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बुधवार, 9 जुलाई 2008

अब बिकेंगे प्रजातंत्र के सिपाही


दिल्ली में बाजार गर्म है, उन लोगो का भाग्य बदलने वाला है जो अब तक सत्ता के विरोध और अल्पमत के अंधकार में ४ साल से जी रहे थे। अब उनके एक - एक वोट की कीमत करोडो में आंकी जायेगी। पी वी नरसिम्हा राव वाली कांग्रेस और शिबू सोरेन ने भी यही खेल खेला था और अब ये खेल अम्बानी बंधुओ के ख़ास अमर सिंह जी मनमोहन के आँगन में खेलने वाले है। धिक्कार है ऐसे प्रजातंत्र को जिसमें अवसरवादिता सिधान्तो से ऊपर है। जैसे अटल बिहारी जी ने बोला था की में ऐसी सत्ता को चिमटी से भी नही छु सकता , क्या मनमोहन जी नही कह सकते पर उससे भी क्या होगा , डील के नाम पर कांग्रेस का शहीद होना और जनता को चुनाव की एक और आग में झोंकना। भगवान् भरोसे मेरा देश है और पैसे के भरोसे है हमारे छोटे छोटे दल। देखिये अब देवेगौडा साहब के तीन सांसद है , अजीत सिंह के साथ भी कुछ इतने ही लोग है और ये सब माहिर राजनीती के खिलाडी है, इनके घर इसी तरह तो चलते है, इनका राजनीती को व्यवसाय बनाने में बहुत बड़ा योगदान है। देवेगौडा साहब इस देश के प्रधानमन्त्री रह चुके है और अब देश के लिए कुछ करने के बजाय अपने बेटे के सर्वहित में लगे हुए है। पश्चिमी देशो में इतने बड़े पद से सेवामुक्त होने के बाद ये लोग समाज हित में कार्य करना शुरू कर देते है और हमारे यहाँ ये लोग उस पद की महिमा का उपयोग अपने स्वार्थ के लिए करते है।

क्या हुआ अगर UP के किसी दूर जिले में कोई भूखा मर रहा है, सांसद महोदय को इससे क्या, अब तो अगर वो निर्दलीय है तो उनके बंगले पर मिठाई बाँटीं जा रही होगी क्योंकि उनको कांग्रेस से फ़ोन आ रहे होंगे, असहाय लोगो को बचाने की कवायद नही होगी, दिल्ली में तो अब सरकार बचाने की कवायद होगी। में इस डील का समर्थक हूँ, पर अगर डील इस तरह दलाली से आती है तो फिर क्या सार्थक पहलू है इसका ? कुछ लोग अपने ऊपर चल रहे केस वापस करने की डील करेंगे तो कुछ लोग अपना बैंक बैलेंस बढायेंगे। दिल्ली में अगले कुछ घंटो में सिधान्तो और सविधान को जलील किया जायेगा हमारे संविधान के रक्षको द्वारा। कांग्रेस ने भारत बंद के दौरान मरे लोगो के घर जाकर बीजेपी को बुरा बताकर अपना फर्ज पूरा किया , केन्द्र से और मुआवजा लाश की कीमत पर मिल जायेगा और उसके बाद सब बड़े नेता दिल्ली खरीद दारी करने के लिए सोनिया जी के सामने हाजिर होंगे।

कांग्रेस और सपा अगर क्रिमिनल है तो बीजेपी को में हिजडा कहूँगा जो महंगाई और इस दलाली के बीच सिर्फ तालिया बजा कर जनता को पागल बना रही है, क्या यही विपक्ष का दायित्व है ?? कोई एक तो हो जो विचारों पर कायम रहे, कोई एक तो हो जो अपने निर्वाचन क्षेत्र के बारे में सोचे, कोई एक तो हो जो अपने मतदाता के आंसू पौंछे या फिर स्वार्थ से ऊपर उठकर काम करे, ये लोग हमारे प्रतिनिधि है और इसलिए इतनी सारी अपेक्षाएं होना स्वाभाविक है। ऐसे लोग जो टेबल मेजो से संसद में लडाई करते है और प्रश्न पूछने के लिए भी पैसे लेते है...क्या उम्मीद रखे??

सपा ने कलाम जी को अपने तर्कों का सारथी बनाया तो मायावती ने मुस्लिमो को अपना भाई बनाया, अमर सिंह जी ने मोदी को देश के लिए बुश से भी बड़ा खतरा बताया है और सोनिया को कभी विदेशी बताने वाले अब उन्हें देश की बहु कह रहे है, ये हराम का पैसा कुछ भी करा सकता है। कैसी विडम्बना है - पसीने बहाने वाले का टैक्स ये पैसे के दलाल अपनी सुविधा और बकवास में फूँक देते हिया और फिर भी हम जैसे इस तरह लिखने वाले लोग फिर इनकी कठपुतली बन इनके इशारों पर नाचने हर वक्त तैयार रहते है।

- राम

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