हिंदी - हमारी मातृ-भाषा, हमारी पहचान

हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने के लिए अपना योगदान दें ! ये हमारे अस्तित्व की प्रतीक और हमारी अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम है !

शुक्रवार, 23 जुलाई 2010

सपनों की श्रँखला

पिछले ८-९ सप्ताह से टोरंटो की जो यात्रा चल रही थी , उसका कल अंतिम दिन होगा | प्रोजेक्ट का अंतिम समय आते आते काम की अधिकता बहुत बढ़ गयी है, इसलिए ब्लॉग लिखना और पढना न के बराबर ही हो रहा है | पर इस बीच ऑफिस के कुछ दोस्तों के साथ मंगलवार को Inception फिल्म देखने का मन बनाया, ७:३० बजे का शो जाने का मन था पर ७ बजे के बाद के लगभग ज्यादातर शो हाउसफुल थे, पर बस मन बन गया था तो ऐसे तैसे करके १० बजे के शो के टिकट लिए |

Inception-Posterसामान्यतः अंग्रेजी फिल्में छोटी होती है पर इसकी लम्बाई लगभग १४० मिनट की थी, पर सपनों की क्रमबद्ध श्रँखला ने लम्बाई का अहसास नहीं होने दिया | सपनों की दुनिया को जिस काल्पनिक ढंग से एक कहानी का रूप दिया गया है, वो वाकई में काबिले तारीफ है |  थोडा काम्प्लेक्स फिल्म है इसलिए समझने के लिए दिमाग  लगाए बैठे रहना पड़ा, एक सपना और उसके अंदर फिर दूसरा सपना और फिर तीसरा सपना …सपनों के विभिन्न स्तरों का, दूसरों के दिमाग में झांकने और अपने प्रोजेक्सन से दूसरों को सपनों के मायाजाल में घुमाने का बढ़िया तामझाम फिल्म में किया गया है, कुल मिलाकर मुझे तो बढ़िया फिल्म लगी | अंग्रेजी फिल्मों में तकनीक और सोच का अद्भुत मिश्रण देखने को मिलता है, निर्देशक कुछ न कुछ नया जरूर करने की कोशिश करता है |


सपनों की दुनिया भी कितनी रंगीन और अजीब होती है, हमारी काल्पनिक उड़ान एक पल से दूसरे पल ही कई वर्षों की यात्रा कर डालती है |  वास्तविक जिंदगी के कुछ पल सोऊ सपनों (सोऊ सपना - जो हम सोते समय देखते हैं ) में कई साल का अनुभव करा जाते हैं, जैसे कि सेट बना रखा हो और कल्पना की एक बटन पलक झपकते ही रंक से राजा बना दे, धरती से चाँद की ही नहीं एस्ट्रोयिड से होते हुए अन्य ग्रहों की सैर भी करा दे |  तो कभी कभी ये सोऊ सपने एक्शन फिल्म की तरह आपको किसी परिस्थिति में डालकर आपका पसीना निकाल दें |  दिमाग  का शांत होकर काल्पनिक अवस्था में जाने का यह तरीका हमें ईश्वर के होने और वास्तविक दुनिया से अलग एक नयी दुनिया के होने का अहसास सा दिलाता रहता है | जैसे ही इस काल्पनिक दुनिया से बाहर आते हैं, स्मृति पटल से सब कुछ गायब सा हो जाता है, अक्सर हम अपना पूरा सोऊ सपना याद नहीं रख पाते !


कुछ सपने (जागू सपने) हम जागते हुए देखते हैं, आशा और संभावना का सम्बल हमारे विचारों को जब आत्मविश्वाश से भर देता है तब ये सपने हमें आगे बढ़ने का उत्साह प्रदान करते हैं |  ऐसे सपने जिनको हमें अपनी कर्मठता से हकीकत में  बदलना है , देखने में  और ऐसे सपने जो बुलबुले की तरह युगों का सफर करा दें …कितना फर्क है !! 


आवश्यकता अविष्कार की जननी है, और जागू सपने शायद आवश्यकता की शुरुआत – Inception !!  जागते समय के सपने हमारी उत्कृष्टता और सोच का प्रतिबिम्ब होते हैं तो सोते समय के सपने ईश्वर के इंद्रधनुषी उपहार !!  आप क्या कहते हैं ?

 

मैं ना रुकूँगा
ना ही हारूँगा
बस प्रयास के रास्ते
बढता ही जाऊँगा !!

सपने संजोकर
कर्मठता की कसौटी पर
आशा के दीप जला
बढता ही जाऊँगा !!

नदिया का बहना
सूरज का उगना
सीख लेकर प्रकृति से
बढता ही जाऊँगा !!

8 टिप्‍पणियां:

Dr. Zakir Ali Rajnish ने कहा…

इसे कहते हैं जीवंत संस्मरण, लगा जैसे हम भी आपके साथ घूम रहे हों।
--------
सबसे खूबसूरत आँखें।
व्यायाम द्वारा बढ़ाएँ शारीरिक क्षमता।

indu puri goswami ने कहा…

'सोऊ सपने और जागु सपने'
हे भगवान ! ये लेखक भी शब्द-कोष को यूँ बढाते हैं मालुम नही था.
हा हा हा
दोनों नए शब्द पसंद आये.और.....आगे बढते तो जाना ही है भई. मंजिल भी उसे ही मिलती है जो लगातार चलते रहते हैं.बाधाएं जिनके हौसले तोड़ने नही उन्हें प्रेरित करने के लिए आती है .
कहा भी गया है - 'पार उतरेगा वो ही खेलेगा जो तूफ़ान से
मुश्किलें डरती रही है नौजवान इंसान से
मिल ही जायेंगे किनारे जिंदगी साहिल भी है.'

अपनी कविता से जोश भर देते हो आप राम!वो फिल्म मैं ही क्या मेरे बच्चे भी देखना पसंद करेंगे.चित्तोड में तो मिलने से रही बोलूंगी 'उदयपुर' में पता लगाये.इतने दिनों बाद आपको पढा.अच्छा लगा.

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

हमारी दुनिया भी सपनों की दुनिया है। सतत भी है, जटिल भी। यह फिल्म देखी जायेगी।

राम त्यागी ने कहा…

प्रवीण जी, जटिल शायद हमारी सोच बना देती है, कभी कभी आदमी काम को या जिम्मेदारियों या फिर अपनी राह को एक बोझ समझ लेता है और इस मानसिक वैचारिक बोझ से उसे अपना पथ जटिल लगने लगता है !!
देख लो फिल्म, worth to watch :)

इंदु बुआ जी, आपके कमेन्ट बड़े आत्मीय होते हैं, प्यार झलकता है...
थोडा इन्तजार कर लो फिल्म के लिए, ऑनलाइन देख लेना फिर !!

तस्लीम ने कहा…

मन को छू गये आपकी कविता के भाव। बधाई।
--------
ये साहस के पुतले ब्लॉगर।
व्यायाम द्वारा बढ़ाएँ शारीरिक क्षमता।

शिवम् मिश्रा ने कहा…

बहुत बढ़िया कविता ! आभार आपकी शुभकामनायो के लिए !

राजभाषा हिंदी ने कहा…

बहुत अच्छी प्रस्तुति।
राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।

राम त्यागी ने कहा…

अरे शिवम भाई , शुक्रिया !!