हिंदी - हमारी मातृ-भाषा, हमारी पहचान

हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने के लिए अपना योगदान दें ! ये हमारे अस्तित्व की प्रतीक और हमारी अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम है !

मंगलवार, 16 नवंबर 2010

शोध का सोच और आत्मनिर्भरता पर प्रभाव - भाग १

मैं अपनी पिछली कई पोस्ट में लिख चुका हूँ कि भारत में शोध पर बहुत कम पैसा खर्च किया जाता है और उसका असर इस बात से ही दिखता है कि हम उच्च तकनीक की प्रणाली के लिए, रक्षा उपकरणों के लिए और बड़ी परियोजनाओं के क्रियान्वयन के लिए हमेशा से ही विदेशों पर निर्भर रहे हैं और निर्भरता के इन आकडों में विगत कई वर्षों से कोई कमीं नहीं आई है. अपरोक्ष रूप से आत्मनिर्भर न होना विकास में सबसे बड़ा बाधक है.

चीन और भारत दोनों ही आने वाले दशक की महाशक्ति बोले जा रहे हैं, चीन की प्रगती आर्थिक स्तर पर तो उन्नत है ही, चीन अन्य स्तरों पर भी भारत को पीछे छोड़ रहा है, चीन की तेल और रक्षा उपकरणों के लिए विदेशों पर निर्भरता बहुत कम है और इसका कारण है कि चीन ने अपने सकल घरेलु उत्पाद का एक बड़ा हिस्सा अनुसंधानों पर खर्च किया है,  कोई भी बाहर की कंपनी चीन में व्यवसाय तभी कर सकती है जब वह कुछ हिस्सा चीन के बौद्धिक विकास में लगाए ! यही हाल अमेरिका, जापान,  जर्मनी, इस्रायल और अन्य विकसित देशों का है.

नीचे उल्लेखित ग्राफ भारत और चीन के बीच सकल घरेलु उत्पाद का शोध पर खर्च के प्रतिशत की तुलना दर्शाता है :

image17

पुराने आकंडो पर नजर दौडाई जाए तो पता चलता है कि जो देश विकसित है वो शोध और अनुसंधानों पर खर्च के प्रति हमेशा से ही गंभीर रहे, २००४ के आकंडो के अनुसार नीचे दिए गए पांच देश सकल घरेलु उत्पाद के ५ प्रतिशत के लगभग शोध पर खर्च कर रहे थे और इसलिए ही ये सभी  रक्षा उपकरणों और अन्य उच्च तकनीक के मामले में आत्मनिर्भर है :

 

image

इस श्रेणी में भारत का क्रम बहुत नीचे आता है क्योंकि २००४ में भारत अपने सकल घरेलू उत्पाद का सिर्फ ०.७ प्रतिशत के आसपास शोध कार्यक्रमों पर खर्च कर रहा था जो कि २००७ तक सिर्फ ०.८ प्रतिशत हो पाया.  ये आंकड़े इतनी तेजी से विकास कर रहे देश के लिए निराशाजनक है,  मनमोहन सिंह जी से अर्थशाश्त्र के विशेषज्ञ होने के नाते ये अपेक्षित नहीं था.

इस साल के शुरू में प्रथ्वीराज चव्हाण (जो कि उस समय विज्ञान और तकनीकी विभाग में राज्य मंत्री थे) ने भारत सरकार की और से एक बयान में कहा था कि इस साल भारत सरकार शोध पर खर्चे को  सकल घरेलु उत्पाद के १ प्रतिशत से बढाकर २ प्रतिशत पर लाना चाहेगी, इसका मतलब कांग्रेस के सरकार ने पिछले ६० सालों में ये जाकर २०१० के जनवरी में सोच पाया कि बाकी के विकसित देश आत्मनिर्भर क्यों है और हम क्यों अपना पैसा और बहुमूल्य प्रतिभाएं विदेशो को खोये जा रहे हैं !!

"Govt to increase its expenditure on R&D from 1% of GDP to 2%: Prtihviraj Chavan

Friday, 08 January 2010

New Delhi: We know that the next wealth generation and employment generation opportunity will come from science. Therefore the Government plans to increase its expenditure on R&D from 1% of GDP to 2%, said Dr Prithviraj Chavan, Minister for Science & Technology.”

गौरतलब है कि मुझे भारत सरकार से उम्मीद नहीं है  कि वो २ प्रतिशत का आंकड़ा हासिल कर पायेंगे, सबसे बड़े रोडे हैं हमारी तत्काल परिणाम पाने की सोच और लाल फीताशाई का नए विकास कार्यक्रमों में रोडे अटकाना और इसका परिणाम ये होता है कि आज भी उच्च तकनीक के लिए शिक्षा के लिए हमारे यहाँ के लोगों को विदेशों का ही रुख करना होता है, बड़े बड़े उद्योगपति,  राजनेता लोग तो अपने बच्चों को पैसे का बल पर बाहर भेजकर इस काम की भरपाई कर देते हैं पर आम नागरिक क्या करे ? जब तक शोध के जरिये हम आम विद्यालयों में दी जाने वाली शिक्षा को मजबूत नहीं करेंगे तब तक बुनियादी तौर पर शिक्षा के स्तर को उन्नत और उच्च कोटि की बनाना संभव नहीं है !

ऐसा मुझे तो कई बार अनुभव हुआ है कि हम लोग जो सरकारी विद्यालयों में पड़े हैं, मेहनत से अपनी मंजिल तो बना पाए पर हर मोड पर अब कठिन परिश्रम ही करना पडता है, सोच समस्या के हिसाब से विकसित नहीं हो पायी, सेन्स ऑफ ह्यूमर को विकसित करने के लिए कोई कदम नहीं उठाये गए और हमने सिर्फ परीक्षा में अच्छे अंक लाने के लिए पढाई करी, जबकि पढाई समस्या को आगे रखकर उसके हल की दिशा में होनी चाहिए थी !

कुछ दिन पहले यहाँ के एक बच्चों के म्यूजियम द्वारा निकुंज के प्राथमिक विद्यालय में पहली और दूसरी कक्षा के विद्यार्थियों के लिए गणित पर एक कार्यशाला रखी गयी जिसमें विद्यालय के बाद शाम को बच्चे को अपने माता-पिता के साथ आकर भाग लेना था,  मैं भी बड़ा उत्सुक था इसलिए समय से ही निकुंज के साथ विद्यालय पहुँच गया !  

(जारी …)

भारत आने का समय नजदीक आ रहा है,  अगले सप्ताह इस समय शिकागो के अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर भारत के लिए उड़न खटोला पकड़ रहे होंगे - सबसे मिलने का बेसब्री से इन्तजार है !!

20 टिप्‍पणियां:

बाल भवन जबलपुर ने कहा…

वाह उपयोगी अध्ययन है
बधाई

Archana Chaoji ने कहा…

विचारणीय़ आलेख...बच्चों की समस्याओं का निराकरण जरूरी है।
आपके पिताजी का कार्य अनुकरणीय है,(राजू के बारे में )बोनस पाकर खुशी हुई.टिंगू मास्टर(बेटा है या बेटी नहीं पता ) बधाई के पात्र हैं,दोनो को स्नेहाशीष...

निठल्ला ने कहा…

घरेलु उत्पाद का एक बड़ा हिस्सा तो नेताओं के पेट में चला जाता है जो बच जाता है उससे जो विकास हो सकता है वो भारत में हो रहा है। उदाहरण के लिये कॉमनवेल्थ के लिये जितना पैसा खर्च किया गया उसमें से ७० प्रतिशत नेताओं और ठेकेदारों के पेट में गया होगा और बाकि से कॉमनवेल्थ के संसाधनों का निर्माण।

राम, अच्छा आलेख है।

ZEAL ने कहा…

.

चीन वास्तव में भारत को पिछड़ रहा है। कारण है , हमारे अन्दर शायद लगन की कमी है , और सरकार से शोध के लिए जरूरी अनुदान एवं सपोर्ट भी नहीं मिलता। प्रोग्रेसिव विचारधारा की ही कमी लगती है।

.

शिक्षामित्र ने कहा…

हमारे यहां कई क्षेत्रों में हुए सराहनीय प्रयास निजी क्षेत्रों की अथवा व्यक्तिगत स्तर पर हुई पहलों का नतीज़ा हैं। अगर यही हाल रहा,तो एक दिन विकास की नींव हिल जाएगी।

राम त्यागी ने कहा…

@अर्चना जी, धन्यवाद, दोनों ही लडके हैं :)

@दिव्या जी, लगन तो फिर भी है हम लोगों में इसलिए ही परिश्रम के बल पर भारतवाशी विश्व में झंडा ऊँचा किये हुए हैं पर अब सरकारी उदासीनता के चलते देश की सकल घरेलु उत्पाद की कमाई सब गड्डे में जा रही है , प्रगति के साथ विकास जरूरी है !

abhi ने कहा…

अभी युहीं एक बार देख के जा रहा हूँ...वापस आता हूँ शाम तक फिर से इधर...बहुत अच्छी जानकारी दी है आपने...ध्यान से पढ़ना पड़ेगा....

राम त्यागी ने कहा…

@शिक्षामित्र जी, और अगर सरकार की सुने या जो मैंने प्रथ्वीराज चव्हाण वाले वक्तव्य की लिंक दी है उस पर जाएँ तो सरकार चाहती है की निजी क्षेत्र को ही शोध पर पैसा खर्च करना चाहिए - कब तक ये सरकारें मौलिक और संवैधानिक जिम्मेदारियों से बचती रहेंगी ?

राम त्यागी ने कहा…

@अभिषेक, जी इस बार ये ज्वलंत मुद्दा , जद्दोजहद कुछ प्रमाणों के साथ कई किश्तों मैं लाने का विचार हैं - समय की भी कमी है इस वजह से एक बार में उतना ही दिया है जितना में लिख सकूं और पाठक पढ़ सके -- शाम को एक बढ़िया सी टिप्पणी का इन्तजार है फिर - चाय की प्याली के साथ :)

राम त्यागी ने कहा…

@निठल्ला जी, और ये नेता लोग जो ८० प्रतिशत को खा जाते हैं, बाद स्तीफा देकर अमर और शहीद हो जाते हैं - उनके रिज्यूमे का वजन और बढ़ जाता है :)

Arun sathi ने कहा…

यथार्थ.. पर कौन सुनेगा..

ASHOK BAJAJ ने कहा…

आपका लेख अच्छा लगा .
आपको देवउठनी के पावन पर्व पर हार्दिक बधाई !!!

निर्मला कपिला ने कहा…

आपकी इस बात से पूरी तरह सहमत हूँ
परिश्रम के बल पर भारतवाशी विश्व में झंडा ऊँचा किये हुए हैं पर अब सरकारी उदासीनता के चलते देश की सकल घरेलु उत्पाद की कमाई सब गड्डे में जा रही है । धन्यवाद। यात्रा शुभ हो।

राम त्यागी ने कहा…

@अरुण, अगर यही डर रहा कि कौन सुनेगा तो फिर तो कभी आजादी मिलेगी ही नहीं - थोडा थोडा करके चिंगारी भड़केगी तभी कुछ होगा , जरूर होगा ! परिवर्तन आ भी रहा है पर धीमी प्रगती से - बस राजनितिक और सरकारी सक्रियता की जरूरत है !

राम त्यागी ने कहा…

@अशोक जी , आपको भी देवउठनी और ईद की बहुत बहुत शुभकामनायें !

@निर्मला जी, आपकी शुभकामनाओं के लिए धन्यवाद !!

राम त्यागी ने कहा…

@अशोक जी , आपको भी देवउठनी और ईद की बहुत बहुत शुभकामनायें !

@निर्मला जी, आपकी शुभकामनाओं के लिए धन्यवाद !!

कडुवासच ने कहा…

... saarthak abhivyakti ... behatreen post !

shikha varshney ने कहा…

एकदम सहमत .इसलिए तो पढ़लिखकर हमारे होनहार देश से बाहर चले जाते हैं.

राम त्यागी ने कहा…

@शिखा जी, जरूर, अगर देश में जिम्मेदारियाँ दी जाएँ और कैसे पलायन रोका जाए इस पर भी शोध हो तो कितना भला हो जाये देश का ...

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

सटीक विश्लेषण... इन आंकड़ों को समय रहते समझने की दरकार है......