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रविवार, 27 जून 2010

जन-गणना (2011) में जाति का विरोध

देखो संयोग ही है कि भारत और अमेरिका दोनों देश इस साल जनगणना करा रहे हैं.  हमने भी यहाँ अमेरिका में फॉर्म भरकर भेजा, पर पता नहीं पहुंचा नहीं क्या, एक मैडम रोज स्लिप चिपका जाती थी घर के दरवाजे पर कि आप या तो कभी भी फोन कर लो (एक नंबर लिख गयीं थी)  या फलाने टाइम पर घर मिल जाना, आपकी सूचना लेनी है, एक दिन उसने हमें घर पर पकड़ ही लिया, मुश्किल से ५-६ मिनट में हम चारों लोगो का संक्षिप्त सा डाटा लेकर वो चलती बनी.  फॉर्म भी सरल था और प्रश्न भी सरल.

देश में भी यहाँ तक तो सब एक समान ही हैं,  पर उसके बाद as usual नेताओं ने अपनी रोटी सेंकनी शुरू कर दी हैं, जाती को पीछे से जोड़कर इसमें विवाद खड़ा कर दिया है, एक तो इससे समाज में विघटन भी होगा और दूसरा हमारे जनगणना करने वालों पर भी अनायास दबाब बढ़ेगा, खैर मेरी बात कौन सुनेगा यहाँ से !!

आज एक मेल किसी समूह से मुझे आई थी, वो कुछ प्रयास कर रहे हैं इसी सम्बन्ध में, मैंने सोचा कि उसको यहाँ चस्पा कर दूं,शायद कुछ जागरूकता फैले …जनता के द्वारा चुने गए जनता के सेवको से तो जनता को चूसने की ही  आशा की जा सकती है बस ….

 

    जन-गणना (2011) में जाति का विरोध 

भारत सरकार और देश के लगभग सभी राजनीतिक दल जन-गणना (2011) में जाति को जुड़वाने के लिए तैयार हो गए हैं| इस अनुचित निर्णय का हम डटकर विरोध करते हैं| 


जन-गणना में जाति और मज़हब को जोड़ने का काम अंग्रेज सरकार ने 1871 में शुरू किया था ताकि 1857 में पैदा हुई अपूर्व राष्ट्रीय एकता को भंग किया जा सके| इस भारत-विरोधी षडयंत्र् में अंग्रेज काफी हद तक सफल हुए| 1947 में मज़हबी राजनीति के कारण भारत का विभाजन हुआ और उसके बाद भारतीय समाज में जाति के तत्व का राजनीतिकरण हो गया|


       हमारे संविधान-निर्माताओं ने इस खतरे को पहचाना और इसीलिए उन्होंने भारत को जातिविहीन और वर्गविहीन राष्ट्र बनाने की घाषणा की| उन्होंने जातियों, मज़हबों और समूहों के आधार पर पृथक निर्वाचन-क्षेत्रें की प्रथा को समाप्त कर दिया| उन्होंने जाति, मज़हब, वंश, लिंग, जन्म आदि पर आधरित भेद-भाव को सर्वथा असंवैधानिक घोषित किया| डॉ. भीमराव आम्बेडकर ने संविधान प्रस्तुत करते हुए कहा था कि उन्हें डर है कि कहीं मज़हब और जाति जैसे शत्रु दुबारा जिंदा न हो जाएं| इसीलिए अंग्रेज द्वारा शुरू की गई जातीय जन-गणना को आज़ाद भारत की किसी भी सरकार ने दुबारा शुरू नहीं किया|

आज जातीय जन-गणना को भारत की एकता के लिए खतरा है|
जन-गणना में जाति और मज़हब को जोड़ने का काम अंग्रेज सरकार ने 1871 में शुरू किया था ताकि 1857 में पैदा हुई अपूर्व राष्ट्रीय एकता को भंग किया जा सके| इस भारत-विरोधी षडयंत्र् में अंग्रेज काफी हद तक सफल हुए| 1947 में मज़हबी राजनीति के कारण भारत का विभाजन हुआ और उसके बाद भारतीय समाज में जाति के तत्व का राजनीतिकरण हो गया|
हमारे संविधान-निर्माताओं ने इ

स खतरे को पहचाना और इसीलिए उन्होंने भारत को जातिविहीन और वर्गविहीन राष्ट्र बनाने की घाषणा की| उन्होंने जातियों, मज़हबों और समूहों के आधार पर पृथक निर्वाचन-क्षेत्रें की प्रथा को समाप्त कर दिया| उन्होंने जाति, मज़हब, वंश, लिंग, जन्म आदि पर आधरित भेद-भाव को सर्वथा असंवैधानिक घोषित किया| डॉ. भीमराव आम्बेडकर ने संविधान प्रस्तुत करते हुए कहा था कि उन्हें डर है कि कहीं मज़हब और जाति जैसे शत्रु दुबारा जिंदा न हो जाएं| इसीलिए अंग्रेज द्वारा शुरू की गई जातीय जन-गणना को आज़ाद भारत की किसी भी सरकार ने दुबारा शुरू नहीं किया|


हम आज भी जातीय जन-गणना को भारत की एकता के लिए खतरा मानते हैं|


हम भारत के सभी नागरिकों से अपील करते हैं कि वे जातीय जन-गणना का डटकर विरोध करें ताकि हमारे राजनीतिक नेताओं के अनुचित दबाव का निवारण किया जा सके|

 
"आपसे अनुरोध है कि ४ जुलाई 2010 (सोमवार)के दिन जंतर
मंतर  पर हो रहे स्वतंत्र विरोध में हिस्सा ले कर आन्दोलन को सफल बनाएं "

  • इसके लिए हम एक ज्ञापन भी प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति जी को देना चाहते हैं, जिसमे यह साफ़ साफ़ विदित होगा की
    किसी भी दवाब में आकर जाति को जनगणना में शामिल नहीं करे
  • 'आज़ाद भारत' में जाति को हमारी पहचान के लिए उपयोग में हरगिज़ नहीं लेना चाहिए. यह हमारी स्वतंत्रता, सार्वभौमिकता और समानता की राह में सबसे बड़ी बाधा है.
  • इसके जगह एक और कालम 'आर्थिक स्तिथि' डाला जाए जिससे राष्ट्रीय स्तर पर हमे वंचितों और गरीबी रेखा के नीचे रहने वालों का सही आकलन हो ताकि इन 'पिछडो' के लिए कोई समुचित योजना बन सके.
  • यह कदम खुद ही नंदन निलेकानी के महत्वाकांशी प्रोजेक्ट के खिलाफ है, जिसके द्वारा वोह समस्त भारतीयों को एक सर्वमान्य पहचान देना चाह रहे हैं. 

हम भी सिर्फ आर्थिक आधार पर होने वाले आरक्षण के ही समर्थक हैं जो देश की जरुरत के साथ साथ, इस देश की जनता और आरक्षण प्रणाली के साथ न्यायसंगत भी है.
निवेदक


राष्ठ्रावादी स्वंयसेवक
प्रणीत - +91 999 009 4245
सुरेन्द्र - +91 9250 415 623
अनुज - +91 9555 240 200

11 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

अच्छा किया जो यहाँ चस्पा कर दिया.

आचार्य उदय ने कहा…

सार्थक पोस्ट।

राम त्यागी ने कहा…

@Sameer jee, I hope it makes some impact !!

राजकुमार सोनी ने कहा…

बेहद सार्थक पोस्ट अच्छी जानकारियों के साथ।

भवदीप सिंह ने कहा…

जानकारी के लिए धन्यवाद| टोरोंटो में हूँ ११ दिन. तुम्हारे होटल के बिलकुल नजदीक. मिल सको तो मिल लो.

में तो कहूँगा के भारत और अमेरिका की जन गाड़ना एक साथ होने से ज्यादा संजोग तो ये है के भाई... पहले हम ग्वालियर में थे तो तुम ग्वालियर में रहे. फिर हम चिकागो के उप नगर Naperville में आये तो तुम भी वहीँ आ कर बस गए. फिर आब देखो तुम और हम साथ में इस समय टोरोंटो में हैं !! ये हुआ न संजोग...

शिवम् मिश्रा ने कहा…

सार्थक पोस्ट।

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

जाति आधारित गणना - राजनीति के लिये आसानी हो जायेगी । लोगों को पता चलेगा कि कितने वोट उनके पक्के हैं । राजनीति चलनी चाहिये, देश तो घिसट जायेगा ।

राज भाटिय़ा ने कहा…

अजी यह मेल हमे भी आई थी,धन्यवाद बताने के लिये

अजित गुप्ता का कोना ने कहा…

अच्‍छी विचारवान पोस्‍ट।

राम त्यागी ने कहा…

@प्रवीण जी, समझ नहीं आता इससे कैसा फर्क पड़ेगा वोट बैंक पर ?

राम त्यागी ने कहा…

अरे भवदीप, में केवल बुधवार तक हूँ इस सप्ताह, बुधवार शाम में फ्लाईट है वापस शिकागो की, कोई फोन नंबर तो देते , जहां फोन कर सकता ? वैसे समय की कमी के चलते मिलना मुश्किल लग रहा है