tag:blogger.com,1999:blog-68615476403693540382023-11-16T05:31:42.699-06:00 मेरी आवाज <center>राम (कुमार) त्यागी के मन के अंतर्द्वंदों का प्रतिबिम्ब ...</center>राम त्यागीhttp://www.blogger.com/profile/05351604129972671967noreply@blogger.comBlogger143125tag:blogger.com,1999:blog-6861547640369354038.post-84463766914849337032019-04-19T00:02:00.002-05:002019-04-19T00:02:18.561-05:00गिरगिट के रंगो से भरा नीरस चुनाव<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<br /></div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh0aDLiGIGb_OhrTF6uZPa-uFfTqbHeVsEFm0Bh5AkCpbA1Fupcm37iVqCoiMJLkQTLvCTIPrNL4-LxnXSJ27saX3orlawd95xYXEUv4Vj97EqiXEQuSQFdxsjm5pWfczVcf3GAPAcfjBQ/s1600/Lok-Sabha-Elections-2019.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em; text-align: center;"><img border="0" data-original-height="400" data-original-width="666" height="192" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh0aDLiGIGb_OhrTF6uZPa-uFfTqbHeVsEFm0Bh5AkCpbA1Fupcm37iVqCoiMJLkQTLvCTIPrNL4-LxnXSJ27saX3orlawd95xYXEUv4Vj97EqiXEQuSQFdxsjm5pWfczVcf3GAPAcfjBQ/s320/Lok-Sabha-Elections-2019.jpg" width="320" /></a></div>
<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<br /></div>
इस बार के चुनाव बड़े नीरस से लग रहे हैं, जैसे २०१४ में चाय पर चर्चा हो या फिर, मोदी जी का virtually पूरे देश में बड़ी बड़ी स्क्र्रीन के जरिये देश को सम्बोधित करना हो, या फिर आम आदमी पार्टी का नया नया जोश हो, एक चुनाव जैसा माहौल लगता था, सोशल मीडिया में भी एक चुनाव जैसी महक थी पर इस बार कुछ फीका फीका सा है, अब ग्वालियर-मुरैना में होते होते तो चाय की दुकान पे, समोसे की दुकान पे या फिर कचोड़ी वाले की दुकान पे अलग ही माहौल दिखाई देतो, पर यहाँ तो सिर्फ YouTube, FB और WhatsApp हैं जो माध्यम हैं - माध्यम भी बदल गये हैं, लोगों के पास आपस में बात करने का समय नहीं फ़ोन की सोशल मीडिया एप्प से चिपके रहने के कारण। सुना था की कांग्रेस ने भी मीडिया सेल को काफी मजबूत किया है पर मेरा ऐसा मानना है की इस बार का चुनाव सारी पार्टियां ज्यादा गंभीरता से नहीं ले रही। अटलबिहारी वाजपेयी जी ने जब २००४ में चुनाव करवाए थे, तब अच्छी फाइट दिखी थी पर २००९ का चुनाव लालकृष्ण अडवाणी के नेतृत्व में उतना एग्रेसिव नहीं था, इस साल के जैसा ही था कुछ कुछ।<br />
<br />
२००४ का चुनाव बहुत जोर शोर से India Shining के मुद्दे पर अटल जी और प्रमोद महाजन के मीडिया प्रबंधन में लड़ा गया और अति आत्मविश्वास कहा जाए या फिर समाजवादी पार्टी जैसे क्षेत्रीय दलों का राजनीती में चमकना कहें, अटल जी भाजपा के १३८ सांसद ही जिता पाए, कांग्रेस भी कुछ ज्यादा अच्छा नहीं कर पायी पर फिर भी भाजपा से ज्यादा सीटें जीतकर १४५ सांसदों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी और सरकार बना ली। फिर सब भाजपा के अन्ध विरोधियों ने उनकी सरकार को चलाया और १० साल तक देश को खूब लूटा। २००९ में भाजपा में लालकृष्ण अडवाणी जी को अन्ततः फ्रंट से लीड करने का मौका मिला पर भाजपा की सीटें और कम हुई और कांग्रेस को २०६ लोकसभा में सफलता मिली, शायद ये पहाड़ की चोटी थी इसके पहले के वो गर्त में गिरना स्टार्ट करें, १० सालों में सरकार तो चली कांग्रेस की पर क्षेत्रीय दलों का वोट प्रतिशत बढ़ा, उनका दबदबा बढ़ा और कांग्रेस की जड़ें देश में कमजोर होती गयीं और शायद यही से कांग्रेस चुनाव प्रचार में उत्साहहीन दिखने लगी , कोई ऐसा नेता नहीं जो धाराप्रवाह हिंदी में इतिहास को, वर्तमान को और भविष्य को मिश्रित कर कुछ ऐसा बोलता मन्च से जिसे सुनने का मन करे, सब घिसे पिटे लिखे लिखाये भाषण वाले नेता थे और इसी मौके को और अपने संघठन की मजबूती का फायदा भाजपा ने नितिन गडकरी के नेतृत्व वाली भाजपा ने उठाना शुरू किया, इधर सुषमा स्वराज, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती , शिवराज सिंह चौहान (अटल जी और अडवाणी जी के अलावा) जैसे कद्दावर और ओजस्वी वक्ता थे जिनको भाषण के लिए पर्ची और भाषण लिखने वाले की जरूरत नहीं थी।और भी बहुत नेता थे भाजपा में, हर राज्य में जो ओजस्वी थे और इन सबकी ओजस्विता को मोदी जी ने और नया आयाम दिया और २०१४ का चुनाव एक ऐतिहासिक चुनाव बन गया जिसमें भाजपा न ही खुद से पूर्ण बहुमत लायी पर देश में एक चुनाव का उत्साह और उस्तव जैसा था। मोदी का देश के स्तर पर पहला चुनाव था तो उन्होंने बहुत मेहनत भी करी और सबसे अच्छी बात हुई की क्षेत्रीय पार्टियों की भी सीटें कम हुई और एक सशक्त सरकार देश में बन सकी। जब देश कांग्रेस में ओजस्विता की कमी और नेतृत्व की कमी से गुजर रहा था तब राज्यों के दल चाहे मुलायम हों , लालू हों , नवीन पटनायक हों या फिर चंद्रबाबू ये सब फिर भी धाराप्रवाह थे बोलने में, मुद्दे उठाने में, मंच से आत्मविश्वास के साथ बोलने में, पर कांग्रेस सबसे ख़राब समय से गुजर रही थी और लोग भ्रष्टाचार से तो तंग थे ही, पर २०१४ के चुनाव का जो जोश था उससे भी लोगो ने कांग्रेस को नेतृत्वविहीनता के कारण हर जगह से सबक सिखाया।<br />
<br />
चलो ये तो हुई बात पुराने चुनावों की, अब मुद्दे की बात पर आता हूँ। इस बार मोदी जी के भाषण भी सुस्त सुस्त से हैं और कैंडिडेट सिलेक्शन बहुत जुगाड़ू टाइप का लग रहा है, ऐसा लग रहा है मोटा भाई शाह जी बस एकाउंटिंग की बुक लेकर बैठ गए हैं और इसको उधर और उसको उधर करके सिर्फ मोदी पर फोकस करने की कोशिश की जा रही है। इस बार के चुनाव में गिरगिट का बोलबाला है, उदहारण देकर समझाता हूँ, शत्रुघन सिन्हा एन मौके पर टिकट का assurance मिलने पर कांग्रेस में टपक लिए और दूसरे दिन उनकी पत्नी समाजवादी पार्टी में क्यूंकि वो उनको टिकट दे रही थी, अरे भाई दोंनो पति पत्नी को कांग्रेस ही टिकट दे देती और सिन्हा साहब इतने दिनों से मोदी-शाह के पीछे पड़े थे तो फिर पहले से ही क्यों नहीं कोई और पार्टी ज्वाइन कर ली? भिंड से एक नेता हैं जो जातिवाद के प्रखर विरोधी थे, माया के भक्त थे, युवा हैं पर अब कांग्रेस में आ गए, टिकट मिला सिंधिया की कृपा से तो युवा जातिवाद के मुद्दे भूलकर महाराजा और श्रीमंत जैसे शब्दों के साथ बस कांग्रेस के बड़े नेताओं के गुणगान और चमचागिरी को लोगों के मुद्दों से ज्यादा तबज्जो दे रहे हैं , टिकट ने एक और संघर्ष को ख़त्म कर दिया और गिरगिट को पैदा कर दिया। गोरखपुर से भाजपा रवि किशन को लेकर आयी जो दूर दूर से वहां से कोई रिश्ता नहीं रखते, अरे भाई अगर काम किया है और योगी जी का ठिकाना है तो किसी अच्छे से लोकल लीडर को भी ला सकते थे और रवि किशन ने भी डूबती नैया से छलांग लगा ली कुछ फायदा देखकर, <b>हर जगह व्यक्तिगत आकांक्षायें, लाभ और टिकट की लालसा भारी है और इस वजह से मुद्दे, विकास और लोकल नेताओं का अस्तित्व जैसे चीजें पीछे छूट गयीं हैं। </b> और तो और, आम आदमी पार्टी और कई इधर उधर के उनके नेता, पहले बोलते थे भ्रष्टाचार हटाना है और कांग्रेस को हटाना है, वही अब पांच साल बाद कांग्रेस से मिल रहे हैं भाजपा हटाने को, अब इस बार कांग्रेस के भ्रष्टाचार के दाग धूल गए हैं, बढेरा, शीला दीक्षित सब अब सुधर गए हैं और वही सब लाँछन अब भाजपा में आ गये हैं और कांग्रेस ही, लालू और अन्य गठबन्धन के नेता ही देश को भाजपा से बचा सकते हैं - सारा चुनावी बाजार गिरगिटों से भर गया है जहाँ हर कोई मुद्दों से भटक कर जनता को और ज्यादा कंफ्यूज कर रहे हैं।<br />
<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgneO1Fec9emaVZWgMfslCT1Tdd_k37sofRY0VwLnFTRBpH1UTQ0HloPnTe4q5C0riQ6SbEsyzZ6uF9o_lbC0UNklPBDR_ii0bbMSyPlPqeteW_kLMcFi6avyNGQ0-6i7UV88oNzMFztOA/s1600/images.jpeg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em; text-align: center;"><img border="0" data-original-height="168" data-original-width="300" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgneO1Fec9emaVZWgMfslCT1Tdd_k37sofRY0VwLnFTRBpH1UTQ0HloPnTe4q5C0riQ6SbEsyzZ6uF9o_lbC0UNklPBDR_ii0bbMSyPlPqeteW_kLMcFi6avyNGQ0-6i7UV88oNzMFztOA/s1600/images.jpeg" /></a></div>
<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<br /></div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<br /></div>
चुनावी गणित में शाह ने लोकल लीडरशिप और जमीन से जुड़े होने के भाजपा के मूल को इस चुनाव में झकझोरा है और ये समय ही बतायेगा अगर ये प्रयोग सफल होता है या फिर मोदी पर फोकस और कैंडिडेट पर ignorance और अनभिग्यता फिर से देश को सशक्त सरकार देने में कामयाब होती है। अगर भाजपा की सरकार नहीं बनी तो खिचड़ी सरकार बनेगी जो देश को कई साल पीछे ले जा सकती है <b>क्यूंकि कांग्रेस को अपना संघठन खड़ा करने के लिए अभी बहुत वक्त और मेहनत लगेगी, इस बार वो केवल और केवल समीकरण ही ख़राब कर सकते हैं। </b> चुनावी गणित और लोकल लीडरशिप के मुद्दे से छेड़छाड़ की बात की जाए तो कुछ उदहारण मध्य प्रदेश और उत्तरप्रदेश से ले सकते हैं, खजुराहो बी. डी. शर्मा जी को भेजा गया है वो मुरैना के रहने वाले हैं और मुझे नहीं पता की खजुराहो या उस क्षेत्र से उनका क्या लेना देना है। नरेंद्र सिंह तोमर जो ग्वालियर के रहने वाले हैं, २००९ में मुरैना से जीते, कोई काम नहीं कराया तो २०१४ में ग्वालियर से चुनाव लड़ाया और दोनों साल २००९ और २०१४ में जीते, जमीन से जुड़े नेता हैं पर काम करना नहीं आता , मेरे हिसाब से उन्होंने ग्वलियर और मुरैना दोनों जगह कोई काम नहीं किया या कोई extraordinary initiative नहीं लिया, हाँ संघठन का अच्छा काम करते हैं, उनको फिर से मुरैना भेज दिया गया , ये अच्छा प्रयोग है की ५ साल बाद सीट चेंज कर लो, लोगों की याददाश्त तो कमजोर होती है। भदोही और बेगूसराय हो, या फिर भोपाल हर जगह नए प्रयोग किये गए हैं, ये समय के गर्त में है कि सिर्फ गणित बिना प्लानिंग और चुस्त दुरश्त कैंपेनिंग के कैसे २०१४ को दुहरा सकता है! कैंडिडेट लेट घोषित होने से भाजपा की कोशिश है की लोगों का ध्यान कैंडिडेट से हटकर सिर्फ और सिर्फ मोदी पर रहे, ये किसी रिसर्च का रिजल्ट हो सकता है या चुनावी स्ट्रैटेजिस्ट का कोई स्ट्रेटेजी पर इससे कैंडिडेट को चुनावी तैयारी में समय की कमी से चुनाव के उत्साह में कमी आती है और वही शायद देखने में आ रहा है।<br />
<br />
उत्तर भारत में वोटों का प्रतिशत चुनावी गहमागहमी में उत्साह की कमी को दिखाता है और कहीं न कहीं २००४ के (भाजपा के) ओवर कॉन्फिडेंस एवं २००९ के नीरस चुनाव प्रचार की याद दिलाता है, कहीं ये सब एक खिचड़ी सरकार की भूमिका तो नहीं बना रहा जो देश की प्रगति और विकास में रोड़ा बनकर हमें पीछे ना धकेल दे। सबको वोट करना होगा और सभी दलों को चुनाव प्रचार, भाषणों में थोड़ा और उत्साह दिखाना होगा। <b>मुद्दों पर और बात होनी चाहिए , बहस और तीव्र और तीखी होनी चाहिए , हमें चुनाव को एक उत्सव का रूप देना चाहिये। </b><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjVqwD1bm7bGI2Zp6otbAjZR_hjtbCA3NiQrMVednlyAui2fi4p49Y1ZrYbEwW_SkNWUPA2fdgR_d0sBvuedEkby51AdmRKo06seiwIF-g_sMb2JhsTCjVX34E4X11gEx40zG9bYH-3jqw/s1600/220px-Loksabha_Election_2019_ECI_official_logo_Desh_Ka_Mahatyauhar.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em; text-align: center;"><img border="0" data-original-height="247" data-original-width="220" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjVqwD1bm7bGI2Zp6otbAjZR_hjtbCA3NiQrMVednlyAui2fi4p49Y1ZrYbEwW_SkNWUPA2fdgR_d0sBvuedEkby51AdmRKo06seiwIF-g_sMb2JhsTCjVX34E4X11gEx40zG9bYH-3jqw/s1600/220px-Loksabha_Election_2019_ECI_official_logo_Desh_Ka_Mahatyauhar.jpg" /></a></div>
<div style="text-align: left;">
</div>
<br />
जय हिन्द। वन्दे मातरम्। </div>
राम त्यागीhttp://www.blogger.com/profile/05351604129972671967noreply@blogger.com8tag:blogger.com,1999:blog-6861547640369354038.post-63177506426460836932014-04-11T10:34:00.002-05:002014-04-11T10:36:00.865-05:00राजनीतिक निराशा<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjXqg3UDm-WyXTUIhkT1YUqbbTxn3cVZPM4ijSgmLAW3F7KbAsG-wJp_jdwcqjtUbxQXk96BpSevTMD7_KlM2Wh09E8X5bmE0ALk0Jsy9WoyfrBlosEAdFr3XhI3J-P_gmQgx98lhn1uyM/s1600/diary.jpeg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjXqg3UDm-WyXTUIhkT1YUqbbTxn3cVZPM4ijSgmLAW3F7KbAsG-wJp_jdwcqjtUbxQXk96BpSevTMD7_KlM2Wh09E8X5bmE0ALk0Jsy9WoyfrBlosEAdFr3XhI3J-P_gmQgx98lhn1uyM/s1600/diary.jpeg" height="311" width="400" /></a></div>
<br /></div>
राम त्यागीhttp://www.blogger.com/profile/05351604129972671967noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-6861547640369354038.post-82391049908708793852013-02-13T13:27:00.001-06:002013-02-13T13:32:23.615-06:00तलाश एक खोये हुये सपने की…<p> </p> <p><strong>16-17 दिसम्बर २०१२</strong> को पूरा भारत देश अपनी बेटी के साथ हुए जघन्य अपराध के लिए आक्रोश में था, पूरा देश प्रदर्शनों के जरिये अपने आक्रोश का इजहार करते हुए अपराधियों के लिए कड़ी से कड़ी सजा के लिए एक स्वर में खड़ा दिखाई दिया| एक पिता ने बिना किसी भेदभाव के उच्च शिक्षा के लिए हर सुविधा मुहैया कराई, एक सपने की नीव बुनी, लडकी ने भी मेहनत से अपने पिता के विश्वास को एक बल दिया| पर एक भयावह रात में कुछ दरिंदों ने उस सपने को चकनाचूर कर दिया, रही सही कसर समाज ने - हम सब ने, पुलिस ने अपने लचर रवैये से पूरी करी, हम सब कहीं न कहीं इस वीभत्स कृत्य में जिम्मेदार थे| </p> <p>हमारी असंवेदनशीलता और सब कुछ जल्दी ही भूल जाने की प्रवृत्ति ने समाज में कुकुरमुत्तों की तरह अपराधभाव को पनपने का मौका दिया है! “सब चलता है!”, “ हम क्या कर सकते है!” इस तरह के मनोभाव ने हमें एक तरह से अपराध का सरंक्षण दाता बना दिया है|</p> <p>ऐसे कई माता पिता हमारे आसपास मिल जायेंगे, जिनके सपने समाज के अद्रश्य अपराध के चलते अचानक से बिखर गए और ये समाज, रिश्तेदार, पुलिश प्रसाशन, सरकारों ने ना तो उन सपनों के टूटने के परवाह करी और ना ही किसी ने उन माँ बाप की कोई सहायता की| ऐसे पारिवार वालो के लिए जिंदगी एक अभिशाप बनकर रह जाती है </p> <p><strong>२६ मई २०१२</strong> को भी एक ऐसा ही सपना दिल्ली में टूटा| मध्यप्रदेश के एक गाँव में एक परिवार खेती करके अपना जीवनयापन कर रहा है, बढते परिवार, बढ़ते खर्चे पर कम होता उत्पादन और कम होता खेतों का क्षेत्रपल - ये सब हर भारत के हर गाँव की दास्ताँ है| पर फिर भी कुछ माँ बाप एक एक पैसा जमा करके अपने बच्चों को शिक्षा प्रदान करने की हर सुविधा मुहैया कराते है, जिससे आगे जाकर वो बच्चे उस गाँव से बाहर निकल कर अपने पैरों पर खड़े हो सकें और अपने परिवार को कुछ आर्थिक मदद दे सकें और अपने लिए भी नए आयाम तय कर सकें| <strong>धर्मेन्द्र</strong> के घरवालो का भी कुछ ऐसा ही सपना था, धर्मेद्र बचपन से ही पढ़ने में बहुत होशियार था, जब बड़ा हुआ तो जिले के आदर्श स्कूल में उसको एडमिसन मिला, परिवार को एक रोशनी की किरण दिखाई दी, सपनों की मंजिल कुछ पास सी दिखाई देने लगी| पिता ने अपने आप को खेतों में लगाए रखा जिससे १ हजार महीने का खर्चा पूरा कर सके, ये रकम भी बहुत बड़ी रकम थी उनके लिए, पर फिर भी एक आशा थी कि ये पैसा सही दिशा में लग रहा है| जब कॉलेज की बात आई तो उसको BCA में एडमिसन मिला, मेहनत और जिम्मेदारी से तीन साल का कोर्स पूरा किया, अब आगे पढाने की हिम्मत नहीं थी घरवालो की, तो धर्मेन्द्र ने दिल्ली जाकर नौकरी देखना शुरू किया और जल्दी ही उसको एक प्राईवेट कंपनी में नौकरी मिल गयी| दिल्ली आकर वह अपने कुछ दोस्तों के साथ रहने लगा और जॉब करने लगा| घरवालो के सपने पूरे हुए, इससे ज्यादा और उनको भगवन क्या देता, अब तो उसके रिश्ते भी आने लगे थे| इसी तरह शायद उसको दिल्ली में दो साल बीत गये होंगे, भारत की प्रगति में एक सपना साकार हो रहा था| </p> <p>फिर एक भयावह शाम आई, <strong>२६ मई २०१२ की</strong> <strong>शाम को वह अपने फ्लैट से निकला तो फिर कभी वापस नहीं आया, दिल्ली के अँधेरे में पता नहीं कहाँ खो गया, कौन ले गया, क्या कारण थे, क्या किया उसका, कुछ पता नहीं</strong>| एक गाँव का गरीब पिता दिल्ली में कैसे और क्या करता अपने बेटे की तलाश के लिए? पुलिस के हिसाब से ये तो नोर्मल केस है और ऐसा तो होता रहता है, पुलिस ने कभी कोई जिम्मेदारी और गम्भीरता इस मामले में नहीं दिखाई, ये लोग दिल्ली की दीवारों पर पोस्टर चिपकाते रहे, और अगर पुलिस को कोई भी क्लू देते तो दिल्ली पुलिस उलटे विक्टिम के घरवालों को ही बाकी की सूचना लाने के लिए कहते, उलटे दिल्ली पुलिस धर्मेन्द्र के परिवार वालों से प्रश्न पूछती कि कुछ सुराग लगा क्या| पुलिस का रवैया बहुत ही निराशाजनक और गैर जिम्मेदाराना रहा, उन्होंने कोई सहायता अपनी तरफ से नहीं करी, बस मूकदर्शक बनकर मामले को टालते रहे और वो इसमें सफल भी रहे, मामला रफादफा हो चुका है और जाने वाला अभी तक वापस नहीं आया|</p> <p>सरकार तक गरीब की आवाज तो पहुँचना एक असम्भव सा ही काम है, घरवालों ने, रिश्तेदारों ने और दोस्तों ने बहुत हाथ पैर मारे पर कुछ पता नहीं चला उसका, माँ ने खाट पकड़ ली और पिता इस तुषारापात से निशब्द हो गया, सपने धराशायी<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjcZd_5GHxAvcFo5wIdQh-iuva7EVZITN5plc_wtkHfjDOJYB2bNO26dJpIYGnmOnfjslXzsa6KF7I8XofNSZzeVu6-Yo0jtJxTOVAcsrf-bI_0Q4LZ65pewh7tupfBuuKXDqYVE6X2e4A/s1600-h/dharmendra1.jpg"><img style="border-right-width: 0px; display: inline; border-top-width: 0px; border-bottom-width: 0px; margin-left: 0px; border-left-width: 0px; margin-right: 0px" title="धर्मेन्द्र की गुमशुदी की जानकारी " border="0" alt="धर्मेन्द्र की गुमशुदी की जानकारी " align="right" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiNN0bIU0QXtCCLnUa7AvvLrJfQo1TqBKmCxMuwpvzg_zd40XysR-cHmLowopaPyia2A4XyeyrmPp-ujmI5ExNMuPBwUzMHmvtemfsWPYPDp2vinJ71kwwo1GRSuh8K2XapaOd7XaEW9e0//?imgmax=800" width="244" height="211"></a> हो गए और आँशु भी बह बह कर कम से पड़ गए पर जाने वाला कभी वापस ना आया| अब तो घर में और पड़ोस में शहनाई की आवाजें फिर से आने लगी हैं, तब से कई मौसम बदल गए और बदलते मौसमों के साथ सब भूल से गए है उसके अस्तित्व को भी, पर माँ अभी भी उस खाट पर पड़ी हुई आज भी टकटकी लगाये हुए है कि बस कोई कह दे कि पता चल गया है| पुलिस से ज्यादा विश्वाश गांव में माता की चौकी और ज्योतिषी जैसे अंधविश्वासों पर होता है (इसकी भी एक वजह प्रशासन से कोई आशा न होना है, जबाब नहीं मिलना है, आदमी वहीँ जाता है जहाँ उसे कुछ रौशनी दिखती है) , सैकड़ो सिद्ध पुरुष आजमा लिए, सबकी चुनौतियाँ और भविष्यवाणियाँ महीने दर महीने झूठी पड़ती रहीं पर वो नहीं आया| अब भी इन्तजार है, आशा है कि वो आएगा जल्दी ही…. </p> <p><img style="display: inline; margin-left: 0px; margin-right: 0px" title="दिल्ली से गायब हुए बच्चों का एक लेखा-जोखा " alt="दिल्ली से गायब हुए बच्चों का एक लेखा-जोखा " align="right" src="http://i.dailymail.co.uk/i/pix/2012/04/28/article-2136677-12D104C7000005DC-484_468x204.jpg" width="240" height="107">एक रिपोर्ट के अनुसार १३ बच्चे औसतन दिल्ली से रोज गायब हो जाते हैं (देखिये दायीं तरफ की टेबल में), ज्यादा से ज्यादा मामलों में FIR ही दर्ज नहीं होती| </p> <p>इंडियन एक्सप्रेस में २९ अगस्त २००८ को छपी रिपोर्ट के अनुसार २६ हजार लोग दिल्ली पुलिस के रिकॉर्ड के अनुसार दिल्ली से गुमशुदा हैं और दिल्ली पुलिस को कोई सुराग नहीं है| एक और रिपोर्ट के अनुसार भारत से हर आठ मिनट में एक बच्चा गायब हो जाता है, वर्ष २००८ और २०१० के बीच १.७ लाख बच्चों के खोने की FIR दर्ज की गयी थी, इस हिसाब से यह समस्या बहुत गंभीर है क्यूंकि ये गायब हुए लोग अपराधिक और असामाजिक कामों में उनकी मर्जी के खिलाफ उनको ब्लेकमेल करके लगा दिए जाते हैं| <a href="http://blogs.wsj.com/indiarealtime/2012/10/16/indias-missing-children-by-the-numbers/">राज्यसभा में एक प्रश्न के जबाब में गृह राज्य मंत्री जीतेन्द्र प्रसाद ने बताया कि ६० हजार बच्चे २०११ में २८ राज्यों और केंद्रशाषित प्रदेशों से खोये थे</a>, उनमें से २८ हजार अभी तक नहीं मिले हैं. ये सारे आंकड़े दर्ज की हुई FIR के अनुसार हैं - बहुत सारे मामलों में पुलिस FIR दर्ज नहीं करती या फिर लोग पुलिस के पास नहीं जात | </p> <p><a href="http://tehelka.com/where-are-our-missing-children/">तहलका डॉट काम पर एक लेख के अनुसार पुलिस की ऐसे केसों में मंशा और गम्भीरता कुछ ऐसे बयां की गयी है :</a> “It starts with how the investigation is done. Very often, First Information Reports are not registered; just an entry is made into a list of missing persons at the police station, and a photograph of missing child sent across city police stations. Cases are only investigated if the person reporting the missing child files a case of kidnapping.”</p> <table border="3" cellspacing="1" cellpadding="2" width="562"> <tbody> <tr> <td valign="top" width="554">ऐसे कितने केस होते है दिल्ली में, क्या कोई चैनल इस पर केस स्टडी नहीं कर सकता? क्या कोई इस बारे में पहल नहीं कर सकता? मैंने इस दिशा में कोशिश करने की ठानी है और उस परिवार को एक एक आशा देने की सोची है और आशा है कि बहुत सारे लोग आगे आकार इस गरीब के, एक गाँव के केस को भी आगे बढाएंगे| आप में से कुछ लोग प्रिंट मीडिया में है, तो इस स्टोरी को छापें और उस गाँव में जाकर उस परिवार की आपबीती को लोगों तक पहुँचायें, शायद वो हो कहीं और उस पर इसका असर हो| अगर आप पुलिस में है तो अपने लेवल पर हर सम्भव प्रयास करें, टीवी में है तो फिर तो आपके पास इससे अच्छी स्टोरी और क्या हो सकती है ? <strong>और शायद इस बहाने हम एक सपने को भी पुनर्जीवित कर सकें !!!</strong></td></tr></tbody></table> <p><strong> </strong></p> <div style="padding-bottom: 0px; margin: 0px; padding-left: 0px; padding-right: 0px; display: inline; float: none; padding-top: 0px" id="scid:0767317B-992E-4b12-91E0-4F059A8CECA8:e9939d2c-dd07-4f4b-96c9-f9c126f43ebc" class="wlWriterEditableSmartContent">Technorati Tags: <a href="http://technorati.com/tags/Dharmendra" rel="tag">Dharmendra</a>,<a href="http://technorati.com/tags/missing" rel="tag">missing</a>,<a href="http://technorati.com/tags/delhi" rel="tag">delhi</a>,<a href="http://technorati.com/tags/Shekhpur" rel="tag">Shekhpur</a>,<a href="http://technorati.com/tags/delhi+police" rel="tag">delhi police</a></div> राम त्यागीhttp://www.blogger.com/profile/05351604129972671967noreply@blogger.com8tag:blogger.com,1999:blog-6861547640369354038.post-47138230144970621152012-03-05T12:56:00.001-06:002012-03-07T10:25:52.273-06:00भोपाल गैस त्रासदी का हिसाब अभी बकाया है<p>लन्दन ओलम्पिक के लिए हर जगह तैयारियाँ हो रही है, विश्व का हर देश और हर देश का प्रत्येक खिलाडी अपने हुनर दिखाने के लिए तत्पर हैं और जिस तरह से आज हम देशीय सीमाओं से आगे बढ़ चुके है हर देश के बड़े से बड़े उद्योग घराने भी इस महाखेल में अपने अपने हाथ आजमाने के लिए आतुर हैं, उन पर भूत सवार है कि कैसे विश्व के ७ बिलियन लोगों तक वो अपने ब्रांड का नाम पहुंचा सकें. </p> <p>जैसे हर देश के खिलाडी को कुछ मापदंडों पर खरा उतरने के बाद ही इस महाखेल में खेलने कि इजाजत दी जाती है, वैसे ही क्या ओलम्पिक संघ को प्रायोजक चुनते समय कुछ मापदंडों अपनाने की सख्त जरूरत नहीं है ? यह सवाल मेरे मन में कई दिनों से उठ रहा है, शायद हर भारतीय के मन में ये सवाल आ रहा है क्यूंकि Dow Chemical जैसी दागदार कंपनी को भी प्रायोजक बना लिया गया है, ये वही कंपनी है जिसने भोपाल में नरसंहार की जिम्मेदार यूनियन कार्बाइड को ख़रीदा था. कैसे कोई १९८४ के वो वीभत्स दिन भूल सकता है जब एक कंपनी के गैर जिम्मेदाराना रवैये के चलते हजारों लोग मारे गए और कई अनगिनत जिंदगी भर के लिए अपंग हो गए. कभी भी उस घटना की जिम्मेदारी यूनियन कार्बाइड ने अपने सर पर नहीं ली और उसका कोई भी बड़ा अधिकारी सजा नहीं पा सका. <strong>ये घटना अमेरिका के ९/११ और जापान के हिरोशिमा और नागासाकी से कम नहीं थी - पर फिर भी अपराधी खुले हाथ इज्जत के साथ घूम रहा है, क्या ये उचित समय नहीं जब हम लन्दन ओलम्पिक संघ से इसके विरोध की बात करें. </strong></p> <p>हमारी सरकार तो हमेशा से ही अपराधियों की शरणगाह रही है और इसका अपराधबोध हमारी सरकारों को पिछले ६० सालों में एक बार भी नहीं हुआ, तो क्या उम्मीद कि जा सकती है पर फिर भी जनता ने अपनी आवाज के बल पर कई लड़ाईयां जीतीं है और शायद social network के जरिये इस लड़ाई में भी जनता को आगे आकर अपना स्वर बुलंद करना होगा जिससे <strong>Dow Chemical को भी भोपाल की घुटन का कुछ तो अहसास हो! </strong></p> <p>अगर आप भी मुझसे सहमत हैं और अपनी आवाज Dow Chemical के विरोध में दर्ज करना चाहते हैं और लन्दन ओलम्पिक कमेटी तक अपने विरोध का स्वर पहुँचाना चाहते हैं तो आईये मेरे साथ इस लड़ाई में, मुझे और आपको संगठित होने की जरूरत है. इस कार्य हेतु मैंने <a href="https://www.facebook.com/groups/352198654803472/">एक ग्रुप</a> (समूह) फेसबुक पर बनाया है - </p> <p><a title="https://www.facebook.com/groups/352198654803472/" href="https://www.facebook.com/groups/352198654803472/">https://www.facebook.com/groups/352198654803472/</a></p> <p>आप सब इसको ज्वाइन करें और मुझे<strong> सलाह प्रदान करें</strong> कि कैसे ये लड़ाई और <strong>बेहतर</strong> तरीके से लड़ी जा सकती है !! </p> <p><strong>मेरे हिसाब से कुछ प्रयास जो इस दिशा में हम कर सकते हैं : </strong></p> <p>१. ज्यादा से ज्यादा लोगों को इस अभियान में शामिल कर सकते हैं और जागरूकता अभियान चला सकते हैं </p> <p>२. निम्नलिखित व्यक्तियों/समूहों को पत्र भेजकर अपना विरोध दर्ज कर सकते है </p> <blockquote> <p>>. खेल मंत्री - भारत सरकार एवं यु के </p> <p>> प्रधानमंत्री - भारत एवं यु के </p> <p>> भारतीय ओलम्पिक संघ </p> <p>> लन्दन ओलम्पिक कमेटी </p> <p>> Dow Chemical management </p></blockquote> राम त्यागीhttp://www.blogger.com/profile/05351604129972671967noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-6861547640369354038.post-25411865320329473672010-12-05T05:33:00.001-06:002010-12-05T05:33:36.646-06:00वर्तमान समय में नैतिक मूल्यों की आवश्यकता<table border="1" cellspacing="1" cellpadding="2" width="400"> <tbody> <tr> <td valign="top" width="400"> <p align="center">यह पोस्ट मेरे पिताजी की अतिथीय पोस्ट है ! </p></td></tr></tbody></table> <p>आज प्रतिदिन देखने में, सुनने में, समाचार पत्रों में पढने से यह अनुभव हो रहा है कि आज मंत्री से लेकर IAS अधिकारी भ्रष्टाचार में डूबे हुए हैं, भ्रष्टाचार के कारण संसद नहीं चल पा रही है. अभी दूरसंचार मंत्रालय में अरबों रुपये के घोटाले का पता चला है जो एक वर्ष का रक्षा बजट होता था. अभी कुछ माह पहले अरविन्द जोशी दम्पत्ति के यहाँ घर पर करोड़ों रुपये बिस्तर में छिपे पाए गए ! कारण स्पष्ट है कि भौतिकता की चकाचौंध में नैतिक मूल्यों में गिरावट आती जा रही है. </p> <p>लालबहादुर शास्त्री, अटल जी ऐसे नेता थे जो नैतिक मूल्यों को महत्व देते थे आज अन्तरात्मा की आवाज न सुनकर केवल भौतिक सुविधाओं की ओर ध्यान दिया जा रहा है. </p> <p>हर खाद्य पदार्थ जैसे बेसन, दाल, मिर्च, घी, खोया, तेल में मिलावट ही आ रही है. व्यापारी वर्ग अत्यधिक मुनाफे के प्रलोभन में नैतिक मूल्यों को तिलांजलि दे रहा है. </p> <p>आज नैतिक मूल्यों के अभाव में परिवार टूट रहे हैं, अपने स्वयं के बच्चे, पत्नी के अलावा अन्य सदस्यों पर ध्यान न दिया जा रहा है. पहले नैतिक मूल्यों के कारण संयुक्त परिवार में सभी परिवार के सदस्य इकट्ठे रहते थे. </p> <p>आध्यात्मिकता का अर्थ किसी विशेष सम्प्रदाय से नहीं है, आध्यात्मिकता का अर्थ है अपनी अन्तरात्मा की आवाज के अनुसार कर्त्तव्य पालन करना ! गांधीजी ने जीवन भर नैतिक मूल्यों को अपने जीवन में स्थान दिया, वे हर कार्य अपनी अंतरात्मा की आवाज (नैतिक मूल्यों) के अनुसार करते थे. </p> <p>यदि जीवन में उच्च आदर्शों, नैतिक मूल्यों को महत्व दिया जाय तो परिवार से लेकर समाज एवं समाज से लेकर राष्ट्र हर क्षेत्र में चहुँमुखी विकास कर सकता है. <strong>आज न्यायालय भी नैतिक मूल्यों के अभाव में सही निर्णय देने में असमर्थ होते जा रहे हैं. </strong></p> <p>नैतिक मूल्यों के अभाव के कारण व्यक्ति के चरित्र में गिरावट आती जा रही है, आज अपराधों का ग्राफ हर वर्ष बढता जा रहा है. चोरी, डकैती, बलात्कार, हत्याएं इसलिए हो रही हैं कि व्यक्ति स्वयं के जीवन में उच्च आदर्शों, नैतिक मूल्यों को जीवन में स्थान न दे पा रहा है. इसलिए बच्चों को आज अच्छे संस्कारों की नितान्त आवश्यकता है, हम अपने चरित्र से, व्यवहार से बच्चों के सामने नैतिक मूल्यों के उदाहरण प्रस्तुत करें. </p> <p>आज के बच्चे ही कल के भविष्य हैं, अतः शिक्षा के साथ साथ नैतिक मूल्यों को जीवन में स्थान दें, हम हर कार्य अपनी अंतरात्मा एवं उच्च आदर्शों को ध्यान में रखकर करें. परिवार बच्चों की प्रथम पाठशाला है अतः हर माता पिता को स्वयं का आचरण शुद्ध सरल-पवित्र, मर्यादापूर्ण रखना चाहिए. आज जो संस्कार बच्चों में स्थापित होंगे वो ही आगे चलकर देश और समाज के, परिवार के विकास में सहायक होंगे. </p> <p>ईमानदारी, सत्यता, विवेक, करुना, प्रलोभनों से दूर रहना, पवित्रता ये नैतिक मूल्यों के आदर्श तत्व हैं, इन आदर्श तत्वों (सिद्धांतों) से जीवन में आध्यात्मिकता का जन्म होता है. एक आदर्श परिवार या देश के संचालन हेतु परिवार के सभी सदस्यों, या देश के सभी नागरिकों में शिष्टाचार, सदाचार, त्याग, मर्यादा, अनुशासन, परिश्रम की आवश्यकता है. यदि जीवन में शिष्टाचार, सदाचार, अनुशासन, मर्यादा है तो परिवार और देश में शांति रहेगी. यदि परिवार या राष्ट्र में स्वार्थ लोलुपता, पद लोलुपता बनी रहेगी तो परिवार भी टूटेगा, राष्ट्र भी भ्रष्टाचार से प्रदूषित होता रहेगा. इसलिए अहंभाव त्यागकर, स्वार्थ त्यागकर, प्रलोभनों से दूर रहकर अपने व्यक्तिगत जीवन में विनम्रता, त्याग, परोपकार को जीवन में स्थान देना होगा तभी हम एक आदर्श परिवार का सृजन कर सकते हैं, एक आदर्श और खुशहाल राष्ट्र का स्वप्न साकार कर सकते हैं. </p> <p>कन्फ्यूशियस के अनुसार - <em>“यदि आपका चरित्र अच्छा है तो आपके परिवार में शांति रहेगी, यदि आपके परिवार में शांति रहेगी तो समाज में शांति रहेगी, यदि समाज में शांति रहेगी तो राष्ट्र में शांति रहेगी"</em></p> राम त्यागीhttp://www.blogger.com/profile/05351604129972671967noreply@blogger.com90tag:blogger.com,1999:blog-6861547640369354038.post-52464684683344533282010-11-28T23:29:00.001-06:002010-11-28T23:29:49.881-06:00धोबी का कुत्ता घर का न घाट का<p><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjCUSyL2vdhx-AHal77aP8Ssve4X9whKsEEDxeh0Ff-N3kAVUEXTzbBL1X8A1vqKMhGK0kDt8tBPEwOUd71xVR16Nh-cmHJ50IEuLk0CfGnligj_cWO8fmHVLn4UjjTFhHAYDCz92YoLaE/s1600-h/confused-monkey1%5B4%5D.jpg"><img style="border-bottom: 0px; border-left: 0px; display: inline; margin-left: 0px; border-top: 0px; margin-right: 0px; border-right: 0px" title="confused-monkey1" border="0" alt="confused-monkey1" align="left" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh89de8iS-aX5IAjGU5ooHIe7qesDggaIAU2KSWAJvQn1a_Ozk5LZeLa3a_78tnZnOtPRqEXAqmGdaa5drTJTlr7m-ZqCUMfnyyYxpYSNaqG50Coy7niRaf2U7nPhuuPrZsZ6UJ1K2iUDQ//?imgmax=800" width="82" height="82"></a> बाईक चलाना तो जैसे भूल ही गया हूँ, क्लिच के साथ गियर पर नियंत्रण और इधर उधर से रेंडम क्रम में आने वाले व्यक्तियों और वाहनों की कस्साकस्सी में मैं जैसे फिर से शहर के लिए गांव से आने वाला एक सीधा साधा इन्सान बन गया हूँ, मेरे छोटे भाई मुझे बाईक पर बैठने नहीं देते कि कहीं मैं हाथ - पैर ना तोड़ लूं ! इतना बुरा भी नहीं चलाता पर लोगों की फीडबैक ऐसी है कि कोई सुन ले तो साथ पीछे बैठेगा ही नहीं, अर्धांगिनी तो पहले ही हाथ जोड़ बैठी कि हम तो ऑटो कर लेंगे … पर फिर भी मन है कि खुद को सर्वश्रेष्ठ मानता है, लगता है थोड़े प्रयास और भरसक अभ्यास की जरूरत है. </p> <p>कार चलाना में भी वही संघर्ष, यहाँ भी क्लिच और गियर का मिश्रण और ऊपर से बाजारों की भीड़ मुझे अनियंत्रित सा कर देती है, भले ही अमेरिका और जर्मनी में गाडी की गति उड़न खटोले जैसी करके फिर भी नियंत्रण संभव है पर यहाँ वही हाथ डगमगा रहे हैं, सुविधा ने संघर्ष को मात दे दी और हम कुछ ज्यादा ही सरल जीवन जीने के आदी हो गए हैं, बाथरूम में से बदबू आती है तो धूल से छींक ही छींक - जैसे हम अपने ही घर में बेगाने से हो गए ! इस कहते हैं कि धोबी का कुत्ता न तो अब घर का रहने वाला है और न घाट का…अमेरिका में भारतीय जीवन जीते हैं और भारत में आकर जैसे स्पीड में कही पिछड़ रहे होते हैं, यहाँ आकर हर मोड पर मेरा और सबका बहाना होता है कि अब वो यहाँ नहीं रहते ना, तो आदत नहीं रही !! </p> <p>ट्रेन और बस में धक्कामुक्की है पर अगले ही पल बातों में अपनापन लिए पुरानी सौंधी खुशबू लिए प्रेम झलक पड़ता है. सकल घेरलू उत्पाद की दर का प्रभाव लोगों के जीवन पर भी प्रतिलक्षित होता दिखता है, सब लोग व्यस्त है, बच्चे स्कूल के बोझ से पस्त हैं और हर कोई आगे बढ़ने की होड़ में मस्त है, हर हाथ की उँगलियाँ मोबाइल के पैड पर हैं, और शहरों के बाजारों की गलियाँ विदेशी रंग में रंगने के लिए उतावली हैं, देश परिवर्तन के लिए तेजी से आगे बढ़ रहा है और कहीं न कहीं मौलिकता बाजारू और दिखावे का साधन मात्र होकर रह गयी है, मैं स्तब्ध सा खड़ा मंहगी होती चीजों को बस निहारता रहता हूँ, खुद को गरीब अनुभव करता हूँ और असमर्थ भी यहाँ के बाजारों में ! इतनी महँगाई अगर प्रगति के साथ गेहूं के साथ खरपतवार की तरह आती रही तो क्या एक दिन ये देश बंजर नहीं हो जाएगा ? </p> <p><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg6_GpRtlmUVNfAlfeGBLkkMQOVWU2eEnzlvZq1zi2ieRdhhSZMfSh0pHzCLlpvI6qpDSkI4QP9DBbeuY01oFw_MfHc3Y6IJupfHn0zUiL85Z-6AESi8-S2DtqwoDps98VRY54d7Dgyzt4/s1600-h/250px-Swami_haridas_TANSEN_akbar_minature-painting_Rajasthan_c1750_crp%5B8%5D.jpg"><img style="border-bottom: 0px; border-left: 0px; display: inline; margin-left: 0px; border-top: 0px; margin-right: 0px; border-right: 0px" title="250px-Swami_haridas_TANSEN_akbar_minature-painting_Rajasthan_c1750_crp" border="0" alt="250px-Swami_haridas_TANSEN_akbar_minature-painting_Rajasthan_c1750_crp" align="left" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiIQzrQUep-WQezSDKt0OmsFtwhh5jm8Wb_rv9rl3AXTJZ4Cnmh276FLovxFU6x5jl6nKXIJQstuJBdScv5ckDQpTewfBRR5cE0GaWFhqtSclxANnmZsLk27SYLy-T8JlZIxv8XtYpEyXg//?imgmax=800" width="133" height="110"></a>कल दैनिक भास्कर समाचार पत्र में एक समाचार था, तानसेन समारोह जल्द ही ग्वालियर में शुरू होने वाला है, हर साल दिसंबर में ये समारोह होता है. अकबर के नवरत्नों में से एक तानसेन जी ग्वालियर के पास ४० कि मी दूर बेहट नामक गाँव में जन्मे थे और समाचार पत्र के अनुसार इस गाँव का बच्चा बच्चा ध्रुपद गायन जानता है, ये कला उनके खून में बसती है, <a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgdNt_O9XaxkxiK0kiQ1tdOhTe0zcEqmVy48EstJmo_jm4F8zc7hQcFE6mLNAonha19yK-J-EZ_DnECipuYt2K574nX6AoPfk-qUMCF_PtYh9aqZhCKdMWXEOVbikjkvvs6vbF3kLFQ5es/s1600-h/250px-Tomb_of_Tansen%5B4%5D.jpg"><img style="border-bottom: 0px; border-left: 0px; display: inline; margin-left: 0px; border-top: 0px; margin-right: 0px; border-right: 0px" title="250px-Tomb_of_Tansen" border="0" alt="250px-Tomb_of_Tansen" align="left" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjA938IS4c-m4XwxRCPJR-e2p1or3bwgsvAXF7NisDYt6imDLDLeLX66erL8WnHUvlfHm0D-chj5SHnyOEWwDCkpEPvkkdSJfup9VhJu4xAwDhbjXKotVMTJqbnFzArL8QzEIwM-Bq48j0//?imgmax=800" width="124" height="106"></a>पर सरकार की और से आज तक ना तो बेहट के लिए और ना ही इस गाँव के लोगों की कला को आगे लाने के लिए कुछ किया है ! मैं शिवराज सरकार और भाजपा से निवेदन करूँगा कि इस और कुछ ध्यान दें ! हो सकता है कि तानसेन समारोह को भी ग्वालियर से बेहट में ले जाकर इस स्थान पर एक उत्साह पैदा करे !! </p> राम त्यागीhttp://www.blogger.com/profile/05351604129972671967noreply@blogger.com18tag:blogger.com,1999:blog-6861547640369354038.post-91117949598864535342010-11-28T01:03:00.001-06:002010-11-28T01:03:56.607-06:00ब्लॉग्गिंग से कमाया धन<p>हिन्दी ब्लॉग्गिंग विधा ने एक वातावरण पैदा किया है जहाँ पर कई ब्लॉगर एक परिवार की तरह एक दूसरे के दुःख सुख और वैचारिक आदान प्रदान में शामिल है. कुछ लोग ब्लॉग्गिंग से धन कमाने की अपेक्षा करते हैं तो कुछ देश सुधार की ! मुझे लगता है कि हिन्दी ब्लोगिंग से कुछ तो सार्थक हुआ है : </p> <p>१. एक अमूल्य धन की कमाई जिसमें कई अनजान लोग विचारों के आदान प्रदान से एक दूसरे के नजदीक आये, घनिष्ठ मित्र बने. </p> <p>२. हिन्दी का एक तरह से विकास हुआ है, हिन्दी में लेखन से इन्टरनेट पर हिन्दी में उपलब्ध सामग्री की प्रचुरता बढ़ी है </p> <p>३. जिन लोगों की हिन्दी लेखन में रूचि थी उनको एक वातावरण मिला है, प्रोत्साहन मिला है, रूचि जागी है और प्रतिस्पर्धा ने कई लोगों में लिखने और पढने का जुनून पैदा किया है</p> <p>मेरी इस बार की भारत यात्रा का एक पहलू ब्लॉग्गिंग मित्रों से मिलना भी था, अब तक फोन पर कई मित्रों से बात हुई और हर एक से आत्मीयता भरे सम्बन्ध ही बने हैं, मैं पहली बार किसी ब्लॉगर से मिला था २००९ में, तब मैं मुरैना निवासी <a href="http://hindipanna.blogspot.com/">भुवनेश शर्मा</a> से मिला था, भुवनेश से बात करना और उनके लेखो को पढना दोनों से ही मुझे कुछ न कुछ सीखने को मिलता था और जब मिला तो और भी अच्छा लगा, कल वो फिर मिलने ग्वालियर आये और घंटो हम बात करते रहे, कई विषयों पर ! कल उन्होंने माननीय <a href="http://teesarakhamba.blogspot.com/">दिनेशराय द्विवेदी</a> से भी फोन पर बात कराई, द्विवेदी जी के ब्लॉग पर मेरा तो नियमित जाना बना रहता है पर बात करके और भी ज्यादा अच्छा लगा ! </p> <p>इसी तरह <a href="http://praveenpandeypp.blogspot.com/">प्रवीण पाण्डेय</a> के हिन्दी लेखन का में बड़ा प्रशंशक हूँ, एक-दो बार फोन पर अल्प समय के लिए बात हुई है ! <a href="http://udantashtari.blogspot.com/">समीर लाल</a> से कनाडा में हुई मुलाकात ने एक और घनिष्ट मित्र दिया तो <a href="http://bspabla.blogspot.com/">पाबला जी</a>, <a href="http://sanskaardhani.blogspot.com/">बिल्लोरे</a> जी, महफूज मियां इन सबसे बात करके भी इनको और नजदीकी से जानने का मौका मिला ! रवींद्र प्रभात, राज भाटिया जी, जय झा से भी फोन पर बात हुई है और शायद ये सिलसिला चलता रहेगा ! अर्चना चाव जी, और अजित गुप्ता जी से भी बात करके आशीर्वाद लिया है. अनूप शुक्ल जी, शिखा जी, अभिषेक झा, अजय झा और अन्य लोगों से भी चेट पर बात होती रहती है. </p> <p>इसी सिलसिले को आगे बढ़ाया इस शुक्रवार को <a href="http://lalitdotcom.blogspot.com/">ललित जी</a> और <a href="http://deshnama.blogspot.com/">खुशदीप जी</a> ने, एक संकट मोचक की तरह निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन पर एक आत्मीय मुलाकात ने मुझे दो और मित्र दिए. दिल्ली महानगर में वर्किंग डे के दिन सुबह ८ बजे स्टेशन कौन आ सकता है, पर हमारे देश भावना प्रधान है जहाँ आलस या फिर और विकार भावों के सामने हावी नहीं रह पाते ! मेरे पास कुल मिलाकर छोटे से लेकर बड़े तक १० बैग थे और दो बच्चे :) …कुली सामान को स्टेशन के बाहर से प्लेटफोर्म पर रखकर जा चुका था और जब गाडी आकर लग गयी तो फिर जद्दोजहद थी की कैसे सामान को अंदर रखा जाय, किसी एक को बाहर रखवाली भी करनी थी, पर समय बहुत था – लगभग ३५ मिनट तो सोचा कि धीरे धीरे खुद ही चढाते हैं पर तभी दो संकटमोचक मित्र उस समय आते हैं और सब काम एक मिनट में हो जाता है, बच्चे भी खुश हो गए और फिर बातों का सिलसिला ऐसा चला कि लगभग २५ घंटे की थकान कब दूर हो गयी - पता ही नहीं चला - बातों में ऐसे मग्न हुए कि ट्रेन जब चलने लगी तब मैं भागते भागते चढा ! </p> <p>कौन कहता है कि ब्लॉग्गिंग से कमाई नहीं होती :) </p> <p><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhkdtQWbGsvA8k6V7cbzxXFtx6WRiqUa20C1KRmr2ATqdKOMvVs6DPYjTqPwQ3YUeLyKKyK_TfzJnevnDHItVDYQ0qpE8D4WFgevEKsYolaiErBxtqPIZm85kE5fQcbPUauLJBE60I9S8E/s1600-h/IMG_2782%5B4%5D.jpg"><img style="border-bottom: 0px; border-left: 0px; display: inline; border-top: 0px; border-right: 0px" title="IMG_2782" border="0" alt="IMG_2782" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEheE6ACjKiKIceIo38ZQbUiKbvViN2rGNXJvHAOAMxXvAXBbuEDND_6NsYjjpYqaVFh7lB45YsQaMtiB1t8caUH28prbBPJqjBxBY2BDaXHGhYX6tftGzceykdqZZt-U2DF_5_TGxAm0SM//?imgmax=800" width="122" height="157"></a> <a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi4epJjNYgNjYTm015kyVM0E8-dW8DvBH5rPYOy4ADVML-xpuVETDuFf_71KSfbQ_DYRZV-nFDzY4iTa4Y8lV8HeIjsHS-19PbUt5qXNma2rJoJ3UH6yUM3Glmzj3nTfsBBs94JR4-hiKE/s1600-h/IMG_2780%5B3%5D.jpg"><img style="border-bottom: 0px; border-left: 0px; display: inline; border-top: 0px; border-right: 0px" title="IMG_2780" border="0" alt="IMG_2780" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjkZXW6GiYmlIJDI1gkd3hI76ZH6649gkDIQJPfbX4HPEbRQYAaNDFKnTvMhp7XAQeYirN2Tv4LyNi8VVLvHUcwVZG9sYqkVsHUw7YRcn4RgNxcmoYCHPCiMFolqyQfEGHaWru9d7KGl_o//?imgmax=800" width="208" height="159"></a> <a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEinmDk6Gn5Z20nV1ijOBK-3lDfT_DSvxooZUUIltuJqupgaHN9XMNmQUdXVuppm8tEmTxX05ZSwq3rcfj9n8WLZJWbQTl8MVM8ZaD5LrjXw6uMiJabLcQee3l3pOWpFlZ4KVLxzjys_enQ/s1600-h/IMG_2777%5B3%5D.jpg"><img style="border-bottom: 0px; border-left: 0px; display: inline; border-top: 0px; border-right: 0px" title="IMG_2777" border="0" alt="IMG_2777" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgRD1bJeKQIUyYnj4itQyVzM5wJspYUFA9-yRgg3a_Jifd-T8kz07nu-0rgZxn95DRS4M_oUn61DMrSc2bjE3w2R5DQfzunGYi9y15LjLjPfPqYR_Bxp7W4hSpABjJRLOq6HsRhv6ylkQg//?imgmax=800" width="125" height="163"></a></p> राम त्यागीhttp://www.blogger.com/profile/05351604129972671967noreply@blogger.com29tag:blogger.com,1999:blog-6861547640369354038.post-83910662963159948832010-11-24T14:53:00.001-06:002010-11-24T14:53:16.439-06:00एक युद्ध की तैयारी - भारत आने के लिए !!<p> </p> <p>बच्चों के साथ यात्रा करना भी युद्ध पर जाने से कम नहीं, उनकी तमाम फरमाईशों पर गौर फरमाने के साथ जो पेकिंग हो रही है उसको यथावत रखने का संघर्ष भी अनवरत करते रहना पडता है, उसके बाद उनकी अति प्रसन्न वाली मुद्रा को शांत करने की कला में भी पारंगत होना पडता हैं - अति उत्साह में अनगिनत प्रश्न और अनगिनत आकांक्षाएं ! बस एक बार उनको बता दिया कार्यक्रम के बारे में तो उनको लगता है कि समय को फेर कर गंतव्य समय को वर्तमान में मोड दिया जाये ! ऐसे में खुद की तैयारियां और जरूरी काम तो बस जैसे युद्ध में पैदल सेना को टैकल करना हो बस ! </p> <p><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg0KxPDiul1L3asXojLRV6BTlRd-pqge9CHFEQR0kbp_qvuCWJyuaE8OmEbDcMefF4PrJjgJG6tcYb5PR_eEb7eExyCvxTEofaL4lhccYWlogIlpvHvetvD0vpmyXyQNNn2Tj-96Faj3D4/s1600-h/air%20travel%5B3%5D.jpg"><img style="border-bottom: 0px; border-left: 0px; display: block; float: none; margin-left: auto; border-top: 0px; margin-right: auto; border-right: 0px" title="air travel" border="0" alt="air travel" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjReXzYz_YDTDvifQkqxTjvLR1vgDV6VBnyv5uNlBVeedTJ4w-oejzr87BX-7OdmuguoMR-3x898a7WqaIpa26SR9wJy6VzdTmOiCqyFZ9cz9WheFZKXLN-VQQJTFCeCKKYtl8o-E7P5Uo//?imgmax=800" width="244" height="184"></a> </p> <p>बच्चों की संख्या एक से अधिक है तो तुलनात्मक वस्तुओं से बच्चों में उपने खीजपन को भी संयमित करने का गुण सीखना पड़ेगा नहीं तो आप अभिमन्यु की तरह खीज गलियों के चक्रव्यूह में घुमड़ते रहोगे ! इस उत्साह को यहाँ के शिक्षक भी चार चाँद लगा देते हैं ये बोलकर कि वाह जाओ और मजे करो वत्स - यात्रा का वृतांत लिखना - बस यही तुम्हारी पढाई होगी ! उनके अनुसार ये अमूल्य स्मृतियाँ मानसपटल पर हमेशा अंकित रहेंगी इसलिए ये तो पढाई से भी बढकर है - अब तो युद्ध में इन बच्चों को और भी शस्त्र मिल गए और हमेशा की तरह अपनी हार इन बच्चों के सामने अपेक्षित सी लगती है, जीतने का उपाय सोचना ही होगा क्यूंकि आगे १८-२० घंटे , रात दिन, सुईयों के साथ प्रथ्वी का ध्रुवीकरण भी परिवर्तित होगा और उससे उपजे जेट लेग रुपी विकार को भी झेलना होगा ! </p> <p><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg2FsyEin6hwO841jFJGH8E5i9p8xwfxyMWRBj4zmQwd89p2T77dWaBJSUDX5Lez16WfOT9Oi6dxifS8qPOcTWYrMM6MxYDIqwNz0MH4IpAum4-oYf8uRyT2rFEjaH2iG4oxoMCIHpGAzg/s1600-h/sky%5B3%5D.jpg"><img style="border-bottom: 0px; border-left: 0px; display: block; float: none; margin-left: auto; border-top: 0px; margin-right: auto; border-right: 0px" title="sky" border="0" alt="sky" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgqgM8-2C_3R1OdatmqSDaDJqp5AfQ0onAnQWL-mweDDFFl_ZjzBM1_HKBZ7oTXjp4-4Hxr5aJ2CoStGB7EbMdlam0MY8eZhBYl4ddpwoNZYbND9AX9dAWZ1ZPbld4qDxjbrB9ChHA5Cu4//?imgmax=800" width="184" height="244"></a> </p> <p>खैर युद्ध की पूरी तैयारी कर ली गयी है, सारी बैटरियों को चार्ज कर लिया गया है, सारे उपकरण मुस्तैद कर लिए गए हैं, विभिन्न खेलों से लेकर किताबों तक के पूरे इलेक्ट्रोनिक लश्कर के साथ हम भी युद्ध भूमि में उतरने तैयार हैं, पूरे रास्ते के रथों का इंतजाम हैं , कहीं सड़क खटोला तो कहीं उड़न खटोला तो कहीं पर प्रवीण (रेल) खटोले का इंतजाम है बस देर सवार होने की है ! </p> <p>जब ये लेख पढ़ा जा रहा होगा तब हम तो शिकागो के अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर बच्चों को सांत्वना दे रहे होंगे की बस थोडा सा इन्तजार और - बस उड़न खटोला लगने वाला है पार्किंग में , फिर बैठे और उड़े ! उन दो घंटो में भी हमें एक छद्म युद्ध ही लड़ना पड़ेगा, अकेले में तो पहुँच गए एअरपोर्ट ३० मिनट पहले पर अब तो करीब २ घंटे पहले ही रवाना होना पडेगा और फिर वहाँ इन्तजार में बच्चे बेचारे कैसे जिज्ञासा को शांत रखें, मन में उद्वेलन है अपनों से मिलने का, जेल से बाहर जाकर उनका भी स्वछन्द होकर, उमुक्त होकर आवारा होने का मन है ! </p> <p><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgD8LTzxbpzyk0P1m72B9XOi4T677BjpU6hA3agL7LOLeYtAXKrp_9MaTT9lmk3MAThkp5yIrhXzy7fr4WtOWxdmvYAcC0D2uj5PxydgngUHYcYOK6-giLhbN4Wt6_y4OhbXy4_AyfYb_8/s1600-h/airport-security%5B3%5D.jpg"><img style="border-bottom: 0px; border-left: 0px; display: block; float: none; margin-left: auto; border-top: 0px; margin-right: auto; border-right: 0px" title="airport-security" border="0" alt="airport-security" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi3zVhK_n0c2boFNG8GDlw4z0ISrl_gi79_IrtcstgKF9eux10f-8buD8o7g0yVTI_xSxLyfpU3IQ-1S5E9SB1b0Ab50YNJ8SiR0YGFC3gzzSwOfcahkdkSJf9CT0rOs4IQMdbHkUc3DUk//?imgmax=800" width="244" height="184"></a>पिछले २-३ सालों में मैंने १ लाख मील से भी ज्यादा हवाई यात्रा की है, इस यात्रा में करीब १५ देश तय किये होंगे, करीब ९० उड़न खटोले बदले होंगे और हजारों मील की सड़क नाप दी होगी ! सोचता हूँ अब पुराने दिनों को जब स्कूल के मैदान से या घर की छत से आकाश में उडता हवाई जहाज देखते थे तो मन करता था कि बस एक बार बैठ जाऊं इसमें, एक बार तो पिताजी ने पुरुष्कार के रूप में ग्वालियर से दिल्ली की हवाई यात्रा का प्रलोभन भी दिया था पर तब तक शायद यात्रा अपने आप ही संभव हो गयी थी , अब मन करता है कि कौन हवाई यात्रा के तामझाम में पड़े - तब नहीं पता था कि १ घंटे की यात्रा के लिए एअरपोर्ट पहुँचने से लेकर और बाहर निकलने तक कितने तामझाम - सुरक्षा जांच इत्यादि के बोरिंग प्रोसेस से गुजरना पडता है - इसलिए तब एक बार की आकांक्षा वाला व्यक्ति अब हवाई यात्रा से बचने का कोई न कोई बहाना ढूँढता रहता है और उसे एक युद्ध समझता है - ये भी एक यात्रा है ! </p> <p><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj6O_cwOEf0cQnwEGpjeF2IysgeINVlbe1DXDJfUnliR_ulqO4bBtQkR2NsSmRTt6-P3W6BCdky-XOclmm5tq6CGl42tv-DnXK-NM_lnvNUJIx23VWzK1xckcJ3fAt_hzxIaDATyrHS1Fs/s1600-h/AirportSecurity2%5B6%5D.jpg"><img style="border-bottom: 0px; border-left: 0px; display: block; float: none; margin-left: auto; border-top: 0px; margin-right: auto; border-right: 0px" title="AirportSecurity2" border="0" alt="AirportSecurity2" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhR10_xmXQtC3b8ys3OBBhzBFIEaP_WyZHq2rYxE7sACGpADdWlLDgELxFxWyjdjKCFPuKKkB0EPjIIN__ro_urSeJk9i4babowLyTUcuFn_eL-UlBTa4efEMEFhyZ_d__Om6ym_garIj8//?imgmax=800" width="244" height="184"></a> </p> <p>इस युद्ध के बाद १ महीने तक अमन और मस्ती का माहौल रहने वाला है - बस आनंद का इन्तजार है जो संतुष्टि और संतृप्ति देगा !! आप में से भी कई लोगों के दर्शन होंगे इसलिए भी इस यात्रा का रोमांच हावी है !!! </p> <p>मिलते हैं ….</p> राम त्यागीhttp://www.blogger.com/profile/05351604129972671967noreply@blogger.com11tag:blogger.com,1999:blog-6861547640369354038.post-12690281769325626632010-11-23T20:18:00.001-06:002010-11-23T20:18:39.542-06:00अरुंधती रॉय पर बहस (जारी …)<p> </p> <p>पिछली बार की बहस <u>‘</u><a href="http://meriawaaj-ramtyagi.blogspot.com/2010/10/blog-post_28.html"><u>क्या सिर्फ अरुंधती रॉय ही देशद्रोही हैं ?</u></a><u>’</u> से कुछ सवाल उठे थे जिनका जिक्र करना जरूरी था. </p> <p>बाकी सब लोग तो एक सुर में बोल रहे थे पर हमारे एक मित्र है भवदीप सिंह, वो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के सहारे अरुंधती राय के सारे गुनाहों पर ऐसे ही पर्दा डाल रहे थे जैसे भ्रष्ट (जनसेवक नेता) लोग कोई न कोई बहाना बनाकर अपने आप को हर बार बचा ले जाते हैं ! </p> <p>पिछले लेख में जो प्रतिक्रियायें आयीं उनमें से कुछ यहाँ देखते हैं - </p> <p> <dt>भवदीप सिंह ने कहा… </dt> <dd> <p><em>आप इसलिए उनको देशद्रोही बोल रहे हैं क्योंकि उन्होंने देश के खिलाफ ब्यान दिए हैं? ये तो भाई गलत बात है. <br>उन्होंने अपनी वाक्-स्वतंत्रता (Freedom of Speech) का उपयोग किया है. बुरा न मानिए पर मुझे इसमें कुछ गलत नहीं दिखा.<br>उन्होंने जो बोला. वो आप या मैं (या फिर हमारे देश की अधिकतर जनता) नहीं सुनना पसंद करेंगे. उन्होंने हमारे विचारो से हट कर बोला है. ये बात में मानूंगा. लेकिन, मुझे कोई क़ानून भंग होता नहीं दिखा.<br>Freedom of Speech तो है न हमारे देश में.. या फिर वो "खट्टा मीठा" के गाने वाली बात हो गए.. "यहाँ पर बोलने की आजादी तो है. पर बोलने के बाद आजादी नहीं है" ?<br>में उनके विचारो से सहमत होयुं या न होयुं. पर में इस बात से सहमत जरूर हूँ के उन्होंने क़ानून में रहा कर बोला है जो बोला है. अगर हमें उनकी बात पसंद नहीं आती तो क़ानून हमें पूरी आजादी देता है के हम उसके खिलाफ बोले. जैसा की इधर बोल रहे हैं. </em></p></dd> <dd> <p><a href="http://www.blogger.com/profile/05351604129972671967"><strong>राम त्यागी</strong></a><strong> ने कहा… </strong></p></dd> <dd> <p><em>पहले तो सभी का बहुत बहुत धन्यवाद इस ज्वलंत मुद्दे पर बहस के लिए ! <br>जहाँ एक और भवदीप ने स्वतंत्रता की अभिव्यक्ति के सहारे रॉय मैडम को सही ठहराने की कोशिश की है वही अन्य सभी लोगों ने एक मत से अरुंधती के गैर जिम्मेदाराना रवैये के साथ साथ नेताओं, मीडिया और अन्य खुले आम घूम रहे लोगों पर भी अंकुश लगाने पर भी जोर दिया ! </em></p></dd> <dt></dt> <p><strong>भवदीप सिंह ने कहा…</strong> <dd> <p><em>पहली बात.. मैंने रॉय मैडम को सही नहीं बोला. मैंने बोला के तुम और हम उनके विचारो से सहमत नहीं हैं. पर उनको अपने विचार रखने की पूरी स्वंत्रता है.<br>दूसरी बात. अगर उनको बोलने का मकसद हिंसा भड़काना होता तो Sedition के अंतर्गत उनको गिरफ्तार करना बनता था. उन्होंने जो बोला उस से न तो हिंसा भड़की न ही ऐसा कुछ करना उनका मकसद था.<br>तो संछेप में फिर से बोलूँगा के. मैडम ने जो बोला उस से हम सहमत हो या न हों... पर उन्होंने क़ानून में रहा कर बोला .तुमको और हमको उनकी बात जमी नहीं तो हमें भी पूरा हक है उनके विपरीत बोलना का. </em></p></dd> <p> </p> <p>अब भवदीप और आप सब से मैं पूछना चाहूँगा कि क्या हम दंगे होने तक इन्तजार करेंगे और देश की अखंडता पर कश्मीर को अलग करने वाले तथाकथित बुद्धिजीवियों को उसी तरह गुनाह करने देंगे जैसे हम अपने कुछ भ्रष्ट नेताओं को उनके बुरे कामों का इनाम उनको वोट देकर करते हैं ? </p> <p><a href="http://aatm-manthan.com ">मंसूर अली हाशमी जी</a> ने बहुत ही सही बात कही थी - <br><em>उसका 'गीला', 'नी' लगे, 'गंदा' उन्हें !<br>'अंधी' 'रुत' है, दोस्तों अब क्या करे?<br>कैसी आज़ादी उन्हें दरकार है,<br>अपने ही जो देश को रुसवा करे !!<br></em><em></em></p> <p><a href="http://www.blogger.com/profile/11400222466406727149"><a href="http://www.blogger.com/profile/11400222466406727149"><img title="Smart Indian - स्मार्ट इंडियन" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhtezRPncmj9t0oroXEzd6vAHwNy6j4Mu3uZDaqAfMSJ4SYeS1Sv-VKmQPEdFfc1Vg0MsxS83mnSStw7_bwaht3yi2oUgE4ucnHo3CeHSOkX0fVi3bYksPS8ZuHWeaK9cgs25xVIr8k4btz/s45/Ash-outline-2.jpg" width="35" longdesc="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhtezRPncmj9t0oroXEzd6vAHwNy6j4Mu3uZDaqAfMSJ4SYeS1Sv-VKmQPEdFfc1Vg0MsxS83mnSStw7_bwaht3yi2oUgE4ucnHo3CeHSOkX0fVi3bYksPS8ZuHWeaK9cgs25xVIr8k4btz/s45/Ash-outline-2.jpg" height="35"></a>अनुराग जी</a> की बात सही है कि कब तक सहेंगे - <a href="http://www.blogger.com/profile/11400222466406727149"> </a></p> <dd> <p><em>जिस हमाम में सब नंगे हों वहां हर नंगा दूसरे का ही उदाहरण सामने रखेगा| लेकिन इस देश पर हक सिर्फ इन नंगों का नहीं है| देश के सीधे सच्चे नागरिक कल चुप थे, आज चुप हैं इसका मतलब यह नहीं है की वे हमेशा चुप रहेंगे| कहीं न कहीं से तो आरम्भ करना ही पडेगा. </em></p></dd> <p></p> <p>अभिव्यक्ति की स्वच्छन्दता और <a href="http://meriawaaj-ramtyagi.blogspot.com/2010/09/blog-post_17.html"><u>अखंड भारत</u></a> में से आपको क्या चुनना है ? </p> राम त्यागीhttp://www.blogger.com/profile/05351604129972671967noreply@blogger.com7tag:blogger.com,1999:blog-6861547640369354038.post-37337878131428455252010-11-22T15:34:00.000-06:002010-11-22T15:34:02.429-06:00दिवाली की रौनक अभी भी बरकरार हैभारत आने की तैयारी से बच्चों में उत्साह और उत्सुकता पूरे सबाब पर है, इधर हमारी तैयारियाँ जोरो पर हैं तो उधर भारत में घरवाले भी हर पल इन्तजार में पलक पांवड़े बिठाकर बैठे हैं ! भारत आने का दुःख भी होता है क्यूंकि एक महीने बाद जब लौट कर आयेंगे तो फिर से एक लम्बा इन्तजार, अकेलापन और अपनो से दूर रहने की वेदना ! पर जो लोग नौकरी करते हैं वो कब स्वतंत्र होते हैं तो अगर भारत में होते तो भी कहीं न कहीं घर से दूर रह रहे होते - किसी महानगर में जद्दोजहद कर रहे होते, भीड़ में धक्के खा रहे होते ! छोटे शहरों की सौम्यता, सरलता और हल्का सा सूनापन पसंद है पर हम पलायन कर जाते हैं स्वावलंबन की चाह में, कहीं न कहीं ये पलायन हमें स्वावलंबन के बदले एकाकीपन भी दे देता है और फिर हम आते हैं सूचना तकनीक के विभिन्न सहारों पर कुछ तलाशते - पर असली तलाश तो बस परसों ग्वालियर में ख़त्म होगी जब भावनाएं स्वार्थ की सीमायें लांघकर परिवार को परिभाषित कर रहीं होंगी ! <br />
<br />
इस शनिवार को स्थानीय <a href="http://www.nirankari.com/chicago/events/2010/diwali/index.shtml">निरंकारी संत मिसन</a> और देसी जंक्सन रेडियो द्वारा पास के ही एक कस्बे में दिवाली मेले का आयोजन किया गया था, मेले में संस्कृतिक कार्यक्रमों के साथ साथ भारतीय खाने का भी पूरा इंतजाम किया गया था. चाय, ब्रेड पकोड़े, पपड़ी चाट, नान-पूरी-सब्ज्जी, गुलाबजामुन, समोसे, कचोडी सब कुछ उपलब्ध था ! निकुंज का एक स्टेज प्रोग्राम था तो बस बॉलीवुड गानों, भजन और चाट सब का मजा साथ लिया गया ! मजेदार रही ये शाम भी ! <br />
<br />
<br />
<div class="separator" style="border-bottom: medium none; border-left: medium none; border-right: medium none; border-top: medium none; clear: both; text-align: center;"><iframe allowfullscreen='allowfullscreen' webkitallowfullscreen='webkitallowfullscreen' mozallowfullscreen='mozallowfullscreen' width='320' height='266' src='https://www.youtube.com/embed/GcD1BfS48-U?feature=player_embedded' frameborder='0'></iframe></div>राम त्यागीhttp://www.blogger.com/profile/05351604129972671967noreply@blogger.com8tag:blogger.com,1999:blog-6861547640369354038.post-56530507941891896562010-11-20T12:32:00.001-06:002010-11-20T12:33:50.795-06:00शोध का सोच और आत्मनिर्भरता पर प्रभाव - भाग ३<p><a href="http://meriawaaj-ramtyagi.blogspot.com/2010/11/blog-post_16.html"><u><strong>शोध का सोच और आत्मनिर्भरता पर प्रभाव - भाग १</strong></u></a></p> <p><a href="http://meriawaaj-ramtyagi.blogspot.com/2010/11/blog-post_18.html"><u><strong>शोध का सोच और आत्मनिर्भरता पर प्रभाव - भाग २</strong></u></a></p> <p>पिछले दो लेखों में आपने भारत में शोध की दशा, राजनीतिक उदाशीनता और इसका शिक्षा पर असर के बारे में पढ़ा, उसी क्रम को थोडा और आगे बढाता हूँ - </p> <p>भारत में सबसे बड़ी समस्या है हर क्षेत्र में ज्यादा शोध न होने की ! बिना शोध के हम पुरानी पगडंडियों पर बिना सुधार और उन्नयन के चलते रहते हैं और हाथ लगता है तो बस कठिन परिश्रम - आईडिया तो शोध से ही आते हैं , उन्नयन तो शोध से ही आता है अन्यथा मानसिक तनाव और कठिन परिश्रम के दो किनारों के बीच झुलसते रहते हैं हम !! </p> <p>अब देखिये कि कोई भी काम करना हो तो कारीगर को जरूर बुलाना पड़ेगा, खिड़की का शीशा हटाना हो या नया दरवाजा लगाना हो, हर चीज के लिए किसी न किसी को बुलाना पडता है पर पश्चिमी देशों में क्यूंकि मजदूर बुलाना आसान नहीं, और जैसा कि बोलते हैं कि “आवश्यकता ही आविष्कार की जननी है” इस बात की आवश्यकता ने कि खुद ही कैसे घर का रख रखाव किया जाये - यहाँ की सरकारों ने और विभिन्न निजी संस्थाओं ने नए नए तरीके खोजने के लिए अपने अपने स्तर पर प्रयास किये और इसका नतीजा है कि आज यहाँ दरवाजा भी आप खुद फिट कर सकते हैं और खिड़की के शीशे भी कुछ ही समय में आप खुद फिट कर सकते हैं और बाकी का काम यू ट्यूब इत्यादि ने सरल बना दिया , हर चीज के विडियो आप यू ट्यूब पर देख सकते हैं कि कैसे कौन सा काम किया जाये ! </p> <p>मैं चाहता हूँ की यू ट्यूब का आईडिया, ऐसे खिड़की और ग्लास बनाने के आईडिया हमारे भारत से आये, क्रियान्वयन तो हो ही जाता है, जरूरत है दिमाग में ये नुकीलापन लाने की जिससे हम सोच सकें कि करना क्या है ! </p> <p><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhrZRznH1B7isM8V_oRViXiQm_-dcfcfhL4-DvduNUttQBEdUYH2UqhTI4c7FP5PI9O0UABxMGGwRV0UH0Rk6gpFPfZmijFlrxvsW3-96Go3E2dgXwx_n0DHIyvy2cpZzfePNACuTPXZvw/s1600-h/AIR_SU_30K_India_Landing_COPE_India_2004_lg%5B3%5D.jpg"><img style="border-bottom: 0px; border-left: 0px; display: block; float: none; margin-left: auto; border-top: 0px; margin-right: auto; border-right: 0px" title="AIR_SU_30K_India_Landing_COPE_India_2004_lg" border="0" alt="AIR_SU_30K_India_Landing_COPE_India_2004_lg" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhJBlWwgF2mYENPxNOEZmt0AQPAvWdf-_YdhtNEhB1pp1Ohx3cvj8ZxA-wLxz8ZdEP2aLD0752TBh9LZXAoMVwPHlyJI1os8R2vbdhkGncUoCgQAnoZ-Ja83vkTjgqq8B-o0BsliAZYxYU//?imgmax=800" width="244" height="184"></a> </p> <p>आज भारत को अपनी सुरक्षा जरूरतों के लिए उच्च तकनीक के लिए कई गुना कीमत चुकानी पड़ती है, देश आजाद ६० साल पहले हुआ पर अब भी हम विदेशों के गुलाम हैं, अब भी हमारा अधिकतर विदेशी मुद्रा भण्डार तेल और रक्षा प्रणाली की जरूरतों में खर्च हो जाता है, प्राकृतिक संसाधनों के आधुनिक संसाधन हमारे पास नहीं हैं और हालत ये है कि हम सिर्फ सूचना तकनीक में आई आंधी से खुद को विकसित समझ रहे हैं, आँधियाँ जितने वेग से आती हैं उतने ही वेग से चली भी जाती हैं , हमें विकास का सुनामी नहीं बल्कि एक सुव्यवस्थित, क्रमबद्ध और स्वनियंत्रित वाहक बनना होगा अन्यथा हम आजादी के बाद से हो रहे प्रतिभा के पलायन को रोक नहीं पायेंगे ! </p> <p>एक पत्रिका में लिखे लेख के अनुसार - <p>“While defence trade in the region is dominated by China, in terms of both exports and imports, India is becoming increasingly significant as an importer. “ <p></p> <p>चीन दोनों तरफ से अपना संतुलन बना कर रखता है , कहीं अपनी चीजें बेच रहा है तो कहीं वो खरीद रहा है , अगर हम (केवल) खरीददार ही बने रहे तो कैसे संतुलन का गणित हमें सफल करेगा ? </p> राम त्यागीhttp://www.blogger.com/profile/05351604129972671967noreply@blogger.com7tag:blogger.com,1999:blog-6861547640369354038.post-10178937675244551652010-11-18T16:51:00.001-06:002010-11-18T16:51:00.440-06:00शोध का सोच और आत्मनिर्भरता पर प्रभाव - भाग २<p> </p> <h5><a href="http://meriawaaj-ramtyagi.blogspot.com/2010/11/blog-post_16.html">शोध का सोच और आत्मनिर्भरता पर प्रभाव - भाग १</a></h5> <p>कुछ दिन पहले यहाँ के एक बच्चों के म्यूजियम द्वारा (निकुंज के) प्राथमिक विद्यालय में पहली और दूसरी कक्षा के विद्यार्थियों के लिए गणित पर एक कार्यशाला रखी गयी जिसमें विद्यालय के बाद शाम को बच्चे को अपने माता-पिता के साथ आकर भाग लेना था, मैं भी बड़ा उत्सुक था इसलिए समय से ही निकुंज के साथ विद्यालय पहुँच गया ! वहाँ पहली और दूसरी कक्षा के विद्यार्थीगणों को (जो घर पर बात तक नहीं मानते) मैंने उनके स्वनिर्मित चक्रव्यूह को हल करते पूरी संलग्नता से देखा तो समझ में आया कि अगर हम बच्चों को एक समस्या दें और उसमें खुद बच्चे के साथ लगकर हल करने की कोशिश करें तो बच्चा पूरी तन्मयता से और सक्रियता से सीखता है और ऐसा सीखा हुआ पाठ उसके मानस पटल पर उम्र भर अमिट रहता है. </p> <div style="padding-bottom: 0px; margin: 0px auto; padding-left: 0px; width: 376px; padding-right: 0px; display: block; float: none; padding-top: 0px" id="scid:66721397-FF69-4ca6-AEC4-17E6B3208830:5d5c5a06-cf98-4fdb-8ac8-30ca18593a61" class="wlWriterEditableSmartContent"><a style="border:0px" href="http://cid-15c5c61acb668c01.skydrive.live.com/redir.aspx?page=browse&resid=15C5C61ACB668C01!183&type=5"><img style="border:0px" alt="View गणित कार्यशाला" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi7ZWQMwenYe-TD8Ns726NUbAaBL-DRYcwKvKT9mGhkAVNDq9KqR1oTCr5vbBuxK0ZBxwcbQaqGkoN726v5q9NI5hXyAq8BGKe6fvFkh3_KtdpDbfiphb9Gu0Q8no2kiimDcZu9sA68ZcU//?imgmax=800" /></a><div style="width:366px;text-align:right;" ><a href="http://cid-15c5c61acb668c01.skydrive.live.com/redir.aspx?page=browse&resid=15C5C61ACB668C01!183&type=5">View Full Album</a></div></div> <p>अब सोचिये के इस गणित कार्यशाला का भले ही आज कोई परिणाम न मिले पर एक दिन जब आप उस तरह की किसी समस्या का हल खोज रहे होंगे और आपका बालक अचानक से जबाब देगा तब आपको इस का जो सुख मिलेगा वो आनन्दमय होगा और ये ज्ञान बच्चे को अवश्य ही उसकी आगे चलकर उसकी तार्किक सोच में तीखापन लाने के लिए सहायक होगा. </p> <p>इस कार्यशाला में जो प्रयोग किये गए उनमें से कुछ को में नीचे उल्लेखित कर रहा हूँ : </p> <ol> <li>एक बोर्ड रख दिया गया जिसको समुद्र या नदी बताया गया और उस पर बच्चे को पुल बनाना है, कुछ अंक बोर्ड पर अंकित थे जो ५ के गुणा में थे, इन १०-१५ अंको में से दो अंक चुनकर उनको जोड़कर जो अंक आएगा उस पर पहला स्तंभ खड़ा करना है और अगले स्तंभ के लिए ऐसे दो अंक बोर्ड में अंकित अंको से लेने होंगे जिनका जोड़ पिछले स्तंभ के आसपास हो, जिससे दो consecutive स्तंभों को जोड़ा जा सके. इस समस्या में बच्चे जल्दी से जल्दी अपना पुल इमानदारी से पूरा करने के चक्कर में पूरी इमानदारी और तन्मयता से लगे थे और हम पालक भी यथासंभव सहायता कर रहे थे. <li>दीवाल पर हर अक्षर को एक सेंट या डॉलर अंकित कर दिया था, अब हर बच्चे को (जिसकी इच्छा हो ये समस्या हल करने की ) अपने नाम की कीमत बतानी थी, इस समस्या के जरिये डॉलर और सेंट को जोडने, सेंट को डॉलर में तब्दील करने और २ और ५, १० और २० के पहाडो के जरिये कैसे पैसो का हिसाब जल्दी किया जाए. निकुंज को N, I, K, U, N और J पर लिखे डॉलर और सेंट को जोड़कर उसके नाम की कीमत बतानी थी. <li>कुछ रंग बिरंगे पेपर रख दिए गए थे और दीवाल पर अलग अलग तरह के द्वि - विमीय और त्रि-विमीय आकार बनाने के तरीके लिखे थे, जिन बालको ने वहाँ पर वर्ग, त्रिकोण, क्यूब इत्यादी बनाए वो कैसे कभी भूल सकते हैं उन आकारों को! <li>बच्चो को तराजू बनाने के लिए दिया गया और फिर दोनों तरफ उसको बेलेंस करने के लिए कुछ प्रयोग करने को बोला गया <li>एक प्रयोग ऐसा था कि कुछ अंक एक बक्से में डाल दिए गए और फिर उनमें से जो ४ अंक आप निकालो उनमे से सबसे बड़ा अंक कैसे बना सकते हैं इस प्रयोग से उनकी इकाई, दहाई और सैकडा में अंको को इधर उधर कर अंको के बदलाव की ज्ञान वृद्धि पर जोर दिया गया <li>विभिन्न आकारों का उपयोग कर उन आकारों को अन्य आकारों में बदलने और उनसे चित्र में दी गयी कुछ तस्वीरें बनाने के लिए प्रयोग दिया गया </li></ol> <p>इस तरह के कई और भी प्रयोग थे, ये सब कार्यक्रम University of Chicago के गणित विभाग द्वारा किये गए शोध पर आधारित थे, विद्यालय की तरफ से ऐसे कई पुस्तिका घर पर भेजी जाती है जो University of Chicago द्वारा तैयार की गयी है और बच्चों के ज्ञान को समृद्ध ही नहीं, तार्किक, तीखा, तीक्ष्ण और प्रायोगिक भी बनाती हैं, बच्चे समस्या के हिसाब से सोचते हैं, पहले समस्या और फिर हल ! ये एक छोटा सा उदहारण है शोध के बाद किसी चीज को बेहतर बनाने का, सरल बनाने का ! </p> <p>कैसे बिना दबाब के और बिना मानसिक तनाव के रोजमर्रा की चीजों के जरिये गणित और उससे सम्बंधित चीजें सिखाई जाए, ये सब एक दिन में निर्धारित नहीं हो सकता. पर अगर आज शुरुआत की जाए तो हो सकता है कि हम भी भारत में आने वाले वर्षों में बस्ते का बोझ कम कर पायें. हम अपनी शिक्षा प्रणाली से नौकरी करने लायक तो बन जाते हैं पर कहीं न कहीं वो आईडिया दुनिया को नहीं दे पाते जो फेसबुक, ऐपल इत्यादि के संस्थापक दुनिया को दे रहे हैं, ये स्वीकार करना ही होगा, ये प्रश्न खुद से पूछना ही होगा कि हम क्यों नोबल पुरुष्कारों को अपने घर नहीं ला पाते ! हम क्रियान्वयन में महारत रखते हैं क्यूंकि हम वो कर सकते हैं जो कोई पहले ही कर चुका है, हमें रास्ते तय करने वाले, रास्तों का निर्धारण करने वाले बच्चे विद्यालय से निकालने होंगे. निश्चय ही भारत में परिवर्तन आ रहा है पर सरकार को और अधिक सक्रीय होना होगा जिससे हम वाकई में विकसित कहलाये जा सकें ! हम केवल विज्ञान, भौतिक और रसायन में ही प्रायोगिक परीक्षा न रखें बल्कि हमें हर विषय को प्रायोगिक बनाकर पढाने की व्यवस्था करनी होगी और प्रयोग को आम जिंदगी का हिस्सा बनाना ही होगा, मुझे ध्यान है कि किस तरह १०वीं और १२वीं कक्षा में निर्धारित प्रायोगिक परिक्षा महज एक औपचारिकता होती थी. </p> <p>यहाँ मैंने देखा है कि बच्चे पांचवे क्लास (अभी यहीं तक का पता है ) तक बिना बस्ते और बिना ड्रेस के विद्यालय जाते है पर ज्ञान के हिसाब से सिर्फ प्रोजेक्ट और रीडिंग के बल पर जो उच्च स्तर पढाई का दिखा उसे बेस्ट नहीं तो बेहतर जरूर कहूँगा ! कुछ मेरे दोस्त इसलिए भारत चले गए क्योंकि उनका बच्चा यहाँ किसी क्रमबद्ध कोर्स के जरिये नहीं पढ़ रहा था, बस्ते भरकर विद्यालय नहीं जा रहा था, पर कब तक हम नयी पीढ़ी पर ये दबाब डालेंगे गधे की तरह बस्ते ढोने का, ये बच्चे घोड़े से भी तेज मस्तिष्क रहते हैं इसलिए इन्हें बस्तों के बोझ से इन्हें मुक्त करना ही होगा, इन्हें बचपन को जीते जीते, आनंद करते करते ही सरलता से प्राथमिक शिक्षा की परिपाटी पर चलाना होगा ! <p>छोटे छोटे बच्चे यहाँ अभी से लिखना सीख रहे हैं , लेखक बन रहे हैं और अपने रूचि के हिसाब से एक विषय विशेष में पारंगत बन रहे हैं पर इस तरह की स्वच्छंद पढाई में घर ध्यान न दिया जाए तो बच्चा पिछड भी सकता है क्यूंकि यहाँ बच्चे पर पढाई के लिए दबाब नहीं डाला जाता ! इसलिए यहाँ अमेरिका में स्कूल ड्रॉप आउट की समस्या बहुत है, घर पर और विद्यालय की गतिविधियों में पालक का सम्मिलित रहना अनिवार्य है अन्यथा ये स्वच्छंदता कई बुराइयों, आलसों और बहानों को जन्म दे देती है, पर गौर करने वाली बात है के शोध के जरिये कैसे बच्चे को सरलता से और सहजता से कठिन से कठिन बात सिखाई जा सकती है !! <p>ये बात में सरकारी विद्यालयों की कर रहा हूँ इसलिए अगर आप DPS या किसी अन्य विद्यालय से तुलना करेंगे तो फिर हम आम आदमी के बच्चे की बुनियादी शिक्षा की बात नहीं कर पायेंगे, ये बात में खुद के परिवेश ओर आज भी उसी ढर्रे पर चल रहे सरकारी विद्यालयों की कर रहा हूँ, क्या उन में परिवर्तन समय के साथ अपेक्षित नहीं ? जब अमेरिका का सरकारी विद्यालय हमारे प्राईवेट विद्यालय से बेहतर है तो हमें ओर हमारी सरकारों को इस विषय में सोचना ही होगा अन्यथा हम विकासशील से विकसित होने का फासला तय नहीं कर पायेंगे! <p>भारत में सबसे बड़ी समस्या है हर क्षेत्र में शोध की ! बिना शोध के हम पुरानी पगडंडियों पर बिना सुधार और उन्नयन के चलते रहते हैं और हाथ लगता है तो बस कठिन परिश्रम - आईडिया तो शोध से ही आते हैं , उन्नयन तो शोध से ही आता है अन्यथा मानसिक तनाव और कठिन परिश्रम के दो किनारों के बीच झुलसते रहते हैं हम !! <p>(जारी …)</p> राम त्यागीhttp://www.blogger.com/profile/05351604129972671967noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-6861547640369354038.post-57327908160195334972010-11-16T16:33:00.001-06:002010-11-16T16:33:00.591-06:00शोध का सोच और आत्मनिर्भरता पर प्रभाव - भाग १<p>मैं अपनी पिछली कई पोस्ट में लिख चुका हूँ कि भारत में शोध पर बहुत कम पैसा खर्च किया जाता है और उसका असर इस बात से ही दिखता है कि हम उच्च तकनीक की प्रणाली के लिए, रक्षा उपकरणों के लिए और बड़ी परियोजनाओं के क्रियान्वयन के लिए हमेशा से ही विदेशों पर निर्भर रहे हैं और निर्भरता के इन आकडों में विगत कई वर्षों से कोई कमीं नहीं आई है. अपरोक्ष रूप से आत्मनिर्भर न होना विकास में सबसे बड़ा बाधक है. </p> <p>चीन और भारत दोनों ही आने वाले दशक की महाशक्ति बोले जा रहे हैं, चीन की प्रगती आर्थिक स्तर पर तो उन्नत है ही, चीन अन्य स्तरों पर भी भारत को पीछे छोड़ रहा है, चीन की तेल और रक्षा उपकरणों के लिए विदेशों पर निर्भरता बहुत कम है और इसका कारण है कि चीन ने अपने सकल घरेलु उत्पाद का एक बड़ा हिस्सा अनुसंधानों पर खर्च किया है, कोई भी बाहर की कंपनी चीन में व्यवसाय तभी कर सकती है जब वह कुछ हिस्सा चीन के बौद्धिक विकास में लगाए ! यही हाल अमेरिका, जापान, जर्मनी, इस्रायल और अन्य विकसित देशों का है. </p> <p>नीचे उल्लेखित ग्राफ भारत और चीन के बीच सकल घरेलु उत्पाद का शोध पर खर्च के प्रतिशत की तुलना दर्शाता है : </p> <p><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiYtyabZ1IY0WiatODYcitYAqPCZ_IxSiSjNhh_MblbFrQGcY0hbAlln6Z6E1uDFhZNDqOH975jswkzJARmwbYRXSzD74_qk1M0CUFDQbAZ4MWg0SyCa-Bt7cxoADqJJhZzQsGAoi_8fQ0/s1600-h/image175.png"><img style="border-right-width: 0px; display: inline; border-top-width: 0px; border-bottom-width: 0px; border-left-width: 0px" title="image17" border="0" alt="image17" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEir7DWVvp9zuvO6P_yGbs81GVCW74L39XesS65ukdRYdRI8mfCvPINB5V8rPl4UnP6HqSsdmz52K164WcOsrUaE1LxL9KDsfInosH-jG4wWoMmCW6veC9z9sE7hcRvrZJQacMP4cDmPUZc//?imgmax=800" width="536" height="352"></a> </p> <p>पुराने आकंडो पर नजर दौडाई जाए तो पता चलता है कि जो देश विकसित है वो शोध और अनुसंधानों पर खर्च के प्रति हमेशा से ही गंभीर रहे, २००४ के आकंडो के अनुसार नीचे दिए गए पांच देश सकल घरेलु उत्पाद के ५ प्रतिशत के लगभग शोध पर खर्च कर रहे थे और इसलिए ही ये सभी रक्षा उपकरणों और अन्य उच्च तकनीक के मामले में आत्मनिर्भर है : </p> <p> </p> <p><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEif5BQD9MgQdY1Jg33rbcx1SrEKjZgtHI88dpA0Y1urOp4g7FcaA-vlOn0o0r88eQpGNzqdn0oJchtRlFdkrk93ELH4LNwzxo2wGf_YQDbqzjpK1MzC0Is68h27wIfrKcDnDN60kfTcJWE/s1600-h/image3.png"><img style="border-right-width: 0px; display: inline; border-top-width: 0px; border-bottom-width: 0px; border-left-width: 0px" title="image" border="0" alt="image" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEij_bOD4DAPNIw6zVBvp-mpAz86WRtTWQ6CM_zvS65L7yJfaHlqUUBXA5k1A9LJpPTOW8VJYrvgmRNAORtI1MixmXfFU7MruvK2AdrizL99wVmxcLV9gwlRzAQ0FTE_0FHyYWxrehAg7qY//?imgmax=800" width="523" height="297"></a> </p> <p>इस श्रेणी में भारत का क्रम बहुत नीचे आता है क्योंकि २००४ में भारत अपने सकल घरेलू उत्पाद का सिर्फ ०.७ प्रतिशत के आसपास शोध कार्यक्रमों पर खर्च कर रहा था जो कि २००७ तक सिर्फ ०.८ प्रतिशत हो पाया. ये आंकड़े इतनी तेजी से विकास कर रहे देश के लिए निराशाजनक है, मनमोहन सिंह जी से अर्थशाश्त्र के विशेषज्ञ होने के नाते ये अपेक्षित नहीं था. </p> <p>इस साल के शुरू में प्रथ्वीराज चव्हाण (जो कि उस समय विज्ञान और तकनीकी विभाग में राज्य मंत्री थे) ने भारत सरकार की और से एक बयान में <a href="http://machinist.in/index.php?option=com_content&task=view&id=2538&Itemid=2">कहा</a> था कि इस साल भारत सरकार शोध पर खर्चे को सकल घरेलु उत्पाद के १ प्रतिशत से बढाकर २ प्रतिशत पर लाना चाहेगी, इसका मतलब कांग्रेस के सरकार ने पिछले ६० सालों में ये जाकर २०१० के जनवरी में सोच पाया कि बाकी के विकसित देश आत्मनिर्भर क्यों है और हम क्यों अपना पैसा और बहुमूल्य प्रतिभाएं विदेशो को खोये जा रहे हैं !! </p> <p><em><font size="2">"Govt to increase its expenditure on R&D from 1% of GDP to 2%: Prtihviraj Chavan </font></em></p> <p><strong><em><font size="2">Friday, 08 January 2010 </font></em></strong></p> <p><em><font size="2">New Delhi: We know that the next wealth generation and employment generation opportunity will come from science. Therefore the Government plans to increase its expenditure on R&D from 1% of GDP to 2%, said Dr Prithviraj Chavan, Minister for Science & Technology.”</font></em></p> <p>गौरतलब है कि मुझे भारत सरकार से उम्मीद नहीं है कि वो २ प्रतिशत का आंकड़ा हासिल कर पायेंगे, सबसे बड़े रोडे हैं हमारी तत्काल परिणाम पाने की सोच और लाल फीताशाई का नए विकास कार्यक्रमों में रोडे अटकाना और इसका परिणाम ये होता है कि आज भी उच्च तकनीक के लिए शिक्षा के लिए हमारे यहाँ के लोगों को विदेशों का ही रुख करना होता है, बड़े बड़े उद्योगपति, राजनेता लोग तो अपने बच्चों को पैसे का बल पर बाहर भेजकर इस काम की भरपाई कर देते हैं पर आम नागरिक क्या करे ? जब तक शोध के जरिये हम आम विद्यालयों में दी जाने वाली शिक्षा को मजबूत नहीं करेंगे तब तक बुनियादी तौर पर शिक्षा के स्तर को उन्नत और उच्च कोटि की बनाना संभव नहीं है ! </p> <p>ऐसा मुझे तो कई बार अनुभव हुआ है कि हम लोग जो सरकारी विद्यालयों में पड़े हैं, मेहनत से अपनी मंजिल तो बना पाए पर हर मोड पर अब कठिन परिश्रम ही करना पडता है, सोच समस्या के हिसाब से विकसित नहीं हो पायी, सेन्स ऑफ ह्यूमर को विकसित करने के लिए कोई कदम नहीं उठाये गए और हमने सिर्फ परीक्षा में अच्छे अंक लाने के लिए पढाई करी, जबकि पढाई समस्या को आगे रखकर उसके हल की दिशा में होनी चाहिए थी ! </p> <p>कुछ दिन पहले यहाँ के एक बच्चों के म्यूजियम द्वारा निकुंज के प्राथमिक विद्यालय में पहली और दूसरी कक्षा के विद्यार्थियों के लिए गणित पर एक कार्यशाला रखी गयी जिसमें विद्यालय के बाद शाम को बच्चे को अपने माता-पिता के साथ आकर भाग लेना था, मैं भी बड़ा उत्सुक था इसलिए समय से ही निकुंज के साथ विद्यालय पहुँच गया ! </p> <p>(जारी …)</p> <table border="1" cellspacing="1" cellpadding="2" width="542"> <tbody> <tr> <td valign="top" width="538">भारत आने का समय नजदीक आ रहा है, अगले सप्ताह इस समय शिकागो के अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर भारत के लिए उड़न खटोला पकड़ रहे होंगे - सबसे मिलने का बेसब्री से इन्तजार है !! </td></tr></tbody></table> राम त्यागीhttp://www.blogger.com/profile/05351604129972671967noreply@blogger.com20tag:blogger.com,1999:blog-6861547640369354038.post-30526218575989635692010-11-14T19:26:00.001-06:002010-11-14T20:00:02.559-06:00राजू याद आ गया आज बाल दिवस पर<p> </p> <p>सबसे महत्वपूर्ण दिन उनके नाम जो कल के नायक हैं, जो आज पौधे हैं और कल वृक्ष बन हमें छाया, नेतृत्व और नया जीवन देंगे एक नयी सोच देंगें ! </p> <p>कल मैंने संयोगवस अपने <a href="http://kavitacollection.blogspot.com/2010/11/blog-post_13.html">कविता संग्रह</a> ब्लॉग पर एक कविता बालक की उर्जा, उसके समर्पण के ऊपर लिखी थी - </p> <p> </p> <p align="center">एक बालक <p align="center">खिलौने की तलाश में <p align="center">अपनी मंजिल तलाशता <p align="center">खोजता, उतरता, चढ़ता <p align="center">सूर्य, चंद्र और आकाश <p align="center">को भी पाने की अभिलाषा रखता <p align="center">हर राह को उकेरता <p align="center">आशामय हो निहारता <p align="center">उद्वेलित हो मग्न रहता <p align="center"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjoUS7ArZzNZ1MNPejt4pPUqOP5cfke6-tjCakqMh1QP5WqEIkB6tfh3wNJJfCos_ECH3w0ihsye4YqO7Z1PhtgkJ6-XMZbTml4n2bIlYOqej11cppGnX7bC4N0BUUF_gy_wTzMc_sWOXw/s1600-h/Image.jpg"><img style="display: block; float: none; margin-left: auto; margin-right: auto" title="किड्स" border="0" alt="किड्स" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiz-LRYvDgeoSpbqzFpUDeTdiolOoqoUAAZDUlcKMaTPqIzz-CeDvuf1AyzigQHYfYmcAbo_-OURREf0oHpc41cyeBeJ5-GGREQYnEV6iGj0uaXTL_AZObARdij2YmMhnbPwxUMBFsy_Ao//?imgmax=800" width="244" height="184"></a> </p> <p align="center">जब ज्येष्ठ को देखता </p> <p align="center">जीतने की आशा दोहराता <p align="center">मंजिल पाने तक <p align="center">प्रयासरत ही रहता <p align="center">चींटी की भाँती <p align="center">जीत कर ही विश्राम लेता !!! <p>जहाँ मेरे पिताजी की पोस्टिंग है वहाँ पर एक गरीब परिवार था, बच्चों को पढाने की कोई व्यवस्था तो दूर, एक रहने का ठिकाना भी नहीं था, पिताजी ने अन्य आर्थिक सहयोग के अलावा उस परिवार के एक बच्चे को अपने घर ले आये जिससे उसको शिक्षा का एक माहौल मिल सके, अब तो राजू परिवार के एक सदस्य जैसा ही हो गया है ! <a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhoCPA3oYZAyTUELiB7_QfIGstTZfjWlpKt6xSKrfZyeRAzc6WpmRIzPXUaDpU2hCoRGzidUArUBoQBlkEXDc_SWeWqmRd7rxiaa1moNsosw6c9kncLR9fUz-GBWYwqB-iSyhxPgDbVj_U/s1600-h/OgAAAKMltl_16hNxbIyPtIAHjulxbXHKANjmqPgFVFklCFxfKjYqbcHCFJItHTXrzgrSBR2nby0NnIW0q3yDZrDzIp4Am1T1UDwX_QNY_yWtCxN2nf5PMrynSpnO%5B3%5D.jpg"><img style="border-right-width: 0px; display: block; float: none; border-top-width: 0px; border-bottom-width: 0px; margin-left: auto; border-left-width: 0px; margin-right: auto" title="OgAAAKMltl_16hNxbIyPtIAHjulxbXHKANjmqPgFVFklCFxfKjYqbcHCFJItHTXrzgrSBR2nby0NnIW0q3yDZrDzIp4Am1T1UDwX_QNY_yWtCxN2nf5PMrynSpnO" border="0" alt="OgAAAKMltl_16hNxbIyPtIAHjulxbXHKANjmqPgFVFklCFxfKjYqbcHCFJItHTXrzgrSBR2nby0NnIW0q3yDZrDzIp4Am1T1UDwX_QNY_yWtCxN2nf5PMrynSpnO" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh3IdYklJxG0HLTbJlWV0Q1yMwpmCmRK843Yb7HDoaoXNLMaRIvHrfMVs9XhtRs_ULtQOdDjL-0SSH3nK0kR0GuuRrwLOFcwzjYmeOg9PLnPyzWG8jXsfaTzYGl3SuaX_16HguT3mj4UWk//?imgmax=800" width="244" height="184"></a> </p> <p>आप भी किसी एक राजू को आगे बढाने का बीड़ा उठायें तो ये बाल दिवस मनाना सार्थक हो जाए ! </p> <p>कुछ दिन पहले दोनों बच्चों को एक दूसरे को नक़ल करते पकड़ा था ..उसी का ये विडियो बोनस में :) </p><iframe class="youtube-player" title="YouTube video player" height="390" src="http://www.youtube.com/embed/djt0amG8zoc?rel=0" frameborder="0" width="480" type="text/html"></iframe> राम त्यागीhttp://www.blogger.com/profile/05351604129972671967noreply@blogger.com10tag:blogger.com,1999:blog-6861547640369354038.post-1273848773541757922010-11-13T17:08:00.001-06:002010-11-13T17:08:11.301-06:00हिन्दी बोलने में असमंजस क्यूं ?<p>हम भारतीय उत्सव मनाने के बड़े शौक़ीन होते हैं, शादी का जश्न हो या फिर पुरुस्कार वितरण का मंच, हर जगह दो चीजें जरूर प्रभावी रहती हैं - एक तो जगमग रौशनी और हिन्दी फिल्मों के गाने और दूसरा अंग्रेजी में वार्तालाप करते लोग ! </p> <p>अमेरिका में सामान्यतः लोग मंदिरों में मिलते हैं या फिर घरों में पौटलक के दौरान एक दूसरे से मिलते हैं, जब मिलेंगे तो अभिवादन से लेकर हर चर्चा में अंग्रेजी हावी रहती है, चलो एक बहाना हो सकता है विभिन्न क्षेत्रों से आये लोग एक कॉमन भाषा समझते हैं इसलिए चलो अंग्रेजी को ही तरजीह दी जाए ! मंदिरों में सांस्कृतिक कार्यक्रम के दौरान हर चीज अंग्रेजी में ही बोली जायेगी पर सब थिरकते या कला का प्रदर्शन हिंदी में ही या हिंदी गानों पर ही करते दिखेंगे. अभी हाल ही में जब निकुंज का मंच से पहला कार्यक्रम था तो तकरीबन ३०-३५ विभिन्न तरह के कार्यक्रम प्रस्तुत किये गए और ९८ प्रतिशत हिंदी में ही थे, बाकी २ प्रतिशत में वाध्य यन्त्र इत्यादि के कार्यक्रम थे जिसको किसी भाषा के मोहताज होने की आवश्यकता नहीं है, हालांकि इस मंदिर में ५० प्रतिशत से भी अधिक लोग दक्षिण भारत से आते हैं पर हिंदी गानों की लोकप्रियता सबको एक सूत्र में बांध देती है, पर एक गौर करने वाली बात रहती है कि जब स्टेज पर किसी को बुलाया जाने वाला हो या किसी नृत्य या कला की व्याख्या मंच संचालक कर रहा हो तब हिंदी के शब्द उनके मुंह पर क्यूं नहीं आते ? इतना असमंजस क्यों उस समय हिंदी बोलने में ? तब विभिन्न क्षेत्र से आये लोगों का हवाला दे अंग्रेजी ही क्यूं होटों पर आती है ? </p> <p>हमारे यहाँ पास में ही हिंदू स्वयंसेवक संघ की एक शाखा हर रविवार को लगती है, एक दिन परिवार सहित इस आशा के साथ मैं भी गया के अब नियमित हर रविवार को आया करूँगा जिससे बच्चे भी कुछ अलग सीख सकेंगे और संस्कृति के पास रहने के एक और मौका हाथ से नहीं जाएगा. ये शाखा यहाँ बहुत सारे कार्यक्रमों का संचालन छोटे छोटे स्तर पर कर स्वयंसेवकों को सार्थक कार्य में हाथ बंटाने के एक अवसर देती है और बच्चों के लिए भी पठन और अध्ययन की व्यवस्था है पर यहाँ भी अंग्रेजी बीच में आ गयी, हर कोई अंग्रेजी में ही परिचय से लेकर योग और धर्म की शिक्षा और कक्षा लेता दिखा, जैसे हम हिंदी को भी तोड़ मरोड़ कर हिंदी में घुसाने की कोशिश कर रहे हों , वही हिंदी में संचालन का असमंजस यहाँ भी दिखा !! </p> <p>ये तो रही अमेरिका में रह रहे लोगों की बात ! </p> <p>अब अगर मैं हिंदुस्तान की बात करूँ तो वहाँ भी कार्यक्रमों के संचालन में हिंदी बोलने में बड़ा संकोच दिखाई देता है, जैसे बॉलीवुड के हर पुरुस्कार वितरण समारोह में संचालन अंग्रेजी में ही होगा, हिंदी फिल्मो के पुरुस्कार वितरण में क्या हिंदी किसी की समझ में नहीं आती ? या हिंदी बोलने से कार्यक्रम की महत्ता घट जायेगी या फिर क्या अंग्रेजी में बोलना समाज में आपके स्तर को ऊँचा दिखाता है ? जो भाषा मुंबई को इतना व्यवसाय दे रही है क्या उसको लोग समझते नहीं, जब हम ही इतनी असमंजस में है तो आगे आने वाली पीढ़ी तो हिंदी के बारे में और भी ज्यादा संशय में रहेगी !! </p> <p>शायद इसलिए ही हिंदी केवल (symbolic) राजभाषा बन कर रह गयी है, राष्ट्रभाषा का सपना अगर असंभव नहीं तो असमंजस भरा जरूर लगता है !! हम शायद भूल गए कि …</p> <p><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgSlRGQO9umiQ-lcZCVdgskiAIXK-hYxOOXp1W3rYjC8t0K1DDx9kXejsiZDBsT4kUaslhkBMUftEw69jkspasmW-SN0bRw2seoe7EnzAcjlgauURTCPsU5fS8FAOcdiyHoMQtWZeSeGCk/s1600-h/hindiday3.jpg"><img style="border-right-width: 0px; display: block; float: none; border-top-width: 0px; border-bottom-width: 0px; margin-left: auto; border-left-width: 0px; margin-right: auto" title="hindi-day" border="0" alt="hindi-day" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjlT9RTqOyB32MM0X6lHQ4srLlyfrrWJlP6aCS9wpovZsYM9boNMLyIVgsc86JmQEzXJuGPezDboVYKJ8FOd7NDPMZGHR17nwowEWMV5PDTW_l6J4YDb_wlXzXPXfkdNDirdbltCDVolxU//?imgmax=800" width="212" height="244"></a></p> राम त्यागीhttp://www.blogger.com/profile/05351604129972671967noreply@blogger.com15tag:blogger.com,1999:blog-6861547640369354038.post-57120107777947924832010-11-09T18:52:00.001-06:002010-11-09T19:04:03.755-06:00अमेरिकन बाबू बेचे जात है ….<p> </p> <p>पिछले लेख में ओबामा की भारत यात्रा के कुछ पहलुओं के बारे में मैंने विश्लेषण किया था,  ये महत्वपूर्ण आलेख यहाँ पढ़ा जा सकता है - </p> <h5><a href="http://meriawaaj-ramtyagi.blogspot.com/2010/11/blog-post_05.html">एक विश्लेषण - ओबामा की भारत यात्रा के परिपेक्ष्य में</a></h5> <p>अब जबकि अंकल सेम बहुत कुछ बेच कर और हम भावुक भारतियों को लुभा कर चले गये हैं, एक बात पर गौर करना जरूर है जो मैंने उपरोक्त लेख में भी संदर्भित किया था कि भारत को अगर वाकई में विकसित देशों के श्रेणी में खड़ा होना है तो हमें अपनी सकल घरेलु उत्पाद का एक बहुत सारा भाग शोध पर खर्च करना होगा! </p> <p><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjtxJXUgz3VS55914p0_ynNDSoeBcXP0AmjvM8CpmAffz9TZNWTx6RYb0On-CBPHh0KLkLHhBMMaXw7xOHC5ke2OPp3uq1ljvCKQ6XkjjdeWwjRc3v10m49iWihD-2J1ISQ7ptyRL4ngxk/s1600-h/08slide1%5B3%5D.jpg"><img style="border-right-width: 0px; display: block; float: none; border-top-width: 0px; border-bottom-width: 0px; margin-left: auto; border-left-width: 0px; margin-right: auto" title="08slide1" border="0" alt="08slide1" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhGLBPXPtKrhi6aKqgEhsYAtMBMvCcMAX7RJDimucpAIyf1MzaMgKh55ADO24flwGGVu-R77l0tI8DUKQgztGgasdGsPcPPT0vlh-TKMNC22ljm96kOtGXHUdJCcZJEr8oyxxsrnVPIv-s//?imgmax=800" width="244" height="173" /></a> </p> <p>जी ई और बोईंग जैसी कम्पनियाँ ओबामा के साथ बिलियन डॉलर का सामान एकतरफा बेच कर चले गये, जैसे ओबामा भारत से अमेरिका में रोजगार पैदा करने की बात करते हैं उसी तरह हमें भी अमेरिका से डील डन करते समय इस तरह की शर्तें रखना चाहिए के हमें सामान भारत में ही बना कर दीजिए ! इससे ये बड़ी बड़ी कम्पनियाँ कम से कम कुछ पैसा शोध पर भी भारत में खर्च करेंगी और उससे अप्रत्यक्ष रूप से आगे आने वाले वर्षों में भारत को ही फायदा होगा !  आई टी के क्षेत्र में ऐसा हो रहा है, अब ये सब अन्य क्षेत्रों में भी होना चाहिए. अगर एक आई टी  क्षेत्र में हमारी सक्रियता के जरिये इतने रोजगार, प्रतिष्पर्धा और सम्पन्नता आयी है तो सोचिये के अगर अन्य क्षेत्रों में भी ऐसा हो तो भारत कहाँ से कहाँ होगा ! </p> <p>अभी हम विशिष्ट तकनीक के लिए पूरी तरह से विदेशों पर निर्भर हैं , रक्षा बजट से लेकर उर्जा बजट तक देश का ५० प्रतिशत से ज्यादा पैसा विदेशों की झोली में चला जाता है ….क्या बिना आत्मनिर्भर हुए हम विकसित हो सकते हैं ? </p> <p>पिछले आलेख में राज भाटिया जी ने बहुत अच्छा प्रश्न उठाया था - </p> <p></p> <p></p> <p><a href="http://www.blogger.com/profile/10550068457332160511">राज भाटिय़ा</a> जी ने कहा था … <em>“इस बंदर बांट मे कुछ नही होने वाला, ओर अमेरिका ईस्ट ईडिया की तरह से एक कपनई ही बना कर जायेगा भारत मे, यह अपने बम पटाखे बेच कर जायेगा, ओबामा गाधी का पुजारी हे तो इस मै बडी बात क्या हे,सारे काग्रेसी भी तो इसी बापू के पुजारी हे, बाकी बात मै honesty project democracy जी से सहमत हुं, यह मामा हमारा कुछ भला नही करने वाला, “</em></p> <p><a href="http://www.blogger.com/profile/11471859655099784046">रवीन्द्र प्रभात</a> जी भी कुछ ऐसी ही व्यथा रखते हैं -<em> “यह सही तथ्य है कि ओबामा ने महसूस किया है मार्टिन लूथर और गांधी को, किन्तु एक सच यह भी है कि ओबामा और हमारे देश के सफ़ेद पोश में यह एक समानता है दोनों महसूसते हैं गांधी को मगर करते वाही जो उनकी फितरत में शामिल होता है ! ओबामा की अग्नि परीक्षा वहीँ असफल हो जाती है जब वह पाकिस्तान और भारत को एक ही तराजू पर तौलने का प्रयास करते हैं अन्य अमेरिकी राष्ट्रपतियों की तरह. …”</em></p> <p>वहीं <a href="http://www.blogger.com/profile/02935419766380607042">जय कुमार झा </a>भी बहुत झल्लाए दिखे<em>…”अच्छे आकडे प्रस्तुत किये हैं आपने लेकिन एक बात तो तय है की लोकतंत्र ना तो अमेरिका में अब जिन्दा है और भारत में तो लोकतंत्र एक भयानक त्राशदी जैसा हो गया है | ओबामा की भारत यात्रा कोमनवेल्थ और आदर्श घोटालों से इस देश की जनता का ध्यान और उनके रोष को भटकाने और खयाली तथा कागजी विकाश के लोलीपोप चूसने को इस देश के लोगों को प्रेरित करने के सिवा कुछ भी नहीं करेगा ...”</em></p> <p><a href="http://www.blogger.com/profile/06057252073193171933">समीर लाल </a>और <a href="http://www.blogger.com/profile/10471375466909386690">प्रवीण पाण्डेय</a> भी कुछ ज्यादा आशावान नहीं दिखे ओबामा से ! </p> <p> </p> <p>ओबामा की इस यात्रा के अन्त में पीपली लाइव फ़िल्म का गाना सही फिट बैठता है:</p> <p> </p> <p align="center">भैया भारत लगता तो बड़ा संपन्न है </p> <p align="center">पर विदेशी लोग खाए जात हैं </p> <p align="center">और अमेरिकन बाबू अपनी चीजें बेचे जात है </p> <p align="center">जनता बेचारी कान पकडे ही जात है </p> <p align="center">और कांग्रेस पार्टी राज करे ही जात है </p> <p align="center">देश को घोटालों से लूटे ही जात है </p> <p align="center">अमेरिकन बाबू अपनी चीजें बेचे जात है </p> <p align="center">देश की प्रतिभा पलायन करे ही जात है </p> <p align="center">और एक प्रतिभा राष्ट्रपति बने ही जात है </p> <p align="center">पर कुछ करे नहीं पात है </p> <p align="center">देश गरीब होये जात है </p> <p align="center">अमेरिकन बाबू अपनी चीजें बेचे जात है </p> <p align="center">विपक्ष खूब सीटें जीते जात है </p> <p align="center">पर संसद में ये भी सोये रहत है </p> <p align="center">बात बात पर धक्का मुक्की होती रहत है </p> <p align="center">वोट करते में खुद ही बिक जात है </p> <p align="center">अमेरिकन बाबू अपनी चीजें बेचे जात है ….</p> <p> </p> <table border="2" cellspacing="0" cellpadding="2" width="400"><tbody> <tr> <td valign="top" width="400">इस दिवाली पर निकुंज ने यहाँ के एक मंदिर में अपना पहला स्टेज कार्यक्रम किया, चिन्ता की बात थी कि समय की कमी और प्रोग्राम में कुछ परिवर्तन की वजह से उसने तैयारी ज्यादा नहीं कर पायी पर खचाखच भरे सभागार की तालियों ने ये सब संशय दूर कर दिया , सोचा आपके साथ भी बाँट लिया जाए ये गर्वोनुभूति का पल - <br /><iframe class="youtube-player" title="YouTube video player" height="390" src="http://www.youtube.com/embed/ClWV9qEfi0U?rel=0" frameborder="0" width="480" type="text/html"></iframe> <br /> <br /></td> </tr> </tbody></table> राम त्यागीhttp://www.blogger.com/profile/05351604129972671967noreply@blogger.com22tag:blogger.com,1999:blog-6861547640369354038.post-71947898171043078192010-11-07T18:21:00.001-06:002010-11-07T18:22:10.168-06:00क्षमा करें पंडित जी<p> </p> <p>अब जबकि इन्टरनेट पर आरती संग्रह से लेकर पूजा करने की विधि सब कुछ केवल एक क्लिक की दूरी पर संभव है,  भगवान की पूजा और हवन के लिए पंडित जी के नखरे कौन सहे ?  </p> <p>यहाँ अमेरिका में मंदिर और पंडितों की कमी नहीं है,  पर अगर आप एक पंडित जी को कथा वाचन के लिए आमंत्रित कर रहे हैं, या फिर मंदिर में कोई पूजा आपके सौजन्य से होना है या फिर नयी कार की पूजा करानी है या फिर गृह प्रवेश जैसा यादगार पल पूजा से प्रारम्भ करना है तो पंडितो के नखरे और आसमान छूती फीस कभी कभी आपको सोचने पर मजबूर करेगी कि क्यूँ ना इन्टरनेट का उपयोग इसके लिए किया जाए !</p> <p> <a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgVaDoWmLO31GQc6lYKEiHCPfQBSgXyW6DoaSIdvsF6D0Cf7HkHV6Uw9AAUsRbs9SEvpg70L01siK26B_M08Wm0juuEm7HWDyTc26ckTrUQGW7Vkk84vxukTgWXLx_iG7I9mEfsFGx37LE/s1600-h/pandit%20cartoon-1%5B3%5D.jpg"><img style="border-bottom: 0px; border-left: 0px; display: block; float: none; margin-left: auto; border-top: 0px; margin-right: auto; border-right: 0px" title="pandit cartoon-1" border="0" alt="pandit cartoon-1" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgw7IKWrjIorSW3fjEc2GGVUx1y03UfhwxC97pIAs3lYHAEvdDirkWbzLckGdHVGeo-GhiaukwcgJR-uTbA9JvKZp6ZE1R55UZO9i0dnbaSTZP-fm8hfHKE0WIqDJW1zyAbbxh31u3784Y//?imgmax=800" width="163" height="204" /></a></p> <p>बहुत दिन से सत्यनारायण कथा कराने का मन था, इस बहाने दिवाली की गेट - टुगेदर भी हो जाती है ! जब पंडित जी को फोन किया तो उनके पास समय ही नहीं हैं,  फिर सलाह आई कि आब शाम को ८ बजे कथा करा लीजिए,  रात में कथा का फीलिंग कैसे आये अब ?  वीक डेस से लेकर वीक एंड तक रोज उनकी अपोइंटमेंट पहले से ही तय हैं !  मंदिर में भी स्लोट आसान नहीं है लेना ! </p> <p>एक बार गृह प्रवेश के मौके पर एक पंडित जी को ऐसे ही पूछ लिया कि आपकी फीस वगैरह बता दें तो कृपा होगी, तब हम नए थे तो पंडित के नखरे और भी आसमान पर थे,  बाद में शायद फीस और हमारी श्रद्धा कम लगी तो पंडित जी सर्दी का बहाना बना गये कि गला बहुत खराब है - ऐसे में मंत्रोचार करना उनके लिए संभव नहीं ! </p> <p>ज्यादातर पंडित जी बंधू किसी ना किसी मंदिर से सम्बंधित रहते हैं,  इनको ग्रीन कार्ड भी विशेष केटेगरी में जल्दी से मिल जाता है यानी रोजगार का उत्तम और सुरक्षित तरीका ! उसके बाद मंदिर से आमदनी के अलावा अगर व्यक्तिगत रूप से किसी के घर कथा /पूजा में जाना हो तो अलग से कमाई हो जाती है, सामान्यतः मंदिर प्रशाशन पंडितों को मंदिर की बिना अनुमति के व्यक्तिगत तौर पर पूजा करने करने के अनुमंती नहीं देता. अगर आप मंदिर से पंडित बुलाते हैं तो मंदिर की फीस बहुत रहती है और उसके बाद पंडित जी को भी श्रद्धावस (बहुत) कुछ देना पड़ेगा. आने जाने का खर्चा अलग, पंडित जी अगर अपनी कार से आयेंगे तो जिजमान पर एक और बड़ा अहसान.  व्यक्तिगत रूप से अगर पंडित जी को बुलायेंगे तो आप अपनी फीस फिक्स कर सकते हैं पर ऐसे में उचित दिन और समय मिलाना मुश्किल हो जाता है क्यूंकि वो पहले ही बुक रहते हैं ! </p> <p>जब पंडित जी घर आयेंगे तो समय के कमी अलग रहती है तो जल्दी जल्दी पंडित जी के उपलब्ध समय के अनुसार सब करो, वैसे भी हम भारतियों की आदत किसी के घर समय से पहुंचने की नहीं होती तो ऐसे में समय का पालन करना असंभव सा होता है !  अगर आप महाम्रत्युन्जय या कुछ और विशेष पूजा कराना चाहते हैं तो फिर उसका अलग से समय और समय की कीमत ! </p> <p>लग रहा है पोस्ट मार्टम कुछ ज्यादा ही हो गया, खैर ! मुझे कोई बुरे नहीं लगती इसमें क्यूंकि पंडित जी भी एक आम इंसान हैं और सात समुन्दर दूर अपने परिवार के साथ रह रहे हैं और परिवार पालना है तो फिर व्यवसाय से समझौता कैसा ? </p> <p>बात इन्टरनेट पर उपलब्ध सामग्री से शुरू हुई थी , तो आजकल बहुत सारे लोग यहाँ पर खुद ही इन्टरनेट के सहारे घर पर कथा, हवन और पूजा करने की कोशिश कर रहे हैं और इसमें आनन्द भी आ रहा है बस आयोजक को थोडा सा समय पढने में, डाउनलोड करने में और प्रिंट आउट लेने में देना पडता है ! </p> <p>कुछ दिन पहले एक मित्र ने सत्यनारायण कथा पर आमंत्रित किया और उस दिन हमने कथा से लेकर हवन को उस आनन्द से ही किया जिस आनन्द से पंडित जी के साथ करते हैं बल्कि मन्त्र और स्पष्ट रूप से पढ़े गये और बच्चों ने भी खुद मन्त्र पढकर एक नया ही आनन्द लिया !  जब इस बार पंडित जी व्यस्त थे तो हमने भी वही किया , कुछ इष्ट मित्रों के साथ कथा वाचन किया और फिर सबने मिलकर गृह्शुद्धि और आत्मशुद्धि के लिए हवन किया !  </p> <p><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjipo6rFnXAxm-NW8ADZRYoFuu9oQiqOlkbPU-5s7V5vbzkZTaKUiWp-oGArBpeRbYAYSVAk266YfW41Qktl9Xd089ySEh1XrEmIM8byvhl2KdYyoOIMsFBcHWpWDiE1oriYvm16xdYroE/s1600-h/photo%5B3%5D.jpg"><img style="border-bottom: 0px; border-left: 0px; display: block; float: none; margin-left: auto; border-top: 0px; margin-right: auto; border-right: 0px" title="photo" border="0" alt="photo" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgMP4E0vk9v_yEGPvi4AMDBz8hZauiSJGm7DRBAIM1BkfsdJivzoT4nrSQpDIVuSdZ6-D7LKGZq3wYIJShP66oRl-h64BkW-jyvE8elbbiKt-VLi1Me_WgJxJAlYYr1-E2zK_Q5ENmM_Jg//?imgmax=800" width="244" height="184" /></a> </p> <p>क्षमा करें पंडित जी, आप भी अब रिप्लेसेबल लगते हैं पर फिर भी आपका अपना महत्व है - आपको भी कथा में आमंत्रित करेंगे बस आप थोडा फ्री हो लें  और हाँ कथा और हवन सायंकाल थोड़े अजीब से लगते हैं :(  </p> राम त्यागीhttp://www.blogger.com/profile/05351604129972671967noreply@blogger.com19tag:blogger.com,1999:blog-6861547640369354038.post-84964506861895469542010-11-05T17:11:00.001-05:002010-11-05T17:11:32.084-05:00एक विश्लेषण - ओबामा की भारत यात्रा के परिपेक्ष्य में<p> </p> <p>कुछ लोग कहते हैं कि शिकागो की राजनीती इतनी काम्प्लेक्स है जिसमें साधारण आदमी का डेमोक्रटिक या रिपब्लिक पार्टी में आगे बढ़ना बहुत ही दुष्कर है, इसलिए भी इसको विंडी शहर कहा जाता है !  ओबामा भी इस राजनीतिक पुश्त से ही निकले हैं!  विंडी शहर के ओबामा अगले सप्ताह भारत दौरे पर हैं, देखते हैं भारत के धुआंधार नेताओं के सामने ये कैसे टिक पाते हैं !!  ओबामा पिछले ३२ साल में  ऐसे पहले राष्ट्रपति हैं जो अपने पहले ही कार्यकाल में भारत यात्रा पर आ रहे हैं, इससे भारत की विश्व स्तर पर आर्थिक और कूटनीतिक तौर पर बढ़ रही शक्ति का अहसास तो लग ही रहा हैं ! </p> <p>ओबामा मार्टिन लूथर किंग जूनियर और महात्मा गाँधी को अपना प्रेरणा श्रोत मानते हैं और ऐसे में उनके लिए ये यात्रा व्यक्तिगत रूप से उनके जीवन के लिए बहुत अहम है. वो गाँधी की समाधि पर जाकर खुद को अपने प्रेरणाश्रोत के पास अनुभव करने के पल का बेसब्री से इन्तजार कर रहे होंगे,  जबकि अमेरिका में उनकी लोकप्रियता का ग्राफ दिनोंदिन नीचे जा रहा है और कल हुए चुनाव में विपक्षी पार्टी ने house of representative पर फिर से कब्ज़ा कर लिया है, ऐसे में गाँधी से सत्य और सतत प्रयास की सीख ओबामा के लिए इस समय अति महत्वपूर्ण है!</p> <p><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEirBOeTzl-r6RdpxF9LdMVdwqcfNYTNDZPpmCB6EAW7HQfT_IPdjc3cKtrJkd9p-VRz6XsajwvYj0hYelm3QR6pWn5LbrzuqKvWAQ2j-IDu-q1vOQV5OahqzwRddnVx2MjL75mamxsoVtc/s1600-h/obamaofficialphoto3.jpg"><img style="border-right-width: 0px; display: block; float: none; border-top-width: 0px; border-bottom-width: 0px; margin-left: auto; border-left-width: 0px; margin-right: auto" title="obama-official-photo" border="0" alt="obama-official-photo" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiwX06uERAU8UExL8yWoZOFx5C5naShiL0_gfA69zoNrgFU838Nx9ufG-Jpb6Yqq_uo0c9PMv46hpTp6b8cygC1TiVJYo8fQ0x6l9eG1H_vQUjm5BlU9-XU7yLdjGsnDthNMpYcfh1UM2k//?imgmax=800" width="181" height="244" /></a></p> <p>नीचे दिया गया ग्राफ अमेरिका और भारत की GDP growth में तुलना दर्शाता है जो मैंने विश्व बैंक की वेबसाइट से डाटा लेकर  बनाया है, इससे स्पष्ट है कि भारत प्रगति की दर में अमेरिका से बहुत आगे है, बस डर है ग्राफ के नीचे ऊपर होने की दर से, ग्राफ में देखे तो भारत की सकल घरेलु उत्पाद की दर में उतार चढाव एक स्थिर दिशा में न होकर ऊपर नीचे तेज गति से हो रहा है, जो कि अस्थिरता का सूचक है. </p> <p><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEirDl7a5pJ8r61lYQ5NX_dK2G7zlt0v0RVcRJc3-vrd9DAJBBZ3BJkh38aIwgpDt5uxUDCiO39AcByHJ-GFVkxsEttdJVFued9ZKvYN3hzE1w6HChCZCvosSRJMj_8sDQVhzUhbvs0MXzU/s1600-h/image61.png"><img style="border-right-width: 0px; display: inline; border-top-width: 0px; border-bottom-width: 0px; border-left-width: 0px" title="image" border="0" alt="image" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhscoHoELPiBQfvGEl08Lu-E_PWgMouLHk1RmrWsYDdMO3WPfRoFcZrA88dKbGyhpXvXwVZbmMahATA2EB4_0SSlmx-txcTOf8MQmZR4AClmBszs2spa1Pnh-9W7L2kanRc8bOep_UyuHw//?imgmax=800" width="446" height="321" /></a> </p> <p>कुछ  डाटा मुझे संयुक्त राष्ट्र की वेबसाइट पर भी मिला उससे नीचे वाला ग्राफ बनाया गया है , ये ग्राफ हाल के ही वर्षों में भारत और अमेरिका के सकल घरेलू उत्पाद की तुलना करता है - </p> <p><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh11L-A9UYRfFhPMDblSDz2fUrmsEq4UMoAyfZZJDqwCcimUa56iiFeZQkU2TaWXfHBiM4RF8GO_N0upPJMk2b48bZdXm_k-TeG5_MohYXcAkNsI-WO9qv1YMT1hBKPCZCczmgfyUAMrXk/s1600-h/image181.png"><img style="border-right-width: 0px; display: inline; border-top-width: 0px; border-bottom-width: 0px; border-left-width: 0px" title="image" border="0" alt="image" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhzWIWcRyS3eJhYZwO5TqvL3MMv3Cr5kMBWxQ3d4cNG4Au_SDu-BKje2bgOmDmvt_-ruO7qomVrd4qNkAC3dCQt_BZvfE_IbnekgEvSkGaYD92A-PLnEneUSH3tQWRye7CvQihuS0yl1E8//?imgmax=800" width="445" height="232" /></a> </p> <p>मैंने विश्व बैंक के आकंडो को थोडा और खंगाला और कुछ ग्राफ यहाँ विश्लेषण के लिए प्रस्तुत कर रहा हूँ - </p> <p>आश्चर्यजनक ढंग से खेती में सक्रिय रूप से रोजगार में लगे लोगों कि संख्या में पिछले सालों की तुलना में इजाफा हुआ है और अब ये संख्या २६ करोड हैं जो कि १९८० में सिर्फ १८ करोड के लगभग थी, ये संख्या कृषि, मछलीपालन, मुर्गीपालन, मधुमक्खी पालन इत्यादी में लगे लोगों की संख्या दर्शाती है - </p> <p><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiGkWka9ImQjAR0uPfJnq4HWbL6b5Cv0dFJ-g7oEx3GXiPY7uBsu1s4zEo2OTdQguqBoCqO6VsbadBnzkwPr7pDR9E8YndaK1Xk5me8KZIFEYyKqUTrT_ckk5tWA-6FDX_M5oGdo_f5UFg/s1600-h/image131.png"><img style="border-right-width: 0px; display: inline; border-top-width: 0px; border-bottom-width: 0px; border-left-width: 0px" title="image" border="0" alt="image" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhBcacL5pxa9dPKhIi_8qv-vjYDAlgAcWMP_WLM8YExMrscTn98RhNImcgj606afdZrqlc5JQ-1jFKHrzIRwhRCVdi_g48IuPBlHrhO1Hf0ZQ02xZM0ARbVRo9DfcieOqU7oDYlhAq45-s//?imgmax=800" width="420" height="297" /></a> </p> <p>अब एक नजर भारत में उर्जा की खपत और पैदावार के ऊपर डाली जाए : </p> <p> </p> <p><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiXmQTrckAOyG6UZsr2o_E4RqsmLsn3Plv1hqM72e-zuPpAVhZeqKuN0NR_hv8Xbc2RGEluqKRywP3Es335rkzpHQ5s4zQAZQ2BfzonvfMWvjdG7y72tJ9ZjWD-N_AJWVltdmcTF5PKjgE/s1600-h/image182.png"><img style="border-right-width: 0px; display: inline; border-top-width: 0px; border-bottom-width: 0px; border-left-width: 0px" title="image" border="0" alt="image" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgCJ1FH-yUGT8TYlyL52Dc12_LUumPOZxggjmaB8uEkSBrns6Uq5YbulMQUQaLmessBtQQC3sSrtOQjVjLNhyphenhyphenpNsuSYmmdPQFDKW_aPUXACYUd2DZx7CT_BP9t4Z7EmMyvZbJFHyubRfEA//?imgmax=800" width="442" height="372" /></a> </p> <p>इस ग्राफ में सबसे नीचे वाली ग्राफ लाइन गौर करने लायक है जो कि कुल बिजली उत्पादन में से न्यूक्लीयर श्रोतों से बिजली के उत्पादन के प्रतिशत को दर्शाती है, ये प्रतिशत १९७१ में  १.८ प्रतिशत था, जो कि २००७ में २.०८ प्रतिशत हो पाया है, ये बहुत ही धीमी प्रगति है और मुझे लग रहा है ओबामा - मनमोहन इस ग्राफ लाइन के प्रतिशत को बढाने की दिशा में कुछ कदम बढायेंगे.  नीचे वाला ग्राफ विभिन्न श्रोतों से  बिजली उत्पादन  के प्रतिशत को  और अधिक स्पष्ट रूप से दर्शाता है - </p> <p><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj-JgmXkxScknNKJlPlnhAVQGlSxOJsM52JoHKy2ebAnOONcIp9JrZzThBQioDZqyYRKODvyDJG-K6tCJDd5-gLyeojD3P7uVD1rmWNsJaJQIVUB_81EMykjv2OOyyG4UUzseaZ1x640QU/s1600-h/image231.png"><img style="border-right-width: 0px; display: inline; border-top-width: 0px; border-bottom-width: 0px; border-left-width: 0px" title="image" border="0" alt="image" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiUbs2CDE1zwocM9e3i5wKDlAUJr7RtsN6qrgdhRw9g1cvLrYfjkh9sVzj1hZJsDRD_P9TwuKTUsTjDl4xWKhTwwAIb1wiG206Ax-mlQDPnCVIRoUzz3zaZAFnrp9miztRQ2vroTGZ7r0U//?imgmax=800" width="450" height="315" /></a> </p> <p> </p> <p>भारत को अभी आने वाले २० वर्षों तक तो कम से कम उच्च तकनीक के लिए अमेरिका, रसिया और यूरोप पर निर्भर रहना पड़ेगा क्यूंकि हम अपने सकल घरेलू उत्पाद का बहुत कम अनुसंधानों पर खर्च करते हैं, जबकि चीन इस मामले में बहुत आगे है!  देखिये ये ग्राफ - </p> <p> </p> <p><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj0IkFcGsPnwN8Ha63k4j0hbZdmumSa2CPkAPNqnkVrRMHERE8tkctzTY_b20aQaGHlr35UGbt4WxStg2_wtYwET8rTs96UAHeh_9k5-ZjxyVjsDFh72DkEKIuPS1VQrDFkN94xqNJVrd4/s1600-h/image17.png"><img style="border-right-width: 0px; display: inline; border-top-width: 0px; border-bottom-width: 0px; border-left-width: 0px" title="image" border="0" alt="image" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhHv10Oqg22Scu1cNXKLtS1nIpjSHygg39bHeVRuFBmlHbi06YDqX0RKaCkYuJgN6Y33jCswpcv7z7vwbHjm9YNMYSunpve7RAzsgVm1_T4HhZZB47df3rSpk1dQ5mCrR1N1Nbze4uSHWM//?imgmax=800" width="456" height="294" /></a> </p> <p>ओबामा की इस यात्रा को लेकर कुछ प्रश्न आ रहे हैं दिमाग में - </p> <p>१. क्या ओबामा कश्मीर का राग अलाप कर भारत की नाराजगी का कारण बनेंगे ? चीन में जाकर भारत को एक बार नाराज कर चुके ओबामा शायद ही कश्मीर के प्रथकतावादियों से मिलेंगे !</p> <p>२. क्या परमाणु संधि पर और और बातें होंगीं ? </p> <p>३. क्या ओबामा भारत को परमाणु अप्रसार के लिए बने समूह में शामिल होने और ऐसी संधियों पर हस्ताक्षर करने के लिए मजबूर करेंगे ? </p> <p>४. क्या ओबामा खुलकर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के विस्तार में भारत का समर्थन करेंगे ? </p> <p>५. देखते हैं कि आतंकवाद पर भारत को अमेरिका क्या भासण देता है ? </p> <p>६. पाकिस्तान पर ओबामा की राय क्या सिर्फ भारत को खुश करने वाली होगी ? क्यूंकि अभी तक असल में तो ये २ साल में पाकिस्तान के खिलाफ कुछ कर नहीं पाये हैं, हाँ हर साल कई बिलियन डॉलर पाकिस्तान को ओबामा भी अन्य अमेरिकन राष्ट्रपतियों की तरह भेज रहे हैं. </p> <p>आशा  करते हैं कि भारत और अमेरिका के रिश्तों में ओबामा एक स्फूर्ति भरा परिवर्तन लायेंगे, आपकी क्या राय है ? </p> <p></p> <p></p> <p></p> <p></p> <p> </p> <p><strong><font color="#0000ff">ग्राफ श्रोत : डाटा विश्व बैंक और संयुक्त राष्ट्र की वेबसाइट से लेकर लेखक ने खुद ही विभिन्न तरीकों से विश्लेष्णात्मक ग्राफ तैयार किये हैं </font></strong></p> राम त्यागीhttp://www.blogger.com/profile/05351604129972671967noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-6861547640369354038.post-80593391126282148742010-11-04T09:56:00.001-05:002010-11-04T12:22:04.620-05:00घर घर दीप जले - चहुँ और खुशी फैले<p> </p> <p>प्रिय मित्रों और पाठको, </p> <p>दीपावली - दीपों की श्रंखला से सजी, रोशनी से जगमग, प्रकाशमय महापर्व भारतीय संस्कृति का विश्व में ध्वजवाहक है, ये केवल एक पर्व नहीं, ये तो हमारी उर्जा को नवस्फूर्ति से संजोने वाला एक प्रतीक है !  जब बात भावों से जुडी हो तो शब्द भी कभी कभी व्याख्या के लिए कम पड़ जाते हैं, दिवाली भी एक ऐसा पर्व है जो बचपन से लेकर अब तक हर वर्ष खुशियों का, आनन्द का, सपनों का और सम्रद्धता का सन्देश हमें देता आया है !   </p> <p><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi0H-7AupT7DQ0UWMUpQT0HTnW1cz8WsKu9HoCO67sVXD0UWyfZCLgvJdsmFoIUrQWbtwZai8RzFGTn6rBPC4QYc7Qe9QS_ynvSnVHe4jp0r2mBhU_PRFq0QRFFrbZoXV5ISAVIIIXHRGI/s1600-h/diwalilights7.jpg"><img style="border-right-width: 0px; display: block; float: none; border-top-width: 0px; border-bottom-width: 0px; margin-left: auto; border-left-width: 0px; margin-right: auto" title="diwali-lights" border="0" alt="diwali-lights" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi8fqYfZWHg8SVlU_8BaEmkrCf3GPdgKaoOsgGcG7kdPTQ5qDT02TxY3OcQkOpopCoD_W8yQ5xvXxpLgvPz0R1u3tt_LLEgfUlsC6kWjzihbvoQKas7NIuKEycQhaMOZ0QEBhy7g2mRt2E//?imgmax=800" width="244" height="244" /></a></p> <p><strong>बुराई पर अच्छाई की विजय, असत्य पर सत्य की मेधा और अन्धकार पर प्रकाश की ये बेला विश्व में भारतीय सूर्य की चमक है !</strong>  जब घरों की और दिलों की सफाई कर हर आँगन को हम नया नवेला बनाने के लिए उत्सुक रहते हैं, आर्थिक, सामाजिक प्रगति के सोपानो को संजोते, अभिलाषा के दीप जला हम असाध्य और असंभव को भी कर्म से पा लेने की द्रढता का वचन लेते हैं - उस पल को ही दिवाली कहते हैं, अहंकार , क्रोध और आलस्य पर विजय को रोशनी देने वाला ये महापर्व  जैसे सारे  अच्छे, महान और सार्थक उद्देश्यों का महासंगम हो ! </p> <p>कितनी यादें हैं इस पर्व के साथ, हर वर्ष कुछ न कुछ सकारात्मक ही हम जोडते हैं ! बचपन में पूरे घर की पुताई, कलई और चूने का गलाना और फिर पुताई के बाद हाथो का फटना कौन भूल सकता है, फिर जब लिपे पुते आँगन और दीवारे परिणाम के रूप में दिखतीं थी तो मन प्रप्फुल्लित हो उठता था, कुछ रुपयों के पटाखे – चकरी, राम बाण,  नाग, सुतली बम और पता नहीं क्या क्या ….रात में परिवार के साथ लक्ष्मी की मूर्ति दीवार पर काढ कर कुछ तेल के और कुछ घी के दिए जलाना और <strong>फिर पड़ोसियों, स्वजनों का लक्ष्मी पूजन के बाद हमारे घर पर दिए रखने आना और हमारा उनके घर सूप में दिए रखकर ले जाकर उनके घर रखना जैसे एक दूसरे की सम्रद्धि के लिए , सामंजस्य के लिए और समग्रता के लिए, सामजिक एकता के लिए बुने हुए स्तंभ हों जिस पर समाज नाम का ढांचा टिका है !</strong>  एक दिन बाद सारे परिवार जन का एक साथ मिलकर गोवर्धन परिक्रमा का क्रम एकसूत्र में बंधने के प्रेरणा देता है !   जगमग रौशनी से घर सब कुछ प्रकाशमय बना देते थे, <strong>बिजली नहीं तो दीप श्रंखला ही अन्धकार को प्रकाश में बदलने के लिए पर्याप्त थी ! </strong></p> <p>अब शिकागो में दशहरे से ही घर को सजा दिया गया है, पहले तो स्कूल की छुट्टियाँ भी दशहरे से दिवाली तक हो जाती थी, पर शायद धीरे धीरे वो क्रम अब बंद हो गया है !  दिवाली की छुट्टियों में शहर से घर जाने का आनन्द अविस्मरणीय है ! </p> <p>कल ग्वालियर में भाई बाईक से फिसल गया तो उसके हाथ में गहरी चोट आई, वो भी दायें हाथ में, उसके CAT परीक्षा से कुछ ही दिन पहले ऐसा होना उसके लिए बहुत दर्द देने वाला है, शायद हाथ के दर्द से भी ज्यादा, पर आशा है कि दिवाली का प्रकाश जब अमावश्या को भी पूनम बना देता है तो वो अवश्य ही उसको भी नयी प्रेरणा और शक्ति देकर  आने वाले रास्ते के लिए उसे आत्मविश्वास देगा !  इस दिवाली के अवसर पर यहाँ शिकागो के ही एक मंदिर में निकुंज का एक मंच पर कार्यक्रम है, कुछ और नयी सुखद यादें जो संजोना है इस दिवाली पर !! </p> <p>मैंने फेसबुक पर किसी के स्टेटस पर पढ़ा था : </p> <p>“आई दीवाली फिर इक बार, हो जाओ सब तैयार <br />सबको हर बार देते हैं,इस बार खुद को दो उपहार”</p> <p>नारायणांशो भगवान् स्वयं धन्वन्तरिर्ममहान्। पुरा समुंद्रमथने समत्तस्थौ महोदधेः।।  सर्व वेदेषु निष्णातो मंत्र तंत्र विशारदः। शिष्यो हि बैनतेयस्य शंकरस्योपशिष्यक।। </p> <p><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEirM8BMAkJjMmqezP8mODwK-7YjT_a1BNNxyOBxQRSCTjqwAaTkE6Lyp-W-TPlQs8DivvLPyp2yybSEbxjlfKljq0uk2St72sQFbgXdXsSwx2hS4n3qRfpSK-VlUAC_E-1mWkR7bPWv80s/s1600-h/diwali17.gif"><img style="border-right-width: 0px; display: block; float: none; border-top-width: 0px; border-bottom-width: 0px; margin-left: auto; border-left-width: 0px; margin-right: auto" title="diwali1" border="0" alt="diwali1" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEifQgQyIcQybQ7h3gkBJX7dqmH1imC52oo2PszVj8Uj_L-yjAqBurEhxjUlmdP-2Nn0C8STMw1at6EePkbgJCTmywedLrZlTtbNdRIMjz8u_UexcrCOkf6NIHWQhMn2JmSb7EV1KG_V9a0//?imgmax=800" width="225" height="244" /></a> </p> <p>आप सभी को ये प्रकाशमय महापर्व सम्रद्धि, संतुष्टि, आत्मविश्वाश और खुशियों का खजाना दे ! मेरी हार्दिक शुभकामनायें आप सभी दोस्तों और पाठकों के साथ हैं ! </p> <p>सादर, </p> <p>राम त्यागी </p> <p><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg-c8weq5du-r1-QuvdQ5kOSTMmqkftX8cFljGtbCAUOU9Oh2eTw75_hzRIihYz2ZjNvZfl4WaNyZdBFqHlMopij9-rqACbzo5iJanSM0chtsa1BaJc_Y4b0T0-7EqgfQprzOgV3hgjzio/s1600-h/diwali%5B4%5D.jpg"><img style="border-right-width: 0px; display: inline; border-top-width: 0px; border-bottom-width: 0px; border-left-width: 0px" title="diwali" border="0" alt="diwali" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg6FSGv4p1oH_PsKxuf7sZx1mEw0WO558D_ClNKhMdm2Lo5TIM3-hFXO733XD-X_GIcCZTOof3d0FGcrFdDA5IcBYOAWguJySJMWxC9abTdIa9KOFrc_VnwuzSJ_pNZ9NqnD3kIokONydE//?imgmax=800" width="429" height="347" /></a></p> राम त्यागीhttp://www.blogger.com/profile/05351604129972671967noreply@blogger.com26tag:blogger.com,1999:blog-6861547640369354038.post-69757134023061952102010-11-02T17:39:00.001-05:002010-11-02T17:39:03.721-05:00बदलता मौसम<p> </p> <p>अचानक से दो दिन से २०-३० मील प्रति घंटे के हिसाब से ठंडी तेज हवाओं ने परेशान कर रखा है ! रात में ऐसा लगता है कि जैसे ये आँधी कहीं खिडकी और छत को उड़ा ही न ले जाए !   गमले भी घर से दूर पीछे बैकयार्ड में दूर दूर उड़े मिले !  भारत में गर्मी के मौसम में जैसे लू परेशान करती है वैसे ही शिकागो में सर्दी के मौसम में ये तेज हवाएं !  इसलये ही शिकागो को विंडी शहर के नाम से भी जाना जाता है !  </p> <p align="center">ये मौसम भी अजब से रंग दिखाए </p> <p align="center">देखो कब गर्म से ये सर्द हो जाए </p> <p align="center">शिकागो की तूफानी सर्दियाँ  </p> <p align="center">घर को उड़ाते हवाओं के रेले </p> <p align="center">चेहरे को भुनाते सर्दी के थपेले </p> <p align="center">ठंडी हवायें बनकर सर्दबाण </p> <p align="center">चुभकर शरीर को कर दे मृतप्राय </p> <p align="center">कौन कहता है कि ये शहर बन जाएगा सहरा</p> <p align="center">ये तो गतिमान है कर्म का जज्बा लिए </p> <p align="center">थमता नहीं ये आँधियों के वेग से </p> <p align="center">आग आगे अग्रसर होते रहने की </p> <p align="center">शायद कर देती है कडकती सर्दी को भी पस्त !</p> <p></p> <p> </p> <p>गजब की बात है कि चाहे मौसम कितना भी खराब हो, पर लोगों का काम करने का जज्बा कम नहीं होता,  अभिलाशायें, सपने बस अनवरत लगाए ही रखते हैं ! </p> राम त्यागीhttp://www.blogger.com/profile/05351604129972671967noreply@blogger.com7tag:blogger.com,1999:blog-6861547640369354038.post-44528970051723106472010-10-31T17:50:00.001-05:002010-10-31T19:22:47.900-05:00हेलोवीन की डरावनी और रंगीन शाम मुबारक हो (कुछ चित्रों के साथ)<p> </p> <p>हर जगह लोग अजीब अजीब तरह के भेष बनाकर घूम रहे हैं, कुछ मस्ती में तो कुछ बच्चों के मन की संतुष्टि में !  इस बहाने बच्चों का रोमांच और बड़ों का बचपन सतरंगी छटा लिए अपने पूरे सबाब पर रहता है ! हेलोवीन के दिन ऐसा लगता है कि लोग डर को भी कितने रंगीन तरीके से और उत्साह से मनाते हैं.  </p> <p><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgvKa-nDx3aXYS8IF0af-9q6OC69L4pZiPou4CdSZ0Q7PYDVVUrMLKfTFexwYZ5bxWDJqp5VnytlFWkEU8uDbekbP3LgUofvkJ8Jk0_7ndqPOencFQLyh76ZcwMYVeS9roVGIuh5fT-WzY/s1600-h/610px-Jack-o'-Lantern_2003-10-31%5B4%5D.jpg"><img style="border-right-width: 0px; display: block; float: none; border-top-width: 0px; border-bottom-width: 0px; margin-left: auto; border-left-width: 0px; margin-right: auto" title="610px-Jack-o'-Lantern_2003-10-31" border="0" alt="610px-Jack-o'-Lantern_2003-10-31" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhHXzqqKsC1ztvSY3tthToumtHeUcGyw0H2_7cPN-alRBmkjMjbZNnRxuESWzRJZQkTXAZor2xIdjlf3laQ1YcChDHj7tpTJsINRbhy3jTZgF3WpMBBObk39GxzrywpjG_-JVO01WDdnuU//?imgmax=800" width="154" height="152" /></a>     </p> <p>ऑफिस में भी बड़े इंतजाम किये गये थे,  पिज्जा के साथ साथ तरह तरह की मिठाईयों की व्यवस्था की गयी थी, जिन पर डरावने चित्र बने हुए थे या फिर उनकी आकृति मकड़ी, हड्डी या फिर अन्य डरावनी जैसी थी, ऑफिस को मकड़ी के जालों और अन्य चीजों से एक डरावना रूप देने का प्रयास किया गया था, बाद में शायद कुछ सबसे बढ़िया ड्रेस पहनकर आने वाले के लिए कुछ इनाम के इंतजाम की व्यवस्था भी थी !  कोई भूत तो कोई परी बनकर आया हुआ था, तो हम जैसे भी कई लोग थे जो रोज की तरह जींश और कमीज को अपमानित करने के कतई मूड में नहीं थे. </p> <p>हेलोवीन (Halloween) पर बच्चे  बड़े तरह तरह के वेशभूषा पहनते हैं, कोई डरावना तो कोई लुभावना बनने की कोशिश करता है, बच्चे ट्रिक या ट्रीट बोलते हैं और जिसके दरवाजे पर भी जाओ उससे ऐसा बोलने पर कैंडी या खिलौने मिलते हैं, लोग रात रात में डरावने किस्म की लाइट या रौशनी भी अपने अपने घर या दुकानों के सामने लगाते हैं ! अभी रात को बच्चों के साथ पुरे मोहल्ले में एक बास्केट लेकर घूमने जाना पड़ेगा और घर लौटने तक अनिगिनत कैंडी इत्यादि का जंक इन बच्चों के बास्केट में होगा. पर इसके चलते बच्चों और बड़ों का उत्साह देखते ही बनता है, चलो लोग इस बहाने से अपने व्यस्त जीवन से कुछ पल निकालकर कुछ मस्ती के मूड में तो आते हैं !! आपको भी एक टोकरी में तरह तरह की चोकलेट इत्यादि भर कर दरवाजे पर रखनी पड़ती है जिससे आने वाले बच्चे खाली हाथ ना लौटें ! </p> <p>आज यहाँ शहर की दुकानों पर भी कैंडी वितरण और हेलोवीन के मेला का हुजूम था, निकुंज ने खुद को स्पाईडर मेन और पॉवर रेंजर से प्रमोट कर NASCAR रेसर का ड्रेस पहना हुआ था.  चलो अभी तो दुकानों से इनको लौटाकर लाये हैं और अब बारी है मोहल्ले में घर घर जाने की !  मैंने तो नेता जैसे भेष धरा था क्यूंकि हमारे भारत सहित पूरे विश्व में इससे बड़ी डरावनी और लुभावनी चीज कोई नहीं :-) …नेता जो सब हड़प लेता !! </p> <p>चलो कुछ फोटो देख लेते हैं:  </p> <p><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjUbpsD2aTRIxmImAIpROnK3TaaKrdgP9RhrsokhZLCeQMeCyA79KEihnvVNb4dftfYCKhxBNq_o5jn1qexaW3Nuu-UXFZSy9t-Nbc7b1BEZM0FXI_JQWWxPAAQFYA_WpuQO0FbLfedwis/s1600-h/halloween%5B3%5D.jpg"><img style="border-right-width: 0px; display: block; float: none; border-top-width: 0px; border-bottom-width: 0px; margin-left: auto; border-left-width: 0px; margin-right: auto" title="halloween" border="0" alt="halloween" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEifWEIuHMwGSvlSHMTkNtvYpvs-KT_KVYwQ6fU389ubAm_21-FdnSA6Rv03MdxUL4NjvXi_s3cCj_wH74kN8r2_2cZXv0sRqO628AJITYuozjQggW2IXh4ZFMQ6IEdn-eVouXbjic5WpcI//?imgmax=800" width="184" height="244" /></a><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiMUqjo86fXCeBcQYd4hbOUPOpfAUNHKsgXkNqjUu9nfu7ZA2vm2FFIpK2UlDVQ1RWxM8Tezib4Pm68U-liGHKpIIBcUCP3npupyDSr8invTazP_f8BzE2OLZYU9_tvJVVDtiyoUEKF9LA/s1600-h/photo%5B4%5D.jpg"><img style="border-right-width: 0px; display: block; float: none; border-top-width: 0px; border-bottom-width: 0px; margin-left: auto; border-left-width: 0px; margin-right: auto" title="photo" border="0" alt="photo" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgyx8zBQoztUYXqpb1if7AQrSfAjB0cOcqC9g4rhhfReeLRaJ22VsCremWv3NXKdEhJhcetBDF1QmFd2vSd5ki3hjvDvjwylZBymGRyfAi2mw9BKmsovupGLIOivUWxZPUzlUdXIeD-19o//?imgmax=800" width="184" height="244" /></a></p> <p>रंगबिरंगी पोशाकें - </p> <p><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgUAjBHk6Tgw4EqI0FaN3AIBWaFbJ-MYs276Pf2XJuJw3U24aIByWz-CrkBvVQ-bG_RayM44-5gO_Ym7mqFUStmsXZRZt-Jf6u9EweHU-sDuHCX1o2AzerHjcTNIHiqPK6X3h-EDYfC-h0/s1600-h/halloween2%5B3%5D.jpg"><img style="border-right-width: 0px; display: block; float: none; border-top-width: 0px; border-bottom-width: 0px; margin-left: auto; border-left-width: 0px; margin-right: auto" title="halloween2" border="0" alt="halloween2" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjvHaU060Te7gur0RLEpK7fUNMUeQDIsbsIwdNS5-5G9TGz-03J_8A9zw6H7j1RzmyPhQ1gYBtTgsDoLm7nxbQChaSJUYMArPdOJjBeYNFhDbAf8whzdEeGnTWrd2OQFAgJRQSYAPljPS0//?imgmax=800" width="184" height="244" /></a></p> <p>कुत्ता भी पीछे क्यूँ रहे - <a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiwfLLrWCIvEcJcYW3vC4GBpxB-XO-rrPmCOv_Q73sRsuGUiHK4Z0pR_MLS0tMCGw-nf4nUeG6CqD19lmySehTaICCLK5S403BDOyXJIfa8ygli91DHIeGCbewwdQNJfLVc37wpP6ytGWA/s1600-h/dog%5B3%5D.jpg"><img style="border-right-width: 0px; display: block; float: none; border-top-width: 0px; border-bottom-width: 0px; margin-left: auto; border-left-width: 0px; margin-right: auto" title="dog" border="0" alt="dog" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiQ2ooFY_jEPg-UqN6nmOCcckHQmR93tzra6JqHAiN31k32fTUFgPLRiNlFaN6ldl1NOCYdaP6b9SNzi-Mx3djXf1OJbgYgxi1Gk4vniNsXLj1YP-dxgc8sKEUi36RDsto15IHJmjjUb20//?imgmax=800" width="192" height="252" /></a></p> <p></p> <p></p> <p></p> <p></p> <p></p> <p></p> <p></p> <p></p> <p></p> <p></p> <p></p> <p></p> <p></p> <p>मशहूर होलीवुड एक्ट्रेस हैडी क्लम काली माँ के भेष में - </p> <p><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEijCd_zGHQ6domzDgqUBGLPSMvE7t81IRV1_xHHU1FWel2PqWarGr5YKV6aeA-PuMqmsr5e-WDszX-cdXbm_gmqjpD9iNYiS8pGYjBSNbr6C71i9-3OoLfSck1Y2sRlU6MoGPfbTV_mzjA/s1600-h/heidi-klum-halloween-costume-sheeva%5B3%5D.jpg"><img style="border-right-width: 0px; display: block; float: none; border-top-width: 0px; border-bottom-width: 0px; margin-left: auto; border-left-width: 0px; margin-right: auto" title="heidi-klum-halloween-costume-sheeva" border="0" alt="heidi-klum-halloween-costume-sheeva" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjJkDC01249D5yzpgYLoK1bj_69QcxFk36JrrksZ-V1Q6GHKFGP0qiIaaDpP2tkoRPaESGaA5tZ46cwLYXLhvhapH6np_iqcvF2Xn5qF0A-6gEDYKWkBcF_kSVmvWM4-t7qsy_EkHkJAAo//?imgmax=800" width="244" height="179" /></a> </p> <p>भारत भी पहुँच रहा है ये साजो सजावट धीरे धीरे, अर्जुन रामपाल को देखिये - </p> <p><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhgG-E5J-DkVDmkELwqQEMeoitsAfECbSqXt1dCd8G2jUkw9RCDMuGT978bV6XbVFYgOxT2jA8d2In97m5QYzDxj2irXkrvwbCMcr5KEwEYeXyudRI-e-PGGsuzaKNPqfB4zQdP5uedB8s/s1600-h/arjun-mehr%5B3%5D.jpg"><img style="border-right-width: 0px; display: block; float: none; border-top-width: 0px; border-bottom-width: 0px; margin-left: auto; border-left-width: 0px; margin-right: auto" title="arjun-mehr" border="0" alt="arjun-mehr" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg-aaB4fcr6w8eAMZ5rzC4dx_DJGiP2bDYlMhPJVvNkFo94iYrDoNJPyJhI621QFkJ90dlSNDqGG9v6raRuya2j-mZknja1cI7QI4uYWSCL_dVeQJWVEUv86KH9isQKAP-OK1PgVsbCtlo//?imgmax=800" width="244" height="180" /></a> </p> <p>चलो अब यहाँ रात की तैयारी है !! </p> राम त्यागीhttp://www.blogger.com/profile/05351604129972671967noreply@blogger.com7tag:blogger.com,1999:blog-6861547640369354038.post-2695332024770745872010-10-29T17:08:00.000-05:002010-10-29T19:05:34.518-05:00जीवन के रास्ते कभी कठिन तो कभी सरल …<p> </p> <p>कभी कभी कुछ लोगों से मिलता हूँ तो लगता है कि मैंने क्या मेहनत करी और क्या तिकडम !  लोग कितनी काम्प्लेक्स जीवन जी रहे होते हैं, शायद चिली की खदान में ६९ दिन फँसे लोगों से भी ज्यादा ! </p> <p>कुछ हफ्ते पहले एक टैक्सी ड्राईवर से भेंट हुई ! हम २-३ लोग थे तो मुझे उसके बगल की सीट पर बैठने का सौभाग्य प्राप्त हुआ,  पहला सवाल उनका - क्या आप लोग बांग्लादेश, पाकिस्तान या भारत से हैं ?  हाँ, सम्मान के साथ तनकर हमने भी बोला कि भारत से हैं ! उधर से ड्राईवर का जबाब आया और मैं भी बंगलौर से !  </p> <p>मैंने प्रश्नचित्र मुद्रा में उसकी तरफ देखा क्यूंकि महाशय की शक्ल किसी भी भारतीय कोने से मिल नहीं रही थी, फिर बोले के मैं तिब्बत से हूँ पर जन्मा और पला भारत में ही हूँ !  फिर महाशय अपने आप ही तिब्बत और भारत के रिश्तों और लोगों की हालत के बारे में मेरा ज्ञानवर्धन करते रहे ! </p> <p>खुद ही बताने लगा कि बड़ी बुरी हालत है, तिब्बत के लोगों को भारत में पासपोर्ट मिल नहीं पाता और तिब्बत में तो सरकार के बुरे हाल हैं ही, अगर तिब्बत जाना पड़े तो कहीं पहाड़ों के रास्ते अवैध रूप से पैदल चलकर आना और जाना होता है ! कई बार इस प्रोसेस में जेल की हवा भी खानी पड़ती है, वो खुद भी ऐसा करके तिब्बत में जिल जा चुका था  !  </p> <p><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjn8CPQxvck1nSbT1LQHyGotvtg08ZWXRkSjVuXJCp31QQMd59dtc_7zk_pMUmi6aZy4a-2B7IPxb1ghs1opS6fssJ6YEGP-Iaw4w31lcFPkq_HkR1BnOVfI3TEeuNPWFWzUrSTuWdMJdY/s1600-h/illegalimmigrantsign3.jpg"><img style="border-right-width: 0px; display: block; float: none; border-top-width: 0px; border-bottom-width: 0px; margin-left: auto; border-left-width: 0px; margin-right: auto" title="illegal-immigrant-sign" border="0" alt="illegal-immigrant-sign" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgjJsb8KXne78p1u0_PGacL1Utoxdo3Z-os0SOxU86_lhQSwim6o5zzZR-utGsPWyLfzO24tna7VFlh9mOv7GUAHw7m2xV4B9r7lREDZlQG3IDFvqPe4k-rm-G3z8NanTwYMIFKLLZ6JII//?imgmax=800" width="230" height="244" /></a> </p> <p><strong>अमेरिका कैसे पहुंचे ?</strong> </p> <p>बोले कि बड़ी संघर्ष गाथा है, पहले नेपाल के पासपोर्ट का इंतजाम किया कुछ ले देकर - १-२ लाख रुपये में नेपाल का पासपोर्ट बन जाता है !  इस तरह से डर - छिपकर आना पड़ा !  अब भाईसाहब पेपर पर नेपाल के नागरिक हैं,  और जल्दी ही अमेरिका के नागरिक भी बन जायेंगे, क्यूंकि इस तरह से १० के लगभग साल यहाँ बिता दिए हैं !   क्या बीबी और माँ पिता को ऐसी अवस्था में बुलाना और कैसे बुलाना ! बड़ा ही चकरघन्नी और आफत वाला काम था - पर क्या करें लोग मंजिल तय करते करते कब बड़ी बड़ी खाईयां पार कर जाते हैं - पता ही नहीं चलता - सब इस पेट के लिए ! </p> <p><strong><u>कुछ भाव एक कविता के रूप में उकेरने के कोशिश :</u></strong> </p> <p align="center">ये जीवन भी धूप छाँव का रेला रे </p> <p align="center">कभी कठिन तो कभी सरल सा लागे ये </p> <p align="center">अग्नि क्रोध की कभी उठे </p> <p align="center">तो कभी समुन्दर उत्सव के </p> <p align="center">कभी मोह की पाँश का झंझट </p> <p align="center">कभी अर्थ संचय का चिंतन </p> <p align="center">कभी बिछडने का गम घेरे </p> <p align="center">कभी मिलन की आश सँवारे</p> <p align="center">दम्भ घोर अन्धकार घुमाये</p> <p align="center">गर्व अनुभूति आनन्दोत्सव ले आये </p> <p align="center">कभी अतृप्ति अकेलेपन की </p> <p align="center">कभी विक्षोह परम मित्रों का </p> <p align="center">इन्द्रधनुष तो बस सतरंगी</p> <p align="center">जीवन के मेले बहुरंगी </p> राम त्यागीhttp://www.blogger.com/profile/05351604129972671967noreply@blogger.com7tag:blogger.com,1999:blog-6861547640369354038.post-64724803467438028532010-10-28T16:40:00.000-05:002010-10-28T16:54:34.511-05:00क्या सिर्फ अरुंधती रॉय ही देशद्रोही हैं ?<p> </p> <p>अरुंधती रॉय ने जो कश्मीर में या देश के अन्य हिस्सों में जाकर बयान दिए हैं, अवश्य ही वे देश के स्वाभिमान के लिए, देश की एकता के लिए और संप्रुभता के लिए उचित नहीं हैं, कभी कभी उनके विचारों से अपरिपक्वता और प्रचार पाने की मंशा झलकती है ! ये मीडिया में आकर अपने बयानों से देशद्रोह कर रही हैं, और इनको गिरफ्तार करने का बीड़ा विपक्ष भाजपा ने सशक्त रूप से उठाया है जिस पर एक और स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार तो दूसरी तरफ इस मौलिक अधिकार की मर्यादा के पहलुओं के बैनर तले एक बहस चल रही है !</p> <p><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjkOyNwnuQe5Tn81YTLSKyy8Qq9X-6YZNgHVfIDV6XDIOm_o-PxdyyP_ovx8cKAXHTYa92rHXS3CXYV72tuUu6X1oHRlDqdeTdA6KOPnTvUBRr6rtXwhU0xfxeH4p1x6GPcVG0_wI0sFiE/s1600-h/question3.jpg"><img style="border-right-width: 0px; display: block; float: none; border-top-width: 0px; border-bottom-width: 0px; margin-left: auto; border-left-width: 0px; margin-right: auto" title="question" border="0" alt="question" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiBcaK45n87WxSv7p3NcvxfNdDqvCuleNLDUNV2ITTzBnh7IUobI76OUEPfprNgZkGG9uP1n6lRS0X1tiQvUgjp8tqryG6UCVkiYt54dNb98pR1VQP4tQM4O53msSH41WLxpH7nbwk-cHw//?imgmax=800" width="232" height="244" /></a>  </p> <p>अब अगर दूसरे पहलुओं पर नजर दौडाएं तो मुझे नेट खंगालने की जरूरत नहीं हैं देखिये इस देश में कैसे देश के स्वाभिमान, देश की एकता और संप्रुभता का मजाक नेता और लाल फीताशाही उडाती है पर बस सुगबुगाहट होकर रह जाती है - कभी कुछ नहीं होता - </p> <p>१. राजीव गाँधी बोफोर्स और स्विस बैंक खातों में काला धन जमा करने के बाद भी पोस्टर बॉय बने घूमते हैं - यहाँ तक कि उन्हें देश के लिए बलिदान होने वाला एक शहीद बोला जाता है </p> <p>२. कलमाडी देश के स्वाभिमान और गर्व को तार तार कर हजारों करोड रुपये डकार जाते हैं</p> <p>३. दिग्विजय सिंह १० साल के शासन में मध्यप्रदेश को कर्ज के कुएं में धकेल जाते हैं और आज कांग्रेस में वरिष्ट का दर्जा पाये हुए हैं </p> <p>४. भाजपा, कांग्रेस, भ्रष्ट मधु कोड़ा और शिबू सोरेन को आगे बढाती है क्या ये देश के खजाने को बर्बाद कर देशद्रोह नहीं कर रहे ? </p> <p>५. कर्नाटक में बेल्लारी खदान के मालिकों को भाजपा शरण दिए हुए हैं और प्रखर वक्ता सुषमा स्वराज भी उनके पक्षधर हैं </p> <p>६. मायावती, मुलायम और लालू दलितों के नाम पर देश को बर्बाद करने पर तुले हैं </p> <p>७. शिवराज सिंह ग्रहमंत्री रहते हुए हर मोर्चे पर असफल रहे - क्या उनका पोस्ट मोरटेम हुआ ? </p> <p>८. मध्यप्रदेश, बिहार , राजस्थान , उत्तरप्रदेश के राजनीतिक लीडर इन उत्तर भारतीय राज्यों को तमाम संसाधनों के होते हुए भी दक्षिण की तरह, चंद्रबाबू नायडू की तरह विकसित नहीं बना सके - क्या ये जेल नहीं जाने चाहिए ? </p> <p>९. करूणानिधि और उनका परिवार, मुलायम से लेकर पासवान तक कैसे मध्यमवर्ग परिवार से अरबपति बने </p> <p>१०. १९८४ के दंगो में सिख समुदाय को आर्थिक, भावनात्मक, और शारीरिक चोट, नुकसान के जिम्मेदार क्या देशद्रोही नहीं हैं ? </p> <p>ऐसे हजारों बिंदु गिनाए जा सकते हैं जिन पर गौर करने पर अरुंधती रॉय के साथ साथ और भी बहुत लोग भी सजा के हकदार हैं !! </p> <p>अरुंधती रॉय को जरूर ही गैरजिम्मेदाराना बयानों की सजा मिलनी चाहिए जिससे स्वतन्त्रता की अभिव्यक्ति का दुरूपयोग ना हो और देश की अखंडता पर कोई प्रश्नचिन्ह ना लग पाये !!  गिलानी महाशय के साथ कुर्सी पर बैठने से पहले काश रॉय मैडम ने ये लेख पड़ा होता - <a href="http://meriawaaj-ramtyagi.blogspot.com/2010/09/blog-post_17.html">अखंड भारत!</a> </p> <p>आपकी क्या राय है इस बारे में ?? इस विषय पर सार्थक बहस और एक निर्णय की जरूरत अनिवार्य सी लगती है  ! </p> राम त्यागीhttp://www.blogger.com/profile/05351604129972671967noreply@blogger.com21tag:blogger.com,1999:blog-6861547640369354038.post-91381093662124094762010-10-26T23:04:00.001-05:002010-10-26T23:10:32.313-05:00एक उद्घाटन ऐसा भी !<p> </p> <p>बहुत दिन पहले फेसबुक पर यहाँ जिस शहर में मैं रहता हूँ उसके पेज पर एक विडियो चमका था, जिसमें  यहाँ के मेयर को एक ब्रिज के उद्घाटन करते समय फीता खुद न काटकर कुछ बच्चों से ये काम करा उनका उत्साहवर्धन करते दिखाया गया था - </p> <p>पता नहीं आप देख पाएंगे ये विडियो या नहीं, पर कोशिश करिये - </p> <p><a title="http://www.facebook.com/video/video.php?v=1197273388967" href="http://www.facebook.com/video/video.php?v=1197273388967">http://www.facebook.com/video/video.php?v=1197273388967</a></p> <p>सूचना तकनीक का प्रयोग है कि हम एक जगह की अच्छी बातें दूसरी जगह प्रसारित कर सकते हैं, बाँट सकते हैं - शायद कोई नेता देख रहा हो और कुछ सीख ले इससे !  बहुत पैसा बच सकता है जो आधारशिला रखने से लेकर ढाँचे के समपर्ण तक रैलियों और भीड़ पर बहाया जाता है !</p> <p>उद्घाटन इत्यादि में पैसा पानी की तरह बहा कर जनता के सामने खुद को विकास का मसीहा साबित करने का प्रजातंत्र में आदत या कहना चाहिए नशा सिर्फ भारत में ही नहीं, बल्कि विश्व में हर जगह है - जहाँ भी जनता को जनता के पैसे द्वारा बेबकूफ बनाने का तंत्र यानी प्रजातंत्र है, वहाँ ऐसा अक्सर देखने को मिलेगा, चाहे वो अमेरिका हो या भारत ! </p> <blockquote> <p align="left">देखिये एक समाचार दक्षिण भारत का (विवरण <a title="http://www.outlookindia.com/article.aspx?264550" href="http://www.outlookindia.com/article.aspx?264550">http://www.outlookindia.com/article.aspx?264550</a> से लिया गया है )  - <br /><em>Talking of scamming,<strong> the Chennai Corporation spent more than Rs 24 lakh on the inauguration of two flyovers(at Cenotaph Road and Alandur Road) and a subway (on Jones Road, Saidapet) by chief minister M Karunanidhi on December 11, 2009.</strong> According to a reply to an RTI filed by V Madhav of Porur, Rs 16.45 lakh was spent on the inauguration of the Cenotaph Road flyover while Rs 7.87 lakh was spent for the Alandur Road flyover and the Jones Road subway although no stage was put up and the CM inaugurated it sitting in his car. “The total amount spent for the functions is almost equal to the ward development fund of a councillor, which is Rs 25 lakh a year. At a time when the government is short of funds for welfare schemes, there should not be any wasteful expenditure,’’ Madhav said.</em></p> <p><em>So, what was 24 lakhs spent on? <strong>Rs 8.3 lakh on lighting, mikes and ACs at the Cenotaph Road flyover inauguration, Rs 2.5 lakh on the stage arrangements and toilet facility for Karunanidhi, Rs 1.15 lakh was spent for chairs for VIP, VVIPs and members of the public, the fabricated tent and synthetic mat</strong>. In addition, <strong>booklets supplied to VIPs, VVIPs and the public on the two flyovers cost Rs 4.3 lakh, while Rs 3.53 lakh was spent on lighting arrangements on the Alandur Road flyover</strong>, the Jones Road subway and the approach roads. All this expenditure does not include the money spent on the CM’s security and newspaper advertisements. But Subramaniam’s defence? Spending Rs 25 lakh for a function in which the CM participates “cannot be considered unusual or unnecessary.”</em></p> </blockquote> <p><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi5FUK2R1dmiYY0k7_1voWElYOmOzZE6JEM-ihYvt-PPvwzvvXh1TsO1et3n7rPMMZTMXLP_V0ZphJ9lnsrccQ47I1mZkHR5NORNfEHN48U5EVHiYb7_l8W4fGzf7nP0XtHDKNJkQB0EPw/s1600-h/taxpayer%5B3%5D.gif"><img style="border-bottom: 0px; border-left: 0px; display: block; float: none; margin-left: auto; border-top: 0px; margin-right: auto; border-right: 0px" title="taxpayer" border="0" alt="taxpayer" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgdd7mCbmMyEi8mokG5VXGWHlUmg6ciFgDXr9mrFIor94NxMGFeNlA5wABNHYyVTFGPLpxTLZWmdsugA02-_zXMuh7NOu8BkcJnBryUPmuSt052NhNXIqmbSeKjMdN4L_UvDAhHLrTUaxM//?imgmax=800" width="232" height="240" /></a> </p> <p>क्या अगली बार आप भी इस चक्कर में खुद के टैक्स का पैसा फूकेंगे या फिर नेपरविल के मेयर से कुछ सीखेंगे  ? </p> राम त्यागीhttp://www.blogger.com/profile/05351604129972671967noreply@blogger.com17tag:blogger.com,1999:blog-6861547640369354038.post-39884551921462277312010-10-22T17:50:00.001-05:002010-10-22T18:00:24.960-05:00वो मेरे प्रेरणा श्रोत और जर्मनी के एकीकरण की २० वीं वर्षगाँठ<p> </p> <p>मैं मेट्रो ट्रेन के स्टेशन पर अपने प्रोग्रामिंग वाली चिंतन मुद्रा में खडा था और तभी एक छड़ी ने हलके से मेरे पैर को छुआ,  और जैसे मेरे दार्शनिक भावों को एक तरंग सी दे दी.  छड़ी वाला इंसान उस भीडभाड वाले छोटे से प्लेटफोर्म पर सर्राटे से आगे बढता जा रहा था, आँखों पर काला चश्मा और हाथों से बस छड़ी को एक दिशा देते हुए स्वाभिमानवस वो आगे बढा जा रहा था, किसी की कोई सहायता की उसे दरकार नहीं थी, आवश्यकता ने उसे एक मन्त्र दे दिया था कि बस बिना रुके चलते ही जाना है , अगर किसी की तरफ देखेगा तो आगे उस वेग से बढ़ने का प्रश्न ही नहीं है ! </p> <p><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEidB7N_DmtsBrchaQJP9V_8PwaAaP3m_MV8S6GMsqdq-lfTnzvG2z_HAqBMiouRi4XQ3CDZTy4zUPUTHR0EUQUQ0p20Alvb4Eraf6miiNDdJvFwu1xk7N69DMBvoWdggS-Aa_FlIBTwNqg/s1600-h/22blind-man%5B3%5D.jpg"><img style="border-bottom: 0px; border-left: 0px; display: block; float: none; margin-left: auto; border-top: 0px; margin-right: auto; border-right: 0px" title="22blind-man" border="0" alt="22blind-man" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgpzh8Kd1gAsUBKZ08nb_iyG36fzUCWm5aO5jhj2rewJw4lytDa_1Wgm0_UBrnFvc4mboCcMI-rE1KN6N_tNEO4sTMqlrqdBAZYuT07zKAhZ_eSWjxFBrB9m-dEi-Kd3jzN9Kg1kZRXzUQ//?imgmax=800" width="244" height="244" /></a> </p> <p>ऐसी कितनी ही छोटी छोटी बातें हैं जो आपको एक मंद हवा के झोंके से आनन्दित सा कर देतीं हैं , और इस आनंद के पीछे कितनी पीड़ा को छुपाये ये पुलकित प्रतीक ! </p> <p>गाँव में एक हष्टपुष्ट मेरे साथ का लडका,  मेरे से भी अधिक फुर्तीला,  बस शायद कुछ अभावों की वजह से पढ़ ना सका और गाँव में ही रह गया ! लोग कभी उसे उसके नाम से नहीं बुलाते बल्कि लंगड़ा कहकर बुलाते हैं, इसी नाम से मशहूर है पर जिस वेग से पाँवई लेकर एक पैर से दौडता है  उससे लगता है कि उसमें आसमा को छूने की चाहत और क्षमता दोनों ही है ! गाँव में उसकी दूकान है और खुद का छोटा सा व्यवसाय - कोई क्या बराबरी करेगा उसकी - लंगड़ा कहने वाले खुद ही उसके पुरुषार्थ से लज्जित हो जायें अब ! </p> <p>पिछले महीने ३ अक्टूबर को पूर्वी और पश्चिमी जर्मनी को एकीकृत हुए २० साल हो गये ! (शायद दीवाल ९ नवम्बर १९८९ की रात को गिराई गयी ) दोनों देशों ने एक होकर संगठित होकर केवल दूसरों के आधिपत्य से ही उस दिन मुक्ति नहीं पायी बल्कि विश्व में एक प्रगति के सोपानों का कीर्तिमान भी कायम किया, एक होने के बाद जर्मनी विश्व के ऐसे देशों में शामिल हो गया जो विश्व की आर्थिक महाशक्ति कहे जाते हैं, १७ साल से बेरोजगारी की दर विश्व में सबसे कम रखकर इन्होने कर्मशीलता के साथ योजनबद्ध और एक कर्मण्य प्रशाशनिक व्यवस्था होने का प्रतीक भी विश्व को दिया !  पूर्वी जर्मनी उतनी संपन्न नहीं थी जितनी पश्चमी और इसलिए केवल १७ प्रतिशत पूर्वी जर्मनी की कम्पनियाँ ही प्रतिस्पर्धा में टिक पायी, पर बाद में सरकार की प्रतिबद्धशीलता की दाद देनी होगी कि अब पूर्व और पश्चिम में भेद कर पाना संभव ही नहीं !   ब्लूमबर्ग पत्रिका ने इस पर एक विशेष आलेख प्रकाशित किया है जिसने मेरी पिछले वर्ष की जर्मन यात्रा की यादें ताजा कर दीं !  मैं उन दिनों  ड्यूसलडोर्फ़ में था,  कुछ चीजें जो मैंने अनुभव कीं और पत्रिका ने भी इंगित करीं हैं  -</p> <ul> <li>अगर आपका जन्मदिन है तो ये आपकी जिम्मेदारी है कि आप ड्रिंक और खाना खुद उपलब्ध कराएं  </li> <li>हमेशा समय के पाबन्द रहें </li> <li>सिगरेट को कभी भी कैंडल से नहीं सुलगाएँ, (A common superstition says doing so kills a sailor) </li> <li>अमेरिका और भारत से फ्री के बाथरूम की आदत पड़ हो गयी तो यहाँ उसको विराम दें , बाथरूम से बाहर आकर टिप जरूर दें </li> <li>मैं तो एक बार लेडिस बाथरूम  में घुस गया क्यूंकि पुरुषों के बाथरूम पर herr और औरतों के बाथरूम पर कुछ और लिखा रहता है तो मुझे लगा कि her  का मतलब वो महिलाओं का बाथरूम होगा :) </li> <li>herr का मतलब शायद mr.  या श्री होता हैं जो किसी भी पुरुष के नाम के संबोधन के पहले सम्मानसूचक शब्द के रूप में लगाया जाता है </li> <li>बीयर तो पानी की तरह है इस देश में :-) </li> <li>खाना खाते समय हाथ टेबल पर रखेंगे तो अच्छा माना जाता है </li> <li>खाना अगर पूरी तरह पेट भर कर खा लिया है और नहीं लेना है तो अपने खाने के चाक़ू और फोर्क को और चम्मच को समानांतर अवस्था में रखे , अगर क्रोस्सिंग में रखोगे तो इसका मतलब आपको और खाना खाना है </li> <li>किसी के घर जाओ तो समय से ही पहुँचो और एक छोटी से गिफ्ट जरूर ले जायें  </li> <li>एक सायिकल जरूर लें लें, सायकिल तो जैसे होलैंड और जर्मनी के रोजमर्रा के जीवन का एक हिस्सा हैं, सूट पहने लोग सायकिल पर ऑफिस जाते मिलेंगे सुबह, कुछ ५० यूरो से लेकर हजारों यूरो तक की सायकिल उपलब्ध हैं </li> <li>एक शहर की बीयर को दूसरे शहर में न मांगे, बीयर के ऊपर बहुत लड़ाईयां रहती हैं,  ड्यूसलडोर्फ़ शहर में आल्ट बीयर चलती थी और कालोन शहर में कोल्च , पर ड्यूसलडोर्फ़  में १-२ रेस्तरां ही कोल्च परोसते थे और यही हाल कालोन में था आल्ट के बारे में. दोनों शहरों में दूरी थी ३० किलोमीटर, जर्मन दोस्त ने ड्यूसलडोर्फ़  के रेस्तराओं में हम लोगों को कोल्च न माँगने के लिए आगाह किया हुआ था  …हामरे गाँव के कुए से पानी न पी लेना सरदार !! </li> </ul> <p>यूरोप तो जैसे स्वर्ग हो और  जर्मनी उस स्वर्ग का द्वार व मुखिया !  कुछ उन दिनों के फोटो - </p> <p><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgCVi68KNv39gxP-piaku8uGQxbchzKij_zZzVoaHyb2CFwCzHpc0N7T-p4cUqF4Di_E17RMVPHYrXrOaceSN7gdgZxzmgCMNAqCgZJ9qRLRTrNMprc5oZjcZAHtchEHolnAyWHAMjYXdA/s1600-h/OgAAAOoM89-VI_6sDMBS5JzMbNhcbgrLBTX5eJzq0ObQyiS4qFlXO6OH27ThQkMcvQSDxCK42HEzQHN6fIdnbEisrgAAm1T1UBBheRtOvsX3GSVwCABcQP85HQ4j%5B3%5D.jpg"><img style="border-bottom: 0px; border-left: 0px; display: inline; margin-left: 0px; border-top: 0px; margin-right: 0px; border-right: 0px" title="OgAAAOoM89-VI_6sDMBS5JzMbNhcbgrLBTX5eJzq0ObQyiS4qFlXO6OH27ThQkMcvQSDxCK42HEzQHN6fIdnbEisrgAAm1T1UBBheRtOvsX3GSVwCABcQP85HQ4j" border="0" alt="OgAAAOoM89-VI_6sDMBS5JzMbNhcbgrLBTX5eJzq0ObQyiS4qFlXO6OH27ThQkMcvQSDxCK42HEzQHN6fIdnbEisrgAAm1T1UBBheRtOvsX3GSVwCABcQP85HQ4j" align="left" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjVSQk-mM7UY3AOlnbtaCE0Pgun7JIS0832ARP76ntDHKqilFsA2fY1drZsPYG-31C_sWfSKXQ76vFBPrkLNQvf9k1BnhWBbFUq4sDObQupQnqRyNU5psx0PWvAOl-Nr4Qv7R5b81QT-YI//?imgmax=800" width="244" height="184" /></a> <a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiQzn4MJrV7fRgg_6SqzYbFnOL5Qwv-q2HDHDZKJH3pPeup_-_4MrQbRFdY9fP8B_4Vz-cG2hZi25wzFnEpbvn6JeDOonn85c-hGCorTHDF7z3OdJbTSaGpWUPy4Ts_4GYKwON9G6TFK3g/s1600-h/OgAAANxIEXOcL3PtkMMghLPTL6Gwn31WAVu_ObX6BnWZhx49H5Bpci_Wy9PaN731UpIxR95wg00jZm1Q_rAL4kL5U78Am1T1UGLaZo9J3q0Puyv96muNl4ISvuSC%5B2%5D.jpg"><img style="border-bottom: 0px; border-left: 0px; display: inline; border-top: 0px; border-right: 0px" title="OgAAANxIEXOcL3PtkMMghLPTL6Gwn31WAVu_ObX6BnWZhx49H5Bpci_Wy9PaN731UpIxR95wg00jZm1Q_rAL4kL5U78Am1T1UGLaZo9J3q0Puyv96muNl4ISvuSC" border="0" alt="OgAAANxIEXOcL3PtkMMghLPTL6Gwn31WAVu_ObX6BnWZhx49H5Bpci_Wy9PaN731UpIxR95wg00jZm1Q_rAL4kL5U78Am1T1UGLaZo9J3q0Puyv96muNl4ISvuSC" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgWvLyfPKBs47y7bApGPomu1RSzB7qnhLIEgR5Uh4j7i3LfdvNR_j72P5-woF1y5oGhSNP908QVcoBhfo7nyvuOH8iJU8XF586d2PK7fgXk1LJNgvPr1l2ngINctzfYZpkf3iI8Cnzns9w//?imgmax=800" width="244" height="184" /></a> <a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEivK0TnSyhVuYjBwfhCXafxNhpBXAZMKsrPg6ctxLOOwDek272XC-OIZXHxN5yB2PPkzqpr9BEACTS6OxeyRbD4hnPSgrw-aWLe95tFj_6SRveDU7jqaeiaONaESsMMg50csegi0z5Ab3k/s1600-h/OgAAANhwD-KMrbgKw_Zw3_pi_ferHg0c8PJsxfxIOmiFWYkltiHYzkICu8urLK8ehfwIwW3oXGTKYvR9H6e60oqDOHUAm1T1UH_hhNOjfYFhNgOQmt5-GuLWoWGf%5B3%5D.jpg"><img style="border-bottom: 0px; border-left: 0px; display: inline; margin-left: 0px; border-top: 0px; margin-right: 0px; border-right: 0px" title="OgAAANhwD-KMrbgKw_Zw3_pi_ferHg0c8PJsxfxIOmiFWYkltiHYzkICu8urLK8ehfwIwW3oXGTKYvR9H6e60oqDOHUAm1T1UH_hhNOjfYFhNgOQmt5-GuLWoWGf" border="0" alt="OgAAANhwD-KMrbgKw_Zw3_pi_ferHg0c8PJsxfxIOmiFWYkltiHYzkICu8urLK8ehfwIwW3oXGTKYvR9H6e60oqDOHUAm1T1UH_hhNOjfYFhNgOQmt5-GuLWoWGf" align="left" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgRlOJ0X6eMit7b2wIP7-1ubWkNSV_GOdmcoIJssr2Avi9jQ_Qne_N88GMWXbVG8M93PRd_cj2WzTTETd39EB6QkzIqy9UeaIsYz5mejG_3LqhthEJkRFp8NX_igh98i9-04VXZkBTU-hE//?imgmax=800" width="244" height="184" /></a> <a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiVaDxjy1W2MMvw43DlRwj3_rkTwRwBY-0HTuKjHZHJN21-fy23DJwi_nho9AaAOh-dMLSw5yjYze0VbgpZN1SgAXU_saV3W_Y8AjLkRGSUezAMNv4p2gDRCuAH59O4edeLwrauPRAF2-Q/s1600-h/OgAAAJmqfkGoo1r03s6rNpW4R01SjcW3mAEJa1RpGr1evGtks1sRzHcp5zUH8FxCQ7tzpD8k-SukIFLgHdjarKwM8iQAm1T1UCLFYNPjSa9sm2dJR5bMqCD0Qeq-%5B2%5D.jpg"><img style="border-bottom: 0px; border-left: 0px; display: inline; border-top: 0px; border-right: 0px" title="OgAAAJmqfkGoo1r03s6rNpW4R01SjcW3mAEJa1RpGr1evGtks1sRzHcp5zUH8FxCQ7tzpD8k-SukIFLgHdjarKwM8iQAm1T1UCLFYNPjSa9sm2dJR5bMqCD0Qeq-" border="0" alt="OgAAAJmqfkGoo1r03s6rNpW4R01SjcW3mAEJa1RpGr1evGtks1sRzHcp5zUH8FxCQ7tzpD8k-SukIFLgHdjarKwM8iQAm1T1UCLFYNPjSa9sm2dJR5bMqCD0Qeq-" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgfkIyd1PNWoJGrKg5QzPlKXwZuHnRykDRpmvgYBbSt4lpRX5irac8Km-36YGyDWHu6D1ICAoqYlmXX0JKukvlwdniOljoxLxRfR3JyVnOIy0xSAxhJTxRU2bhVsqXyWW2fgXiCR-p4is4//?imgmax=800" width="244" height="184" /></a> </p> <p>आपके अनुभव आपके प्रेरणाश्रोत और जर्मनी के बारे में कैसे हैं ?  जर्मनी के एकीकरण की  २० वीं वर्षगांठ पर आपके क्या विचार हैं ?  </p> राम त्यागीhttp://www.blogger.com/profile/05351604129972671967noreply@blogger.com10