हिंदी - हमारी मातृ-भाषा, हमारी पहचान

हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने के लिए अपना योगदान दें ! ये हमारे अस्तित्व की प्रतीक और हमारी अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम है !

रविवार, 10 अक्तूबर 2010

वर्धा और बिरयानी घर

न्यूयार्क के फायनेन्शियल केंद्र के बीचों बीच लगे खाने के ठेलों के बारे में पहले भी लिख चुका हूँ, इस गुरुवार को एक दोस्त जब फिर से इधर खींच ले गया तो अचानक से निगाह पडी एक ठेले पर - जिस पर हिंदी में उसका नाम लिखा था, हिंदी प्रेमी को तो उससे प्रभावित होना ही था !  उसी से शाकाहारी बिरयानी ली गयी चटपटे मसालों के साथ ! इन ठेले वालों पर आर्थिक मंदी का असर न्यूयार्क में कभी भी नहीं दिखा,  लंच के समय पर फलाफल इत्यादि के लिए लगी लाईनें कभी कम नहीं देखी - जब भी उधर जाना हुआ ! क्यों होंगी  - सस्ता - मसालेदार और चटपटा कौन नहीं खाना चाहता - चाहे लोग कितना भी स्वास्थ्य के प्रति जागरूक हों, एक न एक दिन तो न्यूट्रिसनविहीन सबको चलता है !

photo

चटपटे से ध्यान आया कि ब्लॉग्गिंग में भी अपने ब्लॉग को हिट करने को लेकर ऐसे चटपटे मसाले परोसने वाले ब्लॉग खूब चलते हैं, और चलेंगे भी, वैसे भी ब्लॉग्गिंग तो मन की अभिव्यक्ति का एक लाइव माध्यम जो है,  लोग जो मन में आया लिख सकते हैं, कुछ शौक के लिए तो कुछ कमाई के लिए  ! 

वर्धा में भी हिंदी ब्लोग्गिंग के ऊपर एक कार्यशाला चल रही है जिसमें ब्लोग्गिंग के मापदंड तैयार करने के बात हो रही है,  कुछ लोगों ने थोडा बहुत गंभीर लिख दिया तो लोग उससे देश सुधार की उम्मीद लगा बैठे, क्या ये संभव है  ? क्या ब्लोग्गिंग पर आचार संहिता लगाना व्यवहारिक है ?  या ये सब करना एक मजाक है - मेरे हिसाब से से ये समय और पैसे की बर्बादी है !  ब्लोग्गिंग एक ऐसी विधा है जिसे लोग अपने मन की बात खुले में जब चाहे तब एक सार्वजनिक मंच पर बिना किसी प्रतिबन्ध और दबाब के बयाँ करने के लिए उपयोग में लाते हैं !  इससे देश सुधार कैसे हो ?  देश के सुधार के लिए पहले जो हम सबको करना होगा - वो है अपने वोट का सही उपयोग - एक प्रजातंत्र में साफ सुथरे प्रतिनिधि भेजना सबसे अहम कर्तब्य होता है, क्या वह हम सब तथाकथित बुद्धिजीवी लोग करते हैं या कर रहे हैं?  तो क्या फिर ये कार्यशाला इस बात पर केंद्रित नहीं होना चाहिए कि कैसे हिंदी ब्लोग्गिग को  हिंदी लिखने वालों के लिए सुलभ और उपयुक्त बनाए जाए, और कैसे  इसके बढावे के लिए प्रायोजक ढूंढें जाए जो अपने ads से और लिखने वालो को एक लोभ से ही सही - पर प्रेरित जरूर करे !    ब्लॉग्गिंग के भी क्या मापदंड बनाने ! हम हिन्दुस्तानी लोग बहुत भावुक होते हैं और इस लिए हर चीज में संघठन और समूह पहले बनाने लगते हैं !  ब्लोग्गिंग में भी यही कुछ कभी कभी होता रहता है, लिखने से ज्यादा लोग अपने आप को एक ग्रुप विशेष का मुखिया बनाने की मुहिम में जुड जाते हैं !  और कुछ लोग अपने आप को ब्लॉग्गिंग का प्रतिनिधि और शुभचिंतक समझ हर इन समारोहों में शिकरत की उम्मीद पाल बैठते हैं और फिर परेशान भी होते हैं जब अपेक्षाएं खरी नहीं उतरती !!

हिंदी ब्लॉग्गिंग हो या किसी और भाषा की ब्लॉग्गिंग, उसे नेतृत्व की कोई जरूरत नहीं और ना ही कुछ लोग किसी स्वतंत्र ब्लॉग्गिंग का प्रतिनिधित्व या विरोध कर सकते हैं, ये तो स्वतंत्र छाप है आपके व्यक्तित्व की, यहाँ भी एक विशेष परिभाषा में आप बंधकर कैसे रह सकते हैं ?  कुछ लोग फोटो छपने से खुश तो कुछ सिर्फ बुलावा आने पर खुश, और कुछ ऐसे भी हैं जो न बुलाये जाने पर दुखी भी है और कुछ पारदर्शिता के नाम पर सरकारी खजाने को लुटाए जाने पर दुखी हैं तो कुछ इसके संयोजक बन वाहवाही लूटने में खुश ! वही सब जो नेता करते हैं, – गुटबाजी - वही हम करने लगे तो फिर ये ब्लॉग्गिंग निरपक्ष नहीं, ये फिर ब्लोग्गिंग नहीं , दर्पण नहीं आपने व्यक्तित्व का - बल्कि एक दिखावा है  !

लोगों के पास इतना समय कहाँ से आता है व्यर्थ की गुटबाजी में संलग्न रहने का, मैं तो लिखता हूँ जो मन में आता है इसे उकरने को !  इन मठों का सदस्य बनने की दरकार नहीं है मेरी !

वैसे बिरयानी घर का ठेला लगाने वाला बांग्लादेश का रहने वाला है, पर बिरयानी बड़ी मजेदार बनायी उसने बिलकुल देशी - चटपटी ! 

देश सुधार तब कर पायेंगे जब खुद को एक आदर्श बना कर जी पाओगे !

फिर भी --- आयोजको को बधाई ! और दुखियारों को सलाह - एक और आयोजन कर लो :-))

37 टिप्‍पणियां:

abhi ने कहा…

अरे सर, हम तो ब्लॉग्गिंग बस दो कारणों से करते हैं, एक तो जो दिल किया वो लिखने का मन करता है, और दूसरा ये की कुछ लोगों के अनुभव पढ़ सकूँ....बाकी और कोई कारण नहीं...

बहुत सही लिखा है आपने...

लेकिन एक गलत काम कर दिया न, कमसे कम बिरयानी का एक फोटो तो ले लेते...हम वही फोटो देख के खुश हो जाते :)

डॉ टी एस दराल ने कहा…

न्यूयार्क में भी ठेला ! हैरानी है --लेकिन विश्वास है कि यहाँ जैसे गंदे नहीं होते होंगे ।

ब्लोगिंग में भी कुछ गंदगी नज़र आती है । उसे साफ़ कर देने में कोई हानि नहीं । यदि हो सके तो । बाकि तो अपनी इच्छा है , कुछ भी लिखें । इसके लिए किसी को टर्म्स डिक्टेट करने की ज़रुरत कहाँ है ।

Smart Indian ने कहा…

लिखने से ज्यादा लोग अपने आप को एक ग्रुप विशेष का मुखिया बनाने की मुहिम में जुड जाते हैं !
सत्य वचन!

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

विचारणीय पोस्ट!

राज भाटिय़ा ने कहा…

फिर भी --- आयोजको को बधाई ! और दुखियारों को सलाह - एक और आयोजन कर लो :-))
चलिये आप की बात मान कर हम एक आयोजन( ब्लांग मिलन ) कर रहे हे अगले महीने, सुचना जल्द ही आप को पराया देश पर दिखेगी,

भवदीप सिंह ने कहा…

ठेला चाहे, ग्वालियर में हो, दिल्ली में हो, बम्बई में हो, न्यू योर्क में हो, या फिर चिकागो में हो.. .. ठेले पर खाने का अपना ही स्वाद है..

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

हमें तो कई ब्लॉग पुरोधाओं के त्रिविमीय चित्र देखने को मिल गये। सच में आनन्द आ गया। हाँ, बस बिरयानी मिस हो गयी।

राम त्यागी ने कहा…

@प्रवीण जी - आप भी वर्धा में थे क्या ?

bhuvnesh sharma ने कहा…

चाट देखकर मुंह में पानी आ गया :)

संजय बेंगाणी ने कहा…

अंतिम पंक्ति मजेदार व मारक है. :)

प्रवीण त्रिवेदी ने कहा…

फिर भी --- आयोजको को बधाई ! और दुखियारों को सलाह - एक और आयोजन कर लो :-))
जय हो !

डॉ महेश सिन्हा ने कहा…

दुखियारों को सलाह - एक और आयोजन कर लो

राम त्यागी ने कहा…

@राज भाटिया जी , आपका पोस्ट पढ़ा पर लग रहा है हमारे और आपके आने का अंतराल अलग अलग हैं !


मास्साब और संजय जी - धन्यवाद , आप इधर भी झांके :)

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी ने कहा…

हिंदी ब्लॉगिंग के बारे में सोचने का समय आपने ठेले पर बिरयानी खाते-खाते निकाल लिया। बड़ा उपकार किया। दूसरा कोई समय ही कहाँ है इसके बारे में सोचने के लिए।

घर बैठे एक ऐसा साधन मिल गया है कि जब जैसे चाहो प्रयोग कर लो। जिसकी चाहो पल में ऐसी-तैसी कर दो। न किसी गहराई में जाने की जरूरत है, न किसी से विचार-विनिमय की जरूरत है। बस, ज्यों ही प्रेशर महसूस हो हाजत से निबट लो। आराम से घर में बैठकर वेस्टर्न स्टाइल कमोड पर।

इस सुविधाजनक काम से अलग यदि कोई चार लोगों को जोड़ने का काम करता है, पचास पढ़े-लिखे विद्यार्थियों को कार्यशाला में बुलाकर उन्हें ब्लॉग बनाने और चलाने की तकनीकी जानकारी दिलाता है, इस माध्यम को सकारात्मक दिशा में सामाजिक परिवर्तन के लिए कैसे प्रयोग किया जा सकता है इसपर चर्चा कराता है, आभासी दुनिया के चेहरों को एक-दूसरे के सामने लाकर मिलवाता है, तो इससे उस आराम में खलल पड़ता है।

फिर तो आपकी शिकायत जायज ही है।

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी ने कहा…

@तो क्या फिर ये कार्यशाला इस बात पर केंद्रित नहीं होना चाहिए कि कैसे हिंदी ब्लोग्गिग को हिंदी लिखने वालों के लिए सुलभ और उपयुक्त बनाए जाए, और कैसे इसके बढावे के लिए प्रायोजक ढूंढें जाए जो अपने ads से और लिखने वालो को एक लोभ से ही सही - पर प्रेरित जरूर करे !

आपने यदि ध्यान दिया होता तो पता चल जाता कि वर्धा कार्यक्रम का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य यह भी था। पचास लोगों को हिंदी ब्लॉगिंग की बेसिक्स बतायी गयीं। हिंदी टाइप करने से लेकर ब्लॉग सजाने-सवाँरने तक।

गुट बनाना एक आदम प्रवृत्ति है। इसलिए आपको ऐसा ही दिख रहा होगा। जिनकी साँस ही गुटबाजी में बसती हो वे इसके बाहर सोचें तो कैसे?

वर्ना मुझे तो कोई गुट यहाँ बनता नहीं दिखा। बहुत से लोग यहाँ पहली बार एक दूसरे के बारे में जान पाये। नितांत अपरिचित लोग भी यहाँ आये। इस कार्यक्रम की सूचना नेट से पाकर कोई भी सम्पर्क कर सकता था और आने के लिए स्वतंत्र था। ऐसे नये लोग आये भी। आप उनके नाम खुद पता करिए। आसानी से मिल जाएंगे।

राम त्यागी ने कहा…

धन्यवाद कि आप मेरे ब्लॉग पर आये !

मुझे कतई बुरा नहीं लगा आपकी प्रतिक्रिया पर क्यूंकि ये आपके विचार है और आपकी सोच के अनुरूप ही होंगे, पर आपके विचारों को में सकारात्मक दिशा में लेकर उन पर अपनी प्रतिक्रिया जरूर दूंगा शालीनता से !

अगर आपकी सोच व्यापक होती तो आप मेरे ब्लॉग पर पहले जरूर आते, पर आप सिर्फ कुछ ही ब्लोगों पर जाते हैं और यही मेरी शिकायत थी कि जब आप अपने आप को ब्लॉग्गिंग का प्रतिनिधि बताते हैं तो सोच का और अपने पढने का दायरा बढाईये, इससे पारदर्शिता अपने आप आएगी ! खैर हर किसी का अपना एक समूह होता है और पढने का विषय का शौक भी !!

पहली बात में बिरयानी खाने लंच के समय गया था और उस आम आदमी के ठेले को यहाँ डिस्कस करते हुए मुझे कोई हिचक नहीं , अगर हर कोई आचार संहिता की बात करने लगेगा तो विभिन्न विषयों पर अपने विचार कौन व्यक्त करेगा ! पुलिसिया काम तो जमींदार लोग करते हैं !

अगर आपने मेरा ब्लॉग पहले पढ़ा होता या इस पोस्ट के साथ साथ और भी लेख पढ़े होते तो शायद आप मेरी सोच को एक कमरे का नजरिया नहीं देते ! में एक गाँव से पढकर - जब मेरे ज्यादार साथी कॉन्वेंट में पड़ रहे होंगे - अभी कुछ ही साल पहले यहाँ की तरफ अपनी मेहनत से कुछ समय के लिए आय हुआ हूँ , उससे मेरी सोच कतई प्रभावित नहीं हुई है , हो सकता कंगूरे ऐसे हों पर नीव तो अभी ग्रामीण भारत में ही है और शायद वो आप देखते जब और मुझे पढते !

रही बात स्वच्छंदता से लिखने की तो , ब्लॉग क्या आप सिर्फ वाहवाही के लिए लिखते हैं ? ये कोई ससुराल नहीं जहाँ पर सब वाहवाही में कुश शब्द लिखते मिले , ये सार्वजनिक मंच है जहाँ पर हर कोई एक मौलिक दायरे में अपने मन के बात रखता है !

आपने सिर्फ हिंदी के हस्ताक्षरों को बुलाकर भारत की राजनितिक दलों वाली मानसिकता का परिचय दिया , साथ ही इस आयोजन को एक व्यक्तिगत आयोजन मान कर आप चले और आलोचना आपको मिर्ची कि तरह लगी , -- जैसे कि कल मैंने आपको आपके ब्लॉग पर लिखा था कि चलो अच्छा हुआ आपने स्पष्टीकरण दिया , एक सार्वजनिक काम की जिम्मेदारी आपको और भी जिम्मेदारी देती है और आपको हर तरह के प्रश्नों के जबाब के लिए तैयार रहना चाहिए - खैर आप खुद पढ़े लिखे प्रबुद्ध समझदार हैं ! पर यकीन मानिए कि गहराई में जाने का ठेका सिर्फ इस आयोजन के जरिये आपने ही नहीं ले रखा या आपके दायरे के अन्य लोगों ने - हर किसी का अपना अपना सोचने का तरीका है और उस हिसाब से ही हर कोई अपनी बात रखता है !

एक बात बस समझ में नहीं आती कि आप इतना इस बात को इतनी नकारात्मक सोच से क्यों सोच रहे हो ? कोई भी आदमी सम्पूर्ण नहीं इसलिए कोई कमी है तो अगली बार उसको ना दुहराया जाए - ऐसा भी तो सोचा जा सकता है - अपने आलोचकों को हीँन बताकर क्या आप कमियों को छुपा दोगे !

मेरे लिए अभी आप एक प्रबुद्ध इंसान हैं , कमी किसमें नहीं होती ! आशा है आप मेरी अन्य पोस्टों , मेरी प्रतिक्रिया अपने ब्लॉग पर और इस प्रतिक्रिया को पढकर फिर से ठन्डे दिमाग से मेरे उठाये प्रश्नों को तरजीह देंगे ना कि इससे अपने रक्तचाप को बढायेंगे !

आशा है कि आप ब्लॉग पर आते रहेंगे और अपनी फीडबैक से मेरे लेखन को उत्कृष्ट करने में मेरी मदद करेंगे ! और मैं भी कोशिश करूँगा कि जो स्वछंद हिकार मौलिक दायरे में लिखता रहूँ !

विचारों की टकराहट और मुद्दों कि सुलगाहट में - आराम का खलल , या प्रेसर आने से हाजत में जाना - पता नहीं कैसे आपको सूझे !

संयम और विवेक से अगर बहस हो तो उसे सार्थक बहस कहते हैं ! कुतर्क प्रबुद्धों को शोभा नहीं देते !!

RISHABHA DEO SHARMA ऋषभदेव शर्मा ने कहा…

तनिक तुर्शी भले आ गई हो पर बहस यह भी सार्थक है जी!

honesty project democracy ने कहा…

संयम और विवेक से अगर बहस हो तो उसे सार्थक बहस कहते हैं ! कुतर्क प्रबुद्धों को शोभा नहीं देते !!


आपके इसी वाक्य में आपके सभी प्रश्नों का जवाब छिपा है अगर आप जवाब तलाशना चाहें तब ..? एक बात और कहूँगा बिना उद्देश्य के कोई भी एक कदम नहीं चलता है यह अलग बात है की उद्देश्य इंसानियत के कर्तव्यों के साथ हो तो उद्देश्य रहता है और इंसानियत के दायरे से निकल जाय तो उसे स्वार्थ,लोभ और लालच कहा जाता है ..वर्धा सम्मलेन हर दृष्टिकोण से इंसानियत और हिंदी को ब्लोगिंग से जोड़ने के उद्देश्य में बेहद सफल रहा ..हाँ कुछ मानवीय कमियां हो सकती है जिसे भविष्य में सुधारने की प्रक्रिया को ईमानदारी से हर किसी के सुझाव पर अमल कर अपनाया जा सकता है ...

Arvind Mishra ने कहा…

बिरयानी कैसी बनती है ,बनाता है उस पर निर्भर करती है एक विचारणीय साम्य की इन्गिती

राम त्यागी ने कहा…

@अरविन्द मिश्रा जी, गुरूजी अब आपको बिरयानी की खुसबू आ पायी है :) वैसे बहुत कुछ कह दिया एक लाइन में :-)

@honesty project democracy, धन्यवाद ! वैसे कोई सुनना ही नहीं चाहता कमियों के बारे में , हर कोई वाहवाही के फूले गुब्बारे पर बैठा है ...चलो देखते हैं कब तक उडता है !! इसमें कोई दो राय नहीं कि आयोजन से तो लाभ ही होता है और विश्वास है कि ये आयोजब भी सफल रहा है , आयोजक बधाई के पात्र है !

राम त्यागी ने कहा…

धन्यवाद ऋषभ जी बहस के विश्लेषण के लिए :)

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

@हम हिन्दुस्तानी लोग बहुत भावुक होते हैं और इस लिए हर चीज में संघठन और समूह पहले बनाने लगते हैं ! ब्लोग्गिंग में भी यही कुछ कभी कभी होता रहता है, लिखने से ज्यादा लोग अपने आप को एक ग्रुप विशेष का मुखिया बनाने की मुहिम में जुड जाते हैं ! और कुछ लोग अपने आप को ब्लॉग्गिंग का प्रतिनिधि और शुभचिंतक समझ हर इन समारोहों में शिकरत की उम्मीद पाल बैठते हैं और फिर परेशान भी होते हैं जब अपेक्षाएं खरी नहीं उतरती !!

ब्लागिंग स्वतंत्र है जिसे किसी भी दायरे में बांधना मेरे हिसाब से ठीक नहीं है। हम तो ब्लागर मित्रों से मिलते ही रहते हैं। आभासी दुनिया से बाहर निकल कर आमने-सामने मिलना अपुर्व आनंद देता है। हम तो सिर्फ़ इसी बात के हिमायती हैं कि मिलते जुलते रहो,आनंद लेते रहो। लड़ने-झगड़ने के अड़ोसी पड़ोसी ही काफ़ी हैं।:)

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

बिरयानी की महक दूर तक जा रही है,कभी मिलेंगे तो अवश्य स्वाद लेंगे।

विजयादशमी पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं।

Udan Tashtari ने कहा…

कई गैलन पानी बह निकला, तब आ पाये. पूरा वाकिया पढ़ा.

राम त्यागी ने कहा…

समीर जी, सिर्फ बिरयानी परोसी गयी , पानी अभी कहाँ ....पर आप तक खुसबू बड़ी देर से पहुंची :)

विनोद शुक्ल-अनामिका प्रकाशन ने कहा…

"हिंदी ब्लॉग्गिंग हो या किसी और भाषा की ब्लॉग्गिंग, उसे नेतृत्व की कोई जरूरत नहीं और ना ही कुछ लोग किसी स्वतंत्र ब्लॉग्गिंग का प्रतिनिधित्व या विरोध कर सकते हैं, ये तो स्वतंत्र छाप है आपके व्यक्तित्व की, यहाँ भी एक विशेष परिभाषा में आप बंधकर कैसे रह सकते हैं ? कुछ लोग फोटो छपने से खुश तो कुछ सिर्फ बुलावा आने पर खुश, और कुछ ऐसे भी हैं जो न बुलाये जाने पर दुखी भी है और कुछ पारदर्शिता के नाम पर सरकारी खजाने को लुटाए जाने पर दुखी हैं तो कुछ इसके संयोजक बन वाहवाही लूटने में खुश ! वही सब जो नेता करते हैं, – गुटबाजी - वही हम करने लगे तो फिर ये ब्लॉग्गिंग निरपेक्ष नहीं, ये फिर ब्लोग्गिंग नहीं , दर्पण नहीं आपने व्यक्तित्व का - बल्कि एक दिखावा है !
x x x
लोगों के पास इतना समय कहाँ से आता है...
x x x
देश सुधार तब कर पायेंगे जब खुद को एक आदर्श बना कर जी पाओगे !

फिर भी --- आयोजको को बधाई ! और दुखियारों को सलाह - एक और आयोजन कर लो)"


मैं भी आपकी बातों से सहमत हूं। आलोचकों को एक आयोजन अवश्य कर्ना चाहिये।

राम त्यागी ने कहा…

Thanks Vinod jee !

Priti Krishna ने कहा…

Priti sagar..That fraud lady will coordinate the blogging in wardha..who has been declared Literary writer without any creative work..who has got prepared fake icard of non existing employee..surprising

Priti Krishna ने कहा…

HINDI BLOGGING MEIN BHI AJEEB TAMASHE CHAL RAHI HAI..MAHATMA GANDHI ANTARRASHTRIYA HINDI VISHWAVIDYALAYA , WARDHA KE BLOG PER ENGLISH KI EK POST PER PRITI SAGAR NE EK COMMENT POST KI HAI…AISA LAGA KI POST KO SABSE JYADA PRITI SAGAR NE HI SAMJHA..PER SACHHAI YE HAI KI PRITI SAGAR NA TO EK LINE BHI ENGLISH LIKH SAKTI HAIN AUR NA HI BOL SAKTI HAIN…BINA KISI LITERARY CREATIVE WORK KE PRITI SAGAR KO UNIVERSITY KI WEBSITE PER LITERARY WRITER BANA DIYA GAYA…PRITI SAGAR NE SUNITA NAAM KI EK NON EXHISTING EMPLOYEE KE NAAM PER HINDI UNIVERSITY KA EK FAKE ICARD BANWAYA AUR US ICARD PER SIM BHI LE LIYA…IS MAAMLE MEIN CBI AUR CENTRAL VIGILECE COMMISSION KI ENQUIRY CHAL RAHI HAI.. MEDIA KE LOGON KE PAAS SAARE DOCUMETS HAI AUR JALDI HI YEH HINDI UNIVERSITY WARDHA KA YAH SCANDAL NATIONAL MEDIA MEIN HIT KAREGA….AISE FRAUD BLOGGERS SE NA TO HINDI BLOGGING KA BHALA HOGA , NA TECHNOLOGY KA AUR NA HI DESH KA…KYUNKI GANDI MACHLI KI BADBOO SE POORA TAALAB HI BADBOODAAR HO JAATA HAI

राम त्यागी ने कहा…

प्रीती जी, मुझे इस बारे में कोई जानकारी नहीं है !

Priti Krishna ने कहा…

67Send me your email id and i will send u all the documents . further u can get the information by filing RTI in CBI and Central Vigilance Commission . the fake id along with subsequent id is available at Knowledge Park , Mumbai office of Reliance Communications... Dekhte jaaiye Ram ji

Priti Krishna ने कहा…

Aapko pata hai aaj kal Priti sagar ke naam se aamantran bhi wardha mein raj kishore ji hi likh rahe hain...Apahij ko baisakhi de kar kitne din chalaiyega..Blogging na hui Sarkaar dwara sponsored tamasha ho gai ...kisi bhi bina padhe likhe ko Minister bana do... aapko pata hai ! Literary Writer wale maamle mein Central information Commision ne case register kar rakha hai..I can give u the reference of CIC ...soon the matter is coming for hearing in CIC...Hindi ko aise hi logon ne badnaam kar rakha hai...

Priti Krishna ने कहा…

Lagta hai Mahatma Gandhi Hindi Vishwavidyalaya men saare moorkh wahan ka blog chala rahe hain . Shukrawari ki ek 15 November ki report Priti Sagar ne post ki hai . Report is not in Unicode and thus not readable on Net …Fraud Moderator Priti Sagar Technically bhi zero hain . Any one can check…aur sabse bada turra ye ki Siddharth Shankar Tripathi ne us report ko padh bhi liya aur apna comment bhi post kar diya…Ab tripathi se koi poonche ki bhai jab report online readable hi nahin hai to tune kahan se padh li aur apna comment bhi de diya…ye nikammepan ke tamashe kewal Mahatma Gandhi Hindi Vishwavidyalaya, Wardha mein hi possible hain…. Besharmi ki bhi had hai….Lagta hai is university mein har shakh par ullu baitha hai….Yahan to kuen mein hi bhang padi hai…sab ke sab nikamme…

Priti Krishna ने कहा…

Praveen Pandey has made a comment on the blog of Mahatma Gandhi Hindi University , Wardha on quality control in education...He has correctly said that a lot is to be done in education khas taur per MGAHV, Wardha Jaisi University mein Jahan ka Publication Incharge Devnagri mein 'Web site' tak sahi nahin likh sakta hai..jahan University ke Teachers non exhisting employees ke fake ICard banwa kar us per sim khareed kar use karte hain aur CBI aur Vigilance mein case jaane ke baad us SIM ko apne naam per transfer karwa lete hain...Jahan ke teachers bina kisi literary work ke University ki web site per literary Writer declare kar diye jaate hain..Jahan ke blog ki moderator English padh aur likh na paane ke bawzood english ke post per comment kar deti hain...jahan ki moderator ko basic technical samajh tak nahi hai aur wo University ke blog per jo post bhejti hain wo fonts ki compatibility na hone ke kaaran readable hi nain hai aur sabse bada Ttamasha Siddharth Shankar Tripathi Jaise log karte hain jo aisi non readable posts per apne comment tak post kar dete hain...sach mein Sudhar to Mahatma Handhi Antarrashtriya Hindi Vishwavidyalaya , Wardha mein hona hai jahan ke teachers ko ayyashi chod kar bhavishya mein aisa kaam na karne ka sankalp lena hai jisse university per CBI aur Vigilance enquiry ka future mein koi dhabba na lage...Sach mein Praveen Pandey ji..U R Correct.... बहुत कुछ कर देने की आवश्यकता है।

Priti Krishna ने कहा…

महोदय/महोदया
आपकी प्रतिक्रया से सिद्धार्थ जी को अवगत करा दिया गया है, जिसपर उनकी प्रतिक्रया आई है वह इसप्रकार है -

प्रभात जी,
मेरे कंप्यूटर पर तो पोस्ट साफ -साफ़ पढ़ने में आयी है। आप खुद चेक कीजिए।
बल्कि मैंने उस पोस्ट के अधूरेपन को लेकर टिप्पणी की है।
ये प्रीति कृष्ण कोई छद्मनामी है जिसे वर्धा से काफी शिकायतें हैं। लेकिन दुर्भाग्य से इस ब्लॉग के संचालन के बारे में उन्होंने जो बातें लिखी हैं वह आंशिक रूप से सही भी कही जा सकती हैं। मैं खुद ही दुविधा में हूँ।:(
सादर!
सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी
महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय
वर्धा, महाराष्ट्र-442001
ब्लॉग: सत्यार्थमित्र
वेबसाइट:हिंदीसमय

इसपर मैंने अपनी प्रतिक्रया दे दी है -
सिद्धार्थ जी,
मैंने इसे चेक किया, सचमुच यह यूनिकोड में नहीं है शायद कृतिदेव में है इसीलिए पढ़ा नही जा सका है , संभव हो तो इसे दुरुस्त करा दें, विवाद से बचा जा सकता है !

सादर-
रवीन्द्र प्रभात

Priti Krishna ने कहा…

आज महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय , वर्धा के हिन्दी-विश्व ब्लॉग ‘हिन्दी-विश्व’ पर ‘तथाकथित विचारक’ राजकिशोर का एक लेख आया है...क्या पवित्र है क्या अपवित्र ....राजकिशोर लिखते हैं....
अगर सार्वजनिक संस्थाएं मैली हो चुकी हैं या वहां पुण्य के बदले पाप होता है, तो सिर्फ इससे इन संस्थाओं की मूल पवित्रता कैसे नष्ट हो सकती है? जब हम इन्हें अपवित्र मानने लगते हैं, तब इस बात की संभावना ही खत्म हो जाती है कि कभी इनका उद्धार हो सकता है .....
क्या राजकिशोर जैसे लेखक को इतनी जानकारी नहीं है कि पवित्रता और अपवित्रता आस्था से जुड़ी होती है और नितांत व्यक्तिगत होती है. क्या राजकिशोर आस्था के नाम पर पेशाब मिला हुआ गंगा जल पी लेंगे.. राजकिशोर जी ! नैतिकता के बारे में प्रवचन देने से पहले खुद नैतिक बनिए तभी आप समाज में नैतिकता के बारे में प्रवचन देने के अधिकारी हैं ईमानदारी को किसी तरह के सर्टिफिकेट की आवश्यकता नहीं पड़ती. आप लगातार किसी की आस्था और विश्वास पर चोट करते रहेंगे तो आपको कोई कैसे और कब तक स्वीकार करेगा ......महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय , वर्धा को अयोग्य, अक्षम, निकम्मे, फ्रॉड और भ्रष्ट लोग चला रहे हैं....मुश्किल यह है कि अपवित्र ही सबसे ज़्यादा पवित्रता की बकवास करता है.......
प्रीति कृष्ण

Priti Krishna ने कहा…

महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्‍वविद्यालय वर्धा के ब्लॉग हिन्दी-विश्‍व पर २ पोस्ट आई हैं.-हिंदी प्रदेश की संस्थाएं: निर्माण और ध्वंस और गांधी ने पत्रकारिता को बनाया परिवर्तन का हथियार .इन दोनों में इतनी ग़लतियाँ हैं कि लगता है यह किसी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्‍वविद्यालय का ब्लॉग ना हो कर किसी प्राइमरी स्कूल में पढ़ने वाले बच्चे का ब्लॉग हो ! हिंदी प्रदेश की संस्थाएं: निर्माण और ध्वंस पोस्ट में - विश्वविद्यालय,उद्बोधन,संस्थओं,रहीं,(इलाहबाद),(इलाहबाद) ,प्रश्न , टिपण्णी जैसी अशुद्धियाँ हैं ! गांधी ने पत्रकारिता को बनाया परिवर्तन का हथियार- गिरिराज किशोर पोस्ट में विश्वविद्यालय, उद्बोधन,पत्नी,कस्तूरबाजी,शारला एक्ट,विश्व,विश्वविद्यालय,साहित्यहकार जैसे अशुद्ध शब्द भरे हैं ! अंधों के द्वारा छीनाल संस्कृति के तहत चलाए जा रहे किसी ब्लॉग में इससे ज़्यादा शुद्धि की उम्मीद भी नहीं की जा सकती ! सुअर की खाल से रेशम का पर्स नहीं बनाया जा सकता ! इस ब्लॉग की फ्रॉड मॉडरेटर प्रीति सागर से इससे ज़्यादा की उम्मीद भी नहीं की जा सकती !