एक ड्राफ्ट की हुई पोस्ट पता नहीं कब से रखी पड़ी थी (मार्च २००८) . सोच तो ठीक थी, चलो पुब्लिश कर देते है ...
कभी कभी में सोचता हूँ की क्यों न हमारे पॉलिसी बनाने वालो को कुछ दिनों तक पहले किसी गांव में कुछ दिन बिताने चाहिए , जितना सीखने को विदेश से नही मिलेगा उतना भारत के गावों से। आजकल मंत्री लोग अपने सचिव इत्यादी के साथ विदेश दौरे पर जाते है ताकि वो अपने प्रदेश के लिए कुछ आधुनिक कर सकें , मेने कई देसों का भ्रमण किया है और मेने गांव में अपना बचपन , युवावस्था भी बिताई है, उस आधार में में कह सकता हूँ की ये सब नेता लोग विदेश से कुछ सीखकर आने का बहाना सिर्फ अपने मनोरंजन के लिए बनाते है। उनको अगर विकास करना है या कुछ सीखना है तो सच्चा ज्ञान उनको भारत के गावों में ही मिल सकता है। में जब बचपन को याद करता हूँ तो कुछ स्म्रतियाँ ताजा हो जाती है, जैसे रात को थक हारकर सब लोग एक जगह बैठकर रामायण का पाठन करते थे, में भी उनमें से एक था और रामायण पाठन से बहुत कुछ सीखने को मिला, जैसे आप सारे भिन्नता भुलाकर रात को एक साथ जरूर बैठे एक बार, उस रामायण पड़ने के बहाने कुछ फुरसत के पल टीम मीटिंग के लिए निकाले जाते थे जिससे सब कुछ बातो पर परिचर्चा हो सके, साथ ह आने कल की योजना बनायी जा सके। उस रामायण पड़ने और साथ बैठने से सारे दिन की थकान यू ही चली जाती थी, और फिर आप एक दूसरे से सब कुछ बता भी रहे हो तो बहुत हद तक आप ताजा और सुकून महसूस करते हो। सब एक साथ बैठते है तो सबके विचार भी ले लिए जाते है और संयुक्त रूप से निर्णय लेने में भी आसानी रहती । ये सब मेरे को बड़े से बड़े प्रोजेक्ट को सफल बनाने की प्रेरणा देते है। दीपावली पर रामलीला का आयोजन सारे धर्म के लोगो को एक मंच पर लाता था और जिनके अन्दर कला होती थी वह लोग सब का मनोरंजन करते थे। बहुत ही सुहाने और संघर्ष के दिन थे पर उन दिनों ने जो परिपक्वता स्वभाव में दी उसका जबाब नहीं.
9 टिप्पणियां:
(भारतीय) राजनीतिज्ञों की बात मत करें। ये परम चोट्टे हैं। नेहरू ने भारत के ग्रामीण सभ्यता की नीव को ध्वस्त करने का काम किया।
...such mein Raamleela aayojan se sabhi log aapas mein milkar ek dusare ko jaante-pahchante the... lekin aaj to apna pados bhi kabhi-kabhi bahut door dikhta hai.....
...Chintan aur yatharth prastuti ke liye dhanyavaad...
भारत इक लोकतान्त्रिक राज्य है. जिसको हम चुनते हैं वो आगे जा कर योजनायें बनता है. अगर हम गलत लोगो को चुन रहे हैं तो गलती हमारी है.
अगर आप बोले के सब चोर हैं, किसको चुने. तो भाई आप जाये और चुनाव लड़ें. सबसे पहला मत आपको हमारा ही मिलेगा
-- भवदीप सिंह
भारत इक लोकतान्त्रिक राज्य है. जिसको हम चुनते हैं वो आगे जा कर योजनायें बनता है. अगर हम गलत लोगो को चुन रहे हैं तो गलती हमारी है.
अगर आप बोले के सब चोर हैं, किसको चुने. तो भाई आप जाये और चुनाव लड़ें. सबसे पहला मत आपको हमारा ही मिलेगा
-- भवदीप सिंह
१०० फ़ीसदी सहमत है, समाज और जनता की भी जिम्मेदारी तो बनती है भाई....
पर इन चौपलों पर होने वाली मीटिंग लोगों को खास आकर्षित नहीं कर पाई है, पर जो प्रबंधन इनके द्वारा होता है वह वाकई अनूठा है।
@विवेक जी, सही बोला आपने. ऐसे तो हाल ही में खाप पंचायत ने जो फैसले दिए है हरयाणा में, उसका मैं समर्थन नहीं करता, ये तो अधिकारों का दुरूपयोग है. पर आज से १५ साल पहले की बात लें तो बहुत कुछ सीखने लायक था, अब तो पंचायतें भी पैसे लेकर खरीदी जा सकती है, पैसे के लिए सब बिकाऊ है आज कल !
ये सब मेरे को बड़े से बड़े प्रोजेक्ट को सफल बनाने की प्रेरणा देते है। दीपावली पर रामलीला का आयोजन सारे धर्म के लोगो को एक मंच पर लाता था और जिनके अन्दर कला होती थी वह लोग सब का मनोरंजन करते थे। बहुत ही सुहाने और संघर्ष के दिन थे पर उन दिनों ने जो परिपक्वता स्वभाव में दी उसका जबाब नहीं.
गाँव की तो बात निराली होती है ... सुन्दर पोस्ट
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