बात बहुत पुरानी है , करीब २० साल पुरानी तो होगी, मेरे बचपन का एक बहुत ही मजाकिया लम्हा !! हमारे गाँव के थोड़े से ही दूरी पर मेरे मामा का गाँव है, जहाँ पर होली अपने पूरे रंग में मनाई जाती है, एक अलग ही अंदाज होता है वहाँ होली मनाने का | पूरा गाँव कुछ दिनों तक होली के रंग में रंगा रहता है, चारों तरफ हर्सोल्लास और मस्ती का माहौल रहता है | हर परिवार अपने रिश्तेदारों को आमंत्रित करता है, पहले खेल होते हैं, जैसे कबड्डी, नाल उठाना इत्यादी , उसके बाद सब रिश्तेदारों को आदर के साथ खाना खिलाया जाता है और फिर उसके बाद सारे आदर की धज्जियाँ उड़ाई जाती हैं रंगों, धुल और कीचढ़ में सबको डुबो डुबो कर :) हम भी अपनी मामियों और भाभियों को खूब परेशान करते थे, और साथ में ये भी ध्यान रखते थे कि खुद के कपडे ज्यादा खराब ना हों | ये एक फोटो वहीं का है , शायद १-२ साल पहले किसी ने खींचा था ….
तो उस समय कपड़ों की बड़ी चिंता रहती थी, होली के समय जो खराब कपडे होते थे उनको पहनते थे, पर इस गाँव में चूंकि सबको आमंत्रित किया जाता था लोग सामान्यतः उतने बुरे कपडे पहन कर नहीं आते थे | मैं शायद उतना फैसनैबल नहीं था, और पता नहीं क्या …मैं अपनी एक पुरानी सी पैंट और बुस्सट पहन कर चल दिया, कुछ दूर चल कर पता चला कि पैंट में पीछे एक छेद है, पर चूंकि कपडे खराब होने का डर मन में किसी कोने में था, घर लौटने के बजाय मैं पीछे हाथ लगा पहुँच गया मामा के गाँव !
अब वहाँ लोगों की भीड़ जमा हो रही थी, ज्यादार सफेद कुर्ते पायजामे या फिर धोती कुरता या फिर अपने पैंट शर्ट में ! मैं अपने दोनों हाथ पीछे की तरफ क्रोस किये घूम रहा हूँ, पर बड़ी शर्मिंदगी अनुभव हो रही थी कि ये क्या पहन लिया, अपने आप को मन ही मन कोस रहा था ….उम्र रही होगी १०-१२ के बीच कुछ पर अभी भी वो शर्मिंदगी का पल हमेशा ध्यान रहता है. बहुत ही फनी लम्हा था, में खुद का मजाक सा बना रहा था | ऐसा ध्यान है जब तक वहाँ रहा किसी ने नोटिस नहीं किया था और शायद मैं जल्दी घर लौट लिया था अन्य लोगों के साथ | पर अभी जब सोचता हूँ बड़ी हँसी आती है , कभी कभी खुद के ऐसे अजीब किस्से मानस पटल पर अमिट छाप छोड़ देते हैं :)
कुछ यादें ऐसी होती हैं
जो भूले ना जाती हैं
इनका स्मरण
खुसी के आँसुओं
से मुझे
ओस की बूंदों की भांति
प्रुफुल्लित कर देता है
मानस पर अंकित ये यादें
मंद मंद बयार की भाँती
मुझे सपनों में ले जाती हैं
अपनी गोद में लिटा कर
माँ के आँचल सा
आभास दे जाती हैं
मैं सोचता सा रहता हूँ
विवश करता हूँ
खुद को
उन यादों में फिर से जाने को
उन्मुक्त है मन
फिर से
वही राग गाने को
जो अब बसता है
सिर्फ यादों के आसमाँ में
मैं मस्त मौला
फिक्र से दूर
अरमानो के समुन्दर में
डुबकी लगा लगा कर
विचारों की उद्वेलना से दूर
तटों की खोज से बेपरख
अपनों के वटवृक्ष जैसी छाया तले
दो वक्त की रोटी
सुकून से खा रहा था
महत्वाकांक्षा की आंधी ने
विचारों को ऐसा उद्वेलित किया
मन ही मन सपनों के जाल बुन
पता नहीं कैसी उधड़बुन
के चक्रवातों में फँसा
झूठे दिलासे देता रहा
मन को बहलाने के तरीके ढूंढता फिरता
ऐसे चक्रव्यूह में जा घुसा
जहाँ सिर्फ यादें ही मनोहारी हैं ….
तर्कों के तीर
आवेशों के वेग
वर्तमान को जीने की देते हैं सीख
यादों का इन्द्रधनुषी रूप
शीतल करता
फिर से वहीं बुलाता
जहाँ से शुरू हुई थी ये दौड
14 टिप्पणियां:
कुछ यादें ऐसी होती हैं
जो भूले ना जाती हैं
इनका स्मरण
खुसी के आँसुओं
से मुझे
ओस की बूंदों की भांति
प्रुफुल्लित कर देता है
बहुत ही सच्ची अभिव्यक्ति ,शानदार प्रस्तुती ..
आपने एक नेक इन्सान ब्रह्मपाल प्रजापति (आजाद पुलिस) के सहायता के लिए सोचा इसके लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद ...
कई बार अपनी कमियों की ओर अपना ही ध्यान रहता है, दूसरे का ध्यान जाता ही नहीं लेकिन फिर भी हम संकुचित से रहते हैं। अच्छा संस्समरण है।
यादो का भी अपना ही एक अलग मज़ा है!
कुछ क्षण स्थायी बन मनस पटल पर अंकित हो जाते हैं, उनमें से ही एक है यह क्षण।
यादें तो यादें ही होती हैं.
बहुत मजाकिया अनुभव था ये तो.
वैसे इस तरह के अनुभव हर किसी की जिंदगी में कभी न कभी हुए होते हैं. उस समय शर्मिंदगी होती है, पर बाद में उनको सोचो तो हंसी आती है.
इस तरह के वाकया होते रहे जिंदगी में. हंसी ख़ुशी बीते ये जिंदगी.
शायद आप यूँ ही शर्मिंदा होते रहे । किसी ने देखा भी नहीं होगा ।
अक्सर हम यही सोचते रह जाते हैं कि लोग क्या कहेंगे , क्या सोचेंगे ।
पर कहाँ किसी के पास समय होता है देखने सोचने का ।
लेकिन अच्छा संस्मरण है ।
बहुत सुन्दर लगा आप के बचपन की यह बात पढ कर मजेदार
यादों को संजो कर रखिये ।
यादों को संजो कर रखिये ।
तर्कों के तीर
आवेशों के वेग
वर्तमान को जीने की देते हैं सीख
यादों का इन्द्रधनुषी रूप
शीतल करता
फिर से वहीं बुलाता
जहाँ से शुरू हुई थी ये दौड
शायद विदेश मे बैठ कर अपने वतन की याद सता रही है उन यादों के सहारे उन दिनो को फिर से जी कर देखने को आतुर मन। बहुत क़च्छा लगा संस्मरण भी और कविता भी। शुभकामनायें
@ honesty project democracy धन्यवाद तारीफ के लिए, आपका शुक्रिया की आपने ऐसे व्यक्ति की कहानी को बाहर लाया !
@अजित जी
बिलकुल सही लिखा आपने, चोर की दाढ़ी में तिनके वाली बात है ये भी :)
@अनुराग जी
सही कहा यादें तो यादें होती है, भुलाए नहीं भूलती :)
@भवदीप
हो सकत्ता है किसी ने देखा भी हो, क्या पता ..
सही कहा बहुत funny किस्सा था ये :)
@दराल जी
उस समय तो बहुत संकोच हो रहा था पर आज हँसी आती है
@राज भाटिया जी
बहुत दिन से व्यस्त होने के कारण आपके ब्लॉग पर नहीं आ पाया, बहुत मन हो रहा है ....
@निर्मला जी
बिलकुल सही कहा की देश की यद् आ रही थी ... जमी की याद कभी कभी बहुत आती है
फटी पैन्टू! किसी ने नही देखा,पर मैं वहाँ होती तो सबको कहती-'देखो! कितना प्यारा बच्चा है!...और इसकी पेंट भी पीछे से फटी हुई....नही है.
हा हा हा
बचपन और उसकी यादों को भूलना सहज नही राम!
अपने भावों को काव्य रूप जो दिया ये हर उस व्यक्ति के मन की बात है जिसमे एक नन्हा बच्चा आज भी जी रहा है.मुझमे भी वो अब तक जिन्दा है और इंतज़ार करता है कहीं से कोई आवाज आएगी......'ओ चाँद बेटा!'
पर पर नही आती अब ऐसी कोई आवाज.
हा हा हा
दुखी नही हूं,भावुक भी नही.बस यूँही पढ़ कर भूली बातें याद आ गई.
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