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मंगलवार, 15 जुलाई 2008

Nuclear deal - good info

There is lots of chaos going on due to nuclear deal india is about to sign with IAEA. I am putting two important links here which will further help you to understand the criticality and significance of this deal -

Draft (full text) of deal -> http://im.rediff.com/news/2008/jul/iaea.pdf
Q&A session with top policy makers : http://specials.rediff.com/news/2008/jul/15sd1.htm

गुरुवार, 10 जुलाई 2008

सरपंच की इज्जत !!

सरपंच साहब ने बुलाई है बैठक
सरकायलो खटिया और कुरसियाँ
पहले खेलो तांस और फिर सुलगायलो बीडी बोहरे
इतर लगाने वालो भी आयो है
क्या है मंजर पार्टी जैसो
सरपंच साहब ने बुलाई है बैठक
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बोले मूला, सरपंच साहब आप महान हो
मिटटी के तेल से ही लाखों निचोड़ने में माहिर हो
घर का नाम रोशन कर रहे हो
जब से जीते हो, लाखों बना रहे हो
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बोले मुरारी सरपंच साहब आप तो खिलाड़ी हो
हमें उधार देने वाले भगवान् हो
अफसरों से सांठ गाँठ करना कोई आपसे सीखे
सरकार से पैसा एंठने में आपका कोई जबाब नहीं
हम तो भूखे है इसका हमें मलाल नहीं
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जलाओ और बीडी , पानी की बाल्टी भी ले आओ
सब बोले एक मत में आप ही गाँव के सच्चे सपूत हो
नेता बनने के सारे गुण रखते हो
पढ़े लिखे लोग क्या कर पायेंगे
आप से क्या मुकाबला कर पायेंगे
आपने गाँव का नाम रोशन किया है
सरकार के पैसे से अपने घर को मालामाल भी किया है
इस बार डाल दो पर्चा MLA के लिए
बहू को कर दो खड़ा सरपंची के लिए
सरपंच साहब बहुत खुश हुए
दो चार अकडन लेते हुए
मीटिंग को सफल बताते हुए
सरकार को चूना लगाने फिर चल दिए !!

- राम

बुधवार, 9 जुलाई 2008

बढ़िया तो है सब

तपती हुई गर्मी में
झोला लेकर निकले
सायकिल में मारे पैडल जोर से
चिट्ठी घर घर देता डाकिया
सुई लगाता घर घर बीमार सा डाकधर
सरपंच अपनी अथाई पर बैठा मरोड़े मूछ
पर कोई नेता नही इनको रहा पूछ
पटवारी ने खाट के ऊपर बनाया अपना ऑफिस
मास्टर साहब ने टुइशन के बहाने घर को ही बनाया स्कूल
इंजिनियर ने दे दिया सारा काम ठेकेदार को
जनता की लगा दी बाट खा गए सारे पैसे को
रोड को कर दिया सकरा
तभी तो अब इनके घर में कटेगा बकरा
थानेदार साहब से परेशान है सुनार
रिश्वत लेते है ये बेसुमार

- Ram

अब बिकेंगे प्रजातंत्र के सिपाही


दिल्ली में बाजार गर्म है, उन लोगो का भाग्य बदलने वाला है जो अब तक सत्ता के विरोध और अल्पमत के अंधकार में ४ साल से जी रहे थे। अब उनके एक - एक वोट की कीमत करोडो में आंकी जायेगी। पी वी नरसिम्हा राव वाली कांग्रेस और शिबू सोरेन ने भी यही खेल खेला था और अब ये खेल अम्बानी बंधुओ के ख़ास अमर सिंह जी मनमोहन के आँगन में खेलने वाले है। धिक्कार है ऐसे प्रजातंत्र को जिसमें अवसरवादिता सिधान्तो से ऊपर है। जैसे अटल बिहारी जी ने बोला था की में ऐसी सत्ता को चिमटी से भी नही छु सकता , क्या मनमोहन जी नही कह सकते पर उससे भी क्या होगा , डील के नाम पर कांग्रेस का शहीद होना और जनता को चुनाव की एक और आग में झोंकना। भगवान् भरोसे मेरा देश है और पैसे के भरोसे है हमारे छोटे छोटे दल। देखिये अब देवेगौडा साहब के तीन सांसद है , अजीत सिंह के साथ भी कुछ इतने ही लोग है और ये सब माहिर राजनीती के खिलाडी है, इनके घर इसी तरह तो चलते है, इनका राजनीती को व्यवसाय बनाने में बहुत बड़ा योगदान है। देवेगौडा साहब इस देश के प्रधानमन्त्री रह चुके है और अब देश के लिए कुछ करने के बजाय अपने बेटे के सर्वहित में लगे हुए है। पश्चिमी देशो में इतने बड़े पद से सेवामुक्त होने के बाद ये लोग समाज हित में कार्य करना शुरू कर देते है और हमारे यहाँ ये लोग उस पद की महिमा का उपयोग अपने स्वार्थ के लिए करते है।

क्या हुआ अगर UP के किसी दूर जिले में कोई भूखा मर रहा है, सांसद महोदय को इससे क्या, अब तो अगर वो निर्दलीय है तो उनके बंगले पर मिठाई बाँटीं जा रही होगी क्योंकि उनको कांग्रेस से फ़ोन आ रहे होंगे, असहाय लोगो को बचाने की कवायद नही होगी, दिल्ली में तो अब सरकार बचाने की कवायद होगी। में इस डील का समर्थक हूँ, पर अगर डील इस तरह दलाली से आती है तो फिर क्या सार्थक पहलू है इसका ? कुछ लोग अपने ऊपर चल रहे केस वापस करने की डील करेंगे तो कुछ लोग अपना बैंक बैलेंस बढायेंगे। दिल्ली में अगले कुछ घंटो में सिधान्तो और सविधान को जलील किया जायेगा हमारे संविधान के रक्षको द्वारा। कांग्रेस ने भारत बंद के दौरान मरे लोगो के घर जाकर बीजेपी को बुरा बताकर अपना फर्ज पूरा किया , केन्द्र से और मुआवजा लाश की कीमत पर मिल जायेगा और उसके बाद सब बड़े नेता दिल्ली खरीद दारी करने के लिए सोनिया जी के सामने हाजिर होंगे।

कांग्रेस और सपा अगर क्रिमिनल है तो बीजेपी को में हिजडा कहूँगा जो महंगाई और इस दलाली के बीच सिर्फ तालिया बजा कर जनता को पागल बना रही है, क्या यही विपक्ष का दायित्व है ?? कोई एक तो हो जो विचारों पर कायम रहे, कोई एक तो हो जो अपने निर्वाचन क्षेत्र के बारे में सोचे, कोई एक तो हो जो अपने मतदाता के आंसू पौंछे या फिर स्वार्थ से ऊपर उठकर काम करे, ये लोग हमारे प्रतिनिधि है और इसलिए इतनी सारी अपेक्षाएं होना स्वाभाविक है। ऐसे लोग जो टेबल मेजो से संसद में लडाई करते है और प्रश्न पूछने के लिए भी पैसे लेते है...क्या उम्मीद रखे??

सपा ने कलाम जी को अपने तर्कों का सारथी बनाया तो मायावती ने मुस्लिमो को अपना भाई बनाया, अमर सिंह जी ने मोदी को देश के लिए बुश से भी बड़ा खतरा बताया है और सोनिया को कभी विदेशी बताने वाले अब उन्हें देश की बहु कह रहे है, ये हराम का पैसा कुछ भी करा सकता है। कैसी विडम्बना है - पसीने बहाने वाले का टैक्स ये पैसे के दलाल अपनी सुविधा और बकवास में फूँक देते हिया और फिर भी हम जैसे इस तरह लिखने वाले लोग फिर इनकी कठपुतली बन इनके इशारों पर नाचने हर वक्त तैयार रहते है।

- राम

सोमवार, 7 जुलाई 2008

श्रद्धांजलि


गली में आज अजीब तरह का सन्नाटा छाया हुआ था, हर कोई स्तब्ध था. घटना ही ऐसी रोंगटे खड़े करने वाली थी. सोने से पहले मूला के छोटे लडके मुरारी ने सुनहरे कल के सपने देखे थे, वो जब अपना ठेला लगाकर शाम को घर लौटा तो उसकी बहन कमला ने भाई को पानी देते हुआ कहा की कल तो मेरा दिन है !! रखाबंधन है, मेरा भाई मेरे लिए क्या ला रहा है ? मुरारी बहुत खुस हुआ और तपाक से बोला की इस बार कुछ नही दूँगा तेरे को... और मन ही मन हंस रहा था, क्यूंकि उसने मन में कुछ सोच रखा था. उसका धंधा आजकल कुछ कम हो रहा था, लोग नए नए बने मल्टीप्लेक्स बाजारों में ज्यादा जा रहे थे. सोचा कल सुबह जल्दी जागकर कुछ स्पेशल ऑफर अपने ठेले पर लगाऊंगा; जिससे कुछ ज्यादा भीड़ जुट सके, कई तरह के आईडिया उसने सोचे. सुबह जल्दी जागा, उसको परवाह नही की क्या हो रहा है बाहरी दुनिया में, जल्दी से नहा धोकर अपने ठेले को लेकर उसमें सारा चाट का सामान रखने लगा, उसने सोचा की कोई आवाज नही हो...नही तो कमला उठ जायेगी, वो तो आज इसलिए ही इतना आनंदित है की रात को जब घर आएगा अपनी बहन के चहरे पर प्यारी सी मुस्कान देखेगा. सब कुछ सामान्य सा ही था, आवारा कुत्ते घर के सामने पहरेदारी कर रहे थे, शर्मा जी ढूध लेने जा रहे थे, अभी कुछ लोगो के लिए बिस्तर पर और नीद लेने का टाइम था, पर मूला के घर में लोग इतना नही सो सकते थे, एक दिन भी अगर समय से अपने काम पर अगर वोह नही जाते तो दूसरे दिन का खर्च कैसे चलेगा और ऊपर से कमर तोड़ती हुई महंगाई , उन लोगो के लिए सुकून नही था जीवन में, चाहे कोई भी मौसम हो, काम तो करना ही था. मुरारी 10th में तो सक्सेना सर के लडके के बराबर अंक लाया था, अगर उसको प्रैक्टिकल में थोड़े और नम्बर मिले होते तो स्कूल में वही टॉप करता, लेकिन आगे फिर वो नही पड़ सका, उसने ठेले पर अपने पिता का हाथ बताना शुरू कर दिया, उसको ठेला तो विरासत में मिला था , कुछ दिनों बाद मुरारी का ठेला पूरे कस्बे में मसहूर हो गया था और कई कई बार तो सुबह का निकला हुआ वह देर रात तक अपनी दूकान बंद कर पाता. लोग उसके नाम से उसको जानने लगे थे. लोगो को लगता की उसने चाट इसलिए महँगी की क्यूंकि वह मसहूर हो गया है, पर उसके पीछे तो कमर तोरती महंगाई थी. कड़ी मेहनत के बाद कुछ कर्ज चुकाने में सफल हो पाया था. मूला बहुत खुश था की उसके लडके ने उसका काम बढिया तरीके से संभाल रखा है. एक बाप को इसके सिवाय और क्या चाहिए की उसका बेटा उसके पैरो पर खड़ा हो गया है. सब कुछ ठीक चल रहा था. पर जैसे कहते है की दिन के बाद रात और छांव के बाद धुप जरूर आती है, इस गरीब घर की खुशियों के लिए भी ऐसा कोई तूफान जैसे इंतजार कर रहा हो. मुरारी के पास इतना समय नही था की वह रात को टीवी पर समाचार देख सके या फिर रियलिटी shows का लुत्फ उठा सके, उसके लिए तो उसके रोज के ग्राहक और चाट खाने वाले ही सब कुछ थे. उसकी बाहरी दुनिया उस कस्बे तक ही सीमित थी. गीत गुनगुनाते हुए अपने ठेले को लेकर वह चोराहे की और बाद रहा था. आज उसे बाजार की सड़को पर रोज वाल्क के लिए आने वाले गुप्ता जी और शर्मा जी की जोड़ी नही दिखाई दी, सोचा की कही बाहर गए होंगे या फिर सोते रह गए होंगे, ऐसा सोचते सोचते उसने अपना स्टोव बाहर निकाला और उसमें हवा भरने लगा. कुछ आवारा कुत्ते ठेले के पास उसका सामान खाने की कोसिस करते उसके पहले ही उसने डेला उठाकर उनको भगाया. आज उसको अपनी सारी उपलब्धिया याद आ रही थी, वोह सोच रहा था की क्यों मेरे मन में ये सारी बातें आज आ रही है. बचपन , उसकी माँ की असहनीय अवस्था और फिर असमय मौत सब कुछ जैसे उसकी आँखों के सामने से गुजर रहा हो, और फिर अचानक से सोचता की में क्यों ये सब याद कर रहा हूँ ?? आज उसने कुछ स्पेशल मिठाई बनाई थी जो वह हर ५ रुपये के चाट पर फ्री देने वाला था, सोच रहा था की आज की सारी कमाई मेरी बहन के लिए होगी. वो उसके लिए आज सायकिल लाने की सोच रहा था, मूला ने एक दिन सायकिल की वजह से कमला को बहुत डांटा था और फिर वो सहम कर छत पर चली गई थी. उसके सपनों में वो सायकिल पर जा रही थी और अपने आप को परी समझ रही थी, बडबडा रही थी की देखो आज मेरे भाई ने सायकिल दिलवा दी , उसके सपने और बुदबुदाहट से मुरारी की नीद खुली और उसने उसको बोला सोने दे, सुबह उठना है मुझे. वह उस दिन की बात को उसी रात भूल गया था पर आज उसे वोह सब याद आया और सोचा की रात को ठेले की कमाई को लेकर और कुछ और मिलाकर सायकिल लूँगा. यही सब सोचते सोचते एक - डेढ़ घंठा कब निकल गया, पता ही ना चला. आज बाजार में उतनी चहल पहल नही थी. जैसे ही सूरज की किरणों ने उजाला बिखेरा, मुरारी भी आशान्वित होकर खड़ा हो गया की ग्राहकों के आने का टाइम हो चला. कुछ देर में ग्राहक तो नही पर कुछ कुरते पजामे वाले लोग आए और बोले, तेरे को पता नही आज बंद है और तुने दूकान खोल ली, कुछ ज्यादा ही अपने आप को हीरो समझ रहा है ये, इस तरह से उन लोगो ने उल्टा सीधा बोला और उसको धमाका कर आगे बढ़ गए. उसने सोचा की कोई गुंडे लोग लग रहे है, मुझे इनको नजरअंदाज कर देना चाहिए. और वह फिर से अपने काम में लग गया. इस बार फिर से कुछ और कुरते पजामे वाले लोग आए पर कुछ दूसरी पार्टी के लग रहे थे, उन्होंने उसका उत्साह बढाया और बोले की तुम हो सही नागरिक जो ऐसे में अपनी दूकान खोलकर बैठे हो . उन लोगो के कुछ पोहा खाया और आगे बाद लिए. मोरारी थोड़ा आशंकित हुआ और सोचा की बात क्या है, लग रहा है गुंडों के दो गुट उन आवारा कुत्तो की तरह घूम रहे है, सोचा की घर वापस चला जाए और फिर उसे अपनी बहन याद आई और उसने सोचा की नही आज तो मैं कही नही जाने वाला. एक आशा के साथ वह वही ग्राहकों के इंतजार मैं खड़ा रहा. इस तरह की गहमागहमी मैं कुछ सुबह के १०:३० बज गए थे. इतने मैं एक लड़का चाट खाने आया. मुरारी उसको चाट बना ही रहा था की कुछ लोग नारे लगाते हुए निकले की 'गरीबो की पार्टी कैसी हो, ... जैसी हो". फिर बोले की शान्ति से आप दुकाने बंद कर ले नही तो हमारे कार्यकर्ता आयेंगे और बंद करा देंगे. मुरारी तो जैसे अब हर चेतावनी नजरअंदाज ही करता जा रहा था, क्यों न करे, उसके मन मैं कुछ सुनहरे सपने जो पल रहे थे. मुरारी का ऑब्जेक्टिव था अपने पेट का पालन और घरवालो को खुसिया देना, जबकि उन नारे देने वालो का तथाकथित लक्ष्य गरीबो की पार्टी बनाना और बंद को सफल बनाना था. इतने मैं ही कुछ लोगो मैं जो दूसरी पार्टी के थे, धक्का मुक्की होने लगी और एक चिल्लाया , मारो सालो को, छोडना मत, इससे अच्छा मौका नही मिलेगा .... लाठिया बहार आ गई और शान्ति का वो मोर्चा हिंसक रूप लेने लगा, किसी ने बन्दूक निकाली और हवा मैं फायर किया, मुरारी ने ठेला वही छोड़ा और भागने लगा, दूसरी तरफ पुलिस पर भी पत्थर बरसने लगे और तभी पुलिस को आन्स्सू गैस छोड़नी पड़ी , इतने में ही किसी ने एक गोली चलाई और वो लगी भागते हुए मोरारी को ...और ऐसे कई मुरारी इस तरह बंद का शिकार बने.


लोग कहते है की बिना बंद के सरकार नही सुनती, सब ठीक है, तर्कों का कोई अंत नही, पर अब मुरारी के परिवार का क्या होगा?? उसकी गली के सन्नाटे के पास भी इसका जबाब नही. क्या सरकार की राहत वो खुसी देगी जो उसकी बहन को उसकी सायकिल से मिलाती ...??

जेहन मैं ऐसे सवाल हर पल आते रहते है
फिर भी हम इन्सान क्यों न रह पाते है
हर गली मैं ऐसे कई मूला और मुरारी मरते है
फिर भी ये बंद कैसे सफल होते है
हर तरफ सन्नाटा छाया रहता है
फिर भी राजनीती के दलाल व्यापार करते है
हर कोई सुनकर स्तब्ध रह जाता है
फिर भी ये बंद हर रोज होते है
जान और माल का नुकसान ये करते है
फिर भी ये बंद क्यों बंद नही होते है


- राम

शनिवार, 5 जुलाई 2008

बंद को बंद करो ....

गरीब लोग परेशान है, यात्री लोग असुविधा का सामना कर रहे है, ये कैसा बंद है , विद्यालय में हमें सिखाया जाता है की आपका हथियार कलम है न की हिंसा, ऐसा ही कुछ गांधीजी जैसे महान लोगो ने कहा है , पर हमारे राजनैतिक लोग जो अपने आप को आम आदमी का प्रतिनिधि बताते है वो क्यों आम जनता को इस तरह की मुसीबतों में डालते है ? क्या ये अपना विरोध किसी और तरीके से नही दिखा सकते ?

गरीब और मध्यम वर्ग राजनीति के स्वार्थी तत्वों के चक्रव्यूह में ऐसा फस गया है की देश में रोज कही न कही वो पिस रहा है। क्या बड़ी पार्टियाँ अपने कार्यकर्ताओ से नही बोल सकती की आप किसी की दूकान जबरदस्ती बंद नही कराओगे बस अपने विचार लोगो को पहुँचाओ और देखो कितने लोग हमारे साथ है ? ऐसे कई सवाल मन में हर वक्त आते रहते है, और जबाब है जाओ और कुछ करो ऐसा जिससे कुछ सुधर आ जाये, ब्लॉग पर भी लिखो पर कुछ करो भी। मन तो करता है की आज ही सब कुछ छोड़कर अपने लोगो के सुधार में लगा जाये। अंतर्द्वंद सा चलता रहता है , अच्छा है ये चलता रहे और आशा करता हूँ की ये वैचारिक संघर्ष एक दिन मुझे अपने लोगो के बीच ले जाये। में आडवानी जी से जिनकी में और मेरे जैसे बहुत युवा बुत इज्जत करते है, की वो बीजेपी को सैधांतिक रूप से मजबूत बनायेगे और बंद को वैचारिक लडाई से लडेंगे न की लाठी के जोर से। बीजेपी को जनता की आम मुसीबतों को आगे लाना चाहिए, गरीब जनता छोटे से छोटे काम के लिए रिश्वत देने के लिए मजबूर है, सदके गद्दों से भरी पड़ी है, क्यों नही आप जनता की परेशानी को आगे लाते हो ?
बंद को बंद करना ही पड़ेगा, ये आम जनता के हित की बात है, क्या कर्ज से दबा हुआ किसान बंद कर सकता है ? नही....वह तो सूखे खेतो में अपने पसीने को और बाहाता है जिससे कुछ पैदा हो सके, वो बस के सीसे नही तोड़ता बल्कि प्रयास करता है की मेरी फसल कैसे भी करके मेरे लिए खुशिया लाये। आम आदमी बंद नही, बल्कि प्रयास चाहता है, आम आदमी शान्ति और खुसी चाहता है, कितने दर्द की बात है की एक व्यापारी बंद के विरोध में आत्मदाह कर लेता है।

- राम

गुरुवार, 3 जुलाई 2008

मैं वापस आ गया हूँ -

मैंने सोचा है की अब में प्रतिदिन एक घंटे का समय अपने ब्लॉग को दूँगा। ये जरूरी है अपने हाथ में लिए काम को एक अंजाम तक पहुंचाने के लिए. हम लोग नए नये ख्वाब देखते है और फिर कुछ दिन के प्रयास के बाद उस दिशा में काम करना बंद कर देते है और इसीलिए कभी भी हर देखे गए ख्वाब को पूरा नही कर पाते और वही से फिर शुरू होता है की सपने कभी पूरे नही होते, सपने जरूर पूरे होते है अगर उस दिशा में आप कार्य करें. मन में अगर सोचा है कि अगर किसी के घर जाना है तो रास्ता तो तय करना पड़ेगा घर तक पहुचने के लिए.
शिकागो मैं इस समय गर्मी का मौसम है, 4th जुलाई आने वाला है जो कि इनका स्वतंत्रता दिवस होता है, बस लोग लंबे सप्ताहांत की तैयारी मैं जुटे हुए है। कोई कही लम्बी ड्राइव पर जाने वाला है तो कोई अपने परिवार के साथ कुछ पल एकसाथ बिताने का सोच कर बैठा है तो कोई कही दूर समुद्र किनारे की सैर का मन बना कर बैठा है, हर कोई कुछ न कुछ सोच कर बैठा है जिससे कि गर्मियों को पूरा लुत्फ उठाया जा सके, वैसे भी इस क्षेत्र मैं गर्मी का मौसम कुछ महीनो कि बात होती है और पता नही कब फिर ठंडी हवा बहने लगे, इसलिए हर कोई मौसम की खुशमिजाजी का भरपूर फायदा लेने के लिए उत्सुक नजर आता है, मेने यहाँ देखा है कि हर मौसम का लोग खूब दिल से मजा लेते है, यही शायद व्यस्त और अकेली जिंदगी मैं कुछ खुशियों और अपनेपन के पल दे जाए. जीवन के हर पल और हर अवस्था का जिस तरह महत्त्व होता है उसी तरह प्रकृति के हर मौसम का अपना अंदाज है. कुछ दिन पहले हम भी अपने कुछ दोस्तों के साथ एक जगह घूमने गए थे. इस साल हम लोग अनु (मेरी पत्नी) के स्वास्थ्य कि वजह से कुछ कम बाहर निकल रहे है, हम लोगों के यहाँ सितंबर मैं एक और छोटा सा मेहमान आने वाला है और इसलिए हमने अपने parents को यहाँ बुलाया है, वो लोग कुछ दिनों मैं ही आने वाले है तो बहुत कुछ तैयार करना है, इस वजह से हम लोग इस 4th जुलाई वाले छुट्टी मैं कही नही जा रहे हैं. बस अब तो उन लोगो के आने का ही इंतजार है कि कब आए और कुछ समय उन लोगो को दे जिनको हमारे समय की सबसे ज्यादा जरूरत है. लेकिन जब आ भी रहे है तो हमारी सेवा करने आ रहे है. कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है और मेरे को लगता है कि आपने पाने से ज्यादा खो दिया अगर आप अपने वतन से दूर आ गए हो. बिना समाज के मानवता को जीना कैसे सीखोगे और वही समाज आपके पास नही है. कितना भी परिवर्तन आप अपने आप मैं कर लीजिये, पर आप अपने मूल रूप से कभी मुंह नही मोड़ सकते और इसलिए आप हर वक्त मन के कोने मैं यहाँ सोचते रहते हो कि कुछ खो सा गया है. कुछ नही बहुत कुछ खो सा गया है.
अभी शिकागो मैं गर्मी शुरू हुई है और कुछ दिन पहले ही यहाँ के चुनाव मैं हिलेरी और ओबामा के बीच जो राजनीतिक गर्मी थी वो अन्तत: अपने निष्कर्ष पर पहुँची। जैसे हवा के साथ रेत और मिटटी उड़ती है उसी तरह ओबामा के ओजस्वी speaches और young लुक ने बहुत लोगो को आकर्षित किया. ऐसा नही कि हिलेरी हार गई हो, उसने सारी बड़े राज्यों मैं जीत हासिल कि, ओरतो के लिए एक प्रेरणा का श्रोत बनाकर वह उभरी, बहस मैं अपने आप को हिलेरी ने सर्वोच्च साबित किया, उनके पक्ष से कुछ tactics मैं गलतिया हुई और ओबामा के हूनर को नजरअंदाज किया गया इसलिए वह डेमोक्रेटिक पार्टी की उम्मीदवार नही बन पायी पर भीर भी एक वैचारिक छाप हम जासे हजारो लोगो के दिल मैं छोड़ गई. यही आश रखनी चाहिए कि आने वाले चुनाव मैं ओबामा विजय हासिल कर लोगो की मुसीबत दूर करे. पूरे दुनिया मैं इस वक्त तेल की कीमतों की वजह से बुरी हालत है, खाने की कीमतें बढ़ रही है, महंगाई आसमान छू रही है और लोग बेरोजगार हो रहे है. कही न कही वर्तमान मैं यहाँ के रास्त्रपति Mr बुश को इसमें योगदान जरूर है , इराक युद्ध से लेकर इरान विवाद तक हर समय ग़लत निर्णय लिए गए इसलिए मैं नये US President से कुछ उम्मीद लेकर बैठा हूँ.
हमारे देश मैं तो बंद बंद ही नही हो रहे है, पहले गुर्जर भाई थे जिम्मेदार , फिर गोरखालैंड और अब अमरनाथ जमीन। कुछ भी हो देश की सम्पति को उग्र भीड़ द्बारा नुकसान पहुंचाना आम बात है। पता नही ऐसा कब तक चलेगा और कब तक हमारे राजनीतिक दल गरीबो को और गरीब बनाते रहेंगे और टैक्स देने वालो का पैसा पानी मैं बहाते रहेंगे. कभी न कभी तो राजनीति को सभ्य होना ही पड़ेगा. आशा करते हैं कि हम जैसा सोचने वाले लोग कभी कुछ करके भी दिखायेंगे और उस दिन जरूर हम लोग राजनीती कि निंदा करना बंद कर देंगे.
आज इतना ही पर अब मैं लिखता रहूँगा. हां मैं http://www.google.com/transliterate/indic को जरूर धन्यवाद देना चाहूँगा जिससे मैं अपनी मात्रभासा इतनी आसानी से लिख सका.