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रविवार, 3 मई 2009

फिर से चुनाव ....हर साल का नाटक !!

में ब्लॉग लिखने में आलस तब करता हूँ , जब या तो में बहुत व्यस्त हूँ या फिर मेरे पास कुछ काम नही है। कुछ दिनों से में इसलिए सक्रिय नही था क्यूंकि मेरे पास बहुत समय था। लग रहा है मैंने आपको चक्कर में डाल दिया , आप सोच रहे होंगे कि ये क्या बक रहा है, अरे भाई में तो फिर भी ठीक ठाक बात कर रहा हूँ, आजकल भारत में चुनाव के रंगारग समारोह में हमारे नेता लोग तो आपको इससे भी ज्यादा चक्रव्यूह में डाल रहे होंगे। आजकल हमारे देश में दो तरह के गुंडे बहुत नाम कमा रहे है, एक तो नेता और दूसरे पत्रकार। पत्रकार लोग टीआरपी के चक्कर में क्या क्या गुल नही खिला रहे है, मेरे हिसाब से तो शाहरुख़ से लेकर प्रभु चावला तक और अमर सिंह से लेकर प्रणव रोय तक सब लोग पैसे बनाने के लिए कुछ भी कर गुजरने को तैयार है।
जो पूंजीवाद अमेरिका को गर्त में ले जाने का जिम्मेदार है, वही अब हम भारतीयों की नसों में आता जा रहा है। हर कोई पैसे के लिए पागल है, रिश्ते गए तेल लेने, अब तो लोगो को आर्थिक सम्रद्धि चाहिए किसी भी कीमत पर। मुलायम और मायावती जैसे समाजवादी विचारधारा के लोग भी पूंजीवाद के सहारे राजनीती के शिखर पर किसी भी कीमत पर जाना चाहते है। राजनीती के सारे शीर्ष लोग स्वार्थी, लालची और कुर्सी के लिए पागल है, सबने सिद्धांतो को बेच खाया। ईमानदार लोग चुनाव में आते नही, आते भी है तो केवल शोहरत लेने के लिए, और जो वास्तव में आते है उनको हतोत्साहित कर दिया जाता है। कुछ राजकुमार जिनको राजनीती विरासत में मिली है जैसे हमारे ग्वालियर के सिंधिया और पायलट , या फिर राहुल , कोई भी इमानदारी से प्रयास नही कर रहा, हम जैसे ब्लॉगर भी यही बस भड़ास निकालते रहते है।

भारत में लोकतंत्र के सारे स्तंभ बहुत ही विशाल है, पर ये किसी काम के है, नही लगता । विशाल तो है पर मजबूत नही। सफाई कि बहुत जरूरत है, जंग को हटाना पड़ेगा तभी ये स्तम्भ ज्यादा दिनों तक मजबूत रह सकेंगे।

राम त्यागी - जर्मनी के दुस्सेलदोर्फ़ शहर से।

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