सायकिल पर पूरे जोर से पैडल मार मार कर दोस्त के घर जा रहा था, किन्हीं ख्यालों में उन्मुक्त था मन और पैर पैडलों को गति दिए जा रहे थे और तभी एक गति अवरोधक आया, जोर से आगे वाली ब्रेक लगाई …हम कहाँ और साईकिल कहाँ… |
एस टी डी फोन करने के लिए लाइन में खड़े हैं, मुश्किल से नंबर आया, जब फोन कर रहे हैं तब फोन का बिल वज्रपात की तरह आगे बढता था, जब ५ रुपये भी ५०० के बराबर लगते थे, फिर भी फोन के बढ़ते बिल को कुछ ख्याल नजरअंदाज कर देते थे … |
हर कक्षा की परीक्षा का अंतिम दिन जो सुकून लाता था … |
नौकरी के शुरूआती दिनों में जब किसी दोस्त को ऑफर लैटर मिलता था …उस दिन दोस्त तो हवा में उड़ रहा होता था और बाकी सब दोस्त भी इकठ्ठा होकर जो मस्ती करते थे … |
पहली सायकिल और पहली गाडी पाने के पल …. |
विद्यालय में कुछ बोर कक्षाओं को छोड़ कर नए नए तरीकों से भागने वाले पल … |
उन दिनों के आनंद अलग ही थे, आपके भी कुछ ऐसे ही पल रहे होंगे …चलो बताओ तो क्या थे वो दिन ?? बड़ा ही सुकून मिलता है उन दिनों की सिहरन से ! उन दिनों यहाँ आने की तड़प थी और आज तड़प है वापस उन दिनों में खो जाने की :)
19 टिप्पणियां:
बस यादें रह जाती हैं.....
अजी वो दिन भी क्या दिन थे... जब लडकी हमे चाहती थी हम लडकी को चाहते थे, लेकिन बात करने मै जान निकलती थी, ओर इस प्यार का अंत भी पह्ले तू पहले तू मै ही हो जाता था
जाने क्या क्या गिनाऊँ तुमको
एक हो तो शायद बताऊँ तुमको...
जो यहाँ कहे वो भी हमारे ही लग रहे हैं शक्ल से. :)
ये पल लौट लौट कर आते हैं स्मृतियों में ।
बीते हुए पल हमेशा लुभाते हैं।
वो अपना खुद का संगणक घर पर होना।
संगणक में ब्रॉडबेन्ड होना।
पहली बार मोबाईल पाना।
पहली बार प्लेन में बैठना।
पहली बार राजधानी में बैठना।
पहली बार ३एसी में जाना।
और भी बहुत कुछ.... :)
@विवेक, बिलकुल सही कहा, पहली बार प्लेन में और राजधानी में बैठकर तो जैसे पता नहीं क्या पा लिया था :) हम सब में कुछ बातें कितनी एक जैसी हैं ...
@प्रवीण जी, बिलकुल सही कहा , काश एक टाइम मशीन वापस जाने के लिए होती ....
@अजीत जी, बीते हुए पल वो भी बचपन और जवानी के ....बहुत कोमल और रोमांचक होते हैं
@समीर जी , एक तो बता देते जनाब :)
@शिखा जी , ये यादें जो रह जाती हैं, बड़ी मनभावक होती हैं :)
@भाटिया जी , दिल कि बात आज जंबा पर आ ही गयी :)
बहुत बढ़िया पोस्ट
यादें ...........बस यादें बाकी है उन दिनों की अब तो !!
जाने कहाँ गये वो दिन!
bachpan ke din bhulaa na dena!!
कोई दे लौटा दे मेरे बीते हुए दिन ,
बीते हुए दिन वो मेरे प्यारे पलछीन |
bachpan ke din bhulaa na dena!!
वो टेम्पो की सवारी याद आती है... घर से स्कूल तक १५ पैसे लगते थे. पर दो मित्र मिल कर चवन्नी में चले जाते थे!
वो टेम्पो की सवारी याद आती है... घर से स्कूल तक १५ पैसे लगते थे. पर दो मित्र मिल कर चवन्नी में चले जाते थे!
@भवदीप, सही कहा अपने ग्वालियर के टेम्पो और मुरैना के रिक्शा वालो को कैसे भूल सकते हैं
यादें वो रेलिंग है जिसे पकड़ कर झुकती कमर वाली उम्र में भी आदमी तरक्की की सीढ़ियाँ चढ़ता चला जाता है, और अगर दिशा बदल ले तो?
तो यादें क्या करें - वो तो सहारा ही दे सकती हैं - रेलिंग की तरह। दिशा थोड़े ही तय कर सकती हैं।
जब पहली बार किसी लड़की ने प्यार से देखा था????
@दीपक जी ...क्या बात है :) वो तो आज भी होता है शायद :-)
क्या कहूँ...क्या क्या बात याद आई...
अपने फेसबुक पे आपका ये पोस्ट पब्लिश होने जा रहा है अब...मस्त :)
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