हिंदी - हमारी मातृ-भाषा, हमारी पहचान
शनिवार, 24 जनवरी 2009
कभी बीबी भी बेटी थी !!
जी हाँ में जब भी अपनी बीबी को देखता हूँ यही सवाल आता है और प्यार उमड़ पड़ता है. चलो आज बालिका दिवस भी है तो कुछ बीबी की तारीफ ही कर देता हूँ , नही तो खटपट से ही फुरसत कहाँ मिलती है. शादी को कुछ साल जो गए है तो हम भी दुनियादारी से कहाँ बच पायेंगे. चिकागो की -४०' सेन्टीग्रेड की ठण्ड बोलो या कोई फ्लू, पिछले २-३ सप्ताह से कोई न कोई बीमार चल रहा है घर में, ऐसे में रात दिन लगे रहने का , लगातार बच्चो की कोयं कोयं और मेरी नौकरी की धोयं धोयं में मेरी पत्नी ने जो साहस और घर को चलाने का काम किया है वोह काबिले तारीफ है. इंडिया भी हम इस महीने के अंत में आ रहे है तो पैकिंग और लोगो के लिए कुछ लाने देने का काम भी जोर शोर से चल रहा है और में ब्लॉग भी एक्टिव रूप से लिख रहा हूँ, इसे में भी रोज डिनर में बड़े बड़े पकवान खाने को मिल रहे है, कल की ही लीजिये ..४ महीने का बच्चा गोद से नही उतर रहा सर्दी और जुक्कम की वजह से , ५ साल वाला अपनी डिमांड पूरी कराना चाहता है और फिर मेरे को गाड़ी से स्टेशन छोड़ना, लेने आना, बड़े लडके को स्कूल छोड़ कर आना और लेकर आना और ऊपर से छोटू का कोयं कोयं ...फिर भी कल दाल बाटी का मजे लेने को मिला और मेने क्या किया ....न्यूज़ सुनना और मस्ती से सोफे पर पड़े रहना ...और इसी व्यस्त दिनचर्या में आज भी पाव भाजी मिली , उससे पहले दिन छोला बटुरा ....आज के दिन तहे दिल से इस महान बीवी की धन्यवाद देता हूँ जो हमेशा अपने चहरे पर मुस्कराहट ही रखती है.
कोई विभीषण बनाकर इस लेख को उस तक भेज ना देना, नही तो ये सब सार्वजानिक कराने के एवज में हो सकता है फिर कभी एसा treatment ना मिले !!
अच्छे काम की शुरुआत घर से ही करनी चाहिए इसलिए आज सबसे पहले गृहलक्ष्मी की बड़ाई की , वैसे इस बालिका दिवस ("http://economictimes.indiatimes.com/ET_Cetera/National_Girl_Child_day_on_Jan_24/articleshow/3942980.cms" ) पर चलो प्रण करें की जैसे भी हो भ्रूण हत्या को रोकेंगे, दहेज़ से दूर रहेंगे और संजय दत्त की तरह लड़की को कभी उपनाम के लिए कोई शर्त नही रखेंगे. जब हमारा दूसरा बच्चा होने वाला था, हमारी हार्दिक इच्छा थी की लड़की हो और हुआ लड़का ...मतलब में जानता हूँ की लड़की न होना कितना बुरा लगता है......all in all लड़का हो लड़की ..दोनों एक ही जैसे होते है ....
पर भारत में अभी आकंडे कुछ और ही कहते है ...http://www.ndtv.com/convergence/ndtv/story.aspx?id=NEWEN20090080219&ch=1/17/2009201:04:00%20AM .
इस लिक को अगर पढ़ा जाए तो पता चलेगा की २००८ में
- ४५ प्रतिशत लड़कियाँ १८ साल की होने से पहले ही शादी करने के लिए मजबूर थी
- ७८,००० औरतें बच्चा पैदा होने के समय मर गयीं क्यूंकि या तो शारीरिक रूप से तैयार नही थी या फिर भोजन की कमी थी
- १००0,००० नवजात शिशु हर साल मर जाते है उनमें से ४० % पैदा होने के पहले सप्ताह में ही .
- और ना जाने कितनी हत्याए पैदा होने से पहले ही जो रिकॉर्ड में भी नही आ पाती
ये आंकड़े दर्शाते है की हमें जाग्रत होना पड़ेगा !!!
शुक्रवार, 23 जनवरी 2009
ओबामा आला रे . . .
राहुल गाँधी का सर्कस
राहुल और अन्य नेताओ में कोई फर्क नही नजर आ रहा सिर्फ इसके की इनको मार्केटिंग का आधुनिक तरीका आता है। राहुल को सबके सामने ये बात स्वीकार करनी चाहिए की उसके परिवार की वजह से अमेठी भी देश के अन्य भागो की तरह पिछड़ा है, रुकिए ज़रा .... ये स्वीकारोक्ति करनी होगी की गरीब और गरीब हुआ है और जो गाँधी परिवार को चाटने वाले थे उनका विकास हुआ है, वह लोग या तो राजनीती में , या धंधे में , या फिर गुंडागर्दी में आगे बढाए गए। गरीबो की तरफ इन लोगो ने कभी गंभीरता से ध्यान दिया ही नही, तभी तो गरीब विधवा की ये हालत है की राहुल की यात्रा के बाद मायावती ने उसके लिए अपने अफसर के हाथ ५०० रुपये भिजवाये, मायावती जो करोडो में खेलती है अपने आपको ५०० रुपये दान देकर रास्ट्रीय मीडिया के सामने महान बन रही थी।
में अपनी एक पुरानी कविता यहाँ लिखना चाहूँगा, की में पल पल यहाँ क्यों परेसान होता हूँ -
बहुत दुख देती है मेरे भारत की बीमारी मुझे
नाटक सा लगता है आज का ये विकास जहाँ सब कुछ है पर कुछ भी नहीं
कोई नही सुनता आज भी गरीब की, कोई नही देखता भूखे किसान को
न्याय के गलियारे हो या फिर सत्ता की बिसातें, हर जगह बिकती है ईमानदारी ....
गुरुवार, 22 जनवरी 2009
मुंबई के कुछ ही शहीदों को सलाम क्यूं ??
अगर कोई मेरी ये लेख पड़कर नाराज होता है तो मैं पहले से ही माफी माँग लेता हूँ , पर ये बात सच है की आप सबके दिमाग में भी यही सवाल बार बार आता होगा की क्यूं हर रोज केवल चुनिन्दा पुलिस वालो को ही बार बार शहीद बताया जा रहा है, सिर्फ़ इसलिए की वो उच्च पदों पर आसीन पदाधिकारी थे या फिर इसलिए की वो तथाकथिस शहरी वर्ग से आते थे, क्यों महानगरीय ठप्पे वाले लोग जैसे हेमंत जी, सालसकर जी को ही हम अशोक चक्र या वीरता चक्र देने की बात कर रहे है ? क्या वो पुलिस वाले जो तीसरे विस्वयुद्ध की बंदूको से लड़ रहे थे या फिर अपने डंडे से ही कुछ कमाल दिखा रहे थे, शहीदी का तमगा नही लगा सकते ? मेने आज तक किसी भी टीवी चैनल पर साधारण पुलिस वालो का नाम या लिस्ट नही देखी , मेने अपने ज्ञान के अनुसार वेब पर भी इधर उधर नजर दौडाई पर कही भी मुंबई के ३ अफसरों के अलावा किसी और का नाम नही दिखा, ये क्या मजाक है ? जैसे हेमंत करकरे जी, सालसकर जी और कामते जी ने बहादुरी या नेत्रत्व दिखाया वैसे ही अनेक और भी साधारण पुलिस वाले उस दिन अपना प्रयास करते हुए मारे गए होंगे, क्या कोई एक एसा आप लोगो मे से है जो उनके नाम जानता हो, किसी राजनीतिज्ञ ने या राहुल गाँधी जैसे तथाकथित महान लोगो ने उन बेनामो को याद किया ? क्या आपको नही लगता की सिर्फ चमत्कार को ही नमस्कार किया जा रहा है ? ऐसे अनेक सवालों ने मेरे को इतने दिनों से विचलित कर रखा है और मेने सोचा की चलो ब्लॉग के जरिये ही आप लोगो के साथ ये दुःख बाँट लूँ।
ये पुलिस वाले हमारे जैसे साधारण परिवारों से आते है और इसलिए ही शायद ऐसे असाधारण वक्तों में लोग उनका नाम भूल जाते है और ये भी नही सोचते की उनके परिवार पर जो किसी छोटे से शहर या गाँव में होगा और उसी पर निर्भर होगा , क्या बीत रही होगी । इन बड़े अधिकारियो के बेटे बेटी तो विदेश में पड़ते है, पर उन छोटे लोगो को जिनके बच्चे सरकारी स्कूल में ही जाने को बहुत कुछ समझते है. भारत में यही अन्तर एक गरीब और अमीर , एक छोटे और बड़े आदमी के बीच मेरे को पीड़ा देता है. जब तक ये अंतर ख़त्म नही होगा, क्या हम छोटे लेवल पर, जड़ो में उर्जा पैदा कर पायेंगे ? मेरा उत्तर है नही नही....नही और इन्ही हरकतों से हम ये भावना भी भर रहे है की इमानदारी , बहादुरी की तारीफ तभी है जब आप चमक रहे हो, बड़े हो, पदासीन हो या फिर राजनैतिक गलियारों में आपकी पहुँच हो, चाटुकारिता में आप माहिर हो. हम सबने केवल कुछ को महत्व देकर सबके बलिदान को यहाँ तक की इन तीनो बहादुरों के बलिदान को भी फीका कर दिया.
अगर किसी के पास अन्य शहीदों की सूची है तो कृपया मेरे को ईमेल कर दें.
सादर धन्यवाद !!