हिंदी - हमारी मातृ-भाषा, हमारी पहचान
शुक्रवार, 21 मार्च 2008
--क्या यही प्यार है --
भूल जाते है बुरा भला
सोच नहीं पाते कुछ भी और
दिल को रहती है एक ही याद
मीत ही सब कुछ लगता है
प्रेम के सागर में डूबे ..
मन रहे विचलित विचलित
मीठी सी आहट रहती है
इन्त्जारों की गहरी खाई
उनसे मिलने की फिर भी चाहत
प्रेम के सागर में डूबे ..
जिस्म दो एक जान रहती
भूल ना पाते साथी को
लगे वो सबसे न्यारा दोस्त
कहे मन रहे वो हर पल पास
जाये ना छोर के मेरा साथ
प्रेम के सागर में डूबे ..
सोचे मन बन जाये राधा क्रिश्ना
चाहे उनको भूल सारी मर्यादा
सोचे उसको छोड सारे रिश्ते
दूर ना जाये मीत इक बार पास आके
प्रेम के सागर में डूबे ..
- राम कुमार त्यागी
शिकागो - ०९ फरबरी २००७
होली हुई नीरस विदेश में
हम चिकागो में बैठे हुए है इस बार फिर से होली को ईमेल के जरिये मनाया, मस्ती के इस त्योहार को इतना नीरस तरीके से मनाया, इंटरनेट पर कुछ समाचार देखे जिसमें सीधा प्रसारण मथुरा और अन्य शहरों से हो रहा था, यह एक और उदाहरण है हमारे वैश्वीकरण का, हम लोग जो बाहर आ गए है , भले ही यहाँ पर बहुत भारतीय है , मन्दिर भी बहुतायत संख्या में है पर वह सब मजे नही कर पाते जो अपने देश की माटी में रहने पर होते थे। विदेश में रहते हुए हम लोग देश की मिट्टी की सुगंध के लिए तरस से जाते है। सब कुछ है पर कुछ भी नही, उपलब्धिया हजारो है , पर पास में छोटा भाई नही है, माँ का साया नही है, लंगोटिया दोस्त नही है, इसलिए ही मेने लिखा की सब कुछ है पर कुछ भी नही है। हम लोग माया के चक्कर में भूल चुके है सब कुछ, पर क्या हमारा दिल वह सब यादें भूल पायेगा , नही.... वह तो हर इसे उत्सव पर उतावला हो उठता है। वैसे यहाँ पर देसी भाइयों के प्रयास से मंदिरों, गुरुद्वारों में लोग सप्ताहांत में मिलते है, बच्चों को हिन्दी कक्षाये दिलवाते है, दीवाली तथा होली जैसे उत्सवों पर कुछ प्रोग्राम भी होते है जैसे रावन दहन , रामलीला इत्यादी, अच्छा लगता है पर कुछ कुछ खालीपन जैसा तो लगता ही है । ये सब तो दिल बहलाने वाली बातें है , जैसे ओरिजनल गाने का रीमेक होता है वैसे ही ये सब बनावटी जैसा लगता है। कुछ परिवार आपस में मिलकर एक जगह इकठ्ठा हो लेते है और एक दूसरे को शुभकामनाये देकर साथ खाना खा लेते है , ये सब प्रयास हम लोग अपने बच्चो को अपनी संस्कृति के करीब रखने के लिए करते रहते है। कोशिश करते है की उन यादो पर कुछ मरहम लगे और एक उत्सव जैसा माहोल इधर भी बन सके पर आख़िर में एक ही चीज याद आती है, जगजीत सिंह जी की गाई हुई वो गजल - 'वो कागज़ की कश्ती और बारिस का पानी '।
गुरुवार, 20 मार्च 2008
रंगो की टोली, निकली खेलने होली
पिछले साल ये कविता लिखी थी होली पर , आपके सामने फिर प्रस्तुत कर रहा हूँ।
होली के इन भिन्न भिन्न रंगो का इन्द्रधनुष
मस्ती बन छाया हर तन पर
मन के उन्मुक्त तारो को जोड्ती होली की उमंग
भांग और गुलाल के मौसम ने फैलाया उल्लास
रंगो की टोलियां निकली गली गली
हर कोई भूला भेद, बहम, बैर की बातें
डूबा मस्ती, मिलन, मतवाले मस्त महोल में
फाल्गुन का ये महीना, होलिका का जलाता अहंकार
प्रक्रति और हमारी सन्स्क्रति का, अनूठा है सूत्रधार
चलो करें सैर रंगो के इस मेले की
चलो सुने कथा प्रहलाद, होलिका की
जला दो होली में अपने सारे गम और बुराई
दूसरे दिन करो रंग और भांग रूपी आनन्द की शुरुआत
यही तो हमें देती सीख इतिहास की ये मधुर स्म्रति
- राम कुमार त्यागी होली ३ मार्च २००७
मंगलवार, 18 मार्च 2008
शुक्रवार, 14 मार्च 2008
misuse of relief fund and poor farmers are dying
I like this news coverage which we rarely find in today's commercial news era. Farmers are dying becasue of starvation and CM relief fund is being distributed to organizations owned by big names. sometimes I feel why should we youths who think alike on indian politics go in fields and clean it. again same word comes in my mind SHAME on these politicians most of them i never found sincere.
गुरुवार, 6 मार्च 2008
MNS - mein nahi sabhya (I am not civilized)
i was reading a news about a Bihari whose hands were cut by MNS activist in Pune. He was living there since last 10 years. He used to sleep on footpath in the night as he was not able to arrange a place to stay in night. i know its not a rare case in India but i am stunned by the act done, Why these political parties always make poor people their target ? I am not going to debate on who can go where to work, But definitely we should ask the question when any political party comes and ask you for a vote ..will you cut my hand if i dont vote for you ? i will not be surprised if their activist will answer Yes by looking on the indian political history. Raj is a young man and he should have some moderate ideas to expand his party, distruction is not the way to grow, it ultimately make victim humanity.
why these Politicians rasie the issue of poverty, deaths due to starvation - see the report where poeple are dying -http://www.globalpolicy.org/socecon/develop/2002/1112starvation.htm
We have seen seperation based on Religion, caste and color and now this is new kind of fobia where peoples are targeted based on the state they belong, this all comes from poltics, comman man of india dont want to do these act, but these leaders provoke and inspire them to do that ..for their popularity and vote bank. When it will come to Vote they will generate fear against muslims, if they think seperating people based on state can increase their vote, they dont hesitate killing, insulting victims. This is BAD politics, dirty fold of someone's selfishness. shame on them.