निकुंज की टेनिस क्लास हर शनिवार को सुबह ८:३० बजे होती है. जिस अथलेटिक केंद्र में कक्षा है, उसी के पास दो भारतीय मंदिर भी हैं. तो लौटते वक्त कभी दोनों में या कभी किसी एक मंदिर में दर्शन के लिए चले जाते है. इसी क्रम में इस शनिवार को जाना हुआ साईं बाबा मंदिर में. हम इस मंदिर में पिछले ५ सालो से लगातार जा रहे हैं.
दूसरा मंदिर है बालाजी (श्री वेंकटेश्वर बालाजी) का, श्रद्धालुओं की भीड़ के हिसाब से ज्यादा बड़ा और प्रसिद्ध है, उसका कारण है शनिवार और इतवार को वहां की रसोई. ५ डॉलर में बढ़िया डोसा साम्भर मसाले वाला गरम गरम, ३.५० डॉलर में २ इडली या वडा साम्भर के साथ, ५० सेंट में चाय या आम की लस्सी...मेनू भी बढ़िया है और भोजन का स्वाद भी. बालाजी का ये मंदिर काफी बड़े क्षेत्र में फैला हुआ है. दिवाली पर बहुत बड़े स्तर पर फायर वर्क्स का आयोजन भी होता है और इसमें बहुत बड़ी तादाद में देसी लोग जमा होते है. हम लोग भी बाकी लोंगों की तरह यहाँ तभी जाते है जब डोसा खाना होता है :) हाँ दिवाली पर बच्चों को ले जाना नहीं भूलते, हम भी उनके साथ कुछ फुलझड़ियाँ जला लेते हैं.
साईं बाबा के मंदिर में इन ५ सालों में बहुत परिवर्तन आया है, पहले ये मंदिर एक छोटे से भवन में था पर अभी सभी के सहयोग से एक विशाल मंदिर बन गया है और सामने पार्किंग के लिए भी काफी जगह है. कुछ साल पहले हमने इसके बड़े से बेसमेंट में एक जन्मदिन भी मनाया था.
शनिवार को जैसे ही मंदिर में प्रवेश किया, कुछ संगीत चल रहा था, ज्यादा अर्थ समझ में नहीं आ रहा था क्योंकि ये मराठी में था, पर अवश्य ही मन को बहुत शांति मिल रही थी. बस ऐसा लग रहा था की खूब देर तक बैठे रहे वहीं पर.
इसी तरह का अनुभव होता है जब हम गुरुद्वारा जाते हैं, पूरा अर्थ गुरुवाणी का समझ नहीं पाते पर जो भी कानों से आता है वो दिल और दिमाग तक जाता है और सुकून देता है, एक बार सुनने बैठो तो बस उठने का मन नहीं करता. ज्यादा स्पीड वाला संगीत किसी भी भाषा का हो क्षणिक ही ठीक लगता है जबकि मंदिरों और गुरुद्वारों में बजने वाला संगीत या फिर कोई भजन हो या फिर कोई पुरानी फिल्म का गाना हो, बस मंत्रमुग्ध कर देता है.
स्प्रिंग सीजन गर्मी में तब्दील होने जा रहा है और इसलिए निकुंज की स्प्रिंग क्लास्सेस का अंतिम दिन था इस सप्ताह :
बहुत दिन बाद मोर (भारत का राष्ट्रिय पक्षी) को नाचते देखा, हमारे मोरेना में बहुत मोर होती है लोग इनके पंखो के दीवाने होते है, मोर पंख से बहुत सुन्दर सुन्दर ढालें बनायीं जा सकती है. मैंने अक्सर ये दिवाली के टाइम बैलों , गायों और अन्य पशुओं के गले में सजाने की माला (ढाल) बनाने के लिए उपयोग होते देखा है, हमारे बाबा की उम्र के लोग खूब बनाया करते थे. अब तो पता नहीं ..हाँ समाचार में अक्सर सुना है कि राष्ट्र पक्षी होने के बाबजूद लोग इसका शिकार करते पकडे गए है और अन्य जानवरों की तरफ ये भी लुप्त होने के कगार पर है. पास के ही एक चिड़ियाघर से खींची ये फोटो.
6 टिप्पणियां:
सुन्दर तस्वीरें..संगीत की तो कोई भाषा नहीं होती, सही कहा!!
मुझ जैसे दुष्ट...सॉरी दुष्टिनी को भी इतने सुंदर सुंदर मंदिर के दर्शन करवा ही दिए आखिर आपने राम! 'राम' भली करे आपकी.
सचमुच संगीत की कोई भाषा नही होती दिल से निकला दिल से गया संगीत सीधा दिल में उतरता है.
आपने मराठी गीत को भाषा न जानते हुए इंजॉय किया.
मैं दो बांग्ला गीत अक्सर सुनती हूँ .
मुझे बांग्ला नही आती पर...
मन्ना डे जी का गाया 'कोफ़ी हाउस' और एक गाना ' भुवन मांझी' जरूर सुनियेगा.मेरी बेन्गोली मित्र तुहिना मित्र जी ने इसका अनुवाद करके बताया था.
और.........भुवन मांझी जितनी बार सुनती हूँ अपने आंसुओं को बहने से नही रोक पाती.
शायद इसीलिए कहते हैं संगीत की कोई भाषा नही होती....
इंदु जी, बहुत शुक्रिया ...
गूगल पर ढूँढता हूँ ये वाले बंगाली गीत. कुछ मैंने पहले भी सुने है, बंगाली गीत बड़े ही मधुर होते है.
ठीक बात बोली. संगीत की कोई भाषा नहीं होती. बल्कि भाषाओ से बटे हुए लोगो को संगीत ही जोड़ता है.
राहत फ़तेह अली खान प्रशंसक हूँ. पाकिस्तानी हस्ती हैं, पर भारतीयों और पाकिस्तानियो दोनों को ही अपने संगीत से जोड़ा हुआ है.
और देखा जाये तो "माई-का-लाल जय-किशन" (michael jackson ) भी हमें अपनी धुन में उतना ही नाचता था जितना के फ्रेन्च या स्पेनिश बोलने वालो को.
बहुत ही सुन्दर चित्र ।
very good sir
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