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शुक्रवार, 21 मार्च 2008

--क्या यही प्यार है --

प्रेम के सागर में डूबे
भूल जाते है बुरा भला
सोच नहीं पाते कुछ भी और
दिल को रहती है एक ही याद
मीत ही सब कुछ लगता है

प्रेम के सागर में डूबे ..

मन रहे विचलित विचलित
मीठी सी आहट रहती है
इन्त्जारों की गहरी खाई
उनसे मिलने की फिर भी चाहत

प्रेम के सागर में डूबे ..

जिस्म दो एक जान रहती
भूल ना पाते साथी को
लगे वो सबसे न्यारा दोस्त
कहे मन रहे वो हर पल पास
जाये ना छोर के मेरा साथ

प्रेम के सागर में डूबे ..

सोचे मन बन जाये राधा क्रिश्ना
चाहे उनको भूल सारी मर्यादा
सोचे उसको छोड सारे रिश्ते
दूर ना जाये मीत इक बार पास आके
प्रेम के सागर में डूबे ..
- राम कुमार त्यागी
शिकागो - ०९ फरबरी २००७

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