विस्वास को तोडा है पर जो सच होगा वो सामने आएगा ही- चाहे देर भले ही लग जाए. और में वादा करता हूँ की अगर प्रज्ञा सिंह दोषी है तो में अपने ब्लॉग में उनके घिनोने कृत्य की भर्त्सना करने से भी नही चुकूँगा. देश द्रोह तो हर मायने में निंदा का ही पर्याय बनेगा. ब्रंदा कारत मैडम ने तो इसे हिंदू आतंकवाद का नाम दे दिया बिना आगे पीछे देखे ... वोट बैंक के लिए ये नेता लोग अपने माँ बाप और धर्म किसी को भी बेच सकते है. सब कुछ राजनीती के पांसे लगते है इसलिए कभी कभी लगता है की कोई निर्दोष बेबजह इतना अपमानित न हो की वो जीने से ही डरने लगे, क्यूंकि कुछ लोगो के जीने का मतलब इज्जत और सम्मान , सिधान्तो पर चलना होता है.
आलोक सिंह "साहिल" जी जानना चाहते है की अगर प्रज्ञा सिंह दोसी है तो क्या में उनकी भर्त्सना करूँगा ?
मेरा स्पष्ठीकरण - जरूर करूँगा, फिर समर्थन करने की क्या बात है ? आतंकवाद को समर्थन देने की तो हम सोच ही नही सकते, हम भारतीयों ने आतंकवाद की जो मार झेली है , निर्दोष लोगो को ट्रेन में, बाजारों में, कश्मीर में मरते देखा है. किसी के जवान बेटे को तो किसी बेटी के बाप को बलि चढ़ते हुए हर रोज ही तो हम देखा रहे है देश के किसी न किसी हिस्से में, ऐसे में आतंकवाद को में कभी सही नही कहूँगा. बस जब तथाकथित धर्मनिरपेक्ष लोग इन भावनात्मक मुद्धो पर राजनीतिक रोटियां सेकते है तो बहुत दुःख होता है. मेने प्रज्ञा सिंह के बारे में लिखा है की अगर वो किसी षडयंत्र का शिकार है तो में हर सम्भव कोशिश करूँगा की में उनको इस सदमें से निकालने के लिए कुछ करू. इसलिए नही की वो हिंदू है बल्कि इसलिए की वो मुझको एक ईमानदार और निर्भीक युवा लगती है.
श्रीकांत पाराशर जी लिखते है की हमें न्याय व्यवस्था में विश्वाश होना चाहिए और हिंदू को हिंदू का और मुसलमान को मुसलमान का समर्थन करना छोड़ देना चाहिए क्यूंकि देशहित सर्वोपरी है.
मेरा स्पष्ठीकरण - में बिल्कुल सहमत हूँ. आतंकवाद का कोई धर्म नही होता और न ही इसका धर्म के आधार पर पक्ष लिया जा सकता है. आतंकवाद या फिर अलगाववाद के समर्थन के लिए मेरे पास कोई तर्क नही है.
Suresh Chiplunkar जी ने लिखा है की बीजेपी की आदत हो गई है उपयोग करके फेंकने की.
मेरा स्पष्ठीकरण - भारत के किसी भी राजनीतिक दल के पास कोई सिद्धांत नही है. ये सभी स्वार्थ की राजनीती करते है.
बुधवार, 1 अक्टूबर 2008
भारत की परमाणु यात्रा
भारत परमाणु परिवार का फिर से सदस्य बन गया है । मेने सोचा की चलो इसके इतिहास में जाकर कुछ निकाल कर लाया जाए।
- १९४७ जब भारत को स्वतंत्रता मिली , भारत ने शुरू से ही अहिषा के सिद्धांत को बढावा दिया इसलिए भारत ने कभी भी एक परमाणु हथियारों को महाशक्ति बनने की नही सोची। इसी सोच के साथ भारत ने १९४८ में Atomic Energy Act लाया गया।
3 January 1954 - Bhabha Atomic Research center की स्थापना की गई।
६ अप्रैल १९५४- अब तक लगभग ५० परिक्षण अनेक देसों ने किए और इसी पर तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने लोक सभा में कहा - "nuclear, chemical and biological energy and power should not be used to forge weapons of mass destruction" । पर सुनने वाला कौन था, दुनिया के ज्यादातर देश cold war में संलंग्न थे ।
१९६३ - अब जब सब ताकतवर देशो ने अपने अपने परिक्षण कर लिए और अपने आपको इस क्षेत्र में माहिर बना लिए, उन लोगो ने इसे परीक्षणों पर रोक लगाने की मुहिम शुरू की।
१९६८ - Nuclear Non-Proliferation Treaty (NPT) को लाया गया। पर ये भी बहरत की सुरक्षा जरूरतों के मुताबिक नही थी। इस पर भारत की लोकसभा में बहस भी हुई, और एक मत से सभी ने इसके विपक्ष में मत दिया.
१९७४ - भारत ने भी अपने परमाणु कौशल को संसार को दिखाया। हम कभी नही भूल सकते वो शब्द - "The Buddha is smiling" ।
कुछ तथ्य -
टेस्ट: Smiling Buddha
Time: 8:05 18 May 1974 (IST)
Location: Pokhran, Thar Desert, Rajasthan, India27।095 deg N, 71।752 E
Test Height and Type: Underground, -107 m Yield: 8 kt (12-13 kt claimed)
१९९६ - अब तक १००० से ज्यादा परिक्षण हो चुके थे, और तब CTBT (Comprehensive Test Ban Treaty ) को सारे देशो के समक्ष लाया गया। पर ये भी भारत की सुरक्षा चिन्ताओ के अनुरूप नही थी।
- ११-13 May १९९८ भारत ने पोखरण में तीन परमाणु परीक्षण किए और विश्व को अपनी काबिलियत से परिचय कराया।
भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल जी के शब्द -
"India is now a nuclear weapons state।""We have the capacity for a big bomb now। Ours will never be weapons of aggression।" Prime Minister Atal Behari Vajpayee, Thursday 14 May 1998
इसको operation शक्ति नाम दिया गया - http://nuclearweaponarchive.org/India/IndiaShakti.html
२१ वि शताब्दी में भारत एक नई शक्ति के रूप में आगे आता हुआ - एक लिंक http://nuclearweaponarchive.org/India/IndiaNPower.html
- २००५ जैसे की भारत एक महाशक्ति के रूप में उभर रहा था, परमाणु शक्तियो जैसे अमेरिका, फ्रांस आदि को भारत का विशाल मार्केट उनकी आर्थिक महत्वाकांछाओ को पूरा करता दिखा और तब तत्कालीन अमेरिकन रास्त्रपति बुश ने अपनी भारत यात्रा के दौरान भारत के साथ परमाणु समझौते पर हस्ताक्षर किए।
- २००८ भारत और अमेरिका की लोकसभा और सीनेट ने एस बिल को पारित कर दिया. और फ्रांस भी कहा कम रहने वाला था, उसने भी भारत के साथ सिविल nuclear समझोते पर हस्ताक्षर किए.
साभार -
http://nuclearweaponarchive.org/India/index.html
PAPER LAID ON THE TABLE OF THE LOK सभा ON 27TH MAY, १९९८
http://www.fas.org/news/india/1998/05/980527-goi1.htm
नया नया मौसम
शायद कोई परिवर्तन की बेला हो
या फिर ये कोई नई कला है इनकी
भगवा रंग की चादर जैसे ओड़ रहे हों
उड़ते सुनहरे रंग के ये पत्ते
ठंडी हवा की कोमल झपकी सी दे जाते है
पत्झढ़ बोलूँ या फाल
नये मौसम का है ये आगाज।