दुनिया वालों को भारत के सरकारी तंत्र से इतना शिकायत क्यों है , हम लोग हमेशा अपने मंत्री और संत्री लोगो को गाली देते रहते है, पर क्या कभी सोचा है उनकी मेहनत के बारे में ? इस बात को मेने तब अनुभव किया जब एक बहुत ही विद्वान दोस्त ने मेरी आँखों पर पड़े परदे को हटाकर मुझे वास्तविकता से परिचय कराया, में मूर्ख बहस करने बैठ गया कि अगर कोई चोरी से या भ्रष्ट होकर पैसा कमाए तो ऐसा करके देश के विकास से खिलवाड़ है , पर अब में ये नहीं कह सकता , अरे भाई उनको भी तो सुनो जो ऐसा करके निम्नलिखित रूप से देश की अर्थव्यवस्था को प्रगति के सोपान दे रहे है -
१। अगर ये दो नंबर की कमी न करेंगे तो इनके बच्च्चे और बीबी (यां) मल्टीप्लेक्स में जाकर कैसे सामान खरीदेंगे ? गाँव में कोई मल्टीप्लेक्स क्यों नहीं खोलता ? हर कोई वही क्यों खोल रहा है जहाँ पर ऐसे लोग रहते है ? इसका मतलब ये लोग आज की प्रगति के सच्चे जिम्मेदार लोग है.
२। शादियाँ इतनी रंगीन और आलिशान कैसे होंगी फिर ? आजकल शादियाँ इतनी आलिशान इसलिए ही है क्यूंकि हमारा प्रजातंत्र बहुत योजनाये लेकर आ रहा है, और जितनी योजनाये , उतना ही बचत सरकारी कर्मचारियों के लिए २ नंबर की कमाई से, और उतना ही पैसा शादी के खर्च में लगा सकते है, जिससे अर्थव्यवस्था का चक्र चलता रहता है. नहीं तो बैंड की और हलवाई की दुकाने ही बंद हो जायेंगी.
३। पेमेंट वाली सीटो के कॉलेज खुल रहे है क्यूंकि दो नंबर का पैसा है तो क्या टेंशन है बच्चा पढे या नहीं, कही न कही तो जुगाड़ हो ही जायेगी. कॉलेज खुलेंगे तो आसपास के क्षेत्र का भी विकास होगा, इसका मतलब इन लोगो का ये योगदान भी अभूतपूर्व है.
४। रिश्वत की कमाई के लिए इन लोगो को भी बहुत कुछ करना पङता है, जैसे फाइलो में हेराफेरी , साईट पर जाओ तो कर्मचारियों या फिर सामान की संख्या में हेराफेरी, बॉस की कमीशन की जुगाड़, आदि आदि , ये सब करने में भी मेहनत लगता है.
५। शायद हम इसलिए इन लोगो की बुराई करते है क्यूंकि हम इस काबिल ही नहीं की ऐसी चतुराई से काम कर सकें -)
इन सब कारणों को देखते हुए, ये सत्य है ये लोग भी आज के तथाकतित प्रगतिशील भारत के विकास में जिम्मेदार है। पर ये इससे भी बड़ा सत्य है भारत की ७० प्रतिशत जनता अभी भी प्रगति से अछूते उन गांवों में रहती है जहाँ बिजली आती कभी कभी है , जाती तो हर समय है, जहाँ पर रोड कभी पूरी बन नहीं पाती, पुल टूटे ही पढे रहते है, ५० प्रतिशत जनता के लिए अच्छे अस्पताल और विद्यालय नहीं है. जहाँ आज भी लोग हर साल हर कोने में भूख से आत्महत्या कर रहे है और फिर भी वोट डाले जा रहे है उन निकम्मे लोगो को जो सिर्फ देश सेवा और जन सेवा के नाम पर परिवार सेवा को ही अपना जन्मसिद्ध अधिकार मानते है और जिन्होंने इमानदारी और देश प्रगति की बातो को सिर्फ फाइलो की सुन्दरता का अभिप्राय बना रखा है.
जय हिंद को हमने नारा तो बना दिया पर जीवन का सिद्धांत बनाना भूल गए. 'नर हो न निराश करो मन को' के भरोसे हम जैसे लोग भी बस गाली देते रहते है और सर्कस देखते रहते है, करते कुछ नहीं. एक साक्षात्कार में हमारे राजदीप सरदेसाई जी बोलते है कि "जिस दिन कही विस्फोट हो जाए और आप उस शहर में तो इससे बड़ा दिन पत्रकार के लिए कुछ नहीं" ...कैसी मानसिकता है ये ?
चलो इस लेख में इतना ही , आगे के लेख में जर्मनी के Dusseldorf शहर में बिताये सप्ताहांत के बारे में कुछ लिखूंगा !
- राम
1 टिप्पणी:
ram bahut theek baat kahi hai.. vyang se shuru hote hue, apna gussa dikhaya hai..
sach me hamare adarsh hi badal gaye hain.. jab jimmedar log hi galat hain to kise dish de?
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