हिंदी - हमारी मातृ-भाषा, हमारी पहचान

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शनिवार, 13 जून 2009

मेड इन इंडिया - घर का जोगी जोगना, दूर गाँव का सिद्ध !!

अभी मार्केट से आ रहा था, सोचा की एक हल्का सा पोस्ट डाल दूं। इधर अमेरिका वासियों ने ऐसा कोई कानून बना रखा है की बाजार में रखी हर वस्तु पर 'made in ...' लिखा रहता है. मेरी सलाह सभी देसी लोगो के लिए यही है की जहां तक संभव हो और क्वालिटी से कोई समझोता न करना पड़े क्यूं न 'made in India' ही खरीदने को प्राथमिकता दें. इससे कुछ न कुछ , किसी न किसी को तो देश में लाभ होगा ही और देश की अर्थव्यवस्था में भी हम अप्रत्यक्ष रूप से कुछ योगदान दे सकते है.

विडम्बना कहें या भूमंडलीकरण, बनती वही चीज भारत में हैं लेकिन मिलती है केवल इधर और वो भी बढे हुए दामों में और हम लोग खुश होकर सस्ता समझकर बड़े चाव से खरीदते है। वैसे ये तो वही बात हुई - घर का जोगी जोगना, दूर गाँव का सिद्ध !! - शायद ये चीज देश में मिले तो हम लेंगे ही नही :(

देखिये एक फोटो जहाँ पर एक भारत में बना हुआ कवर लोस एंजेल्स सिटी की सड़क पर !!


और भी बहुत कुछ बन रहा है देश में - काफी लोगो के पसंदीदा इटालियन चॉकलेट Ferrero Rocher भी !!

शुक्रवार, 12 जून 2009

कैसे करें कोलेस्ट्राल पर नियंत्रण ?? आप की सलाह की सख्त जरूरत !!


पिछले सप्ताह सोचा की चलो डॉक्टर साहब के चक्कर लगा आते है, सब कुछ ठीक ही था, एक मैडम वजन तौलने बुलाती है और बोलती है की कुछ वजन घटा है, बहुत अच्छी बात है, चलो मेने सोचा की ये तो महान उपलब्धि है। उसके बाद खून की जाँच की और पेशाब की जांच, ये साल में एक बार हमारा इंश्योरेंस सेवा प्रदान करता है तो इस बहाने बॉडी की जांच पड़ताल हो जाती है। हम घर आ गए और २-३ दिन बाद डॉक्टर की इच्छा फिर हमसे मिलने की होती है, डॉक्टर मेरे को जांच का स्पष्टीकरण देते हुए दवाई खाने की सलाह देता है. इससे पहले की में कुछ और बताऊ, आपके सामने कोलेस्ट्राल की सीमा या स्तर के बारे में कुछ बता देना बेहतर होगा.


जब आप खून की जांच कराने जाते है तो, मुख्यतः डॉक्टर तीन चीजो का स्तर देखता है -
1. टोटल कोलेस्ट्राल
2. बेकार कोलेस्ट्राल

३. अच्छा कोलेस्ट्राल
4. त्रिग्ल्य्सरिदे (Triglyceride )


टोटल कोलेस्ट्राल की सीमा -
२०० से नीचे - बिल्कुल सही है।
२०० से २३९ उच्च सीमा के बिल्कुल पास।
२४० के ऊपर खतरा है और आप ह्रदय से संबधित रोगों से ग्रस्त हो सकते है।
और मेरा लेवल है २६४

LDL कोलेस्ट्राल की सीमा (इसे बेकार कोलेस्ट्राल भी बोलते है)
१०० के नीचे सम्मान्य होता है
१०० से १२९ सामान्य के आसपास ही मानो
१३० से १५९ सामान्य से ऊपर और उच्च सीमा के आसपास
१६० के ऊपर खतरा है और आप ह्रदय से संबधित रोगों से ग्रस्त हो सकते है।
और मेरा लेवल है - १७४

HDL कोलेस्ट्राल की सीमा (इसे अच्छा कोलेस्ट्राल भी कहते है और जितना ये खून में हो उतना ही बढ़िया )
४० के नीचे नहीं होना चाहिए , नहीं तो आप ह्रदय से संबधित रोगों से ग्रस्त हो सकते है।
६० और इसके आसपास हो तो आप स्वस्थ है और ह्रदय से संबधित रोगों से ग्रस्त होने की कोई संभावना नहीं है।
और मेरा लेवल है ३५

Triglyceride का स्तर -
५० से नीचे - सामान्य
१५० से १९९ - उच्च सीमा के पास
२०० से ४९९ - उच्च सीमा है और आप ह्रदय रोगों से पीड़ित हो सकते है
५०० के ऊपर - उच्च सीमा है, बहुत ही कम ऐसे केस होंगे
और मेरा लेवल है २८८


आप ये जानकारी यहाँ और यहाँ से भी ले सकते है। अगर आप देखें तो सब जगह ही मेने रेकोर्ड तोड़ रखे है। ये एक और साइड इफेक्ट है अमेरिका का , जहाँ पर आप खाते है और आराम फरमाते है पर पसीना नही बहा पाते, प्रकृति से दूर जाकर कौन सुखी रह पाया है।

अब डॉक्टर बोलता है की आप सारी सीमायें लाँघ चुके है, दारुबाज भी नहीं है और शाकाहारी भोजन को ही महत्वा देते है, हाल ही में वजन भी घटाया है तो ये आपके खून में ही कुछ ऐसा है जो लेवल को बढाये जा रहा है. व्यायाम या शारीरिक गतिविधियों से आप १० से २० प्रतिशत तो घटा सकते है पर इस केस में तो मुझे दवाई खानी ही पड़ेगी इसको सही स्तर पर लाने के लिए और हो सकता है की ये दवाई लेती ही रहनी पड़े हर समय. उन्होंने अभी SIMVASTATIN 40 mg नाम की दवाई को लिखा है और रोज खाने की सलाह दी है।


हालाँकि दवाई इस परेशानी से छुटकारा तो दिलाएगी ..लेकिन किस कीमत पर ...कौन खाना चाहता है दवाई अगर कुछ और साधन हो . तो मेरे अनुसार निन्मलिखित चीजें दवाई के विकल्प के तौर पर की जा सकती है -


१। योग साधना
२। खानपान पर नियंत्रण (पूरी और दाल बाटी और बाकी सब चटोरेपण से दूर )
३। बाबा रामदेव के द्वारा दी गयी दवाई खा लो - जैसे दिव्या हृदयामृत वटी , इसके बारे में यहाँ पर पड़ें ।

आप लोगो का क्या कहना है ? अपने अनुभव और सलाह जरूर दे , मेरे लिए इसका बहुत महत्त्व होगा और उन अन्य लोगो के लिए भी जिनको इसी तरह की समस्या है। में कोशिस करूँगा की आप सब की सलाह को एकत्रित करके फिर से ब्लॉग पर या इसी जगह दाल दूँ , जहाँ से लोग इससे लाभान्वित हो सके।


आप सभी का अडवांस में शुक्रिया !!

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डॉक्टर का कहना है कि आयुर्वेदिक दवाई जो बाबा रामदेव दे रहे है, उस पर कितना शोध किया गया है, यह किसी को पता नहीं है , तो साइड एफ्फेक्ट्स वगैरह के बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता .

दूसरी तरफ किसी भी केस में, योग करो या शारीरक हलचल, दवाई खाओ या आयुर्वेदिक - हमें अपने खाने पर नियंत्रण करना ही होगा. ऊपर आई कमेन्ट और इधर उधर कि बातो को इधर उल्लेखित करना चाहूँगा -

१. कम सुगर कि चीजें खाएं
२. फैट फ्री चीजें ही खाएं
३. ओमेगा ३ सप्लीमेंट
४. टोफू , हरी सब्जी खाएं
५. शारीरिक रूप से सक्रिय रहें
६. बाजार से सामन लेते समय ingrediants पर द्यान दें और वही खरीदें जिसमें फैट और कोलेस्ट्रोल कम हो या बिलकुल भी न हो.
७. फैट फ्री मिल्क ही पीयें.
८ घी न खाएं ( डेयरी products avoid करें )
९. हैवी डिनर न करें
१०. सुबह सुबह लौकी का जूस पीयें , पानी खूब पीयें, सुबह उठकर सबसे पहली चीज पानी पीयें.

गुरुवार, 11 जून 2009

किसानो सावधान ... कृषि की कमाई पर कर ??

प्रणव दादा कुछ ही दिनों में बजट पेश करने जा रहे है, क्या किसानो को अभी से सचेत हो जाना चाहिए की उनके गले पर तलवार चलने वाली है, वैसे कुछ लोग खेती की कमाई के नाम पर मोटी रकम बिना टैक्स दिए ही गटक कर जाते है, कुछ तो सरकार को सोचना चाहिए, जिससे बदले में कुछ मूलभूत ढाँचे में सुधार आ सके। वैसे कृषि पर टैक्स लगाने की बात अस्सी के दसक में उठ चुकी है, पर वोट बैंक की वजह से कोई सरकार इस मुद्दे को हाथ नही लगाना चाहती। अब कांग्रेस की सरकार वाम दलों से मुक्त है तो क्या कुछ ऐसा हो सकता है क्या ?

वैसे एक लेख मिला है रीडिफ़ पर ...http://www.rediff.com/money/2004/nov/06perfin.htm... ये कुछ और ही कहता है, जरूर पड़ें !

बुधवार, 10 जून 2009

अधिकतर ब्लॉगों का मात्र “एक पाठक” होता है! ...

ये लाइन चुराई है तरकश से - http://www.tarakash.com/200906094180/Knowledge-Base/is-blogging-is-dying.html

उड़न तस्तरी जी का लेख पड़ते पड़ते तरकश पर पहुँचा और उधर ये लेख पड़ा, शायद ये हम जैसे कई लोगो की अपेक्षाओ को दर्शाता हुआ लेख है, शुरुआत में मेने जब ब्लॉग लिखना शुरू किया तो यही लगता था की यार कोई पड़ेगा ही नही तो कैसे पता चलेगा की में क्या लिख रहा हूँ, पर फिर सोचा की मन की भडास कही तो निकालो, परदेश में रहकर देश की यादो और अपने जज्बातों को कही तो जगह दूँ।

हमारे कई हिन्दी ब्लॉगर बहुत प्रसिद्ध हो रहे है, अभी हाल ही में द्विवेदी जी की डांट और समझाईस के किस्से बहुत छाए रहे, एक महासय ख़ुद को पंगेबाज कहते है पर बकिलो के डर से अपनी बेबाक बात को बेबाक न रख सके और, ये किस तरह की अभिव्यक्ति है ? कही पर भी एक गाँव की समस्या को इंगित करते नही दिखाते ये हमारे मसहूर ब्लोग्गेर्स, सभी लोग बस कांग्रेस और बीजेपी तक अपने को सीमित रखकर कथित साम्प्रदायिक और अन्य भावनात्मक मुद्दों पर बहस करते रहते है और कभी कभी व्यक्तिगत आवेश में आपस में ही लड़ जाते है और अंग्रेजो के फूट डालो ....वाले कहावत को अभी भी याद दिला जाते है । भारत की ७० प्रतिशत जनसँख्या गांवों में बसती है, और हमें अपने ब्लोग्स पर इनकी उन्नति और शाक्षरता के लिए सार्थक बहस करनी चाहिए।
हमें भुवनेश शर्मा के हाल में लिखे गए ब्लॉग से कुछ सीखना चाहिए जिसमें उन्होंने किसी को गाली देने के बजाय पर्यावरण के बारे में बहुत ही उम्दा लेख लिखा, ऐसे अच्छे प्रयासों की धरा को बहुत जरूरत है।
हमारे ब्लोग्स में कही भी ऊर्जा की बचत कैसे करे, गावो को सौर ऊर्जा और गोबर गैस जैसी उर्जा पद्धतियों से कैसे आए ले जाए, ये सब नही दिखा।

हम सभी अपने अपने लेवल पर बेहतर लिखने की कोसिस करते है, चलो इसमें भारत के ७० प्रतिशत क्षेत्र के उन्नयन के बारे में लिखे सोचे और कुछ करें ....

मंगलवार, 9 जून 2009

पर्यावरण बचाने के लिए में क्या कर सकता हूँ ?


भुवनेश शर्मा जी ने ब्लोग्गेर्स के लिए एक होम वर्क दिया था की वो कुछ ऐसे प्रयास करें की जिससे पर्यावरण की सुरक्षा हो सके, आसपास के लोगो को प्रोत्साहित भी करें और अपने ब्लॉग के माध्यम से जाग्रति भी फैलायें, एक बहुत ही अच्छा कदम था भुवनेश का और में भी इस कड़ी में अपने आप को भुवनेश जी के पीछे कर लेता हूँ, चलो हम सब लोग एक ब्लोग्गेर्स की मानव श्रंखला बनाएं और अपने अपने प्रयासों को यहाँ उल्लेखित करें, ये अभी अपने आप में एक आन्दोलन है, एक सामूहिक प्रयास है, जन जाग्रति और स्वजाग्रती अभियान है। चलो उपदेश के बाद काम की बात कर लेता हूँ।


एक प्रयास जो कल भुवनेश का लेख पड़ने के बाद किया - जब बीबी ने खाना ऑफिस जाते समय नही दिया हो तो अपना एक ही ठिकाना ज्यादातर होता है, शाकाहारी और शुद्ध Subway. सामान्यतः यहाँ पर ये लोग आपके बर्गरनुमा भोजन को एक पन्नी (पोलीथीन) में रखकर देते है, जब उसने हमारे sub को कागज़ में लपेड्रकरपन्नी में रखने की कोसिस की तो मेने मना किया तो वो मेरी तरफ देखने लगा और तब मेने उसे अपने मना करने का कारण समझाया तो वह बहुत खुस हुआ और लाइन में लगे एक दो और लोगो ने मेरा अनुसरण किया, बहुत अच्छा लगा और मेरे योगदान के साथ कुछ और लोगो तक भी ये संदेश पहुँचा ।


एक और बात लिखना चाहूँगा जो हमारी कंपनी बहुत दिनों से प्रयास कर रही है , प्लास्टिक कप की जगह फोम के कप इस्तेमाल कर रहे है, बार बार अपना एक ही कप इस्तेमाल करने को प्रोत्साहित किया जा रहा है, जिससे कम से कम जंक हो। प्रिंटर का इस्तेमाल सही तरीके से करने के प्रयास किए जा रहे है जिससे फालतू पेपर बेकार जाए। अगर कोई सायकिल से आता है तो उसका महिमामंडन किया जाता है, जिससे और लोग भी ऐसा करें।


वैसे में भी सायकिल से ट्रेन स्टेशन तक कभी कभी जाता हूँ, पर में ऐसा इसलिए करता हूँ, जिससे मेरी बीबी को सुबह सुबह मेरे को छोड़ने जाने का कष्ट न करना पड़े, मेरा biking का शौक पूरा हो जाए, और कुछ शारीरिक गतिविधि भी हो जाए, पर मेरे आलस्य की वजह से अब तक केवल मेने एसा ५-६ बार ही किया है, अब इसमें पर्यावरण का तड़का भी लगा देते है और नियमित सायकिल का इस्तेमाल करने पर जोर देते है.


शौपिंग करते समय थैला ?(झोला) का इस्तेमाल करेंगे , न की पन्नियों का। पानी और बिजली तो पैसे से आती है तो पहले से ही लोभ chaaloo है। सबसे बड़ी बात हम लोगो को अपनी कार को दुरस्त रखना चाहिए जिससे वो पर्यावरण को ज्यादा प्रदूषित ना करे। अपने वाहन को आज ही चेक कराये। मेरी कार emission safe है, क्या आपकी भी है ?

बस इतना ही , बाकी आप गुरुजनों पर छोड़ता हूँ :)


कलावती को भूले राहुल लाला

जब वोट की जरूरत थी तब राहुल को कलावती की याद आई और जब उसके मुद्दों को सुलझाने की बात आई तो राहुल जी व्यस्त थे। ये कहानी इस परिवार के असली चेहरे को व्यक्त कराती है। इन लोगो की कथनी और करनी में अन्तर की वजह से ही भारत विश्व के अन्य देशो की तुलना में इतना पीछे रह गया है। अमेठी जहाँ से ये लोग जन प्रतिनिधि है, वहां की स्थिति इस बात को सिद्ध करती है की इनके खाने और दिखने के दांत अलग अलग है। CNN IBN की ये रिपोर्ट भी देखें -


http://ibnlive.in.com/videos/94536/mascot-kalavati-turned-away-from-rahuls-office.html


केवल किसी परिवार में जन्म लेने से कुछ लोग मसीहा बन जाते है, हम लोगो को देश में लोगो को शिक्षित करनेके लिए कुछ प्रयास करने होंगे जिससे लोग इन लोगो का मूल्यांकन उनके विकास के प्रष्ठभूमि के आधार पर कर सकें। अशिक्षा हमें बहुत पीछे धकेल रही है और ऐसे अवसरवादी लोगो को हमारा फायदा लेने के लिए अवसर दे रही है। मेरे पिताजी ने एक लडके को अपने घर रखा हुआ है, उसको वो पढाते है और स्कूल भेजते है, और उनसे बनता है तो उसके फॅमिली को आर्थिक सहायता करते है, वो कहते है की म्रतभोज और दहेज़ की जगह पैसा किसी गरीब की उन्नति में लगाओ तो वो किसी न किसी रूप में फलीभूत होता दिखेगा , जैसा की आप एक पेड़ लगाकर और जब पेड़ के बड़े हो जाने पर छाया लेकर अनुभव करते है।


चलो कुछ ऐसा ही करें जिससे कलावती को राहुल के चक्कर न लगाने पड़े और वह आत्मनिर्भर बने स्वाभिमान से जीने के लिए । हमें युवराज नही जन सेवक चाहिए, राहुल और सिंधिया को महलों में भेज देते है आराम करने के लिए।



शुक्रवार, 5 जून 2009

खुलासा एक और विकास का !!

में अपने राज्य मद्य प्रदेश के बारे में पढ़ रहा था, जैसा की हम सब जानते है की शिवराज सिंह जी की सरकार ने राज्य में पिछली साल बड़े बहुमत से अपने विकास कार्यो के बल पर सत्ता में फिर से वापसी की थी। तो मेने सोचा की ज़रा देखू की क्या विकास यौजनाएं है जो मद्य प्रदेश को २१ वी सदी के राज्य के रूप में भारत का एक अद्वितीय राज्य बनाने की तरफ ले जायेंगी । इसमें कोई दो राय नही की दिग्गी राजा ने इस राज्य की हालत बहुत ख़राब कर दी थी पर मेरे को बीजेपी से बहुत आशा थी और उनकी निम्न लिखित योजनायें देखकर मेरे को लगा की चौहान साब अभी भी आदिकाल में ही जी रहे है। मेरे को उनकी एक भी योजना भविष्य के लिए दूरदर्शी परिणाम देने वाली नही लगी।




ये सब चुनावी वायदे ज्यादा लगते है और विकास के लिये उठाये गये सही कदम कम , अभी मे जब फरबरी मे छुट्टियां बिताने के लिये मोरेना आया था तो देखा और लोगो से बात की तो पता लगा कि ये सब योजनायें जरुरत मन्द लोगो तक पहुन्च ही नही रही हैं. लड्कियो को सायकिल लेने के लिये अफसरो के , मास्टरों के चक्कर लगाने पडते हैं. कुल मिलाकर जमकर भ्रश्टाचार है. कास कि लाडली लक्ष्मी योजना की जगह अस्पतालो की हालत में सुधार किया जाता, जिससे जन्म के समय मां और बच्चे क स्वास्थ्य सही रहता और जन्म की नीव सही रहती पर मेरी बातें स्वास्थ्य मंत्री जी को मजाक लगेगीं.


गाँवों में अभी भी कभी बिजली नही आती और शहरों में उद्योग लगातार बंद हो रहे है, क्या यही कांग्रेस की सरकार को हटाने के बाद उम्मीद थी हमें अपने इस लाडले मुख्यमंत्री जी से ? गावो में अभी भी लोग स्वास्थ्य , सड़क, बिजली और पानी जैसी मूलभूत सुविधाओ के लिए मोहताज है , पुलिस अभी भी डर का अभिप्राय है न की सुरक्षा की मूरत। देशभक्ति और जनसेवा के नाम पर अभी भी करोडो की वसूली से केवल कुछ ही लोग अमीर हो रहे है, वो भी काबिल नही, सब के सब राजनीतिक गुंडे !



मेरे को indiastats वेबसाइट पर कुछ आंकड़े मिले , उनमें मेरे को मद्यप्रदेश कही नही दिखा, ये दो इमेज २१वि सदी के किसी भी राज्य (दुनिया में कही भी) की भविष्य और वर्तमान की झलक दिखलाती है -





क्या ये हमारी सरकार का फर्ज नही बनता की ऐसी योजनायें उनके पास हो जिससे में अपने राज्य का नाम भी इन लिस्ट में देख सकू ? वो भी तब जब हमारे राज्य में किसी भी संसाधनों की कमी नही, प्रकृति ने क्या नही दिया ... नर्मदा की कलकल बहती धारा से लेकर चम्बल के अभ्यारण्य हो या फिर खजुराहो से लेकर भोपाल तक संस्कृतिक धरोहर हो। आप मध्य प्रदेश सरकार की वेबसाइट http://www.mptourism.com/ ही देख लो जिस पर इन सब स्थलों के नाम है पर क्या कुछ ऐसा किया गया जिससे राज्य का नाम भी टूरिस्ट प्लेसेस में आता ?





क्या हमारे मुख्यमंत्री जी का लड़का बिना इन्टरनेट के रहता है , यदि नही तो क्या किया गया आम जनता के लड़को के लिए ?

क्या आपके बच्चे बिना बिजली के रहते है ? क्या सरकारी अस्पतालों में इलाज कराने आप जाते है ? अगर ये सब आम आदमी को मिले तो वही आदर्श सरकार है, नही तो आप भी कांग्रेस से कम नही, आपको लाकर मेरे राज्य ने क्या पाया ? कुछ तो किया होता जिससे मद्य भारत के लोग भी देश के अन्य हिस्सों से प्रतिस्पर्धा कर पाते और हमेशा दिल्ली या अन्य बड़े महानगरो को भागने के बजाय अपने घरेलू शहर में ही किस्मत आजमाते। काश कोई तो करिश्माई अटल आए इस राज्य में भी।

सोमवार, 1 जून 2009

बुधवार, 13 मई 2009

अरे भाई क्यों गाली देते हो ?

दुनिया वालों को भारत के सरकारी तंत्र से इतना शिकायत क्यों है , हम लोग हमेशा अपने मंत्री और संत्री लोगो को गाली देते रहते है, पर क्या कभी सोचा है उनकी मेहनत के बारे में ? इस बात को मेने तब अनुभव किया जब एक बहुत ही विद्वान दोस्त ने मेरी आँखों पर पड़े परदे को हटाकर मुझे वास्तविकता से परिचय कराया, में मूर्ख बहस करने बैठ गया कि अगर कोई चोरी से या भ्रष्ट होकर पैसा कमाए तो ऐसा करके देश के विकास से खिलवाड़ है , पर अब में ये नहीं कह सकता , अरे भाई उनको भी तो सुनो जो ऐसा करके निम्नलिखित रूप से देश की अर्थव्यवस्था को प्रगति के सोपान दे रहे है -

१। अगर ये दो नंबर की कमी न करेंगे तो इनके बच्च्चे और बीबी (यां) मल्टीप्लेक्स में जाकर कैसे सामान खरीदेंगे ? गाँव में कोई मल्टीप्लेक्स क्यों नहीं खोलता ? हर कोई वही क्यों खोल रहा है जहाँ पर ऐसे लोग रहते है ? इसका मतलब ये लोग आज की प्रगति के सच्चे जिम्मेदार लोग है.

२। शादियाँ इतनी रंगीन और आलिशान कैसे होंगी फिर ? आजकल शादियाँ इतनी आलिशान इसलिए ही है क्यूंकि हमारा प्रजातंत्र बहुत योजनाये लेकर आ रहा है, और जितनी योजनाये , उतना ही बचत सरकारी कर्मचारियों के लिए २ नंबर की कमाई से, और उतना ही पैसा शादी के खर्च में लगा सकते है, जिससे अर्थव्यवस्था का चक्र चलता रहता है. नहीं तो बैंड की और हलवाई की दुकाने ही बंद हो जायेंगी.

३। पेमेंट वाली सीटो के कॉलेज खुल रहे है क्यूंकि दो नंबर का पैसा है तो क्या टेंशन है बच्चा पढे या नहीं, कही न कही तो जुगाड़ हो ही जायेगी. कॉलेज खुलेंगे तो आसपास के क्षेत्र का भी विकास होगा, इसका मतलब इन लोगो का ये योगदान भी अभूतपूर्व है.

४। रिश्वत की कमाई के लिए इन लोगो को भी बहुत कुछ करना पङता है, जैसे फाइलो में हेराफेरी , साईट पर जाओ तो कर्मचारियों या फिर सामान की संख्या में हेराफेरी, बॉस की कमीशन की जुगाड़, आदि आदि , ये सब करने में भी मेहनत लगता है.

५। शायद हम इसलिए इन लोगो की बुराई करते है क्यूंकि हम इस काबिल ही नहीं की ऐसी चतुराई से काम कर सकें -)

इन सब कारणों को देखते हुए, ये सत्य है ये लोग भी आज के तथाकतित प्रगतिशील भारत के विकास में जिम्मेदार है। पर ये इससे भी बड़ा सत्य है भारत की ७० प्रतिशत जनता अभी भी प्रगति से अछूते उन गांवों में रहती है जहाँ बिजली आती कभी कभी है , जाती तो हर समय है, जहाँ पर रोड कभी पूरी बन नहीं पाती, पुल टूटे ही पढे रहते है, ५० प्रतिशत जनता के लिए अच्छे अस्पताल और विद्यालय नहीं है. जहाँ आज भी लोग हर साल हर कोने में भूख से आत्महत्या कर रहे है और फिर भी वोट डाले जा रहे है उन निकम्मे लोगो को जो सिर्फ देश सेवा और जन सेवा के नाम पर परिवार सेवा को ही अपना जन्मसिद्ध अधिकार मानते है और जिन्होंने इमानदारी और देश प्रगति की बातो को सिर्फ फाइलो की सुन्दरता का अभिप्राय बना रखा है.
जय हिंद को हमने नारा तो बना दिया पर जीवन का सिद्धांत बनाना भूल गए. 'नर हो न निराश करो मन को' के भरोसे हम जैसे लोग भी बस गाली देते रहते है और सर्कस देखते रहते है, करते कुछ नहीं. एक साक्षात्कार में हमारे राजदीप सरदेसाई जी बोलते है कि "जिस दिन कही विस्फोट हो जाए और आप उस शहर में तो इससे बड़ा दिन पत्रकार के लिए कुछ नहीं" ...कैसी मानसिकता है ये ?
चलो इस लेख में इतना ही , आगे के लेख में जर्मनी के Dusseldorf शहर में बिताये सप्ताहांत के बारे में कुछ लिखूंगा !
- राम

रविवार, 3 मई 2009

फिर से चुनाव ....हर साल का नाटक !!

में ब्लॉग लिखने में आलस तब करता हूँ , जब या तो में बहुत व्यस्त हूँ या फिर मेरे पास कुछ काम नही है। कुछ दिनों से में इसलिए सक्रिय नही था क्यूंकि मेरे पास बहुत समय था। लग रहा है मैंने आपको चक्कर में डाल दिया , आप सोच रहे होंगे कि ये क्या बक रहा है, अरे भाई में तो फिर भी ठीक ठाक बात कर रहा हूँ, आजकल भारत में चुनाव के रंगारग समारोह में हमारे नेता लोग तो आपको इससे भी ज्यादा चक्रव्यूह में डाल रहे होंगे। आजकल हमारे देश में दो तरह के गुंडे बहुत नाम कमा रहे है, एक तो नेता और दूसरे पत्रकार। पत्रकार लोग टीआरपी के चक्कर में क्या क्या गुल नही खिला रहे है, मेरे हिसाब से तो शाहरुख़ से लेकर प्रभु चावला तक और अमर सिंह से लेकर प्रणव रोय तक सब लोग पैसे बनाने के लिए कुछ भी कर गुजरने को तैयार है।
जो पूंजीवाद अमेरिका को गर्त में ले जाने का जिम्मेदार है, वही अब हम भारतीयों की नसों में आता जा रहा है। हर कोई पैसे के लिए पागल है, रिश्ते गए तेल लेने, अब तो लोगो को आर्थिक सम्रद्धि चाहिए किसी भी कीमत पर। मुलायम और मायावती जैसे समाजवादी विचारधारा के लोग भी पूंजीवाद के सहारे राजनीती के शिखर पर किसी भी कीमत पर जाना चाहते है। राजनीती के सारे शीर्ष लोग स्वार्थी, लालची और कुर्सी के लिए पागल है, सबने सिद्धांतो को बेच खाया। ईमानदार लोग चुनाव में आते नही, आते भी है तो केवल शोहरत लेने के लिए, और जो वास्तव में आते है उनको हतोत्साहित कर दिया जाता है। कुछ राजकुमार जिनको राजनीती विरासत में मिली है जैसे हमारे ग्वालियर के सिंधिया और पायलट , या फिर राहुल , कोई भी इमानदारी से प्रयास नही कर रहा, हम जैसे ब्लॉगर भी यही बस भड़ास निकालते रहते है।

भारत में लोकतंत्र के सारे स्तंभ बहुत ही विशाल है, पर ये किसी काम के है, नही लगता । विशाल तो है पर मजबूत नही। सफाई कि बहुत जरूरत है, जंग को हटाना पड़ेगा तभी ये स्तम्भ ज्यादा दिनों तक मजबूत रह सकेंगे।

राम त्यागी - जर्मनी के दुस्सेलदोर्फ़ शहर से।

शनिवार, 24 जनवरी 2009

कभी बीबी भी बेटी थी !!



जी हाँ में जब भी अपनी बीबी को देखता हूँ यही सवाल आता है और प्यार उमड़ पड़ता है. चलो आज बालिका दिवस भी है तो कुछ बीबी की तारीफ ही कर देता हूँ , नही तो खटपट से ही फुरसत कहाँ मिलती है. शादी को कुछ साल जो गए है तो हम भी दुनियादारी से कहाँ बच पायेंगे. चिकागो की -४०' सेन्टीग्रेड की ठण्ड बोलो या कोई फ्लू, पिछले २-३ सप्ताह से कोई न कोई बीमार चल रहा है घर में, ऐसे में रात दिन लगे रहने का , लगातार बच्चो की कोयं कोयं और मेरी नौकरी की धोयं धोयं में मेरी पत्नी ने जो साहस और घर को चलाने का काम किया है वोह काबिले तारीफ है. इंडिया भी हम इस महीने के अंत में आ रहे है तो पैकिंग और लोगो के लिए कुछ लाने देने का काम भी जोर शोर से चल रहा है और में ब्लॉग भी एक्टिव रूप से लिख रहा हूँ, इसे में भी रोज डिनर में बड़े बड़े पकवान खाने को मिल रहे है, कल की ही लीजिये ..४ महीने का बच्चा गोद से नही उतर रहा सर्दी और जुक्कम की वजह से , ५ साल वाला अपनी डिमांड पूरी कराना चाहता है और फिर मेरे को गाड़ी से स्टेशन छोड़ना, लेने आना, बड़े लडके को स्कूल छोड़ कर आना और लेकर आना और ऊपर से छोटू का कोयं कोयं ...फिर भी कल दाल बाटी का मजे लेने को मिला और मेने क्या किया ....न्यूज़ सुनना और मस्ती से सोफे पर पड़े रहना ...और इसी व्यस्त दिनचर्या में आज भी पाव भाजी मिली , उससे पहले दिन छोला बटुरा ....आज के दिन तहे दिल से इस महान बीवी की धन्यवाद देता हूँ जो हमेशा अपने चहरे पर मुस्कराहट ही रखती है.
कोई विभीषण बनाकर इस लेख को उस तक भेज ना देना, नही तो ये सब सार्वजानिक कराने के एवज में हो सकता है फिर कभी एसा treatment ना मिले !!
अच्छे काम की शुरुआत घर से ही करनी चाहिए इसलिए आज सबसे पहले गृहलक्ष्मी की बड़ाई की , वैसे इस बालिका दिवस ("http://economictimes.indiatimes.com/ET_Cetera/National_Girl_Child_day_on_Jan_24/articleshow/3942980.cms" ) पर चलो प्रण करें की जैसे भी हो भ्रूण हत्या को रोकेंगे, दहेज़ से दूर रहेंगे और संजय दत्त की तरह लड़की को कभी उपनाम के लिए कोई शर्त नही रखेंगे. जब हमारा दूसरा बच्चा होने वाला था, हमारी हार्दिक इच्छा थी की लड़की हो और हुआ लड़का ...मतलब में जानता हूँ की लड़की न होना कितना बुरा लगता है......all in all लड़का हो लड़की ..दोनों एक ही जैसे होते है ....

पर भारत में अभी आकंडे कुछ और ही कहते है ...http://www.ndtv.com/convergence/ndtv/story.aspx?id=NEWEN20090080219&ch=1/17/2009201:04:00%20AM .
इस लिक को अगर पढ़ा जाए तो पता चलेगा की २००८ में
- ४५ प्रतिशत लड़कियाँ १८ साल की होने से पहले ही शादी करने के लिए मजबूर थी
- ७८,००० औरतें बच्चा पैदा होने के समय मर गयीं क्यूंकि या तो शारीरिक रूप से तैयार नही थी या फिर भोजन की कमी थी
- १००0,००० नवजात शिशु हर साल मर जाते है उनमें से ४० % पैदा होने के पहले सप्ताह में ही .

- और ना जाने कितनी हत्याए पैदा होने से पहले ही जो रिकॉर्ड में भी नही आ पाती

ये आंकड़े दर्शाते है की हमें जाग्रत होना पड़ेगा !!!

शुक्रवार, 23 जनवरी 2009

ओबामा आला रे . . .


पूरा विश्व इसके लिए पागल है , हर किसी ने हारवर्ड के पूर्व प्रेजिडेंट और अमेरिका के वर्तमान रास्त्रपति का तहेदिल से इस्तकबाल किया , में थोड़ा और गौरवान्वित हो लेता हूँ क्यूंकि ये वही के रहने वाले है जिस शहर में वर्तमान में मैं रह रहा हूँ, राष्ट्रपति बनने के पहले ये Illionois स्टेट से सांसद थे और बहुत ही लो प्रोफाइल के नेता थे, किसने सोचा था की सिर्फ अपने ओजस्वी वक्ता होने के बल पर ये हिलेरी जैसे कट्टर प्रतिद्वंदी को हरा देंगे, मेरा पूरा परिवार हिलेरी का कट्टर समर्थक था, पर अश्वेत लोग और युवा शक्ति के सहारे एसा एतिहासिक मतदान हुआ की अब सब कुछ एक इतिहास बन चुका है। पिचले २ सालो से चला आ रहा राजनैतिक बहस का माहोल एक महान पड़ाव पर आकर रुका है , जहाँ से उम्मीदों का सफर शुरू होता है, और वर्तमान मैं आर्थिक समस्या से जूझ रहे अमेरिका को एक साथ आगे ले जाने की मंजिल जो बहुत कठिन और दुर्गम होगी , का उपसंहार पता नही कब लिखा जायेगा ये सब ओबामा के सफलता से ही पता चलेगा। इनका कोई इतिहास नही है, सिर्फ ओजस्वी विचार है, देखते है कितना आगे साकार हो पाता है। खैर आप बहुत कुछ आजकल अखबारों और टीवी पर पड़ और देख ही रहे है, मैं आपको ये दो लिंक दे रहा हूँ , जहाँ पर ओबामा का पूरा speach देख (http://www.youtube.com/watch?v=VjnygQ02aW4 ) या पढ़ (http://edition.cnn.com/2009/POLITICS/01/20/obama.politics/index.html) सकते हैं ।


आशा है की ये सामग्री आपको पसंद आएगी।


राहुल गाँधी का सर्कस


क्या आप विषय देखकर चकित रह गये की इसको ये समाचार कहाँ से मिला, अरे भाई ये तो पूरे विश्व ने देखा जब हमारे युवा कर्णधार ने अपने फिरंगी दोस्त को अमेठी के किसी गाँव के एक गरीब परिवार से मिलाया और उसके यहाँ पशुओ के बीच खटिया पर रात गुजारी और बेचारा मिलबंद रात भर सो भी नही पाया। अपने इधर तो यही रिवाज है की मेहमान को अच्छी चीज दिखाते है जिससे जग हंसाई न हो। राहुल ने गाँव के लोगो को उस फिरंगी के सामने ऐसे प्रस्तुत किया जैसे उसको सर्कस दिखने ले गए हो। अमेठी पर ५० सालो से कौन जीतता आ रहा है ? शायद जबाब होगा भारत का शाही परिवार गाँधी परिवार, फिर क्यूं नही विकास हुआ , राजीव, इंदिरा जी और सोनिया से लेकर राहुल लाला ने क्यों नही इनका जीवन स्तर ऊँचा उठाने की कोसिस की ? क्यों नही भारत के प्रधानमत्री रहे लोगो का चुनाव क्षेत्र बाकी देश के लिए मिसाल न बन पाया ? उत्तर बहुत आसान है, ध्यान ही नही दिया और जब ख़ुद की मार्केटिंग की बात आई तो राहुल गाँव से जुड़ने के बहाने उस गरीब महिला के घर सर्कस करने पहुँच गए।

राहुल और अन्य नेताओ में कोई फर्क नही नजर आ रहा सिर्फ इसके की इनको मार्केटिंग का आधुनिक तरीका आता है। राहुल को सबके सामने ये बात स्वीकार करनी चाहिए की उसके परिवार की वजह से अमेठी भी देश के अन्य भागो की तरह पिछड़ा है, रुकिए ज़रा .... ये स्वीकारोक्ति करनी होगी की गरीब और गरीब हुआ है और जो गाँधी परिवार को चाटने वाले थे उनका विकास हुआ है, वह लोग या तो राजनीती में , या धंधे में , या फिर गुंडागर्दी में आगे बढाए गए। गरीबो की तरफ इन लोगो ने कभी गंभीरता से ध्यान दिया ही नही, तभी तो गरीब विधवा की ये हालत है की राहुल की यात्रा के बाद मायावती ने उसके लिए अपने अफसर के हाथ ५०० रुपये भिजवाये, मायावती जो करोडो में खेलती है अपने आपको ५०० रुपये दान देकर रास्ट्रीय मीडिया के सामने महान बन रही थी।

में अपनी एक पुरानी कविता यहाँ लिखना चाहूँगा, की में पल पल यहाँ क्यों परेसान होता हूँ -
बहुत दुख देती है मेरे भारत की बीमारी मुझे
नाटक सा लगता है आज का ये विकास जहाँ सब कुछ है पर कुछ भी नहीं
कोई नही सुनता आज भी गरीब की, कोई नही देखता भूखे किसान को
न्याय के गलियारे हो या फिर सत्ता की बिसातें, हर जगह बिकती है ईमानदारी
....

पूरी कविता इस लिंक पर पढ़ें - http://kavitacollection.blogspot.com/2009/01/blog-post_3476.html


में राहुल के यथार्थवादी द्रष्टिकोण का सम्मान करता हूँ पर साथ ही उन्हें अपने और अपने परिवार की गलतियों को मानकर उनका प्रायश्चित करना चाहिए। सिर्फ राजनीती और भावुकता से काम नही चलेगा, कुछ काम भी करके दिखाना पड़ेगा। मेरा भारत महान का नारा लगाने वाली कांग्रेस को भारत के बारे में अंतर्मन से विश्लेषण करने की जरूरत है। मोदी से कुछ सीखो जो गुजरात को मेरा भारत महान के सही सन्दर्भ का व्याख्यान बना रहे है। राहुल को उस फिरंगी मंत्री को अमेठी के साथ साथ गुजरात के किसी विकसित ग्राम का दौरा भी कराना चाहिए था। मैं आशा करता हूँ की अमेठी को अंगूठा दिखाने की बजाय ये राजकुमार उसको कुछ अनूठा देने की कोशिश करेंगे।

इसी आशा के साथ ....

गुरुवार, 22 जनवरी 2009

मुंबई के कुछ ही शहीदों को सलाम क्यूं ??


चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी



अगर कोई मेरी ये लेख पड़कर नाराज होता है तो मैं पहले से ही माफी माँग लेता हूँ , पर ये बात सच है की आप सबके दिमाग में भी यही सवाल बार बार आता होगा की क्यूं हर रोज केवल चुनिन्दा पुलिस वालो को ही बार बार शहीद बताया जा रहा है, सिर्फ़ इसलिए की वो उच्च पदों पर आसीन पदाधिकारी थे या फिर इसलिए की वो तथाकथिस शहरी वर्ग से आते थे, क्यों महानगरीय ठप्पे वाले लोग जैसे हेमंत जी, सालसकर जी को ही हम अशोक चक्र या वीरता चक्र देने की बात कर रहे है ? क्या वो पुलिस वाले जो तीसरे विस्वयुद्ध की बंदूको से लड़ रहे थे या फिर अपने डंडे से ही कुछ कमाल दिखा रहे थे, शहीदी का तमगा नही लगा सकते ? मेने आज तक किसी भी टीवी चैनल पर साधारण पुलिस वालो का नाम या लिस्ट नही देखी , मेने अपने ज्ञान के अनुसार वेब पर भी इधर उधर नजर दौडाई पर कही भी मुंबई के ३ अफसरों के अलावा किसी और का नाम नही दिखा, ये क्या मजाक है ? जैसे हेमंत करकरे जी, सालसकर जी और कामते जी ने बहादुरी या नेत्रत्व दिखाया वैसे ही अनेक और भी साधारण पुलिस वाले उस दिन अपना प्रयास करते हुए मारे गए होंगे, क्या कोई एक एसा आप लोगो मे से है जो उनके नाम जानता हो, किसी राजनीतिज्ञ ने या राहुल गाँधी जैसे तथाकथित महान लोगो ने उन बेनामो को याद किया ? क्या आपको नही लगता की सिर्फ चमत्कार को ही नमस्कार किया जा रहा है ? ऐसे अनेक सवालों ने मेरे को इतने दिनों से विचलित कर रखा है और मेने सोचा की चलो ब्लॉग के जरिये ही आप लोगो के साथ ये दुःख बाँट लूँ।

ये पुलिस वाले हमारे जैसे साधारण परिवारों से आते है और इसलिए ही शायद ऐसे असाधारण वक्तों में लोग उनका नाम भूल जाते है और ये भी नही सोचते की उनके परिवार पर जो किसी छोटे से शहर या गाँव में होगा और उसी पर निर्भर होगा , क्या बीत रही होगी । इन बड़े अधिकारियो के बेटे बेटी तो विदेश में पड़ते है, पर उन छोटे लोगो को जिनके बच्चे सरकारी स्कूल में ही जाने को बहुत कुछ समझते है. भारत में यही अन्तर एक गरीब और अमीर , एक छोटे और बड़े आदमी के बीच मेरे को पीड़ा देता है. जब तक ये अंतर ख़त्म नही होगा, क्या हम छोटे लेवल पर, जड़ो में उर्जा पैदा कर पायेंगे ? मेरा उत्तर है नही नही....नही और इन्ही हरकतों से हम ये भावना भी भर रहे है की इमानदारी , बहादुरी की तारीफ तभी है जब आप चमक रहे हो, बड़े हो, पदासीन हो या फिर राजनैतिक गलियारों में आपकी पहुँच हो, चाटुकारिता में आप माहिर हो. हम सबने केवल कुछ को महत्व देकर सबके बलिदान को यहाँ तक की इन तीनो बहादुरों के बलिदान को भी फीका कर दिया.


अगर किसी के पास अन्य शहीदों की सूची है तो कृपया मेरे को ईमेल कर दें.
सादर धन्यवाद !!