भाजपा क्यों उनके बचाव में नही आ रही है ? क्या कोई मेरा ब्लॉग पड़ने वाला प्रज्ञा सिंह को नजदीक से जानता है ? अगर वो बेक़सूर है तो में उनकी हर सम्भव सहायता करने के लिए आगे आऊंगा , इसके लिए नही की वो हिंदू है , बल्कि इसलिए की चम्बल जैसे इलाके में इस तरह के उर्जावान लड़की कोई साधारण लड़की नही बल्कि एक क्रन्तिकारी युवा होगी जिसने समाज के तमाम संघर्षो के बाबजूद अपनी एक पहचान बनाई। राजनीती की चक्की में ऐसे युवा को पिसने नही देना चाहिए (अगर वो बेकसूर है)। मेरे को पूरा विस्वास है की दाल में कही न कही कुछ काला है ।
- राम
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में सभी लोगो का धन्यवाद देना चाहूँगा आपके समय के लिए और इस भावनात्मक मुद्दे पर अपनी टिप्पणी देने के लिए.
मेने बहुत ही संक्षिप्त में अपना लेख लिखा था तो बहुत सी चीजे अनकही रह गई थी. में अपनी तरफ से कुछ सफाई और अपना पक्ष रखना चाहूँगा -
एक महाशय ने लिखा है की - "चम्बल में डकैत बहुत पैदा किए हैं।"
मेरा स्पष्ठीकरण - पता नही किसकी टिप्पणी है, पर महाशय ये भूल गए है की राम प्रशाद विस्मिल भी चम्बल से ही थे. चम्बल के सैकडो वीर भारतीय सेना में और अन्य विभिन्न स्तरों पर देश सेवा में अपना योगदान दे रहे है. डाकू होने का कारण कुछ परिस्थितियां होती है, चाहे वो आर्थिक हो या फिर सामजिक . मेने भी अपने छोटे से लेख में यही लिखा था की प्रज्ञा सिंह ने चम्बल की सामाजिक विसमताओ से ऊपर उठाकर अपने आप को स्थापित किया , वह अपने आप में एक बड़ी बात है.
Ratan Singh जी लिखते है की प्रज्ञा सिंह जी को न्याय पालिका के सहारे छोड़ देना चाहिए -
मेरा स्पष्ठीकरण - में एक हद तक सहमत हूँ क्यूंकि मेरे को भारत के कानूनी आधारभूत ढाँचे पर पूरा विस्वाश है. राजनीतिक और तथाकतित धर्म निरपेक्ष पक्षों ने एक हद तक एस विस्वास को तोडा है पर जो सच होगा वो सामने आएगा ही- चाहे देर भले ही लग जाए. और में वादा करता हूँ की अगर प्रज्ञा सिंह दोषी है तो में अपने ब्लॉग में उनके घिनोने कृत्य की भर्त्सना करने से भी नही चुकूँगा. देश द्रोह तो हर मायने में निंदा का ही पर्याय बनेगा. ब्रंदा कारत मैडम ने तो इसे हिंदू आतंकवाद का नाम दे दिया बिना आगे पीछे देखे ... वोट बैंक के लिए ये नेता लोग अपने माँ बाप और धर्म किसी को भी बेच सकते है. सब कुछ राजनीती के पांसे लगते है इसलिए कभी कभी लगता है की कोई निर्दोष बेबजह इतना अपमानित न हो की वो जीने से ही डरने लगे, क्यूंकि कुछ लोगो के जीने का मतलब इज्जत और सम्मान , सिधान्तो पर चलना होता है.
आलोक सिंह "साहिल" जी जानना चाहते है की अगर प्रज्ञा सिंह दोसी है तो क्या में उनकी भर्त्सना करूँगा ?
मेरा स्पष्ठीकरण - जरूर करूँगा, फिर समर्थन करने की क्या बात है ? आतंकवाद को समर्थन देने की तो हम सोच ही नही सकते, हम भारतीयों ने आतंकवाद की जो मार झेली है , निर्दोष लोगो को ट्रेन में, बाजारों में, कश्मीर में मरते देखा है. किसी के जवान बेटे को तो किसी बेटी के बाप को बलि चढ़ते हुए हर रोज ही तो हम देखा रहे है देश के किसी न किसी हिस्से में, ऐसे में आतंकवाद को में कभी सही नही कहूँगा. बस जब तथाकथित धर्मनिरपेक्ष लोग इन भावनात्मक मुद्धो पर राजनीतिक रोटियां सेकते है तो बहुत दुःख होता है. मेने प्रज्ञा सिंह के बारे में लिखा है की अगर वो किसी षडयंत्र का शिकार है तो में हर सम्भव कोशिश करूँगा की में उनको इस सदमें से निकालने के लिए कुछ करू. इसलिए नही की वो हिंदू है बल्कि इसलिए की वो मुझको एक ईमानदार और निर्भीक युवा लगती है.
श्रीकांत पाराशर जी लिखते है की हमें न्याय व्यवस्था में विश्वाश होना चाहिए और हिंदू को हिंदू का और मुसलमान को मुसलमान का समर्थन करना छोड़ देना चाहिए क्यूंकि देशहित सर्वोपरी है.
मेरा स्पष्ठीकरण - में बिल्कुल सहमत हूँ. आतंकवाद का कोई धर्म नही होता और न ही इसका धर्म के आधार पर पक्ष लिया जा सकता है. आतंकवाद या फिर अलगाववाद के समर्थन के लिए मेरे पास कोई तर्क नही है.
Suresh Chiplunkar जी ने लिखा है की बीजेपी की आदत हो गई है उपयोग करके फेंकने की.
मेरा स्पष्ठीकरण - भारत के किसी भी राजनीतिक दल के पास कोई सिद्धांत नही है. ये सभी स्वार्थ की राजनीती करते है.
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